Wednesday, March 15, 2023

ADABI SANGAM --- कदम, steps , पदचाप hosted by vijay and Neeta ji

कदम, footsteps, पदचाप 







फ़क्त मेरे क़दमों को देख , मेरी चाल को नहीं 
यह  तो हमेशा ही डगमगा जाती है अक्सर , 
------------------- लौटते हुए मयख़ाने  से 

सबको मंजिल चाहिए ,और मुझे सही रास्ता ,
इसी लिए मैं अपने कदमो का कायल हूँ ,
जो चलते भी हैं फिसलते भी है , लड़खड़ाते भी हैं 
यही हैं मेरी जिंदगी के मालिक 
यह भटक गए तो समझ लो , 
भूल जाएंगे मंजिल का  भी रास्ता 

ऐसा नहीं की किसी की पसंद या सोच गलत है 
लेकिन यह जरूर सच है के ------------
सबके  क़दमों की मंजिल ,कभी एक नहीं होती 

जानना चाहता है दिलों में छुपे राजों को हरकोई ,
लेकिन दो कदम साथ निभा देना उसे गवारा नहीं  

वक्त की तीमारदारी करते करते ,  बीती है सारी उम्र 
लेकिन जिंदगी के हर पड़ाव पर पहुँच कर पाया ,
इन कदमो को अभी और चलना होगा। 
और हासिल करना होगा ,

कितनी भी जद्दोजेहद  ,दुनिया को झुकाने की या 
कुछ नया कर जाने की ,  जो बात किया करते थे 
क़दमों की ,फिर दिशा क्यों भटक  गई उनकी ?
हालात और दुर्गम रास्तो को भांप कर ?

जानता है हर दिल का फ़साना ,यह बेदर्द जमाना , 
समझता नहीं मगर,उन उठते कदमो की फिसलन। 
कुछ जो बढे तो तेजी  से ,मगर मंजिल को पा न सके ,
बोल भी थे ,लय भी थी ,फिर भी तराना कोई गा न सके 


दो कदमो का ही है ,यह खेल जीवन का 
एक उठता है , दूसरा खुद  चला आता है 
कितने मोहताज है एक दुसरे के 
 एक का फिसलना ,दूजे को भी गिरा देता है 

कई बार गिरा हूँ , बच के  निकला हूँ  गर्दिशों से 
कैसा मफ़्तूह सा मंजर बना है , मेरी जिंदगी में ?

अपने सर( दिमाग ) को सम्भालूं या कदमो को 
बेशक टिका है मेरे  सर का बोझ  मेरे कदमो पे ही , 

कितनी ही सदियों से , बिना किसी बंदिशों के 
दोनों का आपसी  समझौता निभे जा रहा है 

वक्त के पाऊं नहीं देख पाया कभी भी  
पर इसे  तेज क़दमों से चलते मैंने, 
हमेशा लोगों को अपना गुलाम बनाते 
हर जगह महसूस किया है ,

अभी कल ही की  तो बात है , माँ की गोद ,
पापा की ऊँगली पकड़ उन्ही के कदमो से चलना सीखा ,

 छोड़ मुझे अकेला सब,  निकल गए कहाँ ?
  हैं कुछ  जोड़ी जूते , कुछ उनके कदमो के निशाँ 
उन्होंने इस घर को , बनाने में जो  छोड़े थे 
सौंप कर सब हमें , छोड़ कर चल दिए यह जहां 

उन्ही के पीछे पीछे ,कदम ताल मिलाते 
जहाँ थे वो कल ,आज मैं भी  आ पहुंचा हूँ  
मेरा बचपन , मेरी जवानी , और समझदारी 
कितना दुःख दे रही है मुझे ,  दूर जाते जाते 

शर्म  हुई अपनी नादानियों को सोच कर 
पार्कों में तेज तेज कदम चलते हुए , 
बर्दाश्त न होता था किसी  बुजुर्ग का सामने आ जाना 
मेरी गति जो रुक जाती थी, खीज होती लय टूट जाने की 
इतना ही धीरे चलना है तो घर में ही चले  जनाब , 
हमारे कदमो के बीच लड़खड़ाते क्यों चले आते हैं ?

इतनी जल्दी मैं भी उनकी जगह ले लूँगा कभी सोचा न था ,
अब साथ में सैर करने वाले हम उम्र भी बहुत कम रह गए हैं 
नज़र नहीं आते आज कल ,शायद अपनी मंजिल को पा गए   , 
या अपने बोझिल हुए कदमो के हाथो मजबूर हो गए 

अलबत्ता कुछ लोग हमें भी हमदर्दी से देखने लगे हैं 
देख डगमगाते कदमो को ,कुछ कुछ बोलने भी लगे है 
 
हमेशा की तरह आज सुबह  फिर से , तेज कदमो से ,
लगभग दौड़ते हुए , पहन जॉगिंग सूट ,सैर को निकला 
किसी अजीब सी आवाज से मैं रुका " 
इतनी जल्दी भी क्या है भाई , जरा सांस  तो  ले लो। 

कुछ हासिल नहीं होता ,जितना मर्जी दौड़ लो ,
 अंत में दर्द से ,घुटनो का ही साथ ,छूटने वाला है 

ध्यान से देखा एक खरगोश ,घास में लेटा  मुझ से मुखातिब था 
अरे यह इंसानो सी आवाज में मुझे क्या बोल रहा है ?

मुझे पहचाना नहीं  ? जब तुम छोटे थे तो स्कूल में मेरी यानी के खरगोश और कछुए की कहानी कितनी चाह से सुना करते थे ? 
कहानी से नसीहत मिला करती थी के जिंदगी में कुछ पाना हो तो धीरे धीरे सब्र से काम लो कछुए जैसी लगन निरंतर गति शील कदम ही कामयाबी दिलाती है ,खरगोश की तेज गति से नहीं , यही पढ़ा है न आजतक ?

आज तुम्हे भी तेज तेज कदमो से भागते देख मुझे अपना वक्त याद आ गया ? पर तुम तो अकेले ही भाग रहे हो तुम्हारे साथ रेस में तो कोई दिख नहीं रहा तो फिर इतनी तेजी क्यों ? किस से डर कर भाग रहे हो ?

अरे नहीं भाई इसे डर से भागना नहीं , सुबह की जॉगिंग कहते हैं ,
तो फिर मेरी जॉगिंग को आपने रेस का क्यों नाम दे दिया था ?

मुझे तो आराम परस्त घोषित करके कछुए को उस रेस का विजेता भी बना डाला इस दुनिया ने  , पर किसी ने मेरी साइड की कहानी तो आजतक  किसी को सुनाई ही नहीं गई ? 

मनुष्य बहुत स्वार्थी है सिर्फ अपने हिसाब से कहानी घड लेता है और दुनिया को बार बार वही सन्देश सुनाता रहता है जिसमे उसका फायदा  निहित हो , मेरी कहानी किताबों में छाप छाप कर बेइंतिहा दौलत कमा डाली लेकिन  मुझे क्या दिया ?

 किसी को अच्छा और किसी को बुरा साबित करते रहते हैं , अरे भाई साफ़ साफ़ बताओ जरा जल्दी है मुझे ऑफिस पहुंचना है। 

यही तो दिक्कत थी मेरे साथ भी , मेरे पास भी वक्त कहाँ था ?
 
"मैं ही था वह खरगोश जो एक कछुए से अपनी जिंदगी की वह दौड़  हार गया था" लेकिन  न ही अपनी गति से न ही अपनी सुस्ती या आलस्य की वजह से 'जैसा के मुझे कहानियों में बताया गया  , मैं हारा तो सिर्फ अपने आत्मिक ज्ञान, विवेक के जागने से। मैंने जब हर इंसान को यहाँ भागते देखा तो मुझे यह लगा के शायद तेज कदम ही जिंदगी का सार है उन्ही के नक़्शे कदम पर मैं भी दौड़ने भागने लगा था 

इस रेस की तैयारी में या यूँ कहिये की थोड़ी जिज्ञासा और चिंता मेरे मन में पूरी रात रही के इस कछुए ने मुझे रेस के लिए चैलेंज क्यों दिया होगा ? क्या राज होगा इसके पीछे ? यही सोचते सोचते मैं पूरी रात सो भी न पाया था 
 
" मैं भी अपनी काबलियत उस निखद कछुए को दिखाना चाहता था के जिंदगी की दौड़ में जो भी तेज कदम दौड़ता है उसी का दिमाग भी तेज दौड़ता है, और वही अपनी दूर मंजिल तक भी उतनी ही जल्दी से पहुँच जाता है , तेज कदमो की  गति की अपनी महत्ता भी होती है , दुनिया में अगर हम धीरे धीरे चलेंगे तो मंजिल मिलना तो दूर ,सबसे पिछड़ भी तो जाएंगे ?

उसी रेस वाले दिन की ही तो बात है, मैं अपनी गति की वजह से बहुत आगे निकल गया था ,थोड़ा रुक कर मैं चुपचाप हरी हरी दूब खा रहा था , और पीछे मुड़  के भी देखा कछुए का कहीं दूर दूर तक कोई निशान न था , मुझे अहसास था के मैं अपनी  गति  से कछुए से बहुत आगे पहुँच चुका  हूँ , कछुए के बस का नहीं मुझे पकड़ सके तो क्यों न पास ही के तालाब के पेड़ों की घनी छावं में थोड़ा सुस्ता लू.

पेड़ की ठंडी ठंडी छावं और उसके नीचे बिछी हरी घास की चादर , मंद मंद  समीर के झोंके , पक्षियों की चेहक जैसे मुझे न्योता दे रहि हों " के आओ थोड़ा आराम भी कर लो बहुत गर्मी है " वक्त भी था और मौका भी ,और मुझे उनका यह आमंत्रण स्वीकार हो गया और मैं मस्ती में एक तैरते लकड़ी के फट्टे पर सवार हो गया और नदी के बहाव का आनंद लेने लगा 

जैसे ही मैं किनारे पहुंचा वहां एक लम्बी दाढ़ी वाले बुजुर्ग व्यक्ति जो एक चट्टान पर बैठ शायद ध्यान योग  कर रहे  थे " मेरी आवाज से उनका ध्यान भंग हुआ और आँखें खोलते ही मुझे एक चिर परिचित मुस्कान देते हुए पुछा  

"तुम हो कौन वत्स ? और यहाँ क्या कर रहे हो , जैसा की आप देख रहे हैं , महाराज मैं एक खरगोश हूँ ,और एक रेस में शामिल होने की वजह से यहाँ तक आ पहुंचा हूँ 

रेस ? क्यों और किस से ? क्योंकि मैं इस जंगल के सभी जीवों को यह यकीन दिलवाना चाहता हूँ के मुझ से तेज दौड़ने वाला सिर्फ मैं ही हूँ ,  

लेकिन खुद को सबसे तेज साबित करके तुम्हे अपने लिए क्या मिलेगा यह तो बताओ ?मुझे एक मैडल मिलेगा , जानवरों के समाज में रुतबा होगा , ढेर सारा पैसा भी मिलेगा इनाम में , जिससे मैं अपना खाना पीना अपने ही खेत में उगाऊंगा , बहुत बढ़िया रेहन  सेहन जुटा  सकूंगा 

लेकिन तुम्हे तो पहले ही कोई कमी नहीं है चारों तरफ तुम्हारे लिए फल फ्रूट्स से लदे वृक्ष , हरी हरी सब्जियां और मीठी मीठी घास उगी हुई है जो तुम्हारे लिए मुफ्त में है कोई तुम्हे रोकता नहीं , न ही तुम्हारा कोई बड़ा परिवार या जरूरते ,फिर पैसा क्यों चाहिए ?

मुझे समाज में सबसे तेज दौड़ने का ख़िताब अपने नाम लिखवाना है 

तो फिर तो तुम्हे सब से तेज दौड़ने वाले हिरन का नाम भी मालुम होगा या साइज में सबसे बड़ा जीव हाथी का ? या सबसे खतरनाक शेर जो चुटकियों में किसी को भी पकड़ के खा जाता है ?

नहीं मुझे इनके बारे में कुछ नहीं पता , आप कह रहे हो तो होंगे 
आज तुम्हे एक कछुए ने ललकारा है , कल कोई सांप भी तुम्हे ललकारेगा , फिर  कोई ऊँठ ,ज़ेबरा , कुत्ता बिल्ली , चूहा ?तो क्या तुम पूरी जिंदगी सब से रेस लगाते रहोगे सिर्फ यही साबित करने के लिए कि  तुम ही  सबसे तेज दौड़ने वाले जंतु हो ?

अरे यह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं , नहीं नहीं मैं पूरी जिंदगी ऐसे ही नहीं दौड़ते रहना चाहता ” यह भी कोई जिंदगी होगी हमेशा अपने घुटनो और पाऊँ को तोड़ते रहो और बीमार होकर मर जाओ 

मैं तो ऊँचे ऊँचे बरगद की छाया में , मंद मंद बहती ठंडी हवा का आनंद लेते हुए जीना  चाहता हूँ  ,मैं वादिओं की हरी हरी दूब खाते हुए अठखेलियां करना चाहता हूँ , बहते झरनो में डुबकियां लगाना  चाहता हूँ , यह तो तुम अभी भी कर रहे हो फिर रेस का क्या मतलब , कोई न कोई जानवर तुम्हे मार के  खा जाएगा फिर क्या साबित करोगे ?

इसी डर से मेरी नींद खुल गई , यह कैसा सपना मुझे आया ?, मैंने सामने देखा तालाब में डक्स हंस खेल रहीं थी , उन्हें देख मैं भी पानी में कूद गया जिसे देख यह डक्स भी घबरा गई और मेरी और जिज्ञासा पूर्ण दृष्टि से देखा " और बोली तुम्हारी तो आज कछुए के साथ रेस थी न "?फिर यहाँ पानी में कैसे घूम रहे हो ? तुम्हे कैसे मालुम ?
क्योंकि पूरे जंगल में इसकी चर्चा थी इस लिए हम भी जानते हैं 

यह रेस वेस सब बेकार है, मैं इंसानो की भागदौड़ देख उनकी नक़ल करने लगा था , जिसका जीवन में न कोई महत्व है न ही संतुष्टि , मैंने सभी दौड़ते भागते इंसानो को जल्दी बीमार और छोटी आयु में मरते देखा है, वह भी दौलत शौरत की दौड़ में भागे जा रहे है 

 मेरी आँखें खुल चुकी हैं ,मैं जिंदगी जीना चाहता हूँ  , अपने कदमो को थका के दूसरों को हराने  की बजाय खुद की भलाई में इस्तेमाल करना चाहता हूँ ,

अब  मेरी तरफ की यह कहानी भी लोगों तक पहुंचा देना "मैं रेस हारा जरूर  था पर उसी हार में मेरी जिंदगी मुझे वापिस मिली है ,आज मैं झूटी ख्वाइशों से आज़ाद भी हूँ और खुश भी  " 

अपना जीवन हमेशा अपने कदमो के हिसाब से जीना सीख लेना ही असली जिंदगी है ,न के दुनिया को उसकी ताकत दिखाने के लिए , 

तुम्हारी दुनिया के लोग भी उसी ख़रगोशी दौड़ में लगे है जो मैं बहुत पहले हार कर भी जीत चुका  हूँ  ,हर वक्त  शौहरत का  फितूर पाले रहते हैं , किसी के पास एक गाडी है तो दूसरा दो रखना चाहता है , किसी का एक मकान देख दूसरा चार मकान बनाना चाहता है , कोई अपना नाम दुनिया की सबसे अमीरों की लिस्ट में लिखवाना चाहता है , चाहे उसके लिए उसे अपना परिवार व् बच्चे भी क्यों न दांव पे लगाने पड़  जाएँ।

 बड़े बड़े वादों की खिलाफी करके अमीरी हासिल होती है , लेकिन अन्तन्ते  संतुष्टि और ख़ुशी फिर भी उसे नहीं मिलती ,मरने के बाद ,जाता फिर भी है दूसरों के कन्धों पे सवार होके , दूसरों के  कदमो का सहारा लेकर अपना दाह  संस्कार करवाता है।  जैसे ही मुझे यह ज्ञान उस महापुरुष से मिला मैं रेस से बाहर  हो गया , 

मैंने इंसानो को देख भागदौड़ की जिंदगी पकड़ी थी यही ज्ञान मुझे उन्ही  इंसानो को देना था आज आप ने रुक कर सुना मुझे उम्मीद है इंसान इसे ध्यान में रखते हुए जीना शुरू करेगा 

दो कदम साथ चलने का वादा करने से पहले ,
सोच लें मेरे दोस्त भी ,यह निभाना आसान नहीं 
,
चलिए , दौड़िये ,भागिए , टहलिए जरूर , लेकिन अंधी दौड़ नहीं , इन्हे ठोकरों से बचाकर फूंक फूंक कर रखिये 
बहकने न पाएं यह कहीं भी कभी भी किसी भी लोभ में ,
यही कदम हैं वजूद आपका , बड़ी फिसलन है जिंदगी में 
रखिये इन्हे संभल संभल कर।