Monday, April 29, 2024

30 -3-2024 ------ #529 ***** ADABI SNGAM MEET NO. 529 TOPIC "BAARISH KI BOONDEY"--HOSTED BY DR SETHI FAMILY IN CONNECTICUT



ADABI SNGAM MEET NO. 529
TOPIC  "BAARISH KI BOONDEY"

30 -3-2024 ------ #529   ***** ADABI SNGAM MEET NO. 529 TOPIC  "BAARISH KI BOONDEY"--HOSTED BY DR SETHI FAMILY IN CONNECTICUT 



सूरज से छिटका धुल का एक गुबार ही तो था
तीव्र गति से घूमता बेलगाम लावा सोर मंडल में
कैसे कोई बुझा कर , करता शांत इसे
 कैसे 
फिर यह उड़ती धुल , बन जाती धरा ? अगर इन बूंदों की बरसात न होती

धूल भौतिक, रासायनिक और जैविक कारकों के प्रभाव से ठोस मिट्टी में परिवर्तित होती है। उन सबके लिए दरकार  होती है पानी की जो इन धूल के छोटे-छोटे कणों को बाँध कर मिटटी का रूप दे सके , जिसे अपक्षय कहते हैं। इस प्रक्रिया के द्वारा धूल धीरे-धीरे मिट्टी में बदल जाती है।


बारिश  में निहित है  , सार जीवन का 
यह  पानी नहीं , आधार है जीवन का 


कैसे मिटती भूख और प्यास दुनिया की  
न  होती  ,कोई बिसात हमारी 
अगर इन बूंदों की बरसात न होती

खेत में गिरती एक बूंद, अनाज का दाना बने,
गंगा में मिलती हर एक बूंद, गंगाजल बने 

नदियों में गिरे तो यह, विशाल धारा बने ,
सागर में गिरे बूंद बूंद, तो महासागर  बने 

 धरती हरियाली से ,फिर कैसे सजती,  
अगर बूंदों की यह सौगात न बरसती 


सीप में गिरे एक बूँद , तो मोती बन जाए
आँखों से टपकी बूँद   ,  आंसू कहलाये 
 
हलक में जो अटकी हो जान 
यही एक बूँद  ,मोक्ष बन जाए 

छाता लगा के डगमगाते  क्यों हो 
बारिश से खुद को बचाते  क्यों हो 

भीगने से तो शायद बच भी जाओ , 
डूबने से बच न पाओगे 
डुबाने वाला पानी,सिर से नहीं
पैरों की तरफ से आएगा ,

फायदा उठाना सीखिए हज़ूर
नायाब बूंदो को संजो लीजिये जरूर 
लौटा दीजिये वापिस  प्यासी धरती माँ को
सूद समेत  पुराना ,कर्ज समझ कर 

तुम्हारी नस्लों के ही काम आएंगे यह ख़ज़ाने , 
 गर्मी से प्यासी धरती ,न दे पाएगी तुम्हे दाने 
जब  बूंदो की बरसात न होगी


आते है पानी लेकर घनघोर बादल निरंतर
धरती पुत्र किसानो की ख़ुशी के लिए ,पर
धो देते हैं सालों से जमी धुल और गन्दगी ,

हर मकान हर दुकान हर सड़क और गली गली
कैसा आलम दीखता इस धरती पर ?
अगर इन बूंदों की बरसात न होती 

 
 बारिश की बूंदे हर गन्दगी को तो बहा ले गई ईश्वर 
कुछ बूंदे तेरी कृपा से इंसानो के दिलो पर भी बरस जाती
बहुत छल कपट का मैल जमा है ,वोह भी धुल जाती 

 कितनी 
 व्यथा  झलकती है      बारिश की बूंदों में , ,
 सहते सहते जिसे हम ,अक्सर खुद भी भीग जाते हैं।


मौसम-ए-बारिश में कुछ कशिश सी  होती है,
अकेले होते ही   , 
 गुजरे ज़माने का 
, हर पल ले कर कुछ यादें ,लौटने लगता है 
कुछ  पलों में  ख़ुशी , कुछ में टीस होती है 


मेरे शहर में भी थी , इक कच्ची सी पगडंडी अपनी।
बारिश जितनी भी हो जाए , मेरे घर का पता वही बताती थी

शहर की बारिशों का तो आलम ही निराला है
एक बारिश  हुई ,सड़कों पर लग जाता जाम बहुत है।।
 
थोड़े मेघा बरसे , सड़को पे बाढ़ का आयाम बहुत है
इंसानियत से ज्यादा ऊंचाई है यहाँ मकानों की
तभी तो जिंदगी की भाग दौड़ में मर जाना
यहाँ आम बहुत है


कौन सुनेगा तुम्हारी बरसात और पतझड़ की कहानी
फुर्र हो गई फुर्सत अब तो। ,सबके पास काम बहुत है।।

नहीं जरूरत उन्हें बुजर्गो  के ज्ञान की अब।,हर बच्चा बुद्धिमान बहुत है।।
उजड़ गए सब बाग बगीचे।नहीं संजोता कोई ,बूंदों की बारिश को
बालकनी में रखे दो गमलों से ही , उनकी शान बहुत है।।

मट्ठा, दही नहीं खाते हैं।कहते हैं बारिश हुई है ,ज़ुकाम बहुत है।।
खाते है जब गर्म  चाय और पकोड़े ,  एक पेग रम का !तब कहीं। 
कहते हैं ,आह ----अब आराम बहुत है।।


हाथ में फ़ोन है , और फोनों पर व्हाट्सअप के पैगाम बहुत है।।
किसे पढ़े? किसे मिटायें ,
और किसे छोड़ें ,  किसे अपनाएँ ? ?
मुश्किल बड़ा यह काम बहुत है

आलस का आलम तो देखो
आदी हैं ए.सी. के इतने। 
मानसून की बारिश को घूमस कहते है ( humidity )
बाहर जाने को कहो तो कहते बाहर घाम बहुत है।।( धुप )

नहीं खेलते बच्चे भी अब इस बारिश में 
झुके-थके  हैं स्कूली बच्चे।बस्तों में सामान बहुत है।।
सुविधाओं का ढेर लगा है हर घर में ।
पर बचपन परेशान बहुत है।।

 वक्त बदला  , इक पल में सब कुछ खुल जाता है
क्यों पूछेगा कुछ भी कोई हमसे ? 
हर कोई बन जाता  है, परम ज्ञानी 
अपना गूगल बाबा विद्द्वान बहुत है

न रुकी वक़्त की गर्दिश, न ज़माना बदला , 
दिन रात  करते खिलवाड़ खुद से 
क्योंकि काम में पैसे का इनाम बहुत है 


बारिश का मौसम, प्यार, रोमांस, और संवेदनाओं का समय होता है,
प्यार पाने वाले, बारिश का मजा लेते हैं,
और जिन्हें प्यार नहीं मिलता, वे अपने आंसू,
बारिश की बूंदों में छुपा के जिया करते हैं


मेरी पलकों के कोनों में भी है ,
फ्रेंचाइजी एक बादलों की  
होती  बरसात वहां से भी , कभी जब  जिंदगी उदास  होती है

दोस्त बोले आँखों में पानी ? रो रहे हो क्या ?
जिसे हम यह कह के टाल जाते हैं के नहीं नहीं
आंखों में शायद कैटरेक्ट उभर आया है

हमारे दिलों में आज इतना खौफ क्यों है बारिश से ,
पहली फुहार में ही खिड़की बंद करने लगते है ?

नहीं चाहिए किसी को कुदरत की कोई भी सौगात
न ही बूंदो से धूलि ताज़ी हवा ,न ही ठंडी ओलों की बरसात

खिड़की खोल के देखना भी गवारा नहीं उन्हें 
जहाँ ,बरसती प्राकृतिक छठा  बेशुमार बहुत है

दिल ने समझाया , मुस्कुराया करो 
लोग देख रहे है , 
बादल जितने भी गरजे आकाश में 
आँखों में यूँ बरसात लाया न करो 


बारिश इसलिए गिरती है क्योंकि बादल उसके वजन को अधिक समय तक नहीं झेल सकते। आंसू इसलिए गिरते हैं क्योंकि दिल और आँखें उससे अधिक दुःख का बोझ नहीं सह पाते।

प्रश्नपत्र है जिंदगी
जस का तस स्वीकार्य ...
कुछ भी वैकल्पिक नहीं
सबका सब अनिवार्य ...

अब क्या बताऊँ आपको , क्या छुपाऊँ आपसे
स्याही का एक दाग है गहरा सा , मेरे दिल में,भी
जो आज तक धुल न सका ,
किसी भी घनघोर ,बूंदो की बरसात में





तभी हमारी आत्मा में शांति की बरसात होती है 
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किसने देखा है बादलों में छुपी बूंदों को और किसने देखा है 

बुराई या "आलोचना"मे"छुपा"हुआ"सत्य".!. 
 और... 🤞
 झूटी "प्रशंसा"मे"छिपा"हुआ"झूठ"..!! 
 अगर.. 👌
 मनुष्य"समझ"जाये तो, 
 सभी"समस्या"अपने आप"सुलझ" जायेगी..!!! तभी हम सबको इन बूंदों में छुपी बरसात समझ आएगी 




बारिश की ये बूंदें, जैसे नभ की पायल,
छम छम करती आईं, धरती की आंचल में समायल।
हरियाली की चादर पे, जब ये बूंदें गिरती हैं,
कुदरत का हर कोना, खुशियों से भरती हैं।

मिट्टी की सोंधी खुशबू, बारिश की ये बूंदें लाई,
जीवन में नई उमंग, नई तरंग जगाई।
पेड़ों की पत्तियों पर, जब ये मोती सा चमके,
मन का कोई कोना, अनछुआ ना रह जाए।

बारिश की ये बूंदें, जैसे संगीत का साज,
टप टप गिरती जब, लगे जीवन में आज।
बूंदों का ये खेल, जीवन की राह में,
प्रेम की भाषा लिखती, बिन कहे, बिन साज।

इन बूंदों में है जीवन, इनमें है जग का प्यार,
बारिश की ये बूंदें, बन जाती हर दिल का हकदार।
आओ मिलकर करें वर्षा का स्वागत,
इन बूंदों के संग, जीवन का हर पल हो खास।


बारिश की बूंदों पे एक कविता:

बारिश की ये छोटी बूंदें, आसमान से आई हैं,
धरती की प्यासी गोद में, खुशियों की बरसात लाई हैं।
इन बूंदों की चपचप, छत पे जब गिरती है,
मन के सारे गमों को, ये धीरे से हरती है।

गलियों में बच्चे नाचे, कागज की नाव चलाई है,
बारिश की इन बूंदों ने, जैसे जीवन में रंग भराई है।
खेतों में हरियाली छाई, किसान की मुस्कान बढ़ाई है,
बारिश की इन बूंदों ने, सबके दिलों को भाई है।

छतरी ताने लोग चलें, बूंदों से बचते बचते,
फिर भी गीले हो जाएँ, बारिश के मजे लेते लेते।
चाय की चुस्कियों के साथ, पकोड़ों की बात निराली है,
बारिश की इन बूंदों की, अपनी ही एक खुशहाली है।

तो आइए, बारिश की इन बूंदों का जश्न मनाएं,
इनके संग अपने दिल की खुशियाँ भी बहाएं।
ये बूंदें जो आसमान से आई हैं,
धरती की प्यासी गोद में, खुशियों की बरसात लाई हैं।बारिश की बूंदें, गिरी झर-झर,
धरती की प्यास बुझाने को तरसती हर बरस।
छत पे टपके, ये बूंदें बन जाती संगीत,
बच्चों की हंसी, फूलों की खुशबू, बन जाती जीवन की रीत।

गलियों में बहती, ये बूंदें लेती अंगड़ाई,
बदल देती हैं मौसम की सारी तन्हाई।
कागज की नाव, बच्चे चलाते बारिश में,
खुशियों की बारात, लेकर आती हर बारिश में।

पेड़ों की पत्तियों पर ठहरी ये बूंदें,
जैसे नगीने चमकते हों रात की चांदनी में।
बारिश की ये बूंदें, जब धरती से मिल जाती हैं,
जीवन की एक नई कहानी रच जाती हैं।

तो आइए, संग बारिश का जश्न मनाएं,
इन बूंदों के साथ अपने दिल की बात गाएं।
बारिश की बूंदें, ना सिर्फ पानी हैं,
ये तो खुशियों की अनमोल कहानी हैं।



बारिश की ये नन्हीं बूंदें, आसमान से आई हैं,
धरती की प्यासी गोद में, खुशियों की बरसात लाई हैं।
इन बूंदों की चपचप, छत पर जब गिरती है,
मन के सारे गमों को, यह धीरे से हर लेती है।

गलियों में बच्चे नाचते, कागज की नाव चलाते हैं,
बारिश की इन बूंदों ने, जीवन में रंग भर दिए हैं।
खेतों में हरियाली छाई, किसान की मुस्कान बढ़ी है,
बारिश की इन बूंदों ने, सबके दिलों को छू लिया है।

छतरी ताने लोग चलते, बूंदों से बचते-बचते,
फिर भी गीले हो जाते, बारिश के मजे लेते-लेते।
चाय की चुस्कियों के साथ, पकोड़ों की बात अनोखी है,
बारिश की इन बूंदों की, अपनी ही एक खुशहाली है।

आइए, बारिश की इन बूंदों का जश्न मनाएं,
इनके संग अपने दिल की खुशियां भी बहाएं।
ये बूंदें जो आसमान से आई हैं,
धरती की प्यासी गोद में, खुशियों की बरसात लाई हैं।
बारिश की बूंदें, गिरती हैं झर-झर,
धरती की प्यास बुझाने, हर वर्ष तरसती हैं।
छत पर टपकती, ये बूंदें संगीत बन जाती हैं,
बच्चों की हंसी, फूलों की खुशबू, जीवन की रीत बन जाती हैं।

गलियों में बहती, ये बूंदें अंगड़ाई लेती हैं,
मौसम की सारी तन्हाई को बदल देती हैं।
कागज की नाव, बच्चे चलाते हैं बारिश में,
खुशियों की बारात, हर बारिश के साथ आती है।

पेड़ों की पत्तियों पर ठहरी ये बूंदें,
रात की चांदनी में नगीने सी चमकती हैं।
बारिश की ये बूंदें, जब धरती से मिलती हैं,
जीवन की एक नई कहानी रचती हैं।

आइए, बारिश के संग जश्न मनाएं,
इन बूंदों के साथ दिल की बात गाएं।
बारिश की बूंदें, सिर्फ पानी नहीं हैं,
ये खुशियों की अनमोल कहानी हैं।




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✳कदम रुक गए जब पहुंचे
      हम रिश्तों के बाज़ार में...

✳बिक रहे थे रिश्ते
       खुले आम व्यापार में..

✳कांपते होठों से मैंने पूँछा, 
      "क्या भाव है भाई
       इन रिश्तों का..?"

✳ दुकानदार बोला:

✳ "कौन सा लोगे..?

✳ बेटे का ..या बाप का..?

✳ बहिन का..या भाई का..?

✳ बोलो कौन सा चाहिए..?

✳ इंसानियत का..या प्रेम का..?

✳ माँ का..या विश्वास का..? 

✳बाबूजी कुछ तो बोलो
      कौन सा चाहिए

✳चुपचाप खड़े हो
       कुछ बोलो तो सही...

✳मैंने डर कर पूँछ लिया
      "दोस्त का.."

✳दुकानदार ने नम आँखों से कहा: 

✳"संसार इसी रिश्ते
      पर ही तो टिका है..."

✳माफ़ करना बाबूजी
      ये रिश्ता बिकाऊ नहीं है..

✳इसका कोई मोल
       नहीं लगा पाओगे,

✳और जिस दिन
       ये बिक जायेगा...

✳उस दिन ये संसार उजड़ जायेगा













































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