Wednesday, July 21, 2021

ADABI SANGAM -- Meeting NO-500- ( ASVM-17th) , MAY-29,2021 --TOPIC- YAADIEN-----YAAD -----MEMORY---- यादें

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "



Logistics: Meeting# 500 ASVM# 17, May 29:
Topic: Yaad, Memory or to remember.
Part one: Dr Mahtab ji
Part two: Rajni Ji
Story: 6-minute article by Rita Ji, followed by a short story by Mukesh Ji.
Ashok S Ji will send the link.
Please advise your attendance with Participation as soon as possible. Thanks🙏🙏

गुजर जाते हैं ----- खूबसूरत लम्हें ---
युहीं मुसाफिरों की तरह , -------छोड़ के यादों के निशाँन 

भूली  बिसरि  राहों से  गुजरे , जो  हम कभी, 
मंजिल तो मिलती क्या हमें ?
हर कदम पर खोयी हुई कुछ  यादें   जरूर मिल गयी।

क्योंकि इंसान गुजर जाता  है ,अपने मकसद की राहों  में  ,
यादें वहीँ खड़ी रह जाती है --- सुनसान खंडरों की  तरह 

एक उम्र के बाद --उस उम्र की बातें --उम्र भर याद आती है 
पर वोह "उम्र "जो गुजर गई  फिर "उम्र भर " नहीं आती ------ 

आती हैं तो सिर्फ यादें ---और ढेर  सी  कचोटती यादें 


सब कुछ मिट जाए बर्बाद हो जाए , 
हर इतिहास दफ़न हो जाता है , 
उन्ही खंडहरों से अक्सर 
, यादें फिर भी उभर आती हैं --जेहन से  टकराती है -- कदम  रोक लेती हैं कभी कभी ,
बड़े बड़े बादशाह ,सेनापति दुनिया से चले गए , लेकिन उनके छोड़े  हुए किले ,महल , साजो सामान आज भी लोग सैलानी बन  बड़े चाव से देखने जाते है 
और उन लम्हों की यादो को खुद  महसूस करते है. 


सोचो इंसान का वजूद ही क्या होता ?अगर उससे जुडी यादें न होती ?
 कोई किसी का रिश्तेदार न होता, कोई कर्जदार न ही कोई देनदार होता 
न कोई राजा न कोई कहानियां  
हर इंसान अजनबी की तरह पैदा होता,
 और मिलने पर हर बार पूछता आप कौन ?
 इसी उधेड़ बुन  में उम्र गुजर जाती , और इंसान खुद ही एक यादगार  बन के रह जाता 

यादें खुशनुमा हो या दुखदाई , संजोई तो हमने खुद होती है 
यादें तो होती ही लहरों की तरह हैं कभी भी उठ जाती हैं , 
कुछ यादें हवा के झोंके जैसी , जो आई और उड़ गई ,
और कुछ पत्थर पे पड़ी लकीर जैसी, हमारे जेहन में आके चिपक गई 
वोह  यादें अमर हो गई  जिसे लाख चाहने पर भी भुलाया नहीं जा सकता। 

चलो एक और बात करते हैं 
नहीं है कुछ भी मेरे दिल में सिवा ,कुछ खुशनुमा लम्हों के ?
अब मुझे यह भी तो बताओ 
मैं उन्हें  अगर भुला भी दूँ तो फिर याद क्या रखूँ।

मौसम की पहली बारिश का शौक दुनिया को  होगा,
हम तो रोज किसी की यादो मे ही आंखे भिगोते रहते है।

मजबूर नहीं करेंगे तुम्हे दुनिया वालो  साथ निभानें के लिए,
बस एक बार ही आ जाऔ , अपनी यादें वापस ले जाने के लिए।

बहुत गिला हुआ करता था अपनी बद  किस्मती  पे , 
जब रोज मिलने वाले दोस्त भी हमें भूल गए , 

छोड़ के चंद यादें हमे तड़पने  के लिए ?
फिर खुद ही समझाया, प्यार से खुद को 

न कर ज़िद्द, अपनी औकात में रह ऐ नादान दिल,
वो बड़े लोग हैं, अपने शौक से याद करते हैं।

एक और दृश्य देखते है:---
अपनी अपनी उम्र के हिसाब से आप अगर 50 -60  वर्ष पूर्व अपने जीवन को आज की उम्र के परिवेश में झांक के देखो , आप एकदम  इंतिहा भावुक हो जाओगे और ख्वाइश करने लगोगे काश कोई लौटा दे मेरे बीते हुए वह साल वो जिंदगी का तरीका ,जो आज खुद हमारी यादों में दफन हो चूका है। वो कागज़ की कश्तियाँ बारिश में चलाना , वह छतों पे चढ़कर पतंग उड़ाना और पेच लगाना , दुसरे की पतंग काट के जश्न मनाना , वह गुल्ली डंडे के मैच , वह कांच के बने रंगबिरंगे  बंटे ,घंटों खेलते रहना , जब तक माँ ढूँढ़ते हुए न आजाये। 

 पर यह कभी हो नहीं सकता ,न उम्र लौटती है न ही वो मंजर जिसे पार करके हम आज जहाँ पहुँच चुके है , लौट लौट कर आती हैं तो सिर्फ यादें, एक आंधी का हो गुबार जैसे -------- कुछ हंसाती है कुछ रुलाती भी हैं,

जाते जाते हमारी बीती यादें फिर से एक और  नई याद " हमारी उम्र के उस पड़ाव पर एक अनमिट मोहर लगा जाती है  एक  एहसास छोड़ जाती है "

हमारे जितने भी बड़े बड़े लेखक , गीत कार , संगीतकार , सफल हुए है सबकी ताकत अगर कोई थी तो वह थी उनके  जीवन के तजुर्बे ,जो संजोय हुए थे  उन की यादों में ,उन्ही लुप्त हुए जीवित लम्हों को एक शायर पुनर्जीवित करके अपने गीत कहानियां ,गजल और शेर  लिख डालता है और जब कोई कलाकार उसे एक फिल्म के रूप में पेश करता है ,उसे फ़िल्मी परदे पर हम देखते है तो उसे अपना ही किस्सा समझ लेते है और भावुक हो जाते है , यही तो है हमारे यादो का सांझा संसार। जो अनवरत चलता ही रहता है। 

 यादें न हों तो परिवार नहीं बन सकता , कोई घर से बाहर काम के लिए जाए और रास्ता ही याद न रहे ? आज की दुनिया में तो जीपीएस मौजूद है पर पहले वक्तो में अक्सर लोग दूर निकल जाएँ तो  भटक जाया करते थे और पूछ पूछ कर ही घर पहुँच पाते थे , लेकिन जो फासले हमने पैदा होने से लेकर आजतक तय कर लिए है उनका हिसाब कोई कैसे करें ?

बहुत दूर निकल आये है लेकर जिंदगी की अपनी जर्जर कश्ती  अपने ही हौसलों से ,
झेला है जिंदगी ने भीषण तूफानों को , कुछ कमाया ,कुछ गवाया , 
कुछ अहसास मिटा, ख़त्म हुई  तलाश भी  , मिट गई सदाबहार उम्मीदें भी,

नहीं बचीअब किसी दुनियावी चीज़ की कोई ख्वाइश भी , 
सब कुछ सिमट गया, खुद को वैरागी भी बना लिया ?
मगर इनका क्या करू?
 मेरी यादें जो अभी भी जिन्दा हैं , चिपकी है मेरे साथ साय की तरह ,
चैन से रहने भी नहीं देती मुझे , पर यह भी तो सच है "मेरी उम्र के इस पड़ाव पर " मेरे साथ कोई  रहना भी कौन चाहेगा ? 

इंसान की तन्हाई  का कोई अगर साथी बचता है तो वह है उसकी यादें,
बहुत ही हसीन सी होती हैं यादें, यूँ तो बोलने को कुछ भी नहीं हैं,
न कुछ दिखाई देता है न ही सुनाई , यह तो एक छुपा हुआ अहसास है ,
जो कभी भी जाग उठता है ,अपना ही तो परछाईं हैं यादें।
कोई दूसरा इसकी अहमियत कैसे जानेगा ,
जिसकी होती हैं यह यादें उसे बहुत चाहती है ,उसे तो सोने ही नहीं देती  


आज वक्त की रफ़्तार को देखो जो पल पल, मेरी जिंदगी समेटे भागे जा रहा है 
 जो मेरे यह पल दिन,  रात ,मित्र यार और रिश्तेदार ,
अपने से लगते हैं न ?

ये हसीं ख़ुशी के पल बस यहीं तक हैं , 
जितना प्यार बाँटना है हंसना हँसाना है आज ही कर ले 
कल आने पर कोई  न होगा जब ,  
हमारे साथ रह जाएंगी सिर्फ और सिर्फ हमारी  अनमिट यादें

हम तो  न होंगे , ये पल भी ना होंगे तब सिर्फ हमारी  बातें होंगी,
जब पढ़ेंगे दोस्त हमारी   ज़िन्दगी के उन पन्नों को,
तो हो जाएंगी कुछ आँखें नम,

 किसी के दिलों  में थोड़ा गम होगा 
और कुछ लबों पर बरबस मुस्कराहटें भी होंगी।
बस यादों का कारवां इतना ही साथ देता है ,
फिर सब खो जाते है , अपनी ही बनाई  यादों में  


 अपने होकर भी सताने से करते नहीं परहेज ,कुछ लोग बाग  ,
दूर रहकर भी  दिल जलाने से करते नहीं गुरेज वो  जांबाज़,
हम तो भूलना चाहते हैं ,हर उस  याद को जो अक्सर रुला देती  है 
मगर उनकी जुर्रत तो देखो , ख्वाबों में आ धमकने से भी ,आते नहीं बाज़ ।


अगर आँसू बहा लेने से यादें बह सकती , तो 
एक ही दिन में हम सारी यादें  मिटा देते। और लम्बी तान के सोते , पर नहीं यह सपना कभी पूरा नहीं हो सकता। 

हमारी तुम्हारी नज़दीकियां इस कदर बढ़ी 
इस तरह दिल में समाओगे मालूम न था,
दिल को इतना तड़पाओगे मालूम न था,
सोचा था दूर हो तो ,  भूल ही जाओगे 
मगर दूरी में भी  इस कदर याद आओगे मालूम न था।


अब कोरोना काल  ने जो हमारा नक्शा बिगाड़ा 
अब तो उदास होना भी उतना ही अच्छा लगता है,
जितना कभी खुश होना लगता था , 
दोस्तों के साथ वर्चुअल ही सही मिलान तो है ,
पर इसमें वह गर्म जोशी कहाँ जो मिलने में थी 

 दूर रह कर भी किसी की यादों में तो हूँ,
बस ये एहसास होना भी अच्छा लगता है।
कभी कभी किसी का पास न होना ,
सिर्फ याद आना ,भी अच्छा लगता है, 

जब आपका नाम ज़ुबान पर आता है,
पता नही दिल क्यों मुस्कुराता है,होती है तसल्ली यह सोच कर हमारे दिल को,
कि चलो कोई तो है अपना जो हर वक़्त याद आता है।

बिखरे अश्कों के मोती हम पिरो न सके,
अपनी यादों के साय में सारी रात सो न सके,
मिट न जाये आँसुओं से मेरी यादों की लकीरें 
यही सोच कर हम रो भी न सके।

जवानी की यादें भी कुछ कम नहीं होती 
सारी उम्र आँखों में एक सपना याद रहा,
सदियाँ बीत गयी पर वो लम्हा याद रहा,
जब टकरा गए थे लाइब्रेरी में उनसे ,

किताबें जो गिरी उनके हाथों से हमने समेट तो दी थी 
लेकिन आज तक खुद को न समेट पाये 
ना जाने क्या बात देखि थी हमने उनमे,
सब कुछ  भूल गए हम , बस वो चेहरा अभी भी याद है

दस्तूर है ज़माने का , सब जानते हैं 
कद्र हर शै की हुआ करती है खो जाने के बाद 
तुम भी तो  उसे ही 
करोगे याद , जो तुम्हें नहीं है याद ?


याद किसी को करना ,ये बात नहीं जताने की,
दिल पे चोट देना आदत है ज़माने की,
हमारा वादा है , आपको बिल्कुल नहीं करेंगे याद 
क्योकि याद किसी को करना तो ,निशानी होता है भूल जाने की।


यादों की कीमत वो क्या जाने,
जो किसी को यूँ ही पल में भुला देते हैं,
यादों का मतलब तो उनसे पूछो जो,
यादों के सहारे जिंदगी  जिया करते हैं।


लफ्ज़,अलफ़ाज़,कागज,और किताब,
कहाँ कहाँ नहीं रखता मैं
 सबकी  यादों का हिसाब।


बारिश की यादों का जिक्र करूँ तो आँखें भी बरस जाती है 
बूंदो से बना हुआ छोटा सा समंदर,
लहरो से भीगती छोटी सी बस्ती,
चलो ढूंढे इस बारिश में दोस्ती की यादें,
हाथ में लेकर एक कागज़ की कश्ती।

प्यार का रिश्ता भी कितना अजीब होता है।
मिल जाये तो बातें लंबी और बिछड़ जायें तो यादें लंबी।
अजीब ज़ुल्म करती हैं,  मिलकर यह सब नामुराद यादें 
,सो जाऊं तो उठा देती हैं ,जाग जाऊं तो रुला देती हैं।

हिम्मत करो हौसला रखो 
शिकवा ना करो जिंदगी से,
आज जो जिंदगी है न तुम्हारी 
वही कल की याद कहलायेगी ।

एक उम्मीद का दिया जो जला रखा था,
उसे भी आज  अश्कों की बारिश ने बुझा दिया,
तनहा अकेले कितनी  ख़ुशी से जी रहा था,
आज फिर आपकी याद ने रुला दिया।


अच्छा एक सिगरेटे पी के आता हूँ,
एक याद फसी है उसे धुए में उड़ा के आता हूँ।
किसी कि यादों ने हमें बेहिसाब तन्हा कर दिया,
वरना हम खुद में किसी महफ़िल से कम न थे।



हम अपनी दोस्ती को यादों में सजायेंगे,
दूर रहकर भी उनकी  यादों में नजर आयेंगे,
हम कोई गुजरा वक़्त नहीं जो लोट न पाए ,
जब भी याद करोगे ,जेहन में उत्तर आयेंगे।

तुम करोगे याद एक दिन इस प्यार के दीवाने  को,
चले जाएँगे जब हम ,कभी ना वापस आने को,
करेगा महफ़िल मे जब, ज़िक्र हमारा कोई,
तब आप भी ढूंढोगे 
तन्हाई ,एक कोना आँसू बहाने को।


एक दिन हमारे आँसू हमसे पूछ बैठे,
हमें रोज़-रोज़ क्यों बुलाते हो,
हमने कहा हम याद तो उन्हें करते हैं,
तुम ख़ामख़ा बीच में आ टपकते हो। 

बड़ी गुस्ताख है यह  यादें , इसे तमीज सिखा दो,
दस्तक भी नहीं देती ,और जब तब चली आती है ।

हम तो रो भी नहीं सकते उसकी याद में…
उसने एक बार कहा जो था,मेरी जान निकल जाएगी,
तेरे आंसू गिरने से पहले।

खुल जाता है तेरी यादों का बाज़ार सरे-आम,
फिर मेरी रात इसी रौनक में गुजर जाती है।

कितना खुश था, मैं अपने देस में 
अजीब लोगों का बसेरा है तेरे शहर में,
मदमस्त अकेले अकेले पड़े रहते है 
ग़ुरूर में मिट जाते हैं पर हमें कभी याद नहीं करते।

बहुत दर्द देता है उस इंसान का याद आना,
जो हमें कभी भूलकर भी याद नहीं करता ।

साँसों का टूट जाना तो बहुत छोटी सी बात है दोस्तो,
जब अपने याद करना छोड़ दे, मौत तो उसे कहते है ।
रात हुई जब शाम के बाद,तेरी याद आयी हर बात के बाद,

हमने खामोश रहकर भी देख लिया ,
तेरी 
ही आवाज़ आयी हर सांस के बाद 


कस्तियाँ रह जाती हैं तूफान चले जाते हैं,
याद रह जाती है इंसान चले जाते हैं,
प्यार कम नहीं होता किसी के दूर जाने से,
बस दर्द होता है उनकी याद आने से।


सज़ा बन जाती हैं साथ गुजारे हुए, वक़्त की यादें,
न जाने  छोड़ जाने के लिए ज़िन्दगी में 
आते ही क्यों हैं  लोग।

यादें आती हैं यादें जाती हैं,
कभी खुशियाँ कभी गम लाती हैं,

यूँ तो मुद्दतें गुजार दी हैं,
हमने तेरे बगैर भी मगर,
आज भी तेरी यादों का एक झोका,
मुझे टुकड़ों में बिखेर देता है।



एक बात मेरी जरूर याद रखना 
जब करोगे याद, हमारे साथ गुजरे जमाने को,
फिर से तरसोगे हमारे साथ एक पल बिताने को,
कितनी ऊँची आवाज भी दोगे हमे वापिस बुलाने को,
और जवाब  सिर्फ एक ही मिलेगा , नहीं है दरवाजा कोई 
---------------------कबर से बाहर आने को।






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तुम्हारी याद के फूलो को मुरझाने नहीं देंगे हम,
हमने अपनी आँखे रखी हैं उसे पानी देने के लिए।

कर रहा था ग़म-ए-जहान का हिसाब,
आज तुम याद आये तो बे-हिसाब आये।

यादें उनकी ही आती हैं जिनसे कोई ताल्लुक हो,
हर शख्स मोहब्बत की नजर से देखा नहीं जाता।


कुछ खूबसूरत पल याद आते हैं,
पलकों पर आँसू छोड जाते हैं,
कल कोई और मिले तो हमें न भुलना
क्योंकि कुछ रिश्ते जिन्दगी भर याद आते हैं।

जब से तेरी चाहत अपनी ज़िन्दगी बना ली है,
हम ने उदास रहने की आदत बना ली है,
हर दिन हर रात गुजरती है तेरी याद में,
तेरी याद हमने अपनी इबादत बना ली है।






 जब महफ़िल में भी तन्हाई पास हो,
रोशनी में भी अँधेरे का एहसास हो,
तब किसी खास की याद में मुस्कुरा दो,
शायद वो भी आपके इंतजार में उदास हो।
सुना है रब कि ......
___कायनात में ......
एक से बढ़कर एक .... 
___चेहरे हैं ........... 

मगर मेरी आँखों के लिए .....
__सारे जहाँ मॆ ..... 
सबसे खुबसुरत ....
___सिर्फ तुम हो ...
साँसों में मेरे कुछ अजीब सी कशिश है आज जान शायद ये तुम्हारे साँसों को महसूस कर रहा है

आँखें मेरी तुम्हारी राहों पे आके थम गयी हैं और ये दिल तुम्हारे आने का इंतेज़ार कर रहा है।
 अपने दिल में तो अपने अल्फ़ाजों को बसना ही है..,

जिनकी तड़प में लिखते दिल में उनके भी गर उतरे तो अल्फ़ाज अच्छें है..!





27-3-2021 ADABI SANGAM -ASVM. # 15 -- (498) मुकदमा एक वकील पर ---इस जहाँ से दूर एक सर्वोच्च सर्वोपरि अदालत - एक सच्ची कहानी जो खुद पे गुजरी है --- STORY PART

 मुकदमा एक वकील पर ---इस जहाँ से दूर एक सर्वोच्च सर्वोपरि आखिरी अदालत -  एक सच्ची कहानी जो खुद पे गुजरी है 



                            "LIFE BEGINS HERE AGAIN "

मुकदमा एक वकील पर  इस जहाँ से दूर एक सर्वोच्च सर्वोपरि आखिरी अदालत का एक दृश्ये जिसे धर्म राज की अदालत कहते है । और उनके कार्यवाहक यमराज जी को जीवन मृत्यु विभाग दिया गया है .

यह बिलकुल सच्ची आपबीती है जो मैंने अपनी यादाश्त से  इसे  कागज पे उतारी है , डेस्टिनी और palmistry में पहले से ही काफी interest भी था और बड़े बड़े ज्योतिषिओं से एक बार अपना हाथ दिखाया तो उन्होंने बोला था खा पी लो तुम्हारे पास वक्त ज्यादा नहीं है , बात आई गई हो गई लेकिन जिस उम्र के पड़ाव पर मेरी जान को खतरा बताया गया था वह वाकई में  सच में हो गया , विश्वास करो तो यह सब सच है न करो तो एक सपना जो इन जीती जागती मन की आँखों ने मरने से पहले के क्षणों में  देखा था ? जी हाँ इस सपने में हम अधमरे  ही उस अदालत में पहुंचे थे , दौरा दिल का पड़ा था और हॉस्पिटल के बिस्तर पर यह सब कुछ हो रहा था  आइये  इस घटना के परिपेक्ष में थोड़ा झाँक लेते हैं ,

1975 -76 में लॉ फैकल्टी दिल्ली यूनिवर्सिटी से वकालत पास हुए , और एक नई चुनौती अदालत की जिंदगी , जिरह ,सबूत , गवाह , जज और उसपे सबसे दुखदाई वहां के रितो रिवाज "तारीख पे तारीख ",जहाँ न्याय प्रणाली को दम तोड़ते मैंने खुद इन आखों से देखा है और झेला है।   मेरी जिंदगी इससे पहले भी  बड़ी जद्दोजेहद से गुजर रही थी , मुझे पढाई के साथ साथ अपने हिस्से की फैक्ट्री भी देखनी पड़ती थी वरना भाईओं की सुननी  पड़ती थी के यह नवाब बने यूनिवर्सिटी घूम  घूम हीरो बन  रहे हैं और हम दिन रात अकेले मेहनत करें ? 

क्योंकि यह सब कारोबार पिताजी का ही चलाया हुआ  था तो सबको यही लगता था की सब अगर पार्टनर्स है और प्रॉफिट के हकदार है तो चाहे वह पढ़ रहे हो या यूनिवर्सिटी में रोज जा रहे हो सब काम करें , गोया सुबह लॉ फैकल्टी और तीन बजे शाम के  के बाद रात 11 बजे तक फैक्ट्री का काम , मेरे जवान कसरती  शरीर ने  बखूबी साथ  निभाया , टेक्निकल बुक्स पढ़ी और उसमे सुधार करते हुए अपनी फैक्ट्री की प्रोडक्शन सबसे ऊपर कर के दिखा दी और सब को हैरानी में डाल दिया की मैं वकालत की पढ़ाई  में फैक्ट्री चलाना कहाँ से सीख गया ? 

 इतनी हार्ड मेहनत और समय  की धारा  के उल्ट विपरीत स्थितिओं में काम करना  , तमाम दिक्कतें एक दम  से विकराल रूप में मेरे सामने आ गई जब अचानक इंदिरा गाँधी के समय में देश में आपातकाल 1975 में लग गया और हमारी सारी मेहनत को पूर्ण ग्रहण लग गया ,सारा बिज़नेस ठप और कैशफ्लो भी रुक गया , फैक्ट्री में दिक्क़ते आनी  शुरू हो गई , labor disputes unrest जो अमूमन ऐसे हालत में हो जाया  करते है ,  हमारे दिल को जरूरत से ज्यादा चिंताएं  इसी दौरान काफी कमजोर भी कर चुकी थी । 

ऊपर से घातक रूप शुरू हुई असली कश्मकश , बेशुमार कोर्ट कचेहरी के चक्कर , नई नई शुरू हुई गृहस्थी  की जिम्मेवारी , बच्चों को वक्त देना उन्हें स्कूल वक्त पर पहुँचाना , बच्चा बीमार है तो डॉक्टर के पास लेकर जाना ,सब कुछ जो अब तक आरामो सकूं से चल रहा था उसमे एक भीषण गति लानी पड़ी , उसी तकलीफ के वक्त परिवार में विभाजन भी हो चूका था, माँ बाप मेरे ही साथ रहते थे उन्हें भी चिंताओं से बचाना जरूरी था , कोर्ट्स के  चक्कर पे चक्कर और अब लड़ाई भी अकेले ही लड़नी थी सब भाई  अपने अपने रास्ते चले गए थे , क्या क्या मुसीबत नहीं टूट पड़ी हम पर , एक तरफ पूँजी टूटी , लेबर बगावत पे उत्तर गई , कोर्ट केसों की भरमार हो गई , बैंक के लोन भी थे उन्होंने भी मौके का फायदा उठाते हुए हमे अकेला देख बड़ा तगड़ा कोर्ट केस ठोक दिया , 

 और हम लग गए अपनी जान माल बचाने में और फैक्ट्री को सरकारी झमेलों से बच्चाने में। खुद वकील थे सो पूरी जी जान एक कर दी , सब मुकदमो में कई साल लग गए ,करोड़ो का नुक्सान हुआ सो अलग , जैसे तैसे उस फैक्ट्री के ढाँचे  को तो  बचा लिया पर वोह चल पाने में असमर्थ थी क्योंकि पावर कनेक्शन का ५० लाख का केस अभी बाकी था , उस केस को निचली अदालतों में कोई न्याय न मिला और हमारी लड़ाई पहुँच गई देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट में , वहां हमने अपनी पूरी काबलियत उस बिजली क़ानून को ही गलत साबित करने में झोंक दी , हमारी सच्चाई के आगे सरकार भी केस हार गई और हमसे १४ साल बाद समझौता हुआ और फैक्ट्री में पावर दुबारा चालू हो पाई , घर का गुजर बसर अपनी लीगल प्रैक्टिस से चलता रहा , सब कुछ जब सम्भल तो गया , अपने दिल को नहीं संभाल पाए। 

और आ गया वह कयामत का दिन -जून 16, 1991 ,  

यह बिलकुल सच्चा किस्सा है और मैंने इसे अपनी बची खुची यादाश्त के सहारे जीवित किया है  , इतने सब कष्ट झेलने के बाद घर में कुछ उदासी थी हमारे जीवन में भी , बच्चे भी मेरी मुरझाई सूरत से कुछ उदास से हो गए थे , बाप का फर्ज निभाते हुए , सोचा सबको एक हफ्ते शिमला हिल स्टेशन ले चलते है थोड़ा तरो ताज़ा हो जाएंगे , वहां जाकर कुछ हुए भी और जब लौट कर वापिस दिल्ली पहुंचे तो ,  सुबह कहीं जाने के लिए जल्दी से तैयार भी हुए तो लगा की शरीर में कुछ जकड़न सी थी हो सकता है सफर की थकान हो ,और यह सोचकर  थोड़ी एक्सरसाइज भी कर डाली ताकि शरीर की मायूसी थोड़ी ठीक हो जाए, पर छाती में कुछ खिचाव बढ़ता महसूस हुआ जल्दी से एस्पिरेने की दो गोली निगल ली , हल्का आराम तो मिला लेकिन एक घंटे के बाद जहाँ गए हुए थे वहां से फिर जल्दी लौटना पड़ा क्योंकि सन्देश मिला की हमारे पारिवारिक गुरु जी अचानक हमारे घर आ पधारे थे लेकिन घर पहुँचते ही फिर वही खिचाव दुबारा छाती में उठना शुरू हुआ, गुरु जी अपने एक रूम में अलग से ध्यान लगा कर बैठे थे और हम सब उनके द्वार खुलने का इंतज़ार कर रहे थे , 

लेकिन मेरी हालत जब दरुस्त नहीं हुई , तो मैंने अपने ज्ञानुसार भांप लिया की यह कोई दिल में गड़बड़ है , घर में पत्नी को साथ लेकर  डॉक्टर से चेक अप  करवाने पहुँच गए , उन्होंने बहुत जल्दी जल्दी चेक अप करके एक इंजेक्शन लगा दिया , एक दम से हमे उलटी हुई ,और पुछा यह कब से हो रहा था ? मेरे यह कहते ही की यह तो सुबह उठते शुरू हो गया था , बोले बहुत खतरा उठाया है आपने यह सीवियर एनजाइना है  गाडी में बिठाया और किसी बड़े हॉस्पिटल के icu में भर्ती करवा दिया 

और मालुम नहीं हम कहाँ थे और कहाँ पहुँच गए , कोई इंजेक्शन का असर ही रहा होगा हमे, और डूब गए हम एक खामोशी में।

यह क्या हो रहा था मेरे साथ ? अचानक मेरा नाम लेके मुझे पुकारा गया राजिंदर नागपाल हाज़िर हों , दुबारा फिर वही आवाज , और फिर एक सफ़ेद लिबास में सज्जन आये " तुम्हे आवाज सुनाई नहीं दे रही , उठो तुम्हारी सुनवाई होनी है " सुनवाई होनी है पर है कौन सी जगह ?क्या किया है मैंने ? मैं इधर उधर अपने आस पास कुछ ढूंढ़ने लगा तो उस सफ़ेद पॉश ने पूछा की क्या ढून्ढ रहे हो ? मैं देख रहा था अगर यह कोर्ट की सुनवाई है तो मेरी फाइल भी यहीं कहीं होगी पर मेरे पास तो कोई फाइल ही नहीं है ,न ही  यह कोई कोर्ट  लग रही है  , मैंने कितने ही सालों तक  दिल्ली की इन तीस हज़ारी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक की जिंदगी देखि है । कोर्ट्स का हाल तो बस इतना समझ लो 

जहाँ छत का पंखा भी डिस्को करता हुआ चलता था, कूलर थे तो लेकिन गरमा गर्म हवा के लिए , ऐरकण्डीशनर्स होते थे तो लाइट न होने की वजह से ज्यादा तर बंद ही रहते थे , सुनने में आता था बिल ही नहीं भरे जाते थे इस लिए बिजली बीच बीच में परेशां करने के लिए काट दी जाती थी , बदबूदार अदालत के कमरे और ऊपर से  लोगों की अनायास भीड़ , पर यहाँ तो कुछ भी ऐसा नहीं दिख रहा सब कुछ बड़ा साफ़ सुथरा और  आनन्द दायक  वातावरण है, कौन सी अदालत है भाई यह , हम तो यहाँ पहले कभी आये ही नहीं इसी देश की है न ? 


देखो यह धर्म राज का न्यायलय है यहाँ कोई पेपर फाइल नहीं होती हमारे पास सब रिकॉर्ड पहले से होता है तुम्हारी जिंदगी के कर्मों के लेखे झोके का , क्या बात कर रहे हो एक जिन्दा व्यक्ति धर्मराज यमराज की अदालत क्या बोले जा रहे हो , अभी पता चल जाएगा उठो तुम्हारी सुनवाई शुरू हो गई है  , मुझे एक ऊँचे सिंघासन पर विराज मान जिसे धर्मराज  कहा  जा रहा था उनके सामने पेश किया गया , धर्मराज  जी ने अपने नीचे बैठे रिकॉर्ड कीपर से कहा , चित्र गुप्त इनका लेखा झोका निकालो इन्हे यहाँ स्वर्गलोक  क्यों लाया गया है ? इनकी मौत कुदरती हुई है या किसी दुर्घटना में ? अब यमराज की बातें सुनके मेरा दिमाग घूमने लगा की वाकई मैं तो मर कर इधर पहुंचा हूँ। 


भगवान इन साहिब को दिल का दौरा पड़ा था और पृथिवी लोक में इन लोगों ने बड़े बड़े यांत्रक संस्थान बनाये हुए है जिसे यह हॉस्पिटल कहते है जिसमे इनका दावा होता है के यह हर बीमारी का इलाज कर सकते है और किसी भी मृत शरीर के अंग जीवित शरीर में लगा कर उसे जिन्दा रख पाते है ,और दिल फ़ैल हो   जाए तो भी उसे ऑपरेशन से ठीक कर लेते है या किसी मुर्दे के दिल को किसी और में प्रत्यारोपण भी कर लेते है और उसे जिन्दा कर लेते है ? इसे वहाँ के बड़े बड़े डॉक्टर्स इलाज देकर  इसे बच्चाने में लगे थे , अगर हम वक्त पे न पहुँचते तो उन्होंने इसे भी  काटने का पूरा इंतज़ाम कर रखा था जिसे यह ऑपरेशन थिएटर कहते हैं।  इसे हम वहीँ से उठा के लाये है  

धर्म राज जी ने गुस्से में टेबल पर हथोड़ा मारा हमारे न्यायालय  का इतना अपमान ,हमारी विधान में इंसान का दख़ल हमे कतई मंजूर नहीं ,यह सब यांत्रिक संसथान हमने इंसानो को सजा देने को बनाये है इन्हे दरुस्त करने के लिए या उम्र बढ़ाने के लिए  नहीं।  जिसका वक्त पूरा हो चूका हो उसे यह डॉक्टर कैसे बचा सकते है यह हमारी अदालत की तोहींन है , इसकी सजा मिलेगी इन्हे ,

भगवान हमने भी कहाँ इन मुर्ख इंसानो की परवाह की हम इसे अपने नियमानुसार उठा लाएं है , इनका पार्थिव शरीर वहीँ हॉस्पिटल के बिस्तर पर पड़ा है देखिये उनका लाइव टेलीकास्ट ,और यह जो सफ़ेद नकाबपोश इस स्क्रीन पर दिखाई दे रहे है न यह वहां के डॉक्टर कहलाते है और लोग इन्हे भगवान् की तरह पूजते है इनके लिए अपनी सारी धन दौलत लेकर इनके दरवाजे खड़े रहते है की हमारी सम्बन्धी को किसी भी तरह बचा लो। 

कोई बात नहीं इनका मुकदमा शुरू किया जाए हम देखते है इनके बड़े बड़े हस्पताल और डॉक्टर्स क्या कर पाते है इनके मृत शरीर के साथ। 

इनके गुनाहो का चिटठा बताईये , भगवन इनके वर्तमान जीवन के  खुदके ऐसे कोई खास गुनाह नहीं हैं , यह तो कर्म फल के अनुसार इनके बीते पिछले जीवन में जो भी कुछ हुआ है उसी के फलसवरूप उनकी सजा अभी बाकी थी , लेकिन आज के जीवन में  यह अपने मात पिता के भक्त है उन्ही के साथ ही रहते हैं ,कोल्हू के बैल की तरह दिन रात लगे रहते थे , पत्नी , बचो और  गृहस्थी में पूरा ध्यान देते है , कोई ऐब नहीं प्यार मोहब्बत से रहते है , 

तो फिर ? महाराज बस इनकी इतनी ही जिंदगी थी और दिल के दौरे से मौत लिखी थी सो इन्हे हम ले आये । धर्मराज जी कुछ सोच में पड़ गए और पुछा चित्रगुप्त यह करते क्या है ? इनकी पारिवारिक  फैक्ट्री के अलावा ,

यह मृत्यु लोक में एक वकील भी है जिनका काम है लोगो के मुक्कदमे हों या सरकार के खिलाफ कोई न कोई मुकदमा लड़ते रहते है उसी में इनकी जिंदगी गुजर रही है , झूठे केस लेने से दूर भागते है , गरीब लोगो के केस कम फीस या मुफ्त भी कर देते है , लोगों में इनकी  काफी इज़्ज़त है , अपने स्वस्थ जीवन के लिए बहुत प्रयत्न करते है , यह दिल का दौरा भी इन्हे एक्सरसाइज करते हुए ही हमने दिया  था ,

पर धन दौलत से कोई खास मोह नहीं रखते ,अब धर्म राज जी से सहन नहीं हुआ और कड़क कर बोले " यमराज यह कैसी विडंबना है एक तरफ आप इसके गुण ही गुण बताये जा रहे हो दुसरे इसके प्राण इतनी जल्दी निकाल लाये हो ? आखिर कहना क्या चाहते हो ?

इनकी उम्र सिर्फ 42 वर्ष , इतनी कम है और इनका परिवार अभी सम्भला नहीं है , अभी इनके बुजुर्ग माता पिता भी जीवित है , इनकी आकस्मिक मृत्यु तो इनके परिवार को सजा देना है इन्हे थोड़ा ही ? हमे इनके कर्मो की सजा इनको देनी है न की इनके परिवार को , हाँ भगवन यह तो ठीक है। तुम्हे इतनी जल्दबाज़ी नहीं करनी थी हमसे कुछ परामर्श तो कर लेते , इन्हे सजाये मौत देना तो इन्हे शीघ्र मुक्ति देना है ? फिर इनकी सजा कहाँ हुई ? मौत के बाद कौन अपनी बीती को याद कर पाता है ?

जैसा की चन्द्रगुप्त ने बताया है ,इन वकील की फाइल में सब बियोरा मौजूद है , इन  लोगो का जीवन तो खुद ही एक सजा होता है , इनका परिवार इनके सान्निध्य को तरसता  रहता है , सारी जिंदगी फाइलों और किताबों में खपा देते है , आँखों पे इनके चश्मे लगे है ,आँखों में कैटरेक्ट था सो दोनों आँखों में लेंस लगे है ,  खाने पीने का कोई वक्त नहीं होता तभी इनके स्वास्थ्य और दांतों की भी काफी बुरी दशा हो चुकी है , सर के बाल भी चिंताओं से काफी उड़ चुके है , अपने घर परिवार, जमीन जायदाद  के झगड़ो में भी काफी उलझे हुए है , इनके माता पिता सहित सब की  जिम्मेवारिआं भी इन्ही पर हैं ,

 यमराज आप शायद भूल गए हमने  आजकल इंसानो को उनके करमअनुसार सजा देने  के लिए  मृत्यु  लोक में ही इंतज़ाम कर दिए है , यहाँ स्वर्ग लोक में स्थान की बहुत कमी है इसलिए नर्कलोक पृथ्वी पर ही विस्थापित कर दिया है , जिसे तुम खूबसूरत यांत्रिक हस्पताल का नाम दे रहे हो न वह असल में हमारे नर्क लोक में फ्रैंचाइज़ी है जो इसे हमारे नियम अनुसार नर्क लोक जैसी सजा देते है , इनके शरीर को विभिन तरह के कष्ट और काट पाट सजा के ही रूप है , इनकी गलत ढंग से कमाई हुई दौलत को यहीं पर वापिस छीन लिया जाता है। 

दिल इसका  टूट फुट चूका है इस घातक दिल के दौरे की वजह से ,हम इनका यहाँ करेंगे क्या ?
  ऊपर से यह वकील भी है , यहाँ इनके आने से हमारे विधान के  लिए भी खतरा है , यह हमारे विधान में भी गलतियां निकालने लगेगा , शोर मचाएगा , यूनियन बना लेगा , P.I.L. डालेगा और लोगों को हमारे विरुद्ध करेगा , , क्या करेंगे इसे यहाँ रख के सजा देने को 

लेकिन सच्चाई यह भी तो है ,यह तो खुद ही मर मर कर जी रहा है , चारो तरफ इनके कष्ट ही कष्ट है ,चैन इसे है नहीं , पूरे परिवार की जिम्मेदारिओं का बोझ इसके कंधे पर है यह क्या कम सजा होती है ? हमारे यहाँ ऐसे लोगो के लिए कोई चिकित्सा सुविधा भी नहीं है वोह सब तो हमने नर्क लोक में स्थापित की है ?

दुसरे विशेष ,यह माता पिता के आलावा गुरु मुख भी है , अभी अभी हम देख पा रहे है इसके घर में इनके गुरु मौजूद है और उन्होंने अपनी पूरी ध्यान शक्ति अपने तप योग से एक कमरे में काफी देर से इसके प्राण रक्षा में लगा रखी है। ऐसे में हमे निर्णय करने में भी कष्ट हो रहा है।  



छोड़ दो इसे वापिस मृत्यु लोक धरती पर इसी के हाल पर , इसकी सजा मौत नहीं उम्र कैद है , जीने दो इसे अपने संघर्ष पूर्ण जीवन में , छोड़ दो इसे ------------
देकर एक लम्बी तारीख। 
 
यह फैसला सुन हम हैरान थे हमारी वकालत तो यहाँ भी चल गई ,एक तारीख यहाँ भी ले ली हमने ,शायद हमारी  फाइल में दम था या  मेरे सपोर्ट में मेरा परिवार मेरे गुरु जी का प्रेम और आशीर्वाद भी था , 

ऐसे हमारे केस की सुनवाई एक लम्बी तारिख पर खत्म हुई , हमे मिला एक और अवसर जीवित रहने का 


जैसे ही मेरी आँख खुली डॉक्टर्स ने मेरे माता पिता को icu में मुझे देखने को आने दिया और मेरे गुरु जी का मुझे यह संदेसा दिया। मुझे अपना बचपन याद आ गया जब यही गुरु जी हमे सुबह हमारे घर में आकर सुबह चार बजे उठा कर अपने साथ सैर को ले जाते थे ,उनकी गति हमे दौड़ कर पकड़नी पड़ती थी। 
आँख खुली icu के बिस्तर पर ,तो देखा लोग इधर से उधर आ जा रहे , बड़े विचित्रसफ़ेद  परिधान और चेहरे भी ढके हुए , क्या यह कोई इस्लामिक देश है , पर मैं तो हिंदुस्तानी हूँ फिर यहाँ कैसे ?मेरा पहली बार किसी हॉस्पिटल के इस तरह के वार्ड में आना हुआ था , जहां सब लोग ऊपर से नीचे तक ढके हुए थे , कभी बीमार जो नहीं पड़ते थे ,


मेरी आँखों को खुलता देख एक नकाबपोश मेरे पास आये शायद वह डॉक्टर थे , पूछने लगे अब कैसी है तबियत ? तबियत ? क्या हुआ है मुझे ? तुम्हे दिल का भयंकर दौरा पड़ा था ,बेहोशी की हालत में यहाँ लाये गए थे , पिछले 72    घंटो से तुम्हे वेंटीलेटर पर  ऑक्सीजन और इलेक्ट्रिक शॉक देकर तुम्हे जीवित करने का परियास चल रहा था ,  क्या बात कर रहे हो , तो क्या मैं मर चूका हूँ , हाँ पर अब ईश्वर की कृपा और आपके परिवार की प्रार्थना से अब फिर वापिस तुम्हारा शरीर सांस लेने लगा है और तुम खतरे से बहार आ गए हो ? लेकिन अभी 72 घंटो तक इंटेंसिव ऑब्जरवेशन चलेगी जब तक स्थिति  पूरी तरह सामान्य नहीं हो जाती। 

ऐसे कैसा मजाक कर रहे हो डॉक्टर साहिब , यह हकीकत है मजाक नहीं तुम्हारा उन किवदन्तिओं जैसा आत्मा का शरीर में पुनर प्रवेश हुआ है ,अब तुम आराम करो दिल पे ज्यादा बोझ मत डालो ,कह के डॉक्टर तो चले गए पर मेरे दिमाग पे वाकई बहुत जोर पड़ने लगा मेरे सोचने से और मैं फिर गहरी नींद कब सोगया मुझे कोई पता नहीं ,

उधर घर में हमारे गुरु जी ने अपना दरवाजा खोलते ही अपने शिष्यों से कहा के हॉस्पिटल फ़ोन मिलाइये राजिंदर का हाल पूछो , वह अब ठीक हो चुके है , हॉस्पिटल से मेरे कुशल मंगल का सन्देश मिलते ही सब के चेहरों पे ख़ुशी की लहर दौड़ गई , पर मैं आज तक अपने गुरु जी की  इस योग शक्ति को समझ नहीं पाया जिन्होंने मेरे ही घर में मेरे ही परिजनों के बीच में मेरे बारे में कैसे जान लिया । 

मेरे गुरु जी आज इस दुनिया में नहीं है लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है उन्होंने इच्छा मृत्यु प्राप्त की थी और सब को बता के की हम कल इस चोले को बदलने जा रहे है वह लगभग 102 की उम्र में स्वर्ग सिधार गए और मैं आज उन्ही के आशीर्वाद से उनके बताये पद्चिनः पर चलने की पूरी कोशिश करता हूँ 



कोरोना के भय को इतनी करीबी से झेला है ,  
सोचने लगे थे कहीं फिर  तारीख तो नहीं आ गई 
जमाने भर की खुशियों से यूँ तो अलग है हम, 
 लोगो को लगता है फिर भी गलत है हम,

वकील होना भी अपने आप में कहाँ आसान है दोस्तों..? 
अपना सब हार के दूसरों को जितवाना पड़ता है , 
बदले में ले लेते है आपकी चिंताएं और बेकार पड़ी नाजायज़ दौलत ,
बीमार भी पड  जाते है अक्सर,
 नाजायज़ दौलत से उपजी दिमागी परेशानियों से 
लेकिन जब हाथ हो सर पे महापुरषों का , साथ हो आप जैसे मित्रों का 
बीमार होकर भी ठीक हो जाती  है तबियत हमारी, 
लौट आते है वापिस आप की सेवा में 

लेकर आखिरी अदालत से भी *एक लम्बी तारीख *