Saturday, April 16, 2011

17 TH APRIL ,2011

A cute Nurse came TO A DOCTOR for the interview. 
" how much have you worked as nurse before"?
Sir it is five years now .
Dr:  Good , very much experienced ?What salary DO you expect?
Nurse: ONLY  Rs.10,000. SIR?
Dr was overjoyed & happily  said: "my Pleasure."
Nurse: no sir , you have misunderstood ,With pleasure it’s 25,000..........



 खुद को फ़ना कर,बस उनेह बसा दिया
हम बस उन्ही में खो गए,खुद को भूल कर
होश में तब आए..
जब वो ही दामन झटक कर चल दिए
अपने वजूद का एक कतरा भी..
अब हमें तलाशने से नहीं मिलता !

Rajinder K. नागपाल
पूछ लेते हैं वो हालचाल  हमारा अक्सर
जैसे कोई क्रिकेट का स्कोर पूछता है !
न उन्हें हमसे है कोई मतलब व् लगाव
न क्रिकेट का है उन्हें कोई बहुतसा ज्ञान
न जाने क्यों फिर भी वे रहते हैं,हमारे
 बारे  में सबकुछ जान लेने को परेशान !







 

Tuesday, April 12, 2011

TRANSLATE MY SENTIMENTS IN HINDI


यह  ज़माना, जालिम बड़ा  अजीब  है  ,
अकड  के  रहो  तो  तोड़  देता  है  ,
सीधे चलने वाले को भी मोड़ देता है
झुक  के  रहो तो साला छोड़ ही देता है  
इसलिए खुद मुख़्तार रहो ,सुखी रहो
यह दुनिया बड़ी ही खुदगर्ज और  जालिम है , 
पाओं में  झुकने वाले को गले लगाने लगती है ,
पर जो थोडा भी अकड़ा,उसे पल में तोड़ देती है ,
इतना भी गफलत में मत रहना मेरे दोस्त ...  
बन के तेरे अपने , पीठ में खंजर घोंप देती है !
मित्रों जिंदगी के हर पल को जियो अंतिम पल मान कर
अंतिम पल है कौन सा, क्या करिए गा अभी से जान कर ?
गाओ, खाओ, मौज मनाओ सो जाओ तान कर ,
रुका नहीं कोई यहाँ आज तक कमा के अपना नाम ,
नामी हो या नाकामी कोई जाये सुबहा, कोई जाये शाम
 तन में भरी है सांस , इसे भी समझ लीजिये खूब
मुर्दा हो यह जल में तैरता, जिंदा हो तो जाता डूब?

इस झुलसती  धूप में, जलते  हुए पाँव की  तरह ..
तू  किसी  और के  आँगन  में  है  छाओं  की  तरह ! 
तू  तो  वाकिफ  है  मेरे  जज्बों  की  सचाई  से ?.. 
फिर तूं खामोश  है क्यों ? पत्थर  के इन भगवानो की तरह! 
मैं  तो  खुशबु  की  तरह , लिपटी रही तुझ से !. 
तू क्यों  भटकता  रहा  बेचैन  हवाओं  की  तरह ! 
वो  जो  बर्बाद  हुए  थे  वोही  बदनाम भी   हुए  हैं ..
 तू  तो फिर भी मासूम  रहा , अपनी निगाहों  की तरह  ....

किसी की  याद  को  दिल  मे बसाये  बेठे  है ,
किसी को  दिल  में अपना  बनाये  बेठे  है ,
हमें याद  करने  की  फुर्सत  ही कब थी उनेह ? ,
फिर भी  क्यों  हम  उनको  जिन्दगी समझे बैठे है .