Monday, April 29, 2024

Musafir --- Safar -- # 530 Adabi sangam 27 Th April , 2024

                                           अदबी संगम ----# 530 ---मुसाफिर --- सफर -- 

 





मुसाफिर हूँ यारो , न घर है न कोई ठिकाना , मुझे तो ......... चलते जाना ,है बस ,चलते जाना

ज़िन्दगी यूँ तो ख़ुद भी एक सफ़र ही तो है ----------और हम सब इसके( suffering ) मुसाफिर।


उम्र की राह में पड़ने वाले स्टेशन , कुछ छोटे तो कुछ बड़े जंक्शन , कोई किसी स्टेशन पे उतर जाता है और कोई जंक्शन से दूसरी दिशा को चल पड़ता है , सफर सब कर रहे है , कोई मंजिल पर पहुँच चूका ,और कुछ पहुंचने वाले है , किसी किसी की  मंजिल का ,अभी कोसो दूर तक पता नहीं है


मुसाफिर है सब ,कुछ दिन रुक जाते है मुसाफिर खाने में जिसे हम अपना   घर कहते हैं , जहाँ न जाने कितने ही हमारे दुसरे साथी यात्री भी अलग अलग नाम से सदियों से वहां रहते रहे है, जिसे हम अपना शहर अपना घर समझते हैं असल में वो एक मुसाफिर खाना है ,हम उसके मलिक नहीं सिर्फ कुछ वक्त काटने आये  हैं 
 लगभग 76  साल से मेरी यात्रा में बहुत लोग साथ रहे है इस सफर में ,कुछ साथ है कुछ छोड़ चुके है और कुछ थक कर बैठने लगे है 


खूब बातें करते है , मिलकर , वहीँ खाने पीने का सब प्रबंध है , खाना पीना , हंसना रोना सब कुछ है यहाँ ,और भी नन्हें मुन्हे यात्री आये हमारे जीवन में , यहीं बीते उनके भी कुछ साल , फिर वह भी अपने अगले सफर को निकल पड़े इस स्टेशन को छोड़ कर ,न  ख़त्म होने वाली एक रिले रेस जो पीढ़ी दर पीढ़ी बखूबी चली जा रही है ,नए मुसाफिर बन उन्ही पुरानी राहों से अपनी एक अलग दुनिया ढूंढ़ने को


"हमारा सफर  शुरू हुआ है, -----इसका अंत भी होगा,
कहीं दिल मिलेंगे, कहीं प्यार  तो कहीं तकरार भी 
होगा,
 यह जिंदगी का सफर है --इसी के साथ ही ख़त्म होगा 
 "


यह दुनिया है अगर सैरगाह , मुसाफिर हैं हम भी मुसाफिर हो तुम भी
फिर क्यों यूँ हर जगह अपना एक नया रैन बसेरा बनाते रहते हो ?

धुप बारिश आंधी तूफानों से बचने का एक जरिया मात्र है यह बसेरा
तुम से पहले भी थे और तुम्हार बाद भी रहेगा लोगों का यहाँ डेरा 


मुसाफिरों से मोहब्बत की बात तो करते है सब लेकिन
मुसाफिरों की मोहब्बत का कोई  ऐतबार नहीं करते
कौन कब मिले कब बिछड़ के चल दे ? 

बहुत खटपट रहती है इनके बीच , कभी किसी बात पे कभी बिना बात के 
 मंजिल अभी दूर है , और सफर भी लम्बा है
समझते सभी है। पर अटक जाते है "अपनी औकात पे "
फिर यह समझौता एक्सप्रेस ही आखिरी सहारा है 
फिर से अविरल दौड़ने लगती है जिंदगी की गाडी, 
एक और नए स्टेशन की और

"

मुसाफिर के रास्ते बेशक बदलते रहे:
"मुकद्दर में चलना लिखा था, 
इसलिए हम चलते रहे, 
कोई फूल सा हाथ था एक कांधे पर, 
 जिम्मेवारियां थी दुसरे काँधे पर , 
इसलिए हम सफर करते रहे "
तब तक 
 जब तक हम खुद किसी के कंधे पर नहीं आ टिके।


मुसाफिर ही मुसाफिर है हर तरफ इस शहर में
मगर आखिरी स्टेशन  तक कोई  नहीं मेरा 
साथ जरूर थे मेरी जवानी में ,
अब वो इस शिकस्ताये   ,कश्ती के हमसफ़र नहीं: 
 

 "सफर में हम खूब सफर ( कष्ट ) झेलते रहे जिंदगी भर
दुश्वारिआं फिर भी न ख़त्म हुई , मंजिल पा जाने के बाद भी 


कोई इधर तो कोई उधर भागे जा रहा था 
भीड़ तो बहुत थी , हर तरफ 
लेकिन हर शख्स तनहा ही चले जा रहा था 



यहाँ मंजिल वह आखिरी पड़ाव है जहाँ यात्री मुसाफिर गिरी से थकने लगता है
फिर वह एकांत में बैठ अपने सफर नामे को खुद ही पढ़ने लगता है


क्या "जीवन का सफर "एक"सुखद यात्रा"थी ..!🤞 जिसपे हम तुम सब चले ?
हाँ बहुत कुछ समझ में आया 

"रो"कर"जीने"से बहुत"लंबी"लगेगी.यह यात्रा 

"हंस"कर"जीने"पर कब"पुरी"हो जायेगी,
"पता"भी नही"चलेगा"..!!!👌


अंत में एक आवश्यक सुचना :---

जिंदगी के सफर के मेरे हमसफ़र यात्री गण कृपया ध्यान दे जिस गाडी में  हम आप सवार है वह बहुत पुरानी हो चुकी है,  गॅरंटी वारंटी सब ख़त्म हो चुकी है , और तो और कंपनी ने इसके स्पेयर पार्ट्स बनाने भी बंद कर दिए है ,इसके इंजन ( दिल ) में वर्षों से जमा कचरा इसे कमजोर किये हुए है , इसके इनलेट आउटलेट वाल्व और ईंधन की नालियां भी अधमरी हो चली हैं , ड्रेन क्लीनर्स ( हर तरह की दवाईआं )खा खा के इसे और खोकला किये जा रहे हो 

एक्सेलेटर पे अनायास दबाव न बनाएं , बहुत स्पीड झेल न पाओगे, इसे अनावश्यक घुमाओ दार सड़को पे भी न ले जाएँ , जरा इसके टायरों पे लगे पैबन्दों को तो देखो ,( किसी ने घुटने बदलवाए है किसी ने दिल की वाल्व और नालियां ) फिर से कहीं पंक्चर न हो जाए 

चिकनी सड़को पर इस गाडी को न ले जाएँ ( अपने घर और बाथरूम के चमकीले फर्शों की खूबसूरती पे न जाएँ , फिसलने से इसे  को बचा नहीं पाओगे ,पाऊँ के सस्पेंशन और जोड़ों के टाई रोड एंड्स, उठने बैठने में  कैसे चरमराने लगे हैं , कब खुल के बिखर जाएँ और बाकी का सफर गैराज ( हॉस्पिटल ) में गुजरे या  बीच में ही छूट जाए , किसी को क्या पता ?फिर भी नहीं सम्भले तो क्या पता गाडी ही पलट जाए
और राम का नाम सत्य हो जाए

माफ़ कीजिये यह कटाक्ष था हमारी जिंदगी की गाडी और उसके सफर का किसी को बुरा लगे तो मैं शमा प्रार्थी हूँ ,
जिंदगी की कहानी दुःख और हर्ष की होती है , कटाक्ष में छुपी एक सचाई होती है, कीमत जीत की नहीं संघर्ष की होती है 
सुबह होती है शाम होती है , यूँही जिंदगी तमाम होती है ,
 बस के कंडक्टर सा  सफर बन गया है रोज रोज का , बस में रोज सफर करते हैं   और जाना भी कहीं नहीं , सिर्फ टिकट ही काटते रहते हैं 

पर फिर भी दिल नहीं मानता और कहता है ---चल मुसाफिर उठ ----चलता चल -- तू न चलेगा तो चल देंगी राहें , मंजिल को तरसेंगी तेरी निगाहें -- तुझ को चलना होगा --सफर करना होगा 
 
मंजिल मिलेगी ऐ मुसाफिर , भटक कर ही सही ,   गुमराह तो वो है जो सफर में निकले ही नहीं 


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यात्री:“यात्री हूँ मैं, राहों का आवागम, जीवन की यात्रा में बसा हूँ। जब तक चलता रहूँ, जब तक जीता रहूँ, मैं यात्रा का आनंद लेता रहूँ।”


सफर की राहों में:“सफर की राहों में जब तुम मिल जाओ, तो जीवन की यात्रा खुशियों से भर जाए। राहों की धूप, रातों की चाँदनी, सब कुछ अद्भुत लगे, जब तुम साथ हो।”


यात्रा की राहों में:“यात्रा की राहों में जब तुम साथ हो, तो राहें भी अब अधूरी नहीं लगती। जीवन की सफरी में तुम्हारा साथ, खुशियों से भर देता है हर पल।”


यात्रा के रंग:“यात्रा के रंग बदलते रहते हैं, जैसे जीवन के रंग बदलते रहते हैं। राहों पर जो चलते हैं, वो यात्री, उनकी कहानियाँ भी अनगिनत होती हैं।”


सफर की यादें:“सफर की यादें बिखरी हुई राहों पर, जैसे फूलों की खुशबू बिखरी हुई हो। यात्री की आँखों में छुपी है वो सब, जो वो राहों पर पाया है।”

यात्रा की राहों में:“यात्रा की राहों में जब तन्हा हो, तो आसमान के सितारे तेरे साथ हो। जीवन की यात्रा में जब राहें बदलें, तो खुदा की मोहब्बत तेरे साथ हो।”


सफर की यादें:“सफर की यादें बिखरी हुई राहों पर, जैसे फूलों की खुशबू बिखरी हुई हो। यात्री की आँखों में छुपी है वो सब, जो वो राहों पर पाया है।”


यात्री की आवाज़:“यात्री की आवाज़ राहों में गूंजती है, जैसे बादलों की गरज आसमान में। जीवन की यात्रा में जब तू चलता है, तो धरती भी तेरे कदमों में गुलज़ार हो।”


सफर की राहों में:“सफर की राहों में जब तू चलता है, तो राहें भी तेरे साथ चलती हैं। जीवन की यात्रा में जब तू बदलता है, तो तू खुद भी एक नया सफर बनता है।”


मुसाफिर की आँखों में:“मुसाफिर की आँखों में जब देखो, तो दुनिया की हर राह तेरी हो। जीवन की यात्रा में जब तू बसता है, तो तू ही वो ख़ुशियाँ और ग़मों की कहानी हो।”

























































Wednesday, December 13, 2023

ADABI SANGAM --- First Part compering--- Meet Number 525 _ on 30th September 2023 _ topic------- दिल दौलत दुनिया

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "

Moderation ---दिल दौलत दुनिया



आज  525 वे अदबी संगम के समागम पर मुझे एक बार फिर आपसे रूबरू बात चीत का और आपके दिलों की आवाज को सुनने का अवसर प्रदान हुआ है , एक विचार आप सबके लिए पेश है , इसी के बाद हम अपने अदबी सदस्यों के पहले भागीदार से उनके विचार सुनेंगे 

इस पार्ट में हम पोएट्री और दिए गए टॉपिक पे एक दुसरे के अलग अलग  विचार सुनते है और इसमें मैं एक बात जोड़ दू , यह खाली पांच छे मिनट के टॉपिक की बात नहीं है इसके पीछे आप सब की घंटों की मेहनत है जो आपने अपने दिमाग पे जोर डाल के अपने विचारों को एक टॉपिक या पोएट्री के रूप में पिरोया होता है , लेकिन जाने अनजाने आपको जो इसका फायदा हुआ शायद हम में से बहुतों को इसका पता भी न चला होगा ? 

अपनी समरण  शक्ति या  यादाश्त और तजुर्बे के आधार पर हम जब भी दिमाग पर जोर डालते है तब दिमाग के बेकार पड़े कोशिकाओं यानी के सेल्स और उसके कनेक्शंस जिसे हम न्यूरॉन्स कहते है , हरकत में आने लगते है , दिमाग के उस हिस्से में खून दौड़ने लगता है , आज मेडिकल साइंस ने भी इस क्रिया को दिमाग की संजीवनी माना है जिसमे हमारे शरीर में आने वाली बीमारियां जैसे पार्किंसंस ( शरीर की नसों का कमजोर होकर कांपने लगना , एल्ज़िमर ( भूलने की बिमारी ) 

लिखने या टाइप करने में हाथों का दिमाग से कनेक्शन जुड़े रहना , आँखों का एकाग्र होकर अपनी लेखनी या टाइपिंग पे जहां नजर रखना ताकि कोई गलती न हो गई हो , फिर संगीत और गीत का समयोग सोने पे सोहागा , लोगो के आगे बोलना , बोलना भी दिमाग के एक हिस्से को बहुत बड़ा व्ययाम है ,आपके आत्म बल को बढाता है 

 इस सब का हम जैसी उम्र या हमसे बड़े  लोगों के लिए एक वरदान साबित हुआ है , इसके लिए अदबी संगम का इसमें बहुत सहयोग मिल रहा है ,लोगो की सोई प्रितभाये तो जाग ही रही हैं और साथ साथ दिल दिमाग को भी बहुत फायदा हो रहा  है, और आप सब जब भी अदबी संगम से किसी भी वजह से गैर हाज़िर हों तो इन फायदों को जरूर याद रख लेना 

जब जब भी अदबी संगम का कहीं भी किसी रूप में आगाज़ होगा  , तब तब इस दुनिया के सवभाव में भी बदलाव होगा 
कहने सुनने को तो यह सब टाइम पास है , पर दोस्तों टाइम तो तब पास होगा न जब आपके पास टाइम होगा ? शरीर ही साथ छोड़ने लगे तो वक्त जितना भी होगा पास किस काम का  होगा ?

अब क्या घडी देखते हो जिंदगी के इस मुकाम पे आके ? खो जाओ खुद में , लिखते रहो , बोलते रहो , गाते रहो सुनते रहो और हँसते रहो , हंसाते रहो ,जो वक्त हमारा है वोह अब है अभी है , इससे ज्यादा  ,और खास क्या होगा ?
इसी के साथ अब हम आज के विषय पर अपने भागीदार सदस्यों को एक एक करके बुलाएंगे 


(१)     डॉ संगीता सेठी 

नारी का महत्व सबसे अधिक सनातन में विभिन प्रकार की देविओं द्वारा स्थापित किया गया है ,आज फिर से नारी पहली कतार में आ खड़ी हुई है , इसी  शक्ति का सबसे पहले अपने इस पार्ट में अभिवादन करेंगे और इस पार्ट की शुरुआत करेंगे उस नारी से जो जीती जागती मिसाल है नारी शक्ति की , हर शारीरिक और मानसिक रूकावट को पार करते हुए और अपने प्रोफेशन को बड़ी लगन और त्याग से जी रही है , अपने परिवार के साथ साथ बहुत से लोगों की पीड़ा को भी कम कर रही है अपने ज्ञान की शक्ति से आइये उनका अभिवादन करते हुए उनके आज के विचार सुने।  जी हाँ मैं डॉ संगीता सेठी का ही नाम ले रहा हूँ 


(२) विनीता जी - 
      
     स्त्रियों की परिभाषा से इत्र कुछ महिलायें करती सब कुछ हैं पर अपने आप में खोई रहती है अपने काम से काम रखना भी अपने आप में एक अलंकार है।  कभी कभी उन्हें सुनने में हमें बहुत इंतज़ार भी रहता है , इसी कड़ी में मुझे विनीता जी का नाम याद आ रहा है , विनीता जी से सप्रेम अनुरोध है के अपने विचारों से हमें अभिभूत करें 


(३) अन्नू जी - 

जीवन में उस पड़ाव पे जब एक स्त्री पर जिम्मेवारी सबसे अधिक होती है , पूरे परिवार की नीव उस के कंधो पे टिकी होती है , बच्चों की परवरिश के साथ साथ उन्हें अच्छी शिक्षा संस्कार देना , काम और कर्तव्य में सामजस्य बनाते हुए जिंदगी को अकेले अपने हौसले से जीने का दृढ़ संकल्प प्रस्तुत करना , और इसके साथ साथ एक अच्छी पोएट्री भी लिख लेना , यह खासियत हमारी अन्नू जी में कूट के भरी हुई है , अन्नू जी आप आये और हमें अपनी कोई नई कविता सुनाएँ 


( ४)      रजनी 
    
    जब जब त्याग कर्मठता , जुझारू शख्सियत का जिक्र आएगा उनका भी उस स्त्री शक्ति में ऊँचा नाम आएगा , कैसा लगता है जब आपका अपने वतन से सालों पुराना रिश्ता उस देश की अव्यवस्था , मार काट , भय के साये में अपनी जवानी के कीमती साल , खानदानी जमा जमाया कारोबार आप को छोड़ना पड़े और अच्छे बुरे सपनो की तरह उन्हें भूल कर फिर से जिंदगी से लड़ना और हर तरह की कश्मकश को जीतते हुए खुद को फिर से स्थापित कर लेना वो भी अपने मुल्क से हज़ारो मील दूर अपनी लगन और हिम्मत से तो उसमे रजनी जी खरी उतरती हैं , रजनी जी प्लीज आप आईये और अपनी लेखनी हमें सुनाईये 

 (5 )    मुकेश सेठी :-

     कहते है हर कामयाब परिवार में त्याग , प्यार , लगन ,दूसरों को इज़्ज़त देना , सबसे ऊपर माँ बाप का पूरा ध्यान और साथ देना ही उस परिवार की मजबूत नीवं होती है , उतार चढाव आते रहते है , लेकिन स्त्री पुरुष की सांझी गाडी अगर कभी स्मूथ और कभी धचकोलों के बावजूद पटरी पे चले जा रही है तो वो यात्रा बड़ी सुखद और याद गार रहती है , उस गाडी में पहिया चाहे आगे वाला हो या पीछे वाला , गाड़ी को धकेलने में दोनों का बराबर का योगदान होता है , ड्राइवर अपना काम , गार्ड अपना और इंजन अपना काम करता है , यात्री तो सिर्फ यात्रा करते है और अपने अपने स्टॉप पर उतर जाते है , पर  गाडी तो  मंजिल पे पहुँच की ही रूकती है , यह मेरे अनुभव और अपने  विचार हैं ,  कोई इसे अन्यथा न ले ,लेकिन ऐसा कहते हुए मुझे मुकेश सेठी जी की प्रेरणा आ रही है इसी लिए मुकेश जी आप प्लीज आएं और अपने विचार सबको सुनाएँ 

( 6 )      रानी नगेंदर 
       
स्त्री शक्ति से परिपूर्ण वीरांगनाओं की फ़ेहरिस्त कभी ख़त्म नहीं होती , अपने गृहस्थ और पारिवारिक कर्तव्य को निभाते हुए उस वक्त भी लोगों की सेवा करना जब इंसान इंसान से मिलते हुए डरने लगा था , सब लोग मुहं पे  मास्क लगाए ,या यूँ कहिये मुहं छुपाये घर में दुबके रहे ,  जी हाँ ऐसा ही कुछ खौफनाक मंजर था कोरोना काल में ,तब भी अगर कुछ लोगो ने अपना प्रोफेशनल कर्तव्य और मजबूरी दोनों को बखूबी निभाया साथ में अपने लिखने पढ़ने और अपनी कहानियों को दूसरो को किताब के रूप में प्रस्तुत करने की लगन दिखाई , ऐसी एक स्त्री शक्ति हमने रानी नगेंदर जी में भी देखि है , रानी नगेंदर जी को इस मंच पे सादर आमत्रण है आप आईये और अपनी किसी नई रचना से हमें सराबोर करें 

   
(7 )   डॉ चंद्रा दत्ता ---
      
      ज्ञान अर्जित करना और फिर उसे आगे बाँटना एक बहुत टाइम consuming कार्यकर्म होता है , एक टीचर गुरु को अपनी निजी समस्याओं से हमेशा ऊपर उठ कर अपना कर्तव् निभाना होता है , बहुत राजनीती ,टकराव , दबाव और कभी कभी न ख़त्म होने वाली पढाई और आत्म चिंतन और सबसे ऊपर बच्चों के भविष्य का निर्माण एक अच्छी शिक्षा देकर , इन्ही लोगों के कन्धों पे होता है , बिना इनकी लगन के आप समाज को दिशा नहीं प्रदान कर सकते , हर उस स्त्री शक्ति को सलाम जिन्होंने इस साक्षरता आंदोलन को बढ़ चढ़ कर अपना प्रोफेशन बनाया , और पुरषों से भी आगे जाकर न केवल शिक्षा बल्कि हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया , आज जिन्हे मैं आमत्रित करने जा रहा हूँ उनकी लेखनी में वो सब झलक दिखती है जो उन्होंने अपने पूरे जीवन में ग्रहण किया और फिर दूसरो को अपना ज्ञान बांटा , जी बिलकुल डॉ चंद्रा दत्ता जी भी कुछ ऐसी ही शख्सियत की मालकिन है , आइये आज वह हमारे लिए क्या लाइ है उन्ही के शब्दों में सुनते है , डॉ चंद्रा जी 
          



(8 )डॉ सेठी -
अगर इस पूरी दुनिया को एक सागर मान ले तो इस सागर में कई जहाज अगर चलते है तो उसके पीछे भी एक टीम वर्क और एक शीट एंकर का किरदार बहुत दमदार होता है उसके बिना कुछ भी संभव नहीं , ऐसे ही अदबी संगम हमारा उन  लोगों का एक छोटा सा जहाज़ है जिसे पिछले ४५ सालों से अधिक अगर कोई दिशा और दर्शन दे रहा है तो ही तो यह जहाज़ निर्बाध आगे आगे बढ़ता जा रहा है , इसमें कप्तान और उनकी पूरी टीम इसे हमेशा एक उत्सव की तरह हर महीने निसंकोच चलाती जा रही है , जहाज़ इधर उधर न भटक जाए उसे एक लाइट हाउस की तरह दिशा निर्देश देना और शीट एंकर की तरह सबको अपने अपने काम में लगे हुए देखना और उनका हौसला बढ़ाना , यह काम हमारे पूजनीय डॉ सेठी बड़ी लगन से कर्तव्य समझ किये जा रहे है और हम जैसे कितने ही यात्री उनकी देख रेख में अपने जीवन के अध्भुत अनुभव सबसे मिलकर आदान प्रदान किये जा रहे है , हमेशा की तरह डॉ साहिब सबसे आखिर में अपने अनुभवों से हम सबको ज्ञान प्रदान करते है और अपने जीवन के अनमोल पल हमसे साझा करते है , आदर सहित डॉ सेठी जी को आमंत्रण है के वह भी आज के अपने विचार साझा करें 






     ANNU .K
1- Mohinder and Meena gulati -------------------
2-sushma loomba -----------------------------------
3- saroj & subhash Arora --------------------------
4 chandra dutta & sanjay -------------------------- shruti
5-Rajni &Ashok --------------------------------------
6-Rupa &Ashok Awal --------------------------------
7- Parvesh Chopra & Geeta Chopra ----------------

8-Mukesh & Sangeeta ---------------------------------
9- Dr. Sethi -----------------------------------------------
10- Vinita ji & Vijay -----------------------------------
11-Usha & Vinod Kapoor------------------------------
12- Subhash Arora
13-Chetan Sodhi
14 - Usha sethi -- Prerna sethi
 15 -Rita Kohli
  16 -Rani Nagender














Monday, July 31, 2023

ADABI -SANGAM- # 523 ------Adabi Sangam ----- ---मन -----सावन

मन -----सावन
# 523 Adabi Sangam


Host : Mrs Datta ji Sanjay Datta
Topic : Mann and Sawan
Venue: Datta resident


मेरा मन ,सावन से सराबोर है
कहाँ से शुरू करू?
इन बादलों के बहते आंसुओं से
या अपने मन में सुलगते शोलों से ?
अब क्या बताएं आपको




सकूँन वहां नहीं है जहाँ धन मिले
भाईओ , बहनो और मेरे दोस्तों
छोड़ भी दो अब गलतफहमियां
सकूं तो वहां है जहाँ मन मिले


नहीं समझ सका ,मेरे अन्दर उठती लहरें कोई भी
पानी आँखों से बरस रहा था ,लोग समझे सावन है

छुपा गया मैं भी सारे मन के भाव , बिना किसी मोल भाव के
बहता नमकीन झील का ,पानी मेरी झील सी आँखों से

लोगो ने देखा , मुझे समझाया , किसी डॉक्टर को दिखाया क्या ?
लगता है तुम्हे कोई मौसमी , वायरल अलेर्जी हुई है, क्या बोलता ?
मेरा चेहरा भी  गजब का एक्टर हैं , सिर्फ मुस्करा के रह गया

वैसे तो बहुत सयाने है दुनिया वाले , बहुत पढ़े लिखे भी
पर मन की भाषा पढ़ लेना किसी यूनिवर्सिटी ने सिखाई ही नहीं ,

किसी ने वजह न पूछी, सिर्फ अंदाज़ा लगाने लगे
क्यों मजनू  बने हो , क्या बीवी भाग गई है तुम्हारी ?


बताओ अब इस उम्र में मजाक भी करेंगे, वही सदियों पुराने
उन्हें कौन बताये घुटनो के दर्द से, बड़ी मुश्किल से चल पाती है वो
और ताना देते है , उसके भाग जाने का ?
हद्द है भाई इनकी मन और मानसिक स्थिति ?


वैसे सावन आज कल बरसते नहीं , जिसमे बसती थी हमारी खुशियां
अब कहीं सूखा और कहीं बाढ़ , पहाड़ों का दरकना,उजड़ती बस्तियां 
 बाढ़ की चपेट में शहरों का यूँ बह जाना।जैसे आँखों से अरमानो  का बह जाना 
डर गए हम ऐसे भयानक सावन से , जिसने मिटा दी हों इंसानी हस्तियां  


ऐसी नीरस और क्रूर बरसात, अब किसी शायर को झकझोरती नहीं
उनकी कलम से, आज कोई बरसात की रात की नज़म उकरती नहीं


,वो बरसात की रात, या वह भीगी हुई जवानी , वह सावन के महीने में पवन करे शोर की कहानी ,किसी के गले उतरती नहीं ,क्योंकि वो  आवाज ,वाहनों के शोर से उबर पाती नहीं



बचपन में बहुत नटखट थे हम ,
माँ कहा करती थी ,
फिर शादी हो गई हमारी
सब नट तो ढीले हो गए हैं ,
अब बस खट खट बची है ,
अब कहीं जा के नटखट होने का ---------मतलब समझ आया



रोटी जली , रसोईये ने कहा , तवा बदल दो ,
रोटी फिर जली , रसोइये ने कहा -आट्टा बदल दो
रोटी फिर जल गई , रसोइये ने कहाँ पानी बदल दो ,
रोटी फिर जली , रसोइये ने कहा चूल्हा बदल दो
रोटियां यूँ ही जलती रही , लेकिन हिम्मत न हुई किसी की कहने की


-------------रसोइया बदल दो----------  

सब जानते है हमारी जिंदगी के दुखों के पीछे हमारा "मन "और हमारी सोच है फिर भी कोई नहीं चाहता के अपनी सोच और मन को बदल दे ?


मिटटी से भी यारी रख , दिल से दिलदारी रख
चोट न पहुंचे तेरी बातों से , इतनी तो समझदारी रख
पहचान हो तेरी सबसे हटकर , भीड़ में कलाकारी रख
पल भर है यह जोशिये जवानी , बुढ़ापे की भी तैयारी रख
मन सब से मिला करता नहीं ------------------
कमसे कम जुबान तो प्यारी रख

आज सावन भी रो रहा देख के खुद की इतनी बेकदरी
लड़खड़ाते बुढ़ापे के मंजर को ,अज्ञान गरूर में भटके ,
सावन के झूलों से कोसो दूर , नई सोच के नवजवानो को


सावन के अंधे है सब यहाँ ,हरियाली और
सावन की फुहारें बेमानी हैं इनके लिए ,
इन्हे सिर्फ नोटों की हरियाली है पसंद
कुदरत के रंगों से अब क्या सबब इनका ?

आज मन फिर बड़ा उदास हुआ ,
वहिःगर्मी भी है ,उलझे विचारों की घूमस भी,
वही सावन की फुहारें भी
वही देश है वही आस्मां , वही चहल कदमी भी

बदला है तो सिर्फ हमारे जीने का अंदाज़ ,
गुज़री है तमाम उम्र इसी शहर में ,
जहाँ मेरा मन भी बहुत लगा करता था
जान पहचान भी है मेरी बहुतों से

पर अब के सावन वह नहीं , वह चाशनी में डूबे मालपुए
वह पकोड़ो और जलेबी की दावतें
, अब तो मुस्करा के निकले जाते है लोग मेरे पास से
जैसे मुझे यहां ,पहचानता कोई नहीं..

ज़िंदा रहने की अब ये तरकीब निकाली है, हमने 
अपने ज़िंदा होने की खबर सबसे छुपा ली है।

मन तो बहुत करता है , खोल के रख दूँ अपने मन को ,
पर डरता हूँ ,कमाई कम बताओं तो रिश्तेदार इज्जत नहीं करते
ज्यादा बताओं तो उधार मांगते हैं साले ,

कुछ समझ नहीं आता
अपनी इज्जत बचाएं या पैसा ? मन बड़ी पशोपेश में है
ऊपर से इस सावन का कहर , जो मुद्दतों में बड़ी मेहनत से बचाया था
सब कुछ बहाये दे रहा है , बिना झिजक के

सुना है बहुत बरस रहा है सावन तेरे शहर में, भी आज कल ?
थोड़ी सावधानी जरूर बरत लेना ,इसमें ज़्यादा भीगना मत …
अगर धुल गयी वह सारी ग़लतफ़हमियाँ,जिसने तुम्हे दूर किया था हमसे -----------
तो माँ कसम बहुत याद आएँगे हम...

मुसीबत में ये मत सोच, “ के अब कौन काम आऐगा ”
बल्कि ये सोच, “ के अब कौन कौन छोड के जाऐगा “

इस लिए कोशिश करें सिर्फ ख़ानदानी लोगों से ही वास्ता रखें ।
वो नाराज़ भी होंगे  तो इज़्ज़त पर वार नहीं करते...!!!

किस्मत ने जैसा चाहा , वैसे ढल गए हम ,
बहुत संभल कर चले फिर भी ,फिसल गए हम
किसी ने विश्वास तोडा तो किसी ने दिल ,
और लोग कहते हैं के बदल गए हैं हम ?

अधिक"दूर"देखने की"चाहत"में,
बहुत"कुछ"पास से"गुज़र"जाता है..!👍
"जब"हम"गलत"होते हैं तो,
"समझौता"चाहते हैं..!
और..🤞
दूसरे"गलत"होते हैं तो,
"न्याय'चाहते हैं..!!
अपने"मन"की"किताब"ऐसे"व्यक्ति"के पास ही "ख़ोलना"..!
जो"पढ़ने"के बाद आपको"दिमाग से नहीं ,दिल से समझ"सके..

सो जाएये सब तकलीफों को सिरहाने रख कर
क्योंकि सुबह उठते ही इन्हे फिर से गले लगाना है

जतन करो बहुरे सब ,तन को तो रोज धोते हो ?
धो डालो ,अपने मन को तुम भी अब तो इस सावन
कब तक रखोगे संजो के इस मन मैल को ?
बह जाने दो इस नफरत को भी इस सैलाब में ,
फिर से एक नए सावन को आने दो

यह दौलत भी ले लो , यह शौरत भी लेलो ,
भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज़ की कश्ती ,वो बारिश का पानी

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Wo kagaz ki kashti Wo barish ka pani

मोहल्ले की सबसे पुरानी निशानी ,
वो बुढ़िया ,जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानी की बातों में परियों का डेरा
वह चेहरे की झुरिओं में सदिओं का फेरा

भुलाये नहीं भूल सकता है कोई ,
वह छोटी सी रातें वो लम्बी कहानी
कभी रेत के ऊंचे टीलों पे जाना ,
घरोंदें बना बना कर मिटाना
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वह ख्वाबों ख्यालों की जागीर अपनी न दुनिया का गम था , न रिश्तों का बंधन
बड़ी ख़ूबसूरत थी वो जिंदगानी यह दौलत भी ले लो , यह शौरत भी लेलो ,
भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज़ की कश्ती ,वो बारिश का पानी


मन की शांति 
चाय कॉफि की दुकान  आज बहुत भीड़ रही , आज शनिवार का हजूम रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था , सारा दिन ग्राहकों को निबटाने में शरीर दुखने लगा , सर भी दर्द कर रहा था जैसे अभी फटा के अभी फटा। 

जैसे जैसे शाम होती गई दर्द भी बढ़ता गया , रहा नहीं  गया तो अपने नौकरों के हवाले दुकान करके वह सड़क पार कर केमिस्ट की दूकान पर जाकर कुछ गोलियां  खरीदी और निगल ली अब उसे विशवास हो चला था के सर का दर्द अब कुछ देर में ठीक  हो जाएगा। 

जाते जाते उसने काउंटर पर सेल्स गर्ल से पुछा आज मालिक साहब कहाँ हैं वह नजर  नहीं आ रहे ?सर आज उनका बहुत सर दर्द से फट रहा था ,  यह कह  के गए है की सामने की दूकान में काफी पीने जा रहा हूँ , गरमा गर्म कॉफ़ी से उसका दर्द ठीक हो जाएगा। 

यह सुन उस आदमी का मुहं खुल्ला का खुल्ला रह गया , अच्छा , बड़ी अजीब  बात है। 
" यह तो वही बात हुई मर्ज की दवा अपने पास है फिर भी बाहर उसका निदान ढूढ़ते  हैं लोग ? कितनी अजीब  बात किन्तु बिलकुल सत्य है ----
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एक केमिस्ट अपने सर का दर्द कॉफी शॉप में कॉफी पीकर खोज रहा है , और कॉफ़ी शॉप  का मालिक अपने सर का दर्द गोली खाने में खोज रहा है -
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. तो जो हम दर दर भटकते है , मंदिर , गुरुद्वारे , बड़े बड़े तीरथ स्थानों पर जाकर अपने  निवारण ढूंढते है तो क्या वहाँ  हमें सकूँ मिल जाता है ? मन शांत हो  जाता है ? बिलकुल नहीं  और अंत में हमें अहसास जाता है की मन की शान्ति तो हमारे भीतर ही हमारे दिलों दिमाग में है , मन की शान्ति आत्म संतोष और जो हमारे पास है उसकी शुक्र गुजारी में ही  है। 

हमारे जीवन में हमेशा शान्ति  बनी रहे उसके लिए हमारे मन  सवभाव और जीवन का नज़रिया बदलना बहुत कुछ हमारी  इच्छा शाक्ति पर आधारित है। 

जैसे जैसे मेरी उम्र  बढ़ती गई , मेरी जिंदगी की सबसे  कीमती और शानदार चीज़ मेरी नज़र में "शांति की  खोज "मन की शान्ति  प्राप्त कर लेना ही  बन गई 

और मन  की  शान्ति एक मनोदशा है , हंसना हमारी पहली पसंद , और दोनों ही चीज़े हमारे मन मष्तिस्क में पहले से प्रचुर मात्रा में  विधमान हैं , फायदा उसे  मिलेगा जो उसे  अपने मन मंदिर में खोजेगा