Saturday, May 4, 2024

Adabi sangam -------meeting Number -524 -------on Saturday, ------August 26, 2023,-----5 PM---TOPIC-- -----ज़िद्द -- चांदनी


ज़िद्द -- चांदनी 
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Adabi sangam meeting Number -524 
on Saturday, August 26, 2023, 5 PM







ज़िद्द थी हमारी भी की , के जिंदगी में  कुछ तो ऐसा कर जाएँ 
चाँद पे भले न पहुँच पाएं इस जनम,चाँद सी मेहबूबा तो ले आएं 

चांदनी में जिसकी नहा जाए दुनिया सारी, सब आएं उससे मिलने ,
लेकर बेशकीमती तौफे , जुबान से जिनके सिर्फ कसीदे निकलें 
क्या चाँद का टुकड़ा ले आये हो , और हम सुन फूले न समायें 

कुछ विचार कर ,भेज दिया हमने भी अपने चंदरयाण को ,लाने
और चांदनी थोड़ी सी अपने मेहबूब के ख़ूबसूरती के लिए 

दिल तो तब टूटा , जब चंदरयाण ने कुछ तस्वीरें भेजी
देख चाँद के गालों पे पड़े , गहरे पाताल  नुमा गड्ढों को

वह भी  , तमतमा गई , देख  इतनी भयानक तस्वीर से 
बोली तो क्या आप हमें ऐसा बनाना चाहते थे ?

 , जानम हम कोई चाँद पे पहले कभी गए थे क्या 
अपनी ग्रहस्थी जो बचानी थी,तौबा की हमने भी
खफा मत होना प्रिय आज से  आपकी तुलना
चाँद की बजाय सिर्फ उसकी रौशनी से करेंगे

पर दिल तो बड़ा मायूस है तब से , सारा गुड़ गोबर हो गया 
लेकिन सच बताएं वैसे हम भीतर से कुछ कुछ  खुश भी हैं ,
हमारे विज्ञानिको की मेहनत लगन और उपलभ्दी पे
कम से कम हज़ारो सालों से पला हमारा भरम तो तोडा 

दूसरा ,अब हर छोटा बड़ा आशिक 
अपनी मेहबूबा को चाँद के नाम पे
बेवकूफ नहीं बना पायेगा
न ही पढ़ेगा कोई गीतकार चाँद के कसीदे 

लेकिन ऐ ज़िंदगी....!अपनी जिद्द में 
यह क्या दिखा दिया तूने ,हमें मरने से पहले ?

एक चाँद ही तो था जिसपे ,फ़िदा हमारा प्यार रहता था ,
चंदा मामा की कहानियों से बच्चों का दिल भी गुलजार रहता था

अब बच्चों ने भी चन्दर यान का लाइव टेलीकास्ट देखकर बोला
दादू अब और गप मत लड़ाओ ,सब जान गए है हम ,

वहां कुछ नहीं सिवाय ठण्ड , गड्ढे और पथरों के.
अब बताओ हमसे तो बच्चों का साथ ही छिन गया 
कोई कहानी सुनने को ही नहीं आता , कहते है 
आपकी कहानियां सब झूठी हैं 


वैज्ञानको की जिद्द थी चंद्रयान वहां गया भी तो
कितने डर डर के ? उतरने का खौफ्फ़ इतना के 
,एक तो पहुंचा ही नहीं, गिर कर रस्ते में फ़ना हो गया 

दुसरे चंदरयाण ने जो भारत का था तो एक ही झटके में ,
एक मामा भांजे का रिश्ता था वह भी हमसे छीन लिया

मुश्किलों के सदा ,हल तुमने दिया है आगे भी देना दाता
कहीं इस नई दौड़ में हम भटक कर , थक कर टूट  न जाएँ ...!

पहुँच तो गए हैं हम वहां ,अब थोड़ी और जिद्द दिखानी होगी ,
जिस चाँद पे 
रख दिया है पाँव हमने , हिम्मत भी दिखानी होगी 

अब जल्दी से वहां बच्चों की असली ननिहाल बसानी होगी
जो सच्चाई अभी तक कहानियां थी ,फिर से सुनानी होंगी 

एक बार चाँद पे हमारी कोठी /मकान बन जाए, 
नई दुनिया बसानी होंगी ,तब कहीं फुर्सत से बैठे और ,
फिर किसी सूरज किसी और चाँद पे कवितायें लिखें
एक नए चाँद और उसकी चांदनी को खोज लाएं 

दुआ देता है दिल से ,मेरा दिल सबको
इस नए आगाज़ में , मिले नया आज
और मिले बेहतर कल सबको !!!


लेकिन इस जिद्द में भी एक डर छिपा है ,
के न मालूम कल क्या हो जाए ? कोई एलियन या कुछ और ?
अभी अभी देखा दुनिया में तबाही का मंजर ,
जहाँ कभी बरसात भी ,होती न थी
मक्का मदीना में भी आई प्रलह को , 
क्या इसका हमारी जिद्द से कोई नाता तो नहीं ?


शिमला में पहाड़ो का यूँ फिसल कर दरकना 
भव्य इमारतों का पल में जमींदोज़ होना
चाँद की चांदनी खोजने जो निकले थे, 
चांदनी रातो में जो धरती के समुन्द्रों में उफान आता था , 
वो तो पहले समझ लेते , कुछ तो है 
अपनी जिद्द में न जाने क्या क्या ,
इस धरती पे हम खोने लगे हैं


"जीवन"शतरंज के"खेल"भी एक जिद्द की तरह है..!
और..🤞
यह"खेल"हम"ईश्वर"के साथ खेल रहे है..!!
"हमारी"हर"चाल"के बाद..!
"अगली"चाल"वह"चलता है.!!
"हमारी"चाल हमारी"पसंद"कहलाती है..,!
और..👌
"उसकी"चाल परिणाम"कहलाती है..!!

तभी अगर जिद्द निभानी है तो अपने किरदार को बखूबी निभाओ
मानवता का कोई नुक्सान भी न हो , और पर्दा गिरने के बाद भी
तालियां खूब बजती रहे


एक बड़े ज्ञान की बात भी सुनलो ,
ज्ञानी मित्र ना राखिये, वो भाषण देते झाड़,
राई को परबत करें,तिल को करते ताड़ !
मित्र तो ऐसा चाहिये,जिसकी जिद्द से
चिन्ता भी जाए हार
लड़ना झगड़ना काहे को ,जब देखे दुख यार का, 
दिखा के थोड़ा प्यार, झट ले आए बोतल चार !!


कुछ लोग लड़ें धन के नाम पर 
कुछ लड़ें जाति के नाम

सिर्फ पति पत्नी ही हमेशा लड़े ,निष्काम  
जो न देखें कोई 
धर्म न देखे कोई काम
निस्वार्थ भाव से , बेवजह लड़ते रहें जो हरदम 
 होके 
सिर्फ अपनी जिद्द के गुलाम


"कुछ"पाना"जीत"नही है..!
और...🤞
कुछ"खो"देना"हार"नही है..!!
केवल"समय"का"प्रभाव"है..!
और..👌
*"परिवर्तन"तो समय का" स्वाभाव है

कहीं मिलेगी जिंदगी में चांदनी सी प्रशंसा तो,
कहीं प्राकृतिक नाराजगियों का बहाव मिलेगा l


कहीं मिलेगी सच्चे मन से दुआ तो,
कहीं भावनाओं में दुर्भाव मिलेगा

तू चलाचल राही अपने कर्मपथ पे, अपनी ही धुन में 
जैसा तेरा भाव ,वैसा प्रभाव मिलेगा।


चाँद पे पहुंचने की जिद्द ने किया कमाल है
सफलता भी मिली तो जिद्द से 

जो "प्रेरित और उत्साहित" होकर...
उसे पाने के लिए दिन - रात
अपने कार्य में जुटे रहते हैं...!!!सफलता भी वहीँ है 


मिलकर बैठ गये मजलिस में जुगनू सारे ;
मुद्दा था हमारी फीकीं पड़ी चमक कैसे वापिस पाई जाये ?
अब तो चांदनी भी फीकी हो गई है चंदरयाण के उतरने से
गोया ऐलान पास हुआ क्यों ना सूरज को ही बदल दिया जाये ?
ऐलान नशे में था , कोई जिद्द नहीं ,सो कभी पूरा न हो सका 


"दुनिया"का"सबसे"अच्छा"तोहफा" वक्त है..!
क्योंकि..👍 इसमें किसी की जिद्द नहीं चलती 
जब"आप"किसी को अपना"वक्त"देते है,
तब..👌
आप"उसे"अपनी"जिंदगी"का वह "पल"देते है,
जो"कभी"भी"लौटकर"नही आता..!!


झूठ"कहते"है लोग की..!
"संगत"का"असर"होता है..!! 
*"आज"तक.
मैंने तो पाया है के
ना"काॅटों"को"महकने"का"सलीका"आया है..!
और...👌
ना"ही फुलो"को"चुभना"आया है..!!

मैंने तो अक्सर इंसानो को अपनी में जिद्द में तिल तिल मरते पाया है 



मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी 
सिर्फ तुम ही क्यों ,
आते नहीं ?


कभी आ भी जाना ,बस वैसे ही जैसे
परिंदे आते हैं आंगन में , रात को आ जाती है चांदनी
या अचानक आ जाता है
कोई झोंका ठंडी हवा का ,जैसे कभी आती है सुगंध
पड़ोसंन की रसोई से......स्वादिष्ट व्यजनों की 


मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी 
सिर्फ तुम ही क्यों ,
आते नहीं ?


आना जाना मासूमीयत से ,जैसे बच्चा आ जाता है
मेरे बगीचे में गेंद लेने ,या आती है गिलहरी पूरे
हक़ से मुंडेर पर, ताकती है मेरी रसोई में
के आज क्या क्या बना है ? ऐसे ही तुम भी कभी झांको हमारी खिड़की से 


मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी 
सिर्फ तुम ही क्यों ,
आते नहीं ?


जब आओ तो दरवाजे ,पर घंटी मत बजाना
बेतकुलफ पुकारना ,मुझे वही पुराना नाम लेकर,
अब मैं वकील नहीं , न ही तुम कलेक्टर
वो एहम वो बहम अपनी जवानी की जिद्द का
वो सारा सामान वहीँ छोड़ के आना 


मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी 
सिर्फ तुम ही क्यों ,
आते नहीं ?

मुझसे समय लेकर भी कभी मत आना
हाँ , लेकिन अपना पूरा समय साथ ले आना
फिर अपुन दोनों के समय को जोड़,
छल कपट अहंकार जिद्द को छोड़
बनाएंगे एक प्यारा सा झूला
अतीत और भविष्य के बीच झूलता हुआ, चांदनी रात में
उस झूले पर जब हम खूब बतियाएंगे
तो देखना क्या क्या खोया हुआ वापिस पा जाएंगे


मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी 
सिर्फ तुम ही क्यों ,
आते नहीं ?


और जब लौटो तो थोड़ा ,मुझे भी ले जाना साथ
थोड़ा खुद को छोड़े जाना मेरे पास
एक बहाना तो होगा ,फिर वापस आने के लिए
मिल बैठेंगे सुखद चांदनी में एक बार फिर से ,
खुद को एक-दूसरे से पाने के लिए।


मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी 
सिर्फ तुम ही क्यों ,
आते नहीं ?


चांदनी की ठंडी रात थी , मस्ती में चले जा रहे थे ,
ख़ुशी बड़ी जल्दी में थी , रुकी नहीं 
गम फुर्सत में थे , इत्मीनान से ठहर गए 
लोगों की नज़रों में , फर्क अब भी नहीं है 
पहले मुड  कर देखा करते थे 
अब देख कर मुड़ जाते हैं 

आज अपनी ही परछाई से पूछ बैठे 
क्यों चलती रहती हो अपनी जिद्द में हमारे साथ 
वह मुस्कराई , तुम्हारी जिद्द के वजह से दूसरा और  है भी कौन तुम्हारे साथ ?
बात में दम था सुनकर स्तब्ध रह गए 
हमारी जिंदगी में था बड़ो का सत्कार बच्चों से प्यार 
आज अजीब दौड़ है ,सनक है जिद्द है , और है सिर्फ पैसों का व्य्वहार 
तो साथ कौन होगा ?



"मोतियों"की"तो आदत"है"बिखर"जाने की..!
ये तो बस"धागे"की"भी ज़िद"है कि,🤞
सबको"पिरोये"रखना है..!! जब तक टूट  न जाए 
"माला"की"तारीफ"तो सभी करते हैं,
क्योंकि..👌
माला में पिरोया हुआ " मोती"सबको"दिखाई"देता है..!
"काबिले"तारीफ़ तो"धागा"हैं जनाब,
"जिसने"सबको"जोड़"के रखा है .!!👍 लेकिन दिखाई नहीं देता 

है कुछ ऐसे ही अनमोल मजबूत धागे इस अदबी संगम में भी जिसने हम सबको पिरो के रखा है , कुछ दीखते है और कुछ अद्रश्य हैं 
यही जिद्द बनी रहे इन धागो की , माला के मोती भी यूँ ही जुड़े रहे, खुद भी कभी न हारें , गले का हार  जरूर बने  रहे 

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कल्लन आधी रात को सन्नाटे में अपनी शादीशुदा पड़ोसन को लेकर भागा।
दोनों ने रेलवे स्टेशन के लिए ऑटो लिया।
😘
स्टेशन पहुचने पे भाड़ा देने के लिए जैसे ही कल्लन ने अपना पर्स खोला, तो ऑटो वाले ने मना कर दिया, और बोला: -
😉
इनके पतिदेव भाड़ा पहले ही दे चुके हैं।








"उठो सुबह हो गई चाय नहीं पीनी"
  "नहीं मैंने सुबह की चाय पीनी छोड़ दी है" 
"क्यों "
"जब तुम थी तो सुबह सुबह मेरे हाथ की बनी चाय पीती थी, हम दोनों खुली छत या बरांडे में  चाय की चुस्की लेते थे, परंतु अब नहीं"
" मगर क्यों ? "
"क्योंकि वो चाय नहीं प्यार का ही एक रूप था, तुम्हारे चले जाने के बाद, अब चाय की प्याली का क्या मतलब ? "

 "अरे ये क्या तुम बिस्तर झाड़ रहे हो,चादर ठीक कर रहे हो ?" "हां कर रहा हूं "
"मेरे होने पर तो नहीं करते थे"
"तब मैं यह काम तुम्हारा समझता था,एक बेफिक्री थी । अब तुम्हारे सारे काम में खुद ही करता हूं "
"बहुत सुधर गए हो, अब क्या करोगे ?"
" टहलने जाऊंगा "
"वहीं जहां मेरे साथ कभी कभी जाते थे"
" हां वही ढूंढता हूं तुम्हें ,लेकिन तुम मिलती ही नहीं, निराश होकर लौट आता हूं "
"फिर क्या करते हो ?
"थोड़ी देर बाद नहाने चला जाता हूं "
"इतनी सुबह सुबह पहले तो तुम 12:00 बजे के बाद नहाते थे तुम्हारे साथ साथ मेरी भी तो देर से नहाने की आदत हो गई थी"
"हां मगर अब सुबह ही नहा लेता हूं"
" क्यों ?"
"क्योंकि अब जिंदगी के मायने बदल गये हैं "
" नहाने के बाद क्या करते हो ?"
" पूजा करता हूं भगवान जी और तुम्हारे फोटो के सामने अगरबत्ती जलाता हूं "
"मेरे फोटो के सामने"
" हां " 
"किस लिए  ?"
"भगवान से प्रार्थना करता हूं कि वह तुम्हारी आत्मा को शांति प्रदान करें"और हर जन्म में मुझे तुम ही पत्नी के रूप में मिलो.
 "मेरा इतना ख्याल रखते हो,"
   "इतना प्यार करते हो मुझे"
" पहले भी रखता था बस तुम समझती नहीं थी"
" मैं भी तो रखती थी तुम ही कहां समझते थे"
" हां,कह तो ठीक ही रही हो" 
"अब क्या करोगे ? "
अब योग ,प्राणायाम आदि करूंगा "
 "मेरे सामने तो नहीं करते थे"
" तब मन शांत था, अब मन को शांत करना होता है"
" चाय भी नहीं पीई, कुछ खाया भी नहीं है ,नाश्ता नहीं करोगे ?"
"हां ,10:00 बजे करूंगा"

"अरे, नाश्ते में ये क्या खा रहे हो?"
" जो बना है "
"अब फरमाइश नहीं करते"
" नही अब बहुत कम, हाँ जब कभी तुम्हारी  बनाई डिश की याद आती है तो कभी कभी मांग लेता हूं"
" अक्सर क्यों नहीं ?"
"तुमसे ही तो करता था, क्योंकि तुम पर मेरा एक विशेष अधिकार था इसलिए ,उसमें भी अधिकतर तो तुम बिना कहे ही मेरी पसंद की डिश बना लाती थी"
" तो अब कहकर बनवा लिया करो "
"जो तुम बनाती थीं वो हर कोई थोड़े ही बना सकता है ? वैसे भी मेरे स्वाद और पसंद तो तुम्हारे साथ चले गए" 
"अच्छा,अब क्या करोगे ?"
"अब 2 घंटे मोबाइल चलाऊंगा"
तुम्हारे लिए कुछ लिखूंगा
"2 घंटे ? "
"क्यों ? ऊपर जाने के बाद भी मेरे मोबाइल से तुम्हारा बैर खत्म नहीं हुआ?"
" मैं,शुरु शुरु में ही तो टोका करती थी बाद में तो टोकना बंद कर दिया था"
" हां बंद तो कर दिया था , लेकिन तुम्हारे मन में मेरा मोबाइल हमेशा सौत ही बना रहा, बस दिखावे के लिए चुप रहती थी"

 "अच्छा अब लड़ो नहीं, चलो चला लो लिख लो"

" तुम तो 2 घण्टे से भी ज्यादा देर तक चलाते रहे "*
"हां ,तुम टोकने वाली नहीं थी ना" 
"अच्छा,अब भी उलाहना ,अब क्या करोगे ?"
" अब आंखें थक गई हैं थोड़ी देर आंखों को आराम दूंगा, आंख बंद करके लेटूंगा ।"
" अच्छा है आराम कर लो"

"अरे सोते ही रहोगे 2:30 बज गए तुम्हारा खाने का टाइम तो 12:00 बजे का है उठो खाना खा लो "
"अच्छा क्या बना है ?"
"पता नहीं "
"देखता हूं "
"यह सब्जी, यह तो तुम्हें बिल्कुल पसन्द नही थी "
"लेकिन ,अब पसन्द है "
" कैसे ?"
"क्योंकि जब तुम थी तो मुझे चैलेंज करती थी ना कि मैं ही हूं जो तुम्हारे सारे नखरे बर्दाश्त करती हूं ,मैं चली जाऊंगी तब पता चलेगा "
" अब तुम चली गई अपने साथ-साथ मेरे सारे नखरे और तुनक मिजाजी भी ले गई,अब तो मैं तुम्हारे सारे चैलेंज स्वीकार कर चुका हूं" 
"बहुत बदल गए हो
" गलत ,बदल नहीं गया हूं, असल में जो मैं था वह तो तुम साथ ले गई ,अब तो बस शरीर है सांसे चल रही है ,कब तक चलेंगी,पता नहीं "

"अरे देखो तुम्हारी कामवाली ने तुम्हारी पसंद का लाफिंग बुद्धा तोड़ दिया"
" टूट जाने दो "
"अरे,तुम्हें गुस्सा नहीं आया"
" नहीं अब मुझे गुस्सा नहीं आता"
" क्यों ?"
" क्योंकि गुस्सा तो अपनों पर आता है, तुम तोड़ती तो जरूर आता, इस पर कैसा गुस्सा ?"
" काश ! तुम मेरे होते हुए भी ऐसे ही होते हैं ?"
"हां, मैं भी यही सोचता हूं कि मैं तुम्हारे होते हुए ऐसा क्यों नहीं था ? क्यों हमने जिंदगी के कितने ही अमूल्य पल नोकझोंक अपने ईगो में गंवा दिए ?"

" मुझे याद करते हो ?"
" भूलता ही नहीं,तो याद करने की बात कहां से आ गई, हर समय मेरे चारों ओर जो घूमती रहती हो, "

" रात हो गयी है, चलो अब सो जाओ तुम्हारे सोने का समय हो गया है,"
" अच्छा ठीक है "
 "अरे ! सोते-सोते उठ कर कहां जा रहे हो ?"
"टीवी बंद कर दूँ ,अब तुम तो हो नहीं जो मेरे सोने के बाद बंद कर दोगी "
"मैं तो अब चाह कर भी तुम्हारी मदद नहीं कर सकती, तुम्हें छू भी नहीं सकती । चलो, दूर से ही थपकी देकर सुला देती हूँ "
 "चलो सुला दो, अब सो ही जाता हूं ...."

अगर इस कहानी का एक भी शब्द आपके मन को छुआ है अगर आंखे थोड़ी भी नम हुई हैं,तो अभी सही समय है अपने जीवनसाथी से क्षमा मांगने का अगर आप भी उस पर बात बात गुस्सा करते हैं, गले लगिए और मांग लीजिए अपनी हर गलती के लिए उससे माफी उसके जीते जी उसे बता दीजिए आप उससे कितना प्यार करते हैं,क्योंकि बो भी आपसे असीम प्रेम करती है😢😢

























Monday, April 29, 2024

Adabi Sangam ---Meeting -525-- Topic दिल दौलत और दुनिया

 Adabi Sangam ---Meeting -525--  Topic       

दिल दौलत और दुनिया 


AS meeting # 525
Host: Chopras
Date/Time: Sept 30, 5 PM to 10 PM
Venue: Dilbar 248-08 Union Turnpike Bellerose NY 11426
Story: Sangeeta ji
Part 1: Rajinder ji
Part 2: Rajni ji
Topic: Dil Daulat Duniya
दिल दौलत दुनिया


दिल दौलत और दुनिया ------

करनी थी दुनिया मुट्ठी में , दिल ने कहा फिर उठ
रेस लगा , सबको पीछे छोड़ सिर्फ दौलत कमा

रिश्तों का क्या ? दौलत होगी तो यह भी होंगे
दुनिया तब भी हंसती थी जब मैं कंगाल था

दुनिया फिर से हंसी जब मैं मालामाल था
क्योंकि अब पैसों से नहीं रिश्तों में कंगाल था

इस दिल अते दौलत दी जंग विच दुनिया तमाशा वेखे
इक कवेः मेरे बिन तु इक पल वी जिन्दा नहीं
दूजा कवेः न होवां जे मैं तेरे कोल , 
तू दुनिया विच केडे लेखे ?

दिल ने किहा मैं तां तेरी जान हाँ , मेरी कदर कीता कर
अपने दौलत दे नशे विच मेरी जिंदगी मुहाल न कीता कर 

 ,तेरे ( दौलत )करके इंसान वि शैतान बन जाउँदा है
खाण पीन दी बदपरहेजी कर के, मैनु दुःख देंदा हैं 
न टाइम खान दा  न टाइम नाल  सौंन दा 
बीमार हो के मंजी ते पै जाउँदा है,
मेरा कसूर की ? जो हर थां मेनू वि घसीट ले जाउँदा  हैं 

तां की होया , तनु घुमाऊँदा हाँ ,नवीं नवीं थावां विखांदा हां 
बीमार पैन मगरों ,इलाज वि ते मैं ही कराउँदा हाँ

इना गरूर कादा है वे तेनू , तेरी औकात ही की है ? 
मैं तां तेरी कंगाली विच बाहला खुश सीगा , न कोई रोग न कोई पछतावा 

मैं दिल हाँ ,सिर्फ बेवफाई च बर्बाद हो जांदा हाँ ऐब च नहीं 
पर दौलत ,तेरी तां फितरत ही बेवफाई है

आज ईदे कोल ते कल उदे कोल
तेरा की दीन ते, की तेरा ईमान

जिदे कोल नहीं तूं ,ओ वि परेशांन
हैं जिदे कोल तूँ , संदूक भर भर के ,
है रेह्न्दा ओ वी परेशान

गरूर था दौलत को भी अपनी ताकत पर  ,  ,अरे छोटे भाई रुको जरा ,बहुत हो गया ,तेरा भाषण , वह भी बीच में कूद पड़ा 
अब तुझे मैं हिंदी में समझाता हूँ, यह जो इंसान है न उसका 
  दिल  ,बिना दौलत , खुश कभी रहता नहीं
उसी ख़ुशी के लिए ,इन्सान कभी इंसान बन पाता नहीं ,
इसमें मैंने क्या किया ? 

हवस क्यों थी मुझे पाने की ?
मैं तो एक साधन हु सुख का , कोई इससे दुःख खरीदे तो ? 
मुझ पे दोष क्यों ?

 -दुनिया का दस्तूर है, यहाँ दौलत और शौहरत का जोर है ज्ञान का नहीं
अगर पास दौलत नहीं , कोई इज़्ज़त भी करे , जरूरी नहीं

, कन्नी काटने लगते है लोग ,मुफलिसी में ,
दुनिया दिल की नहीं दौलत की ग्राहक है

उस  ज्ञानी के ज्ञान का क्या मायने , मुफ्त के स्कूल मुफ्त की शिक्षा 
जिसे मुफ्त में भी कोई लेता नहीं ?

मेरा वजूद मेरी पहचान खुद लोग हैं ,
मेरी खातिर लोग खून कर देते है इक दूजे का
कभी शरीर का और कभी आत्मा का।
यह सब उनके संस्कार है , मेरा क्या दोष ?

हे दिल तेरा क्या तू तो किसी पे भी आ के टूट जाता है, बात बात पे रोने लगता है 
कभी प्यार में ,कभी व्यपार में ,और कभी रक्त चाप के वार में

बदले में क्या मिलता है तुझे ? हस्पताल में तमाम जिंदगी ,सिसकियाँ ही तो पाता है
और मैं दौलत हूँ ,तेरा साथ वहां भी देती हूँ ,

हाँ लेकिन मैं सिर्फ वहां होती हूँ जहाँ ,औकात होती है
बड़े बड़े लोगो को अपने आगे झुका लेती हूँ 

घमंड न कर अपनी औकात पे ऐ दौलत , तेरा तो एक ही काम है
लोगों को लड़वाना और एक दुसरे से दूर कर देना

हमारी "ज़िन्दगी में अगर
"बुरा"वक़्त आता नहीं""तो..? 🤞 किसी के दिल में क्या है
दौलत की अहमियत , दुनिया की असलियत
भला कैसे जान पाता कोई?

बस इक यही बात तेरी खासम खास है, जहाँ तू है वहीँ बवाल है 
तेरे लिए बाबा धर्म छोड़ दे , सन्यासी करम छोड़ दे , औलाद माँ बाप को 
और पत्नी पति को , मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों में संग्राम करा दे ? बस या कुछ और भी सचाई बताऊँ ?


इस दौलत और शोहरत की जंग की खासियत तो देखो
शराब से ज्यादा इसमें सरूर , दिमाग में इसका फितूर
किसी का नही बनता है दौलतमंद , खुद भी नहीं रहता है सेहतमंद 


"अपनों के दिलों "में छुपे हुए"गैर",
और...👌
"गैरों"में छुपे हुए"अपने",उसे
"कभी"भी"नज़र"नहीं"आते"
अगर दौलत का यह चश्मा न होता ,
उसका दिल यूँ पत्थर न होता

क्या दिन थे वह भी , जब जेबें खाली , दिल में तमाम हसरते
रिश्तेदार भी आ टपकते थे प्यार में , बिन बताये बारिश की तरह

बहुत जुड़ाव हुआ करता था दिलों में
कितनी बेसब्री हुआ करती थी मिलने की

दौलत क्या आई ,दुनिया के ,सारे कायदे कानून बदल गए ,
चाहत भी गई , वो घरों में रिश्तों की चहल पहल भी गई

मकान तो है आलिशान ,लेकिन  दिल बना है शमशान ,
अमीर है मालिक घर का , लेकिन एकांत से है परेशांन ,

हमारा दिल तो आज भी वहिः है , बेशक
मगर दुनिया की , रईसी के मायने बदल गए

कोई मिलना भी चाहे तो , अब मिलने का वो वक्त नहीं ?
घडी का एक एक पल लाखों में बिकता है रईसों की दुनिया में

मिलने का वक्त देते है बड़ी कंजूसी से , खुद के एक पल का पता नहीं
घर के बाशिंदे भी उन्हें अब तो मुसाफिर से लगने लगे है ,

जो दिन चढ़ते ही निकल जाएंगे
यहाँ उनका दिल नहीं , सिर्फ ख्याल  बसते हैं

न मालूम कब किसी का फ़ोन आये और बिन बताये उठ कर चल दे ,
फ़ोन दोस्त का हो या दुश्मन का या क्या पता यमराज की अर्जेंट कॉल हो ?

हाथ में है मोबाइल , उसी में है उनकी दुनिया और दौलत का लेखा झोका
पर उनकी दुनिया ही अलग है , रिश्तेदार भी अलग ,
माँ बाप का भी दुःख बाँट सके इतना भी वक्त नहीं

गए थे दोस्त से मिलने के दिल से दिल की बात होगी
मगर दोस्त वहां भी अपनी दौलत की चमक दिखाने लगे

यह देख मेरी नई कोठी नई कार ,
पर भाभी और बेटी नहीं दिखाई दे रही ?

अब नहीं मुझे पुराणी चीज़ें से प्यार
धक्का लगा सुन के दोस्त के मुहं से  दौलत की जुबान

बनी नहीं सो छोड़ दिया ? पर वह तो तेरी गरीबी की एकलौती साथी थी ? 
यार छोड़ ये सब पुरानी कहानी , आ तुझे  एक नई स्कॉच टेस्ट करवाता हूँ 

झूठ बोल  मेरा आज उपवास है , 
भारी मन से दौलत के नशे में चूर उस दोस्त से दूर भाग गया 


कभी ज्ञानी लोग नेक सलाह दिया करते थे
गर दौलतमंद रिस्तेदार और मित्र"सुखी"हो तो,🤞
बिना"निमंत्रण"के उनके"पास"कभी न"जाए"..!
आज महसूस हुआ वह ठीक कहते थे

🌞मैं सोचने लगा , कैसे गिरगिट है दुनिया में, उसी पत्नी को छोड़ दिया जिसने उसकी कंगाली में खुद नौकरी की और घर संभाला ?

समय पुराना था...उसकी जेब में न पैसे होते थे , ना भर पेट रोटी ?
तन ढँकने को काफ़ी कपड़े भी न थे,

मुहं फेर के निकल लेते थे सब , फ़ोन भी कभी उठाते न थे लेंन दारों के
आज इनका अहंकार तो देखो, दौलत शोहरत के आते ही परिवार ही तोड़ लिया ?


🩸 समय पुराना था, दौलत का अकाल था
आवागमन के साधन कम थे।
फिर भी लोग परिजनों से जैसे भी हो जाकर
मिला करते थे ...!दूरियां नहीं बनने देते थे

आज आवागमन के
साधनों की भरमार है।खड़ी घरों में कारें चार चार है
फिर भी लोग न मिलने के
बहाने बनाते हैं ।आज गाड़ी ख़राब है , गाड़ी पति ले गये है , ट्रैफिक में फँसा हूँ , बारिश का पानी भरा है , गोया मजबूर हूँ ---------- क्योंकि
हमारा समाज सभ्य और अहसान फरामोश जो हो गया हैं ।

🩸 समय थोड़ा और पुराना था
घर की बेटी,
पूरे गाँव की बेटी होती थी।
आज की बेटी पड़ोसी से ही
असुरक्षित हैं ...! क्योंकि
समाज सभ्य और दौलतमंद जो हो गया हैं !

🩸 समय इससे भी थोड़ा और पुराना था,
लोग नगर-मोहल्ले के बुजुर्गों के घर घर जाकर
उनका हालचाल पूछते थे ...!
आज घर में बुजुर्ग माँ-बाप तक को उनकी दौलत छीनकर घर से निकाल
वृद्धाश्रम में डाल देते हैं ।
क्योंकि समाज सभ्य और दौलतपसंद  जो हो गया हैं ।

🩸 समय और भी पुराना था,
खिलौनों की कमी थी ।
फिर भी मोहल्ले भर के बच्चों
के साथ खेला करते थे ...!खूब ख़ुशी मिलती थी
आज खिलौनों की भरमार है,
पर बच्चे मोबाइल की जकड़
में बंद हैं ...!! खिलोने भी लाचार और उदास कूड़े में पड़े हैं
क्योंकि समाज सभ्य और दौलतमंद जो हो गया हैं ।


🩸 समय थोड़ा और पुराना था,
गली-मोहल्ले के पशुओं , दर पे आये भिखारी
तक को रोटी दी जाती थी ...!अन्न जाया करना ईश्वर का अपमान था
आज पड़ोसी के बच्चे भी
भूखे सो जाते हैं ...!!और खाना गार्बेज में
क्योंकि समाज सभ्य और दौलतमंद जो हो गया हैं ।


🩸 मेरा समय भी पुराना था,
पड़ोसी के घर मे बिन बुलाय चले जाते थे
रिश्तेदार का भी पूरा ,परिचय पूछ लेते थे ...!
आज तो पड़ोसी का नाम
तक नहीं जानते ...!!
क्योंकि समाज सभ्य और दौलतमंद जो हो गया हैं ।


शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचने का ख़्वाब हर कोई देखता है लेकिन वो एक ऐसी जगह है जहां पहुंचने के बाद बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अपने आप को संतुलित रख पाते हैं। 

दौलत शोहरत आनी जानी फिर इस पर इतराना क्या
पानी पर ये नाम लिखा है ,किसी पल में डूब जाना है
!

बड़ा पेचीदा काम दे दिया,
किस्मत ने मुझे !
बोलती है...तुम अमीर हो 
तुम तो सबके बन चुके हाे,
अब ढूंढो उनको जो...तुम्हारे है..!!

मैंने कहा , तूने बिलकुल सही कहा
-बीतता वक़्त है, लेकिन !*
ख़र्च, हम हो जाते हैं..!!
कैसे "नादान"है हम
दुःख आता है तो,"अटक" जाते है, औऱ सुख आता है तो, "भटक" जाते हैं।


बहुत"फर्क"होता है,🤞
"मजे"और"आनंद"मे..!
"मजे"के लिए"पैंसो"की"जरुरत" होती है..!
और..👌
"आनंद"के लिए सिर्फ"दिल ,परिवार"और"मित्र".


नई नई आँखें ( दौलत )हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है
कुछ दिन दुनिया घूमे लेकिन अब घर अच्छा लगता है

दौलत आई तो पाँव जमीन से उखड गए ,
हवा में, अकड़ में गुजरी जिंदगी

हम ने भी सो कर देखा है हर नए पुराने शहरों में
जैसा भी है अपने घर का गरीब सा बिस्तर अब अच्छा लगता है


एक दिन ऐसे ही खली हाथ निकल लेंगे , सबसे ज्यादा रोयेगा मेरी नाक पे टिका 
सिर्फ मेरा चश्मा , बहुत साथ निभाया है इसने मेरा

खो जाएगा उसका चेहरा भी , जिसकी पहचान ही हमसे थी
अपनी कमानियों से ब्रह्माण्ड को जैसे-तैसे थामे, हमें दुनिया दिखाया करता था
वह भी चिपटा रहेगा हमसे , हमारी चिता के जलने  तक 
मगर बेचारा जो देखेगा वो बताएगा किसे ?

दिल दौलत और दुनिया से ऊपर हमारा मन है जिसे आत्मा भी कहते हैं
मन एक ऐसा शब्द है जिसके आगे ‘न’ लगने पर यह नमन हो जाता है

और पीछे ‘न’ लगने पर यह मनन हो जाता है!!
इसलिए जीवन में नमन और मनन करते रहिए!!

दिल टूट जाएगा , दौलत लुट जाएगी  , दुनिया का साथ छूट जाएगा
बचेगा तेरा "सिर्फ कर्म" जो तेरे और तेरे परिवार के काम आएगा
बाकी लिख के रख ले , सब व्यर्थ जाएगा



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.     मैं आपका चेहरा याद रखना चाहता हूं

जब एक इंटरव्यू में नाइजीरियन अरबपति फेमी ओटेडोला से पूछा गया कि:
"सर आपको क्या याद है कि आपको जीवन में सबसे अधिक खुशी कब मिली"?

 फेमी ने कहा:
 "मैं जीवन में खुशी के चार चरणों से गुजरा हूं, और

 आखिरकार मुझे सच्चे सुख का अर्थ समझ में आया।"

 ~ पहला चरण धन और साधन संचय करना था। 
 लेकिन इस स्तर पर मुझे वह सुख नहीं मिला जो मैं चाहता था।

~ फिर क़ीमती सामान और वस्तुओं को इकट्ठा करने का दूसरा चरण आया।

 लेकिन मैंने महसूस किया कि इस चीज का असर भी अस्थायी होता है और कीमती चीजों की चमक ज्यादा देर तक नहीं रहती।

~ फिर आया बड़ा प्रोजेक्ट मिलने का तीसरा चरण।  वह तब था जब नाइजीरिया और अफ्रीका में डीजल की आपूर्ति का 95% मेरे पास था।

  मैं अफ्रीका और एशिया में सबसे बड़ा पोत मालिक भी था।  लेकिन यहां भी मुझे वो खुशी नहीं मिली जिसकी मैंने कल्पना की थी.

~ चौथा चरण वह समय था जब मेरे एक मित्र ने मुझे कुछ विकलांग बच्चों के लिए व्हीलचेयर खरीदने के लिए कहा।

 लगभग 200 बच्चे।

 दोस्त के कहने पर मैंने तुरंत 200 व्हीलचेयर खरीद ली।
 लेकिन दोस्त ने जिद की कि मैं उसके साथ जाऊं और बच्चों को अपने हाथों ही व्हीलचेयर सौंप दूं।
मैं तैयार होकर उसके साथ चल दिया।

 वहाँ मैंने इन बच्चों को अपने हाथों से ये व्हील चेयर दी।  मैंने इन बच्चों के चेहरों पर खुशी की अजीब सी चमक देखी।

 मैंने उन सभी को व्हीलचेयर पर बैठे, घूमते और मस्ती करते देखा।

 यह ऐसा था जैसे वे किसी पिकनिक स्पॉट पर पहुंच गए हों, जहां वे जैकपॉट जीतकर आपस में शेयर कर रहे हों।

मुझे अपने अंदर तक असली खुशी महसूस हुई। जब मैं वापिस जाने लगा, तो उनमें से एक विकलांग बच्चे ने मेरी टांग पकड़ ली।

मैंने धीरे से अपने पैरों को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन बच्चे ने मेरे चेहरे को देखा और मेरे पैरों को और कस कर पकड़ लिया।

 मैं झुक गया और बच्चे से पूछा: क्या तुम्हें कुछ और चाहिए?

 इस बच्चे ने मुझे जो जवाब दिया, उसने मुझे न केवल अन्दर तक झकझोर दिया बल्कि जीवन के प्रति मेरे दृष्टिकोण को भी पूरी तरह से बदल दिया।
खुशी वस्तुओं में नहीं, बल्कि भावनाओ में है ।

उस बच्चे ने कहा:
"सर मैं आपका चेहरा हमेशा याद रखना चाहता हूं ताकि जब मैं आपसे स्वर्ग में मिलूं, तो मैं आपको पहचान सकूं और एक बार फिर से आपका धन्यवाद कर सकूं।"

उपरोक्त शानदार कहानी का मर्म यही है कि हम सभी को अपने अंतर्मन में झांकना चाहिए और यह मनन अवश्य करना चाहिए कि, इस जीवन और संसार और सारी सांसारिक गतिविधियों को छोड़ने के बाद आपको किस बात लिए याद किया जाएगा? 

क्या कोई आपका चेहरा भी फिर से देखना चाहेगा?



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कैसी ज़िन्दगी जिए
अपने ही में गुत्थी रहे
कभी बन्द हुए कभी खुले
कभी तमतमाए और दहाड़ने लगे
कभी म्याउँ बोले
कभी हँसे, दुत्कारी हुई ख़ुशामदी हँसी
अक्सर रहे ख़ामोश ही
अपने बैठने के लिए जगह तलाशते घबराए हुए

अकेले
एक ठसाठस भरे दृश्यागार में
देखने गए थे
पर सोचते ही रहे कि दिखे भी
कैसी निकम्मीं ज़िन्दगी जिए।

हवा तो खैर भरी ही है कुलीन केशों की गन्ध से
इस ऊष्म वसन्त में
मगर कहाँ जागता है एक भी शुभ विचार
खरखराते पत्तों में कोंपलों की ओट में
पूछते हैं पिछले दंगों में क़त्ल कर डाले गए लोग
अब तक जारी इस पशुता का अर्थ
कुछ भी नहीं किया गया
थोड़ा बहुत लज्जित होने के सिवा

प्यार एक खोई हुई ज़रूरी चिट्ठी
जिसे ढूँढ़ते हुए उधेड़ दिया पूरा घर
फुरसत के दुर्लभ दिन में
विस्मृति क्षुब्धता का जघन्यतम हथियार
मूठ तक हृदय में धँसा हुआ
पछतावा!




उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ

ढलती न थी किसी भी जतन से शब-ए-फ़िराक़
ऐ मर्ग-ए-ना-गहाँ तिरा आना बहुत हुआ

हम ख़ुल्द से निकल तो गए हैं पर ऐ ख़ुदा
इतने से वाक़िए का फ़साना बहुत हुआ

अब हम हैं और सारे ज़माने की दुश्मनी
उस से ज़रा सा रब्त बढ़ाना बहुत हुआ

अब क्यूँ न ज़िंदगी पे मोहब्बत को वार दें
इस आशिक़ी में जान से जाना बहुत हुआ

अब तक तो दिल का दिल से तआ'रुफ़ न हो सका
माना कि उस से मिलना मिलाना बहुत हुआ

क्या क्या न हम ख़राब हुए हैं मगर ये दिल
ऐ याद-ए-यार तेरा ठिकाना बहुत हुआ

कहता था नासेहों से मिरे मुँह न आइयो
फिर क्या था एक हू का बहाना बहुत हुआ

लो फिर तिरे लबों पे उसी बेवफ़ा का ज़िक्र
अहमद-'फ़राज़' तुझ से कहा ना बहुत हुआ


कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ
पहन लेता हूँ जब दस्तार तो सर भूल जाता हूँ

वगर्ना तो मुझे सब याद रहता है सिवा इस के
कहाँ हूँ कौन हूँ क्यूँ हूँ मैं अक्सर भूल जाता हूँ

मिरे इस हाल से गुमराह हो जाते हैं रहबर भी
मैं अक्सर रास्ते में अपना ही घर भूल जाता हूँ

दिखाता फिर रहा हूँ सब को अपने ज़ख़्म-ए-सर लेकिन
मिरे हाथों में भी है एक पत्थर भूल जाता हूँ

निकल जाता हूँ ख़ुद अपने हिसार-ए-ज़ात से बाहर
मैं अक्सर पाँव फैलाने में चादर भूल जाता हूँ

कभी जब सोचने लगता हूँ पस-ए-मंज़र के बारे में
तो मेरे सामने हो कोई मंज़र भूल जाता हूँ

कभी तो इतना बढ़ जाती है मेरी प्यास की शिद्दत
मिरे चारों तरफ़ है इक समुंदर भूल जाता हूँ


















30 -3-2024 ------ #529 ***** ADABI SNGAM MEET NO. 529 TOPIC "BAARISH KI BOONDEY"--HOSTED BY DR SETHI FAMILY IN CONNECTICUT



ADABI SNGAM MEET NO. 529
TOPIC  "BAARISH KI BOONDEY"

30 -3-2024 ------ #529   ***** ADABI SNGAM MEET NO. 529 TOPIC  "BAARISH KI BOONDEY"--HOSTED BY DR SETHI FAMILY IN CONNECTICUT 



सूरज से छिटका धुल का एक गुबार ही तो था
तीव्र गति से घूमता बेलगाम लावा सोर मंडल में
कैसे कोई बुझा कर , करता शांत इसे
 कैसे 
फिर यह उड़ती धुल , बन जाती धरा ? अगर इन बूंदों की बरसात न होती

धूल भौतिक, रासायनिक और जैविक कारकों के प्रभाव से ठोस मिट्टी में परिवर्तित होती है। उन सबके लिए दरकार  होती है पानी की जो इन धूल के छोटे-छोटे कणों को बाँध कर मिटटी का रूप दे सके , जिसे अपक्षय कहते हैं। इस प्रक्रिया के द्वारा धूल धीरे-धीरे मिट्टी में बदल जाती है।


बारिश  में निहित है  , सार जीवन का 
यह  पानी नहीं , आधार है जीवन का 


कैसे मिटती भूख और प्यास दुनिया की  
न  होती  ,कोई बिसात हमारी 
अगर इन बूंदों की बरसात न होती

खेत में गिरती एक बूंद, अनाज का दाना बने,
गंगा में मिलती हर एक बूंद, गंगाजल बने 

नदियों में गिरे तो यह, विशाल धारा बने ,
सागर में गिरे बूंद बूंद, तो महासागर  बने 

 धरती हरियाली से ,फिर कैसे सजती,  
अगर बूंदों की यह सौगात न बरसती 


सीप में गिरे एक बूँद , तो मोती बन जाए
आँखों से टपकी बूँद   ,  आंसू कहलाये 
 
हलक में जो अटकी हो जान 
यही एक बूँद  ,मोक्ष बन जाए 

छाता लगा के डगमगाते  क्यों हो 
बारिश से खुद को बचाते  क्यों हो 

भीगने से तो शायद बच भी जाओ , 
डूबने से बच न पाओगे 
डुबाने वाला पानी,सिर से नहीं
पैरों की तरफ से आएगा ,

फायदा उठाना सीखिए हज़ूर
नायाब बूंदो को संजो लीजिये जरूर 
लौटा दीजिये वापिस  प्यासी धरती माँ को
सूद समेत  पुराना ,कर्ज समझ कर 

तुम्हारी नस्लों के ही काम आएंगे यह ख़ज़ाने , 
 गर्मी से प्यासी धरती ,न दे पाएगी तुम्हे दाने 
जब  बूंदो की बरसात न होगी


आते है पानी लेकर घनघोर बादल निरंतर
धरती पुत्र किसानो की ख़ुशी के लिए ,पर
धो देते हैं सालों से जमी धुल और गन्दगी ,

हर मकान हर दुकान हर सड़क और गली गली
कैसा आलम दीखता इस धरती पर ?
अगर इन बूंदों की बरसात न होती 

 
 बारिश की बूंदे हर गन्दगी को तो बहा ले गई ईश्वर 
कुछ बूंदे तेरी कृपा से इंसानो के दिलो पर भी बरस जाती
बहुत छल कपट का मैल जमा है ,वोह भी धुल जाती 

 कितनी 
 व्यथा  झलकती है      बारिश की बूंदों में , ,
 सहते सहते जिसे हम ,अक्सर खुद भी भीग जाते हैं।


मौसम-ए-बारिश में कुछ कशिश सी  होती है,
अकेले होते ही   , 
 गुजरे ज़माने का 
, हर पल ले कर कुछ यादें ,लौटने लगता है 
कुछ  पलों में  ख़ुशी , कुछ में टीस होती है 


मेरे शहर में भी थी , इक कच्ची सी पगडंडी अपनी।
बारिश जितनी भी हो जाए , मेरे घर का पता वही बताती थी

शहर की बारिशों का तो आलम ही निराला है
एक बारिश  हुई ,सड़कों पर लग जाता जाम बहुत है।।
 
थोड़े मेघा बरसे , सड़को पे बाढ़ का आयाम बहुत है
इंसानियत से ज्यादा ऊंचाई है यहाँ मकानों की
तभी तो जिंदगी की भाग दौड़ में मर जाना
यहाँ आम बहुत है


कौन सुनेगा तुम्हारी बरसात और पतझड़ की कहानी
फुर्र हो गई फुर्सत अब तो। ,सबके पास काम बहुत है।।

नहीं जरूरत उन्हें बुजर्गो  के ज्ञान की अब।,हर बच्चा बुद्धिमान बहुत है।।
उजड़ गए सब बाग बगीचे।नहीं संजोता कोई ,बूंदों की बारिश को
बालकनी में रखे दो गमलों से ही , उनकी शान बहुत है।।

मट्ठा, दही नहीं खाते हैं।कहते हैं बारिश हुई है ,ज़ुकाम बहुत है।।
खाते है जब गर्म  चाय और पकोड़े ,  एक पेग रम का !तब कहीं। 
कहते हैं ,आह ----अब आराम बहुत है।।


हाथ में फ़ोन है , और फोनों पर व्हाट्सअप के पैगाम बहुत है।।
किसे पढ़े? किसे मिटायें ,
और किसे छोड़ें ,  किसे अपनाएँ ? ?
मुश्किल बड़ा यह काम बहुत है

आलस का आलम तो देखो
आदी हैं ए.सी. के इतने। 
मानसून की बारिश को घूमस कहते है ( humidity )
बाहर जाने को कहो तो कहते बाहर घाम बहुत है।।( धुप )

नहीं खेलते बच्चे भी अब इस बारिश में 
झुके-थके  हैं स्कूली बच्चे।बस्तों में सामान बहुत है।।
सुविधाओं का ढेर लगा है हर घर में ।
पर बचपन परेशान बहुत है।।

 वक्त बदला  , इक पल में सब कुछ खुल जाता है
क्यों पूछेगा कुछ भी कोई हमसे ? 
हर कोई बन जाता  है, परम ज्ञानी 
अपना गूगल बाबा विद्द्वान बहुत है

न रुकी वक़्त की गर्दिश, न ज़माना बदला , 
दिन रात  करते खिलवाड़ खुद से 
क्योंकि काम में पैसे का इनाम बहुत है 


बारिश का मौसम, प्यार, रोमांस, और संवेदनाओं का समय होता है,
प्यार पाने वाले, बारिश का मजा लेते हैं,
और जिन्हें प्यार नहीं मिलता, वे अपने आंसू,
बारिश की बूंदों में छुपा के जिया करते हैं


मेरी पलकों के कोनों में भी है ,
फ्रेंचाइजी एक बादलों की  
होती  बरसात वहां से भी , कभी जब  जिंदगी उदास  होती है

दोस्त बोले आँखों में पानी ? रो रहे हो क्या ?
जिसे हम यह कह के टाल जाते हैं के नहीं नहीं
आंखों में शायद कैटरेक्ट उभर आया है

हमारे दिलों में आज इतना खौफ क्यों है बारिश से ,
पहली फुहार में ही खिड़की बंद करने लगते है ?

नहीं चाहिए किसी को कुदरत की कोई भी सौगात
न ही बूंदो से धूलि ताज़ी हवा ,न ही ठंडी ओलों की बरसात

खिड़की खोल के देखना भी गवारा नहीं उन्हें 
जहाँ ,बरसती प्राकृतिक छठा  बेशुमार बहुत है

दिल ने समझाया , मुस्कुराया करो 
लोग देख रहे है , 
बादल जितने भी गरजे आकाश में 
आँखों में यूँ बरसात लाया न करो 


बारिश इसलिए गिरती है क्योंकि बादल उसके वजन को अधिक समय तक नहीं झेल सकते। आंसू इसलिए गिरते हैं क्योंकि दिल और आँखें उससे अधिक दुःख का बोझ नहीं सह पाते।

प्रश्नपत्र है जिंदगी
जस का तस स्वीकार्य ...
कुछ भी वैकल्पिक नहीं
सबका सब अनिवार्य ...

अब क्या बताऊँ आपको , क्या छुपाऊँ आपसे
स्याही का एक दाग है गहरा सा , मेरे दिल में,भी
जो आज तक धुल न सका ,
किसी भी घनघोर ,बूंदो की बरसात में





तभी हमारी आत्मा में शांति की बरसात होती है 
********************************************************************************************



किसने देखा है बादलों में छुपी बूंदों को और किसने देखा है 

बुराई या "आलोचना"मे"छुपा"हुआ"सत्य".!. 
 और... 🤞
 झूटी "प्रशंसा"मे"छिपा"हुआ"झूठ"..!! 
 अगर.. 👌
 मनुष्य"समझ"जाये तो, 
 सभी"समस्या"अपने आप"सुलझ" जायेगी..!!! तभी हम सबको इन बूंदों में छुपी बरसात समझ आएगी 




बारिश की ये बूंदें, जैसे नभ की पायल,
छम छम करती आईं, धरती की आंचल में समायल।
हरियाली की चादर पे, जब ये बूंदें गिरती हैं,
कुदरत का हर कोना, खुशियों से भरती हैं।

मिट्टी की सोंधी खुशबू, बारिश की ये बूंदें लाई,
जीवन में नई उमंग, नई तरंग जगाई।
पेड़ों की पत्तियों पर, जब ये मोती सा चमके,
मन का कोई कोना, अनछुआ ना रह जाए।

बारिश की ये बूंदें, जैसे संगीत का साज,
टप टप गिरती जब, लगे जीवन में आज।
बूंदों का ये खेल, जीवन की राह में,
प्रेम की भाषा लिखती, बिन कहे, बिन साज।

इन बूंदों में है जीवन, इनमें है जग का प्यार,
बारिश की ये बूंदें, बन जाती हर दिल का हकदार।
आओ मिलकर करें वर्षा का स्वागत,
इन बूंदों के संग, जीवन का हर पल हो खास।


बारिश की बूंदों पे एक कविता:

बारिश की ये छोटी बूंदें, आसमान से आई हैं,
धरती की प्यासी गोद में, खुशियों की बरसात लाई हैं।
इन बूंदों की चपचप, छत पे जब गिरती है,
मन के सारे गमों को, ये धीरे से हरती है।

गलियों में बच्चे नाचे, कागज की नाव चलाई है,
बारिश की इन बूंदों ने, जैसे जीवन में रंग भराई है।
खेतों में हरियाली छाई, किसान की मुस्कान बढ़ाई है,
बारिश की इन बूंदों ने, सबके दिलों को भाई है।

छतरी ताने लोग चलें, बूंदों से बचते बचते,
फिर भी गीले हो जाएँ, बारिश के मजे लेते लेते।
चाय की चुस्कियों के साथ, पकोड़ों की बात निराली है,
बारिश की इन बूंदों की, अपनी ही एक खुशहाली है।

तो आइए, बारिश की इन बूंदों का जश्न मनाएं,
इनके संग अपने दिल की खुशियाँ भी बहाएं।
ये बूंदें जो आसमान से आई हैं,
धरती की प्यासी गोद में, खुशियों की बरसात लाई हैं।बारिश की बूंदें, गिरी झर-झर,
धरती की प्यास बुझाने को तरसती हर बरस।
छत पे टपके, ये बूंदें बन जाती संगीत,
बच्चों की हंसी, फूलों की खुशबू, बन जाती जीवन की रीत।

गलियों में बहती, ये बूंदें लेती अंगड़ाई,
बदल देती हैं मौसम की सारी तन्हाई।
कागज की नाव, बच्चे चलाते बारिश में,
खुशियों की बारात, लेकर आती हर बारिश में।

पेड़ों की पत्तियों पर ठहरी ये बूंदें,
जैसे नगीने चमकते हों रात की चांदनी में।
बारिश की ये बूंदें, जब धरती से मिल जाती हैं,
जीवन की एक नई कहानी रच जाती हैं।

तो आइए, संग बारिश का जश्न मनाएं,
इन बूंदों के साथ अपने दिल की बात गाएं।
बारिश की बूंदें, ना सिर्फ पानी हैं,
ये तो खुशियों की अनमोल कहानी हैं।



बारिश की ये नन्हीं बूंदें, आसमान से आई हैं,
धरती की प्यासी गोद में, खुशियों की बरसात लाई हैं।
इन बूंदों की चपचप, छत पर जब गिरती है,
मन के सारे गमों को, यह धीरे से हर लेती है।

गलियों में बच्चे नाचते, कागज की नाव चलाते हैं,
बारिश की इन बूंदों ने, जीवन में रंग भर दिए हैं।
खेतों में हरियाली छाई, किसान की मुस्कान बढ़ी है,
बारिश की इन बूंदों ने, सबके दिलों को छू लिया है।

छतरी ताने लोग चलते, बूंदों से बचते-बचते,
फिर भी गीले हो जाते, बारिश के मजे लेते-लेते।
चाय की चुस्कियों के साथ, पकोड़ों की बात अनोखी है,
बारिश की इन बूंदों की, अपनी ही एक खुशहाली है।

आइए, बारिश की इन बूंदों का जश्न मनाएं,
इनके संग अपने दिल की खुशियां भी बहाएं।
ये बूंदें जो आसमान से आई हैं,
धरती की प्यासी गोद में, खुशियों की बरसात लाई हैं।
बारिश की बूंदें, गिरती हैं झर-झर,
धरती की प्यास बुझाने, हर वर्ष तरसती हैं।
छत पर टपकती, ये बूंदें संगीत बन जाती हैं,
बच्चों की हंसी, फूलों की खुशबू, जीवन की रीत बन जाती हैं।

गलियों में बहती, ये बूंदें अंगड़ाई लेती हैं,
मौसम की सारी तन्हाई को बदल देती हैं।
कागज की नाव, बच्चे चलाते हैं बारिश में,
खुशियों की बारात, हर बारिश के साथ आती है।

पेड़ों की पत्तियों पर ठहरी ये बूंदें,
रात की चांदनी में नगीने सी चमकती हैं।
बारिश की ये बूंदें, जब धरती से मिलती हैं,
जीवन की एक नई कहानी रचती हैं।

आइए, बारिश के संग जश्न मनाएं,
इन बूंदों के साथ दिल की बात गाएं।
बारिश की बूंदें, सिर्फ पानी नहीं हैं,
ये खुशियों की अनमोल कहानी हैं।




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✳कदम रुक गए जब पहुंचे
      हम रिश्तों के बाज़ार में...

✳बिक रहे थे रिश्ते
       खुले आम व्यापार में..

✳कांपते होठों से मैंने पूँछा, 
      "क्या भाव है भाई
       इन रिश्तों का..?"

✳ दुकानदार बोला:

✳ "कौन सा लोगे..?

✳ बेटे का ..या बाप का..?

✳ बहिन का..या भाई का..?

✳ बोलो कौन सा चाहिए..?

✳ इंसानियत का..या प्रेम का..?

✳ माँ का..या विश्वास का..? 

✳बाबूजी कुछ तो बोलो
      कौन सा चाहिए

✳चुपचाप खड़े हो
       कुछ बोलो तो सही...

✳मैंने डर कर पूँछ लिया
      "दोस्त का.."

✳दुकानदार ने नम आँखों से कहा: 

✳"संसार इसी रिश्ते
      पर ही तो टिका है..."

✳माफ़ करना बाबूजी
      ये रिश्ता बिकाऊ नहीं है..

✳इसका कोई मोल
       नहीं लगा पाओगे,

✳और जिस दिन
       ये बिक जायेगा...

✳उस दिन ये संसार उजड़ जायेगा