"LIFE BEGINS HERE AGAIN " HOST AMIT &ANITA,
66, BUTTERNUT LN LEVITTOWN
NY. 11756, TIME 6 PM
"इच्छायें-मनुष्य"
को जीने नहीं देती
और
"मनुष्य-इच्छाओं"
को मरने नहीं देता.....✍🏻
EARTH🌍
जिंदगी के उस दौर से गुजर रहा हूँ मैं ग़ालिब ,
पुराने गाने गुनगुनाऊँ तो ,बीवी बोलती है ,
किसकी याद में मरे जा रहे हो ?
और नए जमाने के गीत गाओ तो ,
कहती हैं बड़ी जवानी छा रही है , आज कल ?
बड़े अच्छे वक्त पर निकल लिए ,
सहगल और रफ़ी साहब , वरना ,
जीना हराम हो जाता उनका भी AUR उनकी तमन्नाओं का।
पिछले महीने हम लोग डेस्टिनी को समझने की कोशिश कर रहे थे आज उसका अगला कदम है हमारी इच्छाएं यानी की इच्छा शक्ति जिसकी वजह से हम कर्म करने को बाध्य हो जाते हैं उसी से हमारी destiny decode हो पाती है।
where there is a will there is a way ,
जो इंसान इच्छानुसार कर्म युक्त है वही अंतत भाग्ययुक्त है
हमारी डेस्टिनी एक ब्लू प्रिंट है एक नक्शा है जिसपे हमारी जिंदगी की इमारत खड़ी की जाती है , इस इमारत के इंजीनियर और आर्किटेक्ट है हमारी इच्छाएं और उसे पूरा करने की ताकत हमारी "इच्छा शक्ति" ,
आज इसी सन्दर्भ में कुछ तथ्य मैं लाया हूँ , इन्हें बताने में कभी कभी समय सीमा नाकाफी हो जाती है , जब तक यह सन्देश साफ़ और शुद्ध तरीके से सुनने वालों के जेहन में न उत्तर जाये तो उस का फायदा भी क्या होगा , हम खुद को जितना मर्जी समय सीमा में बांधना चाहे " उसकी अदालत में हमारी घडिओं का दिया वक्त नहीं चलता , जो आध्यत्मिक सन्देश हमारे जीवन से तालुक रखते हैं , उन्हे हम जितना वक्त दे नाकाफी है , मेरी आपसे श्री प्रवेश चोपड़ा जी और हमारे आदरणियें डॉ सेठी , MS रजनी जी से बड़ा ही नम्र निवेदन है की हमारा हौसला बढ़ाएं ताकि अदबी संगम के मंच से जिसके पास भी सार्थक विचार हो सब तक पहुंचाए जाएँ ,
मैं कोई संत महात्मा नहीं हूँ , हाँ अपनी वकालत की जिंदगी में रहते इतने लोगों से मिलना पड़ा , इतनी रिफरेन्स लॉ बुक्स पढ़ने को मिली की जिंदगी के कुछ फंदे खुद बी खुद समझ आने लगे जिसे आपसे शेयर करना मेरी कोई मजबूरी या बिज़नेस नहीं बल्कि इंसानी धर्म है जो मुझे लगता है हमारी इस उम्र में एक शांति के सन्देश के बारे में होगा जिसमे हमारा शेष जीवन की आने वाली जटिलताएं झेलने में मदद मिलेगी।
एक छोटी सी काया बनाई उस परवरदिगार ने , फिर रख छोड़ा एक गट्ठड़ भारी सा उसके सर के भीतर दिमाग पे ,
ख्वाइशें , हसरतें , वासनाएं ,इच्छाएं और desires भरी थी लबा लब जिसमे ,ऊपर तक फिर करके उसे सील खोपड़ी में रख दिया , निबटा के अपना काम उस परवरदिगार ने ,
देते हुए धक्का इस दुनियावी महासागर में , कान में मेरे वह धीरे से बोला। ....... सब कुछ तुझे दे दिया है
जा करले पूर्ती इनकी अपनी हिम्मत से , है इच्छा शक्ति तो हो जा भवसागर के पार ?
जैसे तैसे अपने समय पर माँ की कोख से बाहर आये तो पता चला ,इतनी दुर्बल काया ऊपर से बोझ अनंत इच्छाओं की पूर्ती का , सिर्फ बोल ही तो नहीं पाते थे वरना याद तो सब था की हम इस दुनिया में करने क्या आएं हैं ? खुद के पाओं पर चलना भी भारी पड़ने लगा , शैशवस्था से बचपन और फिर जवानी और बुढ़ापा
गिरते- पड़ते ठोकरें- खाते हर इच्छा पूर्ति में जैसे प्राण निकले जाएँ ,
मन ने हार न मानी - रुका नहीं किसी ठोकर से - गूँज रहे थे कान में उसके यह शब्द --
जब तक जिन्दा है तेरी इच्छा शक्ति ---- इच्छाएं तुझे मरने भी न देंगी।जिस दिन तेरी इच्छाएं मरी समझना तू भी मर गया , यही शब्द अभी तक मेरे कान में गूँज रहे थे , जिसने मुझे इस दुनिया में भेजा था ।
(१)बचपन में पैदल चलते हुए साइकिल सवार को देख कर साइकिल की इच्छा जाग उठी और मेहनत करके साइकिल खरीद ली
2 .- फिर तो हमारी नजर कभी स्कूटर , कभी कार , कभी बस , कभी ट्रैन और फिर हवाई जहाज पर आ कर रुकी , और फिर समुन्दर मंथन को बड़े से क्रूज पर भी चढ़ गए ,देश विदेश भ्रमण कर आये खूब आनंद किया , कुदरत के विस्तार का नज़ारा देख हिल गए भीतर तक हम।
पहले छोटी सी झोपडी में पूरा परिवार समा जाता था , प्यार ही प्यार था , फिर एक मकान बना उसके कमरे भी छोटे पड़ने लगे , गाडी है तो गेराज भी होना चाहिए , बड़ा बांग्ला लिया गया , खर्चे बढ़ने लगे तो ज्यादा वक्त पैसा कमाने में लगने लगा , बच्चों को अच्छे कॉलेज स्कूल में पढ़ने के लिए जी जान से पैसा कमाने की जुग्गत करनी पड़ी , इच्छाओं का तो आलम यह था की एक पूरी होती दूसरी सामने आ खड़ी होती , हमारा पूरा जीवन सबकी इच्छाएं करने में निकलने लगा
ईश्वर से प्रार्थना करने लगे हमारी जिंदगी की लीज थोड़ी और बढ़ा दो , अभी बहुत कुछ देखना है , बेटे की शादी हुई है पोता भी बड़ा हो गया है , उसकी शादी भी हो जाए तो उसके पोतों को भी अपने हाथों में खिला सकूं।
इच्छाओं और वासनाओं में बड़ा नज़दीक का रिश्ता है , काम क्रोध लोभ मोह पग पग पे खड़े हैं हमें अपने रस्ते से भटकाने के लिए , पर हमारी कोशिश थी दिमाग में भरी इच्छाओं की गठड़ी में से एक एक करके हर इच्छा की पूर्ती करते जाएँ क्यों की वक्त बहुत कम है जवानी का जिसमे यह पूरी की जा सकती हैं , जितना तेज काम करते उतनी ही गलतियां भी होने लगी , कुछ आस मंजिल के नजदीक आकर टूट गई और कुछ को पाना हमारे बूते से बाहर लगा , कुछ निराशा ने निगल ली , कुछ हमारी गफलत और नादानी ऐसे की सुनहरी अवसर हाथ से फिसलते चले गए।भावावेश में पथ से भटक से गए।
वक्त और ढलती उम्र ने हमारी जरूरतें भी बदल डाली ,
फिर भी रुके नहीं , एक एक इच्छा गठड़ी से निकलती गई , दम साधे भागते रहे कुछ पाया कुछ खोया , थोड़ा दम लेने को रुके तो अहसास हुआ की गठड़ी काफी हलकी हो चुकी थी और कुछ इच्छाएं न जाने कब थक हार कर पीछे छूट गई और , कुछ अधूरी और कुछ अधमरी हो , कर हमे कब छोड़ने लगी थी यह पता ही नहीं चला ,
इच्छाओं की अनंतता ही जीव को दुखी करती है। सदैव स्मरण रहना चाहिए कि आवश्यकता सबकी पूरी होती है लेकिन सभी इच्छा पूरी कभी नहीं होती। जितना भी जोर लगा लो , पूरी वहीँ होंगी जिसमे उसकी रजा होगी ? यह अब धीरे धीरे हमे समझ भी आने लगा
काम को शत्रु मानो। काम का अर्थ केवल वासना ही नही है बल्कि किसी भी वस्तु की कामना से है। अतः शनैः शनैः जीव की कामना कम होनी चाहिये।
एक साधना पथ पर चलने वाले इंसान साधक के लिए अनिवार्य है कि आज अगर आपको आठ वस्तुओं की आवश्यकता है तो धीरे धीरे वो घट कर सात और फिर छः हो रही है या नहीं। यदि आपकी कामनायें /इच्छाएं धीरे धीरे कम हो रही है तो आप सही मार्ग पर चल रहे हैं।वरना आप मोह जाल में फस कर अपना सब कुछ गवाने जा रहे हैं यही सार है जीवन के सफर का।
हसरतें कुछ और हैं....
वक्त की इल्तिजा कुछ और है ..!!!
कौन जी सका जिंदगी अपने मुताबिक....
दिल चाहता कुछ और है....
होता कुछ और है ..!!!
बेदम हो कर हॉस्पिटल के बिस्तर पर लेटे लेटे महसूस हुआ की जैसे मेरी गठड़ी खुल कर एक चादर बन गई है जिसे मेरे ऊपर डाल दिया गया है. अब डॉक्टर्स कहते हैं यह सब छोड़ दो ,अपनी वासनाओं से बाहर आ जाओ सादा खाना खाओ , बस कार हवाई जहाज की यात्रा आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं , जिम जाओ वहां फिर से साइकिल चलाओ , जो खाना गरीबी में खाते थे अब वही तुम्हारे लिए अमृत है , तो क्या यह सब मृगतृष्णा थी जो भाग भाग कर हमने एकत्र किया अब हमारे काम आने वाला नहीं था ?
तो फिर उस परवरदिगार ने मेरे सर पर इतना बोझ ही क्यों रखा की मैं उसे पाने के लिए ही ता उम्र भागता रहा और जीवन ख़त्म भी हो गया और मैं न ही कोई संतुष्टि प् सका न ही मन का सकूं ? मैंने अभी जीवन को महसूस भी नहीं किया और।जाने का वक्त भी आ गया ?
आज सोने के लिए भी मुझे नींद की गोली या मदिरा का साथ चाहिय ........क्या वाकई मेरा सफर खत्म होने जा रहा है ?
इन तमाम विचारों ने मेरी नींद ही उडा दी , मैं सोचने लगा इच्छाएं कभी हमारी शक्ति होती है और कभी मजबूरी, जिस पैंट के घुटने फट जाते थे और हमारी माँ उसे सी कर रफू कर जब हमें फिर से पहना देती थी तो खुद की गरीबी पे बड़ी शर्म महसूस होती थी , आज जब मैंने अमीर से अमीर लोगो को रफू के बगैर फटी जींस को महंगे महंगे स्टोर्स में ऊँची कीमत पर खरीद कर पहने देखा तो सर चकरा गया के अगर यह लोग अमीर हैं तो मैं जब फटी पैंट पहनता था तो मैं क्या था ?
जिंदगी के रथ में लदी हैं बेशुमार ख्वाइशों की बोरियां
कुछ इतनी भारी की हम उठा ही न पायें।
और खोकली भी कुछ इतनी जो किसी काम न आएं ,
जीवन के सफर में रुकावटें कुछ अपनों की वजह से थी ,
अपनों के अपनों पर ही इलज़ाम भी बहुत थे ,
लेकिन वक्त भी ज्यादा न था मेरे पास
हर किसी से निबटता तो खुद ही निबट जाता ,
यह शिकवे शिकायतों का दौर देख कर ,
जरा थम कर सोचने लगा हूँ , सफर तो लम्बा है ,
पर लगता है उम्र कम , और इम्तिहान अभी बाकी है।
शायद इंसान अपनी इच्छाओं की गठड़ी खाली हो जाने पर इसे साथ ही ले जाता है जिसे लोग कफ़न का नाम दे देते हैं। मेरी गठड़ी पूरी तरह खाली हो कर एक चादर हो चुकी थी
अब इसमें कुछ भी ऐसा न बचा था , पूरी जिंदगी की बैलेंस शीट मेरे सामने थी , न शरीर में वो जोश न वो दम बचा था ,लाठी के सहारे चलना , कोई मुझ से बात ही नहीं करता था क्योंकि मेरी बातें पुराणी और दकियानूसी लगी उन्हें , कोई करे भी तो सुनाई कहाँ पड़ती थी , सुन भी लें तो याद कहाँ रहती थी ,?
न ही इच्छा शक्ति तो फिर इच्छाएं भी कहाँ रहती मेरे पास। चादर को तान कर मुहं ढापने की कोशिस की तो पावं किसी चीज़ से टकराया , उठ कर देखा यह चादर के कोने में पड़ी एक गांठ थी जो शायद मेरे उस कर्म गठड़ी के बांधने वक्त डाली गई होगी , पर इसमें भी कुछ महसूस हो रहा है शायद मेरी कोई इच्छा अभी इसमें कैद हो ?
चलो आज इसे भी पूरी किये लेते हैं , जैसे ही खोलने की कोशिश की , हाथ किसी अनिष्ट विचार से कांपने लगे , दिमाग में बिजली का सा झटका लगा , हाथ वहीँ रुक गए , गौर से देखा तो उसपे कुछ लिखा भी था , लाइट में देखा तो लिखा था। ...... your last wish यानी की मेरी आखरी ख्वाइश या इच्छा ? और मेरे जीवन का अंत ? तो मेरे बाद मेरी दौलत मकान जायदाद कहाँ जाएगी , इतनी जल्दी मेरा अंत ?
एक दिन मंदिर में कथा सुनी थी वह याद आ गई ,;
इच्छाओं की पूर्ति तभी तक है जब तक इंसान जीवित है , सभी साथी सम्बन्धी भी तुम्हारी इच्छाओं का हिंस्सा मात्र हैं : - मृत्यु के बाद का सच यही है।
1 पत्नी मकान तक
2 समाज रिश्तेदार श्मशान तक
३ पुत्र अग्निदान तक
4 केवल हमारे कर्म ही भगवान् तक
फिर अपने शरीर की तरफ देखा जो बिलकुल कमजोर और क्षीण हो चूका था। ..अब क्या मांगू उस परवरदिगार से मेरी पहली दरखास्त भी खारिज हो चुकी है जो मैंने अपनी जिंदगी की लीज बढ़ाने को डाली थी ,
तभी कानों में एक कर्कश आवाज गूंजी , अब सो जाईये बहुत देर हो गई है , यह शायद हमारी तिमार दारी में लगी नर्स की आवाज थी , आकर वही चद्दर हम पर डाल दी जिसे हम बड़े प्यार से खुद की मालकियत समझते थे , और सोचते थे जरा ठीक हो जाये इसे फिर से भर लेंगे अपनी इच्छाओं की झोली से।
बड़ी ही मस्त नींद आयी जितनी जीवन में आज तक नहीं आई थी ,सिर्फ थोड़ी गर्मी महसूस हुई जब हमें चिता पर लिटाया गया , उस गठड़ी की चादर में लपेट कर हमारा कफ़न बना दिया गया , आये तो थे बड़े अरमानो के साथ गए सिर्फ एक के साथ वह थी। हमारी आखिरी "इच्छा मृत्यु। .. मेरी इच्छाओं का अंत भी हुआ मेरी लास्ट इच्छा के साथ।
पत्नी: "अगर आप लॉटरी से 1 करोड़ जीत गए लेकिन मुझे 1 करोड़ की फिरौती के लिए अपहरण कर लिया गया, तो आप क्या करेंगे?"
पति: "अच्छा सवाल है, लेकिन मुझे शक है कि एक ही दिन में मेरी दो बार लॉटरी कैसे लग सकती है ".....😃😂
66, BUTTERNUT LN LEVITTOWN
NY. 11756, TIME 6 PM
"इच्छायें-मनुष्य"
को जीने नहीं देती
और
"मनुष्य-इच्छाओं"
को मरने नहीं देता.....✍🏻
EARTH🌍
जिंदगी के उस दौर से गुजर रहा हूँ मैं ग़ालिब ,
पुराने गाने गुनगुनाऊँ तो ,बीवी बोलती है ,
किसकी याद में मरे जा रहे हो ?
और नए जमाने के गीत गाओ तो ,
कहती हैं बड़ी जवानी छा रही है , आज कल ?
बड़े अच्छे वक्त पर निकल लिए ,
सहगल और रफ़ी साहब , वरना ,
जीना हराम हो जाता उनका भी AUR उनकी तमन्नाओं का।
पिछले महीने हम लोग डेस्टिनी को समझने की कोशिश कर रहे थे आज उसका अगला कदम है हमारी इच्छाएं यानी की इच्छा शक्ति जिसकी वजह से हम कर्म करने को बाध्य हो जाते हैं उसी से हमारी destiny decode हो पाती है।
where there is a will there is a way ,
जो इंसान इच्छानुसार कर्म युक्त है वही अंतत भाग्ययुक्त है
हमारी डेस्टिनी एक ब्लू प्रिंट है एक नक्शा है जिसपे हमारी जिंदगी की इमारत खड़ी की जाती है , इस इमारत के इंजीनियर और आर्किटेक्ट है हमारी इच्छाएं और उसे पूरा करने की ताकत हमारी "इच्छा शक्ति" ,
आज इसी सन्दर्भ में कुछ तथ्य मैं लाया हूँ , इन्हें बताने में कभी कभी समय सीमा नाकाफी हो जाती है , जब तक यह सन्देश साफ़ और शुद्ध तरीके से सुनने वालों के जेहन में न उत्तर जाये तो उस का फायदा भी क्या होगा , हम खुद को जितना मर्जी समय सीमा में बांधना चाहे " उसकी अदालत में हमारी घडिओं का दिया वक्त नहीं चलता , जो आध्यत्मिक सन्देश हमारे जीवन से तालुक रखते हैं , उन्हे हम जितना वक्त दे नाकाफी है , मेरी आपसे श्री प्रवेश चोपड़ा जी और हमारे आदरणियें डॉ सेठी , MS रजनी जी से बड़ा ही नम्र निवेदन है की हमारा हौसला बढ़ाएं ताकि अदबी संगम के मंच से जिसके पास भी सार्थक विचार हो सब तक पहुंचाए जाएँ ,
मैं कोई संत महात्मा नहीं हूँ , हाँ अपनी वकालत की जिंदगी में रहते इतने लोगों से मिलना पड़ा , इतनी रिफरेन्स लॉ बुक्स पढ़ने को मिली की जिंदगी के कुछ फंदे खुद बी खुद समझ आने लगे जिसे आपसे शेयर करना मेरी कोई मजबूरी या बिज़नेस नहीं बल्कि इंसानी धर्म है जो मुझे लगता है हमारी इस उम्र में एक शांति के सन्देश के बारे में होगा जिसमे हमारा शेष जीवन की आने वाली जटिलताएं झेलने में मदद मिलेगी।
एक छोटी सी काया बनाई उस परवरदिगार ने , फिर रख छोड़ा एक गट्ठड़ भारी सा उसके सर के भीतर दिमाग पे ,
ख्वाइशें , हसरतें , वासनाएं ,इच्छाएं और desires भरी थी लबा लब जिसमे ,ऊपर तक फिर करके उसे सील खोपड़ी में रख दिया , निबटा के अपना काम उस परवरदिगार ने ,
देते हुए धक्का इस दुनियावी महासागर में , कान में मेरे वह धीरे से बोला। ....... सब कुछ तुझे दे दिया है
जा करले पूर्ती इनकी अपनी हिम्मत से , है इच्छा शक्ति तो हो जा भवसागर के पार ?
जैसे तैसे अपने समय पर माँ की कोख से बाहर आये तो पता चला ,इतनी दुर्बल काया ऊपर से बोझ अनंत इच्छाओं की पूर्ती का , सिर्फ बोल ही तो नहीं पाते थे वरना याद तो सब था की हम इस दुनिया में करने क्या आएं हैं ? खुद के पाओं पर चलना भी भारी पड़ने लगा , शैशवस्था से बचपन और फिर जवानी और बुढ़ापा
गिरते- पड़ते ठोकरें- खाते हर इच्छा पूर्ति में जैसे प्राण निकले जाएँ ,
मन ने हार न मानी - रुका नहीं किसी ठोकर से - गूँज रहे थे कान में उसके यह शब्द --
जब तक जिन्दा है तेरी इच्छा शक्ति ---- इच्छाएं तुझे मरने भी न देंगी।जिस दिन तेरी इच्छाएं मरी समझना तू भी मर गया , यही शब्द अभी तक मेरे कान में गूँज रहे थे , जिसने मुझे इस दुनिया में भेजा था ।
(१)बचपन में पैदल चलते हुए साइकिल सवार को देख कर साइकिल की इच्छा जाग उठी और मेहनत करके साइकिल खरीद ली
2 .- फिर तो हमारी नजर कभी स्कूटर , कभी कार , कभी बस , कभी ट्रैन और फिर हवाई जहाज पर आ कर रुकी , और फिर समुन्दर मंथन को बड़े से क्रूज पर भी चढ़ गए ,देश विदेश भ्रमण कर आये खूब आनंद किया , कुदरत के विस्तार का नज़ारा देख हिल गए भीतर तक हम।
पहले छोटी सी झोपडी में पूरा परिवार समा जाता था , प्यार ही प्यार था , फिर एक मकान बना उसके कमरे भी छोटे पड़ने लगे , गाडी है तो गेराज भी होना चाहिए , बड़ा बांग्ला लिया गया , खर्चे बढ़ने लगे तो ज्यादा वक्त पैसा कमाने में लगने लगा , बच्चों को अच्छे कॉलेज स्कूल में पढ़ने के लिए जी जान से पैसा कमाने की जुग्गत करनी पड़ी , इच्छाओं का तो आलम यह था की एक पूरी होती दूसरी सामने आ खड़ी होती , हमारा पूरा जीवन सबकी इच्छाएं करने में निकलने लगा
ईश्वर से प्रार्थना करने लगे हमारी जिंदगी की लीज थोड़ी और बढ़ा दो , अभी बहुत कुछ देखना है , बेटे की शादी हुई है पोता भी बड़ा हो गया है , उसकी शादी भी हो जाए तो उसके पोतों को भी अपने हाथों में खिला सकूं।
इच्छाओं और वासनाओं में बड़ा नज़दीक का रिश्ता है , काम क्रोध लोभ मोह पग पग पे खड़े हैं हमें अपने रस्ते से भटकाने के लिए , पर हमारी कोशिश थी दिमाग में भरी इच्छाओं की गठड़ी में से एक एक करके हर इच्छा की पूर्ती करते जाएँ क्यों की वक्त बहुत कम है जवानी का जिसमे यह पूरी की जा सकती हैं , जितना तेज काम करते उतनी ही गलतियां भी होने लगी , कुछ आस मंजिल के नजदीक आकर टूट गई और कुछ को पाना हमारे बूते से बाहर लगा , कुछ निराशा ने निगल ली , कुछ हमारी गफलत और नादानी ऐसे की सुनहरी अवसर हाथ से फिसलते चले गए।भावावेश में पथ से भटक से गए।
वक्त और ढलती उम्र ने हमारी जरूरतें भी बदल डाली ,
फिर भी रुके नहीं , एक एक इच्छा गठड़ी से निकलती गई , दम साधे भागते रहे कुछ पाया कुछ खोया , थोड़ा दम लेने को रुके तो अहसास हुआ की गठड़ी काफी हलकी हो चुकी थी और कुछ इच्छाएं न जाने कब थक हार कर पीछे छूट गई और , कुछ अधूरी और कुछ अधमरी हो , कर हमे कब छोड़ने लगी थी यह पता ही नहीं चला ,
इच्छाओं की अनंतता ही जीव को दुखी करती है। सदैव स्मरण रहना चाहिए कि आवश्यकता सबकी पूरी होती है लेकिन सभी इच्छा पूरी कभी नहीं होती। जितना भी जोर लगा लो , पूरी वहीँ होंगी जिसमे उसकी रजा होगी ? यह अब धीरे धीरे हमे समझ भी आने लगा
काम को शत्रु मानो। काम का अर्थ केवल वासना ही नही है बल्कि किसी भी वस्तु की कामना से है। अतः शनैः शनैः जीव की कामना कम होनी चाहिये।
एक साधना पथ पर चलने वाले इंसान साधक के लिए अनिवार्य है कि आज अगर आपको आठ वस्तुओं की आवश्यकता है तो धीरे धीरे वो घट कर सात और फिर छः हो रही है या नहीं। यदि आपकी कामनायें /इच्छाएं धीरे धीरे कम हो रही है तो आप सही मार्ग पर चल रहे हैं।वरना आप मोह जाल में फस कर अपना सब कुछ गवाने जा रहे हैं यही सार है जीवन के सफर का।
हसरतें कुछ और हैं....
वक्त की इल्तिजा कुछ और है ..!!!
कौन जी सका जिंदगी अपने मुताबिक....
दिल चाहता कुछ और है....
होता कुछ और है ..!!!
बेदम हो कर हॉस्पिटल के बिस्तर पर लेटे लेटे महसूस हुआ की जैसे मेरी गठड़ी खुल कर एक चादर बन गई है जिसे मेरे ऊपर डाल दिया गया है. अब डॉक्टर्स कहते हैं यह सब छोड़ दो ,अपनी वासनाओं से बाहर आ जाओ सादा खाना खाओ , बस कार हवाई जहाज की यात्रा आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं , जिम जाओ वहां फिर से साइकिल चलाओ , जो खाना गरीबी में खाते थे अब वही तुम्हारे लिए अमृत है , तो क्या यह सब मृगतृष्णा थी जो भाग भाग कर हमने एकत्र किया अब हमारे काम आने वाला नहीं था ?
तो फिर उस परवरदिगार ने मेरे सर पर इतना बोझ ही क्यों रखा की मैं उसे पाने के लिए ही ता उम्र भागता रहा और जीवन ख़त्म भी हो गया और मैं न ही कोई संतुष्टि प् सका न ही मन का सकूं ? मैंने अभी जीवन को महसूस भी नहीं किया और।जाने का वक्त भी आ गया ?
आज सोने के लिए भी मुझे नींद की गोली या मदिरा का साथ चाहिय ........क्या वाकई मेरा सफर खत्म होने जा रहा है ?
इन तमाम विचारों ने मेरी नींद ही उडा दी , मैं सोचने लगा इच्छाएं कभी हमारी शक्ति होती है और कभी मजबूरी, जिस पैंट के घुटने फट जाते थे और हमारी माँ उसे सी कर रफू कर जब हमें फिर से पहना देती थी तो खुद की गरीबी पे बड़ी शर्म महसूस होती थी , आज जब मैंने अमीर से अमीर लोगो को रफू के बगैर फटी जींस को महंगे महंगे स्टोर्स में ऊँची कीमत पर खरीद कर पहने देखा तो सर चकरा गया के अगर यह लोग अमीर हैं तो मैं जब फटी पैंट पहनता था तो मैं क्या था ?
जिंदगी के रथ में लदी हैं बेशुमार ख्वाइशों की बोरियां
कुछ इतनी भारी की हम उठा ही न पायें।
और खोकली भी कुछ इतनी जो किसी काम न आएं ,
जीवन के सफर में रुकावटें कुछ अपनों की वजह से थी ,
अपनों के अपनों पर ही इलज़ाम भी बहुत थे ,
लेकिन वक्त भी ज्यादा न था मेरे पास
हर किसी से निबटता तो खुद ही निबट जाता ,
यह शिकवे शिकायतों का दौर देख कर ,
जरा थम कर सोचने लगा हूँ , सफर तो लम्बा है ,
पर लगता है उम्र कम , और इम्तिहान अभी बाकी है।
शायद इंसान अपनी इच्छाओं की गठड़ी खाली हो जाने पर इसे साथ ही ले जाता है जिसे लोग कफ़न का नाम दे देते हैं। मेरी गठड़ी पूरी तरह खाली हो कर एक चादर हो चुकी थी
अब इसमें कुछ भी ऐसा न बचा था , पूरी जिंदगी की बैलेंस शीट मेरे सामने थी , न शरीर में वो जोश न वो दम बचा था ,लाठी के सहारे चलना , कोई मुझ से बात ही नहीं करता था क्योंकि मेरी बातें पुराणी और दकियानूसी लगी उन्हें , कोई करे भी तो सुनाई कहाँ पड़ती थी , सुन भी लें तो याद कहाँ रहती थी ,?
न ही इच्छा शक्ति तो फिर इच्छाएं भी कहाँ रहती मेरे पास। चादर को तान कर मुहं ढापने की कोशिस की तो पावं किसी चीज़ से टकराया , उठ कर देखा यह चादर के कोने में पड़ी एक गांठ थी जो शायद मेरे उस कर्म गठड़ी के बांधने वक्त डाली गई होगी , पर इसमें भी कुछ महसूस हो रहा है शायद मेरी कोई इच्छा अभी इसमें कैद हो ?
चलो आज इसे भी पूरी किये लेते हैं , जैसे ही खोलने की कोशिश की , हाथ किसी अनिष्ट विचार से कांपने लगे , दिमाग में बिजली का सा झटका लगा , हाथ वहीँ रुक गए , गौर से देखा तो उसपे कुछ लिखा भी था , लाइट में देखा तो लिखा था। ...... your last wish यानी की मेरी आखरी ख्वाइश या इच्छा ? और मेरे जीवन का अंत ? तो मेरे बाद मेरी दौलत मकान जायदाद कहाँ जाएगी , इतनी जल्दी मेरा अंत ?
एक दिन मंदिर में कथा सुनी थी वह याद आ गई ,;
इच्छाओं की पूर्ति तभी तक है जब तक इंसान जीवित है , सभी साथी सम्बन्धी भी तुम्हारी इच्छाओं का हिंस्सा मात्र हैं : - मृत्यु के बाद का सच यही है।
1 पत्नी मकान तक
2 समाज रिश्तेदार श्मशान तक
३ पुत्र अग्निदान तक
4 केवल हमारे कर्म ही भगवान् तक
फिर अपने शरीर की तरफ देखा जो बिलकुल कमजोर और क्षीण हो चूका था। ..अब क्या मांगू उस परवरदिगार से मेरी पहली दरखास्त भी खारिज हो चुकी है जो मैंने अपनी जिंदगी की लीज बढ़ाने को डाली थी ,
तभी कानों में एक कर्कश आवाज गूंजी , अब सो जाईये बहुत देर हो गई है , यह शायद हमारी तिमार दारी में लगी नर्स की आवाज थी , आकर वही चद्दर हम पर डाल दी जिसे हम बड़े प्यार से खुद की मालकियत समझते थे , और सोचते थे जरा ठीक हो जाये इसे फिर से भर लेंगे अपनी इच्छाओं की झोली से।
बड़ी ही मस्त नींद आयी जितनी जीवन में आज तक नहीं आई थी ,सिर्फ थोड़ी गर्मी महसूस हुई जब हमें चिता पर लिटाया गया , उस गठड़ी की चादर में लपेट कर हमारा कफ़न बना दिया गया , आये तो थे बड़े अरमानो के साथ गए सिर्फ एक के साथ वह थी। हमारी आखिरी "इच्छा मृत्यु। .. मेरी इच्छाओं का अंत भी हुआ मेरी लास्ट इच्छा के साथ।
पत्नी: "अगर आप लॉटरी से 1 करोड़ जीत गए लेकिन मुझे 1 करोड़ की फिरौती के लिए अपहरण कर लिया गया, तो आप क्या करेंगे?"
पति: "अच्छा सवाल है, लेकिन मुझे शक है कि एक ही दिन में मेरी दो बार लॉटरी कैसे लग सकती है ".....😃😂