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Friday, January 25, 2019

ADABI SANGAM - 26.01.2019 AT AMIT PLACE ' MUSIC PART MODERATION "

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "



जिंदगी के रथ में लगाम बहुत है ,                                   

इस हँसी गीतों की  महफ़िल की शुरुआत
हर इंसान के मन में दबे पैगाम बहुत हैं                        
आपसी गुफ्तुगू भी अब तो इतनी होती नहीं ,                     
ख़ामोशी के परदे जो पड़े हैं  हर उस जुबान पर
शायद बेफिक्र बेपरवाह हैं वोह  चुपी के अंजाम से


     आज प्रवेश चोपड़ा जी के गीत से होगी

एक चर्च के सामने एक बार और रेस्टोरेंट खुला , चर्च को बहुत इतराज था इससे , अब वोह चर्च में रोज प्रेयर करने लगे की " GOD FAVOUR US AND HELP US CLOSING THIS BAR , THEY SHOULD ALWAYS FACE HURDLES AND HUGE LOSSES SO THAT THEY CLOSE AND RUN AWAY FROM THIS VICINITY ,

अब गॉड ने सुन ली और एक रात झमाझम बारिश पड़ने लगी और कड़कती हुई बिजली सीधी उस बार होटल की बिल्डिंग पे आ गिरी और उसमे आग लग गई और वोह होटल तबाह हो गया ,
अब बार मालिक ने चर्च के खिलाफ केस दायर कर दिया और कोर्ट से उसे मुवाजा देने को कहा , क्योंकि चर्च में हर रोज मेरे बार होटल की बर्बादी के लिए प्रेयर की जाती थी सो मेरी बर्बादी की वजह इनकी प्रेयर्स हैं इस लिए नुक्सान की भरपाई चर्च को करनी चाहिए ,

अब चर्च वाले जिरह कर रहे हैं ऐसा कहाँ होता है की प्रेयर से नुकसान हो जाए , जज बड़े असंजस में पड़  कर सोचने लगे ,
कितनी अजीब बात है की एक बार होटल चर्च में की गई प्रेयर की ताकत को मान  रहा है और उस चर्च ें जहाँ लोग आते ही इस लिए हैं की हमारी प्रेयर मंजूर होती है , अब चर्च इस बात से ही मुकर रहा है की चर्च में की गई प्रेयर से कुछ होता ही नहीं , केस चल रहा है देखते हैं क्या होता है।

पता नहीं क्यों , जीना मजबूरी सा हो गया है , 
खुश दिखना , खुश रहने से ज्यादा जरूरी हो गया है
अनीता जी अपने मधुर स्वरों से इस पर कुछ रौशनी डालेंगी

जिंदगी एक अभिलाषा है , बड़ी गजब इस्सकी परिभाषा है 
 अशोक आवल जी को सुने बहुत समां बीत चूका

असल में जिंदगी है क्या , मत पूछो यारो आज उनसे कुछ सुनने का बहुत मन कर रहा है
जिस्सकी संवर गई उसकी तक़दीर , बिखर गई तो तमाशा है
हमे ताकत की जरूरत तभी पड़ती है जब किसी का नुक्सान करना  होता है ,
वरना तो प्यार की भाषा ही काफी होती है किसी के दिल  को जीतने के लिए

सुना है लोग भगवान् को प्रेयर इसी लिए करते है की भगवान् का मन उनकी तरफ बदल जाये ,
लेकिन वास्तव में होता इसका उल्ट है , प्रेयर करते करते हमारा खुद का मन ही बदल जाता है

समझ में नहीं आता किस पर भरोसा करें  और किस पे नहीं , यहाँ तो लोग नफरत  भी करते है मोहब्बत की तरह 

मिर्जा ग़ालिब कहा करते थे , फक्त बाल रंगने से क्या हासिल ग़ालिब , कुछ नादानियाँ , कुछ मस्खरियाँ भी तो कर  किया करो जवान दिखने के लिए।

हमने उनसे कहा , आँखें पढ़ो और जानो हमारी रज्जा क्या है ,
मायूस हो के वो बोली , मोतिया बिन्द ने इस काबिल ही  कहाँ छोड़ा है हमें

फितरत किसी की न आजमाया कर ऐ जिंदगी।  हर शख्स अपनी हद में बेहद लाजवाब होता है

तंग बिलकुल नहीं करते हैं हम , उन्हे आजकल ,
अब यह बात भी उन्हे बहुत  तंग करती है


वकील :- माय लार्ड कानून की किताब IPC के पेज नंबर १५ के मुताबिक मेरे मुवक्किल को गुनाह से बा इज़्ज़त बरी क्या जाए
जज :- किताब पेश की जाए , किताब पेश की गई , पेज नंबर 15 खोला गया तो उसमे 1000 /- के पांच नोट थे
जज मुस्कराते हुए :- बहुत खूब इस तरह के दो सबूत और पेश किये जाएँ तो रिहाई पक्की है। 


शाम खामोश है , पेड़ो पे उजाला भी कम है , लौट आये हैं सभी पर एक परिंदा कम है

यही वह परिंदा है जिसे दारु की बोतल लेने भेजा था , उसके बिना शाम भी ग़मगीन है









Thursday, January 24, 2019

ADABI SANGAM :-..............................................[-DESIRE ]......---- WISH.....-इच्छा .....-- तृष्णा----- --ख्वाइशे -------अरमान- ----TAMANNA ----[JANUARY ,28 ,-2019].......

"LIFE BEGINS HERE AGAIN " HOST  AMIT &ANITA,
66, BUTTERNUT  LN  LEVITTOWN
NY. 11756,  TIME 6 PM


"इच्छायें-मनुष्य"
            को जीने नहीं देती
                     और
            "मनुष्य-इच्छाओं"
          को मरने नहीं देता.....✍🏻
EARTH🌍

जिंदगी के उस दौर से गुजर रहा हूँ मैं ग़ालिब ,
पुराने गाने गुनगुनाऊँ तो ,बीवी बोलती है ,
किसकी याद में मरे जा रहे हो ?

और नए जमाने के गीत गाओ तो ,
कहती हैं बड़ी जवानी छा रही है , आज कल ?
बड़े अच्छे वक्त पर निकल लिए ,
सहगल और रफ़ी साहब , वरना ,
जीना हराम हो जाता उनका भी AUR उनकी तमन्नाओं का। 

पिछले महीने हम लोग डेस्टिनी को समझने की कोशिश कर रहे थे आज उसका अगला कदम है हमारी इच्छाएं यानी की इच्छा शक्ति जिसकी वजह से हम कर्म करने को बाध्य हो जाते हैं उसी से हमारी destiny decode हो पाती है। 
where there is a will there is a way , 
जो इंसान इच्छानुसार कर्म युक्त है वही अंतत भाग्ययुक्त है 

हमारी डेस्टिनी एक ब्लू प्रिंट है एक नक्शा है जिसपे हमारी जिंदगी  की इमारत खड़ी  की जाती है , इस इमारत के इंजीनियर और आर्किटेक्ट है हमारी इच्छाएं और उसे पूरा करने की ताकत हमारी "इच्छा शक्ति" , 

आज इसी सन्दर्भ में कुछ तथ्य मैं लाया हूँ , इन्हें  बताने में कभी कभी समय सीमा नाकाफी हो जाती है , जब तक यह सन्देश साफ़ और शुद्ध तरीके से सुनने वालों के जेहन में न उत्तर जाये तो उस का फायदा भी क्या होगा , हम खुद को जितना मर्जी समय सीमा में बांधना चाहे " उसकी अदालत में हमारी घडिओं का दिया वक्त नहीं चलता , जो आध्यत्मिक सन्देश हमारे जीवन से तालुक  रखते हैं , उन्हे हम जितना वक्त दे नाकाफी है , मेरी आपसे श्री  प्रवेश चोपड़ा जी और हमारे आदरणियें डॉ सेठी , MS  रजनी जी से बड़ा ही नम्र निवेदन है की हमारा हौसला बढ़ाएं ताकि अदबी संगम के  मंच से जिसके पास भी सार्थक विचार हो सब तक पहुंचाए जाएँ , 


मैं कोई संत महात्मा नहीं हूँ , हाँ अपनी वकालत की जिंदगी में रहते इतने लोगों से मिलना पड़ा , इतनी रिफरेन्स लॉ बुक्स पढ़ने को मिली की जिंदगी के कुछ फंदे खुद बी खुद समझ आने लगे जिसे आपसे शेयर करना मेरी कोई मजबूरी या बिज़नेस नहीं बल्कि इंसानी धर्म है जो मुझे लगता है हमारी इस उम्र में एक शांति के सन्देश के बारे में होगा जिसमे हमारा शेष जीवन की आने वाली जटिलताएं झेलने में मदद मिलेगी। 


एक छोटी सी काया बनाई उस परवरदिगार ने , फिर रख छोड़ा एक गट्ठड़ भारी सा उसके सर के  भीतर दिमाग पे ,
ख्वाइशें , हसरतें , वासनाएं ,इच्छाएं और desires भरी थी लबा लब जिसमे ,ऊपर तक फिर करके उसे सील खोपड़ी में रख दिया , निबटा के अपना काम उस परवरदिगार ने ,
देते हुए धक्का इस दुनियावी महासागर में , कान में मेरे वह धीरे से बोला। ....... सब कुछ तुझे दे दिया है 
जा करले पूर्ती इनकी अपनी हिम्मत से , है इच्छा शक्ति तो हो जा भवसागर के पार ?


जैसे तैसे अपने समय पर माँ की कोख से बाहर आये तो पता चला ,इतनी दुर्बल काया ऊपर से बोझ अनंत इच्छाओं की पूर्ती का , सिर्फ बोल  ही तो नहीं पाते थे वरना याद तो सब था की हम इस दुनिया में करने क्या आएं हैं ?  खुद के पाओं  पर चलना भी भारी पड़ने लगा , शैशवस्था से बचपन और फिर जवानी और बुढ़ापा 
गिरते- पड़ते ठोकरें- खाते हर इच्छा पूर्ति में जैसे प्राण निकले जाएँ ,
मन ने हार न मानी - रुका नहीं किसी ठोकर से - गूँज रहे थे कान में उसके यह शब्द --
जब तक जिन्दा है तेरी इच्छा शक्ति ----  इच्छाएं तुझे मरने भी न देंगी।जिस दिन तेरी इच्छाएं मरी समझना तू भी मर गया , यही शब्द अभी तक मेरे कान में गूँज रहे थे , जिसने मुझे इस दुनिया में भेजा था । 

(१)बचपन में पैदल चलते हुए साइकिल सवार को देख कर साइकिल की इच्छा जाग उठी और मेहनत करके  साइकिल खरीद ली
2 .- फिर तो हमारी नजर कभी स्कूटर , कभी कार , कभी बस , कभी ट्रैन और फिर हवाई जहाज पर आ कर रुकी , और फिर समुन्दर मंथन को बड़े से क्रूज पर भी चढ़ गए  ,देश विदेश भ्रमण कर आये खूब आनंद किया , कुदरत के विस्तार का नज़ारा देख हिल गए भीतर तक हम।

पहले छोटी सी झोपडी में पूरा परिवार समा जाता था , प्यार ही प्यार था , फिर एक मकान बना उसके कमरे भी छोटे पड़ने लगे , गाडी है  तो गेराज भी होना चाहिए , बड़ा बांग्ला लिया गया , खर्चे बढ़ने लगे तो ज्यादा वक्त पैसा कमाने में लगने लगा , बच्चों को अच्छे कॉलेज स्कूल में पढ़ने के लिए जी जान से पैसा कमाने की जुग्गत करनी  पड़ी , इच्छाओं का तो आलम यह था की एक पूरी होती दूसरी सामने आ खड़ी  होती , हमारा पूरा जीवन सबकी इच्छाएं करने में निकलने लगा 

 ईश्वर से प्रार्थना करने लगे हमारी जिंदगी की लीज थोड़ी और बढ़ा दो , अभी बहुत कुछ देखना है , बेटे की शादी हुई है पोता भी बड़ा हो गया है , उसकी शादी भी हो जाए तो उसके पोतों को भी अपने हाथों में खिला सकूं। 

इच्छाओं और वासनाओं में बड़ा नज़दीक का रिश्ता है , काम क्रोध लोभ मोह पग पग पे खड़े हैं हमें अपने रस्ते से भटकाने के लिए , पर हमारी कोशिश थी दिमाग में भरी इच्छाओं की गठड़ी में से  एक एक करके हर इच्छा की पूर्ती करते जाएँ क्यों की वक्त बहुत कम है जवानी का जिसमे यह पूरी की जा सकती हैं , जितना तेज काम करते उतनी ही गलतियां भी होने लगी , कुछ आस मंजिल के नजदीक आकर टूट गई और कुछ को पाना हमारे बूते से बाहर  लगा , कुछ निराशा ने निगल ली , कुछ हमारी गफलत और नादानी ऐसे की सुनहरी अवसर हाथ से फिसलते चले गए।भावावेश में पथ से भटक से गए। 

वक्त और ढलती उम्र ने हमारी जरूरतें भी बदल डाली , 

फिर भी रुके नहीं , एक एक इच्छा गठड़ी से निकलती गई , दम साधे  भागते रहे कुछ पाया कुछ खोया , थोड़ा दम लेने को रुके तो अहसास हुआ की गठड़ी काफी हलकी हो चुकी थी और कुछ इच्छाएं न जाने कब थक हार कर पीछे छूट गई और  , कुछ अधूरी और कुछ अधमरी हो , कर हमे कब छोड़ने लगी थी यह पता ही नहीं चला ,

इच्छाओं की अनंतता ही जीव को दुखी करती है। सदैव स्मरण रहना चाहिए कि आवश्यकता सबकी पूरी होती है लेकिन सभी इच्छा पूरी कभी नहीं होती। जितना भी जोर लगा लो , पूरी वहीँ होंगी जिसमे उसकी रजा होगी ? यह अब धीरे धीरे हमे समझ भी  आने लगा 

      काम को शत्रु मानो। काम का अर्थ केवल वासना ही नही है बल्कि किसी भी वस्तु की कामना से है। अतः शनैः शनैः जीव की कामना कम होनी चाहिये।

      एक साधना पथ पर चलने वाले इंसान साधक के लिए अनिवार्य है कि आज अगर आपको आठ वस्तुओं की आवश्यकता है तो धीरे धीरे वो घट कर सात और फिर छः हो रही है या नहीं। यदि आपकी कामनायें /इच्छाएं  धीरे धीरे कम हो रही है तो आप सही मार्ग पर चल रहे हैं।वरना आप मोह जाल में फस  कर अपना सब कुछ गवाने जा रहे हैं यही सार है जीवन के सफर का। 

हसरतें कुछ और हैं....
वक्त की इल्तिजा कुछ और है ..!!!
कौन जी सका जिंदगी अपने मुताबिक....
दिल चाहता कुछ और है....
होता कुछ और है ..!!!

 बेदम हो कर हॉस्पिटल के बिस्तर पर लेटे लेटे महसूस हुआ की जैसे मेरी गठड़ी खुल कर एक चादर बन गई है जिसे मेरे ऊपर डाल दिया गया है. अब डॉक्टर्स कहते हैं यह सब छोड़ दो ,अपनी वासनाओं से बाहर आ जाओ  सादा खाना खाओ , बस कार हवाई जहाज की यात्रा आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं , जिम जाओ वहां फिर से साइकिल चलाओ , जो खाना गरीबी में खाते  थे अब वही तुम्हारे लिए अमृत है , तो क्या यह सब मृगतृष्णा थी जो भाग भाग कर हमने एकत्र किया अब हमारे काम  आने वाला नहीं था ? 

तो फिर उस परवरदिगार ने मेरे सर पर इतना बोझ ही क्यों रखा की मैं उसे पाने के लिए ही ता उम्र भागता रहा और जीवन ख़त्म भी हो गया और मैं न ही कोई संतुष्टि प् सका न ही मन का  सकूं ? मैंने अभी जीवन को महसूस भी नहीं किया और।जाने का वक्त भी आ गया ? 

आज सोने के लिए भी मुझे नींद की गोली या मदिरा का साथ चाहिय  ........क्या  वाकई मेरा सफर खत्म होने जा रहा है ?

इन तमाम विचारों ने मेरी नींद ही उडा  दी , मैं सोचने लगा  इच्छाएं कभी हमारी शक्ति होती है और कभी मजबूरी,  जिस पैंट के घुटने फट जाते थे और हमारी माँ उसे सी कर रफू कर जब हमें फिर से पहना देती थी तो खुद की गरीबी पे बड़ी शर्म महसूस होती थी , आज जब मैंने अमीर से अमीर लोगो को रफू के बगैर फटी जींस को महंगे महंगे स्टोर्स में ऊँची कीमत पर खरीद कर पहने देखा तो सर चकरा  गया के अगर यह लोग  अमीर हैं तो मैं जब फटी पैंट पहनता था तो मैं क्या था ?

जिंदगी के रथ में लदी  हैं बेशुमार  ख्वाइशों की बोरियां 
कुछ इतनी भारी की हम उठा ही न पायें। 
और खोकली भी कुछ इतनी जो किसी काम न आएं ,

जीवन के सफर में रुकावटें कुछ अपनों की वजह से थी ,
अपनों के अपनों पर ही इलज़ाम भी बहुत थे ,
लेकिन वक्त भी ज्यादा न था मेरे पास 
हर किसी से निबटता तो खुद ही निबट जाता ,

यह शिकवे  शिकायतों का दौर देख कर ,
जरा थम कर सोचने लगा हूँ , सफर तो लम्बा है ,
पर लगता है उम्र कम , और इम्तिहान अभी बाकी है। 

शायद इंसान अपनी इच्छाओं की गठड़ी खाली  हो जाने पर इसे साथ ही ले जाता है जिसे लोग कफ़न का नाम दे देते हैं। मेरी गठड़ी पूरी तरह खाली हो कर एक चादर  हो चुकी थी 

अब इसमें कुछ भी ऐसा न बचा  था , पूरी जिंदगी की बैलेंस शीट मेरे सामने थी , न शरीर में वो जोश न वो दम बचा था ,लाठी के सहारे चलना , कोई मुझ से बात ही नहीं करता था क्योंकि मेरी बातें पुराणी और दकियानूसी लगी उन्हें , कोई करे भी तो सुनाई कहाँ पड़ती थी , सुन भी लें तो याद कहाँ रहती थी ,? 

न ही इच्छा  शक्ति तो फिर इच्छाएं भी कहाँ रहती मेरे पास। चादर को तान कर मुहं ढापने की कोशिस की तो पावं किसी चीज़ से टकराया , उठ कर देखा यह चादर के कोने में पड़ी एक गांठ थी जो शायद मेरे उस कर्म गठड़ी के बांधने वक्त डाली गई होगी , पर इसमें भी कुछ महसूस हो रहा है शायद मेरी कोई इच्छा अभी इसमें कैद हो ? 

चलो आज इसे भी  पूरी किये लेते हैं , जैसे ही खोलने की कोशिश की , हाथ किसी अनिष्ट विचार से कांपने लगे , दिमाग में बिजली का सा झटका लगा , हाथ वहीँ रुक गए , गौर से देखा तो उसपे कुछ लिखा भी था , लाइट में देखा तो लिखा था। ...... your last wish यानी की मेरी आखरी ख्वाइश या इच्छा ? और मेरे जीवन का अंत ? तो मेरे बाद मेरी दौलत मकान  जायदाद कहाँ जाएगी , इतनी जल्दी मेरा अंत ?

एक दिन मंदिर में कथा सुनी थी वह याद आ गई ,;
इच्छाओं की पूर्ति तभी तक है जब तक इंसान जीवित है , सभी साथी सम्बन्धी भी तुम्हारी इच्छाओं का हिंस्सा मात्र हैं : - मृत्यु के बाद का सच यही है। 
1 पत्नी मकान तक 
2 समाज  रिश्तेदार  श्मशान  तक 
३ पुत्र अग्निदान तक 
4  केवल हमारे कर्म ही भगवान् तक 

फिर अपने शरीर की तरफ देखा जो बिलकुल कमजोर और क्षीण हो चूका था। ..अब क्या मांगू उस परवरदिगार से मेरी पहली दरखास्त भी खारिज हो चुकी है जो मैंने अपनी  जिंदगी की लीज बढ़ाने को डाली थी ,

 तभी कानों में एक कर्कश आवाज गूंजी , अब सो जाईये  बहुत देर हो गई है , यह शायद हमारी तिमार दारी में लगी नर्स की आवाज थी , आकर वही चद्दर हम पर डाल  दी जिसे हम बड़े प्यार से खुद की मालकियत समझते थे , और सोचते थे जरा ठीक हो जाये इसे फिर से भर लेंगे अपनी इच्छाओं की झोली से। 

बड़ी ही मस्त नींद आयी जितनी जीवन में आज तक नहीं आई थी ,सिर्फ थोड़ी गर्मी महसूस हुई जब हमें चिता पर लिटाया गया , उस गठड़ी की चादर में लपेट कर हमारा कफ़न बना दिया गया , आये तो थे बड़े अरमानो के साथ गए सिर्फ एक के साथ वह थी। हमारी आखिरी "इच्छा मृत्यु। .. मेरी इच्छाओं का अंत भी  हुआ मेरी लास्ट इच्छा के साथ। 




पत्नी: "अगर आप लॉटरी से 1 करोड़ जीत गए लेकिन मुझे 1 करोड़ की फिरौती के लिए अपहरण कर लिया गया, तो आप क्या करेंगे?"


पति: "अच्छा सवाल है, लेकिन मुझे शक है कि एक ही दिन में मेरी दो बार लॉटरी  कैसे लग सकती है ".....😃😂
























Wednesday, January 16, 2019

ADABI SANGAM ................................................ "SHIDDAT"............. इसी का नाम है जिंदगी -...................................................................[FEBRUARY ,23, 2019 ]........................ (38)



"LIFE BEGINS HERE AGAIN "


 


शिद्दत 

तंग नहीं करते हैं हम उन्हें आजकल ,
अब यह बात भी उन्हें तंग करती है। 

गीता में कृष्ण भगवान् ने उपदेश दिया ,
न जीत चाहिए , न हार चाहिए , 

एक सुखी जीवन के लिए केवल कुछ मित्र ,
और हँसता खेलता निष्कपट परिवार चाहिए। 

एक कश्मकश से भरे ,ताने -बाने का नाम है जिंदगी 
 कभी कटेगी दुनिया के तानो में  ,कभी खुद के बुने बानो में ,

शिद्द्त से गर ढूंढेगा अपने रास्ते , हमसफ़र भी मिलेंगे मंजिल भी  
इतना भी मत इतरा खुद की तारीफे शिद्द्त  सुनकर ऐ इंसान !
यह दुनिया है प्यारे इसकी हर भाव के मतलब न्यारे होते हैं. 

उड़ जायेंगे तेरे आँखों से वह रंगीन अक्स खुद की तस्वीर के  ,
जिसे तूं खुद की मेहनत और खुदा की रेहमत समझ बैठा है। 

मत भूलना वक्त की  उस डाली को  जिसपे तेरा घरोंदा है 
गुमान है न तुझे अपने हासिल किये हर उस मुक्काम पर ?
जिसे तूने खुद की शिद्द्त का इनाम समझ रखा है 

 किस बात का शिद्द्ते खौफ दिल में लिए फिरता है , 
शिद्द्त से  मंदिर , गुरूद्वारे मस्जिद में भटक रहा ,

शिद्द्ते मन्नतों का अम्बार लिए , पर किसके लिए ? 
खोने और पाने को कुछ भी नहीं है इस संसार में ,

साथ ले जाने को भी कुछ नहीं यहाँ ,
 गमों से बोझिल न उमीदी है फक्त , 
पर कहने को शिद्द्तों का बाजार है यह 

बड़ी शिद्द्त से दौड़े चले जा रहे है किसी उम्मीद से 
ना राज है कोई जिंदगी का , ना नाराज है वो  हम से 

महिफले बेशुमार सजा ली हैं हमने ,अपने रसूक से 
 किरदार भी जिंदगी में  असरदार  निभाए हैं  हमने ,
इसी जिंदगी में 

उसमे एक लम्बी फेहरिस्त भी है  दोस्तों की ,
कुछ वक्त साथ चले जो और कुछ जल्दी झटक गए 

ऐसा क्यों होता है इंसान तो निबट जाता है मसले नहीं ?
सुना है एक विवाद मंदिर मस्जिद का भी है अदालत में ,

जहाँ खुद भगवान् के जनामस्थल पर इंसान लड़ रहा है ,
लेकिन इंसानी अदालते अपनी कमजोर जेहनियत से मजबूर ,

तारिख पे तारीख देकर उस खुदाई से डर  कर भागे जा रहीं हैं ,
मि  लार्ड की तरह  गर यमराज भी तारीखों में उलझ गए तो ?
सिर्फ एक ही तारीख में सब को निबटा देंगे। इसी डर से उनकी कलम ही रुक गई है। 


यार आंसुओं को आँखों की देहलीज़ पर यूँ लाया न करो 
अपने दिल के हालात भी  किसी को बताया न करो 
लोग मुठी भर नमक अपनी जेब में लिए फिरते है आज कल 
अपने गहरे जख्म किसी को खुले आम यूँ दिखाया न करो 

Sharing 2 of my Best Quotes which have Changed my entire Life:::
1) When you DO ANYTHING NEW, 1st people LAUGH at you,
Then they CHALLENGE you, Then they WATCH you succeed & then,
THEY WISH, THEY WERE YOU 2):::
If our Vision is for a Year, Plant WHEAT...

If our Vision is for Ten Years, Plant TREES...
But for a Lifetime Vision, Plant RELATIONS...


न जाने कौन है गुमराह , कौन आगाहे मंजिल है ..
हजारों कारवां है जिन्दगी की शाह राहों में ..
राहे मंजिल में सब गम हैं , मगर अफ़सोस तो ये है
आमिरे-कारवां भी हैं , इन्ही गम कर्दा राहों में

Who knows the destination, who knows not in
the highways of life, thousands of caravans all
are lost in their search, but alas!
the leaders are too lost in the paths unknown













Friday, January 11, 2019

HINDU-HISTORY Destroyed by MUSLIM INVADERS {UN-TOLD / 07012019} ........(39)

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "

The lost glory of India






कबीर काहे को डरे, सिर पर सिरजनहार

हस्ती चढ़ी डरिये नहीं, कुकर भुसै हजार।
(कबीर भला क्यों डरे जब उनके सिर पर सृजनहार
प्रभु की छत्र छाया है।
हाथी पर चढ़ कर भला हजारों कुत्तों के भोंकने से
भी क्या डर। हाथी ज्ञान वैराग्य का प्रतीक )

Islam destroyed almost all Indian institutes of learning and research and spread their terror, fear and darkness burning and destroying all temples with libraries and thousands of schools and universities.

The school in Pushpagiri was established in the 3rd century AD as present Odisha, India. As of 2007, the ruins of this Mahavihara had not yet been fully excavated. Consequently, much of the Mahavihara's history remains unknown. Of the three Mahavihara campuses, Lalitgiri in the district of Cuttack is the oldest. Iconographic analysis indicates that Lalitgiri had already been established during the Shunga period of the 2nd century BC, making it one of the oldest Buddhist establishments in the world. 

The Chinese traveller Xuanzang (Hiuen Tsang), who visited it in AD 639, as Puphagiri Mahaviharaas well as in medieval Tibetan texts. However, unlike Takshila and Nalanda, the ruins of Pushpagiri were not discovered until 1995, when a lecturer from a local college first stumbled upon the site.

Nalanda
Nalanda was established in the fifth century AD in Bihar, India and survived until circa 1200 AD. It was devoted to Buddhist studies, but it also trained students in fine arts, medicine, mathematics, astronomy, politics and the art of war.

The centre had eight separate compounds, ten temples, meditation halls, classrooms, lakes and parks. It had a nine-story library where monks meticulously copied books and documents so that individual scholars could have their own collections. It had dormitories for students, housing 10,000 students in the school’s heyday and providing accommodation for 2,000 professors. Nalanda attracted pupils and scholars from Sri Lanka, Korea, Japan, China, Tibet, Indonesia, Persia and Turkey, who left accounts of the centre.

TEXLA 

Ancient Taxila or Takshashila, in ancient Gandhara, was an early Hindu and Buddhist centre of learning. According to scattered references that were only fixed a millennium later, it may have dated back to at least the fifth century BC.[26] Some scholars date Takshashila's existence back to the sixth century BC. The school consisted of several monasteries without large dormitories or lecture halls where the religious instruction was most likely still provided on an individualistic basis.

Takshashila is described in some detail in later Jātaka tales, written in Sri Lanka around the fifth century AD. It became a noted centre of learning at least several centuries BC and continued to attract students until the destruction of the city in the fifth century AD. 

Takshashila is perhaps best known because of its association with Chanakya. The famous treatise Arthashastra (Sanskrit for The knowledge of Economics) by Chanakya, is said to have been composed in Takshashila itself. Chanakya (or Kautilya), the Maurya Emperor Chandragupta and the Ayurvedic healer Charaka studied at Taxila

Generally, a student entered Takshashila at the age of sixteen. The Vedas and the Eighteen Arts, which included skills such as archery, hunting, and elephant lore, were taught, in addition to its law school, medical school, and school of military science. 

Vikramashila 

Vikramashila was one of the two most important centres of learning in India during the Pala Empire, along with Nalanda. Vikramashila was established by King Dharmapala (783 to 820) in response to a supposed decline in the quality of scholarship at Nalanda. Atisha, the renowned Pandita, is sometimes listed as a notable abbot. It was destroyed by the forces of Muhammad bin Bakhtiyar Khilji around 1200.

Vikramashila is known to us mainly through Tibetan sources, especially the writings of Tāranātha, the Tibetan monk-historian of the 16th–17th centuries.
Vikramashila was one of the largest universities, with more than one hundred teachers and about one thousand students. It produced eminent scholars who were often invited by foreign countries to spread Hindu learning, culture and religion. 

The most distinguished and eminent among all was Atisha Dipankara, a founder of the Sarma traditions of Tibetan Buddhism. Subjects like philosophy, grammar, metaphysics, Indian logic etc. were taught here, but the most important branch of learning was tantrism.
Other centres 
Further centres include Telhara in Bihar (probably older than Nalanda[35]), Odantapuri, in Bihar (circa 550 - 1040), Somapura, in Bangladesh (from the Gupta period to the Turkic Muslim conquest),

Sharada Peeth, now Pakistan, Jagaddala Mahavihara, in Bengal (from the Pala period to the Turkic Muslim conquest), Nagarjunakonda, in Andhra Pradesh, Vikramashila, in Bihar (circa 800-1040), Valabhi, in Gujarat (from the Maitrak period to the Arab raids), Varanasi in Uttar Pradesh (eighth century to modern times), Kanchipuram, in Tamil Nadu, Manyakheta, in Karnataka, Mahavihara, Abhayagiri Vihāra, and Jetavanaramaya, in Sri Lanka. 






















HARIVANSH RAI BACCHAN " POETRY " 2010 ...................(40)





























SO SORRY 
बड़ा ही अजीब शब्द है आज कल सॉरी इंसान कहे तो आपसी कलेश झगड़ा ख़त्म 
भगवान् कहे तो सारी कायनात ख़त्म
वकील कहे तो-- कोर्ट केस ख़त्म।
सॉरी अगर डॉक्टर बोल दे तो इंसान ख़त्म।
पर  वक्त का जवाब हमेशा लाजवाब होता है. 
 सवालों का जवाब वक्त भी देता है।
उस हर जवाब का सवाल ही जवाब होता है
रहमतों की कमी न थी परवरदिगार के खजाने में,
झाँक लेना अपनी झोली में कही कोई सुराख़ तो नहीं,

मेरा ये पैगाम उन लोगो के लिए जो मुझे समझना चाहे
वर्न समझदारों ने तो हमें पहले से न समझ मान रखा है
कोई कहता था दुनिया आपसी प्यार से चलती है,
कोई कहे दुनिया दोस्तों की दोस्ती से चलती है
लेकिन आजमाने का जब मौका मिला मुझे
अहसास हुआ, यह तो खुदगर्जी की राह पे चलती है!


किसी का अक्स पैमाना नहीं उसके प्रतिबिम्ब का
आज कल दर्पण भी थोड़ी सियासत करने लगे हैं
खूबसूरत को बदसूरत और
हैवान को इंसान बताने लगे हैं।

*कद बढ़ा नहीं करते ,* *ऐड़ियां उठाने से,*
*उचाइयां तो मिलती हैं ,* *सर झुकाने से.!!!*



YOU need power only when you want to do something, harmful. against people.. otherwise, love is enough to get everything done !!





Tuesday, January 8, 2019

HOW INDIA HAS CHANGED DURING MODI RULE 2014-2019/ 07-01-2019 ......................................41

NATIONS PRIDE IS OUR PRIDE 

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "






विरोधी पार्टी वाले सब कहते हैं कि मोदी जी ने क्या किया हैं , केवल टोलेट बनवाये झाड़ू निकाली सफाई करवाई नोट बन्दी करवाई तो आईये आज ये माँ भारती का बेटा आपको अपने मन की बात बताता है कि उस माँ भारती के प्रिय पुत्र ने इन 4 सालों में क्या किया जो आज तक के इतिहास में कोई नहीं कर पाया अवश्य पढ़ें कहीं बीच में ही छोड़ दिया तो आपकी आँखे बंद ही रह जाएंगी सो पूरा अवश्य पढ़ें ,,,,
आज तक सुशील कुमार सरावगी की हर एक टिपणी को पढा है तो इसे भी पढ़े,,,,हो सकता है इसे पढ़ने के बाद आपको मैं कांटा सा चुभने भी लग जाऊँ लेकिन कोई गम नहीं सत्य को सत्य ही कहूँगा असत्य नहीं,,,एक भी लिखित टिपणी झूठी हो तो आप मुझे प्रत्युत्तर दे सकते हैं,,
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पहली उपलब्धी,,,,200 साल तक हमारे देश को गुलाम बनाने वाले ब्रिटेन में कल 53 देशों की मीटिंग में मोदीजी महा अध्यक्ष थे,,,इसी बात से हर एक भातीय का सीना गर्व से चोड़ा हो जाना चाहिए,,,

दूसरी उपलब्धी,,,,,UN मानवाधिकार परिषद में भारत की बड़ी जीत हुई है,,,सबसे ज्यादा वोटों के साथ बना सदश्य,,97 वोटों की आवश्यकता थी मिले 188 वोट,,,,अब भी भारत की जनता पूछेगी की मोदी विदेश क्यूँ जाते हैं,,,,
तीसरी उपलब्धी,,,,दुनियाँ के 25 सबसे ताकतवर देशों की हुई लिस्ट जारी,,,भारत आया नम्बर चार पर हमसे आगे अमेरिका, रूस और चीन है,,,ये है मोदी युग,,,

चौथी उपलब्धी,,,,1 लाख करोड़ के पार पहुँचा GST का मासिक टेक्स कलेक्शन,,,,,ये है एक चाय बेचनेवाले का अर्थशास्त्र,,,

पाँचवी उपलब्धी,,,,नए सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने में अमेरिका और जापान को पिच्छे छोड़ भारत पहुँचा दूसरे स्थान पर,,,,

छठी उपलब्धी,,,,,2017,18 में दोगुना हुआ सौर ऊर्जा का उत्पादन,,,,
चीन और अमेरिका भी दंग है,,,भारत की आसमान छू रही GDP को देखकर,,,
भारत की GDP 8.2%
चीन की 6.7%
अमेरिका की 4.2%
अब भी कहेंगे भारतीय की मोदी विदेश क्यों जाता है,,,

सातवीं उपलब्धी,,,,जल थल ओर आकाश तीनों क्षेत्र से सुपरसोनिक मिसाइल दागने वाला दुनियाँ का पहला देश बना भारत,,,ये है मोदी युग,,,अगर आपको गर्व हुआ हो तो जयहिन्द लिखना न भूलें,,,,

आठवी उपलब्धी,,,,,70 सालों में पाकिस्तान को कभी गरीब नहीं देखा,,लेकिन मोदी जी के आते ही पाकिस्तान कंगाल हो गया,,, दरअसल पाकिस्तान की कमाई के व्यापार का जरिया भारतीय नकली नोटों का व्योपार था,,,, जिसे मोदी जी ने खत्म कर दिया,,,

दसवीं उपलब्धी को भी पढ़ें,,,,,,एक बात समझ में नहीं आयी,,,
2014 में ऐ.के. एंटोनी ने कहा था देश कंगाल है हम राफेल तो क्या छोटा जेट भी नहीं ले सकते,,,,
मोदी जी ने ईरान का कर्ज भी चुका दिया,,
राफेल डील भी करली,,
S 400 भी ले रहे हैं!
आखिर कोंग्रेस के टाइम पर देश का पैसा कहाँ जाता था,,,?

ग्यारवीं उपलब्धी,,,,सेना को मिला बुलेटप्रूफ स्कार्पियो का सुरक्षा कवच,,,
जम्बू कश्मीर में मिली सेना को 2500 बुलेटप्रूफ स्कार्पियो,,,

बारवीं उपलब्धी,,,,,अब आपको बताता हूँ भारत का इन 4 सालों में विकास क्या हुआ,,,
अर्थ व्यवस्था में फ्रांस को पिच्छे धकेल नम्बर 6 बना,,,

तेरवीं उपलब्धी,,,,,ऑटो मार्केट में जर्मनी को पीछे छोड़ नम्बर 4 बना,,,

चौदवीं उपलब्धी,,,,,,,बिजली उत्पादन में रूस को पीछे छोड़ नम्बर 3 बना,,,

पन्द्रहवीं उपलब्धी,,,,,टेक्सटाइल उत्पादन में इटली को पीछे छोड़ नम्बर 2 बना,,,

सोलहवीं उपलब्धी,,,,,मोबाइल उत्पादन में वियतनाम को पीछे छोड़ नम्बर 2 बना,,,

सतरहवीं उपलब्धी,,,,,स्टील उत्पादन में जापान को पीछे छोड़ नम्बर 2 बना,,,

अठारहवीं उपलब्धी,,,,,,चीनी उत्पादन में ब्राजील को पीछे छोड़ नम्बर 1 बना,,,
इसको कहते हैं मोदी युग
मोदी सरकार में घाटी से हो रहा है आतंकियों का सफाया,,,
लश्कर ए तैयबा के आतंकी नवीद जट को मार गिराया,,,
हिज्बुल से जुड़े 2 आतंकी ढेर,,
8 महीनों में 230 आतंकियों को जहनुम में पहुंचाया,,,

कोंग्रेस राज में आतंकी दहशत फैलाते थे
मोदी राज में सेना आतंकियों के लिए दहशत बनी हुई है,,,
ये है मोदी राज का फार्मूला,,,,

मोदी जी की बढ़ती हुई ख्याति से सारा विपक्ष बौखला गया है कि अब उनके भृष्टाचारी हथकंडे कामयाब नहीं हो सकते तब एक अभिमन्यु का वध करने के लिए सारे भृष्टाचारिता के महारथी एक होकर चक्रव्यूह की रचना कर रहे हैं 2019 में मोदी को हराने के लिए,,,लेकिन उन भृष्टाचारी महारथियों को यह नहीं मालूम कि द्वापर के अभिमन्यु की चक्रव्यूह भेदन की शिक्षा माँ के गर्भ में ली गयी थी और वो भी केवल घुसने की बाहर निकलने की नहीं लेकिन इस मोदी रूपी अभिमन्यु ने चक्रव्यूह के भेदन व उसे चकनाचूर करने की शिक्षा माँ के गर्भ से बाहर आकर इस माँ भारती से ली है जो अजेय है पराजेय नहीं है,,,,
आइए आज हम सब मिलकर एक संकल्प लेते हैं कि इस माँ भारती के पुजारी को 2019 में इतने भारी बहुमत से विजयी बनावें की वह आंकड़ा गिनीज बुक में दर्ज होकर रह जावे जिस आंकड़े को कोई छू भी न सके,,,,,
नमो नमो का उदघोष करते हुए 2019 में मोदी जी को वापस भारत का शहनशाह बनावें,,,,
(संजय जी की वाल से साभार

Thursday, January 3, 2019

BITTER TRUTH OF INDIA'S SECULAR DEMOCRACY "?? 02012019- 27/10 ,2010" ...........................................42

BITTER TRUTH........MUST-READ




If you cross the " The North Korean " border illegally, you get ..... 12 years hard labour in an isolated prison .....If you cross the " Iranian " border illegally, you get ..... detained indefinitely .....If you cross the " Afghan " border illegally, you get ..... shot .....If you cross the " Saudi Arabian " border illegally, you get ..... jailed if you cross the " Chinese " border illegally, you get ..... kidnapped and maybe never heard of - again .....If you cross the " Venezuelan " border illegally, you get ..... branded as a spy and your fate sealed .....If you cross the " Cuban " border illegally, you get ..... thrown into a political prison to rot .....If you cross the " British " border illegally, you get ..... arrested, prosecuted, sent to prison and be deported after serving your sentence now ..... if you were to cross the " Indian " border illegally, you get: 1. A ration card2. A passport ( even more than one - if you please ! )3. A driver's license4. A voter identity card5. Credit cards6. A Haj subsidy7. Job reservation8. Special privileges for minorities9. Government housing on subsidized rent10. Loan to buy a house11. Free education12. Free health care13. A lobbyist in New Delhi, with a bunch of media morons and a bigger bunch of human rights activists promoting your " cause "14. The right to talk about secularism, which you have not heard about in your own country !15. And of course ..... voting rights to elect corrupt politicians who will promote your community for their selfish interest in securing your votes !!! Hats off to the .....A. Corrupt and communal Indian politicians. The inefficient and corrupt Indian police forces. The silly pseudo-secularists in India, who promote traitors staying here. The amazingly lenient Indian courts and legal system. That's why people like Afzal Guru are still alive, same will happen with Kasab.E. The selfish Indian citizens, who are not bothered about the dangers to their own country. They conveniently forget some Hindus are living as refugees in this country called Hindustan .F. The illogically brainless human-rights activists, who think that terrorists deserve to be dealt with by archaic laws meant for an era when human beings were human beings. THE MINIMUM YOU CAN DO (IF YOU ARE LIVING) IS FORWARD THIS

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From: AHRC News [mailto:listadmin@ahrchk.net]
Sent: Tuesday, September 28, 2010, 4:25 PM
To: kashyap@citizensvigilanceforum.com
Subject: INDIA: Test of honesty for the country's judiciary or anode on its demise

FOR IMMEDIATE RELEASE
AHRC-STM-200-2010
September 28, 2010

A Statement by the Asian Human Rights Commission

INDIA: Test of honesty for the country's judiciary or anode on its demise

The contempt of court proceedings initiated against Advocate Prashant Bhushan in the Supreme Court of India for the allegations he made against some of the former Chief Justices of the country will test the maturity of India's judicial system and that of its democratic framework. Indeed the Court has a statutory right to initiate proceedings against anyone, suo moto or through a petition presented before it. So have Prashant, and every other citizen in the country, a right to express their opinion of what they believe is to be true. Unfortunately, the tainted image of the Indian judiciary is one among them, whether the judges like it or not.

In an interview with Tehelka magazine, published on 5 September 2010, Prashant alleged, "… that out of the last 16 to 17 Chief Justices, half have been corrupt". Through an Amicus Curiae petition filed by a lawyer, Mr Harish Salve, the Supreme Court of India issued a notice to Prashant asking him to show cause why his statement and opinion should not be treated as 'contempt of court'.

Prashant's affidavit filed in reply to the contempt proceedings reiterate, explain and further name some of the 'tainted' judges. All of those who have been named, to clear their name if they can, must undergo a thorough investigation and a public trial by an impartial tribunal. Indeed it is to be seen whether the Indian judiciary or any other democratic institution worthy of its salt and name (as democratic) will be willing to take this 'risk'.

Prashant's original opinion further reiterated and explained in his affidavit is nothing but a detailed narration of the reasons why the average Indian fear that the country's judiciary, in particular, its Apex Court, has become unworthy of the maxim it claims to uphold, 'Yaddo Dharmastho Jayah', the Devanagari equivalent of fiat justitiaruat Caelum. Indeed Prashant being a lawyer is privileged to possess 'written, documentary and oral' evidence to substantiate his apprehensions that the Aam Admi (ordinary person), who face the worst brunt, should the judiciary of the country, the working for which his tax money is used is indeed corrupt.

Judiciary's negation of every attempt to bring 'fresh air and light into (its) dark and dusty corridors of power' has become its deplorable character during the past decade. By preventing all attempts to bring transparency in the functioning of the court, ranging from the question of appointment of judges to the applicability of the Right to Information Act, 2005, the Indian judiciary has behaved in such fashion as if it has indeed embarrassing things to hide behind its elevated dais where the most paid and immune jurists in the largest democracy of the world are seated. These attempts have reduced the Indian judiciary into despicable situations where on one occasion it had a serving judge, transferred and later elevated to the Apex Court while unambiguous allegations of material corruption were made against him based on which there were an audit objection and an impeachment proceeding. The Supreme Court also had the unique opportunity to direct its own Registrar to file an appeal against the order of a subordinate court, the Delhi High Court, in the Supreme Court, so that it could affirm the absoluteness of its impunity against public accountability at the expense of the taxpayer's money.

The Court has also the record of 'legally and fatally injuring' everyone who dared to suggest that the 'king is naked' using its sword of Contempt of Courts Act, 1971. This law, based on a medieval mental framework, has no place in a democracy, like a judiciary that despises transparency and decries accountability.

The allegation Prashant has made is just not an Indian issue. For instance a former Chief Justice of India, Mr A. M. Ahmedi was nominated to serve in international committees. He was appointed to look into human rights violations in East Timor by the United Nations, to assist the judiciary in Liberia by the International Court of Justice, and has been requested to review the state of relations between the judiciary, the legal profession and the executive and violation of human rights in Zimbabwe by the International Bar Association. Any argument that Ahmedi would do justice to the victims of human rights violations in foreign lands, while he has allegedly robbed the same for sheer self-interest and greed from his countrymen (and women) does not hold water. Ahmedi's case is just one among many that must be investigated.

It is often said that making public statements of the above nature against the judiciary of a country is immature. Some may ask, will such statements help in sorting out the mess that has now surfaced? Is it not amateur and nonprofessional to say these things in such an emphatic tone? The Asian Human Rights Commission (AHRC) believes that the professionalism of the civil society is demonstrated in its ability to raise timely questions of rule of law, with an expectation that it would generate a worthy public debate in the country where it is engaged.

Unfortunately, most of India's media are observing their characteristic silence on the issue. They have apparently perfected their art of stirring public opinion for the wrong cause using all the wrong methods, as they demonstrated in dealing with the parliament attack case, where they proved the case against the 'suspects', parroting the confession statement of the accused, extracted by some of the dreaded criminals wearing police uniforms, who practised some of the most inhuman methods upon the accused, including torture. Indeed the Indian judiciary convicted the accused, despite the prosecution failing to prove their case, an act by which the judiciary too reiterated that pride and speculation rules above justice.

The AHRC supports and congratulates Prashant Bhushan for the bold initiative that he has taken by calling for openness and transparency in one of the most immune public institutions of the world. It is now the responsibility of India's civil society to wake up from its slumber and augment this process of fastening public accountability to one of India's oldest constitutional institutions. It is the primary responsibility of the lawyers and judges who believe in the rule of law and democracy to publically support the process Prashant has initiated.

The AHRC requests everyone to sign an online petition created for the purpose.

To say the least, if the allegations made by Prashant do not lead into an impartial, prompt and public investigation, it has to be believed that democracy is dead in India.

* The affidavit filed by Prashant Bhushan is available here.
* The affidavit filed by Santhi Bushan is available here.
* The online petition can be accessed here.

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Tuesday, January 1, 2019

नए साल के पुराने अनुभव [HAPPY NEW YEAR 2019 -31122018]........................................................................43

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "✍



कभी मैं तो कभी वक्त , मुझ से जीत गया
और इसी खेल में एक साल और बीत गया
चारो और कोलाहल मचा है  घर में एक जवां बुजर्ग लाठी सहारे ,

कमर को थामे खड़ा है। पत्नी की आँखों में भी समुन्द्र लहराया है ,
मेहमानो को देख अंदाज़ा है मेरा , शायद कोई त्यौहार आया है। 
दोनों  के जेहन में एक ही ख्याल उबाल ले रहा है , कि

 खतरे  के निशान से ऊपर बह रहा है  ,उम्र का पानी...

वक़्त की मूसलाधार बरसात है कि    ,थमने का नाम नहीं ले  रही...

अकेलापन बढ़ा  इतना कि खुद को खुद का अहसास भी नहीं रहा
 किसी को फुर्सत कहाँ , जो हमारी तरफ  झांक भी सके

शायद 31 दिसंबर का  जश्न सब को मदहोश किये था

आज दिल कर रहा था, बच्चों की तरह रूठ ही जाऊँ,
और ..             अहसास करा दूँ अपनी मौजूदगी का

पर फिर सोचा,

उम्र का तकाज़ा है,मनायेगा कौन... हर कोई  नसीयत देने लगता है
आपको पता है घर में नए साल की पार्टी है , बड़े बड़े मेहमान आये हैं
आप सो जाओ दरवाज़ा बंद करके , कुछ चाहिये तो बेल्ल बजा देना


अब हमारे रिश्तों के बीच भी एक कॉल बेल्ल ही बची है , संवाद के लिए

भाई रखा करो नजदीकियां,   ज़िन्दगी का कुछ भरोसा नहीं...

फिर मत कहना  ,चले भी गए और बताया भी नहीं...

तुम्हारी कॉल बेल्ल हमारी दिल की हालत न बता पायेगी ,
उठने की हिम्मत न होगी तो , बेल्ल को दबाएगा कौन ?
यह भी तो बता के जाते मुझे

चाहे जिधर से गुज़रिये, मीठी सी हलचल मचा दीजिये...


उम्र का हरेक दौर मज़ेदार है, आज जहाँ तुम हो

कल हम वहां के ठेकेदार थे , आज  हम हैं जहाँ
कल होओगे  तुम भी वहां , फर्क सिर्फ इतना है , हम परिवार के साथ थे
और यहाँ परिवार आपके साथ है ,  जाएये सब कुछ नया साल मनाईये
अपनी उम्र का मज़ा लिजिये...



देखी जो नब्ज मेरी,  हँस कर बोला वो हकीम :  "जा जमा ले महफिल पुराने दोस्तों के साथ,


तेरे हर मर्ज की दवा वही है   दोस्तो से रिश्ता रखा करो जनाब...  ये वो हक़ीम हैं


जो अल्फ़ाज़ से इलाज कर दिया करते हैं।  खींच कर उतार देते हैं उम्र की चादर,


ये ही हैं वोह कम्बख्त दोस्त..  जो कभी बूढ़ा  होने नहीं  देते।

ताने मार मार कर कभी रुला कर , कभी शिक़वाए इजहार करके ,
कुछ भी हो इनको खोना नहीं , इस उम्र में नए दोस्त नहीं बना करते ,

बच्चे वसीयत पूछते हैं   रिश्ते हैसियत पूछते हैं,

लेकिन वो दोस्त ही हैं जो  आपकी टांग भी खींचते हैं ,
जरूरत में आपकी खैरियत भी  पूछते हैं....





     ""सदा मुस्कुराते रहिये""