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Tuesday, January 4, 2022

---ADABI SANGAM -ASVM. # 15 -- (498) मुकदमा एक वकील पर -------- STORY PART

  STORY PART:--
 
 ADABI SANGAM -ASVM. # 15 --  (498)  मुकदमा एक वकील पर --इस जहाँ से दूर एक सर्वोच्च सर्वोपरि अदालत -  एक सच्ची कहानी जो खुद पे गुजरी है ---



मुकदमा एक वकील पर  इस जहाँ से दूर एक सर्वोच्च सर्वोपरि अदालत का एक दृश्ये जिसे धर्म राज की अदालत कहते है । और उनके कार्यवाहक यमराज जी को जीवन मृत्यु विभाग दिया गया है 

यह बिलकुल सच्ची आपबीती है जो मैंने अपनी कलम से इस कागज पे उतारी है , विश्वास करो तो यह सब सच है न करो तो एक सपना जो इन जीती जागती मन की आँखों ने मरने से पहले के क्षणों में  देखा ? जी हाँ इस सपने में हम अधमरे  ही उस अदालत में पहुंचे थे , दौरा दिल का पड़ा था और हॉस्पिटल के बिस्तर पर यह सब कुछ हो रहा था  आइये  इस घटना के परिपेक्ष में थोड़ा झाँक लेते हैं ,

1975 -76 में लॉ फैकल्टी दिल्ली यूनिवर्सिटी से वकालत पास हुए , और एक नई चुनौती अदालत की जिंदगी , जिरह ,सबूत , गवाह , जज और उसपे तारीख पे तारीख ,  मेरी जिंदगी इससे पहले भी  बड़ी जद्दोजेहद से गुजर रही थी , मुझे पढाई के साथ साथ अपने हिस्से की फैक्ट्री भी देखनी पड़ती थी वरना भाईओं की सुननी  पड़ती थी के यह नवाब बने यूनिवर्सिटी घूम  घूम हीरो बन  रहे हैं और हम दिन रात अकेले मेहनत करें ? 

क्योंकि यह सब कारोबार पिताजी का ही चलाया हुआ  था तो सबको यही लगता था की सब अगर पार्टनर्स है और प्रॉफिट के हकदार है तो चाहे वह पढ़ रहे हो या यूनिवर्सिटी में रोज जा रहे हो सब काम करें , गोया सुबह लॉ फैकल्टी और तीन बजे शाम के  के बाद रात 11 बजे तक फैक्ट्री का काम , मेरे जवान कसरती  शरीर ने  बखूबी साथ  निभाया , टेक्निकल बुक्स पढ़ी और उसमे सुधार करते हुए अपनी फैक्ट्री की प्रोडक्शन सबसे ऊपर कर के दिखा दी और सब को हैरानी में डाल दिया की मैं वकालत की पढ़ाई  में फैक्ट्री चलाना कहाँ से सीख गया ? 

 इतनी हार्ड मेहनत और वक्त की धार के उल्ट ,और तमाम दिक्कतें एक दम  से विकराल रूप में आ गई जब देश में आपातकाल 1975 में लग गया और सारी मेहनत को ग्रहण लग गया कैशफ्लो रुक गया , फैक्ट्री में दिक्क़ते शुरू हो गई जो आखिर हमारे दिल को काफी कमजोर कर चुकी थी । 

हमारे डूबते दिल और गिरती जीवन शैली घर वालों के लिए भी चिंता का बाइस थी ,1976 में वकील तो बन ही गए थे तो घर वालों ने 1977 में शादी भी कर दी , पेरेंट्स को बड़ी चिंता होती है उम्र ज्यादा हो गई तो दिक्क्त आती है रिश्तों में , 28   साल की थी हमारी उम्र उस वक्त , फिर भी लोग कहा  करते थे उम्र ज्यादा है और लड़की वालों का  सिलेक्शन का पैमाना भी वक्त बे वक्त अक्सर  बदल जाता है। 

अगस्त 17,1978  सबसे बड़ा पुत्र  पैदा हुआ 
सितम्बर 27,1979 में दूसरी पुत्री पैदा हुई 

मार्च-28  1985 , सात साल  अंतराल के बाद मेरे यहाँ सबसे छोटा पुत्र हुआ 

अब शुरू हुई असली कश्मकश , कोर्ट कचेहरी के चक्कर , गृहस्ती की जिम्मेवारी , बच्चों को वक्त देना उन्हें स्कूल वक्त पर पहुँचाना , बच्चा बीमार है तो डॉक्टर के पास लेकर जाना ,सब कुछ जो अब तक आरामो सकूं से चल रहा था उसमे एक भीषण गति लानी पड़ी , उसी तकलीफ के वक्त परिवार में विभाजन भी हो चूका था चक्कर पे चक्कर और अब लड़ाई अकेले ही लड़नी थी सब अपने अपने रास्ते चले गए थे , क्या क्या मुसीबत नहीं टूट पड़ी हम पर , पूँजी टूटी , लेबर बगावत पे उत्तर गई , कोर्ट केसों की भरमार हो गई , बैंक के लोन भी थे उन्होंने भी मौके का फायदा उठाते हुए हमे अकेला देख बड़ा तगड़ा केस ठोक दिया और हम लग गए अपनी जान बचाने में और फैक्ट्री को सरकारी झमेलों से बच्चाने में। पूरी जी जान एक कर उस फैक्ट्री को तो बचा लिया पर अपने दिल को नहीं संभाल पाए 

और आ गया वह कयामत का दिन -जून 16, 1991 , 

यह बिलकुल सच्चा किस्सा है और अपनी यादाश्त के सहारे जीवित किया जा रहा है ,घर में कुछ उदासी थी हमारे जीवन में भी , बच्चे भी मेरी मुरझाई सूरत से कुछ उदास से हो गए थे , सोचा सबको एक हफ्ते शिमला हिल स्टेशन ले चलते है थोड़ा तरो ताज़ा हो जाएंगे , कुछ हुए भी और जब लौट कर वापिस दिल्ली पहुंचे तो सुबह कहीं जाने के लिए जल्दी से तैयार भी हुए तो लगा की शरीर में कुछ जकड़न सी थी ,और थोड़ी एक्सरसाइज भी कर डाली ताकि शरीर की मायूसी थोड़ी ठीक हो जाए, एस्पिरेने की दो गोली निगल ली ,लेकिन जब दरुस्त नहीं हुए तो डॉक्टर से चेक अप  करवाने पहुँच गए , उन्होंने बहुत जल्दी जल्दी चेक अप करके एक इंजेक्शन लगा दिया  गाडी में बिठाया और किसी बड़े हॉस्पिटल के icu में भर्ती करवा दिया और मालुम नहीं हम कहाँ थे और कहाँ पहुँच गए , कोई इंजेक्शन का असर ही रहा होगा हमे, और डूब गए हम एक खामोशी में।  

आँख खुली icu के बिस्तर पर ,तो देखा लोग इधर से उधर आ जा रहे , बड़े विचित्रसफ़ेद  परिधान और चेहरे भी ढके हुए , क्या यह कोई इस्लामिक देश है , पर मैं तो हिंदुस्तानी हूँ फिर यहाँ कैसे ?मेरा पहली बार किसी हॉस्पिटल के इस तरह के वार्ड में आना हुआ था , कभी बीमार जो नहीं पड़ते थे ,

मेरी आँखों को खुलता देख एक नकाबपोश मेरे पास आये , पूछने लगे अब कैसी है तबियत ? तबियत ? क्या हुआ है मुझे ? तुम्हे दिल का भयंकर दौरा पड़ा था ,बेहोशी की हालत में यहाँ लाये गए थे , पिछले २४   घंटो से तुम्हे ऑक्सीजन और इलेक्ट्रिक शॉक देकर तुम्हे जीवित करने का परियास चल रहा था ,  क्या बात कर रहे हो , तो क्या मैं मर चूका हूँ , हाँ पर अब वापिस तुम्हारा शरीर सांस लेने लगा है और तुम खतरे से बहार आ गए हो ? 

ऐसे कैसा मजाक कर रहे हो डॉक्टर साहिब , यह हकीकत है मजाक नहीं तुम्हारा उन किवदन्तिओं जैसा आत्मा का शरीर में पुनर प्रवेश हुआ है ,कह के डॉक्टर तो चले गए पर मेरे दिमाग पे जोर पड़ने लगा मेरे सोचने से और मैं फिर गहरी नींद कब सोगया मुझे कोई पता नहीं , 


यह क्या हो रहा था मेरे साथ ? अचानक मेरा नाम लेके मुझे पुकारा गया राजिंदर नागपाल हाज़िर हों , दुबारा फिर वही आवाज , और फिर एक सफ़ेद लिबास में सज्जन आये " तुम्हे आवाज सुनाई नहीं दे रही , उठो तुम्हारी सुनवाई होनी है " सुनवाई होनी है पर है कौन सी जगह ?क्या किया है मैंने ? मैं इधर उधर अपने आस पास कुछ ढूंढ़ने लगा तो उस सफ़ेद पॉश ने पूछा की क्या ढून्ढ रहे हो ? मैं देख रहा था अगर यह कोर्ट की सुनवाई है तो मेरी फाइल भी यहीं कहीं होगी पर मेरे पास तो कोई फाइल ही नहीं है ,न ही  यह कोई कोर्ट तो लग रही है  , मैंने कितने ही सालों इन तीस हज़ारी और सभी बड़ी बड़ी कोर्ट्स में गुजारें है। कोर्ट्स का हाल तो बस इतना समझ लो 

जहाँ छत का पंखा भी डिस्को करता हुआ चलता था, कूलर थे तो लेकिन गरमा गर्म हवा के लिए , ऐरकण्डीशनर्स होते थे तो लाइट न होने की वजह से ज्यादा तर बंद ही रहते थे , सुनने में आता था बिल ही नहीं भरे जाते थे इस लिए बिजली बीच बीच में परेशां करने के लिए काट दी जाती थी , बदबूदार अदालत के कमरे और ऊपर से  लोगों की अनायास भीड़ , पर यहाँ तो कुछ भी ऐसा नहीं दिख रहा सब कुछ बड़ा साफ़ सुथरा और  आनन्द दायक  वातावरण है, कौन सी अदालत है भाई यह ? 


देखो यह धर्म राज का न्यायलय है यहाँ कोई पेपर फाइल नहीं होती हमारे पास सब रिकॉर्ड पहले से होता है तुम्हारी जिंदगी के कर्मों के लेखे झोके का , क्या बात कर रहे हो एक जिन्दा व्यक्ति धर्मराज यमराज की अदालत क्या बोले जा रहे हो , अभी पता चल जाएगा उठो तुम्हारी सुनवाई शुरू हो गई है  , मुझे एक ऊँचे सिंघासन पर विराज मान जिसे यमराज कहा  जा रहा था उनके सामने पेश किया गया , धर्मराज  जी ने अपने नीचे बैठे रिकॉर्ड कीपर से कहा , चित्र गुप्त इनका लेखा झोका निकालो इन्हे यहाँ क्यों लाया गया है ? इनकी मौत कुदरती हुई है या किसी दुर्घटना में ? अब यमराज की बातें सुनके मेरा दिमाग घूमने लगा की वाकई मैं तो मर कर इधर पहुंचा हूँ। 


भगवान इन साहिब को दिल का दौरा पड़ा था और पृथिवी लोक में इन लोगों ने बड़े बड़े यांत्रक संस्थान बनाये हुए है जिसे यह हॉस्पिटल कहते है जिसमे इनका दावा होता है के यह हर बीमारी का इलाज कर सकते है और किसी भी मृत शरीर के अंग जीवित शरीर में लगा कर उसे जिन्दा रख पाते है ,और दिल फ़ैल हो   जाए तो भी उसे ऑपरेशन से ठीक कर लेते है या किसी मुर्दे के दिल को किसी और में प्रत्यारोपण भी कर लेते है और उसे जिन्दा कर लेते है ? इसे वहाँ के बड़े बड़े डॉक्टर्स इलाज दे इसे बच्चाने में लगे थे , अगर हम वक्त पे न पहुँचते तो उन्होंने इसे भी  काटने का पूरा इंतज़ाम कर रखा था जिसे यह ऑपरेशन थिएटर कहते हैं।  इसे हम वहीँ से उठा के लाये है  

धर्म राज जी ने गुस्से में टेबल पर हथोड़ा मारा हमारे न्यायालय  का इतना अपमान ,हमारी विधान में इंसान का दख़ल हमे कतई मंजूर नहीं , भगवान हमने भी कहाँ इन मुर्ख इंसानो की परवाह की हम इसे अपने नियमानुसार उठा लाएं है , इनका पार्थिव शरीर वहीँ हॉस्पिटल के बिस्तर पर पड़ा है देखिये उनका लाइव टेलीकास्ट ,और यह जो सफ़ेद नकाबपोश इस स्क्रीन पर दिखाई दे रहे है न यह वहां के डॉक्टर कहलाते है और लोग इन्हे भगवान् की तरह पूजते है इनके लिए अपनी सारी धन दौलत लेकर इनके दरवाजे खड़े रहते है की हमारी सम्बन्धी को किसी भी तरह बचा लो। कोई बात नहीं इनका मुकदमा शुरू किया जाए हम देखते है इनके बड़े बड़े हस्पताल और डॉक्टर्स क्या कर पाते है इनके मृत शरीर के साथ। 

इनके गुनाहो का चिटठा बताईये , भगवन इनके खुदके ऐसे कोई खास गुनाह नहीं हैं , यह तो कर्म फल के अनुसार इनके बीते जीवन में जो भी कुछ हुआ है उसी के फलसवरूप उनकी सजा अभी बाकी थी , लेकिन आज के जीवन में  यह अपने मात पिता के भक्त है , पत्नी , बचो और  गृहस्थी में पूरा ध्यान देते है , कोई ऐब नहीं प्यार मोहब्बत से रहते है , तो फिर ? महाराज बस इनकी इतनी ही जिंदगी थी और दिल के दौरे से मौत लिखी थी। 

यह मृत्यु लोक में एक वकील है जिनका काम है लोगो के मुक्कदमे हों या सरकार के खिलाफ कोई न कोई मुकदमा लड़ते रहते है उसी में इनकी जिंदगी गुजर रही है , झूठे केस लेने से दूर भागते है , गरीब लोगो के केस कम फीस या मुफ्त भी कर देते है , लोगों में इनकी  काफी इज़्ज़त है , अपने स्वस्थ जीवन के लिए बहुत प्रयत्न करते है , पर धन दौलत से मोह नहीं रखते ,अब धर्म राज जी से सहन नहीं हुआ और कड़क कर बोले " यमराज यह कैसी विडंबना है एक तरफ आप इसके गुण ही गुण बताये जा रहे हो दुसरे इसके प्राण इतनी जल्दी निकाल लाये हो ? इन वकील लोगो का जीवन तो खुद ही एक सजा होता है , इनका परिवार इनके सान्निध्य को ट्र्स्ट रहता है , सारी जिंदगी फाइलों और किताबों में खपा देते है , आँखों पे इनके चश्मे लगे है , सर के बाल भी चिंताओं से उड़ चुके है 


तारीफ़ और ख़ुशामद में एक बड़ा फ़र्क़ है....साहेब 

तारीफ़ 
आदमी के "काम"की होती है, और 
ख़ुशामद 
"काम" के आदमी की !


वकील होना भी कहाँ आसान है दोस्तों..?

ना किसी के ख्वाबो मे मिलेंगे,
ना किसी के अरमान मे मिलेंगे,
 वह तो सिर्फ ,ऑफिस या कोर्ट मे मिलेंगे,

गर्मी, सर्दी, बरसात यूँ ही गुजर जाती है,
नींद भी पूरी होती नही की रात गुजर जाती है,
होली, दिवाली, नवरात्री, 31st पर भी वोह काम मे मिलेंगे,
तुम आ जाना बेफिक्र मेरे दोस्त
हम हमेशा ऑफिस या कोर्ट मे ही मिलेंगे,

जमाने भर की खुशियों से अलग है हम,
लोगो को लगता है गलत है हम,

बीमार होकर भी ठीक रहती है तबियत हमारी,
कोरोना को इतनी करीबी से झेला है ,
बेरोजगारी और क्लाइंट्स की कमी भी है इस कोरोना में 
इस लिए तो कोई आजकल पूछता भी नही खैरियत हमारी,

कभी क्लाइंट को मुश्किलों से छुड़ाने में तो ,
कभी  क्लाइंटसे डिस्कशन में तो कभी कोर्ट के काम में  बिज़ी मिलेंगे,
तुम्हारे लिए बहुत वक्त है हमारे पास , यादें संजोई है तुम्हारी 
तुम हमेशा आ जाना बेतकल्लुफ मेरे दोस्त,
 हम हमेशा ऑफिस या कोर्ट मे मिलेंगे।।।

 *सभी सम्मानित अधिवक्ताओं को समर्पित
25 November 2020, 

स्वयंपढ़ेऔर_बच्चों को भी  अनिवार्यतः पढ़ाएं ।।
एक ओर जहाँ ईसामसीह को सिर्फ चारकीलों से ठोकी गई है 
वहीँ भीष्मपितामह को धनुर्धर अर्जुन ने सैकड़ों बाणों से ।
कीलों से ठोकें जाने के तीसरे दिन ईसा कीलें निकलने से होश में आ गए थे वहीं पितामह 49 दिनों तक लगातार बाणों के बिस्तर में पूरे होश में रहे और जीवन,अध्यात्म का अमूल्य प्रवचन,ज्ञान भी दिया और अपनी इच्छा से अपने शरीर त्याग दिया ।

सोचें कि पितामह भीष्म की तरह अनगिनत त्यागी महापुरुष हमारे भारत वर्ष में हुये ।

किन्तु धनुर्धर अर्जुन के सैकड़ों बाणों से छलनी किए पितामह भीष्म को जब हमने भगवान् नहीं माना तो चार कीलों से ठोकें जाने पर ईसा को God क्यों माने.....???

ईसा का भारत से क्या संबंध है...???
25December क्यों मनायें...???
क्यों बने सेन्टा क्लाज...???
क्यों लगायें क्रिसमस ट्री...???

कदापि नहीं इस पाखण्ड में नहीं फसाना है न फ़साने देना है 
हमारे पास हमारे पूर्वजों की विरासत में मिली विज्ञानपूर्ण सनातन संस्कृति है 
जो हमारे जीवन को महिमामय गौरवपूर्ण बना सकती है 
अपने बच्चों को इस कुचक्र से बचाओ!!