Monday, April 29, 2024

30 -3-2024 ------ #529 ***** ADABI SNGAM MEET NO. 529 TOPIC "BAARISH KI BOONDEY"--HOSTED BY DR SETHI FAMILY IN CONNECTICUT



ADABI SNGAM MEET NO. 529
TOPIC  "BAARISH KI BOONDEY"

30 -3-2024 ------ #529   ***** ADABI SNGAM MEET NO. 529 TOPIC  "BAARISH KI BOONDEY"--HOSTED BY DR SETHI FAMILY IN CONNECTICUT 



सूरज से छिटका धुल का एक गुबार ही तो था
तीव्र गति से घूमता बेलगाम लावा सोर मंडल में
कैसे कोई बुझा कर , करता शांत इसे
 कैसे 
फिर यह उड़ती धुल , बन जाती धरा ? अगर इन बूंदों की बरसात न होती

धूल भौतिक, रासायनिक और जैविक कारकों के प्रभाव से ठोस मिट्टी में परिवर्तित होती है। उन सबके लिए दरकार  होती है पानी की जो इन धूल के छोटे-छोटे कणों को बाँध कर मिटटी का रूप दे सके , जिसे अपक्षय कहते हैं। इस प्रक्रिया के द्वारा धूल धीरे-धीरे मिट्टी में बदल जाती है।


बारिश  में निहित है  , सार जीवन का 
यह  पानी नहीं , आधार है जीवन का 


कैसे मिटती भूख और प्यास दुनिया की  
न  होती  ,कोई बिसात हमारी 
अगर इन बूंदों की बरसात न होती

खेत में गिरती एक बूंद, अनाज का दाना बने,
गंगा में मिलती हर एक बूंद, गंगाजल बने 

नदियों में गिरे तो यह, विशाल धारा बने ,
सागर में गिरे बूंद बूंद, तो महासागर  बने 

 धरती हरियाली से ,फिर कैसे सजती,  
अगर बूंदों की यह सौगात न बरसती 


सीप में गिरे एक बूँद , तो मोती बन जाए
आँखों से टपकी बूँद   ,  आंसू कहलाये 
 
हलक में जो अटकी हो जान 
यही एक बूँद  ,मोक्ष बन जाए 

छाता लगा के डगमगाते  क्यों हो 
बारिश से खुद को बचाते  क्यों हो 

भीगने से तो शायद बच भी जाओ , 
डूबने से बच न पाओगे 
डुबाने वाला पानी,सिर से नहीं
पैरों की तरफ से आएगा ,

फायदा उठाना सीखिए हज़ूर
नायाब बूंदो को संजो लीजिये जरूर 
लौटा दीजिये वापिस  प्यासी धरती माँ को
सूद समेत  पुराना ,कर्ज समझ कर 

तुम्हारी नस्लों के ही काम आएंगे यह ख़ज़ाने , 
 गर्मी से प्यासी धरती ,न दे पाएगी तुम्हे दाने 
जब  बूंदो की बरसात न होगी


आते है पानी लेकर घनघोर बादल निरंतर
धरती पुत्र किसानो की ख़ुशी के लिए ,पर
धो देते हैं सालों से जमी धुल और गन्दगी ,

हर मकान हर दुकान हर सड़क और गली गली
कैसा आलम दीखता इस धरती पर ?
अगर इन बूंदों की बरसात न होती 

 
 बारिश की बूंदे हर गन्दगी को तो बहा ले गई ईश्वर 
कुछ बूंदे तेरी कृपा से इंसानो के दिलो पर भी बरस जाती
बहुत छल कपट का मैल जमा है ,वोह भी धुल जाती 

 कितनी 
 व्यथा  झलकती है      बारिश की बूंदों में , ,
 सहते सहते जिसे हम ,अक्सर खुद भी भीग जाते हैं।


मौसम-ए-बारिश में कुछ कशिश सी  होती है,
अकेले होते ही   , 
 गुजरे ज़माने का 
, हर पल ले कर कुछ यादें ,लौटने लगता है 
कुछ  पलों में  ख़ुशी , कुछ में टीस होती है 


मेरे शहर में भी थी , इक कच्ची सी पगडंडी अपनी।
बारिश जितनी भी हो जाए , मेरे घर का पता वही बताती थी

शहर की बारिशों का तो आलम ही निराला है
एक बारिश  हुई ,सड़कों पर लग जाता जाम बहुत है।।
 
थोड़े मेघा बरसे , सड़को पे बाढ़ का आयाम बहुत है
इंसानियत से ज्यादा ऊंचाई है यहाँ मकानों की
तभी तो जिंदगी की भाग दौड़ में मर जाना
यहाँ आम बहुत है


कौन सुनेगा तुम्हारी बरसात और पतझड़ की कहानी
फुर्र हो गई फुर्सत अब तो। ,सबके पास काम बहुत है।।

नहीं जरूरत उन्हें बुजर्गो  के ज्ञान की अब।,हर बच्चा बुद्धिमान बहुत है।।
उजड़ गए सब बाग बगीचे।नहीं संजोता कोई ,बूंदों की बारिश को
बालकनी में रखे दो गमलों से ही , उनकी शान बहुत है।।

मट्ठा, दही नहीं खाते हैं।कहते हैं बारिश हुई है ,ज़ुकाम बहुत है।।
खाते है जब गर्म  चाय और पकोड़े ,  एक पेग रम का !तब कहीं। 
कहते हैं ,आह ----अब आराम बहुत है।।


हाथ में फ़ोन है , और फोनों पर व्हाट्सअप के पैगाम बहुत है।।
किसे पढ़े? किसे मिटायें ,
और किसे छोड़ें ,  किसे अपनाएँ ? ?
मुश्किल बड़ा यह काम बहुत है

आलस का आलम तो देखो
आदी हैं ए.सी. के इतने। 
मानसून की बारिश को घूमस कहते है ( humidity )
बाहर जाने को कहो तो कहते बाहर घाम बहुत है।।( धुप )

नहीं खेलते बच्चे भी अब इस बारिश में 
झुके-थके  हैं स्कूली बच्चे।बस्तों में सामान बहुत है।।
सुविधाओं का ढेर लगा है हर घर में ।
पर बचपन परेशान बहुत है।।

 वक्त बदला  , इक पल में सब कुछ खुल जाता है
क्यों पूछेगा कुछ भी कोई हमसे ? 
हर कोई बन जाता  है, परम ज्ञानी 
अपना गूगल बाबा विद्द्वान बहुत है

न रुकी वक़्त की गर्दिश, न ज़माना बदला , 
दिन रात  करते खिलवाड़ खुद से 
क्योंकि काम में पैसे का इनाम बहुत है 


बारिश का मौसम, प्यार, रोमांस, और संवेदनाओं का समय होता है,
प्यार पाने वाले, बारिश का मजा लेते हैं,
और जिन्हें प्यार नहीं मिलता, वे अपने आंसू,
बारिश की बूंदों में छुपा के जिया करते हैं


मेरी पलकों के कोनों में भी है ,
फ्रेंचाइजी एक बादलों की  
होती  बरसात वहां से भी , कभी जब  जिंदगी उदास  होती है

दोस्त बोले आँखों में पानी ? रो रहे हो क्या ?
जिसे हम यह कह के टाल जाते हैं के नहीं नहीं
आंखों में शायद कैटरेक्ट उभर आया है

हमारे दिलों में आज इतना खौफ क्यों है बारिश से ,
पहली फुहार में ही खिड़की बंद करने लगते है ?

नहीं चाहिए किसी को कुदरत की कोई भी सौगात
न ही बूंदो से धूलि ताज़ी हवा ,न ही ठंडी ओलों की बरसात

खिड़की खोल के देखना भी गवारा नहीं उन्हें 
जहाँ ,बरसती प्राकृतिक छठा  बेशुमार बहुत है

दिल ने समझाया , मुस्कुराया करो 
लोग देख रहे है , 
बादल जितने भी गरजे आकाश में 
आँखों में यूँ बरसात लाया न करो 


बारिश इसलिए गिरती है क्योंकि बादल उसके वजन को अधिक समय तक नहीं झेल सकते। आंसू इसलिए गिरते हैं क्योंकि दिल और आँखें उससे अधिक दुःख का बोझ नहीं सह पाते।

प्रश्नपत्र है जिंदगी
जस का तस स्वीकार्य ...
कुछ भी वैकल्पिक नहीं
सबका सब अनिवार्य ...

अब क्या बताऊँ आपको , क्या छुपाऊँ आपसे
स्याही का एक दाग है गहरा सा , मेरे दिल में,भी
जो आज तक धुल न सका ,
किसी भी घनघोर ,बूंदो की बरसात में





तभी हमारी आत्मा में शांति की बरसात होती है 
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किसने देखा है बादलों में छुपी बूंदों को और किसने देखा है 

बुराई या "आलोचना"मे"छुपा"हुआ"सत्य".!. 
 और... 🤞
 झूटी "प्रशंसा"मे"छिपा"हुआ"झूठ"..!! 
 अगर.. 👌
 मनुष्य"समझ"जाये तो, 
 सभी"समस्या"अपने आप"सुलझ" जायेगी..!!! तभी हम सबको इन बूंदों में छुपी बरसात समझ आएगी 




बारिश की ये बूंदें, जैसे नभ की पायल,
छम छम करती आईं, धरती की आंचल में समायल।
हरियाली की चादर पे, जब ये बूंदें गिरती हैं,
कुदरत का हर कोना, खुशियों से भरती हैं।

मिट्टी की सोंधी खुशबू, बारिश की ये बूंदें लाई,
जीवन में नई उमंग, नई तरंग जगाई।
पेड़ों की पत्तियों पर, जब ये मोती सा चमके,
मन का कोई कोना, अनछुआ ना रह जाए।

बारिश की ये बूंदें, जैसे संगीत का साज,
टप टप गिरती जब, लगे जीवन में आज।
बूंदों का ये खेल, जीवन की राह में,
प्रेम की भाषा लिखती, बिन कहे, बिन साज।

इन बूंदों में है जीवन, इनमें है जग का प्यार,
बारिश की ये बूंदें, बन जाती हर दिल का हकदार।
आओ मिलकर करें वर्षा का स्वागत,
इन बूंदों के संग, जीवन का हर पल हो खास।


बारिश की बूंदों पे एक कविता:

बारिश की ये छोटी बूंदें, आसमान से आई हैं,
धरती की प्यासी गोद में, खुशियों की बरसात लाई हैं।
इन बूंदों की चपचप, छत पे जब गिरती है,
मन के सारे गमों को, ये धीरे से हरती है।

गलियों में बच्चे नाचे, कागज की नाव चलाई है,
बारिश की इन बूंदों ने, जैसे जीवन में रंग भराई है।
खेतों में हरियाली छाई, किसान की मुस्कान बढ़ाई है,
बारिश की इन बूंदों ने, सबके दिलों को भाई है।

छतरी ताने लोग चलें, बूंदों से बचते बचते,
फिर भी गीले हो जाएँ, बारिश के मजे लेते लेते।
चाय की चुस्कियों के साथ, पकोड़ों की बात निराली है,
बारिश की इन बूंदों की, अपनी ही एक खुशहाली है।

तो आइए, बारिश की इन बूंदों का जश्न मनाएं,
इनके संग अपने दिल की खुशियाँ भी बहाएं।
ये बूंदें जो आसमान से आई हैं,
धरती की प्यासी गोद में, खुशियों की बरसात लाई हैं।बारिश की बूंदें, गिरी झर-झर,
धरती की प्यास बुझाने को तरसती हर बरस।
छत पे टपके, ये बूंदें बन जाती संगीत,
बच्चों की हंसी, फूलों की खुशबू, बन जाती जीवन की रीत।

गलियों में बहती, ये बूंदें लेती अंगड़ाई,
बदल देती हैं मौसम की सारी तन्हाई।
कागज की नाव, बच्चे चलाते बारिश में,
खुशियों की बारात, लेकर आती हर बारिश में।

पेड़ों की पत्तियों पर ठहरी ये बूंदें,
जैसे नगीने चमकते हों रात की चांदनी में।
बारिश की ये बूंदें, जब धरती से मिल जाती हैं,
जीवन की एक नई कहानी रच जाती हैं।

तो आइए, संग बारिश का जश्न मनाएं,
इन बूंदों के साथ अपने दिल की बात गाएं।
बारिश की बूंदें, ना सिर्फ पानी हैं,
ये तो खुशियों की अनमोल कहानी हैं।



बारिश की ये नन्हीं बूंदें, आसमान से आई हैं,
धरती की प्यासी गोद में, खुशियों की बरसात लाई हैं।
इन बूंदों की चपचप, छत पर जब गिरती है,
मन के सारे गमों को, यह धीरे से हर लेती है।

गलियों में बच्चे नाचते, कागज की नाव चलाते हैं,
बारिश की इन बूंदों ने, जीवन में रंग भर दिए हैं।
खेतों में हरियाली छाई, किसान की मुस्कान बढ़ी है,
बारिश की इन बूंदों ने, सबके दिलों को छू लिया है।

छतरी ताने लोग चलते, बूंदों से बचते-बचते,
फिर भी गीले हो जाते, बारिश के मजे लेते-लेते।
चाय की चुस्कियों के साथ, पकोड़ों की बात अनोखी है,
बारिश की इन बूंदों की, अपनी ही एक खुशहाली है।

आइए, बारिश की इन बूंदों का जश्न मनाएं,
इनके संग अपने दिल की खुशियां भी बहाएं।
ये बूंदें जो आसमान से आई हैं,
धरती की प्यासी गोद में, खुशियों की बरसात लाई हैं।
बारिश की बूंदें, गिरती हैं झर-झर,
धरती की प्यास बुझाने, हर वर्ष तरसती हैं।
छत पर टपकती, ये बूंदें संगीत बन जाती हैं,
बच्चों की हंसी, फूलों की खुशबू, जीवन की रीत बन जाती हैं।

गलियों में बहती, ये बूंदें अंगड़ाई लेती हैं,
मौसम की सारी तन्हाई को बदल देती हैं।
कागज की नाव, बच्चे चलाते हैं बारिश में,
खुशियों की बारात, हर बारिश के साथ आती है।

पेड़ों की पत्तियों पर ठहरी ये बूंदें,
रात की चांदनी में नगीने सी चमकती हैं।
बारिश की ये बूंदें, जब धरती से मिलती हैं,
जीवन की एक नई कहानी रचती हैं।

आइए, बारिश के संग जश्न मनाएं,
इन बूंदों के साथ दिल की बात गाएं।
बारिश की बूंदें, सिर्फ पानी नहीं हैं,
ये खुशियों की अनमोल कहानी हैं।




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✳कदम रुक गए जब पहुंचे
      हम रिश्तों के बाज़ार में...

✳बिक रहे थे रिश्ते
       खुले आम व्यापार में..

✳कांपते होठों से मैंने पूँछा, 
      "क्या भाव है भाई
       इन रिश्तों का..?"

✳ दुकानदार बोला:

✳ "कौन सा लोगे..?

✳ बेटे का ..या बाप का..?

✳ बहिन का..या भाई का..?

✳ बोलो कौन सा चाहिए..?

✳ इंसानियत का..या प्रेम का..?

✳ माँ का..या विश्वास का..? 

✳बाबूजी कुछ तो बोलो
      कौन सा चाहिए

✳चुपचाप खड़े हो
       कुछ बोलो तो सही...

✳मैंने डर कर पूँछ लिया
      "दोस्त का.."

✳दुकानदार ने नम आँखों से कहा: 

✳"संसार इसी रिश्ते
      पर ही तो टिका है..."

✳माफ़ करना बाबूजी
      ये रिश्ता बिकाऊ नहीं है..

✳इसका कोई मोल
       नहीं लगा पाओगे,

✳और जिस दिन
       ये बिक जायेगा...

✳उस दिन ये संसार उजड़ जायेगा













































Musafir --- Safar -- # 530 Adabi sangam 27 Th April , 2024

                                           अदबी संगम ----# 530 ---मुसाफिर --- सफर -- 

 





मुसाफिर हूँ यारो , न घर है न कोई ठिकाना , मुझे तो ......... चलते जाना ,है बस ,चलते जाना

ज़िन्दगी यूँ तो ख़ुद भी एक सफ़र ही तो है ----------और हम सब इसके( suffering ) मुसाफिर।


उम्र की राह में पड़ने वाले स्टेशन , कुछ छोटे तो कुछ बड़े जंक्शन , कोई किसी स्टेशन पे उतर जाता है और कोई जंक्शन से दूसरी दिशा को चल पड़ता है , सफर सब कर रहे है , कोई मंजिल पर पहुँच चूका ,और कुछ पहुंचने वाले है , किसी किसी की  मंजिल का ,अभी कोसो दूर तक पता नहीं है


मुसाफिर है सब ,कुछ दिन रुक जाते है मुसाफिर खाने में जिसे हम अपना   घर कहते हैं , जहाँ न जाने कितने ही हमारे दुसरे साथी यात्री भी अलग अलग नाम से सदियों से वहां रहते रहे है, जिसे हम अपना शहर अपना घर समझते हैं असल में वो एक मुसाफिर खाना है ,हम उसके मलिक नहीं सिर्फ कुछ वक्त काटने आये  हैं 
 लगभग 76  साल से मेरी यात्रा में बहुत लोग साथ रहे है इस सफर में ,कुछ साथ है कुछ छोड़ चुके है और कुछ थक कर बैठने लगे है 


खूब बातें करते है , मिलकर , वहीँ खाने पीने का सब प्रबंध है , खाना पीना , हंसना रोना सब कुछ है यहाँ ,और भी नन्हें मुन्हे यात्री आये हमारे जीवन में , यहीं बीते उनके भी कुछ साल , फिर वह भी अपने अगले सफर को निकल पड़े इस स्टेशन को छोड़ कर ,न  ख़त्म होने वाली एक रिले रेस जो पीढ़ी दर पीढ़ी बखूबी चली जा रही है ,नए मुसाफिर बन उन्ही पुरानी राहों से अपनी एक अलग दुनिया ढूंढ़ने को


"हमारा सफर  शुरू हुआ है, -----इसका अंत भी होगा,
कहीं दिल मिलेंगे, कहीं प्यार  तो कहीं तकरार भी 
होगा,
 यह जिंदगी का सफर है --इसी के साथ ही ख़त्म होगा 
 "


यह दुनिया है अगर सैरगाह , मुसाफिर हैं हम भी मुसाफिर हो तुम भी
फिर क्यों यूँ हर जगह अपना एक नया रैन बसेरा बनाते रहते हो ?

धुप बारिश आंधी तूफानों से बचने का एक जरिया मात्र है यह बसेरा
तुम से पहले भी थे और तुम्हार बाद भी रहेगा लोगों का यहाँ डेरा 


मुसाफिरों से मोहब्बत की बात तो करते है सब लेकिन
मुसाफिरों की मोहब्बत का कोई  ऐतबार नहीं करते
कौन कब मिले कब बिछड़ के चल दे ? 

बहुत खटपट रहती है इनके बीच , कभी किसी बात पे कभी बिना बात के 
 मंजिल अभी दूर है , और सफर भी लम्बा है
समझते सभी है। पर अटक जाते है "अपनी औकात पे "
फिर यह समझौता एक्सप्रेस ही आखिरी सहारा है 
फिर से अविरल दौड़ने लगती है जिंदगी की गाडी, 
एक और नए स्टेशन की और

"

मुसाफिर के रास्ते बेशक बदलते रहे:
"मुकद्दर में चलना लिखा था, 
इसलिए हम चलते रहे, 
कोई फूल सा हाथ था एक कांधे पर, 
 जिम्मेवारियां थी दुसरे काँधे पर , 
इसलिए हम सफर करते रहे "
तब तक 
 जब तक हम खुद किसी के कंधे पर नहीं आ टिके।


मुसाफिर ही मुसाफिर है हर तरफ इस शहर में
मगर आखिरी स्टेशन  तक कोई  नहीं मेरा 
साथ जरूर थे मेरी जवानी में ,
अब वो इस शिकस्ताये   ,कश्ती के हमसफ़र नहीं: 
 

 "सफर में हम खूब सफर ( कष्ट ) झेलते रहे जिंदगी भर
दुश्वारिआं फिर भी न ख़त्म हुई , मंजिल पा जाने के बाद भी 


कोई इधर तो कोई उधर भागे जा रहा था 
भीड़ तो बहुत थी , हर तरफ 
लेकिन हर शख्स तनहा ही चले जा रहा था 



यहाँ मंजिल वह आखिरी पड़ाव है जहाँ यात्री मुसाफिर गिरी से थकने लगता है
फिर वह एकांत में बैठ अपने सफर नामे को खुद ही पढ़ने लगता है


क्या "जीवन का सफर "एक"सुखद यात्रा"थी ..!🤞 जिसपे हम तुम सब चले ?
हाँ बहुत कुछ समझ में आया 

"रो"कर"जीने"से बहुत"लंबी"लगेगी.यह यात्रा 

"हंस"कर"जीने"पर कब"पुरी"हो जायेगी,
"पता"भी नही"चलेगा"..!!!👌


अंत में एक आवश्यक सुचना :---

जिंदगी के सफर के मेरे हमसफ़र यात्री गण कृपया ध्यान दे जिस गाडी में  हम आप सवार है वह बहुत पुरानी हो चुकी है,  गॅरंटी वारंटी सब ख़त्म हो चुकी है , और तो और कंपनी ने इसके स्पेयर पार्ट्स बनाने भी बंद कर दिए है ,इसके इंजन ( दिल ) में वर्षों से जमा कचरा इसे कमजोर किये हुए है , इसके इनलेट आउटलेट वाल्व और ईंधन की नालियां भी अधमरी हो चली हैं , ड्रेन क्लीनर्स ( हर तरह की दवाईआं )खा खा के इसे और खोकला किये जा रहे हो 

एक्सेलेटर पे अनायास दबाव न बनाएं , बहुत स्पीड झेल न पाओगे, इसे अनावश्यक घुमाओ दार सड़को पे भी न ले जाएँ , जरा इसके टायरों पे लगे पैबन्दों को तो देखो ,( किसी ने घुटने बदलवाए है किसी ने दिल की वाल्व और नालियां ) फिर से कहीं पंक्चर न हो जाए 

चिकनी सड़को पर इस गाडी को न ले जाएँ ( अपने घर और बाथरूम के चमकीले फर्शों की खूबसूरती पे न जाएँ , फिसलने से इसे  को बचा नहीं पाओगे ,पाऊँ के सस्पेंशन और जोड़ों के टाई रोड एंड्स, उठने बैठने में  कैसे चरमराने लगे हैं , कब खुल के बिखर जाएँ और बाकी का सफर गैराज ( हॉस्पिटल ) में गुजरे या  बीच में ही छूट जाए , किसी को क्या पता ?फिर भी नहीं सम्भले तो क्या पता गाडी ही पलट जाए
और राम का नाम सत्य हो जाए

माफ़ कीजिये यह कटाक्ष था हमारी जिंदगी की गाडी और उसके सफर का किसी को बुरा लगे तो मैं शमा प्रार्थी हूँ ,
जिंदगी की कहानी दुःख और हर्ष की होती है , कटाक्ष में छुपी एक सचाई होती है, कीमत जीत की नहीं संघर्ष की होती है 
सुबह होती है शाम होती है , यूँही जिंदगी तमाम होती है ,
 बस के कंडक्टर सा  सफर बन गया है रोज रोज का , बस में रोज सफर करते हैं   और जाना भी कहीं नहीं , सिर्फ टिकट ही काटते रहते हैं 

पर फिर भी दिल नहीं मानता और कहता है ---चल मुसाफिर उठ ----चलता चल -- तू न चलेगा तो चल देंगी राहें , मंजिल को तरसेंगी तेरी निगाहें -- तुझ को चलना होगा --सफर करना होगा 
 
मंजिल मिलेगी ऐ मुसाफिर , भटक कर ही सही ,   गुमराह तो वो है जो सफर में निकले ही नहीं 


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यात्री:“यात्री हूँ मैं, राहों का आवागम, जीवन की यात्रा में बसा हूँ। जब तक चलता रहूँ, जब तक जीता रहूँ, मैं यात्रा का आनंद लेता रहूँ।”


सफर की राहों में:“सफर की राहों में जब तुम मिल जाओ, तो जीवन की यात्रा खुशियों से भर जाए। राहों की धूप, रातों की चाँदनी, सब कुछ अद्भुत लगे, जब तुम साथ हो।”


यात्रा की राहों में:“यात्रा की राहों में जब तुम साथ हो, तो राहें भी अब अधूरी नहीं लगती। जीवन की सफरी में तुम्हारा साथ, खुशियों से भर देता है हर पल।”


यात्रा के रंग:“यात्रा के रंग बदलते रहते हैं, जैसे जीवन के रंग बदलते रहते हैं। राहों पर जो चलते हैं, वो यात्री, उनकी कहानियाँ भी अनगिनत होती हैं।”


सफर की यादें:“सफर की यादें बिखरी हुई राहों पर, जैसे फूलों की खुशबू बिखरी हुई हो। यात्री की आँखों में छुपी है वो सब, जो वो राहों पर पाया है।”

यात्रा की राहों में:“यात्रा की राहों में जब तन्हा हो, तो आसमान के सितारे तेरे साथ हो। जीवन की यात्रा में जब राहें बदलें, तो खुदा की मोहब्बत तेरे साथ हो।”


सफर की यादें:“सफर की यादें बिखरी हुई राहों पर, जैसे फूलों की खुशबू बिखरी हुई हो। यात्री की आँखों में छुपी है वो सब, जो वो राहों पर पाया है।”


यात्री की आवाज़:“यात्री की आवाज़ राहों में गूंजती है, जैसे बादलों की गरज आसमान में। जीवन की यात्रा में जब तू चलता है, तो धरती भी तेरे कदमों में गुलज़ार हो।”


सफर की राहों में:“सफर की राहों में जब तू चलता है, तो राहें भी तेरे साथ चलती हैं। जीवन की यात्रा में जब तू बदलता है, तो तू खुद भी एक नया सफर बनता है।”


मुसाफिर की आँखों में:“मुसाफिर की आँखों में जब देखो, तो दुनिया की हर राह तेरी हो। जीवन की यात्रा में जब तू बसता है, तो तू ही वो ख़ुशियाँ और ग़मों की कहानी हो।”

























































Wednesday, December 13, 2023

ADABI SANGAM --- First Part compering--- Meet Number 525 _ on 30th September 2023 _ topic------- दिल दौलत दुनिया

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "

Moderation ---दिल दौलत दुनिया



आज  525 वे अदबी संगम के समागम पर मुझे एक बार फिर आपसे रूबरू बात चीत का और आपके दिलों की आवाज को सुनने का अवसर प्रदान हुआ है , एक विचार आप सबके लिए पेश है , इसी के बाद हम अपने अदबी सदस्यों के पहले भागीदार से उनके विचार सुनेंगे 

इस पार्ट में हम पोएट्री और दिए गए टॉपिक पे एक दुसरे के अलग अलग  विचार सुनते है और इसमें मैं एक बात जोड़ दू , यह खाली पांच छे मिनट के टॉपिक की बात नहीं है इसके पीछे आप सब की घंटों की मेहनत है जो आपने अपने दिमाग पे जोर डाल के अपने विचारों को एक टॉपिक या पोएट्री के रूप में पिरोया होता है , लेकिन जाने अनजाने आपको जो इसका फायदा हुआ शायद हम में से बहुतों को इसका पता भी न चला होगा ? 

अपनी समरण  शक्ति या  यादाश्त और तजुर्बे के आधार पर हम जब भी दिमाग पर जोर डालते है तब दिमाग के बेकार पड़े कोशिकाओं यानी के सेल्स और उसके कनेक्शंस जिसे हम न्यूरॉन्स कहते है , हरकत में आने लगते है , दिमाग के उस हिस्से में खून दौड़ने लगता है , आज मेडिकल साइंस ने भी इस क्रिया को दिमाग की संजीवनी माना है जिसमे हमारे शरीर में आने वाली बीमारियां जैसे पार्किंसंस ( शरीर की नसों का कमजोर होकर कांपने लगना , एल्ज़िमर ( भूलने की बिमारी ) 

लिखने या टाइप करने में हाथों का दिमाग से कनेक्शन जुड़े रहना , आँखों का एकाग्र होकर अपनी लेखनी या टाइपिंग पे जहां नजर रखना ताकि कोई गलती न हो गई हो , फिर संगीत और गीत का समयोग सोने पे सोहागा , लोगो के आगे बोलना , बोलना भी दिमाग के एक हिस्से को बहुत बड़ा व्ययाम है ,आपके आत्म बल को बढाता है 

 इस सब का हम जैसी उम्र या हमसे बड़े  लोगों के लिए एक वरदान साबित हुआ है , इसके लिए अदबी संगम का इसमें बहुत सहयोग मिल रहा है ,लोगो की सोई प्रितभाये तो जाग ही रही हैं और साथ साथ दिल दिमाग को भी बहुत फायदा हो रहा  है, और आप सब जब भी अदबी संगम से किसी भी वजह से गैर हाज़िर हों तो इन फायदों को जरूर याद रख लेना 

जब जब भी अदबी संगम का कहीं भी किसी रूप में आगाज़ होगा  , तब तब इस दुनिया के सवभाव में भी बदलाव होगा 
कहने सुनने को तो यह सब टाइम पास है , पर दोस्तों टाइम तो तब पास होगा न जब आपके पास टाइम होगा ? शरीर ही साथ छोड़ने लगे तो वक्त जितना भी होगा पास किस काम का  होगा ?

अब क्या घडी देखते हो जिंदगी के इस मुकाम पे आके ? खो जाओ खुद में , लिखते रहो , बोलते रहो , गाते रहो सुनते रहो और हँसते रहो , हंसाते रहो ,जो वक्त हमारा है वोह अब है अभी है , इससे ज्यादा  ,और खास क्या होगा ?
इसी के साथ अब हम आज के विषय पर अपने भागीदार सदस्यों को एक एक करके बुलाएंगे 


(१)     डॉ संगीता सेठी 

नारी का महत्व सबसे अधिक सनातन में विभिन प्रकार की देविओं द्वारा स्थापित किया गया है ,आज फिर से नारी पहली कतार में आ खड़ी हुई है , इसी  शक्ति का सबसे पहले अपने इस पार्ट में अभिवादन करेंगे और इस पार्ट की शुरुआत करेंगे उस नारी से जो जीती जागती मिसाल है नारी शक्ति की , हर शारीरिक और मानसिक रूकावट को पार करते हुए और अपने प्रोफेशन को बड़ी लगन और त्याग से जी रही है , अपने परिवार के साथ साथ बहुत से लोगों की पीड़ा को भी कम कर रही है अपने ज्ञान की शक्ति से आइये उनका अभिवादन करते हुए उनके आज के विचार सुने।  जी हाँ मैं डॉ संगीता सेठी का ही नाम ले रहा हूँ 


(२) विनीता जी - 
      
     स्त्रियों की परिभाषा से इत्र कुछ महिलायें करती सब कुछ हैं पर अपने आप में खोई रहती है अपने काम से काम रखना भी अपने आप में एक अलंकार है।  कभी कभी उन्हें सुनने में हमें बहुत इंतज़ार भी रहता है , इसी कड़ी में मुझे विनीता जी का नाम याद आ रहा है , विनीता जी से सप्रेम अनुरोध है के अपने विचारों से हमें अभिभूत करें 


(३) अन्नू जी - 

जीवन में उस पड़ाव पे जब एक स्त्री पर जिम्मेवारी सबसे अधिक होती है , पूरे परिवार की नीव उस के कंधो पे टिकी होती है , बच्चों की परवरिश के साथ साथ उन्हें अच्छी शिक्षा संस्कार देना , काम और कर्तव्य में सामजस्य बनाते हुए जिंदगी को अकेले अपने हौसले से जीने का दृढ़ संकल्प प्रस्तुत करना , और इसके साथ साथ एक अच्छी पोएट्री भी लिख लेना , यह खासियत हमारी अन्नू जी में कूट के भरी हुई है , अन्नू जी आप आये और हमें अपनी कोई नई कविता सुनाएँ 


( ४)      रजनी 
    
    जब जब त्याग कर्मठता , जुझारू शख्सियत का जिक्र आएगा उनका भी उस स्त्री शक्ति में ऊँचा नाम आएगा , कैसा लगता है जब आपका अपने वतन से सालों पुराना रिश्ता उस देश की अव्यवस्था , मार काट , भय के साये में अपनी जवानी के कीमती साल , खानदानी जमा जमाया कारोबार आप को छोड़ना पड़े और अच्छे बुरे सपनो की तरह उन्हें भूल कर फिर से जिंदगी से लड़ना और हर तरह की कश्मकश को जीतते हुए खुद को फिर से स्थापित कर लेना वो भी अपने मुल्क से हज़ारो मील दूर अपनी लगन और हिम्मत से तो उसमे रजनी जी खरी उतरती हैं , रजनी जी प्लीज आप आईये और अपनी लेखनी हमें सुनाईये 

 (5 )    मुकेश सेठी :-

     कहते है हर कामयाब परिवार में त्याग , प्यार , लगन ,दूसरों को इज़्ज़त देना , सबसे ऊपर माँ बाप का पूरा ध्यान और साथ देना ही उस परिवार की मजबूत नीवं होती है , उतार चढाव आते रहते है , लेकिन स्त्री पुरुष की सांझी गाडी अगर कभी स्मूथ और कभी धचकोलों के बावजूद पटरी पे चले जा रही है तो वो यात्रा बड़ी सुखद और याद गार रहती है , उस गाडी में पहिया चाहे आगे वाला हो या पीछे वाला , गाड़ी को धकेलने में दोनों का बराबर का योगदान होता है , ड्राइवर अपना काम , गार्ड अपना और इंजन अपना काम करता है , यात्री तो सिर्फ यात्रा करते है और अपने अपने स्टॉप पर उतर जाते है , पर  गाडी तो  मंजिल पे पहुँच की ही रूकती है , यह मेरे अनुभव और अपने  विचार हैं ,  कोई इसे अन्यथा न ले ,लेकिन ऐसा कहते हुए मुझे मुकेश सेठी जी की प्रेरणा आ रही है इसी लिए मुकेश जी आप प्लीज आएं और अपने विचार सबको सुनाएँ 

( 6 )      रानी नगेंदर 
       
स्त्री शक्ति से परिपूर्ण वीरांगनाओं की फ़ेहरिस्त कभी ख़त्म नहीं होती , अपने गृहस्थ और पारिवारिक कर्तव्य को निभाते हुए उस वक्त भी लोगों की सेवा करना जब इंसान इंसान से मिलते हुए डरने लगा था , सब लोग मुहं पे  मास्क लगाए ,या यूँ कहिये मुहं छुपाये घर में दुबके रहे ,  जी हाँ ऐसा ही कुछ खौफनाक मंजर था कोरोना काल में ,तब भी अगर कुछ लोगो ने अपना प्रोफेशनल कर्तव्य और मजबूरी दोनों को बखूबी निभाया साथ में अपने लिखने पढ़ने और अपनी कहानियों को दूसरो को किताब के रूप में प्रस्तुत करने की लगन दिखाई , ऐसी एक स्त्री शक्ति हमने रानी नगेंदर जी में भी देखि है , रानी नगेंदर जी को इस मंच पे सादर आमत्रण है आप आईये और अपनी किसी नई रचना से हमें सराबोर करें 

   
(7 )   डॉ चंद्रा दत्ता ---
      
      ज्ञान अर्जित करना और फिर उसे आगे बाँटना एक बहुत टाइम consuming कार्यकर्म होता है , एक टीचर गुरु को अपनी निजी समस्याओं से हमेशा ऊपर उठ कर अपना कर्तव् निभाना होता है , बहुत राजनीती ,टकराव , दबाव और कभी कभी न ख़त्म होने वाली पढाई और आत्म चिंतन और सबसे ऊपर बच्चों के भविष्य का निर्माण एक अच्छी शिक्षा देकर , इन्ही लोगों के कन्धों पे होता है , बिना इनकी लगन के आप समाज को दिशा नहीं प्रदान कर सकते , हर उस स्त्री शक्ति को सलाम जिन्होंने इस साक्षरता आंदोलन को बढ़ चढ़ कर अपना प्रोफेशन बनाया , और पुरषों से भी आगे जाकर न केवल शिक्षा बल्कि हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया , आज जिन्हे मैं आमत्रित करने जा रहा हूँ उनकी लेखनी में वो सब झलक दिखती है जो उन्होंने अपने पूरे जीवन में ग्रहण किया और फिर दूसरो को अपना ज्ञान बांटा , जी बिलकुल डॉ चंद्रा दत्ता जी भी कुछ ऐसी ही शख्सियत की मालकिन है , आइये आज वह हमारे लिए क्या लाइ है उन्ही के शब्दों में सुनते है , डॉ चंद्रा जी 
          



(8 )डॉ सेठी -
अगर इस पूरी दुनिया को एक सागर मान ले तो इस सागर में कई जहाज अगर चलते है तो उसके पीछे भी एक टीम वर्क और एक शीट एंकर का किरदार बहुत दमदार होता है उसके बिना कुछ भी संभव नहीं , ऐसे ही अदबी संगम हमारा उन  लोगों का एक छोटा सा जहाज़ है जिसे पिछले ४५ सालों से अधिक अगर कोई दिशा और दर्शन दे रहा है तो ही तो यह जहाज़ निर्बाध आगे आगे बढ़ता जा रहा है , इसमें कप्तान और उनकी पूरी टीम इसे हमेशा एक उत्सव की तरह हर महीने निसंकोच चलाती जा रही है , जहाज़ इधर उधर न भटक जाए उसे एक लाइट हाउस की तरह दिशा निर्देश देना और शीट एंकर की तरह सबको अपने अपने काम में लगे हुए देखना और उनका हौसला बढ़ाना , यह काम हमारे पूजनीय डॉ सेठी बड़ी लगन से कर्तव्य समझ किये जा रहे है और हम जैसे कितने ही यात्री उनकी देख रेख में अपने जीवन के अध्भुत अनुभव सबसे मिलकर आदान प्रदान किये जा रहे है , हमेशा की तरह डॉ साहिब सबसे आखिर में अपने अनुभवों से हम सबको ज्ञान प्रदान करते है और अपने जीवन के अनमोल पल हमसे साझा करते है , आदर सहित डॉ सेठी जी को आमंत्रण है के वह भी आज के अपने विचार साझा करें 






     ANNU .K
1- Mohinder and Meena gulati -------------------
2-sushma loomba -----------------------------------
3- saroj & subhash Arora --------------------------
4 chandra dutta & sanjay -------------------------- shruti
5-Rajni &Ashok --------------------------------------
6-Rupa &Ashok Awal --------------------------------
7- Parvesh Chopra & Geeta Chopra ----------------

8-Mukesh & Sangeeta ---------------------------------
9- Dr. Sethi -----------------------------------------------
10- Vinita ji & Vijay -----------------------------------
11-Usha & Vinod Kapoor------------------------------
12- Subhash Arora
13-Chetan Sodhi
14 - Usha sethi -- Prerna sethi
 15 -Rita Kohli
  16 -Rani Nagender