नज़र --- NAZAR ----BEHOLDING ---नज़र --- NAZAR ----BEHOLDING ---
नजर एक अरेबियन शब्द है जिसका मतलब है " देखना "
लेकिन यह अच्छी देखने की नज़र ,बुरी नज़र भी होजाती है
आँखों के मोती से निकली वह किरण ( शर्त यह के उस आँख में मोतिया बिंद न हो )
जो आँखों के रस्ते दिल में उत्तर जाए ,वही है कातिल " नज़र "
जैसीआँखें रहि , जिसकी
वैसी ही रही , नजर भी उसकी ,
गीत कार ने गीत लिख डाले नज़र पर भी
"जरा नजरों से केह दो जी , निशाना चूक न जाए "
मजा तब है ,तुम्हारी हर अदा, कातिल ही कहलाये मसरूफ रहने का अंदाज़ , कर अपनों को नजरअंदाज
कर देगा तुम्हे तनहा एक दिन , बाँध लो गाँठ मेरी यह बात
न हो यकीन तो, जरा कब्र में लेट कर आजमा लो ,
कितने हैं जो तुम्हारी नजर उतारते है , कितने नज़र अंदाज
रिश्ते फुर्सत निभाने को नहीं , जिंदगी की खुशहाली होते हैं
मत खोल मेरी किस्मत की किताब को , न ही खुलवा मेरा मुहं ,
नजर लग गई है उसे , किसी शैतान "ऐ नजर "की
हर उस शख्स ने मुहं ही फेरा है मुझ से
,जिसने भी इसे पढ़ा है
महफ़िल में हम भी थे, महफ़िल में वह भी थे,
हमने नज़र हटाई नहीं, उन्होंने मिलायी नहीं। उसी नजर को मेरा। .... , इंतज़ार आज भी है
यूँ तो गुपचुप बातें होती रहीं है,..... अक्सर
उनकी नजरों से ,हमारी नज़रों की ,
नाराजगी तो हम दोनों के बीच थी ,
नजरों को नहीं
पर मतलब अभी तक ,उन लब्जों के
समझ आये नहीं ,न हमको न ही उनको
नसीहत देने वाले यहाँ हज़ारों
सरे आम दिख जातें हैं,
सरे आम दिख जातें हैं,
साथ निभा दें वो लोग ,मगर
कहाँ नज़र आते।है ?
होश कुछ यूँ उड़ गए थे मेरे , जैसे ही मिली थी उनसे नजर ,
बस वो नजर ही याद रही, बाकी सब अंदाजे नजर हो गए
अब यकीन हुआ कतराते क्यों हैं , लोग हमसे ?
नजरें मिलते ही , यह सवाल जो पूछने लगती हैं
तुम्हारी नजर क्या पड़ी मुझ पर ,
भूख प्यास भी न रही अपनी ,
चेहरा गुलाब था , हो गया गेंदा
लुढ़कने लगे जिंदगी में इधर से उधर ,
जैसे कोई गगरी हो बे पैंदा
दिल जैसे फट पड़ेगा छाती फाड़के ,
ऐसी परमाणु मिसाइल छोड़ती है यह नजर
नींदे उड़ जाती हैं , भूख प्यास नहीं रहती
हर वक्त चुभती सी लगती है ,वो कातिल "नजर "
न रहती कोई भी खवाइश कुछ पाने की
इंतज़ार रहता है तो सिर्फ। .और सिर्फ उस ......
एक "नजर" के उतर जाने का
दर्द उठा सर में भी ,देख के नब्ज मेरी ,हकीम भी झुंझुला उठा
बोल उठा यह कोई मर्ज वर्ज नहीं , नज़र लगी है किसी की
नहीं मेरे पास इसका ,इलाज़ कोई भी ,
नहीं मेरे पास इसका ,इलाज़ कोई भी ,
जहाँ से यह मर्ज लिया है ,इलाज भी है वहीँ
उसी के पास एक बार फिर से जाओ
जैसे मिलाई थी नजर उस से ,पहले भी
एक बार जाकर फिर से मिलाओ ,
शायद ------इस बार नजर उतर जाए
क्या बात कर दी हॉकीम साहिब ने , ऐसे
नजर कोई अपनी मर्जी से मिलाता है क्या ?,
नजर उतारने का धंदा भी ,खूब चमके है इस ज़माने में
यह ताबीज़ , यह अंघूटी , नहीं तो यह नग ही डलवा लो
देख कर हैरान हूँ मैं भी ,एक अदना से ,बेजुबान आईने का जिगर
एक तो कातिल सी नज़र ,उस पर काजल का कहर !!रोज निहारता है
फिर भी दीवाल पे टंगा है
सही सलामत है अभी तक
इसे क्यों न लगी बुरी नजर ,
किसी चुड़ैल की ,आज तलक ?
इसने कौन सी ताबीज़ बाँधी हुई है
कौन किसकी राह में बिना मतलब
बिछाता है नजरें ,यूँ आज की दुनिया में ?
क्या बताएँगे दुनिया को, के नजर लग गई थी ,
एक बार फिर से मिलवा दो उनसे ,
क्या होगा इन बेफिजूल बातों से, लेकिन
हम भी वाकिफ है , फितरत से अपनी
सुन ली सबकी , अब करेंगे मन की
अरे नजर को व्यपार बनाने वालो , जरा सोचो
आँखें हैं तो नज़ारे है , नज़ारे हैं तो खुशियां हैं
बहकती हुई नजरें भी , जिन जिन से मिली होंगी
कुछ गैर जरूर होंगे पर , उनमे कुछ होंगे अपने भी ?
कुछ गैर जरूर होंगे पर , उनमे कुछ होंगे अपने भी ?
तो क्या मैं सब को शक की नजर से देखु ?
उन्होंने ने भी तो यही कहा था
जान तुम शर्माते बहुत हो हम से ?
देखते भी नहीं हो मेरी और ?
सच हमसे भी छुपाया न गया
घूर के जो देखते हो , डरते है नज़र न लग जाए
इसलिए अक्सर नजर चुरा लेते है
ऐसी ही किसी तिरछी नजर ने ,
किया है अंदर से ,ख़ाक जिगर पहले भी
किया है अंदर से ,ख़ाक जिगर पहले भी
मासूम सी दिखने वाली उस नजर ने
बेकरार किया है..!, बहुत पहले भी
उनकी सीधी नज़र ने,
तो कोई बात ,न की ,कभी भी हम से
पर उस तिरछी हुई नज़र का,जाल
पर उस तिरछी हुई नज़र का,जाल
बड़ा जान लेवा था
कहने लगे तुम एक नज़र तो देख लो, खुद को ,
कहने लगे तुम एक नज़र तो देख लो, खुद को ,
मेरी नज़र से ,फिर देखना
तुम्हारी नज़रें तलाशेंगी खुद से
,मेरी उसी नज़र को
बड़ी ऊँची शायरी जो हमारे सर के ऊपरसे निकल गई
सुना है एक निगाह से ,कत्ल हो जाते हैं लोग
कोई तो एक नज़र हमको भी देख लो
ज़िन्दगी अब , थोड़ा मायूस करने लगी है !!
कोई तो एक नज़र हमको भी देख लो
ज़िन्दगी अब , थोड़ा मायूस करने लगी है !!
काँटों और चाक़ुओं का तो है , खामख़ाह नाम बदनाम
काटती जुबान भी हैं !!चुभती तो नजर भी हैं
काटती जुबान भी हैं !!चुभती तो नजर भी हैं
और ,
खूबसूरती को कितने ही पर्दों में रखो
जिसने भी डाली इसपे नज़र
बुरी ही डाली !!
बुरी ही डाली !!
कौन है जो मर्ज़ी से जी रहा हो यहाँ
सभी तो किसी न किसी नज़र से हैं बंधे हुए
सभी तो किसी न किसी नज़र से हैं बंधे हुए
अल्फाज़ो में ढूंढता हु उन्हें ,हक़ीक़त में नज़र आते नहीं
गुनाह बताते नहीं हमारा ,जो हम उन्हें ,एक नज़र भाते नहीं
कहने लगे हमसे वो
दुनिया में आए हो, ,तो चेहरे पढ़ने का हुनर रखना,
दुश्मनों से कोई खतरा नहीं है, किसी को भी इस जहाँ में
दुश्मनों से कोई खतरा नहीं है, किसी को भी इस जहाँ में
बस रखना तो अपनो पर,थोड़ी पैनी "नज़र "रखना।
ख़ुशी ही तो थे वोह मेरी ,
पर ना जाने कब ,किसी की
बुरी नज़र लग गई !!
बुरी नज़र लग गई !!
इस तरहां बेरुख़ी से ,जो नज़रे मिली,
कुछ जवाब तो मिल गए हैं
लेकिन पहचान गया हूँ सबकी नज़र को अब मैं भी
जिस अंदाज़ से वोह हमें ,नज़र अंदाज़ करते हैं !!
…तुम्हारी राह में शायद मिट्टी के घर नहीं आते
इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते..
निकल जाने पर पलट के देखा भी नही तुमने..एक बार !
रिश्ता तुम्हारी नज़र में , क्या कल का अखबार हो गया..है !!
नजरों में सम्भाल के रखा पर ,
उसे नज़र भर के देखा नहीं
नज़र न लग जाए कहीं मेरी ही
नज़र न लग जाए कहीं मेरी ही
मैंने उसकी तरफ देखा ही नहीं !!
मुझे हर वो पत्थर जिसकी ठोकर करे आगाह रस्ते में
मुझे दर्द दे फिर भी , मुझे उसमे हमदर्द नज़र आता है !!
मुझे दर्द दे फिर भी , मुझे उसमे हमदर्द नज़र आता है !!
मुझे तो तकलीफ है उन रिश्तों से ,
जो पत्थर तो नहीं है , पर दर्द बहुत देते हैं
मौसम है आशिकाना साहिब जरा सम्भल के रहियेगा
यहां नजरें ही नज़रों को मार गिराती है ,
कातिल हमें ना कहियेगा !!
नजर और नसीब के मिलने का ,इत्तफाक कुछ ऐसा है दुनिया में
नजर को पसंद हमेशा वही आता है , जो नसीब मे नही होता !!
नजर को पसंद हमेशा वही आता है , जो नसीब मे नही होता !!
पर तुम जब भी मिलो हमसे ,तो नजरे उठा कर मिला करो
तुम्हारी झुकी नज़रों में ------ हम अपना चेहरा नहीं देख पाते
कोई लाख खूबसूरत बन जाये ,किसी और की नज़र में !
आईने में खड़ा शख्स उसे खूब अच्छे से जानता है
तुम्हारी झुकी नज़रों में ------ हम अपना चेहरा नहीं देख पाते
कोई लाख खूबसूरत बन जाये ,किसी और की नज़र में !
आईने में खड़ा शख्स उसे खूब अच्छे से जानता है
बस इतनी पाकीज़ा रहे ,आईना-ऐ-ज़िन्दगी
जब खुद से मिले नज़र ,तो नजरें शर्मसार ना हो !!
जब खुद से मिले नज़र ,तो नजरें शर्मसार ना हो !!
फिक्र नही लोगों में निन्दा हो तो हो
बंदा अपनी नज़र में शर्मिन्दा न हो !!
बंदा अपनी नज़र में शर्मिन्दा न हो !!
रिश्ते कुदरती मौत नहीं मरते ,
इनका क़त्ल होता है इंसान की
अपनी ही "नजर" के "नजरिया" से
कभी नफ़रत से तो कभी ग़लतफहमी
कभी नफ़रत से तो कभी ग़लतफहमी
या , नज़र अंदाज़ी से
ना जाने क्यों वो आजकल हमसे मुस्कुरा के मिलते हैं
शायद अपने अन्दर के सारे रंजो -गम छुपा के मिलते हैं
ना जाने क्यों वो आजकल हमसे मुस्कुरा के मिलते हैं
शायद अपने अन्दर के सारे रंजो -गम छुपा के मिलते हैं
वो बखूबी जानते हैं आंखे सच बोल जाती हैं
शायद इसी लिए वो नज़र झुका के मिलते हैं !!
,हमारी नजरों से दूर रह कर भी ,मुझपर पैनी नज़र रखते हैं
शायद इसी लिए वो नज़र झुका के मिलते हैं !!
,हमारी नजरों से दूर रह कर भी ,मुझपर पैनी नज़र रखते हैं
आखिर अहमियत क्या है हमारी ,जो ईतनी ख़बर रखते हैं !!
खूबसूरत चेहरा सब को दिख जाता है ,
आँखों के रस्ते दिल में उत्तर जाता है
छुपे भाव इसमें ,दुनिया नजरअंदाज कर जाती है
और फिर कभी यही नजरें "नज़ीर" बन जाती है
“यूँ तो शिकायतें मुझे भी ,सैंकड़ों हैंअपनों से , मगर ,
एक नज़र ही काफी होती है सुलह के लिये”
एक नज़र ही काफी होती है सुलह के लिये”
नजरे तलाश करती जरूर है उन्हें , जिनकी नजरें फिर गई हमसे
पर उन्हें फिर हमसे नजरें मिलाते, देखने का अब कोई इरादा नहीं।
आप तो खैर दोस्त हो, जिगरी हो हमारे
हम तो ,अपने दुश्मन को भी , सज़ा बहुत मासूम देते हैं
नही उठाते अपना हाथ किसी पर, कभी गलती से भी ,
बस अपनी "नज़रों में उसे " चुपचाप से गिरा देते है !!
*******************************************************
तुझे क्या बताऊँ ए ,दिलरूबा तेरे सामने मेरा हाल है,
तेरी एक निगाह की बात थी ,मेरी ज़िन्दगी बेहाल है I