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Wednesday, December 14, 2011

SENTIMENTS





शाम को परिंदों की तरह , वो घर को लौट आता ?    
  मुन्तज़र कोई अगर हमारा भी  होता  ..........
सारी कायनात  का    भी  मैं क्या करती ?
,मेरा आसमान में फ़क्त   इक सितारा होता 
मुन्तजिर  अगर  कोई  हमारा होता
चाँद  तारों  की ख्वाइश  भी किसको थी ?
थी तो बस रौशनी  के लिए एक सितारा होता ,
होता तो ?हम  ने  चाहा था  बस  इतना  के ,
 वो  शख्स सिर्फ  हमारा  होता ??
हम  में  शायद रह गई  कोई  कमी होगी ?
वरना इस भरी दुनिया में अब तलक ,
 ज़रूर  कोई  हमारा भी बन गया होता ?
























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