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Wednesday, March 15, 2023

नज़र --- NAZAR ----BEHOLDING ---नज़र --- NAZAR ----BEHOLDING ---

नज़र --- NAZAR ----BEHOLDING ---नज़र --- NAZAR ----BEHOLDING ---




नजर एक अरेबियन शब्द है जिसका मतलब है " देखना "
लेकिन यह अच्छी देखने की नज़र ,बुरी नज़र भी होजाती  है

आँखों के मोती से निकली वह किरण ( शर्त यह के उस आँख में मोतिया बिंद न हो )
जो आँखों के रस्ते दिल में उत्तर जाए ,वही है कातिल " नज़र "

जैसीआँखें रहि , जिसकी 
वैसी ही रही , नजर भी उसकी , 
गीत कार  ने गीत लिख डाले नज़र पर भी 

"जरा नजरों से केह दो जी , निशाना चूक न जाए "
मजा तब है ,तुम्हारी हर अदा, कातिल ही कहलाये 

मसरूफ रहने का अंदाज़ , कर अपनों को नजरअंदाज 
कर देगा तुम्हे तनहा एक दिन , बाँध लो गाँठ मेरी यह  बात 

न हो यकीन तो, जरा कब्र  में लेट कर आजमा लो ,
 कितने हैं जो तुम्हारी नजर उतारते है , कितने नज़र अंदाज 
रिश्ते फुर्सत निभाने को नहीं , जिंदगी की खुशहाली होते हैं 

मत खोल मेरी किस्मत की किताब को , न ही खुलवा  मेरा मुहं ,
नजर लग गई  है उसे , किसी शैतान "ऐ  नजर "की 

हर उस शख्स ने मुहं ही फेरा है  मुझ से 
,जिसने भी इसे पढ़ा है 

महफ़िल में हम भी थे, महफ़िल में वह भी थे,
हमने नज़र हटाई नहीं, उन्होंने मिलायी  नहीं। 

उसी नजर को मेरा। .... , इंतज़ार आज भी है 


यूँ तो  गुपचुप बातें होती रहीं  है,..... अक्सर
उनकी नजरों से ,हमारी नज़रों की ,

नाराजगी तो हम दोनों के बीच थी , 
नजरों को नहीं 

पर मतलब अभी तक  ,उन लब्जों के
  समझ आये नहीं ,न हमको न  ही उनको 


नसीहत देने वाले यहाँ हज़ारों 
सरे आम दिख जातें हैं,

साथ निभा दें वो लोग ,मगर 
कहाँ नज़र  आते।है ?

होश कुछ यूँ उड़ गए थे मेरे , जैसे ही मिली थी उनसे नजर ,
बस वो नजर ही याद रही, बाकी सब अंदाजे नजर  हो गए 

अब यकीन हुआ कतराते क्यों हैं , लोग हमसे ?
नजरें मिलते ही   , यह सवाल जो पूछने लगती हैं 

तुम्हारी नजर क्या पड़ी मुझ पर ,
भूख प्यास भी न रही अपनी ,

चेहरा गुलाब था , हो गया  गेंदा 
लुढ़कने लगे जिंदगी में इधर से उधर ,  
जैसे  कोई गगरी हो बे पैंदा 

दिल जैसे फट पड़ेगा छाती फाड़के ,
 ऐसी परमाणु मिसाइल छोड़ती है यह नजर 

नींदे उड़ जाती हैं , भूख प्यास नहीं रहती 
हर वक्त चुभती सी लगती है ,वो कातिल "नजर " 

न रहती कोई भी खवाइश कुछ  पाने की 
 इंतज़ार रहता है  तो सिर्फ। .और सिर्फ उस ...... 
एक  "नजर" के उतर जाने का 


दर्द उठा सर में भी ,देख के नब्ज मेरी ,हकीम भी झुंझुला उठा 
बोल उठा  यह कोई मर्ज वर्ज नहीं , नज़र लगी है किसी की 

नहीं मेरे पास इसका ,इलाज़ कोई भी ,
जहाँ से यह मर्ज लिया है ,इलाज भी है वहीँ 

उसी के पास एक बार फिर से जाओ 
जैसे मिलाई थी नजर उस से ,पहले भी  
एक बार जाकर  फिर से मिलाओ , 
शायद ------इस बार नजर उतर जाए 

क्या बात कर दी हॉकीम साहिब ने , ऐसे 
नजर कोई अपनी मर्जी से मिलाता है क्या ?,


नजर उतारने का धंदा भी ,खूब चमके है इस ज़माने में 
यह ताबीज़ , यह अंघूटी , नहीं तो यह नग  ही डलवा लो 

 देख कर हैरान हूँ मैं भी ,एक अदना से ,बेजुबान आईने का जिगर
एक तो कातिल सी नज़र ,उस पर काजल का कहर !!रोज निहारता है 

फिर भी दीवाल पे टंगा है 
सही सलामत है अभी तक
इसे  क्यों न  लगी बुरी नजर ,
किसी चुड़ैल की ,आज तलक ? 
इसने कौन सी ताबीज़ बाँधी हुई है 


कौन किसकी राह में बिना मतलब 
बिछाता है नजरें ,यूँ  आज की दुनिया में ?

क्या बताएँगे दुनिया को,  के नजर लग गई थी ,
एक बार फिर से मिलवा दो उनसे ,


क्या होगा इन बेफिजूल बातों से, लेकिन 
हम भी  वाकिफ है  , फितरत से अपनी 

सुन ली सबकी , अब करेंगे मन की 

अरे नजर को व्यपार बनाने वालो , जरा सोचो 
आँखें हैं तो नज़ारे है , नज़ारे हैं तो खुशियां हैं 
बहकती हुई नजरें भी  , जिन जिन से मिली होंगी 
कुछ गैर  जरूर होंगे पर , उनमे कुछ होंगे अपने भी ?

तो क्या मैं सब को शक की नजर से देखु ?


उन्होंने  ने भी तो यही कहा था 
जान तुम शर्माते बहुत हो हम से ?
देखते भी नहीं हो मेरी और ?
सच हमसे भी छुपाया न गया 

 आप की निगाह की तो बात ही है  कुछ और 
 घूर के जो देखते हो , डरते है नज़र न लग जाए 

इसलिए  अक्सर नजर  चुरा लेते है 

ऐसी ही किसी  तिरछी नजर ने  ,
किया है अंदर से  ,ख़ाक जिगर पहले भी 

मासूम सी दिखने वाली उस  नजर ने 
बेकरार किया है..!,    बहुत पहले भी 


उनकी  सीधी नज़र ने,
तो कोई बात ,न की  ,कभी भी हम से 
पर  उस  तिरछी हुई नज़र का,जाल 
बड़ा जान लेवा था 

कहने लगे तुम एक नज़र तो देख लो, खुद को ,
मेरी नज़र से  ,फिर देखना 
तुम्हारी नज़रें तलाशेंगी खुद से 
,मेरी उसी नज़र को
 
बड़ी ऊँची शायरी जो हमारे सर के ऊपरसे  निकल गई 

सुना है एक निगाह से ,कत्ल हो जाते हैं लोग
कोई तो एक नज़र हमको भी देख लो
ज़िन्दगी अब , थोड़ा मायूस करने लगी है !!

काँटों और चाक़ुओं का तो है , खामख़ाह नाम बदनाम
काटती जुबान भी हैं !!चुभती तो नजर भी हैं 

और ,

खूबसूरती को कितने ही पर्दों  में रखो 
जिसने भी डाली  इसपे नज़र
बुरी ही डाली !!

कौन है जो मर्ज़ी से जी रहा हो यहाँ
सभी तो किसी न किसी नज़र से हैं बंधे  हुए 

अल्फाज़ो में ढूंढता हु उन्हें  ,हक़ीक़त में  नज़र आते  नहीं
गुनाह बताते नहीं  हमारा ,जो हम उन्हें ,एक नज़र भाते नहीं 
 
कहने लगे हमसे वो 
दुनिया में आए हो, ,तो चेहरे पढ़ने का हुनर रखना,
दुश्मनों से कोई खतरा नहीं है, किसी को भी इस जहाँ में 
बस रखना तो अपनो पर,थोड़ी पैनी "नज़र "रखना।



ख़ुशी ही तो थे वोह मेरी , 
पर ना जाने कब ,किसी की
बुरी नज़र लग गई !!


इस तरहां बेरुख़ी से ,जो नज़रे मिली,
कुछ जवाब तो मिल गए हैं 
लेकिन पहचान गया  हूँ सबकी नज़र को अब मैं भी 
जिस अंदाज़ से वोह हमें ,नज़र अंदाज़ करते हैं !!


तुम्हारी राह में शायद मिट्टी के घर नहीं आते
इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते..
निकल जाने पर पलट के देखा भी नही तुमने..एक बार !
रिश्ता तुम्हारी नज़र में , क्या कल का अखबार हो गया..है !!

नजरों  में सम्भाल के रखा पर ,
उसे नज़र भर के देखा नहीं
नज़र न लग जाए कहीं मेरी ही 
मैंने उसकी तरफ देखा ही नहीं !!


मुझे हर वो पत्थर जिसकी ठोकर करे आगाह रस्ते में 
मुझे दर्द दे फिर भी , मुझे उसमे हमदर्द नज़र आता है !!


मुझे तो तकलीफ है उन रिश्तों से ,
जो पत्थर तो नहीं है , पर दर्द बहुत देते हैं 


मौसम है आशिकाना साहिब जरा सम्भल के रहियेगा
यहां नजरें ही नज़रों को मार गिराती  है ,
कातिल हमें ना कहियेगा !!

नजर और नसीब के मिलने का ,इत्तफाक कुछ ऐसा है दुनिया में
नजर को पसंद हमेशा वही आता है ,    जो नसीब मे नही होता !!

पर  तुम जब भी मिलो हमसे ,तो नजरे उठा कर मिला करो
 तुम्हारी झुकी नज़रों में ------ हम अपना चेहरा नहीं देख पाते  


कोई  लाख खूबसूरत बन जाये ,किसी और की नज़र में !
आईने में खड़ा शख्स  उसे खूब  अच्छे से जानता है

बस इतनी पाकीज़ा रहे ,आईना-ऐ-ज़िन्दगी
जब खुद से मिले नज़र ,तो नजरें शर्मसार ना हो !!


फिक्र नही लोगों में निन्दा हो तो हो
बंदा अपनी नज़र में शर्मिन्दा न हो !!


रिश्ते कुदरती मौत नहीं मरते , 
इनका क़त्ल होता है इंसान की 
अपनी ही "नजर" के "नजरिया"  से 
कभी नफ़रत से तो 
कभी ग़लतफहमी 
या , नज़र अंदाज़ी से

ना जाने क्यों वो आजकल हमसे मुस्कुरा के मिलते हैं
शायद अपने अन्दर के सारे रंजो -गम छुपा के मिलते हैं

वो बखूबी जानते हैं आंखे सच बोल जाती हैं
शायद इसी लिए वो नज़र झुका के मिलते हैं !!
 ,हमारी नजरों से दूर रह कर भी ,मुझपर पैनी नज़र रखते हैं 
आखिर अहमियत क्या है हमारी ,जो ईतनी ख़बर रखते हैं !!



खूबसूरत चेहरा सब को दिख जाता है , 
आँखों के रस्ते दिल में उत्तर जाता है 
छुपे भाव इसमें ,दुनिया नजरअंदाज कर जाती है  
और फिर कभी यही नजरें "नज़ीर" बन जाती  है 


“यूँ तो शिकायतें मुझे भी ,सैंकड़ों हैंअपनों से , मगर ,
 एक नज़र ही काफी होती है सुलह के लिये”

नजरे तलाश करती जरूर है उन्हें , जिनकी नजरें फिर गई हमसे 
पर उन्हें फिर हमसे नजरें  मिलाते,  देखने का अब कोई इरादा नहीं।


आप तो खैर दोस्त हो, जिगरी हो हमारे 
हम तो ,अपने दुश्मन को भी ,  सज़ा बहुत मासूम देते हैं
नही उठाते अपना हाथ किसी पर, कभी गलती से भी ,
बस अपनी "नज़रों  में उसे " चुपचाप से गिरा देते है !!

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तुझे  क्या बताऊँ ए ,दिलरूबा तेरे सामने मेरा हाल है,
तेरी एक निगाह की बात थी ,मेरी ज़िन्दगी बेहाल  है I

















Khawaaish -----ख्वाईश -- April30 Th , 2022 , Adabi sangam meet # 511, Hosted By Mr & Mrs Vinod and Usha kapoor ji --

Khawaaish -----ख्वाईश -- 


अदब का दरवाजा इतना छोटा और तंग होता है कि 
उसमे दाखिल होने से पहले सर को झुकाना पड़ता है 

और दुनिया में कुछ पाने को ,
खुद को मिटाना पड़ता है 

ख्वाइशें मेरी भी थी , के दुनिया को झुका दूँ 
 एक इशारे से किसी को बनाऊं या मिटा दूँ 
 
पर ऐसा कहाँ मुमकिन  है  इस दुनिया में ?
 इतिहास पे नजर घुमाई तो ,सर घूम गया 

सिकंदर हो या मुसोलिनी या हो हिटलर 
खाली हाथ ,सभी तो दफन हैं इसी मिटटी में 
अपनी अपनी अधूरी ख्वाइशों के साथ 

तो मैं क्या उनसे भी बड़ी शख्सियत हूँ जो मेरी हर बात पूरी हो ? नहीं मैं तो कुछ भी नहीं 
सोचा क्यों न अपनी इन्ही ,
अजीबो गरीब ख्वाइशें को ही बदल दूँ ?


भव्य बाजार सजा था ,  दौड़ता व्याकुल लोगों का हजूम 
तरह तरह के गहने , हीरे जड़ित सोने चांदी की चमक ,
रंग बिरंगे परिधानों में सजी संवरी सुंदरियाँ ,मानो 
अप्सराएं उत्तरी हैं , चमक दमक ,जैसे हो इंद्र का दरबार


मेरी नजर एक बड़े से बोर्ड पर पड़ी " लिखा था दुनिया का सबसे बड़ा बाजार , अगर आप हताश हैं निराश हैं तो यहाँ निश्चिन्त होके आइये , सब कुछ है यहाँ ,बच्चे से लेकर बुजुर्ग, सबकी ख्वाइशों का है सामान  यहाँ , आइये और पूरी कर लीजिए 

बिलकुल झूट और गलत है ये विज्ञापन , ख्वाइशें कहाँ कोई पूरी कर सकता है किसी की ?
   जो गर पूरी न हो तो बड़ा ख्वार करती है , यह सब एक ही जगह एक ही जनम में कभी पूरी  हो ही नहीं सकती " इतना तो हम सब अब तक जान ही चुके हैं 

बेवजह की ख्वाहिशें पालकर,
इन के पीछे भागते है,लोग अक्सर 
दिन में तो चैन  मिलता नही ,
 अब रातों में भी जागा करते  है.

जिंदगी नाम ही था चढ़ाई का , 
 मैं हर रोज सीढिआँ चढ़ता गया 
जिंदगी के हर ऊँचे मुकाम को 
उम्र ढलते ढलते सब पा लिया था , 
इसके आगे कुछ था ही नहीं 
सिर्फ ढलान ही नजर आई 
पीछे मुड़ कर देखा तो  ऊंचाई से डर  लगा 
तो क्या मेरी सब ख्वाइशें यहीं तक थी ?



मैं भी बड़ी दुविधा में हूँ 
ज़िन्दगी तो पूरी कट जायेगी ऐसी भी और वैसे भी , 
इन का क्या करूँ जो अभी तक मुझ से चिपटी हैं ,
सांस भी अधर में जा अटकती है इनकी वजह से 

वही  अधूरी खव्हिशें जो मेरी जान से लिपटी है 


हमेशा मसला मेरी ख़ामोशी का रहा 
थी तो मेरी बहुत छोटी छोटी  पर दबी रही ,
पूरी न हुई तो बड़ी लगने लगीं
 ख्वाहिशों इतनी की , 
जब जाहिर की तो सब को खलने लगी 

 दिल ने समझाया मुझे 
उम्मीदें पैदा ही  होती हैं , नउम्मीदी से, 
तो उमीदें पालते ही क्यों हो ?
नाउम्मीदी है जिंदगी में  ग़म की वजह,,,, तो जिंदगी भी तो उमीदों पे टिकी  है ?
 ख़्वाहिशें संजोय रखना मन में 
आज की जिंदगी का कोई गुनाह है क्या ?!

मेरे नसीब की बारिश हमेशा 
कुछ इस तरह से होती रही मुझपे
पलके मेरी भीगती रही.
 ख्वाहिशे -फिर भी --सूखी रही

किसी के अंदर जिंदा रहने की ख्वाहिश में …
हम कितनी बार यूँ ही  घुट घुट कर मर जाते हैं ..

फिर अपनी मायूसी के किस्से जग को सुनाते है 

छोटे थे तब हर ख्वाहिश ख़ुशी में बदल जाती थी,
बड़े हुए हैं ,तबसे हर ख्वाहिश दर्द ही देती है.

जख्म भी बहुत मिले ,पर हँसते रहे हम,
इसे पूरी करने को , हर रोज मरते रहे हम.

मेरे अपनों के चेहरे पर उदासी न आ जाएँ,
मैंने भी कुछ ख्वाहिशों को , दर किनार कर दिया 


कुछ  है अधूरी
कुछ अधूरे से है हम भी
वक्त बीता उम्र बीती
ना पूरी हुई कुछ ख्वाहिशें 
ना ही पूरे हुए हम.

क्यों लगा लेते हो उन लोगों की बाते दिल पे ?
जो अमरूद खरीदने से पहले पूछते है " 
मीठे है न ?
घर लौट कर नमक मिर्च  लगा कर खाते हैं 

लेकिन एक सलाह मेरी भी है आपको 
ख्वाहिश को ख्वाहिश ही रहने दो,
जरूरत बन गई तो नींद नही आएगी.

मर कर कब्र  में भी तुम्हे जगायेंगी , 
 कब्र की गर्मी में ऐरकण्डीशन मांगने लगेंगी 

एक अजीब रिश्ता है मेरे और ख्वाहिशों के दरमियां
वो मुझे जीने नहीं देती और में उन्हें मरने नहीं देता

फुर्सत नहीं है इंसान को घर से मंदिर तक आने की
और ख्वाहिश रखता है शमशान से सीधा स्वर्ग जाने की

- ख्वाहिशो का सील सिला तो खत्म नहीं होगा कभी, 
हाँ इंसान आपस में युद्ध जरूर करेंगे एक दिन
 अपनी इन न  मुराद ख्वाहिशो के चक्कर में।

मुझे भी शामिल करलो  गुनहगारों की महफ़िल में
मैं भी कातिल हु कुछ अपनी कुछ पराई हसरतों का
अपनी मुफलिसी में ,
मारा है
मैंने भी बेशुमार ख्वाहिशों को 

ख्वाइशों का मरघट लगाना हो तो वकील बन जाओ,
तरह तरह के मुसीबत के मारे लोग ,
अपनी मरी ख्वाइशों को जिन्दा करने की ख्वाइश में , 
लेकरअपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई हुई बेशुमार दौलत ,
अदाएगी तुम्हारी फीस के लिए
किसी को न्याय तो तुम क्या दिला पाओगे ,
बेचारे तुम्हारी ख्वाइशों पे हो  कुर्बान 
कंगाल जरूर हो जाएंगे


रहिमन इस संसार में सबसे सुखी वकील 
ख्वाइशें हैं आपकी , उनकी सिर्फ दलील 
जीत गए तो नजराना ,हार गए तो 
फिर से -----------एक नई अपील 

अब क्या बताएं ?
तकदीर का ही खेल है सब
पर  दुनिया है के  समझती ही नहीं
पहले उम्र नही थी, के ख्वाइश पूरी कर पाते
और अब ख्वाइशें पालने की उम्र नहीं रही 

 अब वैसे तो नहीं बची ,कोई भी , लेकिन जब 
आखिरी ख्वाहिश क्या है ,खुदा पूछता है तो ?
फिर से  जुबा पर ,एक नई खवाइश आ ही आती है ।

लेकिन मुझ में ,वही पुरानी एक सोच अभी जिन्दा है 
फिर वही  जिद बचपन की ,कुछ पुरानी नेमते पाने की , 
बचपन में लौट जाने की , अपने माँ बाप से लिपट जाने की 


कर सकते हो मेरी इस खवाइश को गर पूरा ऐ खुदा ? तो 
कुछ ऐसा कर दो मेरे दिमाग में के मैं सब कुछ भूल जाऊँ जो मैंने खुद कमाया है , 
लौट जाऊं अपने बचपन में 
बन कर वही रोने वाला बच्चा माँ से लिपट कर उसके आगोश में सो जाऊं 



चाहिए अब इक छोटा सा पल जो पूरा अपना हो 
जहाँ मैं 
रहूँ सिर्फ, मेरा जीना मरना भी हो वहां 
उन्ही ,खुद की दबी हुई ख्वाइशों  के साथ ,
जो आज तक अधूरी हैं 

रस्सी जैसी जिंदगी है ,तने तने हालात
एक सिरे पर ख्वाहिश है दूसरे पर औकात


हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि, हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले
– ग़ालिब


मेरी ख़्वाहिश के मुताबिक तिरी दुनिया कम है
और कुछ यूँ है ख़ुदा हद से ज़ियादा कम है


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ADABI SANGAM --- कदम, steps , पदचाप hosted by vijay and Neeta ji

कदम, footsteps, पदचाप 







फ़क्त मेरे क़दमों को देख , मेरी चाल को नहीं 
यह  तो हमेशा ही डगमगा जाती है अक्सर , 
------------------- लौटते हुए मयख़ाने  से 

सबको मंजिल चाहिए ,और मुझे सही रास्ता ,
इसी लिए मैं अपने कदमो का कायल हूँ ,
जो चलते भी हैं फिसलते भी है , लड़खड़ाते भी हैं 
यही हैं मेरी जिंदगी के मालिक 
यह भटक गए तो समझ लो , 
भूल जाएंगे मंजिल का  भी रास्ता 

ऐसा नहीं की किसी की पसंद या सोच गलत है 
लेकिन यह जरूर सच है के ------------
सबके  क़दमों की मंजिल ,कभी एक नहीं होती 

जानना चाहता है दिलों में छुपे राजों को हरकोई ,
लेकिन दो कदम साथ निभा देना उसे गवारा नहीं  

वक्त की तीमारदारी करते करते ,  बीती है सारी उम्र 
लेकिन जिंदगी के हर पड़ाव पर पहुँच कर पाया ,
इन कदमो को अभी और चलना होगा। 
और हासिल करना होगा ,

कितनी भी जद्दोजेहद  ,दुनिया को झुकाने की या 
कुछ नया कर जाने की ,  जो बात किया करते थे 
क़दमों की ,फिर दिशा क्यों भटक  गई उनकी ?
हालात और दुर्गम रास्तो को भांप कर ?

जानता है हर दिल का फ़साना ,यह बेदर्द जमाना , 
समझता नहीं मगर,उन उठते कदमो की फिसलन। 
कुछ जो बढे तो तेजी  से ,मगर मंजिल को पा न सके ,
बोल भी थे ,लय भी थी ,फिर भी तराना कोई गा न सके 


दो कदमो का ही है ,यह खेल जीवन का 
एक उठता है , दूसरा खुद  चला आता है 
कितने मोहताज है एक दुसरे के 
 एक का फिसलना ,दूजे को भी गिरा देता है 

कई बार गिरा हूँ , बच के  निकला हूँ  गर्दिशों से 
कैसा मफ़्तूह सा मंजर बना है , मेरी जिंदगी में ?

अपने सर( दिमाग ) को सम्भालूं या कदमो को 
बेशक टिका है मेरे  सर का बोझ  मेरे कदमो पे ही , 

कितनी ही सदियों से , बिना किसी बंदिशों के 
दोनों का आपसी  समझौता निभे जा रहा है 

वक्त के पाऊं नहीं देख पाया कभी भी  
पर इसे  तेज क़दमों से चलते मैंने, 
हमेशा लोगों को अपना गुलाम बनाते 
हर जगह महसूस किया है ,

अभी कल ही की  तो बात है , माँ की गोद ,
पापा की ऊँगली पकड़ उन्ही के कदमो से चलना सीखा ,

 छोड़ मुझे अकेला सब,  निकल गए कहाँ ?
  हैं कुछ  जोड़ी जूते , कुछ उनके कदमो के निशाँ 
उन्होंने इस घर को , बनाने में जो  छोड़े थे 
सौंप कर सब हमें , छोड़ कर चल दिए यह जहां 

उन्ही के पीछे पीछे ,कदम ताल मिलाते 
जहाँ थे वो कल ,आज मैं भी  आ पहुंचा हूँ  
मेरा बचपन , मेरी जवानी , और समझदारी 
कितना दुःख दे रही है मुझे ,  दूर जाते जाते 

शर्म  हुई अपनी नादानियों को सोच कर 
पार्कों में तेज तेज कदम चलते हुए , 
बर्दाश्त न होता था किसी  बुजुर्ग का सामने आ जाना 
मेरी गति जो रुक जाती थी, खीज होती लय टूट जाने की 
इतना ही धीरे चलना है तो घर में ही चले  जनाब , 
हमारे कदमो के बीच लड़खड़ाते क्यों चले आते हैं ?

इतनी जल्दी मैं भी उनकी जगह ले लूँगा कभी सोचा न था ,
अब साथ में सैर करने वाले हम उम्र भी बहुत कम रह गए हैं 
नज़र नहीं आते आज कल ,शायद अपनी मंजिल को पा गए   , 
या अपने बोझिल हुए कदमो के हाथो मजबूर हो गए 

अलबत्ता कुछ लोग हमें भी हमदर्दी से देखने लगे हैं 
देख डगमगाते कदमो को ,कुछ कुछ बोलने भी लगे है 
 
हमेशा की तरह आज सुबह  फिर से , तेज कदमो से ,
लगभग दौड़ते हुए , पहन जॉगिंग सूट ,सैर को निकला 
किसी अजीब सी आवाज से मैं रुका " 
इतनी जल्दी भी क्या है भाई , जरा सांस  तो  ले लो। 

कुछ हासिल नहीं होता ,जितना मर्जी दौड़ लो ,
 अंत में दर्द से ,घुटनो का ही साथ ,छूटने वाला है 

ध्यान से देखा एक खरगोश ,घास में लेटा  मुझ से मुखातिब था 
अरे यह इंसानो सी आवाज में मुझे क्या बोल रहा है ?

मुझे पहचाना नहीं  ? जब तुम छोटे थे तो स्कूल में मेरी यानी के खरगोश और कछुए की कहानी कितनी चाह से सुना करते थे ? 
कहानी से नसीहत मिला करती थी के जिंदगी में कुछ पाना हो तो धीरे धीरे सब्र से काम लो कछुए जैसी लगन निरंतर गति शील कदम ही कामयाबी दिलाती है ,खरगोश की तेज गति से नहीं , यही पढ़ा है न आजतक ?

आज तुम्हे भी तेज तेज कदमो से भागते देख मुझे अपना वक्त याद आ गया ? पर तुम तो अकेले ही भाग रहे हो तुम्हारे साथ रेस में तो कोई दिख नहीं रहा तो फिर इतनी तेजी क्यों ? किस से डर कर भाग रहे हो ?

अरे नहीं भाई इसे डर से भागना नहीं , सुबह की जॉगिंग कहते हैं ,
तो फिर मेरी जॉगिंग को आपने रेस का क्यों नाम दे दिया था ?

मुझे तो आराम परस्त घोषित करके कछुए को उस रेस का विजेता भी बना डाला इस दुनिया ने  , पर किसी ने मेरी साइड की कहानी तो आजतक  किसी को सुनाई ही नहीं गई ? 

मनुष्य बहुत स्वार्थी है सिर्फ अपने हिसाब से कहानी घड लेता है और दुनिया को बार बार वही सन्देश सुनाता रहता है जिसमे उसका फायदा  निहित हो , मेरी कहानी किताबों में छाप छाप कर बेइंतिहा दौलत कमा डाली लेकिन  मुझे क्या दिया ?

 किसी को अच्छा और किसी को बुरा साबित करते रहते हैं , अरे भाई साफ़ साफ़ बताओ जरा जल्दी है मुझे ऑफिस पहुंचना है। 

यही तो दिक्कत थी मेरे साथ भी , मेरे पास भी वक्त कहाँ था ?
 
"मैं ही था वह खरगोश जो एक कछुए से अपनी जिंदगी की वह दौड़  हार गया था" लेकिन  न ही अपनी गति से न ही अपनी सुस्ती या आलस्य की वजह से 'जैसा के मुझे कहानियों में बताया गया  , मैं हारा तो सिर्फ अपने आत्मिक ज्ञान, विवेक के जागने से। मैंने जब हर इंसान को यहाँ भागते देखा तो मुझे यह लगा के शायद तेज कदम ही जिंदगी का सार है उन्ही के नक़्शे कदम पर मैं भी दौड़ने भागने लगा था 

इस रेस की तैयारी में या यूँ कहिये की थोड़ी जिज्ञासा और चिंता मेरे मन में पूरी रात रही के इस कछुए ने मुझे रेस के लिए चैलेंज क्यों दिया होगा ? क्या राज होगा इसके पीछे ? यही सोचते सोचते मैं पूरी रात सो भी न पाया था 
 
" मैं भी अपनी काबलियत उस निखद कछुए को दिखाना चाहता था के जिंदगी की दौड़ में जो भी तेज कदम दौड़ता है उसी का दिमाग भी तेज दौड़ता है, और वही अपनी दूर मंजिल तक भी उतनी ही जल्दी से पहुँच जाता है , तेज कदमो की  गति की अपनी महत्ता भी होती है , दुनिया में अगर हम धीरे धीरे चलेंगे तो मंजिल मिलना तो दूर ,सबसे पिछड़ भी तो जाएंगे ?

उसी रेस वाले दिन की ही तो बात है, मैं अपनी गति की वजह से बहुत आगे निकल गया था ,थोड़ा रुक कर मैं चुपचाप हरी हरी दूब खा रहा था , और पीछे मुड़  के भी देखा कछुए का कहीं दूर दूर तक कोई निशान न था , मुझे अहसास था के मैं अपनी  गति  से कछुए से बहुत आगे पहुँच चुका  हूँ , कछुए के बस का नहीं मुझे पकड़ सके तो क्यों न पास ही के तालाब के पेड़ों की घनी छावं में थोड़ा सुस्ता लू.

पेड़ की ठंडी ठंडी छावं और उसके नीचे बिछी हरी घास की चादर , मंद मंद  समीर के झोंके , पक्षियों की चेहक जैसे मुझे न्योता दे रहि हों " के आओ थोड़ा आराम भी कर लो बहुत गर्मी है " वक्त भी था और मौका भी ,और मुझे उनका यह आमंत्रण स्वीकार हो गया और मैं मस्ती में एक तैरते लकड़ी के फट्टे पर सवार हो गया और नदी के बहाव का आनंद लेने लगा 

जैसे ही मैं किनारे पहुंचा वहां एक लम्बी दाढ़ी वाले बुजुर्ग व्यक्ति जो एक चट्टान पर बैठ शायद ध्यान योग  कर रहे  थे " मेरी आवाज से उनका ध्यान भंग हुआ और आँखें खोलते ही मुझे एक चिर परिचित मुस्कान देते हुए पुछा  

"तुम हो कौन वत्स ? और यहाँ क्या कर रहे हो , जैसा की आप देख रहे हैं , महाराज मैं एक खरगोश हूँ ,और एक रेस में शामिल होने की वजह से यहाँ तक आ पहुंचा हूँ 

रेस ? क्यों और किस से ? क्योंकि मैं इस जंगल के सभी जीवों को यह यकीन दिलवाना चाहता हूँ के मुझ से तेज दौड़ने वाला सिर्फ मैं ही हूँ ,  

लेकिन खुद को सबसे तेज साबित करके तुम्हे अपने लिए क्या मिलेगा यह तो बताओ ?मुझे एक मैडल मिलेगा , जानवरों के समाज में रुतबा होगा , ढेर सारा पैसा भी मिलेगा इनाम में , जिससे मैं अपना खाना पीना अपने ही खेत में उगाऊंगा , बहुत बढ़िया रेहन  सेहन जुटा  सकूंगा 

लेकिन तुम्हे तो पहले ही कोई कमी नहीं है चारों तरफ तुम्हारे लिए फल फ्रूट्स से लदे वृक्ष , हरी हरी सब्जियां और मीठी मीठी घास उगी हुई है जो तुम्हारे लिए मुफ्त में है कोई तुम्हे रोकता नहीं , न ही तुम्हारा कोई बड़ा परिवार या जरूरते ,फिर पैसा क्यों चाहिए ?

मुझे समाज में सबसे तेज दौड़ने का ख़िताब अपने नाम लिखवाना है 

तो फिर तो तुम्हे सब से तेज दौड़ने वाले हिरन का नाम भी मालुम होगा या साइज में सबसे बड़ा जीव हाथी का ? या सबसे खतरनाक शेर जो चुटकियों में किसी को भी पकड़ के खा जाता है ?

नहीं मुझे इनके बारे में कुछ नहीं पता , आप कह रहे हो तो होंगे 
आज तुम्हे एक कछुए ने ललकारा है , कल कोई सांप भी तुम्हे ललकारेगा , फिर  कोई ऊँठ ,ज़ेबरा , कुत्ता बिल्ली , चूहा ?तो क्या तुम पूरी जिंदगी सब से रेस लगाते रहोगे सिर्फ यही साबित करने के लिए कि  तुम ही  सबसे तेज दौड़ने वाले जंतु हो ?

अरे यह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं , नहीं नहीं मैं पूरी जिंदगी ऐसे ही नहीं दौड़ते रहना चाहता ” यह भी कोई जिंदगी होगी हमेशा अपने घुटनो और पाऊँ को तोड़ते रहो और बीमार होकर मर जाओ 

मैं तो ऊँचे ऊँचे बरगद की छाया में , मंद मंद बहती ठंडी हवा का आनंद लेते हुए जीना  चाहता हूँ  ,मैं वादिओं की हरी हरी दूब खाते हुए अठखेलियां करना चाहता हूँ , बहते झरनो में डुबकियां लगाना  चाहता हूँ , यह तो तुम अभी भी कर रहे हो फिर रेस का क्या मतलब , कोई न कोई जानवर तुम्हे मार के  खा जाएगा फिर क्या साबित करोगे ?

इसी डर से मेरी नींद खुल गई , यह कैसा सपना मुझे आया ?, मैंने सामने देखा तालाब में डक्स हंस खेल रहीं थी , उन्हें देख मैं भी पानी में कूद गया जिसे देख यह डक्स भी घबरा गई और मेरी और जिज्ञासा पूर्ण दृष्टि से देखा " और बोली तुम्हारी तो आज कछुए के साथ रेस थी न "?फिर यहाँ पानी में कैसे घूम रहे हो ? तुम्हे कैसे मालुम ?
क्योंकि पूरे जंगल में इसकी चर्चा थी इस लिए हम भी जानते हैं 

यह रेस वेस सब बेकार है, मैं इंसानो की भागदौड़ देख उनकी नक़ल करने लगा था , जिसका जीवन में न कोई महत्व है न ही संतुष्टि , मैंने सभी दौड़ते भागते इंसानो को जल्दी बीमार और छोटी आयु में मरते देखा है, वह भी दौलत शौरत की दौड़ में भागे जा रहे है 

 मेरी आँखें खुल चुकी हैं ,मैं जिंदगी जीना चाहता हूँ  , अपने कदमो को थका के दूसरों को हराने  की बजाय खुद की भलाई में इस्तेमाल करना चाहता हूँ ,

अब  मेरी तरफ की यह कहानी भी लोगों तक पहुंचा देना "मैं रेस हारा जरूर  था पर उसी हार में मेरी जिंदगी मुझे वापिस मिली है ,आज मैं झूटी ख्वाइशों से आज़ाद भी हूँ और खुश भी  " 

अपना जीवन हमेशा अपने कदमो के हिसाब से जीना सीख लेना ही असली जिंदगी है ,न के दुनिया को उसकी ताकत दिखाने के लिए , 

तुम्हारी दुनिया के लोग भी उसी ख़रगोशी दौड़ में लगे है जो मैं बहुत पहले हार कर भी जीत चुका  हूँ  ,हर वक्त  शौहरत का  फितूर पाले रहते हैं , किसी के पास एक गाडी है तो दूसरा दो रखना चाहता है , किसी का एक मकान देख दूसरा चार मकान बनाना चाहता है , कोई अपना नाम दुनिया की सबसे अमीरों की लिस्ट में लिखवाना चाहता है , चाहे उसके लिए उसे अपना परिवार व् बच्चे भी क्यों न दांव पे लगाने पड़  जाएँ।

 बड़े बड़े वादों की खिलाफी करके अमीरी हासिल होती है , लेकिन अन्तन्ते  संतुष्टि और ख़ुशी फिर भी उसे नहीं मिलती ,मरने के बाद ,जाता फिर भी है दूसरों के कन्धों पे सवार होके , दूसरों के  कदमो का सहारा लेकर अपना दाह  संस्कार करवाता है।  जैसे ही मुझे यह ज्ञान उस महापुरुष से मिला मैं रेस से बाहर  हो गया , 

मैंने इंसानो को देख भागदौड़ की जिंदगी पकड़ी थी यही ज्ञान मुझे उन्ही  इंसानो को देना था आज आप ने रुक कर सुना मुझे उम्मीद है इंसान इसे ध्यान में रखते हुए जीना शुरू करेगा 

दो कदम साथ चलने का वादा करने से पहले ,
सोच लें मेरे दोस्त भी ,यह निभाना आसान नहीं 
,
चलिए , दौड़िये ,भागिए , टहलिए जरूर , लेकिन अंधी दौड़ नहीं , इन्हे ठोकरों से बचाकर फूंक फूंक कर रखिये 
बहकने न पाएं यह कहीं भी कभी भी किसी भी लोभ में ,
यही कदम हैं वजूद आपका , बड़ी फिसलन है जिंदगी में 
रखिये इन्हे संभल संभल कर।