Sunday, March 31, 2019

ADABI SANGAM MEET----KHIDKI ----खिड़की----WINDOW TO THE WORLD ----MARCH 30TH ,2020- AT CONNECTICUT ," (KHIDKI) " 34


"khidki "बात बन जाती है "कोशिश तो करो "






"khidki "बात बन जाती है "कोशिश तो करो "

खिड़की खुली हो या हो बंद दीदार उनका होता है ,
कैसे कहूं--------- मैं यारो , यह प्यार कैसे होता है ?

मेरे सामने वाली खिड़की में एक चाँद का टुकड़ा रहता है
अफ़सोस मगर, वो हम से, कुछ उखड़ा उखड़ा, रहता है , 

यही गीत हम अपनी जवानी के दिनों में सुना करते थे क्योंकि खिड़की ही एक जरिया थी जान पहचान बनाने का रोमांस आगे बढ़ाने का। खिड़की से प्रेम पत्र कंकर में लपेट कर फेंके जाते थे 

यूँ तो हर घर मकान और दूकान में खिड़की होती हैं जिनका इस्तेमाल और स्वरुप वक्त बे वक्त जरूरत अनुसार बदलता रहता है , लेकिन शायरों की माने तो खिड़की का दीदार ही असली रोमांस  का आगाज होता है।कब किसकी खिड़की में नज़र पड  गई और नजरें चार हो गई और हमेशा के लिए वह खिड़की आपका ससुराल बन गई 


खिड़की का रोमांस से बड़ा गहरा नाता रहा है ,, हर शायर और गीत कार ने खिड़की की महिमा समझ कर बहुत गीत लिखें हैं , क्योंकि सड़को गलिओं में आज कल माशूक माशूकाएं नहीं टकराती ,इलेक्ट्रॉनिक और इंटरनेट की दुनिया में  न ही किताबों का लेन देन होता है , लोग पैदल ही नहीं चलते तो टकराएंगे किस से ?

मोटर कारों की खिड़कियाँ हैं जिस पे अक्सर काली फिल्म लगी होती है उसमें भी लोग तांक झाँक में लगे रहते है लेकिन इन खिड़कियों का लैला मजनुओं को कोई फायदा नहीं होता पिटाई होने का चांस  काफी होता  हैं। हमारे जीवन में खिड़की का महत्व हम सभी जानते हैं , जिस मकान में खिड़की न हो उसमे कोई रहना नहीं चाहता , बंद कमरा बिना खिड़की के तो जेल समान ही होगा न कोई दिखेगा न ताज़ी हवा का झोंका न कोई सूरज की किरण।  जिंदगी का एक पहलू ऐसा भी है जो सिर्फ खिड़की से ही नजर आता है। वो है चढ़ता/ ढलता  सूरज और चमकते चाँद सितारे।

जब मकान छोटे हुआ करते थे तो खिड़की भी एक झरोखे समान होती थी , आज जब बड़े बड़े विलाज बनाये जा रहे है तो खिड़की का साइज भी बाहर के नज़ारों का एहसास बखूबी दिलाता है। हमें याद है हमारे बच्चे , जवान और उम्रदार बुजुर्ग अक्सर घर की  खिड़की जो सड़क पर चलते लोगों को देख पाएं  के पास बैठ कर अपना एकाकी पन दूर किया करते थे , अगर सफर में जाना हो , हवाई जहाज , रेलगाड़ी , बस या कार ,तो हम सभी को खिड़की के पास बैठना ही पसंद है। क्यूंकि खिड़की से ही हमें लगता है हम अकेले नहीं है और हम दुनिया को देख पा रहे है और दुनिया हमें ?


एक दौर हमने वह भी देखा है जब अक्सर खिड़कियों पे नजर गड़ाए जवान लड़के गली मोहल्लों से गुजरते थे और आस लगाए रहते थे की शायद कोई चाँद सा मुखड़ा खिड़की से नजर आ जाए ,चाहे उनका साइकिल ऊपर देख के चलने की वजह से खड्डे में गिर जाएँ, या सामने से आती किसी गाडी से टकरा कर , टांग वांग टूट जाए , लेकि बड़ा ही रोमांच रहता था ताड़ने में , कभी खिड़कियों के पर्दो की ओट से किसी लड़की ने गर किसी जवान लड़के से आँख चार हो गई तो उस साइकिल स्कूटर सवार का बॅलन्स बिगड़ते ही गिर जाना और फिर खिड़की से खनखनाती हंसी की आवाज मानो गिरने का मजा ही दुगना कर देती थी , लगता था कोई हसीना हमें भी देख रही थी ,पूरी कायनात जैसे ठहर जाती थी उस आवाज का दीदार पाने के लिए ,


रोमांच के साथ खतरे भी बहुत थे जनाब  इस खिड़की दर्शन में , कभी कभी कोई कूड़े का पैकेट भी हमारे सर पे आ गिरता था और कभी गन्दा पानी , होली में भी बहुत कुछ हम पे गिरता था खिड़की की ओट से। और कितने ही जवान पिटे, हाथ पाऊँ तुड़वाये इन  खिड़कियों से तांक  झाँक करने की कोशिश में ,लेकिन कितने ही प्रेमी इन खिड़कियों से रस्सी से या साडिओं को बाँध रस्सा बना घर से भागभी  गए , अब इन खिड़कियों को और भी मजबूत बनाया जाने लगा , घर में जवान लड़की का होना ही काफी था खिड़की की उपयोगिता को दर किनार करने के लिए , ताकि न कोई मजनू खिड़की से फांद कर अपनी लैला को भगा सके न कोई चोर अंदर आ सके ,


वक्त के साथ साथ खिड़की अपनी उपयोगिता भी खोने लगी ,परिवार सिकुड़ते गए खिड़कियाँ भी कम खुलने लगी , कितने ही मजनू मायूस हो गए जब खिड़की से चाँद से चेहरे  गायब ही हो गए , लकड़ी के पल्लों की बजाये खिड़की में न खुलने वाले साउंड प्रूफ शीशे लगने लगे , उनपर भी ऐसे सिल्वर कोटिंग की अंदर का कुछ दिखाई भी न दे। लोग दलील देतें रहे भाई अब वो नज़ारे भी कहाँ जो खिड़की पे बैठा जाए , वो ताज़ी हवा भी अब तो नहीं आती इस धुंए और प्रदूषण में , तो एयर कंडीशन  लगे और खिड़की का इस्तेमाल भी ख़त्म सा  हो गया  , खिड़कियों का काम सीसीसी टीवी ने ले लिया अब हर कमरे में बाहर की हलचल भी इन्ही कैमरों से गुजर कर अपने टीवी पर दिखने लगी , असली दुनिया से हम कटने  लगे। 

गलत फ़हमियों का आलम तो देखो प्रदुषण की वजह से सुप्रीम कोर्ट नै पटाखों पर रोक लगा दी , वो पूछ रही है तो क्या मैं अब घर से बाहर भी नहीं निकल पाऊँगी , इस पर कोर्ट ने सफाई दी रोक पटाको पर है फुलझाडिओं पे नहीं 


अब इस खिड़की का साइज घटते घटते इतना छोटा हो गया है की हम इसे अपनी जेब में लेकर चलते हैं , ६ इंच की स्मार्ट फ़ोन की स्क्रीन हमें दुनिया की हर वो चीज़ दिखाती है जो हम देखना चाहते हैं , अब इस चलती फिरती मोबाइल खिड़की से प्रेमी आपस में खूब विडिओ में बातें करते है कोई देख भी नहीं सकता, किसी का डर भी नहीं। अब आप इसी मोबाइल खिड़की से जिस घर में भी आपकी पहुँच हो आप उसे दुनिया के किसी भी कोने से देख सकते है। अब जब खिड़किया ही न रही तो वो किस्से भी न रहे। अब कोई खिड़की से आपको आवाज नहीं लगाता वो सरप्राइज दोस्तों का खिड़की पे आकर आपका नाम लेना अब ख़त्म हो गया है अब तो सिर्फ मोबाइल ही आपकी पहचान है। वो असली दुनिया अब यंत्रों में गुम सी हो गई है असली नकली की पहचान वो प्यार के पल खिड़कियों से आज़ाद हो कर मोबाइल में कैद हो गए है। जिनमे हम आज कल अपनी नजरें गड़ाए अपनी पुरानी खोई हुई दुनिया ढूँढ़ते रहते है, लेकिन कुछ नहीं मिलता जनाब आँखें थक जाती है डॉक्टर कहते हैं इन मोबाइल चमक दार स्क्रीन से दूर रहो यह न केवल आँखों के लिए बल्कि सेहत के लिए भी घातक है , अब आप ही बताईये जनाब हमारा सब कुछ तो छीन लिया इस टेक्नोलॉजी ने हमारा पूरा जीवन ही बदल कर रख दिया और अब कहते हैं यह सब आप के लिए नुक्सान दायक हैं ,

हमारी जिंदगी की सभी खिड़कियों को बंद करके अब अकेला छोड़ दिया है और पूछते हैं सेहत कैसी है , ब्लड प्रेशर की दवाई खाई के नहीं , हार्ट बीट भी कुछ ठीक नहीं आपका टेस्ट होगा ,

अब तो हर बात को अपने मन की खिड़की से ही देखना समझना पड़ता है , जिंदगी में जिसकी दिलों दिमाग की खिड़की खुली हो वही कामयाब हो सकता है 

मेरी दुश्मन है यह मेरी उलझन है यह , 
बड़ा तड़पाती है , दिल को तरसाती है 
यह खिड़की --- खिड़की  खिड़की यह खिड़की जो बंद रहती है ,
 मेरी दुश्मन है यह , मेरी उलझन है यह


१ चाणक्य ने कहा है जहाँ आपकी इज़्ज़त न हो वहां कभी मत जाओ : संता जी बोले लौ हुन बंदा अपने घर वि न जावे ?

2 . एक हरयाणवी भाई ने अपने दोस्त ते बूझ्या , रमलू यार बियाह  पे जाणा से बताइयो कुन सा कोट पहर के जाऊँ एके सारे मन्ने ऐ देखे , 
अरे भाई कमलू मेरे ख्याल में तूँ पेटी कोट पहर की चाल्या जा , पक्की बात से सारे तन्ने ऐ देखेंगे 

3 पति : अर्ज करून सु  हूँ ध्यान ते सुनिओ 
    जग घूमिया थारे जीसा न कोई , जग घूमिया थारी जैसा न कोई ,
  
   बेफिजूल बातें न करो घर की सफाई में हाथ बंटाओ वरना दिमाग  घूमियो तो  म्हारो  जैसो न कोई



एक बात चाणक्य ने चंदरगुप्त मौर्या को बचपन में ही अच्छी तरह समझा दी थी की वक्त कैसा भी हो एक बात हमेशा याद रखना , दुनिया से कुछ मिले न मिले दो चीज़े हक़ से मांग लेनी चाहिए , एक समोसे के साथ एक्स्ट्रा  चटनी और दूसरा गोलगप्पे के बाद जी भर के पानी वो भी मीठी चटनी के साथ।  आत्मा तृप्त होगी तभी तो दुनिया को जीत  पाओगे ?