Khawaaish -----ख्वाईश --
अदब का दरवाजा इतना छोटा और तंग होता है कि
उसमे दाखिल होने से पहले सर को झुकाना पड़ता है
और दुनिया में कुछ पाने को ,
खुद को मिटाना पड़ता है
ख्वाइशें मेरी भी थी , के दुनिया को झुका दूँ
एक इशारे से किसी को बनाऊं या मिटा दूँ
पर ऐसा कहाँ मुमकिन है इस दुनिया में ?
इतिहास पे नजर घुमाई तो ,सर घूम गया
सिकंदर हो या मुसोलिनी या हो हिटलर
खाली हाथ ,सभी तो दफन हैं इसी मिटटी में
अपनी अपनी अधूरी ख्वाइशों के साथ
तो मैं क्या उनसे भी बड़ी शख्सियत हूँ जो मेरी हर बात पूरी हो ? नहीं मैं तो कुछ भी नहीं
सोचा क्यों न अपनी इन्ही ,
अजीबो गरीब ख्वाइशें को ही बदल दूँ ?
भव्य बाजार सजा था , दौड़ता व्याकुल लोगों का हजूम
तरह तरह के गहने , हीरे जड़ित सोने चांदी की चमक ,
रंग बिरंगे परिधानों में सजी संवरी सुंदरियाँ ,मानो
अप्सराएं उत्तरी हैं , चमक दमक ,जैसे हो इंद्र का दरबार
मेरी नजर एक बड़े से बोर्ड पर पड़ी " लिखा था दुनिया का सबसे बड़ा बाजार , अगर आप हताश हैं निराश हैं तो यहाँ निश्चिन्त होके आइये , सब कुछ है यहाँ ,बच्चे से लेकर बुजुर्ग, सबकी ख्वाइशों का है सामान यहाँ , आइये और पूरी कर लीजिए
बिलकुल झूट और गलत है ये विज्ञापन , ख्वाइशें कहाँ कोई पूरी कर सकता है किसी की ?
जो गर पूरी न हो तो बड़ा ख्वार करती है , यह सब एक ही जगह एक ही जनम में कभी पूरी हो ही नहीं सकती " इतना तो हम सब अब तक जान ही चुके हैं
बेवजह की ख्वाहिशें पालकर,
इन के पीछे भागते है,लोग अक्सर
दिन में तो चैन मिलता नही ,
अब रातों में भी जागा करते है.
इन के पीछे भागते है,लोग अक्सर
दिन में तो चैन मिलता नही ,
अब रातों में भी जागा करते है.
जिंदगी नाम ही था चढ़ाई का ,
मैं हर रोज सीढिआँ चढ़ता गया
जिंदगी के हर ऊँचे मुकाम को
उम्र ढलते ढलते सब पा लिया था ,
इसके आगे कुछ था ही नहीं
सिर्फ ढलान ही नजर आई
पीछे मुड़ कर देखा तो ऊंचाई से डर लगा
तो क्या मेरी सब ख्वाइशें यहीं तक थी ?
मैं भी बड़ी दुविधा में हूँ
ज़िन्दगी तो पूरी कट जायेगी ऐसी भी और वैसे भी ,
इन का क्या करूँ जो अभी तक मुझ से चिपटी हैं ,
सांस भी अधर में जा अटकती है इनकी वजह से
वही अधूरी खव्हिशें जो मेरी जान से लिपटी है
हमेशा मसला मेरी ख़ामोशी का रहा
थी तो मेरी बहुत छोटी छोटी पर दबी रही ,
पूरी न हुई तो बड़ी लगने लगीं
ख्वाहिशों इतनी की ,
थी तो मेरी बहुत छोटी छोटी पर दबी रही ,
पूरी न हुई तो बड़ी लगने लगीं
ख्वाहिशों इतनी की ,
जब जाहिर की तो सब को खलने लगी
दिल ने समझाया मुझे
दिल ने समझाया मुझे
उम्मीदें पैदा ही होती हैं , नउम्मीदी से,
तो उमीदें पालते ही क्यों हो ?
नाउम्मीदी है जिंदगी में ग़म की वजह,,,, तो जिंदगी भी तो उमीदों पे टिकी है ?
ख़्वाहिशें संजोय रखना मन में
ख़्वाहिशें संजोय रखना मन में
आज की जिंदगी का कोई गुनाह है क्या ?!
मेरे नसीब की बारिश हमेशा
कुछ इस तरह से होती रही मुझपे
पलके मेरी भीगती रही.
ख्वाहिशे -फिर भी --सूखी रही
किसी के अंदर जिंदा रहने की ख्वाहिश में …
हम कितनी बार यूँ ही घुट घुट कर मर जाते हैं ..
किसी के अंदर जिंदा रहने की ख्वाहिश में …
हम कितनी बार यूँ ही घुट घुट कर मर जाते हैं ..
छोटे थे तब हर ख्वाहिश ख़ुशी में बदल जाती थी,
बड़े हुए हैं ,तबसे हर ख्वाहिश दर्द ही देती है.
जख्म भी बहुत मिले ,पर हँसते रहे हम,
इसे पूरी करने को , हर रोज मरते रहे हम.
मेरे अपनों के चेहरे पर उदासी न आ जाएँ,
मैंने भी कुछ ख्वाहिशों को , दर किनार कर दिया
कुछ है अधूरी
कुछ अधूरे से है हम भी
वक्त बीता उम्र बीती
ना पूरी हुई कुछ ख्वाहिशें
ना ही पूरे हुए हम.
कुछ अधूरे से है हम भी
वक्त बीता उम्र बीती
ना पूरी हुई कुछ ख्वाहिशें
ना ही पूरे हुए हम.
जो अमरूद खरीदने से पहले पूछते है "
मीठे है न ?
घर लौट कर नमक मिर्च लगा कर खाते हैं
लेकिन एक सलाह मेरी भी है आपको
ख्वाहिश को ख्वाहिश ही रहने दो,
ख्वाहिश को ख्वाहिश ही रहने दो,
जरूरत बन गई तो नींद नही आएगी.
कब्र की गर्मी में ऐरकण्डीशन मांगने लगेंगी
एक अजीब रिश्ता है मेरे और ख्वाहिशों के दरमियां
वो मुझे जीने नहीं देती और में उन्हें मरने नहीं देता
फुर्सत नहीं है इंसान को घर से मंदिर तक आने की
और ख्वाहिश रखता है शमशान से सीधा स्वर्ग जाने की
- ख्वाहिशो का सील सिला तो खत्म नहीं होगा कभी,
वो मुझे जीने नहीं देती और में उन्हें मरने नहीं देता
फुर्सत नहीं है इंसान को घर से मंदिर तक आने की
और ख्वाहिश रखता है शमशान से सीधा स्वर्ग जाने की
- ख्वाहिशो का सील सिला तो खत्म नहीं होगा कभी,
हाँ इंसान आपस में युद्ध जरूर करेंगे एक दिन
अपनी इन न मुराद ख्वाहिशो के चक्कर में।
मुझे भी शामिल करलो गुनहगारों की महफ़िल में
मैं भी कातिल हु कुछ अपनी कुछ पराई हसरतों का
अपनी मुफलिसी में ,मारा है
मुझे भी शामिल करलो गुनहगारों की महफ़िल में
मैं भी कातिल हु कुछ अपनी कुछ पराई हसरतों का
अपनी मुफलिसी में ,मारा है
मैंने भी बेशुमार ख्वाहिशों को
ख्वाइशों का मरघट लगाना हो तो वकील बन जाओ,
तरह तरह के मुसीबत के मारे लोग ,
अपनी मरी ख्वाइशों को जिन्दा करने की ख्वाइश में ,
लेकरअपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई हुई बेशुमार दौलत ,
अदाएगी तुम्हारी फीस के लिए
किसी को न्याय तो तुम क्या दिला पाओगे ,
बेचारे तुम्हारी ख्वाइशों पे हो कुर्बान
किसी को न्याय तो तुम क्या दिला पाओगे ,
बेचारे तुम्हारी ख्वाइशों पे हो कुर्बान
कंगाल जरूर हो जाएंगे
रहिमन इस संसार में सबसे सुखी वकील
ख्वाइशें हैं आपकी , उनकी सिर्फ दलील
जीत गए तो नजराना ,हार गए तो
फिर से -----------एक नई अपील
अब क्या बताएं ?
तकदीर का ही खेल है सब
पर दुनिया है के समझती ही नहीं
पर दुनिया है के समझती ही नहीं
पहले उम्र नही थी, के ख्वाइश पूरी कर पाते
और अब ख्वाइशें पालने की उम्र नहीं रही
अब वैसे तो नहीं बची ,कोई भी , लेकिन जब
आखिरी ख्वाहिश क्या है ,खुदा पूछता है तो ?
फिर से जुबा पर ,एक नई खवाइश आ ही आती है ।
लेकिन मुझ में ,वही पुरानी एक सोच अभी जिन्दा है
फिर वही जिद बचपन की ,कुछ पुरानी नेमते पाने की ,
बचपन में लौट जाने की , अपने माँ बाप से लिपट जाने की
कर सकते हो मेरी इस खवाइश को गर पूरा ऐ खुदा ? तो
कुछ ऐसा कर दो मेरे दिमाग में के मैं सब कुछ भूल जाऊँ जो मैंने खुद कमाया है ,
लौट जाऊं अपने बचपन में
बन कर वही रोने वाला बच्चा माँ से लिपट कर उसके आगोश में सो जाऊं
–
–
जहाँ मैं रहूँ सिर्फ, मेरा जीना मरना भी हो वहां
उन्ही ,खुद की दबी हुई ख्वाइशों के साथ ,
जो आज तक अधूरी हैं
रस्सी जैसी जिंदगी है ,तने तने हालात
एक सिरे पर ख्वाहिश है दूसरे पर औकात
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि, हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले
– ग़ालिब
मेरी ख़्वाहिश के मुताबिक तिरी दुनिया कम है
और कुछ यूँ है ख़ुदा हद से ज़ियादा कम है
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