पतझड़- ख़िज़ाँ -- FALLS --
हम इस ब्रह्मांड केअब तक के सबसे खूबसूरत गृह यानि की हमारी पृथ्वी के उपर रहते है। यहाँ हमे वह सब चीज़े मिलती है जो हमे अन्य ग्रहों पर सुनने में अभी तक नहीं मिली ,जो एक इन्सान के जीने के लिए पर्याप्त हों ।
दोस्तों हमे पृथ्वी की सरंचना इंसान के रहने के लिए बहुत अनुकूल मिला है,
फिर भी हम इस को बिगाडने का कोई मौका नहीं छोड़ते ,
जिसका हमें बिलकुल मलाल नहीं होता ।
लेकिन प्रकृति चिल्लाती है रोष दिखाती है अपने लाल पीले रंग दिखा कर ,
हम कहते है प्रकृति भी अपना परिधान अपना श्रृंगार बदलती रहती है ,
लेकिन हम यह समझ ही नहीं पाए आज तक की पृकृति का गुस्सा हर बदलते मौसम का ही स्वरुप है।
न ही इसमें हमेशा बहार का मोसम रहता है न ही कोई दूसरा मौसम , बसंत बहार के बाद खिजां और पतझड़ , बरसात , हिमपात , शीतऋतु का मोसम भी आता है,
एक बुजुर्ग पति ने आवाज लगाई " हे भाग्यवान सुनती हो , मुझे न अदबी संगम के इस बार के टॉपिक पतझड़ पे लिखना है कोई खास विचार तुम्हारे दिमाग में आये तो बताओ ?' पत्नी ने घूर के देखा और बोली आपलोग भी न क्या क्या लिखते रहते हो , मुहं में तुम्हारे एक दांत नहीं बचा , सर पे एक बाल नहीं , यह क्या पतझड़ से कम है ? फूल पत्तों के झड़ने की चिंता छोड़ो कुछ अपनी सेहत पे ध्यान दो ? कहते कहते रसोई में चली गई पर विचार तो दे ही गई
होता तो हमारी जिंदगी में भी यही है , बालअवस्था , तरुणाई टीन , जवानी और फिर आखिर में आता है बुढ़ापा यानी के जिंदगी की आखिरी पायदान पतझड़ ? जिंदगी में भी बहारें और पतझड़ दोनों साथ साथ चलती है। जो चीज़ पनपती है उसे एक दिन जाना भी होता है यही दस्तूर है जीवन का।
पतझड़ नाम है पेड़ो के पत्तों के झड़ने का। इंसान भी तो अपनी जिंदगी में इन्ही पतझड़ों से रूबरू होता है ?, कभी उसके बाल झड़ जाते हैं , तो कभी दांत , और कभी त्वचा ,धीरे धीरे उसका वजूद भी झड़ते झड़ते वापिस प्रकृति में सिमट जाता है।
इस दुनिया में सब की यही दास्तान है , बन कर फल फूल खिलना फिर झड़ जाना
और एक नए रूप में पुनर्जीवित हो जाना यही एक मात्र विधि का विधान है
मंज़िल तो सबकी एक ही है, रास्ते मगर जुदा,
कोई पतझड़ से गुजरा, कोई सहरा से गया।
खूबसूरत फूल चुन लिए उसने मेरे शाख़े-गुल से, और साथ ले गया
खिजां पसंद न आई उसे , वह बाग ही में मेरे साथ रह गई
सिर्फ बागबान ही तो वाकिफ है इस हकीकत से के ,
न खिजां में थी कोई मायूसी , न बहार में कोई रोशनी
ये तो अपनी अपनी -नजर के चराग है,
कहीं जल गये, तो कहीं बुझ गये।
होता नहीं है कोई बुरे वक्त में शरीक,( शामिल )
किस बात का ,किस किस से गिला करें
जब अपने पत्ते भी भागते हैं, खिजां में, दरख्तों से दूर।
पतझड़ का मौसम जब आया, नज़ारा बदलाव का आया
ओस की बूंदे रो रो कर , मिली पत्तों से आखिरी बार ,
आभास जो हो चूका था उनके जाने का , आखिरी मिलनं था
हर रंग के पत्ते थे , कुछ शोख लाल , और कुछ हरे, भूरे पीले ,
सब कतार में थे जमीन पे गिरने , और हवा में उड़ जाने को।
लोगों की कतारें लगने लगी , फोटो खींची जाने लगी ,
हमारे विदाई परिधानों को ,खूबसूरती का नाम देता है यह फरेबी इंसान
खिजां पसंद न आई उसे , वह बाग ही में मेरे साथ रह गई
सिर्फ बागबान ही तो वाकिफ है इस हकीकत से के ,
न खिजां में थी कोई मायूसी , न बहार में कोई रोशनी
ये तो अपनी अपनी -नजर के चराग है,
कहीं जल गये, तो कहीं बुझ गये।
होता नहीं है कोई बुरे वक्त में शरीक,( शामिल )
किस बात का ,किस किस से गिला करें
जब अपने पत्ते भी भागते हैं, खिजां में, दरख्तों से दूर।
पतझड़ का मौसम जब आया, नज़ारा बदलाव का आया
ओस की बूंदे रो रो कर , मिली पत्तों से आखिरी बार ,
आभास जो हो चूका था उनके जाने का , आखिरी मिलनं था
हर रंग के पत्ते थे , कुछ शोख लाल , और कुछ हरे, भूरे पीले ,
सब कतार में थे जमीन पे गिरने , और हवा में उड़ जाने को।
लोगों की कतारें लगने लगी , फोटो खींची जाने लगी ,
हमारे विदाई परिधानों को ,खूबसूरती का नाम देता है यह फरेबी इंसान
सब को मालुम है हमारे जनाजे सजे है , फिर फना हो जाना है ,
और यह इन्हे कलर ऑफ़ फाल्स कहता है , बड़े शोक से इसे निहारता है
यही तो है वह इंसानी फितरत , जो किसी के विनाश पे झूमता है ,
हमारी वेदना को , झड़ते पत्तों को एक उत्सव की तरह मनाता है
हर हवा का झोंका उनके वजूद पर था भारी ,
नहीं था दम किसी में जो उन्हें गिरने से बचा पाता ,
हर हवा का झोंका उनके वजूद पर था भारी ,
नहीं था दम किसी में जो उन्हें गिरने से बचा पाता ,
न ही दम था उस विशालकाय वृक्ष में न ही शाखाओं में
जिनपे अब तक इतना सुहाना मंजर नसीब हुआ था
जिनपे अब तक इतना सुहाना मंजर नसीब हुआ था
एक अनजाना खौफ भी था , हमेशा को घर से बेघर होने का ,
किसी को पूरा यकीन था नालिओं के सैलाब में बह जाने का ,
किसी को पूरा यकीन था नालिओं के सैलाब में बह जाने का ,
शायद यही सोच के खुद को समझा लिया होगा ,
की जाना तो सबको पड़ता है एक दिन इस प्रकृति से
की जाना तो सबको पड़ता है एक दिन इस प्रकृति से
उसके नियमों से बंधे थे , पुराना शरीर , पुराना परिवार
सब बंधन छोड़ना पड़ता है नया जीवन पाने को
सब बंधन छोड़ना पड़ता है नया जीवन पाने को
चिनार के पंचकोणी पत्ते ,हर आकार प्रकार के पत्ते ,
सब सूख चले ,पिछले सावन के पाले पोसे हरे भरे पत्ते ,
सब सूख चले ,पिछले सावन के पाले पोसे हरे भरे पत्ते ,
अब जीवन बीत चला , देख न पाएंगे अगली बहार ये पत्ते
सबका अंजाम एक ही था , लाल ,हरे ,या हो पीले पत्ते
यही तंग हाल जो सबका है यह करिश्मा कुदरते रब का है
जो बहार थी सो खिजां हुई जो खिजां थी अब वह बहार है।”
सबका अंजाम एक ही था , लाल ,हरे ,या हो पीले पत्ते
यही तंग हाल जो सबका है यह करिश्मा कुदरते रब का है
जो बहार थी सो खिजां हुई जो खिजां थी अब वह बहार है।”
जिस पेड़ के नीचे कभी सुस्ताया करते थे , हम सब
खुद को झुलसती गर्मी से बचाते थे , वह शीतलता इन्ही पत्तों की बदौलत ही तो थी?
बड़ा सुहाना समय था , सुबह सुबह पक्षियों का चह चाहाना दिल को लुभा रहा था
मैं भी बिस्तर से निकल पड़ा , इनके संगीत को सुनने ,
जगह जगह सड़क पर पत्ते बिखरे थे , मेरी पदचाप से पत्तों की चीत्कार सुनी मैंने ,
इन्ही पत्तों के ढेर में एक पत्ता बहुत चमक रहा था , मैंने उसे उठाया और संभाल कर अपनी जेब में रख लिया , घर आकर इसे अपनी पुस्तक में दबा दिया ताकि इसकी ख़ूबसूरती सब को दिखाई जाए।
खिजां में पेड़ से टूटे हुए इस पत्ते को अपने हाथो में ले मैंने पुछा ,
कैसा लगता है अपनों से यूं बिछड़ कर लावारिस हो जाना ,
जमीन पे गिर ,रोंदेय जाना और बरसाती नाले में बह जाना ,
पत्ते ने संजीदगी से जवाब दिया , हमारा तो जीवन ही इतना था ,मान्यवर
हमें तो हर हाल में शाख से टूट जाना था ,हमारा विसर्जन तो पहले से ही नियत था ,
मौसम के बदलते हर रंग में ही निहित हमारा अस्तित्व है , आपने मुझे मेरी ख़ूबसूरती और चमक की वजह से उठा कर अपने घर में स्थान दिया , मेरे उन बड़े भाई बहनो का क्या जो मेरे साथ ही गिरे पर उन्हें आज तक किसी ने नहीं सहेजा , क्योंकि उनमे कोई कशिश न थी , ? यही सच है जनाब लोग बहारों की कदर करते है खिज़ाओं की नहीं
खिजां में पेड़ से टूटे हुए इस पत्ते को अपने हाथो में ले मैंने पुछा ,
कैसा लगता है अपनों से यूं बिछड़ कर लावारिस हो जाना ,
जमीन पे गिर ,रोंदेय जाना और बरसाती नाले में बह जाना ,
पत्ते ने संजीदगी से जवाब दिया , हमारा तो जीवन ही इतना था ,मान्यवर
हमें तो हर हाल में शाख से टूट जाना था ,हमारा विसर्जन तो पहले से ही नियत था ,
मौसम के बदलते हर रंग में ही निहित हमारा अस्तित्व है , आपने मुझे मेरी ख़ूबसूरती और चमक की वजह से उठा कर अपने घर में स्थान दिया , मेरे उन बड़े भाई बहनो का क्या जो मेरे साथ ही गिरे पर उन्हें आज तक किसी ने नहीं सहेजा , क्योंकि उनमे कोई कशिश न थी , ? यही सच है जनाब लोग बहारों की कदर करते है खिज़ाओं की नहीं
रोंदेय जाते है मसले जाते है हम पत्ते , उनके पैरो तले जो भी इधर से गुजरता है
हम जानते है तेज तूफानी हवाएं उडा ले जाएंगी हमें ,
दफना देंगी दूर ,एक अनजान देश की मिटटी में
हमारी विदाई ही हमारा नया जीवन है , नया मुकाम है , नया परिधान है ,
हर बार जा कर हम फिर लौट आते है नए रूप में अपने परिवार के पास
आप अपनी भी तो बताइये जनाब ,खुद के फायदे में परिवार ही छोड़ जाते हो ,
आप भी तो अपना घर छोड़ देते हो , और कभी उसे तोड़ कर दुबारा बना देते हो
आप इंसान है ,बहुत समझदार है , आप तो खुद दरबदर घुमते हो ,
हम जानते है तेज तूफानी हवाएं उडा ले जाएंगी हमें ,
दफना देंगी दूर ,एक अनजान देश की मिटटी में
हमारी विदाई ही हमारा नया जीवन है , नया मुकाम है , नया परिधान है ,
हर बार जा कर हम फिर लौट आते है नए रूप में अपने परिवार के पास
आप अपनी भी तो बताइये जनाब ,खुद के फायदे में परिवार ही छोड़ जाते हो ,
आप भी तो अपना घर छोड़ देते हो , और कभी उसे तोड़ कर दुबारा बना देते हो
आप इंसान है ,बहुत समझदार है , आप तो खुद दरबदर घुमते हो ,
चले जाते हो बिलखते रोते परिवार को छोड़ ,
लेकिन लौट कर कभी नहीं आते
हमारी समझ तो बस इतनी ही है
की बिछड़ कर अपनों से मिलती है बस पाऊँ की ठोकरें और दर-दर की दुत्कारी…
हमारी समझ तो बस इतनी ही है
की बिछड़ कर अपनों से मिलती है बस पाऊँ की ठोकरें और दर-दर की दुत्कारी…
देखिए ना तेज़ कितनी उम्र की रफ़्तार है,ज़िंदगी में चैन कम और फ़र्ज़ की भर-मार है!
बस इतना ही मुझको तुमसे है कहना..
तुम्ही ने ही तो हमे अपने आँगन में जगह दी ,
पानी दिया खाद दी , पनपने को पुरा आस्मां दिया
बड़े अच्छे हो तुम, ख्याल रखा करो अपना..!!
कर्ज है मेरे ऊपर तेरे सजदो का..
मैंने भी एक अरसे से तुझे अपना माना है..!! ☘️🌻
यह आवाज मेरे ही अंतर्मन की थी जो एकपतझड़ के टूटे हुए पत्ते ने मुझे याद करवा दी थी
पर यह तूफानी बरसाते वह सब कर गई जिसका डर था
नाम पतझड़ का है , जुल्म तो इंसान कभी भी कर देता है ,
अपनी गरज को पेड़ लगाता है और खुद ही कलम कर देता है
आज बह कर जहाँ भी जाएंगे
इससे भी दर्दनाक मंजर क्या होगा वहां..
खंजरों की जगह जुबाने बिक रही हो जहां..!! ⛓️🔗
खामोशी भी अब रास आ गई है.हमें
., हवा की सरसराहट से हम भी जाग उठे है ,
ज़िन्दगी इसी बहाने पास आ गई है..!!
सजा बन जाती है गुज़रे वक़्त की निशानियां..
पर यह तूफानी बरसाते वह सब कर गई जिसका डर था
नाम पतझड़ का है , जुल्म तो इंसान कभी भी कर देता है ,
अपनी गरज को पेड़ लगाता है और खुद ही कलम कर देता है
आज बह कर जहाँ भी जाएंगे
इससे भी दर्दनाक मंजर क्या होगा वहां..
खंजरों की जगह जुबाने बिक रही हो जहां..!! ⛓️🔗
खामोशी भी अब रास आ गई है.हमें
., हवा की सरसराहट से हम भी जाग उठे है ,
ज़िन्दगी इसी बहाने पास आ गई है..!!
सजा बन जाती है गुज़रे वक़्त की निशानियां..
इसी लिए बदल लेते हैं हम भी अपना आशियान
जहाँ कभी बसती थी खुशियाँ, आज हैं मातम वहाँ
वक़्त लाया था बहारें वक़्त लाया है खिजां ।
END
**********************************************************
क्या कहें हम रखते ही नहीं खबर कौन कैसा है…
जहाँ कभी बसती थी खुशियाँ, आज हैं मातम वहाँ
वक़्त लाया था बहारें वक़्त लाया है खिजां ।
END
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क्या कहें हम रखते ही नहीं खबर कौन कैसा है…
कर लेते हैं भरोसा हर एक पर अपना तो दिल ही ऐसा है।
मैं तो बस एक मामूली सा सवाल हूँ साहिब..
और लोग कहते हैं.. तेरा… कोई जवाब नहीं… 😎😎
मेरे “शब्दों” को इतने ध्यान से ना पढ़ा करो दोस्तों,
कुछ याद रह गया तो.. मुझे भूल नहीं पाओगे।
खुदा से क्या मांगू तेरा वास्ते, सदा खुशियां हो तेरे रास्ते..
हँसी तेरे चेहरे पे रहे इस तरह, खुशबू फूलों का साथ, निभाती है जिस तरह।
वक्त भी ये कैसी पहेली दे गया उलझने को
जिंदगी और समझने को उम्र दे गया।
मिल जाता है दो पल का सुकूंन चंद यारों की बंदगी में
वरना परेशां कौन नहीं अपनी-अपनी ज़िंदगी में।
सांसे खर्च हो रही है बीती उम्र का हिसाब नहीं,
फिर भी जीए जा रहें हैं तुझे, जिंदगी तेरा जवाब नहीं।
सबके कर्जे चुका दू मरने से पहले ऐसी मेरी नीयत है..!
मौत से पहले तू भी बता दे .. ऐ ज़िन्दगी तेरी क्या कीमत है..!!
चेहरा तो साफ कर ले, आइने को गंदा बताने वाले..!
हर वक़्त सामने वाला ही गंदा नहीं होता..!! ✨💢✨
बिखेरे बैठा हूं कमरे में सब कुछ…
कहीं एक ख्वाब रखा था वो भी कहीं गुम है..! 🎁
दोस्तों की जुदाई का गम न करना,
दूर रहे तो भी मोहब्बत काम न करना,
मैं तो बस एक मामूली सा सवाल हूँ साहिब..
और लोग कहते हैं.. तेरा… कोई जवाब नहीं… 😎😎
मेरे “शब्दों” को इतने ध्यान से ना पढ़ा करो दोस्तों,
कुछ याद रह गया तो.. मुझे भूल नहीं पाओगे।
खुदा से क्या मांगू तेरा वास्ते, सदा खुशियां हो तेरे रास्ते..
हँसी तेरे चेहरे पे रहे इस तरह, खुशबू फूलों का साथ, निभाती है जिस तरह।
वक्त भी ये कैसी पहेली दे गया उलझने को
जिंदगी और समझने को उम्र दे गया।
मिल जाता है दो पल का सुकूंन चंद यारों की बंदगी में
वरना परेशां कौन नहीं अपनी-अपनी ज़िंदगी में।
सांसे खर्च हो रही है बीती उम्र का हिसाब नहीं,
फिर भी जीए जा रहें हैं तुझे, जिंदगी तेरा जवाब नहीं।
सबके कर्जे चुका दू मरने से पहले ऐसी मेरी नीयत है..!
मौत से पहले तू भी बता दे .. ऐ ज़िन्दगी तेरी क्या कीमत है..!!
चेहरा तो साफ कर ले, आइने को गंदा बताने वाले..!
हर वक़्त सामने वाला ही गंदा नहीं होता..!! ✨💢✨
बिखेरे बैठा हूं कमरे में सब कुछ…
कहीं एक ख्वाब रखा था वो भी कहीं गुम है..! 🎁
दोस्तों की जुदाई का गम न करना,
दूर रहे तो भी मोहब्बत काम न करना,
अगर मिले ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर,
तो हमें देखकर आंखें बंद न करना.
शायरीयो का बादशाह हूँ और कलम मेरी रानी है,
अल्फाज़ मेरे गुलाम है, बाकी रब की महेरबानी है!!
अगर लोग यूँ ही कमियां निकालते रहे तो,
एक दिन सिर्फ खूबियाँ ही रह जायेगी मुझमें।
दिखावे की मोहब्बत तो जमाने को है हमसे पर,
ये दिल तो वहाँ बिकेगा जहाँ ज़ज्बातो की कदर होगी।
मेरे बारे में अपनी सोच को थोड़ा बदल के देख,
मुझसे भी बुरे हैं लोग तू घर से निकल के देख।
हमको आज़माने की ज़ुर्रत नहीं किसी की,
हम खुद अपनी तक़दीर लिखते है,
खुदा की लिखावट को बदलना तो हमारी फ़ितरत है,
हार को जीत में बदल कर हाथो की लकीर बदलते है!!
अभी सूरज नहीं डूबा जरा सी शाम होने दो,
मैं खुद लौट जाऊंगा मुझे नाकाम तो होने दो,
मुझे बदनाम करने का बहाना ढूँढ़ते क्यों हो,
मैं खुद हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम तो होने दो।
कई लोग मुझको गिराने मे लगे है,
सरे शाम चिराग भुझाने मे लगे है,
उन से कह दो क़तरा नही मैँ 🌊 समन्द्र हूँ,
डूब गये वो ख़ुद जो डूबाने मे लगे है!
सुधीर भाई आज तुम्हारी छोटी सी क्रियाशीलता ने ( activities )
तो हमें देखकर आंखें बंद न करना.
शायरीयो का बादशाह हूँ और कलम मेरी रानी है,
अल्फाज़ मेरे गुलाम है, बाकी रब की महेरबानी है!!
अगर लोग यूँ ही कमियां निकालते रहे तो,
एक दिन सिर्फ खूबियाँ ही रह जायेगी मुझमें।
दिखावे की मोहब्बत तो जमाने को है हमसे पर,
ये दिल तो वहाँ बिकेगा जहाँ ज़ज्बातो की कदर होगी।
मेरे बारे में अपनी सोच को थोड़ा बदल के देख,
मुझसे भी बुरे हैं लोग तू घर से निकल के देख।
हमको आज़माने की ज़ुर्रत नहीं किसी की,
हम खुद अपनी तक़दीर लिखते है,
खुदा की लिखावट को बदलना तो हमारी फ़ितरत है,
हार को जीत में बदल कर हाथो की लकीर बदलते है!!
अभी सूरज नहीं डूबा जरा सी शाम होने दो,
मैं खुद लौट जाऊंगा मुझे नाकाम तो होने दो,
मुझे बदनाम करने का बहाना ढूँढ़ते क्यों हो,
मैं खुद हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम तो होने दो।
कई लोग मुझको गिराने मे लगे है,
सरे शाम चिराग भुझाने मे लगे है,
उन से कह दो क़तरा नही मैँ 🌊 समन्द्र हूँ,
डूब गये वो ख़ुद जो डूबाने मे लगे है!
सुधीर भाई आज तुम्हारी छोटी सी क्रियाशीलता ने ( activities )
हमारा सब का मजा दो गुना कर दिया , ऐसे ही भाग लेते रहिये ,
भागना बड़ा आसान पर भाग लेना कितना मुश्किल ?
इसमें कोई शक नहीं , पांच उंगलिओं से ही मुट्ठी बंध सकती है,
इसमें कोई शक नहीं , पांच उंगलिओं से ही मुट्ठी बंध सकती है,
हम तो उससे कहीं ज्यादा है , ऐसे ही जुड़े रहिये और अपने आने वाले
एकाकी पन को हमेशा के लिए भूल जाईये
खुदगर्ज इंसान इन्हे रौंदता हुआ चलता ही रहता है ,
खुदगर्ज इंसान इन्हे रौंदता हुआ चलता ही रहता है ,
हम तो वैसे ही ख़िज़ाँ के वो फूल है , जो पत्तों से ही काम चला लेते है
गिला उन पक्षियों से नहीं जो घर से बेघर हो गए ,
सिला तो उनका अखरता है जिनहे हम इतनी ,
चाव से बुलाते है अपनी पलकों पे बिछाते हैं ,
और वह हैं के बिना वजह , हमसे आँखे चुराते है ,
लाख कहने पे भी अपना सूंदर मुखड़ा हमसे छुपाते है
काश वो आये या न आएं , पर न आने की वजह तो बता देते ,
इसे ही उनका कलाम समझ , हम पढ़ के खुश नसीब हो जाते
इनके रुद्रण को समझने को एक कोमल हृदय चाहिए ,
क्या गुजरती है जब आशिआना बिखर जाता है पतझड़ आने के बाद
देखिए ना तेज़ कितनी उम्र की रफ़्तार है,ज़िंदगी में चैन कम और फ़र्ज़ की भर-मार है!
सिर्फ ये सोचकर हमने अपनी आस्तीने नहीं झटकी..
ना जाने कितने सांप और सपोले बेघर हो जाएंगे..!
ये इनायते गजब की, ये बला की मेहरबानी…
मेरी खैरियत भी पूछी तो किसी और की ज़बानी ..!! 🌸🌸
बहुत सीमेंट है साहब आजकल की हवाओं में..
दिल कब पत्थर बन जाता है पता ही नहीं चलता..!!
ये इनायते गजब की, ये बला की मेहरबानी…
मेरी खैरियत भी पूछी तो किसी और की ज़बानी ..!! 🌸🌸
बहुत सीमेंट है साहब आजकल की हवाओं में..
दिल कब पत्थर बन जाता है पता ही नहीं चलता..!!
ना जाने मतलब के लिए क्यों मेहरबान होते है लोग..!! 💛
samjhauta gamo se kar lo
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zindagi me gam bhi milte hain
ho patjhad aate hi rahte hain
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ki madhuban phir bhi khilte hai
samjhauta gamo se kar lo
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ret ke niche jal ki dhara
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har sagar ka yaha kinara
rato ke aachal me chupa hai suraj pyara
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samjhauta gamo se kar lo
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zindagi me gam bhi milte hain
samjhauta gamo se kar lo
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de do mujhko zimmedari
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main ban jau nazar tumhari
tum meri ankho se dekho duniya sari
tum meri ankho se dekho duniya sari
samjhauta gamo se kar lo
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zindagi me gum bhi milte hain
ho patjhad aate hi rahte hain
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ki madhuban phir bhi khilte hain
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