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Wednesday, March 15, 2023

Februay 26th , 2022 ----- ADABI SANGAM --- Mohabbat----Prem ---LOVE ----ISHQ----मोहब्बत

अदबी संगम --ZOOM MEETING --FEBRUARY 26 ,2022 
मोहब्बत --- TIME -6 PM 
मंजिलें अपनी जगह है रस्ते अपनी जगह , 
मोहब्बत की झूटी कहानी पे रोय ,


एक बार तो -----एक बार तो ------
आ जाओ हमारे शहर
सदा बरसात रहती है वहां----
कभी बादल बरसते हैं ,
और ,कभीआँखे , हमारी
सिर्फ उनकी -मोहब्बत में





बड़ा ही सोच समझ के मैंने ,
लिखा था दिल के दरवाजे पर ,

अंदर आना सख्त मना है
न जाने कब दाखिल हो गया  यह इश्क
 
मुस्कुराते हुए बोला
माफ़ करना दोस्त , मैं तो अँधा हूँ
न मैं  देख सकता हूँ , न ही पढ़  

मोहब्बत किससे और कब हो जाये अदांजा नहीं होता I
ये वो घर है, जिसका कोई दरवाजा नहीं होता II

एक ही शर्त है मोहब्बत में ,
नजरें टकराती है , झुक जाती हैं, 

दिल का दरवाजा खुल जाता है 
सिम सिम जादू की तरह 


इश्क एक चिंगारी है ,दोस्तों ने कहा 
ख़ाक हो जाओगे 

इसका क्यों खौफ दिखाते हो हमें ?
हम तो पहले से ही दिल में

मोहब्बत की आग का दरिया ,
चुपचाप बसाये बैठे हैं ,

राख हो चुकते हम इसआग में ,कब के
 आँखों में हमारे अगर ,छलकता ,समुन्दर न होता

मोहब्बत मिली तो नींद भी न रही  अपनी !
गुमनाम ज़िन्दगी थी तो कितना सकून था !!

लोग हर बार यही पूछते हैं ,तुमने उसमें देखा क्या  !
बेवजह गिरफ्तार होकर रह गए उनकी नज़रों में ?

मेरा जवाब हर वक्त वही होता है ,
यह दो नजरों का आपसी मामला है, 
उन्ही की भाषा है ,आप नहीं समझोगे 

मोहब्बत क्या है चलो दो लब्ज़ों में बताते है !
उनका मजबूर करना ,और हमारा मजबूर हो जाना !!

एक भोली सी सूरत ही थी ,चुप चाप से दिल में उतर गई 
मिलने को तो दुनियाँ मे कई चेहरे मिले

पर उस जैसी मोहब्बत तो, 
हम खुद से भी ना कर पाये

जहाँ है कशिश, दो अजनबी, वहीँ है प्यार
वहीँ तो है ,मोहब्बत का इज़हार

ऐ मोहब्बत, तूझसे पार पाने की कोई राह नही !
तू तो उसे ही मिलेगी ,जिसे तेरी परवाह नही !!

यही तो हम ने उनसे भी कहा था पहली ही मुलाक़ात में
गुरुर तो नहीं करते पर इतना खुद पे यकीन जरुर है !

अगर याद नहीं करोगे तो भुला भी नहीं पाओगे !!

उतर जाते है दिल मे कुछ लोग इस कदर
उनको निकालो तो जान निकल जाती है, 

कितने संगदिल होते हैं कुछ लोग  मगर 
दिल में छिपा लेते  है मुहब्बतें, काले धन की तरह !
खुलासा नही करते कभी ,
कहीं ,छापा न पड जाए ,

कुछ कमाल की मोहब्बत ,भी करते हैं कुछ लोग 
अचानक ही शुरू होती है ,और बिन बतायें ही ख़त्म

अच्छा ही  करते हैं वो लोग जो मोहब्बत का इज़हार नहीं करते !
ख़ामोशी से मर जाते हैं मगर किसी को बदनाम नहीं करते !!

मैंने भी कहा ,हाँ लेकिन मेरी मोहब्बत की वफ़ा भी तो देख !
अब से मैं उसके नाम वालो से भी मोहब्बत से पेश आता हूं !!

मोहब्बत में , जुबान नहीं बोलती 
आँखों से सब बय्याँ  हो जाता है 
मोहब्बत सच्ची है तो मुँह से निकला झूठ भी .
आँखों से पकड़ा जाता है  !!

मुहब्बत तो दिल देकर, की जाती है मेरे दोस्त !
चेहरा देखकर तो लोग,सिर्फ सौदा करते हैँ !!

देख के एक अनजान चेहरे को ,
कोशिश जितनी भी कर लो
मोहब्बत की नहीं जाती ,
दिल चाहेगा तो हो जाती है 

दुःख में ख़ुशी की वजह बनती है मोहब्बत
दर्द में यादों की वजह बनती है मोहब्बत

जब कुछ भी अच्छा ना लगे हमें दुनिया में
तब हमारे जीने की वजह बनती है मोहब्बत

मोहब्बत करने वालों की कमी नहीं है दुनिया में,
अकाल तो निभाने वालों का पडा है साहब!!!

मुहब्बत में झुकना कोई अजीब बात नहीं,
चमकता सूरज भी तो ढल जाता है 
चाँद की मोहब्बत में !!



अपनापन छलके जिसकी बातों में 
लाखों में कुछेक ही होते है 
आँखों में छलक  जाते है आँसू 
जब वो हमसे दूर होते है 
!
ये मोहब्बत भी क्या चीज़ है 
जिस से करते है !उन्ही से छुपाते भी है 

मेरे दिल से निकलने का रास्ता न ढूंढ सके !वोह
जो  कहते थे तुम्हारी रग रग से वाकिफ है हम !!

उसकी आँखों में मोहब्बत की चमक आज भी है
बेशक उसे मेरी मोहब्बत पर ,शक आज भी है

जिस नाव में बैठ कर धोये थे,हाथ उसने कभी
पूरे तालाब में वहां मेहंदी की महक आज भी है

हर बार फिर भी पूछते हैं,हमारी चाहत का सबब
बदस्तूर इम्तिहान, इश्क का , जारी आज भी है

क्या कमाल का था ,मंसूबा उनकी मोहब्बत का ?
अपना हमें बना न सके ,किसी का हमें होने न दिया


पर इस दिल का क्या करें ?
समझाने में लगा रहता है हमेशा 
मोहब्बत को ,एक हद  से, गुजरने तो दो,
वो भी रोयेंगे जरूर , थोड़ा हमे बिखर जाने ,तो दो,

अभी ज़िंदा हैं तो, एहसास नहीं है उनको हमारा ,
रो रो कर पुकारेंगे हमे, एक दफा ,मर तो जाने दो।

कमाल की मोहब्बत थी उनको हमसे
अचानक सुरू हुई अचानक ख़त्म भी हो गई

ख़ामोशी हमारी वो समझ न सके 
 अलफ़ाज़ कोई , थे नहीं  ,हमारी जुबान पे 

मोहब्बत भी क्या , अजीब चीज ,बनायीं खुदा तूने,
तेरे ही मंदिर में,तेरी ही मस्जिद ,गिरजे , तेरे ही गुरूद्वारे में 
तेरे ही बंदे, तेरे ही सामने रोते हैं ,फूट फूट कर ,
तुझे नहीं, किसी अपनी खोई मोहब्बत  को पाने के लिए.?

भीग जाती हैं आँखें ,बात बात पर जिनकी
वो दिल से कमजोर नहीं , मोहब्बत के सच्चे होते हैं

वो शख्स जो कभी हारा ही नहीं किसी जंग में I
मोहब्बत में सर कटवाने को तैयार बैठा है II

कुछ हासिल करना ही इश्क कि मंजिल नही होती
किसी को खोकर भी कुछ लोग दिवाने बन जाते है

मुझें छोड़कर वो खुश हैं तो शिकायत कैसी !
अब मैं उन्हें खुश भी न देखूं तो मोहब्बत कैसी !!

सौ बार कहा दिल से ,,चल भूल भी जा उसको !
उतनी ही बार जवाब दिया दिल ने भी ,
यह बात तुम भी तो ,दिल से नहीं कह रहे !


मेहबूब और मोहब्बत अपनी पहचान खुद हैं
जो दिल के आईने में हो ,
वही तो है प्यार के काबिल ,
वरना दिवार के काबिल तो हर तस्वीर होती है

अगर मोहब्बत उससे न मिले जिससे आप करते हो !
तो मोहब्बत उसे ज़रूर देना जो आपसे प्यार करते हैं !!

कोई ठुकरा दे चाहत को तो हंसकर सह लेना !
मुहब्बत की , तबियत में ज़बरदस्ती नहीं होती !!

बड़ा गजब किरदार है मोहब्बत का,
अधूरी हो सकती है मगर ख़तम नहीं !!


मोहब्बत की आजमाइश दे दे कर थक गया हूँ ऐ खुदा.
किस्मत मेँ कोई ऐसा लिख दे.जो मौत तक वफा करे.


रात को जब किसी की याद सताये।
तेज हवाएं बालों को उड़ाती चली जाएँ ,

करलो आँखें बंद चुपचाप सो जाओ ,
यह जो तूफ़ान सब कुछ उड़ाए जा रहा है ,
इसी का ही नाम है कटरीना 
जिसे तुम ,अपनी  हेरोइन समझ बैठे थे?

वादो से बंधी जंजीर थी जो तोड दी मैँने
अब से जल्दी सोया करेंगे , मोहब्बत छोड दी मैँने

जमीर जागता जरूर है , मान जाईये इस हकीकत को जनाब
कभी गुनाह करने से पहले , और कभी गुनाह करने के बाद


एक मोहब्बत और भी है जिंदगी में इस माशूक की मोहब्बत के सिवा ,
जो हमें लोगों से भी जोड़ती है  जिंदगी के बैंक में जब प्यार का बैलेंस कम हो जाता है !
तब हंसी खुशी " के चेक बाउंस होने लगते है !लोग एक दुसरे से दूर होने लगते हैं 
अकाउंट में बैलेंस कम होना ,या चेक पर दस्तखत का न मिलना
अक्सर चेक लौट आते हैं, ऐसे ही रिश्ते भी लौट जाते हैं, जहाँ भी कोई कमी रह जाए 
इसलिए हमेशा अपनों के साथ दिली नज़दीकियां !
बनाए रखिए और एक दुसरे के हृदय पर प्यार के हस्ताक्षर करते रहे !!














नज़र --- NAZAR ----BEHOLDING ---नज़र --- NAZAR ----BEHOLDING ---

नज़र --- NAZAR ----BEHOLDING ---नज़र --- NAZAR ----BEHOLDING ---




नजर एक अरेबियन शब्द है जिसका मतलब है " देखना "
लेकिन यह अच्छी देखने की नज़र ,बुरी नज़र भी होजाती  है

आँखों के मोती से निकली वह किरण ( शर्त यह के उस आँख में मोतिया बिंद न हो )
जो आँखों के रस्ते दिल में उत्तर जाए ,वही है कातिल " नज़र "

जैसीआँखें रहि , जिसकी 
वैसी ही रही , नजर भी उसकी , 
गीत कार  ने गीत लिख डाले नज़र पर भी 

"जरा नजरों से केह दो जी , निशाना चूक न जाए "
मजा तब है ,तुम्हारी हर अदा, कातिल ही कहलाये 

मसरूफ रहने का अंदाज़ , कर अपनों को नजरअंदाज 
कर देगा तुम्हे तनहा एक दिन , बाँध लो गाँठ मेरी यह  बात 

न हो यकीन तो, जरा कब्र  में लेट कर आजमा लो ,
 कितने हैं जो तुम्हारी नजर उतारते है , कितने नज़र अंदाज 
रिश्ते फुर्सत निभाने को नहीं , जिंदगी की खुशहाली होते हैं 

मत खोल मेरी किस्मत की किताब को , न ही खुलवा  मेरा मुहं ,
नजर लग गई  है उसे , किसी शैतान "ऐ  नजर "की 

हर उस शख्स ने मुहं ही फेरा है  मुझ से 
,जिसने भी इसे पढ़ा है 

महफ़िल में हम भी थे, महफ़िल में वह भी थे,
हमने नज़र हटाई नहीं, उन्होंने मिलायी  नहीं। 

उसी नजर को मेरा। .... , इंतज़ार आज भी है 


यूँ तो  गुपचुप बातें होती रहीं  है,..... अक्सर
उनकी नजरों से ,हमारी नज़रों की ,

नाराजगी तो हम दोनों के बीच थी , 
नजरों को नहीं 

पर मतलब अभी तक  ,उन लब्जों के
  समझ आये नहीं ,न हमको न  ही उनको 


नसीहत देने वाले यहाँ हज़ारों 
सरे आम दिख जातें हैं,

साथ निभा दें वो लोग ,मगर 
कहाँ नज़र  आते।है ?

होश कुछ यूँ उड़ गए थे मेरे , जैसे ही मिली थी उनसे नजर ,
बस वो नजर ही याद रही, बाकी सब अंदाजे नजर  हो गए 

अब यकीन हुआ कतराते क्यों हैं , लोग हमसे ?
नजरें मिलते ही   , यह सवाल जो पूछने लगती हैं 

तुम्हारी नजर क्या पड़ी मुझ पर ,
भूख प्यास भी न रही अपनी ,

चेहरा गुलाब था , हो गया  गेंदा 
लुढ़कने लगे जिंदगी में इधर से उधर ,  
जैसे  कोई गगरी हो बे पैंदा 

दिल जैसे फट पड़ेगा छाती फाड़के ,
 ऐसी परमाणु मिसाइल छोड़ती है यह नजर 

नींदे उड़ जाती हैं , भूख प्यास नहीं रहती 
हर वक्त चुभती सी लगती है ,वो कातिल "नजर " 

न रहती कोई भी खवाइश कुछ  पाने की 
 इंतज़ार रहता है  तो सिर्फ। .और सिर्फ उस ...... 
एक  "नजर" के उतर जाने का 


दर्द उठा सर में भी ,देख के नब्ज मेरी ,हकीम भी झुंझुला उठा 
बोल उठा  यह कोई मर्ज वर्ज नहीं , नज़र लगी है किसी की 

नहीं मेरे पास इसका ,इलाज़ कोई भी ,
जहाँ से यह मर्ज लिया है ,इलाज भी है वहीँ 

उसी के पास एक बार फिर से जाओ 
जैसे मिलाई थी नजर उस से ,पहले भी  
एक बार जाकर  फिर से मिलाओ , 
शायद ------इस बार नजर उतर जाए 

क्या बात कर दी हॉकीम साहिब ने , ऐसे 
नजर कोई अपनी मर्जी से मिलाता है क्या ?,


नजर उतारने का धंदा भी ,खूब चमके है इस ज़माने में 
यह ताबीज़ , यह अंघूटी , नहीं तो यह नग  ही डलवा लो 

 देख कर हैरान हूँ मैं भी ,एक अदना से ,बेजुबान आईने का जिगर
एक तो कातिल सी नज़र ,उस पर काजल का कहर !!रोज निहारता है 

फिर भी दीवाल पे टंगा है 
सही सलामत है अभी तक
इसे  क्यों न  लगी बुरी नजर ,
किसी चुड़ैल की ,आज तलक ? 
इसने कौन सी ताबीज़ बाँधी हुई है 


कौन किसकी राह में बिना मतलब 
बिछाता है नजरें ,यूँ  आज की दुनिया में ?

क्या बताएँगे दुनिया को,  के नजर लग गई थी ,
एक बार फिर से मिलवा दो उनसे ,


क्या होगा इन बेफिजूल बातों से, लेकिन 
हम भी  वाकिफ है  , फितरत से अपनी 

सुन ली सबकी , अब करेंगे मन की 

अरे नजर को व्यपार बनाने वालो , जरा सोचो 
आँखें हैं तो नज़ारे है , नज़ारे हैं तो खुशियां हैं 
बहकती हुई नजरें भी  , जिन जिन से मिली होंगी 
कुछ गैर  जरूर होंगे पर , उनमे कुछ होंगे अपने भी ?

तो क्या मैं सब को शक की नजर से देखु ?


उन्होंने  ने भी तो यही कहा था 
जान तुम शर्माते बहुत हो हम से ?
देखते भी नहीं हो मेरी और ?
सच हमसे भी छुपाया न गया 

 आप की निगाह की तो बात ही है  कुछ और 
 घूर के जो देखते हो , डरते है नज़र न लग जाए 

इसलिए  अक्सर नजर  चुरा लेते है 

ऐसी ही किसी  तिरछी नजर ने  ,
किया है अंदर से  ,ख़ाक जिगर पहले भी 

मासूम सी दिखने वाली उस  नजर ने 
बेकरार किया है..!,    बहुत पहले भी 


उनकी  सीधी नज़र ने,
तो कोई बात ,न की  ,कभी भी हम से 
पर  उस  तिरछी हुई नज़र का,जाल 
बड़ा जान लेवा था 

कहने लगे तुम एक नज़र तो देख लो, खुद को ,
मेरी नज़र से  ,फिर देखना 
तुम्हारी नज़रें तलाशेंगी खुद से 
,मेरी उसी नज़र को
 
बड़ी ऊँची शायरी जो हमारे सर के ऊपरसे  निकल गई 

सुना है एक निगाह से ,कत्ल हो जाते हैं लोग
कोई तो एक नज़र हमको भी देख लो
ज़िन्दगी अब , थोड़ा मायूस करने लगी है !!

काँटों और चाक़ुओं का तो है , खामख़ाह नाम बदनाम
काटती जुबान भी हैं !!चुभती तो नजर भी हैं 

और ,

खूबसूरती को कितने ही पर्दों  में रखो 
जिसने भी डाली  इसपे नज़र
बुरी ही डाली !!

कौन है जो मर्ज़ी से जी रहा हो यहाँ
सभी तो किसी न किसी नज़र से हैं बंधे  हुए 

अल्फाज़ो में ढूंढता हु उन्हें  ,हक़ीक़त में  नज़र आते  नहीं
गुनाह बताते नहीं  हमारा ,जो हम उन्हें ,एक नज़र भाते नहीं 
 
कहने लगे हमसे वो 
दुनिया में आए हो, ,तो चेहरे पढ़ने का हुनर रखना,
दुश्मनों से कोई खतरा नहीं है, किसी को भी इस जहाँ में 
बस रखना तो अपनो पर,थोड़ी पैनी "नज़र "रखना।



ख़ुशी ही तो थे वोह मेरी , 
पर ना जाने कब ,किसी की
बुरी नज़र लग गई !!


इस तरहां बेरुख़ी से ,जो नज़रे मिली,
कुछ जवाब तो मिल गए हैं 
लेकिन पहचान गया  हूँ सबकी नज़र को अब मैं भी 
जिस अंदाज़ से वोह हमें ,नज़र अंदाज़ करते हैं !!


तुम्हारी राह में शायद मिट्टी के घर नहीं आते
इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते..
निकल जाने पर पलट के देखा भी नही तुमने..एक बार !
रिश्ता तुम्हारी नज़र में , क्या कल का अखबार हो गया..है !!

नजरों  में सम्भाल के रखा पर ,
उसे नज़र भर के देखा नहीं
नज़र न लग जाए कहीं मेरी ही 
मैंने उसकी तरफ देखा ही नहीं !!


मुझे हर वो पत्थर जिसकी ठोकर करे आगाह रस्ते में 
मुझे दर्द दे फिर भी , मुझे उसमे हमदर्द नज़र आता है !!


मुझे तो तकलीफ है उन रिश्तों से ,
जो पत्थर तो नहीं है , पर दर्द बहुत देते हैं 


मौसम है आशिकाना साहिब जरा सम्भल के रहियेगा
यहां नजरें ही नज़रों को मार गिराती  है ,
कातिल हमें ना कहियेगा !!

नजर और नसीब के मिलने का ,इत्तफाक कुछ ऐसा है दुनिया में
नजर को पसंद हमेशा वही आता है ,    जो नसीब मे नही होता !!

पर  तुम जब भी मिलो हमसे ,तो नजरे उठा कर मिला करो
 तुम्हारी झुकी नज़रों में ------ हम अपना चेहरा नहीं देख पाते  


कोई  लाख खूबसूरत बन जाये ,किसी और की नज़र में !
आईने में खड़ा शख्स  उसे खूब  अच्छे से जानता है

बस इतनी पाकीज़ा रहे ,आईना-ऐ-ज़िन्दगी
जब खुद से मिले नज़र ,तो नजरें शर्मसार ना हो !!


फिक्र नही लोगों में निन्दा हो तो हो
बंदा अपनी नज़र में शर्मिन्दा न हो !!


रिश्ते कुदरती मौत नहीं मरते , 
इनका क़त्ल होता है इंसान की 
अपनी ही "नजर" के "नजरिया"  से 
कभी नफ़रत से तो 
कभी ग़लतफहमी 
या , नज़र अंदाज़ी से

ना जाने क्यों वो आजकल हमसे मुस्कुरा के मिलते हैं
शायद अपने अन्दर के सारे रंजो -गम छुपा के मिलते हैं

वो बखूबी जानते हैं आंखे सच बोल जाती हैं
शायद इसी लिए वो नज़र झुका के मिलते हैं !!
 ,हमारी नजरों से दूर रह कर भी ,मुझपर पैनी नज़र रखते हैं 
आखिर अहमियत क्या है हमारी ,जो ईतनी ख़बर रखते हैं !!



खूबसूरत चेहरा सब को दिख जाता है , 
आँखों के रस्ते दिल में उत्तर जाता है 
छुपे भाव इसमें ,दुनिया नजरअंदाज कर जाती है  
और फिर कभी यही नजरें "नज़ीर" बन जाती  है 


“यूँ तो शिकायतें मुझे भी ,सैंकड़ों हैंअपनों से , मगर ,
 एक नज़र ही काफी होती है सुलह के लिये”

नजरे तलाश करती जरूर है उन्हें , जिनकी नजरें फिर गई हमसे 
पर उन्हें फिर हमसे नजरें  मिलाते,  देखने का अब कोई इरादा नहीं।


आप तो खैर दोस्त हो, जिगरी हो हमारे 
हम तो ,अपने दुश्मन को भी ,  सज़ा बहुत मासूम देते हैं
नही उठाते अपना हाथ किसी पर, कभी गलती से भी ,
बस अपनी "नज़रों  में उसे " चुपचाप से गिरा देते है !!

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तुझे  क्या बताऊँ ए ,दिलरूबा तेरे सामने मेरा हाल है,
तेरी एक निगाह की बात थी ,मेरी ज़िन्दगी बेहाल  है I

















Khawaaish -----ख्वाईश -- April30 Th , 2022 , Adabi sangam meet # 511, Hosted By Mr & Mrs Vinod and Usha kapoor ji --

Khawaaish -----ख्वाईश -- 


अदब का दरवाजा इतना छोटा और तंग होता है कि 
उसमे दाखिल होने से पहले सर को झुकाना पड़ता है 

और दुनिया में कुछ पाने को ,
खुद को मिटाना पड़ता है 

ख्वाइशें मेरी भी थी , के दुनिया को झुका दूँ 
 एक इशारे से किसी को बनाऊं या मिटा दूँ 
 
पर ऐसा कहाँ मुमकिन  है  इस दुनिया में ?
 इतिहास पे नजर घुमाई तो ,सर घूम गया 

सिकंदर हो या मुसोलिनी या हो हिटलर 
खाली हाथ ,सभी तो दफन हैं इसी मिटटी में 
अपनी अपनी अधूरी ख्वाइशों के साथ 

तो मैं क्या उनसे भी बड़ी शख्सियत हूँ जो मेरी हर बात पूरी हो ? नहीं मैं तो कुछ भी नहीं 
सोचा क्यों न अपनी इन्ही ,
अजीबो गरीब ख्वाइशें को ही बदल दूँ ?


भव्य बाजार सजा था ,  दौड़ता व्याकुल लोगों का हजूम 
तरह तरह के गहने , हीरे जड़ित सोने चांदी की चमक ,
रंग बिरंगे परिधानों में सजी संवरी सुंदरियाँ ,मानो 
अप्सराएं उत्तरी हैं , चमक दमक ,जैसे हो इंद्र का दरबार


मेरी नजर एक बड़े से बोर्ड पर पड़ी " लिखा था दुनिया का सबसे बड़ा बाजार , अगर आप हताश हैं निराश हैं तो यहाँ निश्चिन्त होके आइये , सब कुछ है यहाँ ,बच्चे से लेकर बुजुर्ग, सबकी ख्वाइशों का है सामान  यहाँ , आइये और पूरी कर लीजिए 

बिलकुल झूट और गलत है ये विज्ञापन , ख्वाइशें कहाँ कोई पूरी कर सकता है किसी की ?
   जो गर पूरी न हो तो बड़ा ख्वार करती है , यह सब एक ही जगह एक ही जनम में कभी पूरी  हो ही नहीं सकती " इतना तो हम सब अब तक जान ही चुके हैं 

बेवजह की ख्वाहिशें पालकर,
इन के पीछे भागते है,लोग अक्सर 
दिन में तो चैन  मिलता नही ,
 अब रातों में भी जागा करते  है.

जिंदगी नाम ही था चढ़ाई का , 
 मैं हर रोज सीढिआँ चढ़ता गया 
जिंदगी के हर ऊँचे मुकाम को 
उम्र ढलते ढलते सब पा लिया था , 
इसके आगे कुछ था ही नहीं 
सिर्फ ढलान ही नजर आई 
पीछे मुड़ कर देखा तो  ऊंचाई से डर  लगा 
तो क्या मेरी सब ख्वाइशें यहीं तक थी ?



मैं भी बड़ी दुविधा में हूँ 
ज़िन्दगी तो पूरी कट जायेगी ऐसी भी और वैसे भी , 
इन का क्या करूँ जो अभी तक मुझ से चिपटी हैं ,
सांस भी अधर में जा अटकती है इनकी वजह से 

वही  अधूरी खव्हिशें जो मेरी जान से लिपटी है 


हमेशा मसला मेरी ख़ामोशी का रहा 
थी तो मेरी बहुत छोटी छोटी  पर दबी रही ,
पूरी न हुई तो बड़ी लगने लगीं
 ख्वाहिशों इतनी की , 
जब जाहिर की तो सब को खलने लगी 

 दिल ने समझाया मुझे 
उम्मीदें पैदा ही  होती हैं , नउम्मीदी से, 
तो उमीदें पालते ही क्यों हो ?
नाउम्मीदी है जिंदगी में  ग़म की वजह,,,, तो जिंदगी भी तो उमीदों पे टिकी  है ?
 ख़्वाहिशें संजोय रखना मन में 
आज की जिंदगी का कोई गुनाह है क्या ?!

मेरे नसीब की बारिश हमेशा 
कुछ इस तरह से होती रही मुझपे
पलके मेरी भीगती रही.
 ख्वाहिशे -फिर भी --सूखी रही

किसी के अंदर जिंदा रहने की ख्वाहिश में …
हम कितनी बार यूँ ही  घुट घुट कर मर जाते हैं ..

फिर अपनी मायूसी के किस्से जग को सुनाते है 

छोटे थे तब हर ख्वाहिश ख़ुशी में बदल जाती थी,
बड़े हुए हैं ,तबसे हर ख्वाहिश दर्द ही देती है.

जख्म भी बहुत मिले ,पर हँसते रहे हम,
इसे पूरी करने को , हर रोज मरते रहे हम.

मेरे अपनों के चेहरे पर उदासी न आ जाएँ,
मैंने भी कुछ ख्वाहिशों को , दर किनार कर दिया 


कुछ  है अधूरी
कुछ अधूरे से है हम भी
वक्त बीता उम्र बीती
ना पूरी हुई कुछ ख्वाहिशें 
ना ही पूरे हुए हम.

क्यों लगा लेते हो उन लोगों की बाते दिल पे ?
जो अमरूद खरीदने से पहले पूछते है " 
मीठे है न ?
घर लौट कर नमक मिर्च  लगा कर खाते हैं 

लेकिन एक सलाह मेरी भी है आपको 
ख्वाहिश को ख्वाहिश ही रहने दो,
जरूरत बन गई तो नींद नही आएगी.

मर कर कब्र  में भी तुम्हे जगायेंगी , 
 कब्र की गर्मी में ऐरकण्डीशन मांगने लगेंगी 

एक अजीब रिश्ता है मेरे और ख्वाहिशों के दरमियां
वो मुझे जीने नहीं देती और में उन्हें मरने नहीं देता

फुर्सत नहीं है इंसान को घर से मंदिर तक आने की
और ख्वाहिश रखता है शमशान से सीधा स्वर्ग जाने की

- ख्वाहिशो का सील सिला तो खत्म नहीं होगा कभी, 
हाँ इंसान आपस में युद्ध जरूर करेंगे एक दिन
 अपनी इन न  मुराद ख्वाहिशो के चक्कर में।

मुझे भी शामिल करलो  गुनहगारों की महफ़िल में
मैं भी कातिल हु कुछ अपनी कुछ पराई हसरतों का
अपनी मुफलिसी में ,
मारा है
मैंने भी बेशुमार ख्वाहिशों को 

ख्वाइशों का मरघट लगाना हो तो वकील बन जाओ,
तरह तरह के मुसीबत के मारे लोग ,
अपनी मरी ख्वाइशों को जिन्दा करने की ख्वाइश में , 
लेकरअपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई हुई बेशुमार दौलत ,
अदाएगी तुम्हारी फीस के लिए
किसी को न्याय तो तुम क्या दिला पाओगे ,
बेचारे तुम्हारी ख्वाइशों पे हो  कुर्बान 
कंगाल जरूर हो जाएंगे


रहिमन इस संसार में सबसे सुखी वकील 
ख्वाइशें हैं आपकी , उनकी सिर्फ दलील 
जीत गए तो नजराना ,हार गए तो 
फिर से -----------एक नई अपील 

अब क्या बताएं ?
तकदीर का ही खेल है सब
पर  दुनिया है के  समझती ही नहीं
पहले उम्र नही थी, के ख्वाइश पूरी कर पाते
और अब ख्वाइशें पालने की उम्र नहीं रही 

 अब वैसे तो नहीं बची ,कोई भी , लेकिन जब 
आखिरी ख्वाहिश क्या है ,खुदा पूछता है तो ?
फिर से  जुबा पर ,एक नई खवाइश आ ही आती है ।

लेकिन मुझ में ,वही पुरानी एक सोच अभी जिन्दा है 
फिर वही  जिद बचपन की ,कुछ पुरानी नेमते पाने की , 
बचपन में लौट जाने की , अपने माँ बाप से लिपट जाने की 


कर सकते हो मेरी इस खवाइश को गर पूरा ऐ खुदा ? तो 
कुछ ऐसा कर दो मेरे दिमाग में के मैं सब कुछ भूल जाऊँ जो मैंने खुद कमाया है , 
लौट जाऊं अपने बचपन में 
बन कर वही रोने वाला बच्चा माँ से लिपट कर उसके आगोश में सो जाऊं 



चाहिए अब इक छोटा सा पल जो पूरा अपना हो 
जहाँ मैं 
रहूँ सिर्फ, मेरा जीना मरना भी हो वहां 
उन्ही ,खुद की दबी हुई ख्वाइशों  के साथ ,
जो आज तक अधूरी हैं 

रस्सी जैसी जिंदगी है ,तने तने हालात
एक सिरे पर ख्वाहिश है दूसरे पर औकात


हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि, हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले
– ग़ालिब


मेरी ख़्वाहिश के मुताबिक तिरी दुनिया कम है
और कुछ यूँ है ख़ुदा हद से ज़ियादा कम है


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