Tuesday, January 4, 2022

IST JANUARY 2022----- ADABI SANGAM --MEETING NO ---507TH - TOPIC "--KAZAL / ANKHEN at ( RAJANI'S HOUSE)

काज़ल ----आँखें 

507th meeting of Adabi Sangam Logistics:
Hosts: Rajni ji & Ashok ji
D/T: 1/1/22. 5:30 PM
Venue: Residence: 40  Ninth Street, Hicksville, NY 11801
Part 1: Ashok Singh ji
Part 2: Rajinder ji
Story: Rajinder ji
Topic: KAAJAL
Rajni ji has suggested if the topic Kaajal is too difficult, you may write on AANKHEN आंखें.  Please be on time. Thanks.🙏





आँख हर वह चीज़ देख लेती है जो संसार में है ,
मगर आँख के अंदर कुछ चला जाए तो उसे नहीं देख पाती ?


यही आज की सचाई है मनुष्य की भी ,दुसरे की बुराइयां जिन आँखों से देखता है उन्ही आँखों से खुद की बुराई नजर नहीं आती उसे । कितनी आसानी से या मक्कारी से अपने भीतर बैठी बुराईआं नजरअंदाज कर देता है " हमारा नैनसुख "


महिफल मे आज फिर ,क़यामत की रात हो गई,
उन्होंने तो लगाया था ,अपनी आखो मे काजल सजने संवरने को
पर नजरें जो मिली ---कुछ यादें जो टकराई,
बिन बादल बरस गई आँखें उनकी , काजल भी न ठहर पाया
उस सैलाब में . ,


आखिर यह भ्रम भी टूटा , दम भरा करते थे ,

हम आँखों से दिल पढ़ लिया करते हैं,
आज मगर चूक गए


मै जिसे देख कर हो गया था पागल कभी जवानी में ,
उस लड़की का तो नाम ही काजल था


आईना नज़र लगाए भी तो कैसे

उनको ?
एक तो नाम काजल , ऊपर से
काजल भी लगाती है तो
आईने में देखकर.


मगर दीवाल पे टंगा आइना ,वह सब देख लेता है जिसे हम नहीं देखते
परन्तु "नादान" आईने को भी क्या खबर...
कुछ "चेहरे"


"चेहरे" के अन्दर भी छुपे होते हैं..! जिसे वो भी नहीं देख पाता


आईने ने अपनी रजा दी , सूंदर सा चेहरा , मृग सी आँखें
उन आँखों में लगा काजल , देख के इतनी ख़ूबसूरती ,
चकरा गया आइना भी , पर झूट बोला न गया उससे, "पूछ बैठा "

क्या गम है तुम्हारी आँखों में ? जिसे काजल से छुपा रहे हो ?


आंखें ही, क्या कम कातिल थी,
उस पर, काजल भी लगाते हो,
इश्क में, कत्ल के तुम भी,
क्या क्या हुनर, आजमाते हो.


मुझे याद आ गया ,
अभी गोद में ही था ,न बोलना न चल पाना ,
पर फिर भी है कुछ यादे
माँ ने भी तो लगाया था ,टीका काजल का गाल पे ,
कहते हुए ,"नजर नहीं लगेगी , कभी मेरे लाल को" ,

होगा कुछ तो माँ के इस काजल में जो ,
उसकी ढाल से मैं आज भी मेह्फूस हूँ ,


थोड़े जवान हुए तो काजल का रूप बदल गया , लोग कहने लगे
काजल तो गहना है ख़ूबसूरती का ,
जो मर्दों को नसीब नहीं ,
नहीं था ऐसा पर्दा ? जो हम , गम अपने छुपा लेते ,
औरत ने तो छुपा लिया काजल में , मर्द कहाँ जाते ?


सोचा एक दिन अपने ग़मों को लिख डालूं एक कागज़ पर
उधार मांगा था उनसे हमने उनकी
आँखों का काजल ,अपनी कलम के लिए
उसने भी रख दी शर्त , शायरी किसी और पे नहीं
हमारी आँखों पर ही होनी चाहिए.


बोल के वह मुस्कुराई , थोड़ा शरमाई
हुस्न निखारने के नाम पर
काजल की दिवार जो थी उसने बनाई
आँखो की मायूसी फिर भी छुप न पाई ,


एक तो उनकी आंखे नशीली और ऊपर से लगा यह काजल,
कोई पढ़े भी तो कैसे उन्हें ,
सब कुछ तो काला है वहां ?

आँखों से जज्बात तो जाहिर कर दिए उन्होंने ,
कम्बख्त
,काजल ने पर्दा फिर भी बनाये रखा
बावरा हुआ जाता हूँ बेशक ,देख तेरी अखियों में ,तैरते अक्स
न जाने क्या क्या छुपा रखा है , तेरी इस आँखों के काजल ने

याद है अब तक
तुझसे बिछड़ने की वो अँधेरी शाम मुझे,
तू तो ख़ामोश खडी थी
लेकिन बातें कर रहा था बहता हुआ तेरा काजल.

हौंसला गर तुझ में नहीं था ,मुझसे जुदा होने का,
हुनर मुझ में भी कहाँ था बहते काजल को पढ़ पाने का

उसका लिक्खा हुआ
हर शख्स पढ़ भी नहीं सकता, क्योंकि
वो चालाकी से मिला लेती है ,हमेशा
अपने दो आँसू. काजल में


वो जो अफसाना-ए-ग़म सुन सुन के
हंसा करते थे,हम पर कभी
इतना रोए इक दिन , काली घटाएं देख कर बोले
क्या बादल भी रोया करते है काजल लगा कर ?

कैसे समझाऊँ , किसे समझाऊं, किस भाषा में ?
कौन समझे मेरी आँखों की नमी का मतलब
ज़िन्दगी एक गीत थी , बेइंतिहा सफे जिसके
पर पूरी की पूरी जिल्द बंधाने में कट गई

#हुस्न दिखाकर भला कब हुयी हैं मोहब्बत
वो तो काजल लगाकर हमारी जान ले गयी!!!
बात ज़रा सी है ,लेकिन हवा को कौन समझाए,
जलते दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाया करती थी

निकल आते हैं आँसू
गर जरा सी चूक हो जाये,
किसी की आँख में काजल लगाना
खेल थोड़े ही है.

बताया एक दिन ,मुझे उन्होंने
छोड़ दिया है काजल लगाना,आँखों में ,
बहुत रुलाते हैं लोग ,
ठहर नहीं पाता


कहने लगी अब जरुरत ही नहीं मुझे
काजल लागे किरकरो, सुरमा सहा ना जाए !
जिन नैनंन में साजन बसे,दूजा कौन समाये !!


हमारी जिंदगी भी कुछ आसान नहीं रही
मुहब्बत की बेनूर ख्वाहिशें ,और तेरा गम,
हम भी बिखर से गये हैं ,
आँखों से बहे तेरे काजल की तरह.


चख के देख ली दुनिया भर की शराब जो

नशा तेरी कजरारी आँखों में था वो किसी में नहीं!!!


हुस्न ढल गया तो क्या ,गरूर अभी बाकी है ,
आँखों का काजल तो बह गया ,लकीर तो बाकी है
नशा उत्तर गया तो क्या सरूर अभी बाकी है
जवानी ने दस्तक दी कुछ दिया ,
फिर बहुत कुछ लेकर चली भी गई ,
जेहन में कुछ फितूर फिर भी अभी बाकी है





👌 अर्थ बड़े गहरे हैं


....गौर फरमायें....एक आँखों के काजल ही को क्यों
याद रखती है ये दुनिया ?
काला था इस लिए नजर को चुभा ?
और भी तो रंग थे मेरी दुनिया के ,
उसे क्यों नजरअंदाज किया सबने ?

मैंने .. हर रोज .. जमाने को .भी . रंग बदलते देखा है ....!!!
उम्र के साथ .. जिंदगी को .. ढंग बदलते देखा है .. !!!

वो .. जब चला करते थे .. तो शेर के चलने का .. होता था गुमान..!!!
उनको भी ..आज पाँव उठाने के लिए .. सहारे को तरसते देखा है !!!

जिनकी .. नजरों की .. चमक देख .. सहम जाते थे लोग ..!!!
उन्ही .. नजरों को .. बरसात .. की तरह ~~ बरसते देखा है .. !!!

जिनके .. हाथों के .. जरा से .. इशारे से ..पत्थर भी कांप उठते थे..!!!
उन्ही .. हाथों को .. पत्तों की तरह .. थर थर काँपते देखा है .. !!!

जिन आवाज़ो से कभी .. बिजली के कड़कने का .. होता था भरम ..!!!
उन.. होठों पर भी .. मजबूर .. चुप्पियों का ताला .. लगा देखा है .. !!!

ये जवानी .. ये ताकत .. ये दौलत ~~ सब कुदरत की .. इनायत है ..!!!
इनके .. जाते ही .. इंसान को ~~बे औकात , बेजान होते हुआ देखा है ... !!!

अपने .. आज पर .. इतना ना .. इतराना ~~ मेरे .. यारों ..!!!
वक्त की धारा में .. अच्छे अच्छों को ~~ मजबूर होकर बहते देखा है .. !!!

काफी नहीं होता छुपा लेना अपनी आँखों की मक्कारी,
कभी इस काजल के जलवे से
कर सको..तो किसी को खुश करो...दुःख देते ...हुए....
तो हमने हजारों को देखा है ।।।