Tuesday, January 4, 2022

"Mehfil -"-महफ़िल -- 27 TH NOVEMBER -2021--- ADABI SANGAM --MEETING NO ---506TH --

"Mehfil -"-महफ़िल -- 
   27 TH NOVEMBER -2021-----   
ADABI SANGAM --MEETING NO ---506TH - TOPIC 
FLAVOR OF INDIA -


महफ़िल

506th meeting of Adabi Sangam Logistics:
Hosts: Mr. and Mrs. Gulati
D/T: 11/27/21. 5:30 PM
Venue: Flavor of India
259-17 Hillside Ave, Glen Oaks, NY 11004
Part 1: Rajni Ji
Part 2: Parvesh
Story: Dr. Mahtab Ji
Topic: MEHFIL

यूँ तो भीड़ काफी हुआ करती थी , कभी महफिल में मेरी ,--------- 
फिर मुझे एक बिमारी लग गई , --
जैसे जैसे मैं सच बोलता गया, लोग उठते गये, महफ़िल वीरान 
 और मैं बिलकुल तनहा -----------

खूब लानते मिली हमें "बोले
महफिलें ऐसे थोड़ा ही सजा करती हैं ?"तुम्हे तो सलीका ही नहीं आया , 
क्या जरूरत थी हरीश चन्दर बनने की ? 
मैंने भी कहा दोस्त देखो अभी अभी तुमने हमेशा सच बोलने वाले का नाम लिया ? 
लोग सचाई पसंद तोबहुत करते है पर बोलते  नहीं , 
कोई बात नहीं चलिए हम अपनी अदबी महफ़िल को रंगीन करते है :-

आज फिर से जमी शायरों कि महफ़िल है
बयां कईयों के कुछ नए , दिल-ए-राज़ होगें,
सबके अपने अपने ख्याल अपने अपने तजुर्बे
इसी महफ़िल में बयान होंगे

हमें तो हमेशा ऐसी महफ़िल कि गलियों से ही गुरेज था
जब जिंदगी की तन्हाईआं बर्दाश्त न हुई तो , आ बैठे यहाँ

एक महफ़िल से जो पीकर उठे…
तो किसी को खबर तक ना लगी

हमें यूँ मुड़ मुड़कर देखना उनका ,खामख्वाह …….
हम बदनाम तो हुए बहुत महफ़िल में ,
राज खुले सो अलग

बार-बार उन्ही पर नजर गयी
लाख कोशिशें की बचाने में हमने , मगर फिर भी उधर गयी

था निगाह में कोई जादू जरूर उनकी
ये जिस पर पड़ी उसी के जिगर में उतर गयी,

फिर भरी महफ़िल में दोस्ती का जिक्र हुआ ,
कुछ भी हम से कहा न गया
हमने तो....
सिर्फ उनकी ओर युहीं देखा था ,
और लोग वाह वाह कहने लगे

रद्दी क़िस्मत होती है जैसे
मेरे हाथों में उसे पाने की रेखा ही नहीं थी

क़यामत तो तब टूटी जब भरी महफ़िल में पुछा उसने
कौन हैं यह साहब पहले कभी देखा नहीं इन्हे?

फिर जाते जाते जले पर नमक भी छिड़का ,उसने
महफ़िल में गले मिल के ,कान में वो धीरे से कह गए

ये दुनिया की रस्म है, हकीकत बताई नहीं जाती
बेशक मोहब्बत थी हमें , फिर भी बताई नहीं जाती

हाल-ए-दिल बताने से कुछ होता नहीं हासिल
इसलिए सारी तकलीफों को छुपा रहा था मै

निकलता आंख से आंसू तो बन जाता मजाक
इसलिए भरी महफ़िल खड़ा मुस्कुरा रहा था मै

मैंने आंसू को बहुत समझाया भरी महफ़िल मे यूँ ना आया करो
आंसू बोला ,तुमको भरी महफ़िल में जब भी तन्हा पाते है,
हमसे रहा नहीं जाता ,साथ देने इसीलिए, चुपके से चले आते है.

बहुत लोग जमाने में हमारे जैसे भी होते है
महफ़िल में हंसते है ,तन्हाई में रोते है ,
आंसुओं की महफ़िल सजा के,
आंसुओं से ही गुफ्तुगू कर लेते है

कुछ करते ,न कहते बना हमसे
छुपाये दिल में ग़मों का जहान बैठे रहे
उनकी बज़्म में उन्हें जानते हुए भी ,
बेज़बान बनकर बैठे रहे

फिर महफ़िल में बनावटी हँसना मेरा मिजाज बन गया
तन्हाई में रोना, सबके लिए एक राज ही बन गया

दिल के दर्द को जाहिर होने ना दिया
यही मेरे जीने का अंदाज बन गया

अब दिल में एहसास तो हो चूका था के
हमारे लिए उनके दिल में ,चाहत बिलकुल न थी ,

वरना ऐसे मुहं फेर के कोई जाता है क्या ?
,अपना दिल उनके क़दमों में भले रख दिया हमने
मगर उन्हें "जमीन "देखने की आदत ही कहाँ थी

फिर से मुझे मिट्टी में खेलने दे खुदा ,……………
यह वीरान महफिले , मतलबी लोग

ये दिखावे की दमकती , चहल पहल
अबयह जिंदगी ,हमें ज़िन्दगी नहीं लगती।

बहुत रुसवा हुए हैं हम , सपनो के बिखर जाने पे
अरमान दफन हुए तो अरसा हुआ ,
वोह अभागा फिर भी जिन्दा है ,

टूट कर भी कम्बख्त धड़कता रहता है ,
मैने दुनिया मैं अपने दिल सा कोई वफादार नहीं देखा। ……

कब महफ़िल मिले और कब वीराना ,
यूँ शिकायते किस से और क्यों करें

जबकि हर महफ़िल में सजती हैं कई महफिले
जिसको भी पास से मिलोगे , तनहा ही होगा

कोई चुप है तो ,कोई है हैरान यहाँ
कोई बेबस तो ,कोई है पशेमान यहाँ

लफ्ज़ों की दहलीज पर घायल है जुबान, परेशां हैं सब
कोई तन्हाई से, तो कोई है परेशान महफ़िल से

दूर ही रहता हूँ इसलिए , उन महफिलों सेआजकल
मेरा खुश रहना जहाँ,दोस्तों को नागवार था

वक्त बदल गया है यह कह कर ,
कोसते रहना वक्त को इतना, कहाँ तक है वाजिब?
सारे नाम पते तो हमारे स्मार्ट फ़ोन में हैं ,

एक बटन दबाते ही जिससे चाहें रूबरू हो जाते हैं
मिलने की कसक ही न बची , तो महफ़िल जमे भी तो कैसे ?

थक चुके हैं भाग भाग के यहाँ सब , आँखें है नींद से बोझिल ,
दिल में है गमो का सागर , दौड़ किसी की अभी थमी नहीं

महफ़िल कहाँ और कैसे जमाएं , , फ़ोन उठाने का भी समय नहीं
फ़ोन पे तो आंसरिंग मशीन लगी है , नाम पूछ लेती है पर जवाब नहीं देती

सभी ऐसे हो यह हम नहीं कहते ,
हम तो सिर्फ अपनी गॅरंटी लेते है
फुर्सत निकाल कर आओ कभी मेरी महफ़िल में
लौटते वक्त दिल नहीं पाओगे अपने सीने में

महफिलों की जान ,न समझना भूल से भी मुझे ,
मेरे चेहरे की बेबाक हंसी ,लाखों गम है छुपाये हुए

बहुत सलाहें मिली हमे अपने दोस्तों से ,क्यों बहस करते हो ?
किसी को खरा खरा सुना देने से, महफिले थोड़ा ही जमती है

हमारी जैसी बगावती सोच का ,जीना क्या और मरना भी क्या ?
आज इस महफ़िल से उठने को हैं , कल इस दुनिया से ही उठ जाएंगे,
सोच फिर भी वही रहेगी

आज हर ख़ुशी है लोगों के दामन में , पर थोड़ा रुक कर हंसने का वक्त नहीं '
माँ की लौरी का अहसास तो है , पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं ,

लड़खड़ाते रिश्ते बहुत हैं हमारे भी , पर उन्हें संवारने का वक्त नहीं
दिन रात दौड़ती दुनिया के बाजार में , भीड़ तो बहुत है मगर -------
महफिले सजाने का वक्त नहीं------------

जाने कब-कब किस-किस ने कैसे-कैसे तरसाया मुझे
तन्हाईयों की बात न पूछो महफ़िलों ने भी बहुत रुलाया मुझे

लेकिन क्या कमाल करते हैं हमसे जलन रखने वाले
महफ़िलें खुद की सजाते हैं और चर्चे वहां भी हमारे करते हैं

उन दुश्मनो को कैसे खराब कह दूं
जो हर महफ़िल में मेरा नाम लेते है

लेकिन फिर भी याद आती हैं आज भी उस महफ़िल की वीरानियाँ
यारों के संग काटी जहाँ हमने अपनी जवानियाँ

अगर जिक्र आया भी होगा कभी मेरा उनकी महफ़िल में
यादाश पे जोर डालने की बजाये , दोस्तों ने बात घुमा दी होगी ,

तमाम वक्त गुजर चूका , शक्ल सूरत भी हमारी बदल चुकी
आज उसी राह से गुजरें भी तो , देख कर नजरें घुमा ली होगी

अब गम भी क्यों करें इस हकीकत का ?
शायरों की बस्ती में कदम रखा तो जाना
ग़मों की महफ़िल भी कमाल जमती है

सुनकर ये बात मेरे दिल को थोड़ी सी खली
दुश्मन के महफ़िल में भी मेरी ही बात चली

यही सोच के रुक जाता हूँ मैं आते-आते
फरेब बहुत है यहाँ चाहने वालों की महफ़िल में

लेकिन कुछ इस तरह से हो गई है ,मेरी जिंदगी में यह शामिल ,
यही है वोह अदबी महफ़िल , जिसमे हैं कुछ सकून के पल

हर शख्स यहाँ आजाद है अपना रंग जमाने को ,
वक्त मिलता है सबको यहाँ अपना दर्द सुनाने को

महफ़िल में आकर कुछ तो सुनाना पड़ता है ,यही यहाँ का दस्तूर है ,
आज भी हम हैं अजीज उनके , कुछ सुन कर, कुछ सुना कर ,
विश्वास दिलाना पड़ता है

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पैसों की दौड़ में इतना दौड़े की थकने का भी वक्त नहीं ,
किसी के अहसास को क्या समझे ,
जब अपने खवाबों के लिए ही वक्त नहीं


तू ही बता ऐ जिंदगी अब तो , 
ऐसी जिंदगी में जब हासिल ही कुछ नहीं
तो हर पल मरने वालों को , 
जीने के लिए ही वक्त कहाँ मिलेगा

आज तू कल कोई और होगा सद्र-ए-बज़्म-ए-मै
साकिया तुझसे नहीं,हम से है मैखाने का नाम

जैसे चार चांद लग गए महफ़िल में
जब देखूं इस शाम का नज़ारा
हर गम भी लगता है बस प्यारा
यूं सूरज का चुपके से ढलते जाना

महफ़िल में कुछ तो सुनाना पड़ता है
ग़म छुपा कर मुस्कुराना पड़ता है
कभी हम भी उनके अज़ीज़ थे
आज कल ये भी उन्हें याद दिलाना पड़ता है

उतरे जो ज़िन्दगी तेरी गहराइयों में
महफ़िल में रह के भी रहे तनहाइयों में
इसे दीवानगी नहीं तो और क्या कहें
प्यार ढुढतेँ रहे परछाईयों मे

मेरे दिल का दर्द किसने देखा है
मुझे बस खुदा ने तड़पते देखा है
हम तन्हाई में बैठे रोते है
लोगों ने हमें महफ़िल में हँसते देखा है

दुनिया की बड़ी महफिल लगेगी
इस जहां का सारा मुकदमा चलेगा
हम हर तरह से बेगुनाह होंगे और
सजा का हक भी हमें मिलेगा

कभी अकेले में तो कभी महफ़िल में
जितना तलाशा सुकून को उतनी मिली तन्हाई
हर पल रही वो साथ मेरे
और मुझे कभी न मिली रिहाई

शाम सूरज को ढलना सिखाती है
मोहब्बत परवाने को जलना सिखाती है
गिरने वाले को दर्द तो होता है जरूर
यही ठोकरें ही तो सम्भलना सिखाती हैं

महफ़िल में आँख मिलाने से कतराते हैं
मगर अकेले में हमारी तस्वीर निहारते हैं

सजती रहे खुशियों की महफ़िल
हर महफ़िल ख़ुशी से सुहानी बनी रहे
आप ज़िंदगी में इतने खुश रहें कि
ख़ुशी भी आपकी दीवानी बनी रहे

उठ के महफ़िल से मत चले जाना
तुमसे रौशन ये कोना-कोना है

सम्भलकर जाना हसीनों की महफ़िल में
लौटते वक्त दिल नहीं पाओगे अपने सीने में

कई महफिलों में गया हूं
हजारों मयखाने देखे
तेरी आंखों सा शाकी कहीं नहीं
गुजरे कई जमाने देखे

महफ़िल और भी रंगीन हो जाती हैं
जब इसमें आप शामिल हो जाती है

ना हम होंगे ना तुम होंगे और ना ये दिल होगा फिर भी
हज़ारो मंज़िले होंगी हज़ारो कारँवा होंगे,
फिर इसी तरह कुछ महफिले आबाद होंगी

आपकी महफ़िल और मेरी आँखे दोनों भरे-भरे है
क्या करे दोस्त दिल पर लगे जख्म अभी हरे-हरे हैं

हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़साने बयां होंगे
बहारे हमको ढूँढेंगी ना जाने हम कहाँ होंगे

तमन्नाओ की महफ़िल तो हर कोई सजाता है
पूरी उसकी होती है जो तकदीर लेकर आता है

सहारे ढुंढ़ने की आदत छूटती नही हमारी
और तन्हाई मार देती है हिम्मत हमारी


















IST JANUARY 2022----- ADABI SANGAM --MEETING NO ---507TH - TOPIC "--KAZAL / ANKHEN at ( RAJANI'S HOUSE)

काज़ल ----आँखें 

507th meeting of Adabi Sangam Logistics:
Hosts: Rajni ji & Ashok ji
D/T: 1/1/22. 5:30 PM
Venue: Residence: 40  Ninth Street, Hicksville, NY 11801
Part 1: Ashok Singh ji
Part 2: Rajinder ji
Story: Rajinder ji
Topic: KAAJAL
Rajni ji has suggested if the topic Kaajal is too difficult, you may write on AANKHEN आंखें.  Please be on time. Thanks.🙏





आँख हर वह चीज़ देख लेती है जो संसार में है ,
मगर आँख के अंदर कुछ चला जाए तो उसे नहीं देख पाती ?


यही आज की सचाई है मनुष्य की भी ,दुसरे की बुराइयां जिन आँखों से देखता है उन्ही आँखों से खुद की बुराई नजर नहीं आती उसे । कितनी आसानी से या मक्कारी से अपने भीतर बैठी बुराईआं नजरअंदाज कर देता है " हमारा नैनसुख "


महिफल मे आज फिर ,क़यामत की रात हो गई,
उन्होंने तो लगाया था ,अपनी आखो मे काजल सजने संवरने को
पर नजरें जो मिली ---कुछ यादें जो टकराई,
बिन बादल बरस गई आँखें उनकी , काजल भी न ठहर पाया
उस सैलाब में . ,


आखिर यह भ्रम भी टूटा , दम भरा करते थे ,

हम आँखों से दिल पढ़ लिया करते हैं,
आज मगर चूक गए


मै जिसे देख कर हो गया था पागल कभी जवानी में ,
उस लड़की का तो नाम ही काजल था


आईना नज़र लगाए भी तो कैसे

उनको ?
एक तो नाम काजल , ऊपर से
काजल भी लगाती है तो
आईने में देखकर.


मगर दीवाल पे टंगा आइना ,वह सब देख लेता है जिसे हम नहीं देखते
परन्तु "नादान" आईने को भी क्या खबर...
कुछ "चेहरे"


"चेहरे" के अन्दर भी छुपे होते हैं..! जिसे वो भी नहीं देख पाता


आईने ने अपनी रजा दी , सूंदर सा चेहरा , मृग सी आँखें
उन आँखों में लगा काजल , देख के इतनी ख़ूबसूरती ,
चकरा गया आइना भी , पर झूट बोला न गया उससे, "पूछ बैठा "

क्या गम है तुम्हारी आँखों में ? जिसे काजल से छुपा रहे हो ?


आंखें ही, क्या कम कातिल थी,
उस पर, काजल भी लगाते हो,
इश्क में, कत्ल के तुम भी,
क्या क्या हुनर, आजमाते हो.


मुझे याद आ गया ,
अभी गोद में ही था ,न बोलना न चल पाना ,
पर फिर भी है कुछ यादे
माँ ने भी तो लगाया था ,टीका काजल का गाल पे ,
कहते हुए ,"नजर नहीं लगेगी , कभी मेरे लाल को" ,

होगा कुछ तो माँ के इस काजल में जो ,
उसकी ढाल से मैं आज भी मेह्फूस हूँ ,


थोड़े जवान हुए तो काजल का रूप बदल गया , लोग कहने लगे
काजल तो गहना है ख़ूबसूरती का ,
जो मर्दों को नसीब नहीं ,
नहीं था ऐसा पर्दा ? जो हम , गम अपने छुपा लेते ,
औरत ने तो छुपा लिया काजल में , मर्द कहाँ जाते ?


सोचा एक दिन अपने ग़मों को लिख डालूं एक कागज़ पर
उधार मांगा था उनसे हमने उनकी
आँखों का काजल ,अपनी कलम के लिए
उसने भी रख दी शर्त , शायरी किसी और पे नहीं
हमारी आँखों पर ही होनी चाहिए.


बोल के वह मुस्कुराई , थोड़ा शरमाई
हुस्न निखारने के नाम पर
काजल की दिवार जो थी उसने बनाई
आँखो की मायूसी फिर भी छुप न पाई ,


एक तो उनकी आंखे नशीली और ऊपर से लगा यह काजल,
कोई पढ़े भी तो कैसे उन्हें ,
सब कुछ तो काला है वहां ?

आँखों से जज्बात तो जाहिर कर दिए उन्होंने ,
कम्बख्त
,काजल ने पर्दा फिर भी बनाये रखा
बावरा हुआ जाता हूँ बेशक ,देख तेरी अखियों में ,तैरते अक्स
न जाने क्या क्या छुपा रखा है , तेरी इस आँखों के काजल ने

याद है अब तक
तुझसे बिछड़ने की वो अँधेरी शाम मुझे,
तू तो ख़ामोश खडी थी
लेकिन बातें कर रहा था बहता हुआ तेरा काजल.

हौंसला गर तुझ में नहीं था ,मुझसे जुदा होने का,
हुनर मुझ में भी कहाँ था बहते काजल को पढ़ पाने का

उसका लिक्खा हुआ
हर शख्स पढ़ भी नहीं सकता, क्योंकि
वो चालाकी से मिला लेती है ,हमेशा
अपने दो आँसू. काजल में


वो जो अफसाना-ए-ग़म सुन सुन के
हंसा करते थे,हम पर कभी
इतना रोए इक दिन , काली घटाएं देख कर बोले
क्या बादल भी रोया करते है काजल लगा कर ?

कैसे समझाऊँ , किसे समझाऊं, किस भाषा में ?
कौन समझे मेरी आँखों की नमी का मतलब
ज़िन्दगी एक गीत थी , बेइंतिहा सफे जिसके
पर पूरी की पूरी जिल्द बंधाने में कट गई

#हुस्न दिखाकर भला कब हुयी हैं मोहब्बत
वो तो काजल लगाकर हमारी जान ले गयी!!!
बात ज़रा सी है ,लेकिन हवा को कौन समझाए,
जलते दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाया करती थी

निकल आते हैं आँसू
गर जरा सी चूक हो जाये,
किसी की आँख में काजल लगाना
खेल थोड़े ही है.

बताया एक दिन ,मुझे उन्होंने
छोड़ दिया है काजल लगाना,आँखों में ,
बहुत रुलाते हैं लोग ,
ठहर नहीं पाता


कहने लगी अब जरुरत ही नहीं मुझे
काजल लागे किरकरो, सुरमा सहा ना जाए !
जिन नैनंन में साजन बसे,दूजा कौन समाये !!


हमारी जिंदगी भी कुछ आसान नहीं रही
मुहब्बत की बेनूर ख्वाहिशें ,और तेरा गम,
हम भी बिखर से गये हैं ,
आँखों से बहे तेरे काजल की तरह.


चख के देख ली दुनिया भर की शराब जो

नशा तेरी कजरारी आँखों में था वो किसी में नहीं!!!


हुस्न ढल गया तो क्या ,गरूर अभी बाकी है ,
आँखों का काजल तो बह गया ,लकीर तो बाकी है
नशा उत्तर गया तो क्या सरूर अभी बाकी है
जवानी ने दस्तक दी कुछ दिया ,
फिर बहुत कुछ लेकर चली भी गई ,
जेहन में कुछ फितूर फिर भी अभी बाकी है





👌 अर्थ बड़े गहरे हैं


....गौर फरमायें....एक आँखों के काजल ही को क्यों
याद रखती है ये दुनिया ?
काला था इस लिए नजर को चुभा ?
और भी तो रंग थे मेरी दुनिया के ,
उसे क्यों नजरअंदाज किया सबने ?

मैंने .. हर रोज .. जमाने को .भी . रंग बदलते देखा है ....!!!
उम्र के साथ .. जिंदगी को .. ढंग बदलते देखा है .. !!!

वो .. जब चला करते थे .. तो शेर के चलने का .. होता था गुमान..!!!
उनको भी ..आज पाँव उठाने के लिए .. सहारे को तरसते देखा है !!!

जिनकी .. नजरों की .. चमक देख .. सहम जाते थे लोग ..!!!
उन्ही .. नजरों को .. बरसात .. की तरह ~~ बरसते देखा है .. !!!

जिनके .. हाथों के .. जरा से .. इशारे से ..पत्थर भी कांप उठते थे..!!!
उन्ही .. हाथों को .. पत्तों की तरह .. थर थर काँपते देखा है .. !!!

जिन आवाज़ो से कभी .. बिजली के कड़कने का .. होता था भरम ..!!!
उन.. होठों पर भी .. मजबूर .. चुप्पियों का ताला .. लगा देखा है .. !!!

ये जवानी .. ये ताकत .. ये दौलत ~~ सब कुदरत की .. इनायत है ..!!!
इनके .. जाते ही .. इंसान को ~~बे औकात , बेजान होते हुआ देखा है ... !!!

अपने .. आज पर .. इतना ना .. इतराना ~~ मेरे .. यारों ..!!!
वक्त की धारा में .. अच्छे अच्छों को ~~ मजबूर होकर बहते देखा है .. !!!

काफी नहीं होता छुपा लेना अपनी आँखों की मक्कारी,
कभी इस काजल के जलवे से
कर सको..तो किसी को खुश करो...दुःख देते ...हुए....
तो हमने हजारों को देखा है ।।।



















--" कुछ भूली बिसरि यादें ही "अक्सर हमारी कहानियां होती है " --- ADABI SAANGAM ------507----JANUARY , Ist 2022------STORY NARRATION BY R.K .NAGPAL -----

 कुछ भूली बिसरि यादें ही "अक्सर हमारी कहानियां होती है 

क्या खोया क्या पाया है हमने अब तक के अपने जीवन के सफर में ?
कुछ भूली बिसरि यादें जो कभी कभी  ताजा हो जाती है,  है एक कहानी बन कर  , लोग कहते है  भारत देश बदल रहा है ,वहां भी वह सब कुछ है जो कभी सिर्फ अमेरिका यूरोप में हुआ करता था , मतलब हर ऐशों आराम का सामान , धन दौलत बड़े बड़े मकान मोटर गाड़ियां और खाने पीने को सब कुछ '

पर  हमारे संस्कारो का क्या ? वह भी तो अब पहले से नहीं रहे वह भी  तो बदल गए हैं ?




लोग आजकल रूखे हो गए है , मिलते नहीं बात भी नहीं करते , हर चीज़ पे अपना अधिपत्य चाहते हैं , जहाँ उनका अपना स्वार्थ होता है वहां उनके लिए सब गौण होजाते हैं " लोग आज ख़ुशी से ज्यादा खुरसी का  शोक रखते है यानी के चौधराहट का । 

आज की दुनिया में  जिन्हें वाकई बात करना आता है ---जो कुछ करने की हैसियत में होते हैं -- वो लोग ही अक्सर -------खामोश रहते हैं ,

 कैसे समझाऊँ इस बदलती दुनिया के हर वक्त बदल रहे अंदाज़ को अपनी इतनी  छोटी सी कहानी में , ?

इज़्ज़त कमाने की बात करते हो ?
आज नफ़रत कमाना भी,
इस दुनिया में आसान नहीं है साहब.....
लोगो की आँखों में खटकने के लिए भी, बहुत कुछ करना पड़ता है , अपने अंदर खूबिया पैदा करनी पड़ती है , वरना तो लोग आपकी तरफ देखते भी नहीं 


लोग आज भी कहते है , पहले भी कहा करते थे , किस्से अपने अपने वक्त के , 
जो हर जुबान को छु गए , हर दिल में बस गए वह अमर कहावते बन गई ,
 जिन्हे सुन कर पढ़ कर दुनिया ने अपनी नई राह बनाई ,वह आपबीती सच्ची कहानियां बन गई। 

मुझ से बड़े और सीनियर महापुरुष हैं जो इस महफ़िल में आज भी मौजूद हैं , 
सेठी साहब , गुलाटी साहब ,सुषमा जी , सुभाष अरोरा जी , प्रवेश जी, अशोक जी  व् और भी होंगे जिन्होंने वह जमाना देखा होगा ,वह मुझ से बहुत ज्यादा जानते  होंगे के जिंदगी का सफर तब कितना सकूं भरा था बनिस्पत आज के , 

उनके पास भी किस्से हैं कुछ नए कुछ पुराने , हमारे पास भी यादें हैं कुछ नई कुछ पुरानी भी 
हमारे पास तो  किस्से है कुछ हमारे बड़ो के बताये हुए और कुछ हैं देश विभाजन १९४७ के बाद के ,हमारे खुद के कमाए हुए 


जब दादा के सिरहाने खड़े होकर पैसे मांगते थे तो एक टक्का या सुराख वाला धेला या उससे भी छोटा कोई सिक्का दादा जी हाथ में थमा देते थे और हम ख़ुशी ख़ुशी उससे अपनी सारी जरूरते पूरी कर लेते थे ,

जब देसी घी का भाव साढे चार रुपए का एक सेर  था और दूध का भाव तीन चार आने प्रति सेर  के आस पास तो हम उस छेद वाले पैसे की कीमत का अंदाज आज की तुलना में करे तो हम बहुत अमीर हुआ करते थे। 

दूध दही की नदियाँ बहने का, सोने की चिड़िया भारत का  मतलब सब तरफ खुशहाली तभी तो देश पे उन लुटेरों के आक्रमण हुए जिन्हे भारत की दौलत राज पाट लूट कर अपना वर्चस्व जमाना था। 

वक्त गुजर गया पीढ़ियां दर पीढिआँ गुजरती गई और हम गरीब देश बन कर रह गए , जिसमे न खाने को कुछ बचा न वह खुशहाली , आपने दींन  ईमान संस्कारों की बलि देकर , अपने आप को बस बचाने में लगे रहे। नकली शौरत के पीछे भाग भाग कर असली जिंदगी बहुत पीछे छोड़ आये , वह प्यार की जिंदगी एक दूजे के सत्कार की जिंदगी। न मालुम कहाँ खो गई है ?

इस अँधा धुंद दौड़ ने हमें दिया क्या ? सोचो कभी बैठ कर 

जब मेरी जिंदगी में टेलेविसिन ने कदम रखा , मेरी किताबें मुझ से छूट गई , मेरा साइकिल पर बैठ लाइब्रेरी जाना बंद हो गया , मेरे दरवाजे पर कार आ खड़ी हुई तो मैं चलना घूमना भी भूल गया , फिर मेरे हाथ में मोबाइल थमा दिया किसी ने मेरा पत्राचार , चिट्ठी लिखने का सबब ख़त्म हो गया , 

घर में रखे कंप्यूटर ने तो मुझ से मेरी कलम ही छीन ली और मेरा दिमागी शबदकोष और शब्दों की स्पेल्लिंग्स ही भूल गया , जबसे घर में ऐरकण्डीशन लगवाया , पेड़ो की ठंडी छावं का आनंद भूल गया , रोटी रोजी के लिए अपना गावं और देश छोड़ा बड़े शहर में रहने लगे ,तो अपनी धरती की मिटटी की सोंधी सोंधी खुशबू भूल गया , 

पैसा बैंकों में रख कर क्रेडिट कार्ड मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गया और मैं पैसे की अहमियत ही भूल गया , जबसे बाथरूम्स में perfumes का इस्तेमाल शुरू हुआ , हम पार्क में खिले फूलों की खुशबू भूल गए , जब से हर गली नुक्कड़ पर फ़ास्ट फ़ूड की दुकाने खुली हम अपना सात्विक खाना पकाना ही भूल गए , अपनी माँ के हाथों से पक्की मक्की की रोटी और सरसों के साग का स्वाद ही भूल गए। 

बची खुची हमारी हसरते इतनी बढ़ गई के बस जीवन की भागमभाग में कहीं रुकना ही भूल गए , अंत में नासूर की तरह मेरी जिंदगी में चुभ गया (व्हाट्सअप )  जिसने मुझे कुछ ज्ञान तो दिया पर मेरा सारा सकून छीन लिया , मेरा बात चीत का लहजा ही बदल गया , 

अदब मिट गया दायरा भी सिमट गया , मिलना जुलना भी अब तो एक कुम्भ का मेला सा हो गया , लेकिन हर शख्स यहाँ व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर बन के रह गया , इतना ज्ञान कहाँ छुपा था जो अच्चानक इन कुछ वर्षों में सामने आने लगा।  

कुछ सूचनायें गलत कुछ सही पर दुकान सबकी चलने लगी , यह कोई पहला नुकसान नहीं था जो हमें अपनी जिंदगी से मोबाइल की स्क्रीन तक समेट  गया , 
इससे से पहले भी बहुत नुक्सान हो चूका है हमारा ?  किस्से हैं किस्स्सों का क्या मानो तो हकीकत न मानो तो कहानी है 


#हमारा #भी #एक #जमाना #था....
😊😘😜😊😍😍
खुद ही स्कूल जाना पड़ता था इसलिए साइकिल बस आदि से भेजने की रीत नहीं थी,
स्कूल भेजने के बाद कुछ अच्छा बुरा होगा कोई किडनेपिंग होगी ,ऐसा हमारे मां-बाप कभी सोचते भी नहीं थे.....उनको किसी बात का डर भी नहीं होता था

🤪 पास / फेल बस यही हमको मालूम था... 
% से हमारा कभी संबंध ही नहीं था.

😛 ट्यूशन लगाई है ऐसा बताने में भी शर्म आती थी क्योंकि हमको निखद #ढपोर #शंख समझा जा सकता था...
🤣🤣🤣
किताबों में पीपल के पत्ते, विद्या के पत्ते, मोर पंख रखकर हम पढाई में होशियार हो जाते हैं ऐसी हमारी धारणाएं थी...

☺️☺️ कपड़े की थैली में...बस्तों में..और बाद में एल्यूमीनियम की पेटियों में...किताब कॉपियां बेहतरीन तरीके से जमा कर रखने में हमें महारत हासिल थी.. 

😁 हर साल जब नई क्लास का बस्ता जमाते थे उसके पहले किताब कापी के ऊपर गत्ते की जिल्द चढ़ाते थे और फिर खाकी पेपर के कवर, यह काम ...एक वार्षिक उत्सव या त्योहार की तरह होता था...

🤗  साल खत्म होने के बाद अपनी किताबें बेचना और बदले में अगले साल की पुरानी किताबें खरीदने में हमें किसी भी प्रकार की कोई शर्म नहीं आती थी. पुराने विद्यार्थिओं के लिखे नोट्स या किताबों में अंडर लाइन किये हुए वाक्य हमारी पढाई में बिना टूशन बहुत सहायता  किया करते थे 

🤪 हमारे माताजी पिताजी को हमारी पढ़ाई का बोझ है..ऐसा कभी  लगा ही नहीं.😞 कई बार तो लोग जब उनसे पूछते थे तो उन्हें हमारी क्लास और अंको का कोई ज्ञान ही नहीं होता था , सब अपनी अपनी जिंदगी में मस्ती से चले जाते थे , 
एक दोस्त को साइकिल के अगले डंडे पर और दूसरे दोस्त को पीछे कैरियर पर बिठाकर गली-गली में घूमना हमारी दिनचर्या थी.... हम ना जाने कितना घूमे होंगे .....

🥸😎  स्कूल में मास्टर जी या मैडम जी के हाथ से अपने हाथ पे बेंत की मार खाना, मुर्गा बनना ,पैर के अंगूठे पकड़ कर खड़े रहना, और कान लाल होने तक मरोड़े जाना हमारी तबियत दरुस्त रखता था, ऐसा  वक्त था  हमारा #ईगो रईसी कभी आड़े नहीं आता था....
 सही बोलें तो #ईगो क्या होता है यह हमें मालूम ही नहीं था ...🧐😝 

घर और स्कूल में मार खाना भी हमारे दैनिक जीवन की एक सामान्य कसरती प्रक्रिया थी. तभी तो हम आज भी उतने ही चुस्त हैं 

मारने वाला और मार खाने वाला दोनों ही खुश रहते थे. मार खाने वाला इसलिए क्योंकि कल से आज कम पिटे हैं और मारने वाला इसलिए कि आज फिर उसने हाथ धो लिए अपनी भंडास निकाल कर 😀😀  ......

😜 बिना चप्पल जूते के और किसी भी गेंद के साथ लकड़ी के पटियों से कहीं पर भी नंगे पैर क्रिकेट खेलने में क्या सुख था वह हमको ही पता है .

😁 हमने पॉकेट मनी कभी भी मांगी ही नहीं और पिताजी ने भी दी नहीं.....इसलिए हमारी आवश्यकता भी छोटी छोटी सी ही थीं....साल में कभी-कभार एक हाथ बार सेव मिक्सचर मुरमुरे का भेल खा लिया तो बहुत होता था......गर्मियों में सड़क पर खड़े ठेले से गन्ने का रस पीकर , बँटे वाली सोडा वाटर ,उसमें भी हम बहुत खुश हो लेते थे.

छोटी मोटी जरूरतें तो घर में ही कोई भी पूरी कर देता था क्योंकि परिवार संयुक्त होते थे ..

दिवाली में पटाखों की लड़ी को छुट्टा करके एक एक पटाखा फोड़ते रहने में हमको कभी अपमान नहीं लगा.



01. हमारा नुकसान उस समय से शुरू हुआ था जब , लोगो की नियत काम करने की बजाये कामगारों पर राज करने की बनी ,लोगों को पैसा दो नशा दो और जो भी करवा लो , खुद बैठ के मौज करो। 

हरित क्रांति के नाम पर देश में #रासायनिक खेती की शुरूआत हुई , फसले बम्पर होने लगी , भूख तो मिटी पर लालच इस कदर बढ़ गया के इसमें राजनीती और कुर्सी दिखने लगी , लोगों को बांटो लड़ाओ उन्ही के पैसों से देश को बर्बाद करो फिर कुर्सी पाकर फिर उन्हीं लोगो को मदद देने का वायदा फिर उन्ही के टैक्स के पैसों को दबाओ , कुछ उसमे से इन्ही गरीब लोगों में बाँट दो फिर दुबारा कुर्सी हथिआ लो बस यही तो है आज की सच्ची कहानी 

जब ऐसी ऐसी खेती की जाने लगी जिसमे पानी बहुत चाहिए तो पानी बहुत गहराई से निकाला जाने लगा और फिर धीरे धीरे मीठा  पानी ख़त्म और जमीन बंजर होने लगी और  हमारा पौष्टिक वर्धक शुद्ध भोजन विष युक्त कर दिया गया  !अब सर पर खतरा है सूखे का और बर्बादी का , लेकिन नशा कुर्सी का हो या पावर का , या हो ड्रग्स का ? किसके पास है वक्त और सकून जो बैठ के पल दो पल अपने परिवार देश के बारे में सोच सके ?




😁  हम....हमारे मां बाप को कभी बता ही नहीं पाए कि हम आपको कितना प्रेम करते हैं क्योंकि हमको #आई #लव #यू कहना ही नहीं आता था... 😌

 आज हम दुनिया के असंख्य धक्के और टाॅन्ट खाते हुए......और संघर्ष करती हुई दुनिया का एक हिस्सा है..किसी को जो चाहिए था वह मिला और किसी को कुछ मिला भी के नहीं.. ?क्या पता.. 

स्कूल के भीतर  डबल ट्रिपल सीट पर घूमने वाले हम ,और स्कूल के बाहर उस हाफ पेंट मैं रहकर गोली टाॅफी बेचने वाले की  दुकान पर दोस्तों द्वारा खिलाए पिलाए जाने की कृपा हमें याद है.....वह दोस्त कहां खो गए ?वह बेर वाली माई कहां खो गई....वह चूरन बेचने वाली अम्मा कहां खो गई..?.पता ही नहीं.. चला 

😇  हम दुनिया में आज कहीं भी रहें , पर यह सत्य है कि हम वास्तविक दुनिया में पले ,बड़े हुए हैं हमारा वास्तविकता से सामना वास्तव में ही हुआ है ....हम आज जहाँ हैं ,अपनी मेहनत, लगन, ईमानदारी ,और अपने बुजर्गों के आशीर्वाद से पहुंचे हैं ....

🙃  कपड़ों में सलवटे ना पड़ने देना ,लेकिन और रिश्तो में सिर्फ औपचारिकता का ही  पालन करते रहना , हमें जमा ही नहीं......सुबह का खाना और रात का खाना इसके बीच में माँ के हाथ की बनाई एक प्रोंठी एक रुमाल में बंधी के सिवा, टिफिन क्या था हमें मालूम ही नहीं...हम अपने नसीब को दोष नहीं देते....जो जी रहे हैं वह आनंद से जी रहे हैं ,और यही सोचते है....और यही सोच हमें जीने में मदत कर रही है.. जो जीवन हमने जिया...उसकी वर्तमान से तुलना हो ही नहीं सकती ,,,,,,,,


😌  हम अच्छे थे या बुरे थे....नहीं मालूम...पर #हमारा #भी #एक #जमाना #था ..... 🤩🙋🏻‍♂️साहब 



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02. हमारा नुकसान उस दिन भी शुरू हुआ था जिस दिन श्वेत क्रांति के नाम पर देश में जर्सी गाय लायी गई और भारतीय स्वदेशी गाय का अमृत रूपी दूध छोड़कर, उसे काट कर खाना या उसके मॉस को विदेशों में भेज कर दौलत कमाना , शुरू किया और  जर्सी गाय का विषैला दूध जो की स्टेरॉयड इंजेक्शन  युक्त है  पीना शुरु किया था... !अब हर इंसान कई तरह की aquired immunodeficiency से ग्रसित नजर आता। 
हर सब्जी , मांस दालों में ऐसे ऐसे fertilizers हैं जो अंत में हमारे शरीर को , दिल , गुर्दे , लिवर को ही खा जाते है , लेकिन बात कोई नहीं कर सकता क्योंकि आज हर बुराई के पीछे एक बड़ी लॉबी है जो बहुत पैसा खर्च करके सबकी जिंदगी को नारकीय बना चुकी है 


03. हमारा नुकसान उस दिन भी  शुरू हुआ था जिस दिन भारतीयों ने दूध, दही, मक्खन, घी आदि छोड़कर शराब, अफीम जैसी नशीली वस्तुओं का उत्पादन और अत्यधिक सेवन शुरू किया  . !

04. हमारा नुकसान उस दिन भी शुरू हुआ जिस दिन हमने मिट्टी के बर्तनों को छोड़कर घरों में एलुमिनियम के बर्तन, प्रेशर कुकर व घर में फ्रिज आया... !और हम तरह तरह की बीमारियों से मरने लगे , किसी ने अपने फायदे के लिए यह चीजे बना कर पूरी इंसानियत को तबाही की कहानी लिख डाली 

05. हमारा नुकसान उस दिन भी  शुरू हुआ था जिस दिन देश वासियों ने गन्ने का रस या नींबु पानी छोड़कर पेप्सी, कोका कोला पीना शुरु किया था जिसमें 12 तरह के कैमिकल होते हैं और जो कैंसर, टीबी, हृदय घात का कारण बनते हैं ..!

06. हमारा नुकसान उस दिन शुरू हुआ जिस दिन देश वासियों ने घानी का शुद्ध देशी तेल खाना छोड़ दिया और रिफाइंड आयल खाना शुरू किया, रिफाइंड ऑयल हृदय घात , पार्किंसंस , alzhymer आदि  का कारण बन रहा है.. !लेकिन कौन उठाइएगा इस ताकतवर लॉबी के विरुद्ध >? आवाज उठाने वाले को ही दुनिया से उठा दिया जाएगा। 

07. हमारा नुकसान उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश वासियों ने अपने स्वदेशी भोजन 56 तरह के पकवान छोड़कर पीजा, बर्गर, जंक फूड खाना शुरू किया था जो अनेक बीमारियों का कारण बन रहा है.. ! 

08. हमारा नुकसान उस दिन शुरू हुआ जिस दिन लोगों ने स्वस्थ दिनचर्या छोड़कर मनमानी दिनचर्या शुरू की ...!न सोने का वक्त न उठने का न खाने का , शरीर को प्रकृति से दूर जिम में जाकर छोड़ दिया 

09.हमारा नुकसान तब शुरू हुवा, जब ना हमने अपनी संस्कृति को जाना और ना ही अपने बच्चों को उसका ज्ञान दिया, हमारे आदर्श हमारे संत व महापुरुष नही बल्कि  संस्कारहीन फ़िल्म अभिनेता हो गए !हम कहाँ थे और कहाँ पहुँच गए ? चलो पहले हम गुलाम अगर थे तो अपनी गलती ,गफलत , या स्वार्थ से ही न ?

आइए हम अपने पूर्वजों की तरह अनुशासित और संयमित जीवन जी कर पूर्ण आनंद लेने की कभी क्यों अभी से ही  क्यों न शुरुआत करें...वरना दफन हो जाएंगे उसी उपजाऊ मिटटी में जिसकी फसलों से हम गुलजार हुए थे , भांति भांति की अवधारणाएं हमने अपनी बना ली हैं और लोगों के बहकावे से अपनी जड़ो से टूट कर चले जा रहे उस चमक दमक के पीछे जो हमसे ही छीनी गई है और हमें अन्धकार में धकेलते हुए वह हमपे राज करते रहे 

एक जापानी डॉक्टर को कुछ सवालों के जवाब देते टेलेविजन पर सुना 
डॉक्टर हमने सुना है भागने दौड़ने रहने से जिंदगी लम्बी हो जाती है ?

अपनी कार को कितना भगाते हो रोज ? क्या कार को ज्यादा चलाने भगाने  से वह नई और ताकतवर बनी  रहती है क्या ? कछुओं को भागते कभी देखा है ? उसकी जिंदगी मालूम है कितनी लम्बी है ? गति मंजिल पर जल्दी पहुंचा सकती है पर उसकी कीमत जिंदगी को अपने कुछ वर्ष कम करके चुकानी पड़ती है , इसलिए थोड़ा आराम करो अपने जीवन को लम्बा करना है तो  

कुछ डॉक्टर और मेरे दोस्त भी मुझे  शराब पीने से मना करते है बोलते हैं जल्दी मर जाओगे , डॉक्टर हंस पड़ा बोला  , वाइन बनती है फलों से अंगूर से , फल स्वास्थ्य के लिए सब डॉक्टर बोलते हैं बड़े अच्छे होते है ?
 
ब्रांडी भी डिस्टिल्ड वाइन होती है जिसका मतलब फ्रूट से पानी निकाल लिया और फ्रूट केगुण ही अब इसमें बचे है पानी नहीं , बियर शराब  भी अनाज से बनती है , और अनाज आप रोज सुबह शाम खाते हो वह तो कोई मना  नहीं करता तुम्हे ? जब अनाज अच्छा है तो उससे बनी वस्तुएं गलत कैसे ? चियर्स बॉटम अप 

तो डॉक्टर मैं कौन से जिम में रोज जाऊँ और क्या एक्सरसाइज करूँ ताकि फिट बना रहूं ?
ऐसा कोई जिम नहीं है न ही कोई एक्सरसाइज है , पहलवान भी मरते है और जिम चलाने वाले भी , मेरी मानो सिर्फ सामान्य सैर करो , जिस एक्सरसाइज से शरीर को कष्ट हो वह शरीर को तंदरुस्त कैसे रखेगा ?

डॉक्टर मुझे दिल के डॉक्टर ने बोला  है वेजिटेबल  आयल में तली चीज़े नुकसान देती है ? 
ज्यादा सब्जी ज्यादा अनाज नुकसान देता है ? नहीं न ? 
तो फिर उनसे निकला तेल माने ज्यादा सब्जी ,तो तेल  नुक्सान कैसे देगा ?

चॉकलेट तो नुक्सान देता है न ? 
डॉक्टर ने लगभग चिल्लाते हुए कहा " पगला गए हो क्या " 
कोकोआ बीन्स भी एक सब्जी है , उसमे मिलाई चीनी भी , फिर नुकसान क्यों होता है ? नुक्सान उसके बनाने और उसमे केमिकल्स  मिलाने का है , वरना चॉकलेट तो व्हिस्की से भी ज्यादा मूड लिफ्टर है  

डॉक्टर मैं तैराकी सीख रहा हूँ सुना है शरीर की फिगर ठीक बनी रहती है ? 
अगर स्विमिंग से फिगर बनती है तो मुझे वेहहेल मछली के बारे में अपने विचार बताओ ?

तो फिर लोग क्यों कहते है शरीर को शेप में रखो ? यस शेप में रखो पर कौन सी शेप ? 
गोल मटोल होना भी एक शेप है। 

डॉक्टर ने आगे बताया " मुझे उम्मीद है जो जो भी गलत धारणाएं आप लोगो ने खाने और पीने के बारे में फैला रखी है मेरी बाते सुन कर वह दूर हुई होंगी ?

अंत में डॉक्टर ने जिंदगी  का निचोड़ बताते हुए कहा " देखो दोस्त जिंदगी का सफर मौत तक , 
जिंदगी या शरीर को इस तरह डरा डरा के नहीं पूरा किया जा सकता , शरीर को इस्तेमाल कीजिये , ख़ूबसूरती कोई मायने नहीं रखती , एक हाथ में बियर का मग और दुसरे में चॉकलेट ,

 थका डालो इस शरीर को चिल्लाओ ,गाओ , हंसो और जब बिस्तर पर पड़ोगे तो याद आएंगे यही हँसते हुए पल , जो दिल करे खाओ क्योंकि मरना तो सबको है जितना मर्जी कोई परहेज कर ले : और सबसे बड़ी नसीहत मेरी गाँठ बाँध लो " यह motivational health speakers आपको सिर्फ बेवकूफ बनाते है आप से पैसा कमाने के लिए , वरना मरते तो यह भी है कभी कभी वक्त से पहले भी 

ट्रेड मिल के अविष्कारक की मौत सिर्फ 54 साल की उम्र में हो गई 
और जिसने jymnastic बॉडी एक्सरसाइज की खोज  की उसकी मौत केवल 57 साल की उम्र में 

वर्ल्ड बॉडी बिल्डिंग चैंपियन की मौत सिर्फ 41 वर्ष की आयु में हो गई 
दुनिया का सबसे उम्दा और तेज फुटबॉलर माराडोना की मौत 60 वर्ष की आयु में हो गई 

BUT लेकिन:---

KFC वाला फ्राइड चिकन खाते खिलाते 94 साल की उम्र तक जिन्दा रहा 

NUTELLA brand के अविष्कारक की मौत 88 वर्ष की उम्र में हुई 

जरा सोचो सबसे पुराना सिगरेट बनाने और पीने वाला 102 साल तक जीवित रहा 

हफीम/ opium का अविष्कारक 116  साल तक जीवित था जो सिर्फ earthquake में बिल्डिंग में दब कर मरा , अफीम से नहीं 

9. Hennessey inventor की मौत  98. वर्ष की आयु में हुई 

अब मुझे कोई बताये यह सब ज्ञानी डॉक्टर इस नतीजे पे कैसे पहुंचे के एक्सरसाइज करने से उम्र लम्बी होती है ? उम्र लम्बी नहीं होती बल्कि उम्र चुस्त होते हुए भी तेजी से गुजरती है। 

एक खरगोश हमेशा भागता दौड़ता रहता है लेकिन उसकी उम्र सिर्फ 2 साल तक ही है , जबकि उसी के साथ रेस लगा कर बच्चों को कहानियां सुनाते सुनाते हम यह भूल गए के कछुवा 400 साल तक जीता है बिना किसी एक्सरसाइज के ?

गाँधी के तीनो बन्दर डिजिटल युग में एक हो गए है , इंसान जब मोबाइल लेकर बैठता है तो न यह इधर उधर देखता है , न किसी की सुनता है , और न ही कुछ बोलता है 

 वक़्त का काम तो गुज़रना है..!
एक वह दौर था ,एक यह भी दौर है 
बुरा हो तो बेसब्री से सब्र करो..!!
अच्छा हो तो शुक्र का भी शुक्राना करो...!!!
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कितना भी अच्छा बोलू मैं , लोग ध्यान से सुनते नहीं ,
कहते हैं नया क्या है ? सब कुछ तो है किताबों में  पड़ा हुआ है ,

पड़ा तो है पर पढ़ा नहीं जा सका , वक्त ही कहाँ मिलता है सबको ?
दुःख जरूर होता था कभी , अपने अहंकार में  जब कोई बोलता था 

 रब के सज़दे और इबादत ने अब ऐसा बना दिया है मुझे..
ना अब किसी के ल़फ्ज चुभते है और ना किसी की खामोशी ..

थोड़ा रुकिए , सोचिये , शांत रहिये , अंधी रेस में मत जुड़िये , जहाँ आनंद ,प्यार ,इज़्ज़त न मिले वहां मत बैठिये , खाना पीना मस्ती ही आपका जीवन है मौज करिये अपने घर में भी कर सकते है , मरना तो अंत में आपको भी है। अमरत्व की तलाश में क्यों खामखाह वक्त से पहले मरे जा रहे हो ?

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पड़ोसन :-  फोन बहुत अच्छा है तुम्हारा ।
श्रीमती :-  भाई ने ले कर दिया , चालीस हजार का पड़ा ।

पड़ोसन:-  नेकलेस भी बहुत अच्छा है तुम्हारा ।
श्रीमती :-  इन्होंने ले कर दिया , डेढ़ लाख का पढ़ा ।

पड़ोसन :-  पति भी  बहुत अच्छे है तुम्हारे ।
श्रीमती:-  पिताजी ने लेकर दीये , चालीस लाख में पड़े 

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"जीवन चक्र क्या है" ❓
आदमी कचौरी समोसे खा कर बीमार हो जाता है, फिर वो अस्पताल में बेड पर लेट के रिश्तेदारों द्वारा लाये संतरे, मौसम्बी खाता है।
उसके रिश्तेदार अस्पताल के बाहर खड़े हो कर समोसे कचौरी खाते हैं।

यही जीवन चक्र है।

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कोई आप सेपूछे कौन हूँ मैं,आप  कह देना कोई ख़ास नहीं;

एक दोस्त है कच्चा पक्का सा,
एक झूठ हैं आधा सच्चा सा,
जज़्बात को ढँके एक पर्दा सा ,
एक बहाना है बस अच्छा सा;

जीवन का एक ऐसा साथी है,
जो दूर ही है बस पास नहीं,
कोईआपसे पूंछे कौन हूँ मैं,
आप कह देना कोई ख़ास नहीं;

हवा का सुहाना झोंका है,
कभी नाजुक ,कभी तूफानों सा;
देख कर जो नजरें झुका ले
कभी अपना तो कभी बेगानो सा

जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र,
जो समुन्दर है पर दिल को प्यास नहीं;
कोई आपसे पूछे कौन हूँ मैं,
आप  कह देना कोई ख़ास नहीं!!😊😊


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भारतीय शादी में खाने की वैरायटी देखकर बेहोश हुआ विदेशी नागरिक
 
सोमवार की रात एक भारतीय शादी में भोजन की वैरायटी और उसे खाने वालों को देखकर एक विदेशी नागरिक बेहोश हो गया...

इस विदेशी नागरिक ने बाद में पुलिस को बताया कि शादी में 125 तरह की डिशेज देखकर वह डिप्रेशन में आ गया और सुधबुध खो बैठा...

मैक्सिम गोर्की नामक यह विदेशी अपने एक भारतीय मित्र के बेटे के मैरिज रिसेप्शन में भाग लेने खास तौर पर जर्मनी से भारत आया था. एक निजी अस्पताल में सदमे से उबर रहे मैक्सिम ने बताया वहां हर जगह बस खाना ही खाना था...

मैं एक स्टॉल पर गया तो वहां भारतीय शैली में चाइनीज खाना पराेसा जा रहा था. मंचुरियन, नूडल्स, स्प्रिंगरोल और न जाने क्या क्या. मैंने खाना शुरू ही किया था कि मेजबान ने टोक दिया और कहा मैक्सिम थोड़ा ही खाना ये स्टार्टर है. वहां 20 तरह के स्टार्टर थे मेरा दिल बैठ गया...

फिर मेरे मेजबान मुझे मेन कोर्स पर ले गए. वहां दस तरह के सलाद, ढेरों प्रकार के अचार, पापड़, रायते, दर्जनों तरह की सब्जियां और कई तरह की दालें थीं. अनेकों प्रकार के चावल और पुलाव भी थे. साथ ही बहुत कुछ ऐसा था जिसे मैं पहचान नहीं पाया...

फिर मैंने देखा कि एक जगह ढाबा लिखा हुआ था वहां भी कई तरह की रोटियां, सब्जियां और तंदूरी डिशेज थीं. फिर स्वीट्स और डेसर्ट्स के स्टाल थे मैं गिन नहीं पाया पर कम से कम दो दर्जन तो थे ही. कई तरह की आइसक्रीम और कुल्फियां भी थीं...

मैक्सिम ने बताया यह सब देखकर मेरा दिल घबराने लगा लेकिन मैं किसी तरह खुद को संभाले रहा. मैंने ऐसे कई लोगों को देखा जिन्हाेंने अपनी प्लेटों में बुरी तरह खाना ठूंसा हुआ था. वे दबा के खा रहे थे और उन्हें खाते देख मेरा जी बैठने लगा. तब मैंने सोचा थोड़ा पानी पी लेता हूं तबियत हल्की हो जायेगी...

पानी पीने गया तो वहां दो लोगों की बातचीत सुनकर मेरे होश उड़ गए. इसके बाद मैंने खुद को इस अस्पताल में पाया...

तो आपने क्या सुना था ?
जवाब में मैक्सिम ने बताया खाना खाने के बाद जब दो लोग पानी पीने आए तो आपस में बात कर रहे थे... " अरे यार खाने में मजा नहीं आया इससे अच्छा खाना तो कल गोयल के यहां था 50 तरह के तो मीठे थे ".....

" ये तो खाने में कंजूसी कर गए वैरायटी देखो कितनी कम है "....😱😱😱

बस मैंने यही आखिरी शब्द सुने और मैं बेहोश हो गया...😁😁






भूली बिसरि यादें