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Wednesday, March 15, 2023

Feelings ---Affection -- adabi sangam - Meet---- 26TH FEBRUARY 2023

    भावनाएँ --    Feelings ---Affection -- अहसास - प्यार 

यह फीलिंग्स ,यह अहसास ,यह प्यार --------------
"वो  लगाव , दो जीवों में पैदा कैसे होता है ? जब एक के पास वह चीज़ नहीं होती  जो दुसरे के पास है  , या  \ वही चीज़ दोनों के पास है ,तो भी उन्हें एक जैसी फील या पसंदगी आने लगती है, जो हद से अगर बढ़ जाए तो  , वात्सल्य या अघाड़ जुड़ाव जिसे अंग्रेजी में अफेक्शन कहते है ,होने लगती है 

दर्द का भी एक अपना एहसास होता है  , एक भावना  होती है , लेकिन समझने के लिए वैसा ही दिल सबके पास नहीं होता। अगर ख़ुशी से न भी रह पाओ तो दर्द बन के ही रह जाओ हमारे पास। 




आना हुआ है अदबी बज्म में , इक ज़माने के बाद
खाली हाथ क्या आता , कुछ तो लाना था , सो
पिरो लाया हूँ कुछ जज्बातों को ,प्यार को , लगाव को अपनी


इन टेढ़ी तिरछी लकीरों में
आप इसे मेरी फीलिंग्स समझिये या भावनाएं ,
पर कुछ तो हैं इनमे ,जो मुझे यहाँ खींच लाती हैं 


*आज तक*

शिकायतें रही होंगी दिल में लाखों ,मगर जाहिर एक न होने दी
ख्वाइशें ,चाहतें भी थी बेइंतेहा छुपी हुई , हमारे भीतर
मगर बाहर एक न आने दी
एक अजीब सी हलचल मची रहती थी ,भावनाओं के सागर में
जिसमे कश्ती जब हमारी जा डूबी ,कोई पतवार भी काम न आई


भावनात्मक रिश्ते खूब निभाए हमने भी

रिश्तो का सैलाब है इस दुनिया में ,पर निभाता कोई कोई  हैं ?
भावनाएं जज्बातों का दम तो भरते है सब, साथ चलता कोई कोई  है ?
कुछ नज़दीक के, कुछ दूर के ,रिश्तों में ऐसे उलझ गए थे हम भी
कुछ निभ गए , कुछ जबरदस्ती निभाए गए ,कुछ शीशे के माफिक टूट गए ,

अपनी इन्ही फीलिंग्स के टकराव में
अब आप ही समझिये , वह रिश्ते थे या
केवल रिश्तों में अहसास का आभाव ? 
किस किस को समझिये ,किस किस को समझाइये ?
यह समझता है कोई कोई ?


( यहाँ मैं फीलिंग्स ही अहसास होता है बताने की कोशिश कर रहा हूँ )


उनके ख्वाब आते हैं हमेशा, मिलने हमारे ख्वाबों में
वो मगर खुद क्यों नहीं आते? तो याद आया के 
हमारे वो ख्याल ही तो थे , जो कभी उनसे मिल न सके
तो क्या सिर्फ इसलिए मैं ? 
उन्हें ,अपने
ख्वाबों में भी आने से भी रोक दूँ ?


शिकवे शिकायते ,कितनी भी रही होंगी हमसब के दिलों में
कुछ हमसफ़र बन गए हमारे, उम्र के हर मुकाम पे ,
समझदार थे जो
आंसुओं की भाषा , दिलों के दर्द सब कुछ समझ गए
जो न समझ सके हमको ,उन्हें भी गलत कैसे कह दूँ ?


थोड़ा खोज करते हैं ----
आज के तेजी से बदलते युग में हमें अपने ही लोगों से इतना जुड़ाव या वात्सल्य क्यों नहीं पैदा हो पा रहा ? सब के बीच की फीलिंग्स, भावनाओँ की कमी ,रिश्तों में एक कमजोर कड़ी क्यों बन चुकी हैं ?


उसकी वजह है हमें सच्चे ज्ञान की कमी , हम जिसे स्कूल कॉलेज से एक डिग्री के रूप में पाते है वह एक सर्टिफिकेट है के आपको वह सब पता है जो उस सब्जेक्ट के ऑथर या लेखक ने लिख दिया है और आपको टीचर ने पढ़ा दिया है , इसमें आप का अपना कुछ मौलिक ज्ञान नहींहै , हम सुबह से शाम किताबों में अखबारों में टेलीविज़न पर जो भी पढ़ते सुनते हैं वह सिर्फ सूचना का आदान प्रदान है, ज्ञान का नहीं ,


इसी कमी के चलते हमारी फीलिंग्स और अहसास भी एक सुचना की तरह रोज बदल जाती है। पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान का स्थान्तर इसी फीलिंग्स और जुड़ाव की वजह से हुआ करता था जो आज अचानक बिखर गया है।


आज एक शब्द आप अक्सर अपने बच्चों के मुहं से सुनते है " जनरेशन गैप ' जो हमारे वक्तो में तीन तीन पीढ़ियां एक ही छत के नीचे रहा करती थी उनमे जनरेशन गैप था ४० साल का यानी के सोच में इतना अंतर बहुत लम्बे अंतराल पे महसूस हुआ करता था। और आज ४० साल घट कर मुश्किल से दस साल रह गया है , अपने घर में किसी बच्चे से बात करके देख लो वह कुछ ही समय में "आपको कुछ नहीं पता " कह के साइड हो लेता है उसे अपनी विरासत पारिवारिक मान्यताओं से कोई लगाव नहीं बचा।


यही इस इनफार्मेशन युग ने हमारी पारिवारिक फीलिंग्स या ज्ञान की निरंतरता को तोड़ दिया है , न कोई आपसे सीखना चाहता है न कोई आपके ज्ञान का भागीदार बनना चाहता है तो फीलिंग्स, आपसी जुड़ाव ,प्यार अहसास की भावनाएं कहाँ से पैदा होंगी ? अहसास मुक्त ,फीलिंग्स मुक्त समाज का निर्माण हमारी शिक्षा पद्द्थि ने कर दिया है जिसे वापिस फिर से संवेदनशील बनाना असंभव न भी हो तो भी आज के इंटरनेट के घातक परिवेश में बहुत मुश्किल सा लगता है।


एक शायर की भावनाएं आज के सन्दर्भ में  कहती है "
कोई अच्छा लगे ,तो उसे प्यार मत करना
उसके लिए अपनी नींदे ख़राब मत करना
क्योंकि
दो दिन तो वो , आएंगे ख़ुशी से मिलने आपसे
तीसरे दिन कहेंगे ,सॉरी मेरा इंतेज़ार मत करना

उस रिश्ते के अहसास को वहीँ छोड़ दो ,
जहाँ प्यार और वक्त के लिए भीख मांगनी पड़े
उसे किसी रिश्ते का नाम न दो 

वयस्त तो हर इंसान है अपनी जिंदगी में ,
दिल में लगाव है सच्चा, जिसे आपके लिए ,
वह वक्त भी ढून्ढ ही लेगा , 
जो नहीं ढून्ढ पाता 
उसके दिल में आपके लिए  अहसास  कहाँ है ?,
तो ऐसी  गलत फेहमी में जीना छोड़ दो 


दिलों के जज्बात आँखों में बन के पानी ,
अक्सर उत्तर आते हैं ,बात बात पे जिनके
,वह दिल के कमजोर नहीं ,
बस दिल के सच्चे होते हैं


जो वक्त पर आपका अपना न हुआ ,उस पर कभी हक़ न जताना
 आप को समझ न सके 
जो, उसे अपना दुःख कभी न बताना ,
दुःख तो शायद ही बांटे तुम्हारा वो , अपना बन कर 
अक्सर खोज लेते है आप  की ,भावनाओं से खेलने का बहाना 


जो रिश्ता हमें रुला दे उससे गहरा कोई रिश्ता नहीं
और जो रिश्ता हमें रोता हुआ मझदार में छोड़ दे ,
दिखावा कितना भी करे ,उससे कमजोर कोई रिश्ता नहीं

दिल रो उठा जब कोने में पड़े मेरे बचपन वाले खिलोने
आवाज देके पूछ्ने लगे एक दिन ,"
"कैसे हो कुमार बाबू
क्या खूब खूब खेलते थे हमसे कभी तुम ?,

अब कैसा लगता है ?
जब लोग तुम्हारे साथ खेलते है ?


मैं कैसे बयां करता ,अपने भीतर के अहसास को , चुप रहा सोच के
लोग क्या कहेंगे ?
इस पशोपेश से बहार आ पाता तभी तो कुछ कहता
अनजान था मैं इस हकीकत से भी के, अंदर ही अंदर घुटना कोई काम नहीं आता
असर होता है बातों बातों में
अजनबी भी खुल जाते हैं दो चार मुलाकातों में


यह भावनाएं यह अहसास सीमित नहीं होता सिर्फ मेहबूब के लिए
इसका पहला सफा ही खुलता है माँ की कोख में
माँ से भावनातमक जुड़ाव ,ता उम्र इंसान हो या कोई भी जीव
इससे अछूता नहीं है जहाँ से जीवन की शुरुआत होती है

अपने अहसास को कुछ ऐसे महसूस किया करो ,
अपनी भावनाओं को ,प्यार में पिरो लिया करो
भरोसा भी करो तो उसपे ,जो तुम्हारी तीन बातों को समझ सके,

पहला मुस्कुराहट के पीछे का दर्द,
दूसरा गुस्से के पीछे का प्यार और
तीसरा तुम्हारे चुप रहने के पीछे का कारण।


बेचने निकले सौदा अपना ,जो कभी बाजार तक नहीं पहुंचा
इश्क़ भी किया तो इतना के कभी ,इज़हार तक नहीं पहुंचा
यूँ तो गुफ्तगू बहुत हुई उनसे मेरी फ़ोन पर अक्सर ,
लेकिन सिलसिला कभी यह ,प्यार तक नहीं पहुंचा

शर्तें एक दुसरे की मंजूर थी यूँ तो ,
लेकिन भावनाओं की कमी रही हम दोनों में
सो मसौदा हमारा ,करार तक नहीं पहुंचा
गहराई इसकी हम नापते भी कैसे ?
रिश्ता हमारा कभी तकरार तक ही नही पहुंचा

एहसास न था के ,कितने अकेले हैं हम
दो कदम साथ चल के यह जता गया कोई


अपनी ख़ूबसूरती से बिलकुल  वाकिफ न थे हम
आँखों में आँखें डाल , आइना दिखा गया कोई

अच्छा समय कटा जिसके साथ रह कर हमारा
वह रिश्ता भी, बहका फुसला  कर तोड़ गया कोई

जरा सोचो महसूस तो करो उन भावनाओं को भी
जिन पेड़ो को कागज होने का दंड मिला
उन्हें कैसे लगते होंगे
खुद की लाशों पर ,लिखे गए शायरी के वो मजबून ?

वे बीज कैसे रौशनी को अच्छा मान ले
जिन्हे निचोड़ उनके खून से दिए जलाये गये
जबकि उन्हें रौशनी से अधिक ,धरती माँ
के गर्भ का अन्धकार चाहिए था
अंकुर बन के ,नया जीवन पाने के लिए

पर उनकी भावनाओं को समझेगा  कौन ?

हर एक जज्बात को जुबान नहीं मिलती
हर एक आरजू को दुआ नहीं मिलती
मुस्कराहट बनाये रखो तो दुनिया है साथ
आंसुओं को तो आँखों में भी पनाह नहीं मिलती

पर्स को क्या मालूम के पैसे उधार के हैं
वो तो बस फूला ही रहता है अपने गुमान में
ठीक यही हाल हमारा भी है, उधार की हैं साँसे
न जाने फिर भी हमें ,अहंकार किस बात का है


भीड़ का एक ही सवाल था हमसे , 
क्या दुनिया सुधर जायेगी या बदल जायेगी ?
तुम्हारे इस तरह लिखने बोलने से ?

नहीं बदलेगी दुनिया पता है हमें भी
भीड़ ने हंस कर पुछा फिर क्यों करते हो यह सब ?
इसलिए के दुनिया 
मुझे बदलने की कोशिश न करे


अपनी फीलिंग्स। भावनाओं को
"नाराज़गी"को कुछ देर"चुप" रहकर"छुपा "लिया करो..! 👌
क्योंकी.... 🤞
"गलतियों"पर बात करने से "रिश्ते"अक्सर"उलझ"जाते हैं...
भावनाएं सबकी होती है ,
जिन्हे थोड़ा समझ लेने से ,उलझे रिश्ते भी सुलझ जाते है



अच्छा समय बीता साथ रह के जिसके,

उसी वक़्त का इंतज़ार सिखा गया कोई !

प्यार होता है क्या निभाते है कैसे ?

इज़हार करके निभाना सीखा गया कोई !



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