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Wednesday, March 15, 2023

SPIRITUALITY --- & --- POSITIVITY-------- Defined Through inner revealations . March 18 ,2021 .

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "





What is spirituality - and Positivity? 

Can it be acquired?

what are the sources of spirituality? and positivity in our life?

A healthy Body only can sustain Healthy Mind. And a Healthy Neuromotor system essential for proper communication between different organs in our body with the mind 

what is the purpose of developing positivity and spirituality in our day to day life?

Good Health and Eating Habits are necessary ingredients 

Digestive System --- Metabolism and catabolism - Enzymes - Hormones 

An adequate supply of oxygen in the vascular system. 

Oxygen starved Minds Leave aside Positivity or spirituality, can never even function properly 


1 spirituality is the voice of soul the SPIRIT it can be good (virtuous) or bad ( evil )varying from person to person depending on various factors where he lived, company,  grew and learnings.

2 spirituality is the expression of noble thought,the product of soul and mind, Most of the times it is embedded and inherent in our memories from the time immemorial in our genetic configuration transferred from our ancestors, which always remain dormant till a favorable time happens in the life of subject ,which only comes into play when a congenial environment is available to the subject 


3 Empty stomachs cant be spiritual, a hungry person is always worried about his fire in the stomach which is essential for him to survive, with mere spirituality or positive thoughts no one can be expected to become a good positive thinker or a spiritual person if his intestine is crying for energy and food, we can not compare saints who go 


आज का युग हो या वैदिक युग सब में जीवन परिस्थितिओं के हिसाब से आशावादी या निराशावादी रूप में  बदल जाता है , इंसान तब तक आशावादी रहता है जब तक उसके हर कदम पे सफलता मिलती रहे , एक दो असफलताओं से उसका आशावादी दृष्टिकोण घबराने लगता है , उसके अंदर का डर उसे हर चीज़ को असफलता की आशंकाओं से डगमगा देता है। इंसान सब एक ही हैं , उनका चरित्र आशा और निराशा के सागर में लगातार गोते लगाता रहता है , कौन उसे कैसे पार करता है वही हमारी सोच निर्धारित करती है। 

हम सब मैथ में प्लस (+) और (-) के चिनोह्न से पढ  कर ही  आज जिंदगी में हर तरह के  नफे नुक्सान का हिसाब लगाते रहते है , दो नेगेटिव लाइन्स जब एक दुसरे को 90 * पर काटती है तो उसकी परिभाषा नेगेटिव से पॉजिटिव में बदल जाती है , इसका बड़ा गहरा अर्थ हमारे जीवन में भी है , बहुत ज्यादा नेगेटिविटी हमारी सोच और विचार धारा  को  भी जब अंतर्विरोध में एक दुसरे को काटने लगती हैतो वह अंतत एक सुसंगत में सार्थकता यानी की आशावादी सोच में परिवर्तित होने लगती है। 

सब कुछ अच्छा  आशावादी सोचना ही सिर्फ पाजिटिविटी नहीं हो सकता न ही कोई इसे आसानी से अपना सकता है  ,इसके लिए हमे मानसिक और शारीरिक रूप से खुद को इसके लिए गहन अध्यन और एक अच्छे संगत में ही सीखा जा सकता है , 

पाजिटिविटी का शरीर के पूरे तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और शरीर नैसर्गिक रूप में दमकने लगता है , नेगेटिविटी में ठीक इसके विपरीत असर शरीर के हर अंग पर विषेकर हमारे मष्तिष्क , दिल और गुर्दो ,लिवर पर पड़ना शुरू हो जाता है जिससे शरीर को विभिन तकलीफों में डाल कर जीवन नार्किक बन जाता है ,

अगर हम अपने मष्तिस्क को आधात्म से जोड़ते हुए इसे वश में कर पाएं और हमेशा आशावादी सोच को सींचते रहे , हर प्रकार के विषैले और नेगेटिव वातावरण में रहते हुए भी इसे भटकने न दे तो समझ लीजिये हम अपने जीवन को हमेशा सुखी ही पाएंगे और परेशां दुनिया आपके पीछे भागती है आपके नजरिये आपकी सोच को अपनाने के लिए।