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Thursday, March 16, 2023

ADABI SANGAM ------ TOPIC ------- ASVM--- NO 14-----मेहबूब ,------ मेहबूबा -------, LOVER ,--------- प्रेमी ,------- आशिक़ -JOKES

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "
AVSM - NUMBER .- 14 
मेहबूब , मेहबूबा, LOVER, प्रेमी, आशिक़ , माशूक ,माशूका 







इल्मो अदब के सारे खज़ाने गुज़र गए,
मेहबूबा रिझाने के वह सारे पैमाने बदल गए 

क्या खूब थे वो लोग पुराने जो  गुज़र गए
कहते कहते के -----------
गुजरना ही है तो दिल के अंदर से गुजरो ,
मोहब्बत के शहर में बाई पास क्यों ढूंढते हो ?। 

बाकी है जमीं पे फ़कत आदमी की भीड़,
इन्सांन  को मरे हुए तो ज़माने गुज़र गए

खुली आँखों से अक्सर हमने देखे है कायनात के नजारे ,
मेहबूब से मिलते ही न जाने , आँखें  बंद क्यों हो जाती हैं 

दिलों के शहर उजाड़ और  वीरान हो चुके है ,,
, लोग मगर फिर भी इसमें बसे चले जा रहे हैं

उम्र समझाती है , के जिंदगी की शाम हो गई , 
थोड़ा रुको ,अब तो जिंदगी का गियर बदल लो 
दिल मुस्कराता है , शरारत में . मानता ही नहीं , 
कहता है असली महफ़िल तो शाम से ही शुरू होती है 

था एक वक्त जब दोस्त सुनाया करते थे 
अपनी नाकाम मोहब्बत के भी किस्से ,
बैठ के इन मयकदों की धुंदली छाया  में ,

आज फिर आ जमे मजलिस में जुगनू सारे , 
मायूस जो थे अपनी मद्धिम  होती चमक से 
ऐलान यह हुआ इक जाम लेने के बाद , 
क्यों न हुस्न पे पड़ती रौशनी ही गुल कर दी जाए

चराग बुझा भी दे तो 
 नशा मयकदों में अब है कँहा यारों..
अब न मोहब्बत के किस्से  बचे , न सुनने वाले 
 दोस्त भी अब तो ,मय का नहीं "मैं" का नशा करने लगे  हैं..   

यार शादी होने वाली है मेहबूबा से  , 
पेट कम  करने का कोई उपाय तो बताओ ?
बड़े मायूसी में उसने दोस्त से पुछा 

दोस्त बोला , भाई यह तो कुदरत का करिश्मा है ,
 ख़ुशी से फूल जाता है , शादी से पहले आशिक का
 फूलता है मेहबूबा का ,शादी के  बाद  
अम्मा कभी सीरियस भी हो जाया करो ,
 ओह सॉरी तो बताओ 

मतलब पहले का सिंगल पसली ,भाभी जान पहचानती थी  ?
फिर क्या हुआ ?पेट ही तो बढ़ा है , 
चेहरे से तो अभी भी मजनू ही लगते हो ,
मेरी मानो तो मसला ही खत्म। 
आज से फोटो छाती तक ही खिचवाया कर?

 इस दुनिया में ,बहुत ही  खास होते हैं वोह दोस्त कमीने , 
जो वक्त आने पर , हमे और हमारी मोहब्बत के लिए 
अपना वक्त और मुफीद  मशवरा मुफ्त दिया करते है 
                                       
आज हौसला जुटा कर अपने ही दिल से पूछ बैठा ,
कहाँ है मेरी वह मेहबूबा जिसे मैंने तुझे सौंपा था ,
मेरी एकलौती आखिरी मोहब्बत थी वो ,
कितनी शिद्दत से मनाया था उसे , तूने उसे ऐसे ही भुला दिया 

दिल गुस्से में फड़फडाया ,धड़कन बढ़ाते हुए बोला ,
अपनी मोहब्बत के झूठे किस्सों में मुझे न घसीट न शुकरे इंसान 
एक इंच भी जमीन खाली नहीं जहां कोई सुई भी टिक  पाए.  
मैं मनसरूफ़ हूँ ,हर गजल में , यूँ बदनाम , मुझे  किया  करो ,

बे सिर पैर की तुकबंदी में हर बार मुझे घसीट लेते हो , 
इस भरी पूरी दुनिया में तुम्हारा कोई मेहबूब नहीं है क्या ,
जो हर बार मुझे ही कोसने लगते हो ,  जरा ध्यान से सुन 
मेरा काम है शरीर को खून सप्लाई करना ,
अपनी शायरी अपने पास ही रख  
अगर मैं हड़ताल पे चला गया ,तो तूं और तेरी शायरी  
  यकीन कर लो दोनों ,सीधे  चार कन्धों पे ही जाओगे  
 
मोहब्बत में अक्सर लोग , बहक जाते है , जैसे तुम 
बेतुके बेमतलब कसीदे पढ़े चले जाते है ,....... 
मैं तेरा  दिल हूँ इसकी हर धड़कन में मेरा जवाब है 
 निकला हर लब्ज जुबान से तेरी एक खुराके दावत है , 
अलग अलग जिसका स्वाद है ,और एक मिज़ाज़ भी , 

बोलने से पहले खुद चख लीजै , जनाब ,
मत करवा बैठना अपनी मिटटी खराब, 
मैं तो तेरा दिल था एक पत्थर के माफिक जो सेह गया  
अच्छा न लगे तो दूसरों को मत परोसिये , 
वरना मेहबूबा के रुसवा होने में देर न लगेगी 

जिंदगी के सफर में बस इतना नही समझ  पाए हम  ,
वह लैला मजनू और शीरी फरहाद की मोहब्बतें ,
किताबी किस्से थे या कोई हकीकत ?, अगर हकीकत थी ?
तो फिर आज कोई वैसी किताबे मोहब्बत क्यों नहीं छपती 

मोहब्बते पहले भी नाकाम रहती थी , तब वजह थी कोई और 
आज भी परवान नहीं चढ़ती है तो वजह है कोई और , 
क्योंकि मोहब्बत का दिल्लों  पे नहीं रहा आज कोई जोर ,
दिन रात की है हलचल वहां ,दौलत ही के किस्से है   ,
वह तो आज भी है वीरान ,जहाँ कभी मेहबूब होता था ,

कभी इश्क तो कभी नफरत वो हमसे करते रहे ,
 तजुर्बा तो था नहीं , हर नादानी हम एक पे एक  करते रहे ,

ग़मे मोहब्बत में कभी ,घबरा के पी गए ,
शादी बिहाह में किसी की नाचते नाचते पी गए ,
यूँ तो पीने की कभी आदत न थी अपनी ,
बोतल को यूँ तनहा पड़े देखा तो ,
तरस खा के ,साथ देने को पी गए , 

लोगो ने पुछा  जब उम्र थी , जवानी थी 
तब तो , नजरें मिला न पाए , अपने मेहबूब से 
अब तो बाल भी नहीं बचे चाँद पे तुम्हारे ,
एक सेंडल भी पड़ा तो ,नजर आएंगे तारे 

लेकिन दोस्त हमने  तो सुना था ,
मोहब्बत हम उम्र से हो यह जरूरी नहीं ,
कितने ही बेमेल रिश्तों को जवान होते देखा है 
इश्क खुद हर उम्र को हम उम्र बना लेता है 

यूँ तो मोहब्बत में  ,
किसी का, मेहबूबा बन जाने  का
 कोई पैमाना नहीं ,

फिर भी दिमाग नहीं ,दिल से ही समझना 
जो तुमको अपने दुःख दर्द खुल के बता दे 
तुम्हारे भले के लिए वो तुम पर हक जता दे ,

और कहे सब बुरी आदते छोड़ने को , 
तुम्हारी फ़िक्र में खुद ही दुबली भी  होने लगे 
तो समझ लेना वही तुम्हारी मेहबूबा है। 

मोहब्बत और  व्यपार वही करे जिसमें  ,
नुक्सान सहने की ताकत हो ,
बिना नुक्सान उठाये मुनाफा नहीं होता ,
चाहे हो व्यपार या हो मोहब्बत 

अब तो घर बस गया है तुम्हारा ,
कदर किया करो ,पसंदे मेहबूबा की ,
जो अपने एक मैचिंग सूट के दुप्पट्टे के लिए ,
पूरी दुकान उलट पुलट कर डालती थी ,
और आपको बिना , न नुकर  ही अपना लिया 


ज्यादा मीन मेख ना निकाल अब 
उसके हाथों से बनी रोटी का ,
मत भूल वोह तेरी बीवी बनने से पहले 
तेरे दिलकी मालकिन ,तेरी  मेहबूबा थी 

उम्र के उस पड़ाव पर आ गए हैं कि 
रोज डे, प्रपोज डे, चॉकलेट डे, वैलेंटाइन डे 
किसी डे से कोई फर्क नहीं पड़ता
अगर फर्क पड़ता है तो सिर्फ 
ड्राई डे से...

अल्फाज तो जमाने के लिए हैं ,
तुम तो मेरे अपने हो मेरे मेहबूब , चले आना कभी भी दिल मे
तुम्हे खुद से मिलवाएंगे , इसकी  धड़कनो का संगीत सुनाएंगे 

मेहबूब की मोहब्बत  ने चिता की आग से पुछा ,हम दोनों में बड़ा कौन बता तो ? तू इंसान को मरने पर एक ही बार जला पाती है और मैं तो जीते जी इंसान को पल पल जलाती हूँ, तू तो एक ही बार मे खत्म कर देती है ,मेरी जकड़ में आने के बाद तो बड़े बड़े छटपटाते ही रहते है निकल नहीं पाते।तेरा नाता तो मृत्यु से है मेरा नाता हर उस इंसान से है जो जिंदा है ।तूँ अंतिम सत्य और जिंदगी का मैं प्रथम सत्य ।



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मेरे दोस्तों की भी बड़ी अजीब दुनिया है पढ़े लिखे तो हैं पर समझना नही चाहते , कहते है ऐसा कोई सब्जेक्ट ही नही था कॉलेज में ,इस लिए interpretation ऑफ statues तो पढ़ लिया पर interpreting intelligenc /friends नहीं पढ़ पाए क्यों कि ?

        ये दुनियाँ ठीक वैसी है जैसी आप इसे देखना पसन्द करते हैं। यहाँ पर किसी को गुलाबों में काँटे नजर आते हैं तो किसी को काँटों में जीवी गुलाब। किसी को दो रातों के बीच एक दिन नजर आता है तो किसी को दो सुनहरे दिनों के बीच एक काली रात। किसी को भगवान में पत्थर नजर आता है और किसी को पत्थर में भगवान।

          किसी को साधु में भिखारी नजर आता है और किसी को भिखारी में भी भी साधु। किसी को मित्र में भी शत्रु नजर आता है और किसी को शत्रु में भी मित्र। किसी को अपने भी पराये नजर आते हैं तो किसी को पराये भी अपने।

         किसी को कमल में कीचड़ नजर आता है तो किसी को कीचड़ में कमल। अगर आप चाहते हैं कि हर वस्तु आपके पसन्द की हो तो इसके लिए आपको अपनी दृष्टि बदलनी पड़ेगी क्योंकि प्रकृति के दृश्यों को चाहकर भी नहीं बदला जा सकता।

!!!...मनचाहा बोलने के लिए..अनचाहा सुनने की ताकत होनी चाहिए...!!!

बाबा नागपाल जिसकी दुनिया तो क्या उसके मित्र ही नही सुनते


बेचारा रिटायर्ड पति😂 😂😂😂क्या करे ?आँखें भी दिखाए तो किसे? न वोह दफ्तर रहा न वोह अधिकारी वो तो इज़्ज़त थी सरकारी अब न कुर्सी न वोह अदब से बोलने वाले , रिटायर क्या हुए जैसे गाड़ी के टायर ही नहीं रहे रॉब चले भी तो किसपे ,न घर के रहे न घाट के🤪

👉रिटायर पति अगर देर तक सोया रहे तो....

बीवी : अब उठ भी जाइये ! आपके जैसा भी कोई सोता है क्या ? रिटायर हो गये तो इसका मतलब यह नहीं कि सोते ही रहियेगा....!
😐😐😐😐😐
👉रिटायर पति अगर जल्दी उठ जाये तो....

बीवी: आपको तो बुढापे में नींद पड़ती नहीं, एक दिन भी किसी को चैन से सोने नही देते हो, 5:30 बजे उठ कर बड़ बड़ करने लगते हो। अब तो आफिस भी नहीं जाना है, चुपचाप सो जाइये और सबको सोने दीजिए.....!
😢😢😢 
👉रिटायर पति अगर घर पर ही रहे तो....दिल लगाने को उसके पास एक मोबाइल ही तो है जिसमे अपने राज गर्ग की अप्सराएं हमेशा हमारा इंतेज़ार करती है लेकिन पत्नी जी को हमारा मोबाइल पे यू गाना बजाना लडकिया ताड़ना कहाँ गवारा ह्योगा दोस्तो 🤪

बीवी: सबेरा होते ही मोबाइल लेकर बैठ जाते हो और चाय पर चाय के लिए चिल्लाते रहते हो, कुछ काम अपने से भी कर लिया कीजिए । सब लोगों को कुछ न कुछ काम रहता है, कौन दिनभर पचास बार चाय बना कर देता रहे। यह नहीं होता है कि जल्दी से उठकर नहा धोकर नाश्ता पानी कर लें, अब इनके लिए सब लोग बैठे रहें....!
😢😢😢
👉रिटायर पति अगर घर से देर तक बाहर रहे तो....

बीवी : कहाँ थे आप आज पूरा दिन ? अब नौकरी भी नही है, कभी मुँह से भगवान का नाम भी ले लिया कीजिए...!
😢😢😢
👉रिटायर पति अगर पूजा करे तो...

बीवी : ये घन्टी बजाते रहने से कुछ नहीं होने वाला। अगर ऐसा होता तो इस दुनिया के रईसों में टाटा या बिल गेट्स का नाम नहीं होता, बल्कि किसी पुजारी का नाम होता...!

😢😢😢
👉रिटायर पति अगर पत्नी को घुमाने के लिए ले जाए तो...

बीवी : देखिये, सक्सेना जी अपनी बीबी को हर महीने घुमाने ले जाते हैं और वो भी स्विट्जरलैंड और दार्जिलिंग जैसी जगहों पर, आपकी तरह "हरिद्वार" नहाने नहीं जाते....!
😢😢😢
👉रिटायर पति अगर अपनी ऐसी-तैसी करा कर नैनीताल, मसूरी, गोवा, माउन्ट आबू, ऊटी जैसी जगहों पर घुमाने ले भी जाए तो....!

बीवी : अपना घर ही सबसे अच्छा, बेकार ही पैसे लुटाते फिरते है। इधर उधर बंजारों की तरह घूमते फिरो। क्या रखा है घूमने में ? इतने पैसे से अगर घर पर ही रहते तो पूरे 2 साल के लिए कपड़े खरीद सकते थे...!

*👉रिटायर्ड पतियो की मनोदशा का संकलन...!!!! 🌹🌹🙏चाहे कोई जज रहा हो या बड़े से बड़ा सुप्रीम कोर्ट का वकील या हो commissoner अंत मे उसकी अपील या  certificate ऑफ appreciation Home ministry ही खारिज़ कर देती है। दोस्तो बुरा मत मान लेना यह किसी पे कटाक्ष नही एक हकीकत है।


वकील होना भी कहाँ आसान है दोस्तों..?

ना किसी के ख्वाबो मे मिलेंगे,
ना किसी के अरमान मे मिलेंगे,
हम हमेशा ऑफिस या कोर्ट मे मिलेंगे,

गर्मी, सर्दी, बरसात यूँ ही गुजर जाती है,
नींद भी पूरी होती नही की रात गुजर जाती है,
होली, दिवाली, नवरात्री, 31st पर भी हम काम मे मिलेंगे,
तुम आ जाना दोस्त
हम हमेशा ऑफिस या कोर्ट मे मिलेंगे,

जमाने भर की खुशियों से अलग है हम,
लोगो को लगता है गलत है हम,

बीमार होकर भी ठीक रहती है तबियत हमारी,
कोई आजकल पूछता भी नही खैरियत हमारी,

कभी क्लाइंट को मुश्किलों से छुड़ाने में तो कभी  क्लाइंटसे डिस्कशन में तो कभी कोर्ट के काम बिज़ी मिलेंगे,
तुम हमेशा आ जाना ऐ दोस्त हम हमेशा ऑफिस या कोर्ट मे मिलेंगे।।।

 *सभी सम्मानित अधिवक्ताओं को समर्पित



तारीफ़ और ख़ुशामद में एक बड़ा फ़र्क़ है....साहेब 

तारीफ़ 
आदमी के "काम"की होती है, और 
ख़ुशामद 
"काम" के आदमी की !

चिन्ता ने चिता से आंखों ही आंखों मुस्कुराते हुए बताया , हम दोनों में बड़ा कौन बता ? तू इंसान को मरने पर एक ही बार जला पाती है और मैं तो जीते जी इंसान को पल पल जलाती हूँ, तू तो एक ही बार मे खत्म कर देती है ,मेरी जकड़ में आने के बाद तो बड़े बड़े छटपटाते ही रहते है निकल नहीं पाते।तेरा नाता तो मृत्यु से है मेरा नाता हर उस इंसान से है जो जिंदा है ।तूँ अंतिम सत्य और जिंदगी का मैं प्रथम सत्य ।



सुबह का टहलना बहुत मजेदार और सेहत के लिये फायदेमंद है ।

माॅर्निंग वाक के प्रकार-

1.डाक्टर के कहने से पहले जो टहलते हैं,उसे माॅर्निंग वाक कहते है ।

2.डाक्टर के कहने के बाद जो टहलते है,उसे वार्निंग वाक कहते हैं ।

3.जो अपनी पति,पत्नी के कहने पर टहलने जाते हैं,उसे डार्लिंग वाक कहते हैं ।

4.जो दुसरों की सेहत से जलन महसूस कर टहलने जाते हैं,उसे बर्निंग वाक कहते हैं ।

5.जो अपनी पत्नी के साथ टहलने के बावजूद दुसरे महिलाओं को मुड़-मुड़ कर देखते-देखते टहलते हैं,उसे टर्निंग वाक कहते हैं ।

*टहलने की प्रेरणा चाहे जैसे मिले टहलते रहिये,स्वस्थ रहिये ।


कुछ लोगो को लगता है की उनकी चालाकियां मुझे समझ नहीं आती,
मैं बड़ी ख़ामोशी से देखता हूँ उनको अपनी नजरों से गिरते हुए
 बहुत सी गलतियां हुई जिंदगी में,
लेकिन जो गलतियां लोगों को पहचानने में हुई,
उसका दुख सबसे ज्यादा है।
 हर इक इंसान हवा में उड़ता फिरता है ..
फिर ना जाने क्यूं धरती पे इतनी भीड़ है
 थोडी मोहब्बत और  आदर से स्पर्श
करके तो देखिये..

इंसान का ह्रदय भी टच
स्क्रीन से कम नही...

मायके गई हुई पत्नी ने 
अपने पति को फोन किया 
और  कहा कि अब तो मुझे ले जाओ ...और कितना तरसाओगे?

पति: कुछ दिन और रह लो  !!!! ऐसी भी क्या आफत है मायका ही तो है तुम्हारा कोई ससुराल थोड़ा ही है ?

पत्नी: नहीं जी।आप सुनो तो 
 भाई, भाभी, बहन, मम्मी, पापा सब से 2-3 बार झगड़ा कर  लिया
 लेकिन तुम्हारे जैसा मज़ा नहीं आता ...।

देखो,  शादीशुदा व्यक्ति पत्नी से सब्जी की तारीफ़ जैसा कुछ कर रहा है, या अपना ये लोक सुधार रहा है:
"क्या कमाल की सब्जी बनाई है, लव यू, बस थोड़ा नमक ज्यादा है, 
मुझे लगता है मार्केट में नमक ही ठीक नहीं आ रहा, इस बार कोई खास मेहमान आए तो यही सब्जी बनाना और थोड़ा जयादा करारी कर देना, 
और हां इतना लहसुन अदरक मत डालना, 
मेहमान कौन सा बिल देकर जाएगा। 
तड़का तो एकदम टॉप है पर लगता है कड़ाही का पेंदा बेकार है इस कारण जलने की स्मैल आ रही है। 

कल ही नई कड़ाही लाएंगे।
ये तुमने बहुत बढ़िया किया जो आलू नहीं छीले,मैंने आज ही नेट में पढ़ा है , आलू के सारे गुण छिलके में होते हैं, 

और हां ऐसा करो ये सब्जी अभी फ्रिज में रख दो परसों खाएंगे जब आलू और तड़का और मिक्स हो जाएंगे तो बहुत स्वाद आयेगा,
ये सब्जी तुम बनाया ही ना करो, ख्वामखाह किसी की नजर लग जाएगी।
🧘‍♂️🧘‍♂️


#अद्भुत_संयोग
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फास्ट फूड रेस्टोरेंट में एक आदमी आया और उसने हरियाली कबाब के साथ चिली सॉस का आर्डर दिया।पास बैठी एक सुंदर महिला ने भी वही ऑर्डर किया और बोली- "कैसा अद्भुत संयोग है!आपके और मेरे खाने की पसंद एक जैसी है।हरियाली कबाब और चिली सॉस।बाई द वे मेरा नाम रत्ना है।आपका ?"

"रतन।"

"कैसा अद्भुत संयोग है!हम दोनों के नाम भी एक जैसे हैं।दोनों का अर्थ भी एक ही है।आप क्या यहाँ अक्सर आते हैं?"

"नहीं।आज मैं सेलिब्रेट करने आया हूँ।"

"अद्भुत संयोग है। मैं भी सेलिब्रेट करने आई हूँ। जान सकती हूँ,आप क्या सेलिब्रेट कर रहे हैं?"

"मेरे पोल्ट्री फार्म की मुर्गियाँ करीब 4 साल से अंडे नहीं दे रही थीं।आज सुबह उन्होंने अंडे दिए। तो उसी खुशी को सेलिब्रेट करने आ गया।"

"कैसा अद्भुत संयोग है!मेरी शादी के 4 वर्ष हो गए। संतान नहीं होती थी।आज ही प्रेग्नेंसी टेस्ट पॉजिटिव हुआ।बाई द वे,मुर्गियों ने कैसेअंडे दिए?"

" मैंने मुर्गा बदल दिया।और आप?"

 महिला मुस्कुराई और धीरे से बोली --"कैसा अद्भुत संयोग   है!"

पत्नी: "अगर आप लॉटरी से 1 करोड़ जीत गए लेकिन मुझे 1 करोड़ की फिरौती के लिए अपहरण कर लिया गया, तो आप क्या करेंगे?"

पति: "अच्छा सवाल है, लेकिन मुझे शक है कि एक ही दिन में मेरी दो बार लॉटरी  कैसे लग सकती है "...

ताऊ ने इकसठ नम्बर पर सट्टा लगाया। नम्बर आ गया। ताऊ करोड़ पति।
एक पत्रकार इंटर्व्यू लेने आ गया।
“ताऊ तुमने इकसठ पर ही सट्टा क्यूँ लगाया?”

ताऊ, ”बात ऐसी है पत्रकार। मैं सुबह उठा। मुझे आसमान में आठ पंछी दिखायी दिए। और तारीख़ थी नौ। बस मैंने आठ निम्मा कर दिया। आठ निम्मा इकसठ। लगा दिया सट्टा।”
पत्रकार, “पर ताऊ आठ निम्मे तै बहत्तर है।”
ताऊ, “बस तेरे चक्कर में रहता तै लग ली लॉटरी”
😂🤣

लाॅकडाउन के कारण 5 दिन से घर पर बैठा हुं ,

 पत्नी कई बार आते जाते बोल चुकी है 

"पता नहीं यह  बीमारी कब जाएगी"
🧐
समझ नहीं आता कि वह कोरोना को
बोल रही है या......??



 मैं औऱ मेरी तनहाई,
 अक्सर ये बाते करते है..
ज्यादा पीऊं या कम,
व्हिस्की पीऊं या रम।

या फिर तोबा कर लूं..
कुछ तो अच्छा कर लूं।
हर सुबह तोबा हो जाती है,
शाम होते होते फिर याद आती है।
क्या रखा है जीने में, असल मजा है पीने में।

फिर ढक्कन खुल जाता है,
फिर नामुराद जिंदगी का मजा आता है।
रात गहराती है,
मस्ती आती है।
कुछ पीता हूं,
कुछ छलकाता हूं।

कई बार पीते पीते,
लुढ़क जाता हूं।
फिर वही सुबह,
फिर वही सोच।
क्या रखा है पीने में,
ये जीना भी है कोई जीने में!
सुबह कुछ औऱ,
शाम को कुछ औऱ।

थोड़ा गम मिला तो घबरा के पी गए, 
थोड़ी ख़ुशी मिली तो मिला के पी गए,
यूँ तो हमें न थी ये पीने की आदत... 
शराब को तनहा देखा तो तरस खा के पी गए।



. कभी हँसते हुए छोड़ देती है ये जिंदगी
कभी रोते हुए छोड़ देती है ये जिंदगी।
न पूर्ण विराम सुख में,
        न पूर्ण विराम दुःख में,
बस जहाँ देखो वहाँ अल्पविराम छोड़ देती है ये जिंदगी।
प्यार की डोर सजाये रखो,
    दिल को दिल से मिलाये रखो,
क्या लेकर जाना है साथ मे इस दुनिया से,
मीठे बोल और अच्छे व्यवहार से
        रिश्तों को बनाए रखो..........


एक प्यार ऐसा भी....

नींद की गोलियों की आदी हो चुकी
बूढ़ी माँ नींद की गोली के लिए ज़िद कर रही थी।

बेटे की कुछ समय पहले शादी हुई थी।

बहु डॉक्टर थी। 
बहु सास को नींद की
दवा की लत के नुक्सान के बारे में बताते
हुए उन्हें गोली नहीं देने पर अड़ी थी।.
जब बात नहीं बनी तो सास ने गुस्सा
दिखाकर नींद की गोली पाने का
प्रयास किया।

अंत में अपने बेटे को आवाज़ दी।

बेटे ने आते ही कहा,'माँ मुहं खोलो।

पत्नी ने मना करने पर भी बेटे ने जेब से

एक दवा का पत्ता निकाल कर एक छोटी
पीली गोली माँ के मुहं में डाल दी।
पानी भी पिला दिया।गोली लेते ही आशीर्वाद देती हुई

माँ सो गयी।.

पत्नी ने कहा ,

ऐसा नहीं करना चाहिए।'

पति ने दवा का पत्ता अपनी पत्नी को दे दिया।

विटामिन की गोली का पत्ता देखकर पत्नी के
चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी।
धीरे से बोली

आप माँ के साथ चीटिंग करते हो।

''बचपन में माँ ने भी चीटिंग करके
कई चीजें खिलाई है।
पहले वो करती थीं,

अब मैं बदला ले रहा हूँ।
यह कहते हुए बेटा मुस्कुराने लगा।" - एक प्यार ऐसा भी - जरूर पढ़े 
    ये रचना मेरी नहीं हैं मुझे प्यारी लगी तो आ


कुछ दोस्त ऐसे है जो घर से बीवी की लात खाकर आते है ।

और दोस्तो से कहते फिरते है।





आज तो लेग पीस खाकर आया हूं😡













                              


kids Forum --Importance of yoga and meditation --- while they are young

योग और अध्यात्म का बच्चों के जीवन में उपयोग 



Good playing habits in children have to be instilled very early as to penetrate deep into their minds so that it becomes a part of their everyday life, 

Yoga and meditation are also such faculties that are very useful in our life throughout, whether it is childhood or adult stress is always a part of everyone's life.

 The earlier they master the techniques of stress management better it will be for their life ahead. children have to be taught the benefits of breathing exercises, and various postures of yoga which are all for the benefit of their body as a whole be it heart, lungs, kidneys, or liver. 

As the food habits of present  GEN -G generations have changed drastically from eating simple home-cooked food to multicuisine heavily fat-loaded outside food, That creates stress on our metabolic system, has also increased tremendously damaging our vital organs and affecting our quality of life span as well. 

If yogic and meditation exercises are cultivated at a young age it may transform their life as well as enable them  to think  better for their all sorts of day-to-day habits, for the success in their life to come 

Wednesday, March 15, 2023

Compering second Part of Adabi Sangam ..........Lyrical & Musical

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "








विनोद कपूर जी और श्री प्रवेश चोपड़ा जी
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आइये अब अपने संगम के अगले पायदान पर बढ़ते है अपनी गीतों की महफ़िल के साथ

बात कुछ दशक पहले की है ऐसे ही एक सुपर स्टार तब भी था ,लेकिन हम सिर्फ अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना को ही भारत के पहले सुपरस्टार्स मानने लगे थे , जम्मू में ११ अप्रैल 1904 को जन्मे और अपनी एक गुलफाम गायक/ कलाकार - अदाकार की छवि बनाई जो आज भी लोग याद करते है , उनका जलवा इतना हावी था भारत की जनता पर की उनके सामने टिक पाने के लिए कुछ गायक उनकी नकल कर के ही अपना काम जमाने लगे थे , मुकेश माथुर और किशोर कुमार गांगुली जैसे गायक भी उनके आगे नहीं टिक पाए तो उन्होंने इनकी नकल करके ही अपनी जगह फिल्म इंडस्ट्री में बनाई , बहुत बाद में वह अपने स्टाइल को अपना सके।


मैं जिसकी बात कर रहा हूँ शायद यहाँ मौजूद कुछ लोग उन्हें बखूबी जानते होंगे और उनके गीत भी अक्सर गाते है , 12 साल की उम्र में उन्हें महाराजा के दरबार में मीरा का भजन गाने का पहला अवसर मिला , राजा तो बहुत खुश हुए पर पिता जी बहुत उदास हुए जब उनके बेटे ने इस संगीत के लिए स्कूल ही छोड़ दिया।


फ़य्याज़ खान , पंकज मालिक , और पहाड़ी सान्याल उस वक्त के जाने माने गायक हुआ करते थे उनके सहयोग से उन्होंने अपना एक गायन शैली चुना और धीरे धीरे फिल्म इंडस्ट्री में छा गए ,1932 से 1946 का समय उन्ही के नाम है
नौशाद जी ने एक बार अपने इंटरव्यू में इस गायक के बारे में बताया , यह इतनी शराब पीने लगे थे की छोड़ना न मुमकिन सा ही था, 18 जनवरी ,1947 में सिर्फ 42 साल की उम्र में ही दुनिया छोड़ गए ,लेकिन उनकी यादों को संजोय हमारे बीच में दो खूबसूरत गायक है जिन्ह मैं बारी बारी से बुलाना चाहूंगा जो उनके गीतों को बहुत ख़ूबसूरती से अदायगी करते है , उन्ही के ज़माने के गीत है यह ,जी हाँ उनका दर्द भी गीतों में झलकता है ,गम दिए मुस्तकिल , जब दिल ही टूट गया , दिया जलाओ। जी हाँ सही पहचाना कुंदन लाल सहगल ही थे वोह महानायक जो सही मायनो में पहले सुपर स्टार थे।


पहले मैं प्रार्थना करूँगा अपने प्रेजिडेंट श्री विनोद कपूर साहिब जी से अपनी पसंद का गीत सुनाये और फौरन इसके बाद दुसरे गीत के लिए श्री प्रवेश चोपड़ा जी भी तैयार रहें जो इनके गीत आज सहगल की मृत्यु के 60 साल के बाद भी खूब गुनगुनाते है

Mohammed Rafi

(24 December 1924 – 31 July 1980)

एक और गीतों के बादशाह २४ दिस

was an Indian film playback singer. He is considered one of the greatest and most influential singers of the Indian subcontinent.[2][3] Rafi was notable for his versatility and range of voice; his songs varied from fast peppy numbers to patriotic songs, sad numbers to highly romantic songs, qawwalis to ghazals and bhajans to classical songs.[4] He was known for his ability to mould his voice to the persona and style of the actor lip-syncing the song on screen in the movie.[5] He received four Filmfare Awards and one National Film Award. In 1967, he was honoured with the Padma Shri award by the Government of India.[6] In 2001, Rafi was honoured with the "Best Singer of the Millennium" title by Hero Honda and Stardust magazine. In 2013, Rafi was voted for the Greatest Voice in Hindi Cinema in the CNN-IBN's poll.[7]

He recorded songs for over a thousand Hindi films and sang songs in many Indian languages as well as foreign languages, though primarily in Urdu and Punjabi, over which he had a strong command. He recorded as many as 7,405 songs in many languages.[8] He sang in many Indian languages

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Mohammed Rafi

Born 24 December 1924
Kotla Sultan Singh, Punjab, British India
(present-day Punjab, India)
Died 31 July 1980 (aged 55)[1]

Bombay, Maharashtra, India
Nationality Indian
Occupation
Playback Singer
Musician
Performer
Qawwali Singer
Years active 1944–1980
Awards Filmfare Award for Best Male Playback Singer
BFJA Best Male Playback Award
National Film Award for Best Male Playback Singer
Honours Padma Shri (1967)
Musical career
Genres
Qawwali
Ghazals
Pop
Sufi
Bhajans
Filmi
Comedy Music
Harmonium Music
Instruments Vocals, Harmonium

Signature

सुभाष अरोरा जी गाते रहिये रफ़ी की यादों को इसी अंदाज़ में ----
कितने ही गीतों को अमर बना दिया , उस गरीब घर के चिराग ने , पैदा हुए कोटला सुल्तान सिंह गांव अमृतसर में , लेकिन संगीत की चाह उन्हें ले गई लाहौर में उस्ताद गुलाम अली खान की शागिर्दी में , पहला गीत भी मिला तो पंजाबी में जो जीनत बेगम के साथ गाया , उनकी आवाज में इतनी वैरिएशंस और पिच quality थी की उनकी आवाज आज भी हमारे गले और कानो में गूंजती रहती है " आपके पहलू में आकर रो दिए , औ दुनिया के रखवाले , या हो चाहे कोई मुझे जंगली कहे , इस गायक के बारे में यह बात आम थी की यह इंसानियत के जीते जागते मिसाल थे , प्रोडूसर गरीब हो तो बिना पैसे उसका गाना या कम पैसों में गा देना , कुछ गीत तो इतने दमदार थे की इन्ही की वजह से हीरो चल निकले जैसे की विश्वजीत पर फिल्माया गीत " पुकारता चला हूँ मैं , भारत भूषण का गीत जिंदगी भर न भूलेगी वह बरसात की रात , अब हमारी महफ़िल में भी एक वैसे ही मोहमद रफ़ी है जो सिर्फ उन्ही के गीत गाते है और खूब गाते है उन्हें जिन्दा रखे हुए है हमारे सुभाष अरोरा जी

"आप के पहलु में आकर रो दिए ", या हो धार्मिक भजन औ दुनिया के रखवाले , या शंकर जयकिशन की धुन पे "चाहे कोई मुझे जंगली कहे " इन गायक की एक और खूबी थी के यह एक्टर की आवाज के हिसाब से अपनी आवाज में तबदीली लाने में माहिर थे , जैसे johni walker के फिल्मे गीत को सुन लीजै ऐसा लगेगा जैसे जॉहनी वालकर ने खुद गाया है " सर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए आजा प्यारे पास हमारे काहे घबराये। या ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां , इन साहब ने जोहनी को रिकॉर्डिंग से दो दिन पहले बुलाकर उसकी आवाजे सुनी फिर उन्ही को कॉपी करते हुए इन गीतों को गाया , न शराब पीना न कोई और ऐब फिर भी ईश्वर ने उन्हें


His voice suited any genre of music be it a moving ghazal like Aap Ke Pehloo Main Aakar Ro Diye, a plaintive bhajan like O Duniya Ke Rakhawale, or a wild and whacky Shanker-Jaikishan composition like Chahe Koi Mujhe Jungle Kahe. Mohammed Rafi added his delectable nuances to the melody and made it immortal. His voice had this unique feature of screen adaptability and when it merged with his intelligence as a singer it helped him to tailor his voice across an array of faces that remain entrenched in our memory books. Comedian Johnny Walker had a voice that was queerly rounded. Mohammed Rafi's take on him was phenomenal in songs like Sar Jo Tera Chakraye under S D Burman in Pyasa and Aye Dil Hai Mushkil Jeena Yaha from CID. Mohammed Rafi managed to sound exactly like Johnny Walker would if he sang the song himself. Rafi summoned Johnny Walker a day or two prior to the song picturization and then contributed his bit to add to the character Johnny Walker played on screen.

Honestly speaking it would not be in any way an overstatement to say that heroes like Biswajit (Pukarta Chala hoon main), Bharat Bhushan (Zindagi Bhar Nahin Bhoolegi Woh Barsaat Ki Raat), Joy Mukherjee (Bade Miyan Deewane) are remembered more for the songs that were picturised on them with Rafi lending his golden voice to their average acting abilities.

Mohammed Rafi was known for his altruistic behaviour, which was exhibited on several occasions. He has been known to charge just a token amount as his fees for singing songs of Music Directors who could not afford his regular charges. Many times Mohammed Rafi has sung songs without charging a single penny to the Music Directors. A case in point is the film Aap ke Deewane with which actor Rakesh Roshan began his phase as a Producer-Director. Rafi sang the title song of the film but did not charge any money because he felt that he liked the song a lot and after all, it was only a line, which he had to render. Very few singers were known to be so good at heart. This innate goodness in him came to the fore when he sang most of his songs.

In his glorious career, Mohammed Rafi won the coveted Filmfare Award of best playback singer no less than six times. He was also decorated with the Padmashri by the Government of India. With the advent of Kishore Kumar as a major singing sensation, Rafi Sahab's career received a slight jolt in the late 60s and the early 70s but he bounced back with verve in films like Sargam, Karz, Hum Kisise Kam Nahin, Poonam and his last song under the baton of Laxmikant-Pyarelal for the film Aas Paas. He succumbed to the dreaded heart-attack on the 31st of July 1980 -ironically the man was a teetotaler and a non-smoker. He was in his mid-fifties.

His funeral procession was one of the largest that the city of Mumbai has ever witnessed. The world of Music lost one of its brightest luminaries on 31st July 1980 but his melodious voice still stops music lovers in their tracks. Notable Films: Aar Paar, Baiju Bawra, Barsat Ki Raat, Dosti, Ek Musafir Ek Haseena,


रीता कोहली

साज और आवाज का संगम हो ,तो इन्हे कौन भूल सकता है ? शास्त्रीय संगीत पे आधारित हो या सुगम संगीत ,दोनों को बड़ी सुंदरता से प्रयोग करने का इन्हे पूरा इल्म हासिल है , लेखन में भी उतनी ही क्रियाशील रहती है और अवसर मिलते ही अपने जज्बातों को कागज़ पे उतार लेती है , चुपचाप सुनती रहती हैं और जब इनकी बारी आती है तो अपने हुनर से सबको चुप करा देती है , जी हाँ हमारी आदरणीय रीटा कोहली जी , से निवेदन है अपनी खूबसूरत आवाज में इस महफ़िल को और खूबसूरत बनाएं

उषा कपूर _ कोई न कोई सरप्राइज गीत उषा जी की तरफ से हर बार आता है आज भी आएगा।

अशोक सिंह

बहुत मनसरूफ़ रहते है , फिर भी जन सेवा में दोस्तों के प्यार में दिलो जान से जुटे रहते है , हमसे पूछिए वह क्या क्या नहीं करते ? पूरी दुनिया में दिन रात इनके प्रोग्रमम छाये रहते है ,अंतर्ध्यान भले ही हो जाते है बीच बीच में लेकिन नजर बड़ी चौकस रखते है , और पूरी कारवाही अपने गुप्त कानो से सुनते है और उसपे कमेंट भी करते है , नहीं पहचाना तो मैं अशोक सिंह जी को बुलाना चाहता हूँ वह खुद ही sabko unse milvaayenge सबको दर्शन देकर यकीन दिलाए

अमिता कुमार / कोमल
हिंदी गीतों में कभी कभी अचानक ऐसे गीत सामने आ जाते है और हर पार्टी शादी उत्सवों में बड़े उल्हास से गाये और बजाए जाते है , यह ऐसे folk गीतों की श्रेणी में आते है जिन्हे कोई भी नजर अंदाज नहीं कर सकता , देख के हैरानी तब हुई जब आज कल की छोटी छोटी बच्चिआं ही इस गीत पे खूब डांस करती है , यह गीत लेकर आ रही है अमिता कुमार " वे तू लौंग ते मई लाची : अमिता जी


सुषमा जी लूम्बा
पहले वह गीत गाने में कोई खास शोक नहीं दिखाती थी , सिर्फ सुनना ही उन्हें सुहाता था , लेकिन हम जैसे बेसुरों को सुन के उन्हें इतना गुस्सा आने लगा की हमसे माइक छीन कर जो गाना शुरू किया तो हमारे संगम की एक बहुत बड़ी ख्वाइश की पंजाबी के लोक संगीत को कोई तो सुनाये , सुषमा लूम्बा जी ने वह कर के दिखा दिया , सुषमा जी आये और अपनी कोई भी पसंद का गीत हमे सुनाएँ


मेरा अगला पार्टिसिपेंट ,किसी तारीफ़ या परिचय की मोहताज़ नहीं , उनके इतने कामो में जिसमे वह पोएट्री भी करती है , बड़ी बड़ी किताबे भी लिख डालती है , अपने जीवन में बहुत क्रियाशील है ,लोगों की सेवा भी करती है और मौका लगे तो एक दो गीत सुना कर महफ़िल में रंग भी भर देती है सही पहचाना वह है रानी नागेंद्र जी ,आइये अपने गीतों से महफ़िल सजाइये।

संतोष आनंद जी

Santosh Anand is a well-known lyricist from the 1970s and 1980s. During his hay days, he had worked on various iconic musical outings in the industry. As per a report on TheIndianPrint, he was married for all of ten years, during which he became a father to a baby boy named Sankalp. Sankalp went on to become a teacher of sociology and criminology to the IAS officers in the Ministry of Home Affairs. Sankalp and his wife's life met a tragic end after the two reportedly jumped in front of an oncoming train that was passing through the town of Kosikalan on October 15, 2014. The two died on the spot.

As a result of the tragedy, Shailaja Anand, daughter of Santosh Anand, has taken on the role of one of his primary caretakers. Santosh Anand has, since the tragedy, reportedly been struggling to make ends meet. Shortly after hearing the story, one of the Indian Idol judges, Neha Kakkar gave the yesteryear lyricist a total of Rs 5 lakh in order to help him navigate through the troubled times.

On the other hand, one of the judges asked him to share some of his work with him so that he can get them released. At one point in time, Santosh Anand was joined in by Kakkar who sang one of his songs, titled Ek Pyaar Ka Nagma from the 1972 hit Shor. Santosh Anand's age, as of this writing, is all of 81-year-old.

legendary Indian Lyricits Santosh Anand hails from the town of Sikandrabad in the district of Buland Shahar, Uttar Pradesh. He was born in his home town on 5th March 1940. Due to an accident at a very young age, his one leg got disabled. In his marriage, he was blessed with two kids named Sankalp and a daughter Shailja Anand.

Though due to a tragic incident, in October 2014, Anand Ji’s son Sankalp committed suicide along with his wife. The incident was a shocker for Anand’s family as they suddenly lost their son and daughter-in-law.

he 81 years old writer, poet and lyricist Santosh Anand lived a life of roller coaster while giving his immense contribution to the Indian Music Industry. He started his career with the film Purab Aur Paschim in 1970. He also wrote the evergreen and his favourite love song ‘Ek Pyar Ka Nagma Hai’ for the film Shor in 1972. While the music was composed by Laxmikant-Pyarelal, singers Mukesh and Lata Mangeshkar gave their voices to this iconic track.

Santosh also penned down the lyrics for films like Roti Kapda Aur Makan in 1974 which included songs like "Aur Nahin Bas Aur Nahin and "Main Na Bhoolunga.”

अमिता कुमार ---कोमल

नीता कुमार

Mini Bio (1)मुकेश ? ज़ोरावर चंद माथुर २२-७-1923 -August 27 ,1976

बात दिल्ली की है ,अचानक एक नया चेहरा अपनी बहन की शादी में एक गीत गाता है जहां उनके दूर के रिश्तेदार उस वक्त फिल्म इंस्डस्ट्री के मशहूर अभिनेता मोती लाल वहां पे मौजूद थे ,वह इतने भावुक हो गए इनका गीत सुन कर के इन्हे अपने साथ बॉम्बे ले आये और अपने ही घर में रखा , और पंडित जगन नाथ प्रसाद की शगिरीदी में उन्हें गीत शिक्षा दिलवाई और कुछ फिल्मो में एक्टिंग का रोल दिलवाया , 1941 में आई निर्दोष जिसमे बुरी तरह से फिल्म फ्लॉप हुई और रास्ता बंद , लेकिन डेस्टिनी वही करवाती है जिसके लिए आप बने हो , फिर एक मोती लाल की फिल्म आई" पहली नजर" जिसमे एक गीत उनपर फिल्माया गया जो तहलका मच्चा गया और जानते हो वह कौन साहिब थे ? जी हाँ उनका नाम था जोरावर चंद माथुर , सिंगर जिसकी golden voice जिसे हम आज मुकेश के नाम से बखूबी पहचानते है , इनकी जिंदगी हमेशा उतर चढाव में रही और इतने कंगाली में पहुँच गए थे के इनके बच्चों को स्कूल की फीस न दे पाने पे निकाल दिया गया , आखिरी वक्त जब इनका जादू बुलंदी पर था ,२७ अगस्त ,१९७६ , अमेरिका के डेट्रॉइट में एक म्यूजिक कॉन्सर्ट के दौरान दिल के दौरे से मौत हो गई। आज इन्हे अपने गीतों में याद कर रही है नीता कुमार जी " तुम जो हमारे मीत , न होते , गीत यह मेरे गीत न होते


A singer in a class of his own, Mukesh was ranked, along with Mohammad Rafi and Kishore Kumar, as one of the greatest male playback singers in Bollywood history. However, his position was unique - while Rafi was perfection incarnate and Kumar was the astonishing yodeller, Mukesh was that man in a bar who would pour you a drink and would sing you a song for friendship's sake. His voice held a haunting, melancholic quality that could reach into your soul and move you to tears.

He was born Mukesh Chand Mathur on 22 July 1923, into a small middle-class family living in Delhi. He was first heard noticed by an actor and distant relative, Motilal, when he sang a song at his sister's wedding. Deeply impressed, Motilal brought him to his own house in Bombay and had him groomed by the noted singer Pandit Jagannath Prasad. During this time Mukesh tried his hand at acting, but his first acting film, Nirdosh (1941), was a flop. However, he got his big break as a singer with Pahali Nazar (1945) - picturised on Motilal, the song became a success.

Initially, his voice did seem to be imitating K.L. Saigal, but he acquired his own style in Andaz (1949). The film, a passionate love triangle, became a runaway hit and so did all of its songs, especially the Mukesh solos. As well as launching Mukesh's career, it created an association with the renowned Raj Kapoor that would last throughout their lives. Starting with Aag (1948) all the way through to Dharam Karam (1975), Mukesh sang for Raj Kapoor and together they produced some of the greatest film songs in Bollywood history, most notably in Awaara (1951), Shree 420 (1955), _Anadi (1959)_, _Sangam (1964)_ and Mera Naam Joker (1970).

Life was not always that good, however. Encouraged by his success as a singer, he made a few more attempts to make it as a star and acted in two films - Mashooka (1953) and Anuraag (1956). They sadly sank at the box office. To make matters worse, when he returned to singing he found that offers had dried up, and his financial affairs became that, unable to afford their school fees, his two children were thrown out of school!

Fortunately, he came back with a bang in Yahudi (1958), and two other hits from 1958 - Madhumati (1958) and Parvarish (1958) - put him back on top as a singer to be reckoned with. Even Sachin Dev Burman, who had not used him for a decade, composed two classic songs for him from the films _Bambai ka Babu (1960)_ and Bandini (1963). He flourished throughout the 1960s and early 1970s with soulful hit songs, most notably from Anand (1971), a classic about a dying man; Rajnigandha (1974), a middle-class love story; and Kabhi Kabhie (1976), a cross-generation romance.

On 27 August 1976, while on a concert tour in the USA, Mukesh suffered a sudden, sharp and fatal heart attack in Detroit. Afterwards, several recorded songs of his came out in films released after his death, the last being for Satyam Shivam Sundaram: Love Sublime (1978), a Raj Kapoor film. He left behind a void that many male singers, including his own son Nitin Mukesh, have tried to fill, but no one has managed to fill the place of such a great singer.

Mukesh was, is and will be the only Bollywood singer to possess a golden voice...









22nd February 2021----- Spirituality --- Defined -

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "


SPIRITUALITY - 




आदरणीय सभापति महोदया नीलिमा मदान  जी , पूजनीय साध्वी चंंद्रा  भारती जी , डॉक्टर राकेश मेहता जी ,  पूजा गुलाटी जी और इस सभा में मौजूद सभी  मेरे पूजनीय विचारक चिंतक और श्रोतागण , आज मुझे आपके बीच अध्यात्म spirituality पर कुछ ऐसा कहने का अवसर मिला है जो मुझे बहुत प्रिय है , इंसान खुद एक जीवित ,चलती फिरती हर वक्त लिखी जा रही वह पुस्तक होती है जिसका लेखन उसके जीवन तक निर्बाध चलता रहता है ,हर दिन हम जो सीखते पढ़ते है वह हमारे मस्तिष्क पटल पर पूरी की पूरी हमारी कर्म पट कथा लिखी जा रही होती है जिसका उपयोग हमारा मस्तिष्क आने वाले हर दिन उस तजुर्बे का हमे ज्ञान देता रहता है ताकि हम गलती न करें , ऐसा ही ज्ञान जिसमे अध्यात्म अपना योगदान कैसे करता है ,मैं आपसे साझा करने की कोशिश कर रहा हूँ 


, कुछ ऐसे वृतांत मेरी लेखनी में ऐसे होते है जो किसी को अप्रिय लग सकते है पर मेरा उनसे नम्र निवेदन है उसे एक घटना के परिवेश में समझे अन्यथा नहीं , जिंदगी में जीविकोपार्जन के लिए हम कुछ भी अपनी मन पसंद का क्षेत्र चुन कर उसमे काम करते है और अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए जब एक ऐसे पड़ाव पर आ पहुँचते है जब हमारी सब इच्छाओं पर पैसा कमाने की लालसा पर लगाम लगने लगती है , किसी भी वजह से मन उचाट होने लगता है उस कोल्हू के बैल की तरह एक ही धुरी पर घुमते हुए , कभी आपने सोचा यह बदलाव अच्चानक  ऐसा क्यों होने लगता है ?

spirituality_is  voice of your spirit ( आत्मा ? एक प्रकार का आंतरिक ज्ञान है जो आत्मा की अपनी आवाज है  
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हम अक्सर किसी की हरकतों को अच्छाइयों ,बुरायिओं को उसके संस्कारों से , 
परवरिश से तोलने लगते है ,
 
बिलकुल यही होता है आध्यात्मिक शक्तिययों का भी जो हमारे संस्कारों यानी के DNA ,RNA में पहले से ही मौजूद रहती है 

जो हज़ारो पीढ़ीओं से एक से दुसरे को मिलती रही है ,लेकिन वह सब एक बंद लाकर में होती है ,अर्थात सारी  सूचनाएं हमारे भीतर मौजूद तो होती है पर हम उसका प्रयोग नहीं कर पा रहे  होते 

जबतक की उचित वातावरण ,शिक्षा ,परवरिश ,सत्संग उसे खोलने को प्रेरित न करे , एक डाकू का  अध्यात्म जागता है तो वह सन्यासी बन कर रामायण जैसा ग्रन्थ लिख देता।  


अध्यात्म एक अदृश्य अनुभूति है जो सिर्फ वही महसूस करता है जो इसके लिए अभ्यास करता है  , खुली आँखों से हम सारी कायनात देख लेते है , पर मन यानी आत्मा को देखना हो तो आँख बंद करनी पड़ती है, 

हमारे मस्तिष्क में उठती हुई विद्युत् तरंगो को अगर साधना हो तो मैडिटेशन और व्यायम ही सबसे जरूरी होता , इसी से शरीर में ओक्सीटोक्सिन और डोपामाइन नाम का फील गुड हार्मोन बनता है वही अध्यात्म का उदगम भी है  


मैं भी एक दिन आँख बंद करके सोचने लगा यह जो टेलीविज़न पर हर रोज कोई न कोई प्रवचन चल रहा होता है जिसमे बाबा जी कहते है , दुनिया में यह प्यार ,मोहब्बत ,रिश्ते नाते सब नश्वर है झूठे है , 

इस लिए अध्यात्म की तरफ लोट आओ ,अध्यात्म यानी spirituality ,मन ही मन  अपने ही दिल से पुछा आज कल प्यार है ही कहाँ ? दिल लगाएं तो किस से ? लगा भी लिया तो टूटना भी  लाजिमी है। 

 दिल ने भी जोर से धमका दिया देख भाई मेरा काम है सारे शरीर को खून सप्लाई करना , मेरे पास फ़ालतू की बातों का टाइम नहीं है ,मैं रुक गया तो तेरी सारी फिलोसोफी , spirituality धरी की धरी रह जायेगी  

,इसलिए नेक कर्म ही करता जा और मुझे भी अपना काम आराम से करने दे , वरना तेरी चिंताओं में उलझ कर  मैं तो अपना काम ही भूल जाऊंगा । 


मेरे अपने छोटे से वकालत के जीवन में भी  आज तक की जो भी मंजिल रही हो जिसमे उतार चढाव , सुख दुःख ,सच झूट , ग्लानि , सफलता और असफलता , रोना हंसना सब मेरे साथी ही तो  रहे है ,

 फिर ऐसा क्या है जो हमारे spirit यानी की आत्मा ने न देखा हो ? फिर भी हम पाप करने से रुके तो नहीं ? कभी कभी आत्मा को भी नकारते रहे चंद पैसों की खातिर ? इस लिए spirituality का जागना आपको आर्थिक हानि देगा। 

एक बार मुझे एक ऐसे सत्य से आमना सामना हुआ , स्थान था दिल्ली का मशहूर छत्तरपुर मंदिर  ,जिनके  पहुंचे हुए बाबा जिनका बड़ा नाम था वह ही इस इतने बड़े छतरपुर मंदिर का साम्राज्य संभाले हुए थे इतने दर्शनार्थिओं की मीलों लम्बी लाईने , बड़ा आश्चर्य हुआ यह सब मान्यता देख कर , उस वक्त किसी केस के सिलसिले में जाना हुआ था , बाबा को सुना भी और उनके विचारों का विश्लेषण भी अपनी आदत के अनुसार करने लगे ,

 लाइन लम्बी होती है उनसे मिलने वालों की भी , लाइन में खड़े खड़े मैंने यह भी ऑब्ज़र्व किया की वह बाबा जी बीच बीच में गिलास में से एक घूँट ले लेते थे ,और उनका सेवक गिलास लेकर खड़ा रहता था फिर थोड़ी देर में उसी गिलास को बाबा जी के सम्मुख कर देता था। 


भक्त जनों ने कहा बोलने से गला रुंधने लगता है इस लिए थोड़ा थोड़ा पानी बाबा जी ले लेते है , मेरे अंदर जिगियासा बनी रही , 

बेशक मेरे मन में यह विचार कौंधने लगा, हो न हो यह बाबा जी अपना स्पिरिट ऊँचा करने के लिए स्पिरिट का सेवन कर रहे हैं. यानी की शराब का ,

 शराब हो या कोई भी ऐसी चीज़ जो किसी स्थिर या सिथिल पड़ी चीज़ को चला सके , जैसे मोटर स्पिरिट यानी के पेट्रोल , जख्मों पे लगाने वाला स्पिरिट टिंक्चर ,इंसानो के झख्म सूखा दे और फिर से चलता कर दे , भूत प्रेत को भी पश्चिम वाले स्पिरिट बोलते है। तो इन सब में असल स्पिरिट क्या हुआ ,जो spirituality का कारक होता है ?यह कोतुहल मेरा अभी तक बरकरार था। 

 बाबा जी  की मजबूरी यूँ समझ गए  हम के जैसे बाबा जी अपनी आँखों से मुझे कुछ समझा रहे हों , ,
इस शरीर की पेशकदमी पे न जा , 
क्या पहना है ओढ़ा है मैंने इस पे ना जा 
" गम इस कदर मिले है जिंदगी में , के घबरा के पी गए ,
कभी ख़ुशी मिली तो चियर्स करके पी गए ,

और कभी अध्यात्म के नाम पर एकाग्रता पाने के लिए भी पी गए  ( spirituality )
यूँ तो जन्म से पीने की आदत नहीं थी मुझे , 
भगतों ने ही भेंट कर दी यह मुसीबत हमे 
देखा इस  बोतल को तन्हा बैठे हुए , 
तो तरस खा के पी गए :"

बड़े बड़े लोग अध्यत्म की बाते करने लगते है दो घूँट अंदर जाते ही ,और ऐसी ऐसी ज्ञान वर्धक बातें जुबान से बाहर आने लगती है , 

किसी ने अगर जुर्म किया हो तो उसकी वहिः परवर्ती बाहर आने लगती है  कारें गाडिया दौड़ने लगती है मोटर स्पिरिट पीकर ,, अच्छा इंसान स्पिरिट पीकर भी अपने स्पिरिट को बचाये रखता है और बुरा इंसान अपना आप खो कर अनाप शनाप बकने लगता है 

, स्पिरिट तो वही है लेकिन हर प्रकार के इंसानो पे इसका असर अलग क्यों होता है ? अचानक बाबा जी के भक्तो ने मुझे झकझोरा ,कहाँ खोये हो साहिब ,चलिए लाइन बढाईये ,आपकी ही नंबर है बाबा जी से मिलने का। 

बाबा जी ने बड़े ध्यान से मुझे घूर कर देखा , आपको पहले कभी नहीं देखा , बाहर  से आये हो ? नहीं बाबा जी मैं तो पैदाइशी दिल्ली का ही हूँ , सिर्फ यह जानना चाहता था की इंसान जब दुखी होता है तो कैसे शान्ति मिलती है ,सुना है  आधात्मिक शक्तिओं को जगाना पड़ता है ,लेकिन कैसे जगाएं उन्हें कोई उपाय तो सुझाइये ?

 आज के शोर शराबे , घर की चिंताओं ,काम की चिंताएं , पैसा कमाने की चिंताए ,इन सब के होते आत्मा को जगाने के लिए  ध्यान योग  कैसे किया जाए ? मन कहीं ठहरता ही नहीं ? तो बाबा जी हमे भी अपनी spirituality को जगाने में स्पिरिट का कुछ  सहयोग मिल सकता है क्या ? 

बाबा जी  भांप तो गए हमारे इशारे को , लेकिन शांत स्वभाव से बोले तुम्हारे पीछे बड़ी लम्बी लाइन है , तुम करते क्या हो ? बाबा जी मैं सुप्रीम कोर्ट का वकील हूँ और यहाँ किसी भक्त के केस के सिलसिले में उसके साथ आया हूँ , 

उसका विश्वास था की उसके साथ एक बार बाबा जी का दर्शन उसके केस को जल्दी व् चमत्कारित ढंग से आसान बना देगा और फैसला मेरे हक में आएगा। विश्वास के बेड़े  हमेशा पार होते है ऐसा मैंने बहुत सुना है बाबा जी ,यह भी कोई आत्मिक शक्ति होती होगी जिसे हम नहीं समझ पाते ?

बाबा जी जो अभी तक मौन हो मेरी बातें सुन रहे थे अचानक ही क्रोधित हो गए और बोले "हाँ जो तुम उलटे सीधे spirituality और spirit के सवाल पूछ रहे थे न , ? आप इज्जत से वकील हो इस लिए आप यहाँ से फ़ौरन चले जाओ , कोई और होता तो  मेरे आदमी नंगा करके डंडों  से पीटते और कहीं जाने लायक ही न छोड़ते , आप मेहरबानी कर के फ़ौरन यहां से चले जाएँ , 

फिर भी मैंने साहस करके पूछ ही लिया बाबा जी जिस spirituality की तलाश में लोग आपके दर्शन करने आते है आप उन्हें गाली और डंडो से भी मरवाते है ? आप खुद सोम रस पी कर spirituality जगा रहे है आपकी अपनी आधात्मिक शक्ति कहाँ है जो आप भी शराब का ही सहारा ले रहे हो ? मुझे भी पिटवा कर देखिये इस मंदिर पर ही बहुत बड़ा कष्ट आ जाएगा।

 मैं  एक आम जन हूँ मेरे अंदर का भी अपना एक अध्यातम है , कोर्ट कचेहरी के आध्यात्मिक के विपरीत माहौल में रहते हुए भी ,  मेरा अपना ईश्वरीय  अध्यात्म अभी मरा नहीं है मैं अपने पूरे विवेक में हूँ ,बाबा के शिष्यों ने हवा का रुख समझते हुए ,मुझे समझा बुझा कर बाहर तक लाकर छोड़ दिया पर मेरे सवाल का जवाब नहीं मिला , आज तो वह बाबा जी जीवित नहीं है पर मेरी तलाश spirituality की बरकरार है आज भी । 

यह जो मैंने बाबा और उनकी शराब यानी के spirit के बारे में जिक्र किया वह मैंने जब अपने कई धार्मिक पुस्तकों का अध्यन किया तो हर जगह शिव जी को भांग का सेवन करते दिखाया गया , 

देवताओं को सोम रस का और राज्योँ महाराजाओं को भी विभिन विभिन नामो से स्पिरिट यानी के अलकोहल का सेवन करते दिखाया गया , तो क्या हमारे मानव निर्मित स्पिरिट अलकोहल का इंसानी आत्मा के स्पिरिट से कोई अर्थ या सम्बन्ध  है ?

 मेरा कोतुहल तब और भी बढ़ गया जब हिप्नोटिस्म का और अधाय्त्म का रिश्ता समझाने की कवायत एक हिप्नोटिक गुरु ने की उसकी जड़ में भी वही। 

मेरे मित्र ने जो सुबह सुबह ही अपनी पत्नी से लड़कर मेरे घर पहुंचा था सकूं पाने के लिए , मेरे पास ही बैठा spiritualism के बारे में मैंने क्या लिखा था पढ़ रहा था , उसका भीतरी ज्ञान जग गया ,

रात को मेरे यहीं से पत्नी को फ़ोन किया और बोला " हाँ जी आज खाने में क्या बना है , पत्नी पहले से ही गुस्से से भरी बैठी थी बोली "जहर" 

मेरे दोस्त ने बोला  अच्छा , मैं तो आज देर से आऊंगा ,तुम खाकर सो जाना और  हाँ  यह पति पत्नी की लड़ाईआं तो होती रहती है तभी तो प्यार बना रहता है , पर तुम भूखी मत सोना जो बनाया है खा जरूर लेना।

 यह जो परवर्ती पति ने सहज होकर दिखाई यह भी spiritualism है जिसने पत्नी को अनायास ही हंसा दिया और सब शिकायत खत्म ,


काफी अध्यन के बाद कुछ और तथ्य हाथ लगे जैसे की इंसान के दिमाग में दो बहुत ही खास भाग है जिसमे जो दायां भाग है ,जिसमे सारी जिंदगी की पूरी सूचनाएं जमा है इसी में सब अध्यात्म और हंसने ,खुश रहने के सूचना और एन्ज़इम्स निहित है  

और ।  बाईं तरफ का हमारा कॉन्ससियस mind  इन्ही सूचनाओं से ही काम चलाता है  ,हार्ड डिस्क  Ram और Rom कंप्यूटर के भी  यहीं काम करते है , जो इन मष्तिष्क के हिस्सों को सही सामजस्य बिठा लेता है वह स्पिरिचुअल हो जाता है। 


हमारी जिंदगी के हर पल में हमारा ब्रेन पूरे शरीर का बजट बनाता रहता है के शरीर के किस हिस्से में कितना नमक , पानी , ग्लूकोस ,और कई तरह के enzymes  हार्मोन्स की जरूरत है ताकि शरीर जीवित रहे और सुचारु रूप से काम करे , इसी में पैदा होती है कुछ इस तरह के हार्मोन्स जो हमारी फीलिंग्स , हंसी ख़ुशी, नफरत, उदासी , शांत या उद्वेलित यह सब इसी का काम है और यहीं से नीव रखी जाती है हमारे स्वभाव की और अद्यात्म की 


, खेल के मैदान में एक हारता हुआ निरुत्साहित थका हुआ खिलाड़ी अपनी पूरी आत्मिक इच्छा शक्ति झोंक देता है और अंत में विजयी हो जाता है , कभी आपने भी अगर किसी प्रत्योगिता को देखा होगा तो अक्सर खिलाड़ी आकाश की और देख कर या घुटनो के बल जमीन पर बैठ कर आँख बंद कर के कुछ क्षण ध्यान लगाता है जिसमे वह अपने ईश्वर यानी के अपनी ब्रह्मांश आत्मा में झांकता है और अपनी कामयाबी के लिए दुआ करता है , खेलना इंसान ने है भागना गिरना इंसान ने है फिर यह प्रार्थना खुद के भीतर विराजमान  आत्मिक शक्ति से ,क्यों की इसे कहते हैं स्पोर्ट्समैन स्पिरिट ?

spirituality आपको अपनेआप  से मिलवाती है ,उसी ज्ञान को जगाती है जो आपके भीतर पहले से मौजूद है  , भीतर की genetic spirituality कैसे और कब हमारे जीवन को प्रभावित करती है तो हर इंसान में होती है सिर्फ जगाना नहीं आता उसे।  और उसके बुनियाद में है आप का स्वास्थ्य , दिनचर्य्या और खान पान 


EVIL SPIRIT  ----    NOBLE spirit 



, आज कल हम कई बार राजनीती की चर्चा में इतने दूर तक चले जाते है और शरीर की काफी ऊर्जा ब्रेन इस्तेमाल करने लगता है जिसका असर हमारे मेटाबोलिज्म पर और फिर वहां से लीवर किडनी और  हर अंग पर पड़ने लगता है , शरीर और दिमाग बीमार तो spirituality भी ख़त्म होने लगती है , 

spirituality यानी के अध्यात्म हमारे आत्मा और परमात्मा से सम्बंधित और जुडी है
 इसलिए हमे अपनी अंतरात्मा को हमेशा सकारत्मक विचारों का पोषण देना चाहिए , इसका धर्म से तो 
सम्बन्ध है पर रिलिजन से नहीं है , religion इंसान ने अपने  विचार से बना लिए है लेकिन धर्म वह असूल होते है ,जो लगभग २०-२५ हज़ार साल पहले सनातन ऋषिओं द्वारा लिख दिए गए थे , जिसके पालन करने से  जीवन सुखी रहता है ,,

रिलिजन तो सब केवल 2000 साल के बीच घटी घटनाएं है   इस लिए इनकी spirituality का मतलब सनातन आधात्म से भिन्न भी है  और उल्ट भी  है , spirituality इंसान के जीवन में पग पग पर जुडी हैं , जबकि religion एक थोपी हुई प्रथा होती है spirituality हमारे मस्तिष्क में निवास करती है , नित्य व्यायाम , सात्विक शाकाहारी भोजन , शुद्ध वायु में प्राणायाम और अच्छी संगत से अच्छे विचार से अपने जीवन में आध्यात्मिक  फल पाया जा सकता है जिसकी झलक बड़ी जल्दी हमारे चेहरे पर एक अजीब सी आभा और शान्ति के रूप में दिखाई देने लगती है , gomez -pinilla दो डॉक्टर्स ने यह बात २०१७ में अपनी एक रिसर्च में साबित किया और यह भी की इसका असर भी काफी देर तक इंसान के सोच पर रहता है। 


दूसरी बात जो निकल कर आई ,व्यायाम से दिमाग के epigenetic और शरीर के DNA को बदला जा सकता है और अपनी अगली पीढ़ी को भी ट्रांसफर किया जा ता है , यही है spirituality का उदगम दिमाग में , हमारे दिमाग के हिस्से hypocampus जिसमे हमारे शरीर की सभी सूचनाएं और पूरे जीवन की शिक्षा इसी में होती है , इस कोरोना pandemic की वजह से काफी नुक्सान हो रहा है  spirituality पर भी बुरा प्रभाव आने वाले वक्त में दिखने वाला है , 


हमारे सनातन समाज में भजन कीर्तन ,गायन ताली बजाना , इत्यादि का दिमाग की  पॉजिटिव spirituality पे पड़ने वाला असर भी रिसर्च में साबित हुआ है, अंत में नतीजे पे हम जा पहुंचे के हमारे सनातन नियमो में ही अंतिम आधात्म निहित है बाकी सब लोग तो सिर्फ अपनी अपनी ढपली बजाने में लगे है जैसे कोई नया नया  विद्यार्थी ग्रंथो को समझ कर कोड करने के कोशिश करे ,





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 but the neurophysiological effects
researchers led by Dr Jeff Anderson, PhD. — from the University of Utah School of Medicine in Salt Lake City — examined the brains of 19 young Mormons using a functional MRI scanner
When asked whether, and to what degree, the participants were “feeling the spirit,” those who reported the most intense spiritual feelings displayed increased activity in the bilateral nucleus accumbens, as well as the frontal attentional and ventromedial prefrontal cortical loci.

These pleasure and reward-processing brain areas are also active when we engage in sexual activities, listen to music, gamble, and take drugs. The participants also reported feelings of peace and physical warmth.

“When our study participants were instructed to think about a savior, about being with their families for eternity, about their heavenly rewards, their brains and bodies physically responded,” says first study author Michael Ferguson.

These findings echo those of older studies, which found that engaging in spiritual practices raises levels of serotonin, which is the “happiness” neurotransmitter, and endorphins.

The latter are euphoria-inducing molecules whose name comes from the phrase “endogenous morphine.” Such neurophysiological effects of religion seem to give the dictum “Religion is the opium of the people” a new level of meaning.




This is not just a theoretical question because in the 1990s, Dr Michael Persinger — the director of the Neuroscience Department at Laurentian University in Ontario, Canada — designed what came to be known as the “God Helmet.”

This is a device that is able to simulate religious experiences by stimulating an individual’s temporoparietal lobes using magnetic fields.

In Dr Persinger’s experiments, about 20 religious people — which amounts to just 1 per cent of the participants — reported feeling the presence of God or seeing him in the room when wearing the device. However, 80 per cent of the participants felt a presence of some sort, which they were reluctant to call “God.”

Speaking about the experiments, Dr Persinger says, “I suspect most people would call the ‘vague, all-around me sensations ‘God’ but they are reluctant to employ the label in a laboratory.” 
namely, different religions activate brain regions differently.

The researcher, who literally “wrote the book” on neurotheology, draws from his numerous studies to show that both meditating Buddhists and praying Catholic nuns, for instance, have increased activity in the frontal lobes of the brain.

These areas are linked with increased focus and attention, planning skills, the ability to project into the future, and the ability to construct complex arguments.

Also, both prayer and meditation correlate with a decreased activity in the parietal lobes, which are responsible for processing temporal and spatial orientation.

Nuns, however — who pray using words rather than relying on visualization techniques used in meditation — showed increased activity in the language-processing brain areas of the subparietal lobes.

But, other religious practices can have the opposite effect on the same brain areas. For instance, one of the most recent studies co-authored by Dr Newberg shows that intense Islamic prayer — “which has, as its most fundamental concept, the surrendering of one’s self to God” — reduces the activity in the prefrontal cortex and the frontal lobes connected with it, as well as the activity in the parietal lobes.

The prefrontal cortex is traditionally thought to be involved in executive control, or willful behaviour, as well as decision-making. So, the researchers hypothesize, it would make sense that a practice that centres on relinquishing control would result in decreased activity in this brain area.




        न्यायधीश का दंड


अमेरिका में एक पंद्रह साल का  लड़का था, स्टोर से चोरी करता हुआ पकड़ा गया। पकड़े जाने पर गार्ड की गिरफ्त से भागने की कोशिश में स्टोर का एक शेल्फ भी टूट गया। 

जज ने जुर्म सुना और लड़के से पूछा, "तुमने क्या सचमुच कुछ चुराया था ब्रैड और पनीर का पैकेट"? 

लड़के ने नीचे नज़रें कर के जवाब दिया। ;- हाँ'।

जज,:- 'क्यों ?'

लड़का,:- मुझे ज़रूरत थी।

जज:- 'खरीद लेते।

लड़का:- 'पैसे नहीं थे।'

जज:- घर वालों से ले लेते।' लड़का:- 'घर में सिर्फ मां है। बीमार और बेरोज़गार है, ब्रैड और पनीर भी उसी के लिए चुराई थी 

जज:- तुम कुछ काम नहीं करते ?

लड़का:- करता था एक कार वाश में। मां की देखभाल के लिए एक दिन की छुट्टी की थी, तो मुझे निकाल दिया गया।'

जज:- तुम किसी से मदद मांग लेते?

लड़का:- सुबह से घर से निकला था, तकरीबन पचास लोगों के पास गया, बिल्कुल आख़िर में ये क़दम उठाया।


जिरह ख़त्म हुई, जज ने फैसला सुनाना शुरू किया, चोरी और ख़ुसूसन ब्रैड की चोरी बहुत शर्मनाक जुर्म है और इस जुर्म के हम सब ज़िम्मेदार हैं।  'अदालत में मौजूद हर शख़्स मुझ सहित  सब मुजरिम हैं, इसलिए यहाँ मौजूद हर शख़्स पर दस-दस डालर का जुर्माना लगाया जाता है। दस डालर दिए बग़ैर कोई भी यहां से बाहर नहीं निकल सकेगा।'


ये कह कर जज ने दस डालर अपनी जेब से बाहर निकाल कर रख दिए और फिर पेन उठाया लिखना शुरू किया:- इसके अलावा मैं स्टोर पर एक हज़ार डालर का जुर्माना करता हूं कि उसने एक भूखे बच्चे से ग़ैर इंसानी सुलूक करते हुए पुलिस के हवाले किया। 

अगर चौबीस घंटे में जुर्माना जमा नहीं किया तो कोर्ट स्टोर सील करने का हुक्म दे देगी।'

जुर्माने की पूर्ण राशि इस लड़के को देकर कोर्ट उस लड़के से माफी तलब करती है।


फैसला सुनने के बाद कोर्ट में मौजूद लोगों के आंखों से आंसू तो बरस ही रहे थे, उस लड़के के भी हिचकियां बंध गईं। वह लड़का बार बार जज को देख रहा था जो अपने आंसू छिपाते हुए बाहर निकल गये।


क्या हमारा समाज, सिस्टम और अदालत इस तरह के निर्णय के लिए तैयार हैं?


 चाणक्य ने कहा है कि यदि कोई भूखा व्यक्ति रोटी चोरी करता पकड़ा जाए तो उस देश के लोगों को शर्म आनी चाहिए


यह रचना बहुत ही प्यारी है दिल को छू गयी तो सोचा आप से भी शेयर कर लूं 🙏🏻