27 TH NOVEMBER -2021-----
ADABI SANGAM --MEETING NO ---506TH - TOPIC
FLAVOR OF INDIA -
महफ़िल
506th meeting of Adabi Sangam Logistics:
Hosts: Mr. and Mrs. Gulati
D/T: 11/27/21. 5:30 PM
Venue: Flavor of India
259-17 Hillside Ave, Glen Oaks, NY 11004
Part 1: Rajni Ji
Part 2: Parvesh
Story: Dr. Mahtab Ji
Topic: MEHFIL
यूँ तो भीड़ काफी हुआ करती थी , कभी महफिल में मेरी ,---------
फिर मुझे एक बिमारी लग गई , --
जैसे जैसे मैं सच बोलता गया, लोग उठते गये, महफ़िल वीरान
जैसे जैसे मैं सच बोलता गया, लोग उठते गये, महफ़िल वीरान
और मैं बिलकुल तनहा -----------
खूब लानते मिली हमें "बोले
महफिलें ऐसे थोड़ा ही सजा करती हैं ?"तुम्हे तो सलीका ही नहीं आया ,
खूब लानते मिली हमें "बोले
महफिलें ऐसे थोड़ा ही सजा करती हैं ?"तुम्हे तो सलीका ही नहीं आया ,
क्या जरूरत थी हरीश चन्दर बनने की ?
मैंने भी कहा दोस्त देखो अभी अभी तुमने हमेशा सच बोलने वाले का नाम लिया ?
लोग सचाई पसंद तोबहुत करते है पर बोलते नहीं ,
कोई बात नहीं चलिए हम अपनी अदबी महफ़िल को रंगीन करते है :-
आज फिर से जमी शायरों कि महफ़िल है
बयां कईयों के कुछ नए , दिल-ए-राज़ होगें,
सबके अपने अपने ख्याल अपने अपने तजुर्बे
इसी महफ़िल में बयान होंगे
हमें तो हमेशा ऐसी महफ़िल कि गलियों से ही गुरेज था
जब जिंदगी की तन्हाईआं बर्दाश्त न हुई तो , आ बैठे यहाँ
एक महफ़िल से जो पीकर उठे…
तो किसी को खबर तक ना लगी
हमें यूँ मुड़ मुड़कर देखना उनका ,खामख्वाह …….
हम बदनाम तो हुए बहुत महफ़िल में ,
राज खुले सो अलग
बार-बार उन्ही पर नजर गयी
लाख कोशिशें की बचाने में हमने , मगर फिर भी उधर गयी
था निगाह में कोई जादू जरूर उनकी
ये जिस पर पड़ी उसी के जिगर में उतर गयी,
फिर भरी महफ़िल में दोस्ती का जिक्र हुआ ,
कुछ भी हम से कहा न गया
हमने तो....
सिर्फ उनकी ओर युहीं देखा था ,
और लोग वाह वाह कहने लगे
रद्दी क़िस्मत होती है जैसे
मेरे हाथों में उसे पाने की रेखा ही नहीं थी
क़यामत तो तब टूटी जब भरी महफ़िल में पुछा उसने
कौन हैं यह साहब पहले कभी देखा नहीं इन्हे?
फिर जाते जाते जले पर नमक भी छिड़का ,उसने
महफ़िल में गले मिल के ,कान में वो धीरे से कह गए
ये दुनिया की रस्म है, हकीकत बताई नहीं जाती
बेशक मोहब्बत थी हमें , फिर भी बताई नहीं जाती
हाल-ए-दिल बताने से कुछ होता नहीं हासिल
इसलिए सारी तकलीफों को छुपा रहा था मै
निकलता आंख से आंसू तो बन जाता मजाक
इसलिए भरी महफ़िल खड़ा मुस्कुरा रहा था मै
मैंने आंसू को बहुत समझाया भरी महफ़िल मे यूँ ना आया करो
आंसू बोला ,तुमको भरी महफ़िल में जब भी तन्हा पाते है,
हमसे रहा नहीं जाता ,साथ देने इसीलिए, चुपके से चले आते है.
बहुत लोग जमाने में हमारे जैसे भी होते है
महफ़िल में हंसते है ,तन्हाई में रोते है ,
आंसुओं की महफ़िल सजा के,
आंसुओं से ही गुफ्तुगू कर लेते है
कुछ करते ,न कहते बना हमसे
छुपाये दिल में ग़मों का जहान बैठे रहे
उनकी बज़्म में उन्हें जानते हुए भी ,
बेज़बान बनकर बैठे रहे
फिर महफ़िल में बनावटी हँसना मेरा मिजाज बन गया
तन्हाई में रोना, सबके लिए एक राज ही बन गया
दिल के दर्द को जाहिर होने ना दिया
यही मेरे जीने का अंदाज बन गया
अब दिल में एहसास तो हो चूका था के
हमारे लिए उनके दिल में ,चाहत बिलकुल न थी ,
वरना ऐसे मुहं फेर के कोई जाता है क्या ?
,अपना दिल उनके क़दमों में भले रख दिया हमने
मगर उन्हें "जमीन "देखने की आदत ही कहाँ थी
फिर से मुझे मिट्टी में खेलने दे खुदा ,……………
यह वीरान महफिले , मतलबी लोग
ये दिखावे की दमकती , चहल पहल
अबयह जिंदगी ,हमें ज़िन्दगी नहीं लगती।
बहुत रुसवा हुए हैं हम , सपनो के बिखर जाने पे
अरमान दफन हुए तो अरसा हुआ ,
वोह अभागा फिर भी जिन्दा है ,
टूट कर भी कम्बख्त धड़कता रहता है ,
मैने दुनिया मैं अपने दिल सा कोई वफादार नहीं देखा। ……
कब महफ़िल मिले और कब वीराना ,
यूँ शिकायते किस से और क्यों करें
जबकि हर महफ़िल में सजती हैं कई महफिले
जिसको भी पास से मिलोगे , तनहा ही होगा
कोई चुप है तो ,कोई है हैरान यहाँ
कोई बेबस तो ,कोई है पशेमान यहाँ
लफ्ज़ों की दहलीज पर घायल है जुबान, परेशां हैं सब
कोई तन्हाई से, तो कोई है परेशान महफ़िल से
दूर ही रहता हूँ इसलिए , उन महफिलों सेआजकल
मेरा खुश रहना जहाँ,दोस्तों को नागवार था
वक्त बदल गया है यह कह कर ,
कोसते रहना वक्त को इतना, कहाँ तक है वाजिब?
सारे नाम पते तो हमारे स्मार्ट फ़ोन में हैं ,
एक बटन दबाते ही जिससे चाहें रूबरू हो जाते हैं
मिलने की कसक ही न बची , तो महफ़िल जमे भी तो कैसे ?
…
थक चुके हैं भाग भाग के यहाँ सब , आँखें है नींद से बोझिल ,
दिल में है गमो का सागर , दौड़ किसी की अभी थमी नहीं
महफ़िल कहाँ और कैसे जमाएं , , फ़ोन उठाने का भी समय नहीं
फ़ोन पे तो आंसरिंग मशीन लगी है , नाम पूछ लेती है पर जवाब नहीं देती
सभी ऐसे हो यह हम नहीं कहते ,
हम तो सिर्फ अपनी गॅरंटी लेते है
फुर्सत निकाल कर आओ कभी मेरी महफ़िल में
लौटते वक्त दिल नहीं पाओगे अपने सीने में
महफिलों की जान ,न समझना भूल से भी मुझे ,
मेरे चेहरे की बेबाक हंसी ,लाखों गम है छुपाये हुए
बहुत सलाहें मिली हमे अपने दोस्तों से ,क्यों बहस करते हो ?
किसी को खरा खरा सुना देने से, महफिले थोड़ा ही जमती है
हमारी जैसी बगावती सोच का ,जीना क्या और मरना भी क्या ?
आज इस महफ़िल से उठने को हैं , कल इस दुनिया से ही उठ जाएंगे,
सोच फिर भी वही रहेगी
आज हर ख़ुशी है लोगों के दामन में , पर थोड़ा रुक कर हंसने का वक्त नहीं '
माँ की लौरी का अहसास तो है , पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं ,
लड़खड़ाते रिश्ते बहुत हैं हमारे भी , पर उन्हें संवारने का वक्त नहीं
दिन रात दौड़ती दुनिया के बाजार में , भीड़ तो बहुत है मगर -------
महफिले सजाने का वक्त नहीं------------
जाने कब-कब किस-किस ने कैसे-कैसे तरसाया मुझे
तन्हाईयों की बात न पूछो महफ़िलों ने भी बहुत रुलाया मुझे
लेकिन क्या कमाल करते हैं हमसे जलन रखने वाले
महफ़िलें खुद की सजाते हैं और चर्चे वहां भी हमारे करते हैं
उन दुश्मनो को कैसे खराब कह दूं
जो हर महफ़िल में मेरा नाम लेते है
लेकिन फिर भी याद आती हैं आज भी उस महफ़िल की वीरानियाँ
यारों के संग काटी जहाँ हमने अपनी जवानियाँ
अगर जिक्र आया भी होगा कभी मेरा उनकी महफ़िल में
यादाश पे जोर डालने की बजाये , दोस्तों ने बात घुमा दी होगी ,
तमाम वक्त गुजर चूका , शक्ल सूरत भी हमारी बदल चुकी
आज उसी राह से गुजरें भी तो , देख कर नजरें घुमा ली होगी
अब गम भी क्यों करें इस हकीकत का ?
शायरों की बस्ती में कदम रखा तो जाना
ग़मों की महफ़िल भी कमाल जमती है
सुनकर ये बात मेरे दिल को थोड़ी सी खली
दुश्मन के महफ़िल में भी मेरी ही बात चली
यही सोच के रुक जाता हूँ मैं आते-आते
फरेब बहुत है यहाँ चाहने वालों की महफ़िल में
लेकिन कुछ इस तरह से हो गई है ,मेरी जिंदगी में यह शामिल ,
यही है वोह अदबी महफ़िल , जिसमे हैं कुछ सकून के पल
हर शख्स यहाँ आजाद है अपना रंग जमाने को ,
वक्त मिलता है सबको यहाँ अपना दर्द सुनाने को
महफ़िल में आकर कुछ तो सुनाना पड़ता है ,यही यहाँ का दस्तूर है ,
आज भी हम हैं अजीज उनके , कुछ सुन कर, कुछ सुना कर ,
विश्वास दिलाना पड़ता है
**************************************************************************
पैसों की दौड़ में इतना दौड़े की थकने का भी वक्त नहीं ,
किसी के अहसास को क्या समझे ,
आज फिर से जमी शायरों कि महफ़िल है
बयां कईयों के कुछ नए , दिल-ए-राज़ होगें,
सबके अपने अपने ख्याल अपने अपने तजुर्बे
इसी महफ़िल में बयान होंगे
हमें तो हमेशा ऐसी महफ़िल कि गलियों से ही गुरेज था
जब जिंदगी की तन्हाईआं बर्दाश्त न हुई तो , आ बैठे यहाँ
एक महफ़िल से जो पीकर उठे…
तो किसी को खबर तक ना लगी
हमें यूँ मुड़ मुड़कर देखना उनका ,खामख्वाह …….
हम बदनाम तो हुए बहुत महफ़िल में ,
राज खुले सो अलग
बार-बार उन्ही पर नजर गयी
लाख कोशिशें की बचाने में हमने , मगर फिर भी उधर गयी
था निगाह में कोई जादू जरूर उनकी
ये जिस पर पड़ी उसी के जिगर में उतर गयी,
फिर भरी महफ़िल में दोस्ती का जिक्र हुआ ,
कुछ भी हम से कहा न गया
हमने तो....
सिर्फ उनकी ओर युहीं देखा था ,
और लोग वाह वाह कहने लगे
रद्दी क़िस्मत होती है जैसे
मेरे हाथों में उसे पाने की रेखा ही नहीं थी
क़यामत तो तब टूटी जब भरी महफ़िल में पुछा उसने
कौन हैं यह साहब पहले कभी देखा नहीं इन्हे?
फिर जाते जाते जले पर नमक भी छिड़का ,उसने
महफ़िल में गले मिल के ,कान में वो धीरे से कह गए
ये दुनिया की रस्म है, हकीकत बताई नहीं जाती
बेशक मोहब्बत थी हमें , फिर भी बताई नहीं जाती
हाल-ए-दिल बताने से कुछ होता नहीं हासिल
इसलिए सारी तकलीफों को छुपा रहा था मै
निकलता आंख से आंसू तो बन जाता मजाक
इसलिए भरी महफ़िल खड़ा मुस्कुरा रहा था मै
मैंने आंसू को बहुत समझाया भरी महफ़िल मे यूँ ना आया करो
आंसू बोला ,तुमको भरी महफ़िल में जब भी तन्हा पाते है,
हमसे रहा नहीं जाता ,साथ देने इसीलिए, चुपके से चले आते है.
बहुत लोग जमाने में हमारे जैसे भी होते है
महफ़िल में हंसते है ,तन्हाई में रोते है ,
आंसुओं की महफ़िल सजा के,
आंसुओं से ही गुफ्तुगू कर लेते है
कुछ करते ,न कहते बना हमसे
छुपाये दिल में ग़मों का जहान बैठे रहे
उनकी बज़्म में उन्हें जानते हुए भी ,
बेज़बान बनकर बैठे रहे
फिर महफ़िल में बनावटी हँसना मेरा मिजाज बन गया
तन्हाई में रोना, सबके लिए एक राज ही बन गया
दिल के दर्द को जाहिर होने ना दिया
यही मेरे जीने का अंदाज बन गया
अब दिल में एहसास तो हो चूका था के
हमारे लिए उनके दिल में ,चाहत बिलकुल न थी ,
वरना ऐसे मुहं फेर के कोई जाता है क्या ?
,अपना दिल उनके क़दमों में भले रख दिया हमने
मगर उन्हें "जमीन "देखने की आदत ही कहाँ थी
फिर से मुझे मिट्टी में खेलने दे खुदा ,……………
यह वीरान महफिले , मतलबी लोग
ये दिखावे की दमकती , चहल पहल
अबयह जिंदगी ,हमें ज़िन्दगी नहीं लगती।
बहुत रुसवा हुए हैं हम , सपनो के बिखर जाने पे
अरमान दफन हुए तो अरसा हुआ ,
वोह अभागा फिर भी जिन्दा है ,
टूट कर भी कम्बख्त धड़कता रहता है ,
मैने दुनिया मैं अपने दिल सा कोई वफादार नहीं देखा। ……
कब महफ़िल मिले और कब वीराना ,
यूँ शिकायते किस से और क्यों करें
जबकि हर महफ़िल में सजती हैं कई महफिले
जिसको भी पास से मिलोगे , तनहा ही होगा
कोई चुप है तो ,कोई है हैरान यहाँ
कोई बेबस तो ,कोई है पशेमान यहाँ
लफ्ज़ों की दहलीज पर घायल है जुबान, परेशां हैं सब
कोई तन्हाई से, तो कोई है परेशान महफ़िल से
दूर ही रहता हूँ इसलिए , उन महफिलों सेआजकल
मेरा खुश रहना जहाँ,दोस्तों को नागवार था
वक्त बदल गया है यह कह कर ,
कोसते रहना वक्त को इतना, कहाँ तक है वाजिब?
सारे नाम पते तो हमारे स्मार्ट फ़ोन में हैं ,
एक बटन दबाते ही जिससे चाहें रूबरू हो जाते हैं
मिलने की कसक ही न बची , तो महफ़िल जमे भी तो कैसे ?
…
थक चुके हैं भाग भाग के यहाँ सब , आँखें है नींद से बोझिल ,
दिल में है गमो का सागर , दौड़ किसी की अभी थमी नहीं
महफ़िल कहाँ और कैसे जमाएं , , फ़ोन उठाने का भी समय नहीं
फ़ोन पे तो आंसरिंग मशीन लगी है , नाम पूछ लेती है पर जवाब नहीं देती
सभी ऐसे हो यह हम नहीं कहते ,
हम तो सिर्फ अपनी गॅरंटी लेते है
फुर्सत निकाल कर आओ कभी मेरी महफ़िल में
लौटते वक्त दिल नहीं पाओगे अपने सीने में
महफिलों की जान ,न समझना भूल से भी मुझे ,
मेरे चेहरे की बेबाक हंसी ,लाखों गम है छुपाये हुए
बहुत सलाहें मिली हमे अपने दोस्तों से ,क्यों बहस करते हो ?
किसी को खरा खरा सुना देने से, महफिले थोड़ा ही जमती है
हमारी जैसी बगावती सोच का ,जीना क्या और मरना भी क्या ?
आज इस महफ़िल से उठने को हैं , कल इस दुनिया से ही उठ जाएंगे,
सोच फिर भी वही रहेगी
आज हर ख़ुशी है लोगों के दामन में , पर थोड़ा रुक कर हंसने का वक्त नहीं '
माँ की लौरी का अहसास तो है , पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं ,
लड़खड़ाते रिश्ते बहुत हैं हमारे भी , पर उन्हें संवारने का वक्त नहीं
दिन रात दौड़ती दुनिया के बाजार में , भीड़ तो बहुत है मगर -------
महफिले सजाने का वक्त नहीं------------
जाने कब-कब किस-किस ने कैसे-कैसे तरसाया मुझे
तन्हाईयों की बात न पूछो महफ़िलों ने भी बहुत रुलाया मुझे
लेकिन क्या कमाल करते हैं हमसे जलन रखने वाले
महफ़िलें खुद की सजाते हैं और चर्चे वहां भी हमारे करते हैं
उन दुश्मनो को कैसे खराब कह दूं
जो हर महफ़िल में मेरा नाम लेते है
लेकिन फिर भी याद आती हैं आज भी उस महफ़िल की वीरानियाँ
यारों के संग काटी जहाँ हमने अपनी जवानियाँ
अगर जिक्र आया भी होगा कभी मेरा उनकी महफ़िल में
यादाश पे जोर डालने की बजाये , दोस्तों ने बात घुमा दी होगी ,
तमाम वक्त गुजर चूका , शक्ल सूरत भी हमारी बदल चुकी
आज उसी राह से गुजरें भी तो , देख कर नजरें घुमा ली होगी
अब गम भी क्यों करें इस हकीकत का ?
शायरों की बस्ती में कदम रखा तो जाना
ग़मों की महफ़िल भी कमाल जमती है
सुनकर ये बात मेरे दिल को थोड़ी सी खली
दुश्मन के महफ़िल में भी मेरी ही बात चली
यही सोच के रुक जाता हूँ मैं आते-आते
फरेब बहुत है यहाँ चाहने वालों की महफ़िल में
लेकिन कुछ इस तरह से हो गई है ,मेरी जिंदगी में यह शामिल ,
यही है वोह अदबी महफ़िल , जिसमे हैं कुछ सकून के पल
हर शख्स यहाँ आजाद है अपना रंग जमाने को ,
वक्त मिलता है सबको यहाँ अपना दर्द सुनाने को
महफ़िल में आकर कुछ तो सुनाना पड़ता है ,यही यहाँ का दस्तूर है ,
आज भी हम हैं अजीज उनके , कुछ सुन कर, कुछ सुना कर ,
विश्वास दिलाना पड़ता है
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पैसों की दौड़ में इतना दौड़े की थकने का भी वक्त नहीं ,
किसी के अहसास को क्या समझे ,
जब अपने खवाबों के लिए ही वक्त नहीं
तू ही बता ऐ जिंदगी अब तो ,
तू ही बता ऐ जिंदगी अब तो ,
ऐसी जिंदगी में जब हासिल ही कुछ नहीं
तो हर पल मरने वालों को ,
तो हर पल मरने वालों को ,
जीने के लिए ही वक्त कहाँ मिलेगा
आज तू कल कोई और होगा सद्र-ए-बज़्म-ए-मै
साकिया तुझसे नहीं,हम से है मैखाने का नाम
जैसे चार चांद लग गए महफ़िल में
जब देखूं इस शाम का नज़ारा
हर गम भी लगता है बस प्यारा
यूं सूरज का चुपके से ढलते जाना
महफ़िल में कुछ तो सुनाना पड़ता है
ग़म छुपा कर मुस्कुराना पड़ता है
कभी हम भी उनके अज़ीज़ थे
आज कल ये भी उन्हें याद दिलाना पड़ता है
उतरे जो ज़िन्दगी तेरी गहराइयों में
महफ़िल में रह के भी रहे तनहाइयों में
इसे दीवानगी नहीं तो और क्या कहें
प्यार ढुढतेँ रहे परछाईयों मे
मेरे दिल का दर्द किसने देखा है
मुझे बस खुदा ने तड़पते देखा है
हम तन्हाई में बैठे रोते है
लोगों ने हमें महफ़िल में हँसते देखा है
दुनिया की बड़ी महफिल लगेगी
इस जहां का सारा मुकदमा चलेगा
हम हर तरह से बेगुनाह होंगे और
सजा का हक भी हमें मिलेगा
कभी अकेले में तो कभी महफ़िल में
जितना तलाशा सुकून को उतनी मिली तन्हाई
हर पल रही वो साथ मेरे
और मुझे कभी न मिली रिहाई
शाम सूरज को ढलना सिखाती है
मोहब्बत परवाने को जलना सिखाती है
गिरने वाले को दर्द तो होता है जरूर
यही ठोकरें ही तो सम्भलना सिखाती हैं
महफ़िल में आँख मिलाने से कतराते हैं
मगर अकेले में हमारी तस्वीर निहारते हैं
सजती रहे खुशियों की महफ़िल
हर महफ़िल ख़ुशी से सुहानी बनी रहे
आप ज़िंदगी में इतने खुश रहें कि
ख़ुशी भी आपकी दीवानी बनी रहे
आज तू कल कोई और होगा सद्र-ए-बज़्म-ए-मै
साकिया तुझसे नहीं,हम से है मैखाने का नाम
जैसे चार चांद लग गए महफ़िल में
जब देखूं इस शाम का नज़ारा
हर गम भी लगता है बस प्यारा
यूं सूरज का चुपके से ढलते जाना
महफ़िल में कुछ तो सुनाना पड़ता है
ग़म छुपा कर मुस्कुराना पड़ता है
कभी हम भी उनके अज़ीज़ थे
आज कल ये भी उन्हें याद दिलाना पड़ता है
उतरे जो ज़िन्दगी तेरी गहराइयों में
महफ़िल में रह के भी रहे तनहाइयों में
इसे दीवानगी नहीं तो और क्या कहें
प्यार ढुढतेँ रहे परछाईयों मे
मेरे दिल का दर्द किसने देखा है
मुझे बस खुदा ने तड़पते देखा है
हम तन्हाई में बैठे रोते है
लोगों ने हमें महफ़िल में हँसते देखा है
दुनिया की बड़ी महफिल लगेगी
इस जहां का सारा मुकदमा चलेगा
हम हर तरह से बेगुनाह होंगे और
सजा का हक भी हमें मिलेगा
कभी अकेले में तो कभी महफ़िल में
जितना तलाशा सुकून को उतनी मिली तन्हाई
हर पल रही वो साथ मेरे
और मुझे कभी न मिली रिहाई
शाम सूरज को ढलना सिखाती है
मोहब्बत परवाने को जलना सिखाती है
गिरने वाले को दर्द तो होता है जरूर
यही ठोकरें ही तो सम्भलना सिखाती हैं
महफ़िल में आँख मिलाने से कतराते हैं
मगर अकेले में हमारी तस्वीर निहारते हैं
सजती रहे खुशियों की महफ़िल
हर महफ़िल ख़ुशी से सुहानी बनी रहे
आप ज़िंदगी में इतने खुश रहें कि
ख़ुशी भी आपकी दीवानी बनी रहे
उठ के महफ़िल से मत चले जाना
तुमसे रौशन ये कोना-कोना है
तुमसे रौशन ये कोना-कोना है
सम्भलकर जाना हसीनों की महफ़िल में
लौटते वक्त दिल नहीं पाओगे अपने सीने में
कई महफिलों में गया हूं
हजारों मयखाने देखे
तेरी आंखों सा शाकी कहीं नहीं
गुजरे कई जमाने देखे
लौटते वक्त दिल नहीं पाओगे अपने सीने में
कई महफिलों में गया हूं
हजारों मयखाने देखे
तेरी आंखों सा शाकी कहीं नहीं
गुजरे कई जमाने देखे
महफ़िल और भी रंगीन हो जाती हैं
जब इसमें आप शामिल हो जाती है
ना हम होंगे ना तुम होंगे और ना ये दिल होगा फिर भी
हज़ारो मंज़िले होंगी हज़ारो कारँवा होंगे,
फिर इसी तरह कुछ महफिले आबाद होंगी
आपकी महफ़िल और मेरी आँखे दोनों भरे-भरे है
क्या करे दोस्त दिल पर लगे जख्म अभी हरे-हरे हैं
हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़साने बयां होंगे
बहारे हमको ढूँढेंगी ना जाने हम कहाँ होंगे
तमन्नाओ की महफ़िल तो हर कोई सजाता है
पूरी उसकी होती है जो तकदीर लेकर आता है
सहारे ढुंढ़ने की आदत छूटती नही हमारी
और तन्हाई मार देती है हिम्मत हमारी
जब इसमें आप शामिल हो जाती है
ना हम होंगे ना तुम होंगे और ना ये दिल होगा फिर भी
हज़ारो मंज़िले होंगी हज़ारो कारँवा होंगे,
फिर इसी तरह कुछ महफिले आबाद होंगी
आपकी महफ़िल और मेरी आँखे दोनों भरे-भरे है
क्या करे दोस्त दिल पर लगे जख्म अभी हरे-हरे हैं
हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़साने बयां होंगे
बहारे हमको ढूँढेंगी ना जाने हम कहाँ होंगे
तमन्नाओ की महफ़िल तो हर कोई सजाता है
पूरी उसकी होती है जो तकदीर लेकर आता है
सहारे ढुंढ़ने की आदत छूटती नही हमारी
और तन्हाई मार देती है हिम्मत हमारी