Monday, April 29, 2024

Adabi Sangam ---Meeting -525-- Topic दिल दौलत और दुनिया

 Adabi Sangam ---Meeting -525--  Topic       

दिल दौलत और दुनिया 


AS meeting # 525
Host: Chopras
Date/Time: Sept 30, 5 PM to 10 PM
Venue: Dilbar 248-08 Union Turnpike Bellerose NY 11426
Story: Sangeeta ji
Part 1: Rajinder ji
Part 2: Rajni ji
Topic: Dil Daulat Duniya
दिल दौलत दुनिया


दिल दौलत और दुनिया ------

करनी थी दुनिया मुट्ठी में , दिल ने कहा फिर उठ
रेस लगा , सबको पीछे छोड़ सिर्फ दौलत कमा

रिश्तों का क्या ? दौलत होगी तो यह भी होंगे
दुनिया तब भी हंसती थी जब मैं कंगाल था

दुनिया फिर से हंसी जब मैं मालामाल था
क्योंकि अब पैसों से नहीं रिश्तों में कंगाल था

इस दिल अते दौलत दी जंग विच दुनिया तमाशा वेखे
इक कवेः मेरे बिन तु इक पल वी जिन्दा नहीं
दूजा कवेः न होवां जे मैं तेरे कोल , 
तू दुनिया विच केडे लेखे ?

दिल ने किहा मैं तां तेरी जान हाँ , मेरी कदर कीता कर
अपने दौलत दे नशे विच मेरी जिंदगी मुहाल न कीता कर 

 ,तेरे ( दौलत )करके इंसान वि शैतान बन जाउँदा है
खाण पीन दी बदपरहेजी कर के, मैनु दुःख देंदा हैं 
न टाइम खान दा  न टाइम नाल  सौंन दा 
बीमार हो के मंजी ते पै जाउँदा है,
मेरा कसूर की ? जो हर थां मेनू वि घसीट ले जाउँदा  हैं 

तां की होया , तनु घुमाऊँदा हाँ ,नवीं नवीं थावां विखांदा हां 
बीमार पैन मगरों ,इलाज वि ते मैं ही कराउँदा हाँ

इना गरूर कादा है वे तेनू , तेरी औकात ही की है ? 
मैं तां तेरी कंगाली विच बाहला खुश सीगा , न कोई रोग न कोई पछतावा 

मैं दिल हाँ ,सिर्फ बेवफाई च बर्बाद हो जांदा हाँ ऐब च नहीं 
पर दौलत ,तेरी तां फितरत ही बेवफाई है

आज ईदे कोल ते कल उदे कोल
तेरा की दीन ते, की तेरा ईमान

जिदे कोल नहीं तूं ,ओ वि परेशांन
हैं जिदे कोल तूँ , संदूक भर भर के ,
है रेह्न्दा ओ वी परेशान

गरूर था दौलत को भी अपनी ताकत पर  ,  ,अरे छोटे भाई रुको जरा ,बहुत हो गया ,तेरा भाषण , वह भी बीच में कूद पड़ा 
अब तुझे मैं हिंदी में समझाता हूँ, यह जो इंसान है न उसका 
  दिल  ,बिना दौलत , खुश कभी रहता नहीं
उसी ख़ुशी के लिए ,इन्सान कभी इंसान बन पाता नहीं ,
इसमें मैंने क्या किया ? 

हवस क्यों थी मुझे पाने की ?
मैं तो एक साधन हु सुख का , कोई इससे दुःख खरीदे तो ? 
मुझ पे दोष क्यों ?

 -दुनिया का दस्तूर है, यहाँ दौलत और शौहरत का जोर है ज्ञान का नहीं
अगर पास दौलत नहीं , कोई इज़्ज़त भी करे , जरूरी नहीं

, कन्नी काटने लगते है लोग ,मुफलिसी में ,
दुनिया दिल की नहीं दौलत की ग्राहक है

उस  ज्ञानी के ज्ञान का क्या मायने , मुफ्त के स्कूल मुफ्त की शिक्षा 
जिसे मुफ्त में भी कोई लेता नहीं ?

मेरा वजूद मेरी पहचान खुद लोग हैं ,
मेरी खातिर लोग खून कर देते है इक दूजे का
कभी शरीर का और कभी आत्मा का।
यह सब उनके संस्कार है , मेरा क्या दोष ?

हे दिल तेरा क्या तू तो किसी पे भी आ के टूट जाता है, बात बात पे रोने लगता है 
कभी प्यार में ,कभी व्यपार में ,और कभी रक्त चाप के वार में

बदले में क्या मिलता है तुझे ? हस्पताल में तमाम जिंदगी ,सिसकियाँ ही तो पाता है
और मैं दौलत हूँ ,तेरा साथ वहां भी देती हूँ ,

हाँ लेकिन मैं सिर्फ वहां होती हूँ जहाँ ,औकात होती है
बड़े बड़े लोगो को अपने आगे झुका लेती हूँ 

घमंड न कर अपनी औकात पे ऐ दौलत , तेरा तो एक ही काम है
लोगों को लड़वाना और एक दुसरे से दूर कर देना

हमारी "ज़िन्दगी में अगर
"बुरा"वक़्त आता नहीं""तो..? 🤞 किसी के दिल में क्या है
दौलत की अहमियत , दुनिया की असलियत
भला कैसे जान पाता कोई?

बस इक यही बात तेरी खासम खास है, जहाँ तू है वहीँ बवाल है 
तेरे लिए बाबा धर्म छोड़ दे , सन्यासी करम छोड़ दे , औलाद माँ बाप को 
और पत्नी पति को , मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों में संग्राम करा दे ? बस या कुछ और भी सचाई बताऊँ ?


इस दौलत और शोहरत की जंग की खासियत तो देखो
शराब से ज्यादा इसमें सरूर , दिमाग में इसका फितूर
किसी का नही बनता है दौलतमंद , खुद भी नहीं रहता है सेहतमंद 


"अपनों के दिलों "में छुपे हुए"गैर",
और...👌
"गैरों"में छुपे हुए"अपने",उसे
"कभी"भी"नज़र"नहीं"आते"
अगर दौलत का यह चश्मा न होता ,
उसका दिल यूँ पत्थर न होता

क्या दिन थे वह भी , जब जेबें खाली , दिल में तमाम हसरते
रिश्तेदार भी आ टपकते थे प्यार में , बिन बताये बारिश की तरह

बहुत जुड़ाव हुआ करता था दिलों में
कितनी बेसब्री हुआ करती थी मिलने की

दौलत क्या आई ,दुनिया के ,सारे कायदे कानून बदल गए ,
चाहत भी गई , वो घरों में रिश्तों की चहल पहल भी गई

मकान तो है आलिशान ,लेकिन  दिल बना है शमशान ,
अमीर है मालिक घर का , लेकिन एकांत से है परेशांन ,

हमारा दिल तो आज भी वहिः है , बेशक
मगर दुनिया की , रईसी के मायने बदल गए

कोई मिलना भी चाहे तो , अब मिलने का वो वक्त नहीं ?
घडी का एक एक पल लाखों में बिकता है रईसों की दुनिया में

मिलने का वक्त देते है बड़ी कंजूसी से , खुद के एक पल का पता नहीं
घर के बाशिंदे भी उन्हें अब तो मुसाफिर से लगने लगे है ,

जो दिन चढ़ते ही निकल जाएंगे
यहाँ उनका दिल नहीं , सिर्फ ख्याल  बसते हैं

न मालूम कब किसी का फ़ोन आये और बिन बताये उठ कर चल दे ,
फ़ोन दोस्त का हो या दुश्मन का या क्या पता यमराज की अर्जेंट कॉल हो ?

हाथ में है मोबाइल , उसी में है उनकी दुनिया और दौलत का लेखा झोका
पर उनकी दुनिया ही अलग है , रिश्तेदार भी अलग ,
माँ बाप का भी दुःख बाँट सके इतना भी वक्त नहीं

गए थे दोस्त से मिलने के दिल से दिल की बात होगी
मगर दोस्त वहां भी अपनी दौलत की चमक दिखाने लगे

यह देख मेरी नई कोठी नई कार ,
पर भाभी और बेटी नहीं दिखाई दे रही ?

अब नहीं मुझे पुराणी चीज़ें से प्यार
धक्का लगा सुन के दोस्त के मुहं से  दौलत की जुबान

बनी नहीं सो छोड़ दिया ? पर वह तो तेरी गरीबी की एकलौती साथी थी ? 
यार छोड़ ये सब पुरानी कहानी , आ तुझे  एक नई स्कॉच टेस्ट करवाता हूँ 

झूठ बोल  मेरा आज उपवास है , 
भारी मन से दौलत के नशे में चूर उस दोस्त से दूर भाग गया 


कभी ज्ञानी लोग नेक सलाह दिया करते थे
गर दौलतमंद रिस्तेदार और मित्र"सुखी"हो तो,🤞
बिना"निमंत्रण"के उनके"पास"कभी न"जाए"..!
आज महसूस हुआ वह ठीक कहते थे

🌞मैं सोचने लगा , कैसे गिरगिट है दुनिया में, उसी पत्नी को छोड़ दिया जिसने उसकी कंगाली में खुद नौकरी की और घर संभाला ?

समय पुराना था...उसकी जेब में न पैसे होते थे , ना भर पेट रोटी ?
तन ढँकने को काफ़ी कपड़े भी न थे,

मुहं फेर के निकल लेते थे सब , फ़ोन भी कभी उठाते न थे लेंन दारों के
आज इनका अहंकार तो देखो, दौलत शोहरत के आते ही परिवार ही तोड़ लिया ?


🩸 समय पुराना था, दौलत का अकाल था
आवागमन के साधन कम थे।
फिर भी लोग परिजनों से जैसे भी हो जाकर
मिला करते थे ...!दूरियां नहीं बनने देते थे

आज आवागमन के
साधनों की भरमार है।खड़ी घरों में कारें चार चार है
फिर भी लोग न मिलने के
बहाने बनाते हैं ।आज गाड़ी ख़राब है , गाड़ी पति ले गये है , ट्रैफिक में फँसा हूँ , बारिश का पानी भरा है , गोया मजबूर हूँ ---------- क्योंकि
हमारा समाज सभ्य और अहसान फरामोश जो हो गया हैं ।

🩸 समय थोड़ा और पुराना था
घर की बेटी,
पूरे गाँव की बेटी होती थी।
आज की बेटी पड़ोसी से ही
असुरक्षित हैं ...! क्योंकि
समाज सभ्य और दौलतमंद जो हो गया हैं !

🩸 समय इससे भी थोड़ा और पुराना था,
लोग नगर-मोहल्ले के बुजुर्गों के घर घर जाकर
उनका हालचाल पूछते थे ...!
आज घर में बुजुर्ग माँ-बाप तक को उनकी दौलत छीनकर घर से निकाल
वृद्धाश्रम में डाल देते हैं ।
क्योंकि समाज सभ्य और दौलतपसंद  जो हो गया हैं ।

🩸 समय और भी पुराना था,
खिलौनों की कमी थी ।
फिर भी मोहल्ले भर के बच्चों
के साथ खेला करते थे ...!खूब ख़ुशी मिलती थी
आज खिलौनों की भरमार है,
पर बच्चे मोबाइल की जकड़
में बंद हैं ...!! खिलोने भी लाचार और उदास कूड़े में पड़े हैं
क्योंकि समाज सभ्य और दौलतमंद जो हो गया हैं ।


🩸 समय थोड़ा और पुराना था,
गली-मोहल्ले के पशुओं , दर पे आये भिखारी
तक को रोटी दी जाती थी ...!अन्न जाया करना ईश्वर का अपमान था
आज पड़ोसी के बच्चे भी
भूखे सो जाते हैं ...!!और खाना गार्बेज में
क्योंकि समाज सभ्य और दौलतमंद जो हो गया हैं ।


🩸 मेरा समय भी पुराना था,
पड़ोसी के घर मे बिन बुलाय चले जाते थे
रिश्तेदार का भी पूरा ,परिचय पूछ लेते थे ...!
आज तो पड़ोसी का नाम
तक नहीं जानते ...!!
क्योंकि समाज सभ्य और दौलतमंद जो हो गया हैं ।


शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचने का ख़्वाब हर कोई देखता है लेकिन वो एक ऐसी जगह है जहां पहुंचने के बाद बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अपने आप को संतुलित रख पाते हैं। 

दौलत शोहरत आनी जानी फिर इस पर इतराना क्या
पानी पर ये नाम लिखा है ,किसी पल में डूब जाना है
!

बड़ा पेचीदा काम दे दिया,
किस्मत ने मुझे !
बोलती है...तुम अमीर हो 
तुम तो सबके बन चुके हाे,
अब ढूंढो उनको जो...तुम्हारे है..!!

मैंने कहा , तूने बिलकुल सही कहा
-बीतता वक़्त है, लेकिन !*
ख़र्च, हम हो जाते हैं..!!
कैसे "नादान"है हम
दुःख आता है तो,"अटक" जाते है, औऱ सुख आता है तो, "भटक" जाते हैं।


बहुत"फर्क"होता है,🤞
"मजे"और"आनंद"मे..!
"मजे"के लिए"पैंसो"की"जरुरत" होती है..!
और..👌
"आनंद"के लिए सिर्फ"दिल ,परिवार"और"मित्र".


नई नई आँखें ( दौलत )हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है
कुछ दिन दुनिया घूमे लेकिन अब घर अच्छा लगता है

दौलत आई तो पाँव जमीन से उखड गए ,
हवा में, अकड़ में गुजरी जिंदगी

हम ने भी सो कर देखा है हर नए पुराने शहरों में
जैसा भी है अपने घर का गरीब सा बिस्तर अब अच्छा लगता है


एक दिन ऐसे ही खली हाथ निकल लेंगे , सबसे ज्यादा रोयेगा मेरी नाक पे टिका 
सिर्फ मेरा चश्मा , बहुत साथ निभाया है इसने मेरा

खो जाएगा उसका चेहरा भी , जिसकी पहचान ही हमसे थी
अपनी कमानियों से ब्रह्माण्ड को जैसे-तैसे थामे, हमें दुनिया दिखाया करता था
वह भी चिपटा रहेगा हमसे , हमारी चिता के जलने  तक 
मगर बेचारा जो देखेगा वो बताएगा किसे ?

दिल दौलत और दुनिया से ऊपर हमारा मन है जिसे आत्मा भी कहते हैं
मन एक ऐसा शब्द है जिसके आगे ‘न’ लगने पर यह नमन हो जाता है

और पीछे ‘न’ लगने पर यह मनन हो जाता है!!
इसलिए जीवन में नमन और मनन करते रहिए!!

दिल टूट जाएगा , दौलत लुट जाएगी  , दुनिया का साथ छूट जाएगा
बचेगा तेरा "सिर्फ कर्म" जो तेरे और तेरे परिवार के काम आएगा
बाकी लिख के रख ले , सब व्यर्थ जाएगा



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.     मैं आपका चेहरा याद रखना चाहता हूं

जब एक इंटरव्यू में नाइजीरियन अरबपति फेमी ओटेडोला से पूछा गया कि:
"सर आपको क्या याद है कि आपको जीवन में सबसे अधिक खुशी कब मिली"?

 फेमी ने कहा:
 "मैं जीवन में खुशी के चार चरणों से गुजरा हूं, और

 आखिरकार मुझे सच्चे सुख का अर्थ समझ में आया।"

 ~ पहला चरण धन और साधन संचय करना था। 
 लेकिन इस स्तर पर मुझे वह सुख नहीं मिला जो मैं चाहता था।

~ फिर क़ीमती सामान और वस्तुओं को इकट्ठा करने का दूसरा चरण आया।

 लेकिन मैंने महसूस किया कि इस चीज का असर भी अस्थायी होता है और कीमती चीजों की चमक ज्यादा देर तक नहीं रहती।

~ फिर आया बड़ा प्रोजेक्ट मिलने का तीसरा चरण।  वह तब था जब नाइजीरिया और अफ्रीका में डीजल की आपूर्ति का 95% मेरे पास था।

  मैं अफ्रीका और एशिया में सबसे बड़ा पोत मालिक भी था।  लेकिन यहां भी मुझे वो खुशी नहीं मिली जिसकी मैंने कल्पना की थी.

~ चौथा चरण वह समय था जब मेरे एक मित्र ने मुझे कुछ विकलांग बच्चों के लिए व्हीलचेयर खरीदने के लिए कहा।

 लगभग 200 बच्चे।

 दोस्त के कहने पर मैंने तुरंत 200 व्हीलचेयर खरीद ली।
 लेकिन दोस्त ने जिद की कि मैं उसके साथ जाऊं और बच्चों को अपने हाथों ही व्हीलचेयर सौंप दूं।
मैं तैयार होकर उसके साथ चल दिया।

 वहाँ मैंने इन बच्चों को अपने हाथों से ये व्हील चेयर दी।  मैंने इन बच्चों के चेहरों पर खुशी की अजीब सी चमक देखी।

 मैंने उन सभी को व्हीलचेयर पर बैठे, घूमते और मस्ती करते देखा।

 यह ऐसा था जैसे वे किसी पिकनिक स्पॉट पर पहुंच गए हों, जहां वे जैकपॉट जीतकर आपस में शेयर कर रहे हों।

मुझे अपने अंदर तक असली खुशी महसूस हुई। जब मैं वापिस जाने लगा, तो उनमें से एक विकलांग बच्चे ने मेरी टांग पकड़ ली।

मैंने धीरे से अपने पैरों को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन बच्चे ने मेरे चेहरे को देखा और मेरे पैरों को और कस कर पकड़ लिया।

 मैं झुक गया और बच्चे से पूछा: क्या तुम्हें कुछ और चाहिए?

 इस बच्चे ने मुझे जो जवाब दिया, उसने मुझे न केवल अन्दर तक झकझोर दिया बल्कि जीवन के प्रति मेरे दृष्टिकोण को भी पूरी तरह से बदल दिया।
खुशी वस्तुओं में नहीं, बल्कि भावनाओ में है ।

उस बच्चे ने कहा:
"सर मैं आपका चेहरा हमेशा याद रखना चाहता हूं ताकि जब मैं आपसे स्वर्ग में मिलूं, तो मैं आपको पहचान सकूं और एक बार फिर से आपका धन्यवाद कर सकूं।"

उपरोक्त शानदार कहानी का मर्म यही है कि हम सभी को अपने अंतर्मन में झांकना चाहिए और यह मनन अवश्य करना चाहिए कि, इस जीवन और संसार और सारी सांसारिक गतिविधियों को छोड़ने के बाद आपको किस बात लिए याद किया जाएगा? 

क्या कोई आपका चेहरा भी फिर से देखना चाहेगा?



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कैसी ज़िन्दगी जिए
अपने ही में गुत्थी रहे
कभी बन्द हुए कभी खुले
कभी तमतमाए और दहाड़ने लगे
कभी म्याउँ बोले
कभी हँसे, दुत्कारी हुई ख़ुशामदी हँसी
अक्सर रहे ख़ामोश ही
अपने बैठने के लिए जगह तलाशते घबराए हुए

अकेले
एक ठसाठस भरे दृश्यागार में
देखने गए थे
पर सोचते ही रहे कि दिखे भी
कैसी निकम्मीं ज़िन्दगी जिए।

हवा तो खैर भरी ही है कुलीन केशों की गन्ध से
इस ऊष्म वसन्त में
मगर कहाँ जागता है एक भी शुभ विचार
खरखराते पत्तों में कोंपलों की ओट में
पूछते हैं पिछले दंगों में क़त्ल कर डाले गए लोग
अब तक जारी इस पशुता का अर्थ
कुछ भी नहीं किया गया
थोड़ा बहुत लज्जित होने के सिवा

प्यार एक खोई हुई ज़रूरी चिट्ठी
जिसे ढूँढ़ते हुए उधेड़ दिया पूरा घर
फुरसत के दुर्लभ दिन में
विस्मृति क्षुब्धता का जघन्यतम हथियार
मूठ तक हृदय में धँसा हुआ
पछतावा!




उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ

ढलती न थी किसी भी जतन से शब-ए-फ़िराक़
ऐ मर्ग-ए-ना-गहाँ तिरा आना बहुत हुआ

हम ख़ुल्द से निकल तो गए हैं पर ऐ ख़ुदा
इतने से वाक़िए का फ़साना बहुत हुआ

अब हम हैं और सारे ज़माने की दुश्मनी
उस से ज़रा सा रब्त बढ़ाना बहुत हुआ

अब क्यूँ न ज़िंदगी पे मोहब्बत को वार दें
इस आशिक़ी में जान से जाना बहुत हुआ

अब तक तो दिल का दिल से तआ'रुफ़ न हो सका
माना कि उस से मिलना मिलाना बहुत हुआ

क्या क्या न हम ख़राब हुए हैं मगर ये दिल
ऐ याद-ए-यार तेरा ठिकाना बहुत हुआ

कहता था नासेहों से मिरे मुँह न आइयो
फिर क्या था एक हू का बहाना बहुत हुआ

लो फिर तिरे लबों पे उसी बेवफ़ा का ज़िक्र
अहमद-'फ़राज़' तुझ से कहा ना बहुत हुआ


कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ
पहन लेता हूँ जब दस्तार तो सर भूल जाता हूँ

वगर्ना तो मुझे सब याद रहता है सिवा इस के
कहाँ हूँ कौन हूँ क्यूँ हूँ मैं अक्सर भूल जाता हूँ

मिरे इस हाल से गुमराह हो जाते हैं रहबर भी
मैं अक्सर रास्ते में अपना ही घर भूल जाता हूँ

दिखाता फिर रहा हूँ सब को अपने ज़ख़्म-ए-सर लेकिन
मिरे हाथों में भी है एक पत्थर भूल जाता हूँ

निकल जाता हूँ ख़ुद अपने हिसार-ए-ज़ात से बाहर
मैं अक्सर पाँव फैलाने में चादर भूल जाता हूँ

कभी जब सोचने लगता हूँ पस-ए-मंज़र के बारे में
तो मेरे सामने हो कोई मंज़र भूल जाता हूँ

कभी तो इतना बढ़ जाती है मेरी प्यास की शिद्दत
मिरे चारों तरफ़ है इक समुंदर भूल जाता हूँ


















30 -3-2024 ------ #529 ***** ADABI SNGAM MEET NO. 529 TOPIC "BAARISH KI BOONDEY"--HOSTED BY DR SETHI FAMILY IN CONNECTICUT



ADABI SNGAM MEET NO. 529
TOPIC  "BAARISH KI BOONDEY"

30 -3-2024 ------ #529   ***** ADABI SNGAM MEET NO. 529 TOPIC  "BAARISH KI BOONDEY"--HOSTED BY DR SETHI FAMILY IN CONNECTICUT 



सूरज से छिटका धुल का एक गुबार ही तो था
तीव्र गति से घूमता बेलगाम लावा सोर मंडल में
कैसे कोई बुझा कर , करता शांत इसे
 कैसे 
फिर यह उड़ती धुल , बन जाती धरा ? अगर इन बूंदों की बरसात न होती

धूल भौतिक, रासायनिक और जैविक कारकों के प्रभाव से ठोस मिट्टी में परिवर्तित होती है। उन सबके लिए दरकार  होती है पानी की जो इन धूल के छोटे-छोटे कणों को बाँध कर मिटटी का रूप दे सके , जिसे अपक्षय कहते हैं। इस प्रक्रिया के द्वारा धूल धीरे-धीरे मिट्टी में बदल जाती है।


बारिश  में निहित है  , सार जीवन का 
यह  पानी नहीं , आधार है जीवन का 


कैसे मिटती भूख और प्यास दुनिया की  
न  होती  ,कोई बिसात हमारी 
अगर इन बूंदों की बरसात न होती

खेत में गिरती एक बूंद, अनाज का दाना बने,
गंगा में मिलती हर एक बूंद, गंगाजल बने 

नदियों में गिरे तो यह, विशाल धारा बने ,
सागर में गिरे बूंद बूंद, तो महासागर  बने 

 धरती हरियाली से ,फिर कैसे सजती,  
अगर बूंदों की यह सौगात न बरसती 


सीप में गिरे एक बूँद , तो मोती बन जाए
आँखों से टपकी बूँद   ,  आंसू कहलाये 
 
हलक में जो अटकी हो जान 
यही एक बूँद  ,मोक्ष बन जाए 

छाता लगा के डगमगाते  क्यों हो 
बारिश से खुद को बचाते  क्यों हो 

भीगने से तो शायद बच भी जाओ , 
डूबने से बच न पाओगे 
डुबाने वाला पानी,सिर से नहीं
पैरों की तरफ से आएगा ,

फायदा उठाना सीखिए हज़ूर
नायाब बूंदो को संजो लीजिये जरूर 
लौटा दीजिये वापिस  प्यासी धरती माँ को
सूद समेत  पुराना ,कर्ज समझ कर 

तुम्हारी नस्लों के ही काम आएंगे यह ख़ज़ाने , 
 गर्मी से प्यासी धरती ,न दे पाएगी तुम्हे दाने 
जब  बूंदो की बरसात न होगी


आते है पानी लेकर घनघोर बादल निरंतर
धरती पुत्र किसानो की ख़ुशी के लिए ,पर
धो देते हैं सालों से जमी धुल और गन्दगी ,

हर मकान हर दुकान हर सड़क और गली गली
कैसा आलम दीखता इस धरती पर ?
अगर इन बूंदों की बरसात न होती 

 
 बारिश की बूंदे हर गन्दगी को तो बहा ले गई ईश्वर 
कुछ बूंदे तेरी कृपा से इंसानो के दिलो पर भी बरस जाती
बहुत छल कपट का मैल जमा है ,वोह भी धुल जाती 

 कितनी 
 व्यथा  झलकती है      बारिश की बूंदों में , ,
 सहते सहते जिसे हम ,अक्सर खुद भी भीग जाते हैं।


मौसम-ए-बारिश में कुछ कशिश सी  होती है,
अकेले होते ही   , 
 गुजरे ज़माने का 
, हर पल ले कर कुछ यादें ,लौटने लगता है 
कुछ  पलों में  ख़ुशी , कुछ में टीस होती है 


मेरे शहर में भी थी , इक कच्ची सी पगडंडी अपनी।
बारिश जितनी भी हो जाए , मेरे घर का पता वही बताती थी

शहर की बारिशों का तो आलम ही निराला है
एक बारिश  हुई ,सड़कों पर लग जाता जाम बहुत है।।
 
थोड़े मेघा बरसे , सड़को पे बाढ़ का आयाम बहुत है
इंसानियत से ज्यादा ऊंचाई है यहाँ मकानों की
तभी तो जिंदगी की भाग दौड़ में मर जाना
यहाँ आम बहुत है


कौन सुनेगा तुम्हारी बरसात और पतझड़ की कहानी
फुर्र हो गई फुर्सत अब तो। ,सबके पास काम बहुत है।।

नहीं जरूरत उन्हें बुजर्गो  के ज्ञान की अब।,हर बच्चा बुद्धिमान बहुत है।।
उजड़ गए सब बाग बगीचे।नहीं संजोता कोई ,बूंदों की बारिश को
बालकनी में रखे दो गमलों से ही , उनकी शान बहुत है।।

मट्ठा, दही नहीं खाते हैं।कहते हैं बारिश हुई है ,ज़ुकाम बहुत है।।
खाते है जब गर्म  चाय और पकोड़े ,  एक पेग रम का !तब कहीं। 
कहते हैं ,आह ----अब आराम बहुत है।।


हाथ में फ़ोन है , और फोनों पर व्हाट्सअप के पैगाम बहुत है।।
किसे पढ़े? किसे मिटायें ,
और किसे छोड़ें ,  किसे अपनाएँ ? ?
मुश्किल बड़ा यह काम बहुत है

आलस का आलम तो देखो
आदी हैं ए.सी. के इतने। 
मानसून की बारिश को घूमस कहते है ( humidity )
बाहर जाने को कहो तो कहते बाहर घाम बहुत है।।( धुप )

नहीं खेलते बच्चे भी अब इस बारिश में 
झुके-थके  हैं स्कूली बच्चे।बस्तों में सामान बहुत है।।
सुविधाओं का ढेर लगा है हर घर में ।
पर बचपन परेशान बहुत है।।

 वक्त बदला  , इक पल में सब कुछ खुल जाता है
क्यों पूछेगा कुछ भी कोई हमसे ? 
हर कोई बन जाता  है, परम ज्ञानी 
अपना गूगल बाबा विद्द्वान बहुत है

न रुकी वक़्त की गर्दिश, न ज़माना बदला , 
दिन रात  करते खिलवाड़ खुद से 
क्योंकि काम में पैसे का इनाम बहुत है 


बारिश का मौसम, प्यार, रोमांस, और संवेदनाओं का समय होता है,
प्यार पाने वाले, बारिश का मजा लेते हैं,
और जिन्हें प्यार नहीं मिलता, वे अपने आंसू,
बारिश की बूंदों में छुपा के जिया करते हैं


मेरी पलकों के कोनों में भी है ,
फ्रेंचाइजी एक बादलों की  
होती  बरसात वहां से भी , कभी जब  जिंदगी उदास  होती है

दोस्त बोले आँखों में पानी ? रो रहे हो क्या ?
जिसे हम यह कह के टाल जाते हैं के नहीं नहीं
आंखों में शायद कैटरेक्ट उभर आया है

हमारे दिलों में आज इतना खौफ क्यों है बारिश से ,
पहली फुहार में ही खिड़की बंद करने लगते है ?

नहीं चाहिए किसी को कुदरत की कोई भी सौगात
न ही बूंदो से धूलि ताज़ी हवा ,न ही ठंडी ओलों की बरसात

खिड़की खोल के देखना भी गवारा नहीं उन्हें 
जहाँ ,बरसती प्राकृतिक छठा  बेशुमार बहुत है

दिल ने समझाया , मुस्कुराया करो 
लोग देख रहे है , 
बादल जितने भी गरजे आकाश में 
आँखों में यूँ बरसात लाया न करो 


बारिश इसलिए गिरती है क्योंकि बादल उसके वजन को अधिक समय तक नहीं झेल सकते। आंसू इसलिए गिरते हैं क्योंकि दिल और आँखें उससे अधिक दुःख का बोझ नहीं सह पाते।

प्रश्नपत्र है जिंदगी
जस का तस स्वीकार्य ...
कुछ भी वैकल्पिक नहीं
सबका सब अनिवार्य ...

अब क्या बताऊँ आपको , क्या छुपाऊँ आपसे
स्याही का एक दाग है गहरा सा , मेरे दिल में,भी
जो आज तक धुल न सका ,
किसी भी घनघोर ,बूंदो की बरसात में





तभी हमारी आत्मा में शांति की बरसात होती है 
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किसने देखा है बादलों में छुपी बूंदों को और किसने देखा है 

बुराई या "आलोचना"मे"छुपा"हुआ"सत्य".!. 
 और... 🤞
 झूटी "प्रशंसा"मे"छिपा"हुआ"झूठ"..!! 
 अगर.. 👌
 मनुष्य"समझ"जाये तो, 
 सभी"समस्या"अपने आप"सुलझ" जायेगी..!!! तभी हम सबको इन बूंदों में छुपी बरसात समझ आएगी 




बारिश की ये बूंदें, जैसे नभ की पायल,
छम छम करती आईं, धरती की आंचल में समायल।
हरियाली की चादर पे, जब ये बूंदें गिरती हैं,
कुदरत का हर कोना, खुशियों से भरती हैं।

मिट्टी की सोंधी खुशबू, बारिश की ये बूंदें लाई,
जीवन में नई उमंग, नई तरंग जगाई।
पेड़ों की पत्तियों पर, जब ये मोती सा चमके,
मन का कोई कोना, अनछुआ ना रह जाए।

बारिश की ये बूंदें, जैसे संगीत का साज,
टप टप गिरती जब, लगे जीवन में आज।
बूंदों का ये खेल, जीवन की राह में,
प्रेम की भाषा लिखती, बिन कहे, बिन साज।

इन बूंदों में है जीवन, इनमें है जग का प्यार,
बारिश की ये बूंदें, बन जाती हर दिल का हकदार।
आओ मिलकर करें वर्षा का स्वागत,
इन बूंदों के संग, जीवन का हर पल हो खास।


बारिश की बूंदों पे एक कविता:

बारिश की ये छोटी बूंदें, आसमान से आई हैं,
धरती की प्यासी गोद में, खुशियों की बरसात लाई हैं।
इन बूंदों की चपचप, छत पे जब गिरती है,
मन के सारे गमों को, ये धीरे से हरती है।

गलियों में बच्चे नाचे, कागज की नाव चलाई है,
बारिश की इन बूंदों ने, जैसे जीवन में रंग भराई है।
खेतों में हरियाली छाई, किसान की मुस्कान बढ़ाई है,
बारिश की इन बूंदों ने, सबके दिलों को भाई है।

छतरी ताने लोग चलें, बूंदों से बचते बचते,
फिर भी गीले हो जाएँ, बारिश के मजे लेते लेते।
चाय की चुस्कियों के साथ, पकोड़ों की बात निराली है,
बारिश की इन बूंदों की, अपनी ही एक खुशहाली है।

तो आइए, बारिश की इन बूंदों का जश्न मनाएं,
इनके संग अपने दिल की खुशियाँ भी बहाएं।
ये बूंदें जो आसमान से आई हैं,
धरती की प्यासी गोद में, खुशियों की बरसात लाई हैं।बारिश की बूंदें, गिरी झर-झर,
धरती की प्यास बुझाने को तरसती हर बरस।
छत पे टपके, ये बूंदें बन जाती संगीत,
बच्चों की हंसी, फूलों की खुशबू, बन जाती जीवन की रीत।

गलियों में बहती, ये बूंदें लेती अंगड़ाई,
बदल देती हैं मौसम की सारी तन्हाई।
कागज की नाव, बच्चे चलाते बारिश में,
खुशियों की बारात, लेकर आती हर बारिश में।

पेड़ों की पत्तियों पर ठहरी ये बूंदें,
जैसे नगीने चमकते हों रात की चांदनी में।
बारिश की ये बूंदें, जब धरती से मिल जाती हैं,
जीवन की एक नई कहानी रच जाती हैं।

तो आइए, संग बारिश का जश्न मनाएं,
इन बूंदों के साथ अपने दिल की बात गाएं।
बारिश की बूंदें, ना सिर्फ पानी हैं,
ये तो खुशियों की अनमोल कहानी हैं।



बारिश की ये नन्हीं बूंदें, आसमान से आई हैं,
धरती की प्यासी गोद में, खुशियों की बरसात लाई हैं।
इन बूंदों की चपचप, छत पर जब गिरती है,
मन के सारे गमों को, यह धीरे से हर लेती है।

गलियों में बच्चे नाचते, कागज की नाव चलाते हैं,
बारिश की इन बूंदों ने, जीवन में रंग भर दिए हैं।
खेतों में हरियाली छाई, किसान की मुस्कान बढ़ी है,
बारिश की इन बूंदों ने, सबके दिलों को छू लिया है।

छतरी ताने लोग चलते, बूंदों से बचते-बचते,
फिर भी गीले हो जाते, बारिश के मजे लेते-लेते।
चाय की चुस्कियों के साथ, पकोड़ों की बात अनोखी है,
बारिश की इन बूंदों की, अपनी ही एक खुशहाली है।

आइए, बारिश की इन बूंदों का जश्न मनाएं,
इनके संग अपने दिल की खुशियां भी बहाएं।
ये बूंदें जो आसमान से आई हैं,
धरती की प्यासी गोद में, खुशियों की बरसात लाई हैं।
बारिश की बूंदें, गिरती हैं झर-झर,
धरती की प्यास बुझाने, हर वर्ष तरसती हैं।
छत पर टपकती, ये बूंदें संगीत बन जाती हैं,
बच्चों की हंसी, फूलों की खुशबू, जीवन की रीत बन जाती हैं।

गलियों में बहती, ये बूंदें अंगड़ाई लेती हैं,
मौसम की सारी तन्हाई को बदल देती हैं।
कागज की नाव, बच्चे चलाते हैं बारिश में,
खुशियों की बारात, हर बारिश के साथ आती है।

पेड़ों की पत्तियों पर ठहरी ये बूंदें,
रात की चांदनी में नगीने सी चमकती हैं।
बारिश की ये बूंदें, जब धरती से मिलती हैं,
जीवन की एक नई कहानी रचती हैं।

आइए, बारिश के संग जश्न मनाएं,
इन बूंदों के साथ दिल की बात गाएं।
बारिश की बूंदें, सिर्फ पानी नहीं हैं,
ये खुशियों की अनमोल कहानी हैं।




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✳कदम रुक गए जब पहुंचे
      हम रिश्तों के बाज़ार में...

✳बिक रहे थे रिश्ते
       खुले आम व्यापार में..

✳कांपते होठों से मैंने पूँछा, 
      "क्या भाव है भाई
       इन रिश्तों का..?"

✳ दुकानदार बोला:

✳ "कौन सा लोगे..?

✳ बेटे का ..या बाप का..?

✳ बहिन का..या भाई का..?

✳ बोलो कौन सा चाहिए..?

✳ इंसानियत का..या प्रेम का..?

✳ माँ का..या विश्वास का..? 

✳बाबूजी कुछ तो बोलो
      कौन सा चाहिए

✳चुपचाप खड़े हो
       कुछ बोलो तो सही...

✳मैंने डर कर पूँछ लिया
      "दोस्त का.."

✳दुकानदार ने नम आँखों से कहा: 

✳"संसार इसी रिश्ते
      पर ही तो टिका है..."

✳माफ़ करना बाबूजी
      ये रिश्ता बिकाऊ नहीं है..

✳इसका कोई मोल
       नहीं लगा पाओगे,

✳और जिस दिन
       ये बिक जायेगा...

✳उस दिन ये संसार उजड़ जायेगा













































Musafir --- Safar -- # 530 Adabi sangam 27 Th April , 2024

                                           अदबी संगम ----# 530 ---मुसाफिर --- सफर -- 

 





मुसाफिर हूँ यारो , न घर है न कोई ठिकाना , मुझे तो ......... चलते जाना ,है बस ,चलते जाना

ज़िन्दगी यूँ तो ख़ुद भी एक सफ़र ही तो है ----------और हम सब इसके( suffering ) मुसाफिर।


उम्र की राह में पड़ने वाले स्टेशन , कुछ छोटे तो कुछ बड़े जंक्शन , कोई किसी स्टेशन पे उतर जाता है और कोई जंक्शन से दूसरी दिशा को चल पड़ता है , सफर सब कर रहे है , कोई मंजिल पर पहुँच चूका ,और कुछ पहुंचने वाले है , किसी किसी की  मंजिल का ,अभी कोसो दूर तक पता नहीं है


मुसाफिर है सब ,कुछ दिन रुक जाते है मुसाफिर खाने में जिसे हम अपना   घर कहते हैं , जहाँ न जाने कितने ही हमारे दुसरे साथी यात्री भी अलग अलग नाम से सदियों से वहां रहते रहे है, जिसे हम अपना शहर अपना घर समझते हैं असल में वो एक मुसाफिर खाना है ,हम उसके मलिक नहीं सिर्फ कुछ वक्त काटने आये  हैं 
 लगभग 76  साल से मेरी यात्रा में बहुत लोग साथ रहे है इस सफर में ,कुछ साथ है कुछ छोड़ चुके है और कुछ थक कर बैठने लगे है 


खूब बातें करते है , मिलकर , वहीँ खाने पीने का सब प्रबंध है , खाना पीना , हंसना रोना सब कुछ है यहाँ ,और भी नन्हें मुन्हे यात्री आये हमारे जीवन में , यहीं बीते उनके भी कुछ साल , फिर वह भी अपने अगले सफर को निकल पड़े इस स्टेशन को छोड़ कर ,न  ख़त्म होने वाली एक रिले रेस जो पीढ़ी दर पीढ़ी बखूबी चली जा रही है ,नए मुसाफिर बन उन्ही पुरानी राहों से अपनी एक अलग दुनिया ढूंढ़ने को


"हमारा सफर  शुरू हुआ है, -----इसका अंत भी होगा,
कहीं दिल मिलेंगे, कहीं प्यार  तो कहीं तकरार भी 
होगा,
 यह जिंदगी का सफर है --इसी के साथ ही ख़त्म होगा 
 "


यह दुनिया है अगर सैरगाह , मुसाफिर हैं हम भी मुसाफिर हो तुम भी
फिर क्यों यूँ हर जगह अपना एक नया रैन बसेरा बनाते रहते हो ?

धुप बारिश आंधी तूफानों से बचने का एक जरिया मात्र है यह बसेरा
तुम से पहले भी थे और तुम्हार बाद भी रहेगा लोगों का यहाँ डेरा 


मुसाफिरों से मोहब्बत की बात तो करते है सब लेकिन
मुसाफिरों की मोहब्बत का कोई  ऐतबार नहीं करते
कौन कब मिले कब बिछड़ के चल दे ? 

बहुत खटपट रहती है इनके बीच , कभी किसी बात पे कभी बिना बात के 
 मंजिल अभी दूर है , और सफर भी लम्बा है
समझते सभी है। पर अटक जाते है "अपनी औकात पे "
फिर यह समझौता एक्सप्रेस ही आखिरी सहारा है 
फिर से अविरल दौड़ने लगती है जिंदगी की गाडी, 
एक और नए स्टेशन की और

"

मुसाफिर के रास्ते बेशक बदलते रहे:
"मुकद्दर में चलना लिखा था, 
इसलिए हम चलते रहे, 
कोई फूल सा हाथ था एक कांधे पर, 
 जिम्मेवारियां थी दुसरे काँधे पर , 
इसलिए हम सफर करते रहे "
तब तक 
 जब तक हम खुद किसी के कंधे पर नहीं आ टिके।


मुसाफिर ही मुसाफिर है हर तरफ इस शहर में
मगर आखिरी स्टेशन  तक कोई  नहीं मेरा 
साथ जरूर थे मेरी जवानी में ,
अब वो इस शिकस्ताये   ,कश्ती के हमसफ़र नहीं: 
 

 "सफर में हम खूब सफर ( कष्ट ) झेलते रहे जिंदगी भर
दुश्वारिआं फिर भी न ख़त्म हुई , मंजिल पा जाने के बाद भी 


कोई इधर तो कोई उधर भागे जा रहा था 
भीड़ तो बहुत थी , हर तरफ 
लेकिन हर शख्स तनहा ही चले जा रहा था 



यहाँ मंजिल वह आखिरी पड़ाव है जहाँ यात्री मुसाफिर गिरी से थकने लगता है
फिर वह एकांत में बैठ अपने सफर नामे को खुद ही पढ़ने लगता है


क्या "जीवन का सफर "एक"सुखद यात्रा"थी ..!🤞 जिसपे हम तुम सब चले ?
हाँ बहुत कुछ समझ में आया 

"रो"कर"जीने"से बहुत"लंबी"लगेगी.यह यात्रा 

"हंस"कर"जीने"पर कब"पुरी"हो जायेगी,
"पता"भी नही"चलेगा"..!!!👌


अंत में एक आवश्यक सुचना :---

जिंदगी के सफर के मेरे हमसफ़र यात्री गण कृपया ध्यान दे जिस गाडी में  हम आप सवार है वह बहुत पुरानी हो चुकी है,  गॅरंटी वारंटी सब ख़त्म हो चुकी है , और तो और कंपनी ने इसके स्पेयर पार्ट्स बनाने भी बंद कर दिए है ,इसके इंजन ( दिल ) में वर्षों से जमा कचरा इसे कमजोर किये हुए है , इसके इनलेट आउटलेट वाल्व और ईंधन की नालियां भी अधमरी हो चली हैं , ड्रेन क्लीनर्स ( हर तरह की दवाईआं )खा खा के इसे और खोकला किये जा रहे हो 

एक्सेलेटर पे अनायास दबाव न बनाएं , बहुत स्पीड झेल न पाओगे, इसे अनावश्यक घुमाओ दार सड़को पे भी न ले जाएँ , जरा इसके टायरों पे लगे पैबन्दों को तो देखो ,( किसी ने घुटने बदलवाए है किसी ने दिल की वाल्व और नालियां ) फिर से कहीं पंक्चर न हो जाए 

चिकनी सड़को पर इस गाडी को न ले जाएँ ( अपने घर और बाथरूम के चमकीले फर्शों की खूबसूरती पे न जाएँ , फिसलने से इसे  को बचा नहीं पाओगे ,पाऊँ के सस्पेंशन और जोड़ों के टाई रोड एंड्स, उठने बैठने में  कैसे चरमराने लगे हैं , कब खुल के बिखर जाएँ और बाकी का सफर गैराज ( हॉस्पिटल ) में गुजरे या  बीच में ही छूट जाए , किसी को क्या पता ?फिर भी नहीं सम्भले तो क्या पता गाडी ही पलट जाए
और राम का नाम सत्य हो जाए

माफ़ कीजिये यह कटाक्ष था हमारी जिंदगी की गाडी और उसके सफर का किसी को बुरा लगे तो मैं शमा प्रार्थी हूँ ,
जिंदगी की कहानी दुःख और हर्ष की होती है , कटाक्ष में छुपी एक सचाई होती है, कीमत जीत की नहीं संघर्ष की होती है 
सुबह होती है शाम होती है , यूँही जिंदगी तमाम होती है ,
 बस के कंडक्टर सा  सफर बन गया है रोज रोज का , बस में रोज सफर करते हैं   और जाना भी कहीं नहीं , सिर्फ टिकट ही काटते रहते हैं 

पर फिर भी दिल नहीं मानता और कहता है ---चल मुसाफिर उठ ----चलता चल -- तू न चलेगा तो चल देंगी राहें , मंजिल को तरसेंगी तेरी निगाहें -- तुझ को चलना होगा --सफर करना होगा 
 
मंजिल मिलेगी ऐ मुसाफिर , भटक कर ही सही ,   गुमराह तो वो है जो सफर में निकले ही नहीं 


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यात्री:“यात्री हूँ मैं, राहों का आवागम, जीवन की यात्रा में बसा हूँ। जब तक चलता रहूँ, जब तक जीता रहूँ, मैं यात्रा का आनंद लेता रहूँ।”


सफर की राहों में:“सफर की राहों में जब तुम मिल जाओ, तो जीवन की यात्रा खुशियों से भर जाए। राहों की धूप, रातों की चाँदनी, सब कुछ अद्भुत लगे, जब तुम साथ हो।”


यात्रा की राहों में:“यात्रा की राहों में जब तुम साथ हो, तो राहें भी अब अधूरी नहीं लगती। जीवन की सफरी में तुम्हारा साथ, खुशियों से भर देता है हर पल।”


यात्रा के रंग:“यात्रा के रंग बदलते रहते हैं, जैसे जीवन के रंग बदलते रहते हैं। राहों पर जो चलते हैं, वो यात्री, उनकी कहानियाँ भी अनगिनत होती हैं।”


सफर की यादें:“सफर की यादें बिखरी हुई राहों पर, जैसे फूलों की खुशबू बिखरी हुई हो। यात्री की आँखों में छुपी है वो सब, जो वो राहों पर पाया है।”

यात्रा की राहों में:“यात्रा की राहों में जब तन्हा हो, तो आसमान के सितारे तेरे साथ हो। जीवन की यात्रा में जब राहें बदलें, तो खुदा की मोहब्बत तेरे साथ हो।”


सफर की यादें:“सफर की यादें बिखरी हुई राहों पर, जैसे फूलों की खुशबू बिखरी हुई हो। यात्री की आँखों में छुपी है वो सब, जो वो राहों पर पाया है।”


यात्री की आवाज़:“यात्री की आवाज़ राहों में गूंजती है, जैसे बादलों की गरज आसमान में। जीवन की यात्रा में जब तू चलता है, तो धरती भी तेरे कदमों में गुलज़ार हो।”


सफर की राहों में:“सफर की राहों में जब तू चलता है, तो राहें भी तेरे साथ चलती हैं। जीवन की यात्रा में जब तू बदलता है, तो तू खुद भी एक नया सफर बनता है।”


मुसाफिर की आँखों में:“मुसाफिर की आँखों में जब देखो, तो दुनिया की हर राह तेरी हो। जीवन की यात्रा में जब तू बसता है, तो तू ही वो ख़ुशियाँ और ग़मों की कहानी हो।”