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Monday, July 31, 2023

ADABI -SANGAM- # 523 ------Adabi Sangam ----- ---मन -----सावन

मन -----सावन
# 523 Adabi Sangam


Host : Mrs Datta ji Sanjay Datta
Topic : Mann and Sawan
Venue: Datta resident


मेरा मन ,सावन से सराबोर है
कहाँ से शुरू करू?
इन बादलों के बहते आंसुओं से
या अपने मन में सुलगते शोलों से ?
अब क्या बताएं आपको




सकूँन वहां नहीं है जहाँ धन मिले
भाईओ , बहनो और मेरे दोस्तों
छोड़ भी दो अब गलतफहमियां
सकूं तो वहां है जहाँ मन मिले


नहीं समझ सका ,मेरे अन्दर उठती लहरें कोई भी
पानी आँखों से बरस रहा था ,लोग समझे सावन है

छुपा गया मैं भी सारे मन के भाव , बिना किसी मोल भाव के
बहता नमकीन झील का ,पानी मेरी झील सी आँखों से

लोगो ने देखा , मुझे समझाया , किसी डॉक्टर को दिखाया क्या ?
लगता है तुम्हे कोई मौसमी , वायरल अलेर्जी हुई है, क्या बोलता ?
मेरा चेहरा भी  गजब का एक्टर हैं , सिर्फ मुस्करा के रह गया

वैसे तो बहुत सयाने है दुनिया वाले , बहुत पढ़े लिखे भी
पर मन की भाषा पढ़ लेना किसी यूनिवर्सिटी ने सिखाई ही नहीं ,

किसी ने वजह न पूछी, सिर्फ अंदाज़ा लगाने लगे
क्यों मजनू  बने हो , क्या बीवी भाग गई है तुम्हारी ?


बताओ अब इस उम्र में मजाक भी करेंगे, वही सदियों पुराने
उन्हें कौन बताये घुटनो के दर्द से, बड़ी मुश्किल से चल पाती है वो
और ताना देते है , उसके भाग जाने का ?
हद्द है भाई इनकी मन और मानसिक स्थिति ?


वैसे सावन आज कल बरसते नहीं , जिसमे बसती थी हमारी खुशियां
अब कहीं सूखा और कहीं बाढ़ , पहाड़ों का दरकना,उजड़ती बस्तियां 
 बाढ़ की चपेट में शहरों का यूँ बह जाना।जैसे आँखों से अरमानो  का बह जाना 
डर गए हम ऐसे भयानक सावन से , जिसने मिटा दी हों इंसानी हस्तियां  


ऐसी नीरस और क्रूर बरसात, अब किसी शायर को झकझोरती नहीं
उनकी कलम से, आज कोई बरसात की रात की नज़म उकरती नहीं


,वो बरसात की रात, या वह भीगी हुई जवानी , वह सावन के महीने में पवन करे शोर की कहानी ,किसी के गले उतरती नहीं ,क्योंकि वो  आवाज ,वाहनों के शोर से उबर पाती नहीं



बचपन में बहुत नटखट थे हम ,
माँ कहा करती थी ,
फिर शादी हो गई हमारी
सब नट तो ढीले हो गए हैं ,
अब बस खट खट बची है ,
अब कहीं जा के नटखट होने का ---------मतलब समझ आया



रोटी जली , रसोईये ने कहा , तवा बदल दो ,
रोटी फिर जली , रसोइये ने कहा -आट्टा बदल दो
रोटी फिर जल गई , रसोइये ने कहाँ पानी बदल दो ,
रोटी फिर जली , रसोइये ने कहा चूल्हा बदल दो
रोटियां यूँ ही जलती रही , लेकिन हिम्मत न हुई किसी की कहने की


-------------रसोइया बदल दो----------  

सब जानते है हमारी जिंदगी के दुखों के पीछे हमारा "मन "और हमारी सोच है फिर भी कोई नहीं चाहता के अपनी सोच और मन को बदल दे ?


मिटटी से भी यारी रख , दिल से दिलदारी रख
चोट न पहुंचे तेरी बातों से , इतनी तो समझदारी रख
पहचान हो तेरी सबसे हटकर , भीड़ में कलाकारी रख
पल भर है यह जोशिये जवानी , बुढ़ापे की भी तैयारी रख
मन सब से मिला करता नहीं ------------------
कमसे कम जुबान तो प्यारी रख

आज सावन भी रो रहा देख के खुद की इतनी बेकदरी
लड़खड़ाते बुढ़ापे के मंजर को ,अज्ञान गरूर में भटके ,
सावन के झूलों से कोसो दूर , नई सोच के नवजवानो को


सावन के अंधे है सब यहाँ ,हरियाली और
सावन की फुहारें बेमानी हैं इनके लिए ,
इन्हे सिर्फ नोटों की हरियाली है पसंद
कुदरत के रंगों से अब क्या सबब इनका ?

आज मन फिर बड़ा उदास हुआ ,
वहिःगर्मी भी है ,उलझे विचारों की घूमस भी,
वही सावन की फुहारें भी
वही देश है वही आस्मां , वही चहल कदमी भी

बदला है तो सिर्फ हमारे जीने का अंदाज़ ,
गुज़री है तमाम उम्र इसी शहर में ,
जहाँ मेरा मन भी बहुत लगा करता था
जान पहचान भी है मेरी बहुतों से

पर अब के सावन वह नहीं , वह चाशनी में डूबे मालपुए
वह पकोड़ो और जलेबी की दावतें
, अब तो मुस्करा के निकले जाते है लोग मेरे पास से
जैसे मुझे यहां ,पहचानता कोई नहीं..

ज़िंदा रहने की अब ये तरकीब निकाली है, हमने 
अपने ज़िंदा होने की खबर सबसे छुपा ली है।

मन तो बहुत करता है , खोल के रख दूँ अपने मन को ,
पर डरता हूँ ,कमाई कम बताओं तो रिश्तेदार इज्जत नहीं करते
ज्यादा बताओं तो उधार मांगते हैं साले ,

कुछ समझ नहीं आता
अपनी इज्जत बचाएं या पैसा ? मन बड़ी पशोपेश में है
ऊपर से इस सावन का कहर , जो मुद्दतों में बड़ी मेहनत से बचाया था
सब कुछ बहाये दे रहा है , बिना झिजक के

सुना है बहुत बरस रहा है सावन तेरे शहर में, भी आज कल ?
थोड़ी सावधानी जरूर बरत लेना ,इसमें ज़्यादा भीगना मत …
अगर धुल गयी वह सारी ग़लतफ़हमियाँ,जिसने तुम्हे दूर किया था हमसे -----------
तो माँ कसम बहुत याद आएँगे हम...

मुसीबत में ये मत सोच, “ के अब कौन काम आऐगा ”
बल्कि ये सोच, “ के अब कौन कौन छोड के जाऐगा “

इस लिए कोशिश करें सिर्फ ख़ानदानी लोगों से ही वास्ता रखें ।
वो नाराज़ भी होंगे  तो इज़्ज़त पर वार नहीं करते...!!!

किस्मत ने जैसा चाहा , वैसे ढल गए हम ,
बहुत संभल कर चले फिर भी ,फिसल गए हम
किसी ने विश्वास तोडा तो किसी ने दिल ,
और लोग कहते हैं के बदल गए हैं हम ?

अधिक"दूर"देखने की"चाहत"में,
बहुत"कुछ"पास से"गुज़र"जाता है..!👍
"जब"हम"गलत"होते हैं तो,
"समझौता"चाहते हैं..!
और..🤞
दूसरे"गलत"होते हैं तो,
"न्याय'चाहते हैं..!!
अपने"मन"की"किताब"ऐसे"व्यक्ति"के पास ही "ख़ोलना"..!
जो"पढ़ने"के बाद आपको"दिमाग से नहीं ,दिल से समझ"सके..

सो जाएये सब तकलीफों को सिरहाने रख कर
क्योंकि सुबह उठते ही इन्हे फिर से गले लगाना है

जतन करो बहुरे सब ,तन को तो रोज धोते हो ?
धो डालो ,अपने मन को तुम भी अब तो इस सावन
कब तक रखोगे संजो के इस मन मैल को ?
बह जाने दो इस नफरत को भी इस सैलाब में ,
फिर से एक नए सावन को आने दो

यह दौलत भी ले लो , यह शौरत भी लेलो ,
भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज़ की कश्ती ,वो बारिश का पानी

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Wo kagaz ki kashti Wo barish ka pani

मोहल्ले की सबसे पुरानी निशानी ,
वो बुढ़िया ,जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानी की बातों में परियों का डेरा
वह चेहरे की झुरिओं में सदिओं का फेरा

भुलाये नहीं भूल सकता है कोई ,
वह छोटी सी रातें वो लम्बी कहानी
कभी रेत के ऊंचे टीलों पे जाना ,
घरोंदें बना बना कर मिटाना
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वह ख्वाबों ख्यालों की जागीर अपनी न दुनिया का गम था , न रिश्तों का बंधन
बड़ी ख़ूबसूरत थी वो जिंदगानी यह दौलत भी ले लो , यह शौरत भी लेलो ,
भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज़ की कश्ती ,वो बारिश का पानी


मन की शांति 
चाय कॉफि की दुकान  आज बहुत भीड़ रही , आज शनिवार का हजूम रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था , सारा दिन ग्राहकों को निबटाने में शरीर दुखने लगा , सर भी दर्द कर रहा था जैसे अभी फटा के अभी फटा। 

जैसे जैसे शाम होती गई दर्द भी बढ़ता गया , रहा नहीं  गया तो अपने नौकरों के हवाले दुकान करके वह सड़क पार कर केमिस्ट की दूकान पर जाकर कुछ गोलियां  खरीदी और निगल ली अब उसे विशवास हो चला था के सर का दर्द अब कुछ देर में ठीक  हो जाएगा। 

जाते जाते उसने काउंटर पर सेल्स गर्ल से पुछा आज मालिक साहब कहाँ हैं वह नजर  नहीं आ रहे ?सर आज उनका बहुत सर दर्द से फट रहा था ,  यह कह  के गए है की सामने की दूकान में काफी पीने जा रहा हूँ , गरमा गर्म कॉफ़ी से उसका दर्द ठीक हो जाएगा। 

यह सुन उस आदमी का मुहं खुल्ला का खुल्ला रह गया , अच्छा , बड़ी अजीब  बात है। 
" यह तो वही बात हुई मर्ज की दवा अपने पास है फिर भी बाहर उसका निदान ढूढ़ते  हैं लोग ? कितनी अजीब  बात किन्तु बिलकुल सत्य है ----
.
एक केमिस्ट अपने सर का दर्द कॉफी शॉप में कॉफी पीकर खोज रहा है , और कॉफ़ी शॉप  का मालिक अपने सर का दर्द गोली खाने में खोज रहा है -
.. 
. तो जो हम दर दर भटकते है , मंदिर , गुरुद्वारे , बड़े बड़े तीरथ स्थानों पर जाकर अपने  निवारण ढूंढते है तो क्या वहाँ  हमें सकूँ मिल जाता है ? मन शांत हो  जाता है ? बिलकुल नहीं  और अंत में हमें अहसास जाता है की मन की शान्ति तो हमारे भीतर ही हमारे दिलों दिमाग में है , मन की शान्ति आत्म संतोष और जो हमारे पास है उसकी शुक्र गुजारी में ही  है। 

हमारे जीवन में हमेशा शान्ति  बनी रहे उसके लिए हमारे मन  सवभाव और जीवन का नज़रिया बदलना बहुत कुछ हमारी  इच्छा शाक्ति पर आधारित है। 

जैसे जैसे मेरी उम्र  बढ़ती गई , मेरी जिंदगी की सबसे  कीमती और शानदार चीज़ मेरी नज़र में "शांति की  खोज "मन की शान्ति  प्राप्त कर लेना ही  बन गई 

और मन  की  शान्ति एक मनोदशा है , हंसना हमारी पहली पसंद , और दोनों ही चीज़े हमारे मन मष्तिस्क में पहले से प्रचुर मात्रा में  विधमान हैं , फायदा उसे  मिलेगा जो उसे  अपने मन मंदिर में खोजेगा