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Tuesday, January 4, 2022

Thanks Giving .... Being Grateful --------,शुकराना -- -शुक्रिया



              Thanks, Giving. Being Grateful - शुकराना -शुक्रिया 




वैसे तो कई अवसर आते है हमारी जिंदगी में जब हम किसी न किसी का शुक्रिया या थैंक्स कर रहे होते है , परन्तु जो पश्चिमी दुनिया अमेरिका कनाडा ब्राज़ील वगैरह में हर साल नवंबर में इस चौथे वीरवार को थैंक्स गिविंग दिन के रूप में याद किया जाता है। इस नाम का ,इसका अपना एक ऐतिहासिक सन्दर्भ भी है ,

बात तब की है जब यूरोप में धार्मिक उत्पीड़न अपने चरम पर पहुँच गया था , धार्मिक गुटबाज़ी में मार काट मच गई थी , यूरोप का यह वीभत्स दौर था जिसमे लोग अपनी जान बचाने के लिए अपने देश छोड़ के भागने लगे , फ्रांस , इटली ,इंग्लैंड ,पुर्तगाल ,स्पेन से पलायन करते बहुत से लोगों ने अमेरिका के समुंदरी तटों पर अपना ठिकाना ढूंढा , लेकिन अमेरिकी आदिवासी रेड इंडियन इस आमद से घबरा गए और उनसे , उनका खुनी संघर्ष भी हुआ ,

लेकिन इतनी मारकाट के बाद जब सचाई समझ में आई तो दोनों विजातियों में मिलजुलकर रहने का समझौता हुआ , अब इन्ही आदिवासी रेड इंडियन की वजह से इन यूरोप से विस्थापित शरणार्थियों को खाने का सहारा मिला , इस अवसर को एक बड़े जश्न के रूप में मनाया गया , टर्की और जो भी जीव इन रेड इंडियंस के पास थे उन्हें सर्व किये गए और तब से माइग्रेंट लोगों द्वारा इसे रेड इंडियंस को थैंक्स डे के रूप में मनाया जाने लगा , बेशक थैंक्स गिविंग का इतिहास धार्मिक और रीती रिवाजो के बीच खुनी संघर्ष से शुरू होकर एक ऐसा नेशनल दिन बन गया है जिसे आज भी सब पुरानी रंजिशों को भूल कर इसे मिल जुल कर पूरी दुनिया में मानते है। अब तो इसे एक राष्ट्रीय पर्व के रूप मान्यता और राष्ट्रीय दिवस घोषित किया गया है।

सभी सरकारी दफ्तर , व्यपारिक संसथान , स्कूल , कॉलेज इस दिन अवकाश में रहते है , यात्रा के हिसाब से भी थैंक्स गिविंग का लॉन्ग वीक एन्ड सबसे अधिक व्यस्त रहता है जब लोग इन छुट्टिओं का जी भर के लुत्फ़ उठाते है , लेकिन भीड़ , ट्रैफिक जाम , अत्यधिक व्यस्त सड़के शॉपिंग माल्स , थैंक्स गिविंग परेड की वजह से ट्रैफिक का सुचारु रूप से न चल पाना , कुछ मजा खराब भी हो जाता है , अगर थोड़ा ऐतिहासिक परिपेक्ष में देखें तो

वर्ष 1863 से ही थैंक्स गिविंग डे को एक वार्षिक अवकाश के रूप में मनाया जा रहा है , कुछ लोगो का मानना है के टेक्सास के अल्पासो शहर में 1598 से ही मनाया जा रहा है , कुछ लोगो ने आधुनिक रूप में मनाये जाने वाले थैंक्स गिविंग डे को हार्वेस्ट कटाई - बुआई के सीजन के उत्सव से भी जोड़ा है ,उनके हिसाब से पहला थैंक्स गिविंग डे 1621 - 1623 में मनाया गया जब सूखे से ग्रसित किसानो ने बारिश होने पर जश्न मनाया , जॉर्ज वाशिंगटन अमेरिका के पहले राष्ट्रपति थे उन्होंने 1789 में अलग अलग वक्त पे मनाया जाने वाला थैंक्स गिविंग दिनो को एक कर के इसे राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में घोषित किया था और तब से यह सिर्फ बृहस्पत वार हर वर्ष नवंबर के 4th thursday को ही जाता है ,

खुशियां होती है वहां गम भी होते है , हर व्यक्ति इस उत्सव से खुश नहीं होते , 1970 के शुरू से ही आदिवासी रेड इंडियन समुदाय इसका विरोध करता है और उनका मानना है की हमारी जमीनों पर कब्ज़ा कर के यह देश बसै है किस बात की ख़ुशी मनाएं ? हमारा हक़ छीना गया है हम इसका विरोध करते रहेंगे , उन्होंने इस दिन को 1970 से ही विरोध दिवस मनाना शुरू किया हुआ है ,

एक और संधर्ब सामने आता है की इसे वार्षिक राष्ट्रीय बनाने में कनाडा और अमेरिका में इसे हार्वेस्टिंग सीजन के रूप में मनाया गया , और पिछले वर्ष की उपलभ्दीओं और कुदरत के आशीर्वाद को मान्यता देने के लिए ही इस दिन को चुना गया , अमरीकी लोगो को विश्वास है की 1621 को जो दिन थैंक्स गिविंग के रूप में मनाया गया वही बाद में आधुनिक थैंक्स गिविंग डे इसका सूत्रधार बना , जिसमे ब्रिटिश यात्री जो की प्लायमाउथ में पहुंचे थे ,

इंग्लैंड से आने वाले कोलोनिस्ट अपना थैंक्स गिविंग हर साल प्रार्थनाये कर के मनाते थे क्योकि उन्होंने पूरी दुनिया को अपने कब्जे में लेने के लिए कई घोर युद्ध लड़े और जब जीत जाते थे या कभी सूखे की समाप्ति पर ईश्वर का धन्यवाद दिवस मनाते थे

थैंक्स गिविंग को तब तक कोई मान्यता नहीं मिली थी जब तक अमेरिकी सरकार में नार्थ अमेरिकन लोगो का दबदबा रहा , उन्नीसवीं सदी के मध्य तक जाती दंगे खूब होते रहे , पूरा देश सिविल वार की लपेट में आ गया था ,मैडम सारहा जोसफ हेल ने जो की एक godey lady book नामकी मैगज़ीने चलाती थी thanks Giving day की सपोर्ट में काफी बड़ा आंदोलन किया की इस दिन को राष्ट्रीय घोषित करते हुए ,इन दंगों को रोका जाए और आपसी सौहार्द स्थापिक किया जाए , उनकी यह मेहनत राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की सपोर्ट से 3 अक्टूबर ,1863 को राष्ट्रपति ने इसे राष्ट्रीय दिवस के नाम से आदेश जारी कियाकी हर साल 26 नवंबर वृहस्पति वार को थैंक्स गिविंग डे मनाया जाए


जैसे जैसे वक्त गुजरा , सभ्यता का विस्तार हुआ , हर सामाजिक समुदाय की आने वाली पीढ़ी ने इसे अपने ही रूप में परिभाषित करना शुरू किया , कुछ ने कहा जो हमारे पास है वह किसी की देंन ही तो है और उस देने वाले का हर वर्ष धन्यवाद करना बनता है , इसी में खान पान के आलावा शॉपिंग का मजा भी इसमें जोड़ दिया गया है , जिसमे तरह तरह की सेल्स और डिस्काउंट सेल जोर शोर से मनाई जाती है और इस की वजह से आर्थिक गतिविधिओं में भी जान आ जाती है , 

 इसी की कड़ी में क्रिसमस भी जुड़ जाता है और व्यपारिक संसंस्थानो के लिए पूरे वर्ष की कमाई और पिछले स्टॉक्स को क्लियर करने का एक सुनहरी अवसर मिल जाता है। थैंक्स गिविंग के अगले ही दिन ब्लैक फ्राइडे को जोड़ दिया गया है जिसमे लॉन्ग वीकेंड का पूरा मजा लोग उठा पाते है। और व्यपारिक संसथान भी अपनी तिजोरी खूब भर लेते है , सबका ही फायदा।

इन सब को देखते हुए मुझे अहसास हुआ की अमेरिकी कैनेडियन त्यौहार के पीछे एक देश के लोगों द्वारा दुसरे देश की जमीनों पे कब्जा करके अपने शहर बसाना और फिर जिन लोगों से यह सब छीना गया उनका शुक्रिया करके उन्हें पार्टी दावत देना , हमारे भारत देश में भी वैसाखी लोहड़ी मनाई जाती है जिसके पीछे ख़ुशी उल्हास फसलों के कटने का और लोहड़ी का दिन बरसात के लिए हवन करे या फिर एक इसमें और वृतांत जुड़ा है जिसमे सुंदरी मुंदरी नामक दो युवतिओं को मुगलों से बचा कर उनका विवाह कराना और लोहड़ी को अग्नि कुंड की तरह बनाया जाना , कहीं भी इसके पीछे मारकाट या लड़ाई का कोई जिक्र भी नहीं है ,यह सब भी तो थैंक्स गिविंग था उस शक्ति के लिए जिसकी वजह से उनकी फसलें अच्छी हुई और पूरे समाज में खुशहाली आ गई।



Plymouth’s Thanksgiving began

with a few colonists going out “fowling,” possibly for turkeys but more probably for the easier prey of geese and ducks since they “in one day killed as much as…served the company almost a week.” Next, 90 or so Wampanoag made a surprise appearance at the settlement’s gate, doubtlessly unnerving the 50 or so colonists. Nevertheless, over the next few days, the two groups socialized without incident. The Wampanoag contributed venison to the feast, which included the fowl and probably fish, eels, shellfish, stews, vegetables, and beer. Since Plymouth had few buildings and manufactured goods, most people ate outside while sitting on the ground or on barrels with plates on their laps. The men fired guns, ran races, and drank liquor, struggling to speak in broken English and Wampanoag. This was a rather disorderly affair, but it sealed a treaty between the two groups that lasted until King Philip’s War (1675–76), in which hundreds of colonists and thousands of Native Americans lost their lives.

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The holiday was annually proclaimed by every president thereafter, and the date is chosen, with few exceptions, was the last Thursday in November. President Franklin D. Roosevelt, however, attempted to extend the Christmas shopping season, which generally begins with the Thanksgiving holiday, and to boost the economy by moving the date back a week, to the third week in November. But not all states complied, and, after a joint resolution of Congress in 1941, Roosevelt issued a proclamation in 1942 designating the fourth Thursday in November (which is not always the last Thursday) as Thanksgiving Day

The New England colonists were accustomed to regularly celebrating “Thanksgivings,” days of prayer thanking God for blessings such as military victory or the end of a drought. The U.S. Continental Congress proclaimed a national Thanksgiving upon the enactment of the Constitution, for example. Yet, after 1798, the new U.S. Congress left Thanksgiving declarations to the states; some objected to the national government’s involvement in religious observance, Southerners were slow to adopt a New England custom, and others took offense over the day’s being used to hold partisan speeches and parades. A national Thanksgiving Day seemed more like a lightning rod for controversy than a unifying force.



कृपया आप सभी ध्यान से पढ़े।
आपका नजरिया बदल देगा ये पोस्ट
पुरा पढ़े और अपना अनुभव बताए🙏

"6 वर्षों में मुझे पता चला" कुछ इसी तरह आपको भी पता चला हो तो आप भी अपने अनुभव जरूर जोड़े।
मात्र 6 वर्ष पहले मैं भी एक सामान्य व्यक्ति था,
मुझे भी औरो की तरह नेहरू, गांधी, गांधी परिवार तथा हिन्दू मुस्लिम भाई भाई जैसे नारे अच्छे लगते थे।

मगर.....

इन 6 वर्षों में मुझे कुछ ऐसे सत्य पता चले जो हैरान करने वाले थे।

1. सोशल मीडिया से मुझे यह पता चला कि "पत्रकार" निष्पक्ष नही होते। वे भी किसी खास विचारधारा से जुड़े होते हैं।

2. लेखक, साहित्यकार भी निष्पक्ष नही होते। वे भी किसी खास विचारधारा से जुडे होते है।

3. साहित्य अकादमी, बुकर, मैग्ससे पुरस्कार प्राप्त बुद्धिजीवी भी निष्पक्ष नही होते।

4. फिल्मों के नाम पर एक खास विचारधारा को बढ़ावा दिया जाता है। बालीबुड का सच पता चला।

5. हिन्दू धर्म को सनातन धर्म कहते हैं और देश का नाम हिंदुस्तान है, क्योंकि यह हिंदुओं का इकलौता देश है।

6. हिन्दू शब्द सिंधु से नही (ईरानियों द्वारा स को ह बोलने से) नही आया बल्कि "हिन्दू" शब्द "ऋग्वेद" में लाखों वर्ष पूर्व से ही वर्णित था।

7. जातिवाद, बाल विवाह, पर्दा प्रथा हजारों वर्ष पूर्व सनातनी नही बल्कि मुगलों के आगमन से उपजी कु-व्यवस्था थी, जिसे अंग्रेजों ने सनातन से जोड़कर हिन्दुओ को बांटा। उसे लिखित इतिहास बनाया।

8. किसी समय भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म पूरे विश्व मे फैला था।

9. वास्कोडिगामा का सच ये था कि वह एक लुटेरा, धोखेबाज था और किसी भारतीय जहाज का पीछा करते हुए भारत पहुंचा।

10. बप्पा रावल का नाम, काम और और अद्भुत पराक्रम सुना। उनसे डरकर 300 वर्ष तक मुस्लिम आक्रांता इधर झांके भी नहीं।

11. बाबर, हुमायूँ, अकबर, औरंगजेब, टीपू सुलतान सहित सभी मुगल शासक क्रूर, हत्यारे, इस्लाम के प्रसारक और हिंदुओं का नरसंहारक थे, यह सच पता चला।

12. ताज़महल, लालकिला, कुतुब मीनार हिन्दू भवन थे, इनकी सच्चाई कुछ और थी।

13. जिसे लोग व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी कहकर मजाक उड़ाते हैं, उसी ने मुझे महात्मा गांधी के "ब्रह्मचर्य के प्रयोग" और हेडगेवार, सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल व हिन्दू समाज के साथ कि गई गद्दारी की सच्चाई बताई।

14. गाँधी जी की तुष्टिकरण और भारत विभाजन के बारे मे ज्ञान हुआ।

15. नेहरू की असलियत, उनके इरादे, उनकी हरकतें, पता चली।

16. POJKL के बारे मे भी इन 6 वर्षों में जाना कि कैसे पाकिस्तान ने कब्जा किया। और कौन लोग POJKL को भारत का हिस्सा नहीं मानते हैं।

17. अनुच्छेद 370 और उससे बने नासूर का पता चला।

18. कश्मीर में दलितों को आरक्षण नही मिलता, यह भी अब पता चला।

19. AMU मे दलितों को आरक्षण नही मिलता, वह संविधान से परे है।

20. जेएनयू की असलियत, वहाँ के खेल और हमारे टैक्स से पलने वाली टुकड़े टुकड़े गैंग का पता चला।

21. वामपंथी-देशद्रोही विचारधारा के बारे मे पता चला।

22. जय भीम समुदाय के बारे मे पता चला। भीमराव के नाम पर उनके मत से सर्वथा भिन्न खेल का पता चला। मीम भीम दलित औऱ हिन्दू दलित अलग होते है पता चला।

23. मदर टेरेसा की असलियत अब जाकर ज्ञात हुई।

24. ईसाई मिशनरी और धर्मांतरण के बारे में पता चला।

25. समुदाय विशेष में तीन तलाक, हलाला, तहरुष, मयस्सर, मुताह जैसी कुरीतियों के नाम भी अब जाकर सुना। इनका मतलब जाना।

26. अब मुझे पता चला कि धिम्मी, काफिर, मुशरिक, शिर्क, जिहाद, क्रुसेड जैसे शब्द हिन्दुओं के लिए क्या संदेश रखते हैं।

27. सच बताऊं, गजवा ऐ हिन्द के बारे मे पता भी नहीं था। कभी नाम भी नहीं सुना था। यह सब इन 6 वर्षों में पता चला। स्टॉकहोम सिंड्रोम और लवजिहाद का पता चला।

28. सेकुलरिज्म की असलियत अब पता चली। मानवाधिकार, बॉलीवुड, बड़ी बिंदी गैंग, लुटियंस जोन इन सबके लिए तो हिन्दू एक चारा था।

29. हिन्दू पर्सनल लॉ और मुस्लिम पर्सनल लॉ अलग हैं, यह भी सोशल मीडिया ने ही बताया। नेहरू ने हिन्दू पर्सनल लॉ को समाप्त कर दिया। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ को रहने दिया।

30. भारतीय इतिहास के नाम पर हमें झूठा इतिहास पढ़ाया गया, जिन मुगलों ने हमे लूटा, हम पर अत्याचार किया उन्हें महान बताया गया। यदि कोई बाहरी व्यक्ति आपके घर पर कब्जा करे लूटे अत्याचार करे वह महान और लुटने वाला लुटेरा कैसे हो सकता है।

३१ इतना सब पता चलने के बाद भी और मोदीजी के महान नेतृत्व के बाद भी केवल तीस प्रतिशत हिन्दू ही समझ पाए बाकी वैसे ही हैं।

३२ यहां तक कि न्यायमूर्ति कहे जाने वाले न्यायाधीश तक निष्पक्ष नहीं होते कुछ विचारधारा से कुछ डर के कारण न्याय नहीं कर सकते।

३३ अभिव्यक्ति की आजादी और सही इतिहास जिसे दफन कर दिया गया था वह अब धरती फाड़कर बाहर आ रहा हैै। इसमें कुछ झूठ का अंश हो सकता है पर पहले लिखा इतिहास सारा झूठ का पुलंदा था।

और भी कई विषय हैं जो इन 6 वर्षो मे हमें ज्ञात हुए है जो देश से छुपाए गये थे। जो आपके ध्यान में आए वो इसमें जोड़ते जाइए।

जय श्री राम 🙏🚩













---ADABI SANGAM -ASVM. # 15 -- (498) मुकदमा एक वकील पर -------- STORY PART

  STORY PART:--
 
 ADABI SANGAM -ASVM. # 15 --  (498)  मुकदमा एक वकील पर --इस जहाँ से दूर एक सर्वोच्च सर्वोपरि अदालत -  एक सच्ची कहानी जो खुद पे गुजरी है ---



मुकदमा एक वकील पर  इस जहाँ से दूर एक सर्वोच्च सर्वोपरि अदालत का एक दृश्ये जिसे धर्म राज की अदालत कहते है । और उनके कार्यवाहक यमराज जी को जीवन मृत्यु विभाग दिया गया है 

यह बिलकुल सच्ची आपबीती है जो मैंने अपनी कलम से इस कागज पे उतारी है , विश्वास करो तो यह सब सच है न करो तो एक सपना जो इन जीती जागती मन की आँखों ने मरने से पहले के क्षणों में  देखा ? जी हाँ इस सपने में हम अधमरे  ही उस अदालत में पहुंचे थे , दौरा दिल का पड़ा था और हॉस्पिटल के बिस्तर पर यह सब कुछ हो रहा था  आइये  इस घटना के परिपेक्ष में थोड़ा झाँक लेते हैं ,

1975 -76 में लॉ फैकल्टी दिल्ली यूनिवर्सिटी से वकालत पास हुए , और एक नई चुनौती अदालत की जिंदगी , जिरह ,सबूत , गवाह , जज और उसपे तारीख पे तारीख ,  मेरी जिंदगी इससे पहले भी  बड़ी जद्दोजेहद से गुजर रही थी , मुझे पढाई के साथ साथ अपने हिस्से की फैक्ट्री भी देखनी पड़ती थी वरना भाईओं की सुननी  पड़ती थी के यह नवाब बने यूनिवर्सिटी घूम  घूम हीरो बन  रहे हैं और हम दिन रात अकेले मेहनत करें ? 

क्योंकि यह सब कारोबार पिताजी का ही चलाया हुआ  था तो सबको यही लगता था की सब अगर पार्टनर्स है और प्रॉफिट के हकदार है तो चाहे वह पढ़ रहे हो या यूनिवर्सिटी में रोज जा रहे हो सब काम करें , गोया सुबह लॉ फैकल्टी और तीन बजे शाम के  के बाद रात 11 बजे तक फैक्ट्री का काम , मेरे जवान कसरती  शरीर ने  बखूबी साथ  निभाया , टेक्निकल बुक्स पढ़ी और उसमे सुधार करते हुए अपनी फैक्ट्री की प्रोडक्शन सबसे ऊपर कर के दिखा दी और सब को हैरानी में डाल दिया की मैं वकालत की पढ़ाई  में फैक्ट्री चलाना कहाँ से सीख गया ? 

 इतनी हार्ड मेहनत और वक्त की धार के उल्ट ,और तमाम दिक्कतें एक दम  से विकराल रूप में आ गई जब देश में आपातकाल 1975 में लग गया और सारी मेहनत को ग्रहण लग गया कैशफ्लो रुक गया , फैक्ट्री में दिक्क़ते शुरू हो गई जो आखिर हमारे दिल को काफी कमजोर कर चुकी थी । 

हमारे डूबते दिल और गिरती जीवन शैली घर वालों के लिए भी चिंता का बाइस थी ,1976 में वकील तो बन ही गए थे तो घर वालों ने 1977 में शादी भी कर दी , पेरेंट्स को बड़ी चिंता होती है उम्र ज्यादा हो गई तो दिक्क्त आती है रिश्तों में , 28   साल की थी हमारी उम्र उस वक्त , फिर भी लोग कहा  करते थे उम्र ज्यादा है और लड़की वालों का  सिलेक्शन का पैमाना भी वक्त बे वक्त अक्सर  बदल जाता है। 

अगस्त 17,1978  सबसे बड़ा पुत्र  पैदा हुआ 
सितम्बर 27,1979 में दूसरी पुत्री पैदा हुई 

मार्च-28  1985 , सात साल  अंतराल के बाद मेरे यहाँ सबसे छोटा पुत्र हुआ 

अब शुरू हुई असली कश्मकश , कोर्ट कचेहरी के चक्कर , गृहस्ती की जिम्मेवारी , बच्चों को वक्त देना उन्हें स्कूल वक्त पर पहुँचाना , बच्चा बीमार है तो डॉक्टर के पास लेकर जाना ,सब कुछ जो अब तक आरामो सकूं से चल रहा था उसमे एक भीषण गति लानी पड़ी , उसी तकलीफ के वक्त परिवार में विभाजन भी हो चूका था चक्कर पे चक्कर और अब लड़ाई अकेले ही लड़नी थी सब अपने अपने रास्ते चले गए थे , क्या क्या मुसीबत नहीं टूट पड़ी हम पर , पूँजी टूटी , लेबर बगावत पे उत्तर गई , कोर्ट केसों की भरमार हो गई , बैंक के लोन भी थे उन्होंने भी मौके का फायदा उठाते हुए हमे अकेला देख बड़ा तगड़ा केस ठोक दिया और हम लग गए अपनी जान बचाने में और फैक्ट्री को सरकारी झमेलों से बच्चाने में। पूरी जी जान एक कर उस फैक्ट्री को तो बचा लिया पर अपने दिल को नहीं संभाल पाए 

और आ गया वह कयामत का दिन -जून 16, 1991 , 

यह बिलकुल सच्चा किस्सा है और अपनी यादाश्त के सहारे जीवित किया जा रहा है ,घर में कुछ उदासी थी हमारे जीवन में भी , बच्चे भी मेरी मुरझाई सूरत से कुछ उदास से हो गए थे , सोचा सबको एक हफ्ते शिमला हिल स्टेशन ले चलते है थोड़ा तरो ताज़ा हो जाएंगे , कुछ हुए भी और जब लौट कर वापिस दिल्ली पहुंचे तो सुबह कहीं जाने के लिए जल्दी से तैयार भी हुए तो लगा की शरीर में कुछ जकड़न सी थी ,और थोड़ी एक्सरसाइज भी कर डाली ताकि शरीर की मायूसी थोड़ी ठीक हो जाए, एस्पिरेने की दो गोली निगल ली ,लेकिन जब दरुस्त नहीं हुए तो डॉक्टर से चेक अप  करवाने पहुँच गए , उन्होंने बहुत जल्दी जल्दी चेक अप करके एक इंजेक्शन लगा दिया  गाडी में बिठाया और किसी बड़े हॉस्पिटल के icu में भर्ती करवा दिया और मालुम नहीं हम कहाँ थे और कहाँ पहुँच गए , कोई इंजेक्शन का असर ही रहा होगा हमे, और डूब गए हम एक खामोशी में।  

आँख खुली icu के बिस्तर पर ,तो देखा लोग इधर से उधर आ जा रहे , बड़े विचित्रसफ़ेद  परिधान और चेहरे भी ढके हुए , क्या यह कोई इस्लामिक देश है , पर मैं तो हिंदुस्तानी हूँ फिर यहाँ कैसे ?मेरा पहली बार किसी हॉस्पिटल के इस तरह के वार्ड में आना हुआ था , कभी बीमार जो नहीं पड़ते थे ,

मेरी आँखों को खुलता देख एक नकाबपोश मेरे पास आये , पूछने लगे अब कैसी है तबियत ? तबियत ? क्या हुआ है मुझे ? तुम्हे दिल का भयंकर दौरा पड़ा था ,बेहोशी की हालत में यहाँ लाये गए थे , पिछले २४   घंटो से तुम्हे ऑक्सीजन और इलेक्ट्रिक शॉक देकर तुम्हे जीवित करने का परियास चल रहा था ,  क्या बात कर रहे हो , तो क्या मैं मर चूका हूँ , हाँ पर अब वापिस तुम्हारा शरीर सांस लेने लगा है और तुम खतरे से बहार आ गए हो ? 

ऐसे कैसा मजाक कर रहे हो डॉक्टर साहिब , यह हकीकत है मजाक नहीं तुम्हारा उन किवदन्तिओं जैसा आत्मा का शरीर में पुनर प्रवेश हुआ है ,कह के डॉक्टर तो चले गए पर मेरे दिमाग पे जोर पड़ने लगा मेरे सोचने से और मैं फिर गहरी नींद कब सोगया मुझे कोई पता नहीं , 


यह क्या हो रहा था मेरे साथ ? अचानक मेरा नाम लेके मुझे पुकारा गया राजिंदर नागपाल हाज़िर हों , दुबारा फिर वही आवाज , और फिर एक सफ़ेद लिबास में सज्जन आये " तुम्हे आवाज सुनाई नहीं दे रही , उठो तुम्हारी सुनवाई होनी है " सुनवाई होनी है पर है कौन सी जगह ?क्या किया है मैंने ? मैं इधर उधर अपने आस पास कुछ ढूंढ़ने लगा तो उस सफ़ेद पॉश ने पूछा की क्या ढून्ढ रहे हो ? मैं देख रहा था अगर यह कोर्ट की सुनवाई है तो मेरी फाइल भी यहीं कहीं होगी पर मेरे पास तो कोई फाइल ही नहीं है ,न ही  यह कोई कोर्ट तो लग रही है  , मैंने कितने ही सालों इन तीस हज़ारी और सभी बड़ी बड़ी कोर्ट्स में गुजारें है। कोर्ट्स का हाल तो बस इतना समझ लो 

जहाँ छत का पंखा भी डिस्को करता हुआ चलता था, कूलर थे तो लेकिन गरमा गर्म हवा के लिए , ऐरकण्डीशनर्स होते थे तो लाइट न होने की वजह से ज्यादा तर बंद ही रहते थे , सुनने में आता था बिल ही नहीं भरे जाते थे इस लिए बिजली बीच बीच में परेशां करने के लिए काट दी जाती थी , बदबूदार अदालत के कमरे और ऊपर से  लोगों की अनायास भीड़ , पर यहाँ तो कुछ भी ऐसा नहीं दिख रहा सब कुछ बड़ा साफ़ सुथरा और  आनन्द दायक  वातावरण है, कौन सी अदालत है भाई यह ? 


देखो यह धर्म राज का न्यायलय है यहाँ कोई पेपर फाइल नहीं होती हमारे पास सब रिकॉर्ड पहले से होता है तुम्हारी जिंदगी के कर्मों के लेखे झोके का , क्या बात कर रहे हो एक जिन्दा व्यक्ति धर्मराज यमराज की अदालत क्या बोले जा रहे हो , अभी पता चल जाएगा उठो तुम्हारी सुनवाई शुरू हो गई है  , मुझे एक ऊँचे सिंघासन पर विराज मान जिसे यमराज कहा  जा रहा था उनके सामने पेश किया गया , धर्मराज  जी ने अपने नीचे बैठे रिकॉर्ड कीपर से कहा , चित्र गुप्त इनका लेखा झोका निकालो इन्हे यहाँ क्यों लाया गया है ? इनकी मौत कुदरती हुई है या किसी दुर्घटना में ? अब यमराज की बातें सुनके मेरा दिमाग घूमने लगा की वाकई मैं तो मर कर इधर पहुंचा हूँ। 


भगवान इन साहिब को दिल का दौरा पड़ा था और पृथिवी लोक में इन लोगों ने बड़े बड़े यांत्रक संस्थान बनाये हुए है जिसे यह हॉस्पिटल कहते है जिसमे इनका दावा होता है के यह हर बीमारी का इलाज कर सकते है और किसी भी मृत शरीर के अंग जीवित शरीर में लगा कर उसे जिन्दा रख पाते है ,और दिल फ़ैल हो   जाए तो भी उसे ऑपरेशन से ठीक कर लेते है या किसी मुर्दे के दिल को किसी और में प्रत्यारोपण भी कर लेते है और उसे जिन्दा कर लेते है ? इसे वहाँ के बड़े बड़े डॉक्टर्स इलाज दे इसे बच्चाने में लगे थे , अगर हम वक्त पे न पहुँचते तो उन्होंने इसे भी  काटने का पूरा इंतज़ाम कर रखा था जिसे यह ऑपरेशन थिएटर कहते हैं।  इसे हम वहीँ से उठा के लाये है  

धर्म राज जी ने गुस्से में टेबल पर हथोड़ा मारा हमारे न्यायालय  का इतना अपमान ,हमारी विधान में इंसान का दख़ल हमे कतई मंजूर नहीं , भगवान हमने भी कहाँ इन मुर्ख इंसानो की परवाह की हम इसे अपने नियमानुसार उठा लाएं है , इनका पार्थिव शरीर वहीँ हॉस्पिटल के बिस्तर पर पड़ा है देखिये उनका लाइव टेलीकास्ट ,और यह जो सफ़ेद नकाबपोश इस स्क्रीन पर दिखाई दे रहे है न यह वहां के डॉक्टर कहलाते है और लोग इन्हे भगवान् की तरह पूजते है इनके लिए अपनी सारी धन दौलत लेकर इनके दरवाजे खड़े रहते है की हमारी सम्बन्धी को किसी भी तरह बचा लो। कोई बात नहीं इनका मुकदमा शुरू किया जाए हम देखते है इनके बड़े बड़े हस्पताल और डॉक्टर्स क्या कर पाते है इनके मृत शरीर के साथ। 

इनके गुनाहो का चिटठा बताईये , भगवन इनके खुदके ऐसे कोई खास गुनाह नहीं हैं , यह तो कर्म फल के अनुसार इनके बीते जीवन में जो भी कुछ हुआ है उसी के फलसवरूप उनकी सजा अभी बाकी थी , लेकिन आज के जीवन में  यह अपने मात पिता के भक्त है , पत्नी , बचो और  गृहस्थी में पूरा ध्यान देते है , कोई ऐब नहीं प्यार मोहब्बत से रहते है , तो फिर ? महाराज बस इनकी इतनी ही जिंदगी थी और दिल के दौरे से मौत लिखी थी। 

यह मृत्यु लोक में एक वकील है जिनका काम है लोगो के मुक्कदमे हों या सरकार के खिलाफ कोई न कोई मुकदमा लड़ते रहते है उसी में इनकी जिंदगी गुजर रही है , झूठे केस लेने से दूर भागते है , गरीब लोगो के केस कम फीस या मुफ्त भी कर देते है , लोगों में इनकी  काफी इज़्ज़त है , अपने स्वस्थ जीवन के लिए बहुत प्रयत्न करते है , पर धन दौलत से मोह नहीं रखते ,अब धर्म राज जी से सहन नहीं हुआ और कड़क कर बोले " यमराज यह कैसी विडंबना है एक तरफ आप इसके गुण ही गुण बताये जा रहे हो दुसरे इसके प्राण इतनी जल्दी निकाल लाये हो ? इन वकील लोगो का जीवन तो खुद ही एक सजा होता है , इनका परिवार इनके सान्निध्य को ट्र्स्ट रहता है , सारी जिंदगी फाइलों और किताबों में खपा देते है , आँखों पे इनके चश्मे लगे है , सर के बाल भी चिंताओं से उड़ चुके है 


तारीफ़ और ख़ुशामद में एक बड़ा फ़र्क़ है....साहेब 

तारीफ़ 
आदमी के "काम"की होती है, और 
ख़ुशामद 
"काम" के आदमी की !


वकील होना भी कहाँ आसान है दोस्तों..?

ना किसी के ख्वाबो मे मिलेंगे,
ना किसी के अरमान मे मिलेंगे,
 वह तो सिर्फ ,ऑफिस या कोर्ट मे मिलेंगे,

गर्मी, सर्दी, बरसात यूँ ही गुजर जाती है,
नींद भी पूरी होती नही की रात गुजर जाती है,
होली, दिवाली, नवरात्री, 31st पर भी वोह काम मे मिलेंगे,
तुम आ जाना बेफिक्र मेरे दोस्त
हम हमेशा ऑफिस या कोर्ट मे ही मिलेंगे,

जमाने भर की खुशियों से अलग है हम,
लोगो को लगता है गलत है हम,

बीमार होकर भी ठीक रहती है तबियत हमारी,
कोरोना को इतनी करीबी से झेला है ,
बेरोजगारी और क्लाइंट्स की कमी भी है इस कोरोना में 
इस लिए तो कोई आजकल पूछता भी नही खैरियत हमारी,

कभी क्लाइंट को मुश्किलों से छुड़ाने में तो ,
कभी  क्लाइंटसे डिस्कशन में तो कभी कोर्ट के काम में  बिज़ी मिलेंगे,
तुम्हारे लिए बहुत वक्त है हमारे पास , यादें संजोई है तुम्हारी 
तुम हमेशा आ जाना बेतकल्लुफ मेरे दोस्त,
 हम हमेशा ऑफिस या कोर्ट मे मिलेंगे।।।

 *सभी सम्मानित अधिवक्ताओं को समर्पित
25 November 2020, 

स्वयंपढ़ेऔर_बच्चों को भी  अनिवार्यतः पढ़ाएं ।।
एक ओर जहाँ ईसामसीह को सिर्फ चारकीलों से ठोकी गई है 
वहीँ भीष्मपितामह को धनुर्धर अर्जुन ने सैकड़ों बाणों से ।
कीलों से ठोकें जाने के तीसरे दिन ईसा कीलें निकलने से होश में आ गए थे वहीं पितामह 49 दिनों तक लगातार बाणों के बिस्तर में पूरे होश में रहे और जीवन,अध्यात्म का अमूल्य प्रवचन,ज्ञान भी दिया और अपनी इच्छा से अपने शरीर त्याग दिया ।

सोचें कि पितामह भीष्म की तरह अनगिनत त्यागी महापुरुष हमारे भारत वर्ष में हुये ।

किन्तु धनुर्धर अर्जुन के सैकड़ों बाणों से छलनी किए पितामह भीष्म को जब हमने भगवान् नहीं माना तो चार कीलों से ठोकें जाने पर ईसा को God क्यों माने.....???

ईसा का भारत से क्या संबंध है...???
25December क्यों मनायें...???
क्यों बने सेन्टा क्लाज...???
क्यों लगायें क्रिसमस ट्री...???

कदापि नहीं इस पाखण्ड में नहीं फसाना है न फ़साने देना है 
हमारे पास हमारे पूर्वजों की विरासत में मिली विज्ञानपूर्ण सनातन संस्कृति है 
जो हमारे जीवन को महिमामय गौरवपूर्ण बना सकती है 
अपने बच्चों को इस कुचक्र से बचाओ!!







पतझड़------------------------ख़िज़ाँ -- FALLS --


 पतझड़- ख़िज़ाँ -- FALLS --




 हम इस ब्रह्मांड केअब तक के सबसे खूबसूरत गृह यानि की हमारी पृथ्वी के उपर रहते है। यहाँ हमे वह सब चीज़े मिलती है जो हमे अन्य ग्रहों पर सुनने में अभी तक नहीं मिली ,जो एक इन्सान के जीने के लिए पर्याप्त हों ।

 दोस्तों हमे पृथ्वी की  सरंचना इंसान के रहने के लिए बहुत अनुकूल मिला है,  
फिर भी हम इस को बिगाडने का कोई मौका नहीं छोड़ते ,
जिसका हमें बिलकुल मलाल  नहीं होता । 

लेकिन प्रकृति चिल्लाती है रोष दिखाती है अपने लाल पीले रंग दिखा कर , 
हम कहते है  प्रकृति भी अपना परिधान अपना श्रृंगार बदलती रहती है , 
लेकिन हम यह समझ ही नहीं पाए आज तक की पृकृति का गुस्सा हर बदलते मौसम का ही स्वरुप है।
 न ही इसमें हमेशा बहार का मोसम रहता है न ही कोई दूसरा मौसम , बसंत बहार के बाद खिजां और पतझड़ , बरसात , हिमपात , शीतऋतु का मोसम भी आता है, 

एक बुजुर्ग पति ने आवाज लगाई " हे भाग्यवान सुनती हो , मुझे न अदबी संगम के इस बार के टॉपिक पतझड़ पे लिखना है कोई खास विचार तुम्हारे दिमाग में आये तो बताओ ?' पत्नी ने घूर के देखा और बोली आपलोग भी न क्या क्या लिखते रहते हो , मुहं में तुम्हारे एक दांत नहीं बचा , सर पे एक बाल नहीं , यह क्या पतझड़ से  कम है ? फूल पत्तों के झड़ने की चिंता छोड़ो कुछ अपनी सेहत पे ध्यान दो ? कहते कहते रसोई में चली गई पर विचार तो दे ही गई 

होता तो हमारी जिंदगी में भी यही है , बालअवस्था , तरुणाई टीन , जवानी और फिर आखिर में आता है बुढ़ापा यानी के जिंदगी की आखिरी पायदान पतझड़ ? जिंदगी में भी बहारें और पतझड़ दोनों साथ साथ चलती है। जो चीज़ पनपती है उसे एक दिन जाना भी होता है यही दस्तूर है जीवन का।  

पतझड़ नाम है पेड़ो के पत्तों के झड़ने का। इंसान भी तो अपनी जिंदगी में इन्ही पतझड़ों से रूबरू होता है ?, कभी उसके बाल झड़ जाते हैं , तो कभी दांत , और कभी त्वचा ,धीरे धीरे उसका वजूद भी झड़ते झड़ते वापिस प्रकृति में सिमट जाता है। 

इस दुनिया में सब की यही दास्तान है , बन कर फल फूल खिलना  फिर झड़ जाना
और एक नए रूप में पुनर्जीवित हो जाना यही एक मात्र विधि का विधान है

मंज़िल तो सबकी एक ही है, रास्ते मगर जुदा,
कोई पतझड़ से गुजरा, कोई सहरा से गया।

खूबसूरत फूल चुन लिए उसने मेरे शाख़े-गुल से, और साथ ले गया
खिजां पसंद न आई उसे , वह बाग ही में मेरे साथ रह गई

सिर्फ बागबान ही तो  वाकिफ है इस हकीकत से के ,
न खिजां में थी कोई मायूसी , न बहार में कोई रोशनी
ये तो अपनी अपनी -नजर के चराग है,
कहीं जल गये, तो कहीं बुझ गये।

होता नहीं है कोई बुरे वक्त में शरीक,( शामिल )
किस बात का ,किस किस से गिला करें
जब अपने पत्ते भी भागते हैं, खिजां में, दरख्तों से दूर।

पतझड़ का मौसम जब आया, नज़ारा बदलाव का आया
ओस की बूंदे रो रो कर , मिली पत्तों से आखिरी बार ,
आभास जो हो चूका था उनके जाने का , आखिरी मिलनं था
हर रंग के पत्ते थे , कुछ शोख लाल , और कुछ हरे, भूरे  पीले ,
सब कतार में थे जमीन पे गिरने , और हवा में उड़ जाने को।


लोगों की कतारें लगने लगी , फोटो खींची जाने लगी ,
हमारे विदाई परिधानों को ,खूबसूरती का नाम देता है यह फरेबी इंसान

सब को मालुम है हमारे जनाजे सजे है , फिर फना हो जाना है ,
और यह इन्हे कलर ऑफ़ फाल्स कहता है , बड़े शोक से इसे निहारता है 

यही तो है वह इंसानी फितरत , जो किसी के विनाश पे झूमता है ,
हमारी वेदना को , झड़ते पत्तों को एक उत्सव की तरह मनाता है 


हर हवा का झोंका उनके वजूद पर था भारी ,
नहीं था दम किसी में जो उन्हें गिरने से बचा पाता ,

न ही दम था उस विशालकाय वृक्ष में न ही शाखाओं में
जिनपे अब तक इतना सुहाना मंजर नसीब हुआ था

एक अनजाना खौफ भी था , हमेशा को घर से बेघर होने का ,
किसी को पूरा यकीन था नालिओं के सैलाब में बह जाने का ,

शायद यही सोच के खुद को समझा लिया होगा ,
की जाना तो सबको पड़ता है एक दिन इस प्रकृति से

उसके नियमों से बंधे थे , पुराना शरीर , पुराना परिवार
सब बंधन छोड़ना पड़ता है नया जीवन पाने को

चिनार के पंचकोणी पत्ते ,हर आकार प्रकार के पत्ते ,
सब सूख चले ,पिछले सावन के पाले पोसे हरे भरे पत्ते ,

अब जीवन बीत चला , देख न पाएंगे अगली बहार ये पत्ते
सबका अंजाम एक ही था , लाल ,हरे ,या हो पीले पत्ते


यही तंग हाल जो सबका है यह करिश्मा कुदरते रब का है
जो बहार थी सो खिजां हुई जो खिजां थी अब वह बहार है।”

जिस पेड़ के नीचे कभी सुस्ताया करते थे , हम सब 
खुद को झुलसती गर्मी से बचाते थे , वह शीतलता इन्ही पत्तों की बदौलत ही तो थी?


बड़ा सुहाना समय था , सुबह सुबह पक्षियों का चह चाहाना दिल को लुभा रहा था 
मैं भी बिस्तर से निकल पड़ा , इनके संगीत को सुनने ,

जगह जगह सड़क पर पत्ते बिखरे थे , मेरी पदचाप से पत्तों की चीत्कार सुनी मैंने , 
इन्ही पत्तों के ढेर में एक पत्ता बहुत चमक रहा था , मैंने उसे उठाया और संभाल कर अपनी जेब में रख लिया , घर आकर इसे अपनी पुस्तक में दबा दिया ताकि इसकी ख़ूबसूरती सब को दिखाई जाए।  

खिजां में पेड़ से टूटे हुए इस पत्ते को अपने हाथो में ले मैंने पुछा ,
कैसा लगता है अपनों से यूं बिछड़ कर लावारिस हो जाना ,
जमीन पे गिर ,रोंदेय जाना और बरसाती नाले में बह जाना ,

पत्ते ने संजीदगी से जवाब दिया , हमारा तो जीवन ही इतना था ,मान्यवर
हमें तो हर हाल में शाख से टूट जाना था ,हमारा विसर्जन तो पहले से ही नियत था ,

मौसम के बदलते हर रंग में ही निहित हमारा अस्तित्व है , आपने मुझे मेरी ख़ूबसूरती और चमक की वजह से उठा कर अपने घर में स्थान दिया , मेरे उन बड़े भाई बहनो का क्या जो मेरे साथ ही गिरे पर उन्हें आज तक किसी ने नहीं सहेजा , क्योंकि उनमे कोई कशिश न थी , ? यही सच है जनाब लोग बहारों की कदर करते है खिज़ाओं की नहीं 


रोंदेय जाते है मसले जाते है हम पत्ते , उनके पैरो तले जो भी इधर से गुजरता है
हम जानते है तेज तूफानी हवाएं उडा ले जाएंगी हमें ,
दफना देंगी दूर ,एक अनजान देश की मिटटी में

हमारी विदाई ही हमारा नया जीवन है , नया मुकाम है , नया परिधान है ,
हर बार जा कर हम फिर लौट आते है नए रूप में अपने परिवार के पास

आप अपनी भी तो बताइये जनाब ,खुद के फायदे में परिवार ही छोड़ जाते हो ,
आप भी तो अपना घर छोड़ देते हो , और कभी उसे तोड़ कर दुबारा बना देते हो

आप इंसान है ,बहुत समझदार है , आप तो खुद दरबदर घुमते हो ,
चले जाते हो बिलखते रोते परिवार को छोड़ ,
लेकिन  लौट कर कभी नहीं आते 

हमारी समझ तो बस इतनी ही है
की बिछड़ कर अपनों से मिलती है बस पाऊँ की ठोकरें और दर-दर की दुत्कारी…

देखिए ना तेज़ कितनी उम्र की रफ़्तार है,ज़िंदगी में चैन कम और फ़र्ज़ की भर-मार है!

बस इतना ही मुझको तुमसे है कहना..

तुम्ही ने ही तो हमे अपने आँगन में जगह दी ,

पानी दिया खाद दी , पनपने को पुरा आस्मां दिया
बड़े अच्छे हो तुम, ख्याल रखा करो अपना..!!

कर्ज है मेरे ऊपर तेरे सजदो का..
मैंने भी एक अरसे से तुझे अपना माना है..!! ☘️🌻

यह आवाज मेरे ही अंतर्मन की थी जो एकपतझड़ के  टूटे हुए पत्ते ने मुझे याद करवा दी थी 

पर यह तूफानी बरसाते वह सब कर गई जिसका डर था

नाम पतझड़ का है , जुल्म तो इंसान कभी भी कर देता है ,

अपनी गरज को पेड़ लगाता है और खुद ही कलम कर देता है

आज बह कर जहाँ भी जाएंगे

इससे भी दर्दनाक मंजर क्या होगा वहां..
खंजरों की जगह जुबाने बिक रही हो जहां..!! ⛓️🔗

खामोशी भी अब रास आ गई है.हमें

., हवा की सरसराहट से हम भी जाग उठे है ,
ज़िन्दगी इसी बहाने पास आ गई है..!!

सजा बन जाती है गुज़रे वक़्त की निशानियां..
 इसी लिए बदल लेते हैं हम भी अपना आशियान

जहाँ कभी बसती थी  खुशियाँ, आज हैं मातम वहाँ
वक़्त लाया था बहारें वक़्त लाया है खिजां ।


END 
**********************************************************

क्या कहें हम रखते ही नहीं खबर कौन कैसा है…
कर लेते हैं भरोसा हर एक पर अपना तो दिल ही ऐसा है।

मैं तो बस एक मामूली सा सवाल हूँ साहिब..
और लोग कहते हैं.. तेरा… कोई जवाब नहीं… 😎😎

मेरे “शब्दों” को इतने ध्यान से ना पढ़ा करो दोस्तों,
कुछ याद रह गया तो.. मुझे भूल नहीं पाओगे।

खुदा से क्या मांगू तेरा वास्ते, सदा खुशियां हो तेरे रास्ते..
हँसी तेरे चेहरे पे रहे इस तरह, खुशबू फूलों का साथ, निभाती है जिस तरह।

वक्त भी ये कैसी पहेली दे गया उलझने को
जिंदगी और समझने को उम्र दे गया।

मिल जाता है दो पल का सुकूंन चंद यारों की बंदगी में
वरना परेशां कौन नहीं अपनी-अपनी ज़िंदगी में।

सांसे खर्च हो रही है बीती उम्र का हिसाब नहीं,
फिर भी जीए जा रहें हैं तुझे, जिंदगी तेरा जवाब नहीं।

सबके कर्जे चुका दू मरने से पहले ऐसी मेरी नीयत है..!
मौत से पहले तू भी बता दे .. ऐ ज़िन्दगी तेरी क्या कीमत है..!!

चेहरा तो साफ कर ले, आइने को गंदा बताने वाले..!
हर वक़्त सामने वाला ही गंदा नहीं होता..!! ✨💢✨

बिखेरे बैठा हूं कमरे में सब कुछ…
कहीं एक ख्वाब रखा था वो भी कहीं गुम है..! 🎁

दोस्तों की जुदाई का गम न करना,
दूर रहे तो भी मोहब्बत काम न करना,

अगर मिले ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर,
तो हमें देखकर आंखें बंद न करना.

शायरीयो का बादशाह हूँ और कलम मेरी रानी है,
अल्फाज़ मेरे गुलाम है, बाकी रब की महेरबानी है!!

अगर लोग यूँ ही कमियां निकालते रहे तो,
एक दिन सिर्फ खूबियाँ ही रह जायेगी मुझमें।

दिखावे की मोहब्बत तो जमाने को है हमसे पर,
ये दिल तो वहाँ बिकेगा जहाँ ज़ज्बातो की कदर होगी।

मेरे बारे में अपनी सोच को थोड़ा बदल के देख​,
​मुझसे भी बुरे हैं लोग तू घर से निकल के देख​।

हमको आज़माने की ज़ुर्रत नहीं किसी की,
हम खुद अपनी तक़दीर लिखते है,
खुदा की लिखावट को बदलना तो हमारी फ़ितरत है,
हार को जीत में बदल कर हाथो की लकीर बदलते है!!

अभी सूरज नहीं डूबा जरा सी शाम होने दो,
मैं खुद लौट जाऊंगा मुझे नाकाम तो होने दो,
मुझे बदनाम करने का बहाना ढूँढ़ते क्यों हो,
मैं खुद हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम तो होने दो।

कई लोग मुझको गिराने मे लगे है,
सरे शाम चिराग भुझाने मे लगे है,
उन से कह दो क़तरा नही मैँ 🌊 समन्द्र हूँ,
डूब गये वो ख़ुद जो डूबाने मे लगे है!


सुधीर भाई आज तुम्हारी  छोटी सी क्रियाशीलता ने ( activities ) 
हमारा सब का मजा दो गुना कर दिया , ऐसे ही भाग लेते रहिये , 
भागना बड़ा आसान पर भाग लेना कितना मुश्किल ? 

इसमें कोई शक नहीं , पांच उंगलिओं से ही मुट्ठी बंध  सकती है, 
हम तो उससे कहीं ज्यादा है , ऐसे ही जुड़े रहिये और अपने आने वाले 
एकाकी पन को हमेशा के लिए भूल जाईये  

खुदगर्ज इंसान इन्हे रौंदता हुआ चलता ही रहता है ,
हम तो वैसे ही ख़िज़ाँ के वो  फूल है , जो पत्तों से ही काम चला लेते है 

गिला उन पक्षियों से नहीं जो घर से बेघर हो गए ,
सिला तो उनका अखरता है जिनहे हम इतनी ,
चाव से बुलाते है अपनी पलकों पे बिछाते हैं ,
और वह हैं के बिना वजह , हमसे आँखे चुराते है ,
लाख कहने पे भी अपना सूंदर मुखड़ा हमसे छुपाते है 


काश वो आये या न आएं , पर न आने की वजह तो बता देते ,
इसे ही उनका कलाम समझ , हम पढ़ के खुश नसीब हो जाते 

इनके रुद्रण को समझने को एक कोमल हृदय चाहिए , 
क्या गुजरती है जब आशिआना बिखर जाता है पतझड़  आने के बाद  

देखिए ना तेज़ कितनी उम्र की रफ़्तार है,ज़िंदगी में चैन कम और फ़र्ज़ की भर-मार है!

सिर्फ ये सोचकर हमने अपनी आस्तीने नहीं झटकी..
ना जाने कितने सांप और सपोले बेघर हो जाएंगे..!

ये इनायते गजब की, ये बला की मेहरबानी…
मेरी खैरियत भी पूछी तो किसी और की ज़बानी ..!! 🌸🌸

बहुत सीमेंट है साहब आजकल की हवाओं में..
दिल कब पत्थर बन जाता है पता ही नहीं चलता..!!

ना जाने मतलब के लिए क्यों मेहरबान होते है लोग..!! 💛


samjhauta gamo se kar lo
samjhauta gamo se kar lo
zindagi me gam bhi milte hain
ho patjhad aate hi rahte hain
patjhad aate hi rahte hain
ki madhuban phir bhi khilte hai
samjhauta gamo se kar lo
samjhauta gamo se kar lo

ret ke niche jal ki dhara
ret ke niche jal ki dhara
har sagar ka yaha kinara
rato ke aachal me chupa hai suraj pyara
rato ke aachal me chupa hai suraj pyara
samjhauta gamo se kar lo
samjhauta gamo se kar lo
zindagi me gam bhi milte hain
samjhauta gamo se kar lo
samjhauta gamo se kar lo

de do mujhko zimmedari
de do mujhko zimmedari
main ban jau nazar tumhari
tum meri ankho se dekho duniya sari
tum meri ankho se dekho duniya sari
samjhauta gamo se kar lo
samjhauta gamo se kar lo
zindagi me gum bhi milte hain
ho patjhad aate hi rahte hain
patjhad aate hi rahte hain
ki madhuban phir bhi khilte hain
samjhauta gamo se kar lo
samjhauta gamo se kar lo


"Mehfil -"-महफ़िल -- 27 TH NOVEMBER -2021--- ADABI SANGAM --MEETING NO ---506TH --

"Mehfil -"-महफ़िल -- 
   27 TH NOVEMBER -2021-----   
ADABI SANGAM --MEETING NO ---506TH - TOPIC 
FLAVOR OF INDIA -


महफ़िल

506th meeting of Adabi Sangam Logistics:
Hosts: Mr. and Mrs. Gulati
D/T: 11/27/21. 5:30 PM
Venue: Flavor of India
259-17 Hillside Ave, Glen Oaks, NY 11004
Part 1: Rajni Ji
Part 2: Parvesh
Story: Dr. Mahtab Ji
Topic: MEHFIL

यूँ तो भीड़ काफी हुआ करती थी , कभी महफिल में मेरी ,--------- 
फिर मुझे एक बिमारी लग गई , --
जैसे जैसे मैं सच बोलता गया, लोग उठते गये, महफ़िल वीरान 
 और मैं बिलकुल तनहा -----------

खूब लानते मिली हमें "बोले
महफिलें ऐसे थोड़ा ही सजा करती हैं ?"तुम्हे तो सलीका ही नहीं आया , 
क्या जरूरत थी हरीश चन्दर बनने की ? 
मैंने भी कहा दोस्त देखो अभी अभी तुमने हमेशा सच बोलने वाले का नाम लिया ? 
लोग सचाई पसंद तोबहुत करते है पर बोलते  नहीं , 
कोई बात नहीं चलिए हम अपनी अदबी महफ़िल को रंगीन करते है :-

आज फिर से जमी शायरों कि महफ़िल है
बयां कईयों के कुछ नए , दिल-ए-राज़ होगें,
सबके अपने अपने ख्याल अपने अपने तजुर्बे
इसी महफ़िल में बयान होंगे

हमें तो हमेशा ऐसी महफ़िल कि गलियों से ही गुरेज था
जब जिंदगी की तन्हाईआं बर्दाश्त न हुई तो , आ बैठे यहाँ

एक महफ़िल से जो पीकर उठे…
तो किसी को खबर तक ना लगी

हमें यूँ मुड़ मुड़कर देखना उनका ,खामख्वाह …….
हम बदनाम तो हुए बहुत महफ़िल में ,
राज खुले सो अलग

बार-बार उन्ही पर नजर गयी
लाख कोशिशें की बचाने में हमने , मगर फिर भी उधर गयी

था निगाह में कोई जादू जरूर उनकी
ये जिस पर पड़ी उसी के जिगर में उतर गयी,

फिर भरी महफ़िल में दोस्ती का जिक्र हुआ ,
कुछ भी हम से कहा न गया
हमने तो....
सिर्फ उनकी ओर युहीं देखा था ,
और लोग वाह वाह कहने लगे

रद्दी क़िस्मत होती है जैसे
मेरे हाथों में उसे पाने की रेखा ही नहीं थी

क़यामत तो तब टूटी जब भरी महफ़िल में पुछा उसने
कौन हैं यह साहब पहले कभी देखा नहीं इन्हे?

फिर जाते जाते जले पर नमक भी छिड़का ,उसने
महफ़िल में गले मिल के ,कान में वो धीरे से कह गए

ये दुनिया की रस्म है, हकीकत बताई नहीं जाती
बेशक मोहब्बत थी हमें , फिर भी बताई नहीं जाती

हाल-ए-दिल बताने से कुछ होता नहीं हासिल
इसलिए सारी तकलीफों को छुपा रहा था मै

निकलता आंख से आंसू तो बन जाता मजाक
इसलिए भरी महफ़िल खड़ा मुस्कुरा रहा था मै

मैंने आंसू को बहुत समझाया भरी महफ़िल मे यूँ ना आया करो
आंसू बोला ,तुमको भरी महफ़िल में जब भी तन्हा पाते है,
हमसे रहा नहीं जाता ,साथ देने इसीलिए, चुपके से चले आते है.

बहुत लोग जमाने में हमारे जैसे भी होते है
महफ़िल में हंसते है ,तन्हाई में रोते है ,
आंसुओं की महफ़िल सजा के,
आंसुओं से ही गुफ्तुगू कर लेते है

कुछ करते ,न कहते बना हमसे
छुपाये दिल में ग़मों का जहान बैठे रहे
उनकी बज़्म में उन्हें जानते हुए भी ,
बेज़बान बनकर बैठे रहे

फिर महफ़िल में बनावटी हँसना मेरा मिजाज बन गया
तन्हाई में रोना, सबके लिए एक राज ही बन गया

दिल के दर्द को जाहिर होने ना दिया
यही मेरे जीने का अंदाज बन गया

अब दिल में एहसास तो हो चूका था के
हमारे लिए उनके दिल में ,चाहत बिलकुल न थी ,

वरना ऐसे मुहं फेर के कोई जाता है क्या ?
,अपना दिल उनके क़दमों में भले रख दिया हमने
मगर उन्हें "जमीन "देखने की आदत ही कहाँ थी

फिर से मुझे मिट्टी में खेलने दे खुदा ,……………
यह वीरान महफिले , मतलबी लोग

ये दिखावे की दमकती , चहल पहल
अबयह जिंदगी ,हमें ज़िन्दगी नहीं लगती।

बहुत रुसवा हुए हैं हम , सपनो के बिखर जाने पे
अरमान दफन हुए तो अरसा हुआ ,
वोह अभागा फिर भी जिन्दा है ,

टूट कर भी कम्बख्त धड़कता रहता है ,
मैने दुनिया मैं अपने दिल सा कोई वफादार नहीं देखा। ……

कब महफ़िल मिले और कब वीराना ,
यूँ शिकायते किस से और क्यों करें

जबकि हर महफ़िल में सजती हैं कई महफिले
जिसको भी पास से मिलोगे , तनहा ही होगा

कोई चुप है तो ,कोई है हैरान यहाँ
कोई बेबस तो ,कोई है पशेमान यहाँ

लफ्ज़ों की दहलीज पर घायल है जुबान, परेशां हैं सब
कोई तन्हाई से, तो कोई है परेशान महफ़िल से

दूर ही रहता हूँ इसलिए , उन महफिलों सेआजकल
मेरा खुश रहना जहाँ,दोस्तों को नागवार था

वक्त बदल गया है यह कह कर ,
कोसते रहना वक्त को इतना, कहाँ तक है वाजिब?
सारे नाम पते तो हमारे स्मार्ट फ़ोन में हैं ,

एक बटन दबाते ही जिससे चाहें रूबरू हो जाते हैं
मिलने की कसक ही न बची , तो महफ़िल जमे भी तो कैसे ?

थक चुके हैं भाग भाग के यहाँ सब , आँखें है नींद से बोझिल ,
दिल में है गमो का सागर , दौड़ किसी की अभी थमी नहीं

महफ़िल कहाँ और कैसे जमाएं , , फ़ोन उठाने का भी समय नहीं
फ़ोन पे तो आंसरिंग मशीन लगी है , नाम पूछ लेती है पर जवाब नहीं देती

सभी ऐसे हो यह हम नहीं कहते ,
हम तो सिर्फ अपनी गॅरंटी लेते है
फुर्सत निकाल कर आओ कभी मेरी महफ़िल में
लौटते वक्त दिल नहीं पाओगे अपने सीने में

महफिलों की जान ,न समझना भूल से भी मुझे ,
मेरे चेहरे की बेबाक हंसी ,लाखों गम है छुपाये हुए

बहुत सलाहें मिली हमे अपने दोस्तों से ,क्यों बहस करते हो ?
किसी को खरा खरा सुना देने से, महफिले थोड़ा ही जमती है

हमारी जैसी बगावती सोच का ,जीना क्या और मरना भी क्या ?
आज इस महफ़िल से उठने को हैं , कल इस दुनिया से ही उठ जाएंगे,
सोच फिर भी वही रहेगी

आज हर ख़ुशी है लोगों के दामन में , पर थोड़ा रुक कर हंसने का वक्त नहीं '
माँ की लौरी का अहसास तो है , पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं ,

लड़खड़ाते रिश्ते बहुत हैं हमारे भी , पर उन्हें संवारने का वक्त नहीं
दिन रात दौड़ती दुनिया के बाजार में , भीड़ तो बहुत है मगर -------
महफिले सजाने का वक्त नहीं------------

जाने कब-कब किस-किस ने कैसे-कैसे तरसाया मुझे
तन्हाईयों की बात न पूछो महफ़िलों ने भी बहुत रुलाया मुझे

लेकिन क्या कमाल करते हैं हमसे जलन रखने वाले
महफ़िलें खुद की सजाते हैं और चर्चे वहां भी हमारे करते हैं

उन दुश्मनो को कैसे खराब कह दूं
जो हर महफ़िल में मेरा नाम लेते है

लेकिन फिर भी याद आती हैं आज भी उस महफ़िल की वीरानियाँ
यारों के संग काटी जहाँ हमने अपनी जवानियाँ

अगर जिक्र आया भी होगा कभी मेरा उनकी महफ़िल में
यादाश पे जोर डालने की बजाये , दोस्तों ने बात घुमा दी होगी ,

तमाम वक्त गुजर चूका , शक्ल सूरत भी हमारी बदल चुकी
आज उसी राह से गुजरें भी तो , देख कर नजरें घुमा ली होगी

अब गम भी क्यों करें इस हकीकत का ?
शायरों की बस्ती में कदम रखा तो जाना
ग़मों की महफ़िल भी कमाल जमती है

सुनकर ये बात मेरे दिल को थोड़ी सी खली
दुश्मन के महफ़िल में भी मेरी ही बात चली

यही सोच के रुक जाता हूँ मैं आते-आते
फरेब बहुत है यहाँ चाहने वालों की महफ़िल में

लेकिन कुछ इस तरह से हो गई है ,मेरी जिंदगी में यह शामिल ,
यही है वोह अदबी महफ़िल , जिसमे हैं कुछ सकून के पल

हर शख्स यहाँ आजाद है अपना रंग जमाने को ,
वक्त मिलता है सबको यहाँ अपना दर्द सुनाने को

महफ़िल में आकर कुछ तो सुनाना पड़ता है ,यही यहाँ का दस्तूर है ,
आज भी हम हैं अजीज उनके , कुछ सुन कर, कुछ सुना कर ,
विश्वास दिलाना पड़ता है

**************************************************************************


पैसों की दौड़ में इतना दौड़े की थकने का भी वक्त नहीं ,
किसी के अहसास को क्या समझे ,
जब अपने खवाबों के लिए ही वक्त नहीं


तू ही बता ऐ जिंदगी अब तो , 
ऐसी जिंदगी में जब हासिल ही कुछ नहीं
तो हर पल मरने वालों को , 
जीने के लिए ही वक्त कहाँ मिलेगा

आज तू कल कोई और होगा सद्र-ए-बज़्म-ए-मै
साकिया तुझसे नहीं,हम से है मैखाने का नाम

जैसे चार चांद लग गए महफ़िल में
जब देखूं इस शाम का नज़ारा
हर गम भी लगता है बस प्यारा
यूं सूरज का चुपके से ढलते जाना

महफ़िल में कुछ तो सुनाना पड़ता है
ग़म छुपा कर मुस्कुराना पड़ता है
कभी हम भी उनके अज़ीज़ थे
आज कल ये भी उन्हें याद दिलाना पड़ता है

उतरे जो ज़िन्दगी तेरी गहराइयों में
महफ़िल में रह के भी रहे तनहाइयों में
इसे दीवानगी नहीं तो और क्या कहें
प्यार ढुढतेँ रहे परछाईयों मे

मेरे दिल का दर्द किसने देखा है
मुझे बस खुदा ने तड़पते देखा है
हम तन्हाई में बैठे रोते है
लोगों ने हमें महफ़िल में हँसते देखा है

दुनिया की बड़ी महफिल लगेगी
इस जहां का सारा मुकदमा चलेगा
हम हर तरह से बेगुनाह होंगे और
सजा का हक भी हमें मिलेगा

कभी अकेले में तो कभी महफ़िल में
जितना तलाशा सुकून को उतनी मिली तन्हाई
हर पल रही वो साथ मेरे
और मुझे कभी न मिली रिहाई

शाम सूरज को ढलना सिखाती है
मोहब्बत परवाने को जलना सिखाती है
गिरने वाले को दर्द तो होता है जरूर
यही ठोकरें ही तो सम्भलना सिखाती हैं

महफ़िल में आँख मिलाने से कतराते हैं
मगर अकेले में हमारी तस्वीर निहारते हैं

सजती रहे खुशियों की महफ़िल
हर महफ़िल ख़ुशी से सुहानी बनी रहे
आप ज़िंदगी में इतने खुश रहें कि
ख़ुशी भी आपकी दीवानी बनी रहे

उठ के महफ़िल से मत चले जाना
तुमसे रौशन ये कोना-कोना है

सम्भलकर जाना हसीनों की महफ़िल में
लौटते वक्त दिल नहीं पाओगे अपने सीने में

कई महफिलों में गया हूं
हजारों मयखाने देखे
तेरी आंखों सा शाकी कहीं नहीं
गुजरे कई जमाने देखे

महफ़िल और भी रंगीन हो जाती हैं
जब इसमें आप शामिल हो जाती है

ना हम होंगे ना तुम होंगे और ना ये दिल होगा फिर भी
हज़ारो मंज़िले होंगी हज़ारो कारँवा होंगे,
फिर इसी तरह कुछ महफिले आबाद होंगी

आपकी महफ़िल और मेरी आँखे दोनों भरे-भरे है
क्या करे दोस्त दिल पर लगे जख्म अभी हरे-हरे हैं

हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़साने बयां होंगे
बहारे हमको ढूँढेंगी ना जाने हम कहाँ होंगे

तमन्नाओ की महफ़िल तो हर कोई सजाता है
पूरी उसकी होती है जो तकदीर लेकर आता है

सहारे ढुंढ़ने की आदत छूटती नही हमारी
और तन्हाई मार देती है हिम्मत हमारी


















IST JANUARY 2022----- ADABI SANGAM --MEETING NO ---507TH - TOPIC "--KAZAL / ANKHEN at ( RAJANI'S HOUSE)

काज़ल ----आँखें 

507th meeting of Adabi Sangam Logistics:
Hosts: Rajni ji & Ashok ji
D/T: 1/1/22. 5:30 PM
Venue: Residence: 40  Ninth Street, Hicksville, NY 11801
Part 1: Ashok Singh ji
Part 2: Rajinder ji
Story: Rajinder ji
Topic: KAAJAL
Rajni ji has suggested if the topic Kaajal is too difficult, you may write on AANKHEN आंखें.  Please be on time. Thanks.🙏





आँख हर वह चीज़ देख लेती है जो संसार में है ,
मगर आँख के अंदर कुछ चला जाए तो उसे नहीं देख पाती ?


यही आज की सचाई है मनुष्य की भी ,दुसरे की बुराइयां जिन आँखों से देखता है उन्ही आँखों से खुद की बुराई नजर नहीं आती उसे । कितनी आसानी से या मक्कारी से अपने भीतर बैठी बुराईआं नजरअंदाज कर देता है " हमारा नैनसुख "


महिफल मे आज फिर ,क़यामत की रात हो गई,
उन्होंने तो लगाया था ,अपनी आखो मे काजल सजने संवरने को
पर नजरें जो मिली ---कुछ यादें जो टकराई,
बिन बादल बरस गई आँखें उनकी , काजल भी न ठहर पाया
उस सैलाब में . ,


आखिर यह भ्रम भी टूटा , दम भरा करते थे ,

हम आँखों से दिल पढ़ लिया करते हैं,
आज मगर चूक गए


मै जिसे देख कर हो गया था पागल कभी जवानी में ,
उस लड़की का तो नाम ही काजल था


आईना नज़र लगाए भी तो कैसे

उनको ?
एक तो नाम काजल , ऊपर से
काजल भी लगाती है तो
आईने में देखकर.


मगर दीवाल पे टंगा आइना ,वह सब देख लेता है जिसे हम नहीं देखते
परन्तु "नादान" आईने को भी क्या खबर...
कुछ "चेहरे"


"चेहरे" के अन्दर भी छुपे होते हैं..! जिसे वो भी नहीं देख पाता


आईने ने अपनी रजा दी , सूंदर सा चेहरा , मृग सी आँखें
उन आँखों में लगा काजल , देख के इतनी ख़ूबसूरती ,
चकरा गया आइना भी , पर झूट बोला न गया उससे, "पूछ बैठा "

क्या गम है तुम्हारी आँखों में ? जिसे काजल से छुपा रहे हो ?


आंखें ही, क्या कम कातिल थी,
उस पर, काजल भी लगाते हो,
इश्क में, कत्ल के तुम भी,
क्या क्या हुनर, आजमाते हो.


मुझे याद आ गया ,
अभी गोद में ही था ,न बोलना न चल पाना ,
पर फिर भी है कुछ यादे
माँ ने भी तो लगाया था ,टीका काजल का गाल पे ,
कहते हुए ,"नजर नहीं लगेगी , कभी मेरे लाल को" ,

होगा कुछ तो माँ के इस काजल में जो ,
उसकी ढाल से मैं आज भी मेह्फूस हूँ ,


थोड़े जवान हुए तो काजल का रूप बदल गया , लोग कहने लगे
काजल तो गहना है ख़ूबसूरती का ,
जो मर्दों को नसीब नहीं ,
नहीं था ऐसा पर्दा ? जो हम , गम अपने छुपा लेते ,
औरत ने तो छुपा लिया काजल में , मर्द कहाँ जाते ?


सोचा एक दिन अपने ग़मों को लिख डालूं एक कागज़ पर
उधार मांगा था उनसे हमने उनकी
आँखों का काजल ,अपनी कलम के लिए
उसने भी रख दी शर्त , शायरी किसी और पे नहीं
हमारी आँखों पर ही होनी चाहिए.


बोल के वह मुस्कुराई , थोड़ा शरमाई
हुस्न निखारने के नाम पर
काजल की दिवार जो थी उसने बनाई
आँखो की मायूसी फिर भी छुप न पाई ,


एक तो उनकी आंखे नशीली और ऊपर से लगा यह काजल,
कोई पढ़े भी तो कैसे उन्हें ,
सब कुछ तो काला है वहां ?

आँखों से जज्बात तो जाहिर कर दिए उन्होंने ,
कम्बख्त
,काजल ने पर्दा फिर भी बनाये रखा
बावरा हुआ जाता हूँ बेशक ,देख तेरी अखियों में ,तैरते अक्स
न जाने क्या क्या छुपा रखा है , तेरी इस आँखों के काजल ने

याद है अब तक
तुझसे बिछड़ने की वो अँधेरी शाम मुझे,
तू तो ख़ामोश खडी थी
लेकिन बातें कर रहा था बहता हुआ तेरा काजल.

हौंसला गर तुझ में नहीं था ,मुझसे जुदा होने का,
हुनर मुझ में भी कहाँ था बहते काजल को पढ़ पाने का

उसका लिक्खा हुआ
हर शख्स पढ़ भी नहीं सकता, क्योंकि
वो चालाकी से मिला लेती है ,हमेशा
अपने दो आँसू. काजल में


वो जो अफसाना-ए-ग़म सुन सुन के
हंसा करते थे,हम पर कभी
इतना रोए इक दिन , काली घटाएं देख कर बोले
क्या बादल भी रोया करते है काजल लगा कर ?

कैसे समझाऊँ , किसे समझाऊं, किस भाषा में ?
कौन समझे मेरी आँखों की नमी का मतलब
ज़िन्दगी एक गीत थी , बेइंतिहा सफे जिसके
पर पूरी की पूरी जिल्द बंधाने में कट गई

#हुस्न दिखाकर भला कब हुयी हैं मोहब्बत
वो तो काजल लगाकर हमारी जान ले गयी!!!
बात ज़रा सी है ,लेकिन हवा को कौन समझाए,
जलते दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाया करती थी

निकल आते हैं आँसू
गर जरा सी चूक हो जाये,
किसी की आँख में काजल लगाना
खेल थोड़े ही है.

बताया एक दिन ,मुझे उन्होंने
छोड़ दिया है काजल लगाना,आँखों में ,
बहुत रुलाते हैं लोग ,
ठहर नहीं पाता


कहने लगी अब जरुरत ही नहीं मुझे
काजल लागे किरकरो, सुरमा सहा ना जाए !
जिन नैनंन में साजन बसे,दूजा कौन समाये !!


हमारी जिंदगी भी कुछ आसान नहीं रही
मुहब्बत की बेनूर ख्वाहिशें ,और तेरा गम,
हम भी बिखर से गये हैं ,
आँखों से बहे तेरे काजल की तरह.


चख के देख ली दुनिया भर की शराब जो

नशा तेरी कजरारी आँखों में था वो किसी में नहीं!!!


हुस्न ढल गया तो क्या ,गरूर अभी बाकी है ,
आँखों का काजल तो बह गया ,लकीर तो बाकी है
नशा उत्तर गया तो क्या सरूर अभी बाकी है
जवानी ने दस्तक दी कुछ दिया ,
फिर बहुत कुछ लेकर चली भी गई ,
जेहन में कुछ फितूर फिर भी अभी बाकी है





👌 अर्थ बड़े गहरे हैं


....गौर फरमायें....एक आँखों के काजल ही को क्यों
याद रखती है ये दुनिया ?
काला था इस लिए नजर को चुभा ?
और भी तो रंग थे मेरी दुनिया के ,
उसे क्यों नजरअंदाज किया सबने ?

मैंने .. हर रोज .. जमाने को .भी . रंग बदलते देखा है ....!!!
उम्र के साथ .. जिंदगी को .. ढंग बदलते देखा है .. !!!

वो .. जब चला करते थे .. तो शेर के चलने का .. होता था गुमान..!!!
उनको भी ..आज पाँव उठाने के लिए .. सहारे को तरसते देखा है !!!

जिनकी .. नजरों की .. चमक देख .. सहम जाते थे लोग ..!!!
उन्ही .. नजरों को .. बरसात .. की तरह ~~ बरसते देखा है .. !!!

जिनके .. हाथों के .. जरा से .. इशारे से ..पत्थर भी कांप उठते थे..!!!
उन्ही .. हाथों को .. पत्तों की तरह .. थर थर काँपते देखा है .. !!!

जिन आवाज़ो से कभी .. बिजली के कड़कने का .. होता था भरम ..!!!
उन.. होठों पर भी .. मजबूर .. चुप्पियों का ताला .. लगा देखा है .. !!!

ये जवानी .. ये ताकत .. ये दौलत ~~ सब कुदरत की .. इनायत है ..!!!
इनके .. जाते ही .. इंसान को ~~बे औकात , बेजान होते हुआ देखा है ... !!!

अपने .. आज पर .. इतना ना .. इतराना ~~ मेरे .. यारों ..!!!
वक्त की धारा में .. अच्छे अच्छों को ~~ मजबूर होकर बहते देखा है .. !!!

काफी नहीं होता छुपा लेना अपनी आँखों की मक्कारी,
कभी इस काजल के जलवे से
कर सको..तो किसी को खुश करो...दुःख देते ...हुए....
तो हमने हजारों को देखा है ।।।