Meet No 513--By Rani ji and Ruby ji -on 30-07-2022-at Pind Kabab and curry house -, 55 Broadway suit A, Hicksville, NY 11801-
TOPIC IS - BARSAT- BAARISH
"Adabi Sangam ----Meet No 513--
By Rani ji and Ruby ji -
on 30-07-2022-
at Pind Kabab and curry house -,
55 Broad way suit A, Hicksville, NY 11801--
दिन कुछ ऐसा चढ़ा , दिल भी था उदास
थोड़ा ग़मगीन सा ,कोई न था आस पास
दूर तक छाए थे बादल , और कहीं कोई साया न था
इस तरह घनघोर बादलों का घेरा
कभी आया न था
भीतर भी और बाहर भी था घोर अँधेरा सा
यकीन सा हो चला , के आज , कुछ तो जोरदार होगा
मैंने दुःख जो सुनाया था उन्हें , मुझ से पहले
आंसू उनके बरसने को आतुर हैं
खूब बरसेंगी आँखें भी मिलके आज, बारिश में ।
खूब बरसेंगी आँखें भी मिलके आज, बारिश में ।
गिले शिकवे , वो उदासी के पल , जला हुआ दिल
खूब सजेगी मेहफ़िल , जब मिलेंगे दो दिल जले
अरसा हुआ उन्हें एक साथ मिलके बरसे , हुए
जब तक जवानी थी जोश भी था , भागते गए दौलत कमाने को
जिन्होंने कमाए चंद सिक्के , वोह मजे से भीगते रहे इस बारिश में ,
-
---हमारी जेब में थे नोट भरे हुए , तो छत तलाशते रहे
बारिश का कोप कुछ ऐसा था उस दिन
, न खुद को , न ही बचा पाए जेब में रखे अपने नोट
दोस्तों ने कहा ,रहने दो इन्हे अब तुम्हारे काम न आ पाएंगे
कितने कड़क थे कुछ देर पहले ,कितनी गर्मी थी इनसे
अस्त व्यस्त होकर गल गए हैं
बारिश की चंद बूंदों ने ,
औकात बता दी , इन की,
जब तक जवानी थी जोश भी था , भागते गए दौलत कमाने को
जिन्होंने कमाए चंद सिक्के , वोह मजे से भीगते रहे इस बारिश में ,
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---हमारी जेब में थे नोट भरे हुए , तो छत तलाशते रहे
बारिश का कोप कुछ ऐसा था उस दिन
, न खुद को , न ही बचा पाए जेब में रखे अपने नोट
दोस्तों ने कहा ,रहने दो इन्हे अब तुम्हारे काम न आ पाएंगे
कितने कड़क थे कुछ देर पहले ,कितनी गर्मी थी इनसे
अस्त व्यस्त होकर गल गए हैं
बारिश की चंद बूंदों ने ,
औकात बता दी , इन की,
इशारा है समझ सको तो
कीमती चीज़ हमेशा मेहफ़ूज़ नहीं होती
कीमती चीज़ हमेशा मेहफ़ूज़ नहीं होती
जिंदगी भी यही है प्यारो , जब तक जिन्दा है तो जिंदगी है
वरना एक गला हुआ नोट ,
नाचीज़ चंद सिक्के पड़े है पिछली जेब में ,
जिनकी वुकत अब भी वही है
चलो आओ इसी ख़ुशी में एक एक कप चाय हो जाय
कितना महत्व है इस बारिश का हमारी जिंदगी में
तपती गर्मी में बारिश की फुहार बड़ी सुहानी लगती है
कड़कती सर्दी में पड़ी बूंदे ,बर्फ बन रोक लेती हैं रास्ता ,
बारिश की एक फुहार से टूट जाता है इनका भी वास्ता
वक्त पे बारिश न पड़े , या वक्त से पहले पड़ जाए
किसान की आँखे भी ,बादलों संग बरसने लगती हैं
गरूर तो बादलों को भी बहुत था अपनी उचाई का ,
उनसे टूटी बूंदों को ,फिर भी जमीन ही रास आई
नाचीज़ चंद सिक्के पड़े है पिछली जेब में ,
जिनकी वुकत अब भी वही है
चलो आओ इसी ख़ुशी में एक एक कप चाय हो जाय
कितना महत्व है इस बारिश का हमारी जिंदगी में
तपती गर्मी में बारिश की फुहार बड़ी सुहानी लगती है
कड़कती सर्दी में पड़ी बूंदे ,बर्फ बन रोक लेती हैं रास्ता ,
बारिश की एक फुहार से टूट जाता है इनका भी वास्ता
वक्त पे बारिश न पड़े , या वक्त से पहले पड़ जाए
किसान की आँखे भी ,बादलों संग बरसने लगती हैं
गरूर तो बादलों को भी बहुत था अपनी उचाई का ,
उनसे टूटी बूंदों को ,फिर भी जमीन ही रास आई
याद तो मुझे अब भी आता है वह गुजरा हुआ समां ,
रिमझिम तो है मगर वह सावन के झूले गायब है
बरसात तो है ,बच्चे भी है ,पर वह बचपन ,
वो कागज़ की नाव , न जाने मगर गायब है
क्या होगया है इस जमाने को यारो
अपने तो हैं मगर अपनापन गायब है
क्यों रोकते हो बारिश की बूंदों को
छतरी लगा के ,
कहीं फिसल न जाए , कीचड में
बड़े अरमान लेकर आया है
पहले बारिश होती थी तो याद आते थे आप
आज मेरे साथ हो लेकिन बारिश ही नहीं होती
अपनापन भी बारिश सा हो गया है आजकल ,
वहीँ बरसता है जहाँ हालात अनुकूल हों
कमजोर हो गया है दिल , भीगी रातों में यादों की पपडियां
झड़ने लगती है तेरे यूँ अचानक आ टपकने से
काश हम भी बादल बन कर आ जाते तुम्हारे शहर
खूब बरसते दोस्तों की छतों पे , चूमते उन्हें बूंदे बनकर
आज यह बारिश भी कितना सितम ढा रही है
भीगना मना है मुझे , फिर भी बरसे जा रही है
इल्तिज़ा है मेरी , ऐ स्वार्थी बारिश ,जा कहीं और जा के बरस ,
आशियाँ मेरा इतना मजबूत नहीं , न ही मेरे जज्बात
कुछ अपनी कहानी कुछ जवानी की रवानी
दिल को रुला जाती हैं, एक तेरे आ जाने से
अब तूँ ही बता किस कोने में सुखाऊँ इतनी सारी यादें ,
बरसात बाहर भी है और भीतर भी ,
भीगे हों जज्बात या भीगे हुए " नोट "
अब तो दोनों का , कोई खरीद दार नहीं
छोटी ही सही पर ऐसी मुलाकात तो हो
जहाँ हम तुम , चाय पकोड़े और बरसात हो
उस ने बारिश में भी खिड़की खोल के देखा नहीं
भीगने वालों को कल क्या क्या परेशानी हुई
मजबूरियाँ ओढ़ के निकलता हूँ घर से आजकल
वरना शौक तो आज भी है , बारिशों में भीगने का
जिंदगी का खेल शतरंज
से भी ज्यादा मजेदार है
जिसमे बादशाह भी हार जाता है
अपने वजीर से
बारिश की बूंदों में कभी कभी भीग लिया करो
काम से फुर्सत निकाल मस्ती में जी लिया करो
कपडे ही तो गीले होंगे , जेब में रखे नोटों को
लेकिन बचा लिया करो
बरसती बारिश में जरा उड़ के
दिखा ऐ उड़ने में माहिर परिंदे
सूखे मौसम का क्या जिक्र
तिनके भी उड़कर सफर करते है
बारिश और मोहब्बत , दोनों ही यादगार होते है
एक में जिस्म भीगता है , और मोहब्बत में आँखे
अब तो एक यह खवाइश भी
बाकी है दिल में, दोस्तों संग
एक बार बारिश में भीगे
और बैठ के गरमा गर्म चाय के साथ पकोड़े खाएं
रिमझिम तो है मगर वह सावन के झूले गायब है
बरसात तो है ,बच्चे भी है ,पर वह बचपन ,
वो कागज़ की नाव , न जाने मगर गायब है
क्या होगया है इस जमाने को यारो
अपने तो हैं मगर अपनापन गायब है
क्यों रोकते हो बारिश की बूंदों को
छतरी लगा के ,
मालुम नहीं तुम्हे क्या
कितनी दूर से बेचारी
सिर्फ हमसे मिलने आई है
आँखों में अपने समुन्दर समेटा हूँ
ऐ बादल तू मुझ पे ,
अपना पानी जाया न कर
बड़ी दूर से घूमने मेरा दोस्त आया है
कितनी दूर से बेचारी
सिर्फ हमसे मिलने आई है
आँखों में अपने समुन्दर समेटा हूँ
ऐ बादल तू मुझ पे ,
अपना पानी जाया न कर
बड़ी दूर से घूमने मेरा दोस्त आया है
कहीं फिसल न जाए , कीचड में
बड़े अरमान लेकर आया है
पहले बारिश होती थी तो याद आते थे आप
आज मेरे साथ हो लेकिन बारिश ही नहीं होती
अपनापन भी बारिश सा हो गया है आजकल ,
वहीँ बरसता है जहाँ हालात अनुकूल हों
कमजोर हो गया है दिल , भीगी रातों में यादों की पपडियां
झड़ने लगती है तेरे यूँ अचानक आ टपकने से
काश हम भी बादल बन कर आ जाते तुम्हारे शहर
खूब बरसते दोस्तों की छतों पे , चूमते उन्हें बूंदे बनकर
आज यह बारिश भी कितना सितम ढा रही है
भीगना मना है मुझे , फिर भी बरसे जा रही है
इल्तिज़ा है मेरी , ऐ स्वार्थी बारिश ,जा कहीं और जा के बरस ,
आशियाँ मेरा इतना मजबूत नहीं , न ही मेरे जज्बात
कुछ अपनी कहानी कुछ जवानी की रवानी
दिल को रुला जाती हैं, एक तेरे आ जाने से
अब तूँ ही बता किस कोने में सुखाऊँ इतनी सारी यादें ,
बरसात बाहर भी है और भीतर भी ,
भीगे हों जज्बात या भीगे हुए " नोट "
अब तो दोनों का , कोई खरीद दार नहीं
छोटी ही सही पर ऐसी मुलाकात तो हो
जहाँ हम तुम , चाय पकोड़े और बरसात हो
उस ने बारिश में भी खिड़की खोल के देखा नहीं
भीगने वालों को कल क्या क्या परेशानी हुई
मजबूरियाँ ओढ़ के निकलता हूँ घर से आजकल
वरना शौक तो आज भी है , बारिशों में भीगने का
जिंदगी का खेल शतरंज
से भी ज्यादा मजेदार है
जिसमे बादशाह भी हार जाता है
अपने वजीर से
बारिश की बूंदों में कभी कभी भीग लिया करो
काम से फुर्सत निकाल मस्ती में जी लिया करो
कपडे ही तो गीले होंगे , जेब में रखे नोटों को
लेकिन बचा लिया करो
बरसती बारिश में जरा उड़ के
दिखा ऐ उड़ने में माहिर परिंदे
सूखे मौसम का क्या जिक्र
तिनके भी उड़कर सफर करते है
बारिश और मोहब्बत , दोनों ही यादगार होते है
एक में जिस्म भीगता है , और मोहब्बत में आँखे
अब तो एक यह खवाइश भी
बाकी है दिल में, दोस्तों संग
एक बार बारिश में भीगे
और बैठ के गरमा गर्म चाय के साथ पकोड़े खाएं