Tuesday, January 4, 2022

--" कुछ भूली बिसरि यादें ही "अक्सर हमारी कहानियां होती है " --- ADABI SAANGAM ------507----JANUARY , Ist 2022------STORY NARRATION BY R.K .NAGPAL -----

 कुछ भूली बिसरि यादें ही "अक्सर हमारी कहानियां होती है 

क्या खोया क्या पाया है हमने अब तक के अपने जीवन के सफर में ?
कुछ भूली बिसरि यादें जो कभी कभी  ताजा हो जाती है,  है एक कहानी बन कर  , लोग कहते है  भारत देश बदल रहा है ,वहां भी वह सब कुछ है जो कभी सिर्फ अमेरिका यूरोप में हुआ करता था , मतलब हर ऐशों आराम का सामान , धन दौलत बड़े बड़े मकान मोटर गाड़ियां और खाने पीने को सब कुछ '

पर  हमारे संस्कारो का क्या ? वह भी तो अब पहले से नहीं रहे वह भी  तो बदल गए हैं ?




लोग आजकल रूखे हो गए है , मिलते नहीं बात भी नहीं करते , हर चीज़ पे अपना अधिपत्य चाहते हैं , जहाँ उनका अपना स्वार्थ होता है वहां उनके लिए सब गौण होजाते हैं " लोग आज ख़ुशी से ज्यादा खुरसी का  शोक रखते है यानी के चौधराहट का । 

आज की दुनिया में  जिन्हें वाकई बात करना आता है ---जो कुछ करने की हैसियत में होते हैं -- वो लोग ही अक्सर -------खामोश रहते हैं ,

 कैसे समझाऊँ इस बदलती दुनिया के हर वक्त बदल रहे अंदाज़ को अपनी इतनी  छोटी सी कहानी में , ?

इज़्ज़त कमाने की बात करते हो ?
आज नफ़रत कमाना भी,
इस दुनिया में आसान नहीं है साहब.....
लोगो की आँखों में खटकने के लिए भी, बहुत कुछ करना पड़ता है , अपने अंदर खूबिया पैदा करनी पड़ती है , वरना तो लोग आपकी तरफ देखते भी नहीं 


लोग आज भी कहते है , पहले भी कहा करते थे , किस्से अपने अपने वक्त के , 
जो हर जुबान को छु गए , हर दिल में बस गए वह अमर कहावते बन गई ,
 जिन्हे सुन कर पढ़ कर दुनिया ने अपनी नई राह बनाई ,वह आपबीती सच्ची कहानियां बन गई। 

मुझ से बड़े और सीनियर महापुरुष हैं जो इस महफ़िल में आज भी मौजूद हैं , 
सेठी साहब , गुलाटी साहब ,सुषमा जी , सुभाष अरोरा जी , प्रवेश जी, अशोक जी  व् और भी होंगे जिन्होंने वह जमाना देखा होगा ,वह मुझ से बहुत ज्यादा जानते  होंगे के जिंदगी का सफर तब कितना सकूं भरा था बनिस्पत आज के , 

उनके पास भी किस्से हैं कुछ नए कुछ पुराने , हमारे पास भी यादें हैं कुछ नई कुछ पुरानी भी 
हमारे पास तो  किस्से है कुछ हमारे बड़ो के बताये हुए और कुछ हैं देश विभाजन १९४७ के बाद के ,हमारे खुद के कमाए हुए 


जब दादा के सिरहाने खड़े होकर पैसे मांगते थे तो एक टक्का या सुराख वाला धेला या उससे भी छोटा कोई सिक्का दादा जी हाथ में थमा देते थे और हम ख़ुशी ख़ुशी उससे अपनी सारी जरूरते पूरी कर लेते थे ,

जब देसी घी का भाव साढे चार रुपए का एक सेर  था और दूध का भाव तीन चार आने प्रति सेर  के आस पास तो हम उस छेद वाले पैसे की कीमत का अंदाज आज की तुलना में करे तो हम बहुत अमीर हुआ करते थे। 

दूध दही की नदियाँ बहने का, सोने की चिड़िया भारत का  मतलब सब तरफ खुशहाली तभी तो देश पे उन लुटेरों के आक्रमण हुए जिन्हे भारत की दौलत राज पाट लूट कर अपना वर्चस्व जमाना था। 

वक्त गुजर गया पीढ़ियां दर पीढिआँ गुजरती गई और हम गरीब देश बन कर रह गए , जिसमे न खाने को कुछ बचा न वह खुशहाली , आपने दींन  ईमान संस्कारों की बलि देकर , अपने आप को बस बचाने में लगे रहे। नकली शौरत के पीछे भाग भाग कर असली जिंदगी बहुत पीछे छोड़ आये , वह प्यार की जिंदगी एक दूजे के सत्कार की जिंदगी। न मालुम कहाँ खो गई है ?

इस अँधा धुंद दौड़ ने हमें दिया क्या ? सोचो कभी बैठ कर 

जब मेरी जिंदगी में टेलेविसिन ने कदम रखा , मेरी किताबें मुझ से छूट गई , मेरा साइकिल पर बैठ लाइब्रेरी जाना बंद हो गया , मेरे दरवाजे पर कार आ खड़ी हुई तो मैं चलना घूमना भी भूल गया , फिर मेरे हाथ में मोबाइल थमा दिया किसी ने मेरा पत्राचार , चिट्ठी लिखने का सबब ख़त्म हो गया , 

घर में रखे कंप्यूटर ने तो मुझ से मेरी कलम ही छीन ली और मेरा दिमागी शबदकोष और शब्दों की स्पेल्लिंग्स ही भूल गया , जबसे घर में ऐरकण्डीशन लगवाया , पेड़ो की ठंडी छावं का आनंद भूल गया , रोटी रोजी के लिए अपना गावं और देश छोड़ा बड़े शहर में रहने लगे ,तो अपनी धरती की मिटटी की सोंधी सोंधी खुशबू भूल गया , 

पैसा बैंकों में रख कर क्रेडिट कार्ड मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गया और मैं पैसे की अहमियत ही भूल गया , जबसे बाथरूम्स में perfumes का इस्तेमाल शुरू हुआ , हम पार्क में खिले फूलों की खुशबू भूल गए , जब से हर गली नुक्कड़ पर फ़ास्ट फ़ूड की दुकाने खुली हम अपना सात्विक खाना पकाना ही भूल गए , अपनी माँ के हाथों से पक्की मक्की की रोटी और सरसों के साग का स्वाद ही भूल गए। 

बची खुची हमारी हसरते इतनी बढ़ गई के बस जीवन की भागमभाग में कहीं रुकना ही भूल गए , अंत में नासूर की तरह मेरी जिंदगी में चुभ गया (व्हाट्सअप )  जिसने मुझे कुछ ज्ञान तो दिया पर मेरा सारा सकून छीन लिया , मेरा बात चीत का लहजा ही बदल गया , 

अदब मिट गया दायरा भी सिमट गया , मिलना जुलना भी अब तो एक कुम्भ का मेला सा हो गया , लेकिन हर शख्स यहाँ व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर बन के रह गया , इतना ज्ञान कहाँ छुपा था जो अच्चानक इन कुछ वर्षों में सामने आने लगा।  

कुछ सूचनायें गलत कुछ सही पर दुकान सबकी चलने लगी , यह कोई पहला नुकसान नहीं था जो हमें अपनी जिंदगी से मोबाइल की स्क्रीन तक समेट  गया , 
इससे से पहले भी बहुत नुक्सान हो चूका है हमारा ?  किस्से हैं किस्स्सों का क्या मानो तो हकीकत न मानो तो कहानी है 


#हमारा #भी #एक #जमाना #था....
😊😘😜😊😍😍
खुद ही स्कूल जाना पड़ता था इसलिए साइकिल बस आदि से भेजने की रीत नहीं थी,
स्कूल भेजने के बाद कुछ अच्छा बुरा होगा कोई किडनेपिंग होगी ,ऐसा हमारे मां-बाप कभी सोचते भी नहीं थे.....उनको किसी बात का डर भी नहीं होता था

🤪 पास / फेल बस यही हमको मालूम था... 
% से हमारा कभी संबंध ही नहीं था.

😛 ट्यूशन लगाई है ऐसा बताने में भी शर्म आती थी क्योंकि हमको निखद #ढपोर #शंख समझा जा सकता था...
🤣🤣🤣
किताबों में पीपल के पत्ते, विद्या के पत्ते, मोर पंख रखकर हम पढाई में होशियार हो जाते हैं ऐसी हमारी धारणाएं थी...

☺️☺️ कपड़े की थैली में...बस्तों में..और बाद में एल्यूमीनियम की पेटियों में...किताब कॉपियां बेहतरीन तरीके से जमा कर रखने में हमें महारत हासिल थी.. 

😁 हर साल जब नई क्लास का बस्ता जमाते थे उसके पहले किताब कापी के ऊपर गत्ते की जिल्द चढ़ाते थे और फिर खाकी पेपर के कवर, यह काम ...एक वार्षिक उत्सव या त्योहार की तरह होता था...

🤗  साल खत्म होने के बाद अपनी किताबें बेचना और बदले में अगले साल की पुरानी किताबें खरीदने में हमें किसी भी प्रकार की कोई शर्म नहीं आती थी. पुराने विद्यार्थिओं के लिखे नोट्स या किताबों में अंडर लाइन किये हुए वाक्य हमारी पढाई में बिना टूशन बहुत सहायता  किया करते थे 

🤪 हमारे माताजी पिताजी को हमारी पढ़ाई का बोझ है..ऐसा कभी  लगा ही नहीं.😞 कई बार तो लोग जब उनसे पूछते थे तो उन्हें हमारी क्लास और अंको का कोई ज्ञान ही नहीं होता था , सब अपनी अपनी जिंदगी में मस्ती से चले जाते थे , 
एक दोस्त को साइकिल के अगले डंडे पर और दूसरे दोस्त को पीछे कैरियर पर बिठाकर गली-गली में घूमना हमारी दिनचर्या थी.... हम ना जाने कितना घूमे होंगे .....

🥸😎  स्कूल में मास्टर जी या मैडम जी के हाथ से अपने हाथ पे बेंत की मार खाना, मुर्गा बनना ,पैर के अंगूठे पकड़ कर खड़े रहना, और कान लाल होने तक मरोड़े जाना हमारी तबियत दरुस्त रखता था, ऐसा  वक्त था  हमारा #ईगो रईसी कभी आड़े नहीं आता था....
 सही बोलें तो #ईगो क्या होता है यह हमें मालूम ही नहीं था ...🧐😝 

घर और स्कूल में मार खाना भी हमारे दैनिक जीवन की एक सामान्य कसरती प्रक्रिया थी. तभी तो हम आज भी उतने ही चुस्त हैं 

मारने वाला और मार खाने वाला दोनों ही खुश रहते थे. मार खाने वाला इसलिए क्योंकि कल से आज कम पिटे हैं और मारने वाला इसलिए कि आज फिर उसने हाथ धो लिए अपनी भंडास निकाल कर 😀😀  ......

😜 बिना चप्पल जूते के और किसी भी गेंद के साथ लकड़ी के पटियों से कहीं पर भी नंगे पैर क्रिकेट खेलने में क्या सुख था वह हमको ही पता है .

😁 हमने पॉकेट मनी कभी भी मांगी ही नहीं और पिताजी ने भी दी नहीं.....इसलिए हमारी आवश्यकता भी छोटी छोटी सी ही थीं....साल में कभी-कभार एक हाथ बार सेव मिक्सचर मुरमुरे का भेल खा लिया तो बहुत होता था......गर्मियों में सड़क पर खड़े ठेले से गन्ने का रस पीकर , बँटे वाली सोडा वाटर ,उसमें भी हम बहुत खुश हो लेते थे.

छोटी मोटी जरूरतें तो घर में ही कोई भी पूरी कर देता था क्योंकि परिवार संयुक्त होते थे ..

दिवाली में पटाखों की लड़ी को छुट्टा करके एक एक पटाखा फोड़ते रहने में हमको कभी अपमान नहीं लगा.



01. हमारा नुकसान उस समय से शुरू हुआ था जब , लोगो की नियत काम करने की बजाये कामगारों पर राज करने की बनी ,लोगों को पैसा दो नशा दो और जो भी करवा लो , खुद बैठ के मौज करो। 

हरित क्रांति के नाम पर देश में #रासायनिक खेती की शुरूआत हुई , फसले बम्पर होने लगी , भूख तो मिटी पर लालच इस कदर बढ़ गया के इसमें राजनीती और कुर्सी दिखने लगी , लोगों को बांटो लड़ाओ उन्ही के पैसों से देश को बर्बाद करो फिर कुर्सी पाकर फिर उन्हीं लोगो को मदद देने का वायदा फिर उन्ही के टैक्स के पैसों को दबाओ , कुछ उसमे से इन्ही गरीब लोगों में बाँट दो फिर दुबारा कुर्सी हथिआ लो बस यही तो है आज की सच्ची कहानी 

जब ऐसी ऐसी खेती की जाने लगी जिसमे पानी बहुत चाहिए तो पानी बहुत गहराई से निकाला जाने लगा और फिर धीरे धीरे मीठा  पानी ख़त्म और जमीन बंजर होने लगी और  हमारा पौष्टिक वर्धक शुद्ध भोजन विष युक्त कर दिया गया  !अब सर पर खतरा है सूखे का और बर्बादी का , लेकिन नशा कुर्सी का हो या पावर का , या हो ड्रग्स का ? किसके पास है वक्त और सकून जो बैठ के पल दो पल अपने परिवार देश के बारे में सोच सके ?




😁  हम....हमारे मां बाप को कभी बता ही नहीं पाए कि हम आपको कितना प्रेम करते हैं क्योंकि हमको #आई #लव #यू कहना ही नहीं आता था... 😌

 आज हम दुनिया के असंख्य धक्के और टाॅन्ट खाते हुए......और संघर्ष करती हुई दुनिया का एक हिस्सा है..किसी को जो चाहिए था वह मिला और किसी को कुछ मिला भी के नहीं.. ?क्या पता.. 

स्कूल के भीतर  डबल ट्रिपल सीट पर घूमने वाले हम ,और स्कूल के बाहर उस हाफ पेंट मैं रहकर गोली टाॅफी बेचने वाले की  दुकान पर दोस्तों द्वारा खिलाए पिलाए जाने की कृपा हमें याद है.....वह दोस्त कहां खो गए ?वह बेर वाली माई कहां खो गई....वह चूरन बेचने वाली अम्मा कहां खो गई..?.पता ही नहीं.. चला 

😇  हम दुनिया में आज कहीं भी रहें , पर यह सत्य है कि हम वास्तविक दुनिया में पले ,बड़े हुए हैं हमारा वास्तविकता से सामना वास्तव में ही हुआ है ....हम आज जहाँ हैं ,अपनी मेहनत, लगन, ईमानदारी ,और अपने बुजर्गों के आशीर्वाद से पहुंचे हैं ....

🙃  कपड़ों में सलवटे ना पड़ने देना ,लेकिन और रिश्तो में सिर्फ औपचारिकता का ही  पालन करते रहना , हमें जमा ही नहीं......सुबह का खाना और रात का खाना इसके बीच में माँ के हाथ की बनाई एक प्रोंठी एक रुमाल में बंधी के सिवा, टिफिन क्या था हमें मालूम ही नहीं...हम अपने नसीब को दोष नहीं देते....जो जी रहे हैं वह आनंद से जी रहे हैं ,और यही सोचते है....और यही सोच हमें जीने में मदत कर रही है.. जो जीवन हमने जिया...उसकी वर्तमान से तुलना हो ही नहीं सकती ,,,,,,,,


😌  हम अच्छे थे या बुरे थे....नहीं मालूम...पर #हमारा #भी #एक #जमाना #था ..... 🤩🙋🏻‍♂️साहब 



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02. हमारा नुकसान उस दिन भी शुरू हुआ था जिस दिन श्वेत क्रांति के नाम पर देश में जर्सी गाय लायी गई और भारतीय स्वदेशी गाय का अमृत रूपी दूध छोड़कर, उसे काट कर खाना या उसके मॉस को विदेशों में भेज कर दौलत कमाना , शुरू किया और  जर्सी गाय का विषैला दूध जो की स्टेरॉयड इंजेक्शन  युक्त है  पीना शुरु किया था... !अब हर इंसान कई तरह की aquired immunodeficiency से ग्रसित नजर आता। 
हर सब्जी , मांस दालों में ऐसे ऐसे fertilizers हैं जो अंत में हमारे शरीर को , दिल , गुर्दे , लिवर को ही खा जाते है , लेकिन बात कोई नहीं कर सकता क्योंकि आज हर बुराई के पीछे एक बड़ी लॉबी है जो बहुत पैसा खर्च करके सबकी जिंदगी को नारकीय बना चुकी है 


03. हमारा नुकसान उस दिन भी  शुरू हुआ था जिस दिन भारतीयों ने दूध, दही, मक्खन, घी आदि छोड़कर शराब, अफीम जैसी नशीली वस्तुओं का उत्पादन और अत्यधिक सेवन शुरू किया  . !

04. हमारा नुकसान उस दिन भी शुरू हुआ जिस दिन हमने मिट्टी के बर्तनों को छोड़कर घरों में एलुमिनियम के बर्तन, प्रेशर कुकर व घर में फ्रिज आया... !और हम तरह तरह की बीमारियों से मरने लगे , किसी ने अपने फायदे के लिए यह चीजे बना कर पूरी इंसानियत को तबाही की कहानी लिख डाली 

05. हमारा नुकसान उस दिन भी  शुरू हुआ था जिस दिन देश वासियों ने गन्ने का रस या नींबु पानी छोड़कर पेप्सी, कोका कोला पीना शुरु किया था जिसमें 12 तरह के कैमिकल होते हैं और जो कैंसर, टीबी, हृदय घात का कारण बनते हैं ..!

06. हमारा नुकसान उस दिन शुरू हुआ जिस दिन देश वासियों ने घानी का शुद्ध देशी तेल खाना छोड़ दिया और रिफाइंड आयल खाना शुरू किया, रिफाइंड ऑयल हृदय घात , पार्किंसंस , alzhymer आदि  का कारण बन रहा है.. !लेकिन कौन उठाइएगा इस ताकतवर लॉबी के विरुद्ध >? आवाज उठाने वाले को ही दुनिया से उठा दिया जाएगा। 

07. हमारा नुकसान उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश वासियों ने अपने स्वदेशी भोजन 56 तरह के पकवान छोड़कर पीजा, बर्गर, जंक फूड खाना शुरू किया था जो अनेक बीमारियों का कारण बन रहा है.. ! 

08. हमारा नुकसान उस दिन शुरू हुआ जिस दिन लोगों ने स्वस्थ दिनचर्या छोड़कर मनमानी दिनचर्या शुरू की ...!न सोने का वक्त न उठने का न खाने का , शरीर को प्रकृति से दूर जिम में जाकर छोड़ दिया 

09.हमारा नुकसान तब शुरू हुवा, जब ना हमने अपनी संस्कृति को जाना और ना ही अपने बच्चों को उसका ज्ञान दिया, हमारे आदर्श हमारे संत व महापुरुष नही बल्कि  संस्कारहीन फ़िल्म अभिनेता हो गए !हम कहाँ थे और कहाँ पहुँच गए ? चलो पहले हम गुलाम अगर थे तो अपनी गलती ,गफलत , या स्वार्थ से ही न ?

आइए हम अपने पूर्वजों की तरह अनुशासित और संयमित जीवन जी कर पूर्ण आनंद लेने की कभी क्यों अभी से ही  क्यों न शुरुआत करें...वरना दफन हो जाएंगे उसी उपजाऊ मिटटी में जिसकी फसलों से हम गुलजार हुए थे , भांति भांति की अवधारणाएं हमने अपनी बना ली हैं और लोगों के बहकावे से अपनी जड़ो से टूट कर चले जा रहे उस चमक दमक के पीछे जो हमसे ही छीनी गई है और हमें अन्धकार में धकेलते हुए वह हमपे राज करते रहे 

एक जापानी डॉक्टर को कुछ सवालों के जवाब देते टेलेविजन पर सुना 
डॉक्टर हमने सुना है भागने दौड़ने रहने से जिंदगी लम्बी हो जाती है ?

अपनी कार को कितना भगाते हो रोज ? क्या कार को ज्यादा चलाने भगाने  से वह नई और ताकतवर बनी  रहती है क्या ? कछुओं को भागते कभी देखा है ? उसकी जिंदगी मालूम है कितनी लम्बी है ? गति मंजिल पर जल्दी पहुंचा सकती है पर उसकी कीमत जिंदगी को अपने कुछ वर्ष कम करके चुकानी पड़ती है , इसलिए थोड़ा आराम करो अपने जीवन को लम्बा करना है तो  

कुछ डॉक्टर और मेरे दोस्त भी मुझे  शराब पीने से मना करते है बोलते हैं जल्दी मर जाओगे , डॉक्टर हंस पड़ा बोला  , वाइन बनती है फलों से अंगूर से , फल स्वास्थ्य के लिए सब डॉक्टर बोलते हैं बड़े अच्छे होते है ?
 
ब्रांडी भी डिस्टिल्ड वाइन होती है जिसका मतलब फ्रूट से पानी निकाल लिया और फ्रूट केगुण ही अब इसमें बचे है पानी नहीं , बियर शराब  भी अनाज से बनती है , और अनाज आप रोज सुबह शाम खाते हो वह तो कोई मना  नहीं करता तुम्हे ? जब अनाज अच्छा है तो उससे बनी वस्तुएं गलत कैसे ? चियर्स बॉटम अप 

तो डॉक्टर मैं कौन से जिम में रोज जाऊँ और क्या एक्सरसाइज करूँ ताकि फिट बना रहूं ?
ऐसा कोई जिम नहीं है न ही कोई एक्सरसाइज है , पहलवान भी मरते है और जिम चलाने वाले भी , मेरी मानो सिर्फ सामान्य सैर करो , जिस एक्सरसाइज से शरीर को कष्ट हो वह शरीर को तंदरुस्त कैसे रखेगा ?

डॉक्टर मुझे दिल के डॉक्टर ने बोला  है वेजिटेबल  आयल में तली चीज़े नुकसान देती है ? 
ज्यादा सब्जी ज्यादा अनाज नुकसान देता है ? नहीं न ? 
तो फिर उनसे निकला तेल माने ज्यादा सब्जी ,तो तेल  नुक्सान कैसे देगा ?

चॉकलेट तो नुक्सान देता है न ? 
डॉक्टर ने लगभग चिल्लाते हुए कहा " पगला गए हो क्या " 
कोकोआ बीन्स भी एक सब्जी है , उसमे मिलाई चीनी भी , फिर नुकसान क्यों होता है ? नुक्सान उसके बनाने और उसमे केमिकल्स  मिलाने का है , वरना चॉकलेट तो व्हिस्की से भी ज्यादा मूड लिफ्टर है  

डॉक्टर मैं तैराकी सीख रहा हूँ सुना है शरीर की फिगर ठीक बनी रहती है ? 
अगर स्विमिंग से फिगर बनती है तो मुझे वेहहेल मछली के बारे में अपने विचार बताओ ?

तो फिर लोग क्यों कहते है शरीर को शेप में रखो ? यस शेप में रखो पर कौन सी शेप ? 
गोल मटोल होना भी एक शेप है। 

डॉक्टर ने आगे बताया " मुझे उम्मीद है जो जो भी गलत धारणाएं आप लोगो ने खाने और पीने के बारे में फैला रखी है मेरी बाते सुन कर वह दूर हुई होंगी ?

अंत में डॉक्टर ने जिंदगी  का निचोड़ बताते हुए कहा " देखो दोस्त जिंदगी का सफर मौत तक , 
जिंदगी या शरीर को इस तरह डरा डरा के नहीं पूरा किया जा सकता , शरीर को इस्तेमाल कीजिये , ख़ूबसूरती कोई मायने नहीं रखती , एक हाथ में बियर का मग और दुसरे में चॉकलेट ,

 थका डालो इस शरीर को चिल्लाओ ,गाओ , हंसो और जब बिस्तर पर पड़ोगे तो याद आएंगे यही हँसते हुए पल , जो दिल करे खाओ क्योंकि मरना तो सबको है जितना मर्जी कोई परहेज कर ले : और सबसे बड़ी नसीहत मेरी गाँठ बाँध लो " यह motivational health speakers आपको सिर्फ बेवकूफ बनाते है आप से पैसा कमाने के लिए , वरना मरते तो यह भी है कभी कभी वक्त से पहले भी 

ट्रेड मिल के अविष्कारक की मौत सिर्फ 54 साल की उम्र में हो गई 
और जिसने jymnastic बॉडी एक्सरसाइज की खोज  की उसकी मौत केवल 57 साल की उम्र में 

वर्ल्ड बॉडी बिल्डिंग चैंपियन की मौत सिर्फ 41 वर्ष की आयु में हो गई 
दुनिया का सबसे उम्दा और तेज फुटबॉलर माराडोना की मौत 60 वर्ष की आयु में हो गई 

BUT लेकिन:---

KFC वाला फ्राइड चिकन खाते खिलाते 94 साल की उम्र तक जिन्दा रहा 

NUTELLA brand के अविष्कारक की मौत 88 वर्ष की उम्र में हुई 

जरा सोचो सबसे पुराना सिगरेट बनाने और पीने वाला 102 साल तक जीवित रहा 

हफीम/ opium का अविष्कारक 116  साल तक जीवित था जो सिर्फ earthquake में बिल्डिंग में दब कर मरा , अफीम से नहीं 

9. Hennessey inventor की मौत  98. वर्ष की आयु में हुई 

अब मुझे कोई बताये यह सब ज्ञानी डॉक्टर इस नतीजे पे कैसे पहुंचे के एक्सरसाइज करने से उम्र लम्बी होती है ? उम्र लम्बी नहीं होती बल्कि उम्र चुस्त होते हुए भी तेजी से गुजरती है। 

एक खरगोश हमेशा भागता दौड़ता रहता है लेकिन उसकी उम्र सिर्फ 2 साल तक ही है , जबकि उसी के साथ रेस लगा कर बच्चों को कहानियां सुनाते सुनाते हम यह भूल गए के कछुवा 400 साल तक जीता है बिना किसी एक्सरसाइज के ?

गाँधी के तीनो बन्दर डिजिटल युग में एक हो गए है , इंसान जब मोबाइल लेकर बैठता है तो न यह इधर उधर देखता है , न किसी की सुनता है , और न ही कुछ बोलता है 

 वक़्त का काम तो गुज़रना है..!
एक वह दौर था ,एक यह भी दौर है 
बुरा हो तो बेसब्री से सब्र करो..!!
अच्छा हो तो शुक्र का भी शुक्राना करो...!!!
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कितना भी अच्छा बोलू मैं , लोग ध्यान से सुनते नहीं ,
कहते हैं नया क्या है ? सब कुछ तो है किताबों में  पड़ा हुआ है ,

पड़ा तो है पर पढ़ा नहीं जा सका , वक्त ही कहाँ मिलता है सबको ?
दुःख जरूर होता था कभी , अपने अहंकार में  जब कोई बोलता था 

 रब के सज़दे और इबादत ने अब ऐसा बना दिया है मुझे..
ना अब किसी के ल़फ्ज चुभते है और ना किसी की खामोशी ..

थोड़ा रुकिए , सोचिये , शांत रहिये , अंधी रेस में मत जुड़िये , जहाँ आनंद ,प्यार ,इज़्ज़त न मिले वहां मत बैठिये , खाना पीना मस्ती ही आपका जीवन है मौज करिये अपने घर में भी कर सकते है , मरना तो अंत में आपको भी है। अमरत्व की तलाश में क्यों खामखाह वक्त से पहले मरे जा रहे हो ?

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पड़ोसन :-  फोन बहुत अच्छा है तुम्हारा ।
श्रीमती :-  भाई ने ले कर दिया , चालीस हजार का पड़ा ।

पड़ोसन:-  नेकलेस भी बहुत अच्छा है तुम्हारा ।
श्रीमती :-  इन्होंने ले कर दिया , डेढ़ लाख का पढ़ा ।

पड़ोसन :-  पति भी  बहुत अच्छे है तुम्हारे ।
श्रीमती:-  पिताजी ने लेकर दीये , चालीस लाख में पड़े 

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"जीवन चक्र क्या है" ❓
आदमी कचौरी समोसे खा कर बीमार हो जाता है, फिर वो अस्पताल में बेड पर लेट के रिश्तेदारों द्वारा लाये संतरे, मौसम्बी खाता है।
उसके रिश्तेदार अस्पताल के बाहर खड़े हो कर समोसे कचौरी खाते हैं।

यही जीवन चक्र है।

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कोई आप सेपूछे कौन हूँ मैं,आप  कह देना कोई ख़ास नहीं;

एक दोस्त है कच्चा पक्का सा,
एक झूठ हैं आधा सच्चा सा,
जज़्बात को ढँके एक पर्दा सा ,
एक बहाना है बस अच्छा सा;

जीवन का एक ऐसा साथी है,
जो दूर ही है बस पास नहीं,
कोईआपसे पूंछे कौन हूँ मैं,
आप कह देना कोई ख़ास नहीं;

हवा का सुहाना झोंका है,
कभी नाजुक ,कभी तूफानों सा;
देख कर जो नजरें झुका ले
कभी अपना तो कभी बेगानो सा

जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र,
जो समुन्दर है पर दिल को प्यास नहीं;
कोई आपसे पूछे कौन हूँ मैं,
आप  कह देना कोई ख़ास नहीं!!😊😊


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भारतीय शादी में खाने की वैरायटी देखकर बेहोश हुआ विदेशी नागरिक
 
सोमवार की रात एक भारतीय शादी में भोजन की वैरायटी और उसे खाने वालों को देखकर एक विदेशी नागरिक बेहोश हो गया...

इस विदेशी नागरिक ने बाद में पुलिस को बताया कि शादी में 125 तरह की डिशेज देखकर वह डिप्रेशन में आ गया और सुधबुध खो बैठा...

मैक्सिम गोर्की नामक यह विदेशी अपने एक भारतीय मित्र के बेटे के मैरिज रिसेप्शन में भाग लेने खास तौर पर जर्मनी से भारत आया था. एक निजी अस्पताल में सदमे से उबर रहे मैक्सिम ने बताया वहां हर जगह बस खाना ही खाना था...

मैं एक स्टॉल पर गया तो वहां भारतीय शैली में चाइनीज खाना पराेसा जा रहा था. मंचुरियन, नूडल्स, स्प्रिंगरोल और न जाने क्या क्या. मैंने खाना शुरू ही किया था कि मेजबान ने टोक दिया और कहा मैक्सिम थोड़ा ही खाना ये स्टार्टर है. वहां 20 तरह के स्टार्टर थे मेरा दिल बैठ गया...

फिर मेरे मेजबान मुझे मेन कोर्स पर ले गए. वहां दस तरह के सलाद, ढेरों प्रकार के अचार, पापड़, रायते, दर्जनों तरह की सब्जियां और कई तरह की दालें थीं. अनेकों प्रकार के चावल और पुलाव भी थे. साथ ही बहुत कुछ ऐसा था जिसे मैं पहचान नहीं पाया...

फिर मैंने देखा कि एक जगह ढाबा लिखा हुआ था वहां भी कई तरह की रोटियां, सब्जियां और तंदूरी डिशेज थीं. फिर स्वीट्स और डेसर्ट्स के स्टाल थे मैं गिन नहीं पाया पर कम से कम दो दर्जन तो थे ही. कई तरह की आइसक्रीम और कुल्फियां भी थीं...

मैक्सिम ने बताया यह सब देखकर मेरा दिल घबराने लगा लेकिन मैं किसी तरह खुद को संभाले रहा. मैंने ऐसे कई लोगों को देखा जिन्हाेंने अपनी प्लेटों में बुरी तरह खाना ठूंसा हुआ था. वे दबा के खा रहे थे और उन्हें खाते देख मेरा जी बैठने लगा. तब मैंने सोचा थोड़ा पानी पी लेता हूं तबियत हल्की हो जायेगी...

पानी पीने गया तो वहां दो लोगों की बातचीत सुनकर मेरे होश उड़ गए. इसके बाद मैंने खुद को इस अस्पताल में पाया...

तो आपने क्या सुना था ?
जवाब में मैक्सिम ने बताया खाना खाने के बाद जब दो लोग पानी पीने आए तो आपस में बात कर रहे थे... " अरे यार खाने में मजा नहीं आया इससे अच्छा खाना तो कल गोयल के यहां था 50 तरह के तो मीठे थे ".....

" ये तो खाने में कंजूसी कर गए वैरायटी देखो कितनी कम है "....😱😱😱

बस मैंने यही आखिरी शब्द सुने और मैं बेहोश हो गया...😁😁






भूली बिसरि यादें