पुजने से पत्थर कभी खुदा नहीं बनते ...
वफाओं के सिले लाजिम -ऐ-वफ़ा नहीं बनते ..
वोह मुझ से मेरी मोहब्बत की गहरायी पुछता है ..
वोह इतने नादान है ? इतना भी नहीं समझते की ........
चश्मे कितने भी गहरे क्यों न हों , दरया फिर भी नहीं होते ..
हर किसी के जलने का , अपना एक अंदाज़ होता है ..
परवाने जितना भी जलें , मगर कभी दिया नहीं होते ..
तुम जब भी चलना , अपने पैरों पर ही चलना मेरे दोस्त ..
आज कल के लौग़ , किसी का बे मतलब , आसरा नहीं होते ...
वोह मुझे काँटा समझ के , गिरा गया इन राहों में कातिल,,
उसे क्या खबर की , फूल कभी काँटों से जुदा नहीं होते .......
वफाओं के सिले लाजिम -ऐ-वफ़ा नहीं बनते ..
वोह मुझ से मेरी मोहब्बत की गहरायी पुछता है ..
वोह इतने नादान है ? इतना भी नहीं समझते की ........
चश्मे कितने भी गहरे क्यों न हों , दरया फिर भी नहीं होते ..
हर किसी के जलने का , अपना एक अंदाज़ होता है ..
परवाने जितना भी जलें , मगर कभी दिया नहीं होते ..
तुम जब भी चलना , अपने पैरों पर ही चलना मेरे दोस्त ..
आज कल के लौग़ , किसी का बे मतलब , आसरा नहीं होते ...
वोह मुझे काँटा समझ के , गिरा गया इन राहों में कातिल,,
उसे क्या खबर की , फूल कभी काँटों से जुदा नहीं होते .......
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