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Wednesday, March 15, 2023

Feelings ---Affection -- adabi sangam - Meet---- 26TH FEBRUARY 2023

    भावनाएँ --    Feelings ---Affection -- अहसास - प्यार 

यह फीलिंग्स ,यह अहसास ,यह प्यार --------------
"वो  लगाव , दो जीवों में पैदा कैसे होता है ? जब एक के पास वह चीज़ नहीं होती  जो दुसरे के पास है  , या  \ वही चीज़ दोनों के पास है ,तो भी उन्हें एक जैसी फील या पसंदगी आने लगती है, जो हद से अगर बढ़ जाए तो  , वात्सल्य या अघाड़ जुड़ाव जिसे अंग्रेजी में अफेक्शन कहते है ,होने लगती है 

दर्द का भी एक अपना एहसास होता है  , एक भावना  होती है , लेकिन समझने के लिए वैसा ही दिल सबके पास नहीं होता। अगर ख़ुशी से न भी रह पाओ तो दर्द बन के ही रह जाओ हमारे पास। 




आना हुआ है अदबी बज्म में , इक ज़माने के बाद
खाली हाथ क्या आता , कुछ तो लाना था , सो
पिरो लाया हूँ कुछ जज्बातों को ,प्यार को , लगाव को अपनी


इन टेढ़ी तिरछी लकीरों में
आप इसे मेरी फीलिंग्स समझिये या भावनाएं ,
पर कुछ तो हैं इनमे ,जो मुझे यहाँ खींच लाती हैं 


*आज तक*

शिकायतें रही होंगी दिल में लाखों ,मगर जाहिर एक न होने दी
ख्वाइशें ,चाहतें भी थी बेइंतेहा छुपी हुई , हमारे भीतर
मगर बाहर एक न आने दी
एक अजीब सी हलचल मची रहती थी ,भावनाओं के सागर में
जिसमे कश्ती जब हमारी जा डूबी ,कोई पतवार भी काम न आई


भावनात्मक रिश्ते खूब निभाए हमने भी

रिश्तो का सैलाब है इस दुनिया में ,पर निभाता कोई कोई  हैं ?
भावनाएं जज्बातों का दम तो भरते है सब, साथ चलता कोई कोई  है ?
कुछ नज़दीक के, कुछ दूर के ,रिश्तों में ऐसे उलझ गए थे हम भी
कुछ निभ गए , कुछ जबरदस्ती निभाए गए ,कुछ शीशे के माफिक टूट गए ,

अपनी इन्ही फीलिंग्स के टकराव में
अब आप ही समझिये , वह रिश्ते थे या
केवल रिश्तों में अहसास का आभाव ? 
किस किस को समझिये ,किस किस को समझाइये ?
यह समझता है कोई कोई ?


( यहाँ मैं फीलिंग्स ही अहसास होता है बताने की कोशिश कर रहा हूँ )


उनके ख्वाब आते हैं हमेशा, मिलने हमारे ख्वाबों में
वो मगर खुद क्यों नहीं आते? तो याद आया के 
हमारे वो ख्याल ही तो थे , जो कभी उनसे मिल न सके
तो क्या सिर्फ इसलिए मैं ? 
उन्हें ,अपने
ख्वाबों में भी आने से भी रोक दूँ ?


शिकवे शिकायते ,कितनी भी रही होंगी हमसब के दिलों में
कुछ हमसफ़र बन गए हमारे, उम्र के हर मुकाम पे ,
समझदार थे जो
आंसुओं की भाषा , दिलों के दर्द सब कुछ समझ गए
जो न समझ सके हमको ,उन्हें भी गलत कैसे कह दूँ ?


थोड़ा खोज करते हैं ----
आज के तेजी से बदलते युग में हमें अपने ही लोगों से इतना जुड़ाव या वात्सल्य क्यों नहीं पैदा हो पा रहा ? सब के बीच की फीलिंग्स, भावनाओँ की कमी ,रिश्तों में एक कमजोर कड़ी क्यों बन चुकी हैं ?


उसकी वजह है हमें सच्चे ज्ञान की कमी , हम जिसे स्कूल कॉलेज से एक डिग्री के रूप में पाते है वह एक सर्टिफिकेट है के आपको वह सब पता है जो उस सब्जेक्ट के ऑथर या लेखक ने लिख दिया है और आपको टीचर ने पढ़ा दिया है , इसमें आप का अपना कुछ मौलिक ज्ञान नहींहै , हम सुबह से शाम किताबों में अखबारों में टेलीविज़न पर जो भी पढ़ते सुनते हैं वह सिर्फ सूचना का आदान प्रदान है, ज्ञान का नहीं ,


इसी कमी के चलते हमारी फीलिंग्स और अहसास भी एक सुचना की तरह रोज बदल जाती है। पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान का स्थान्तर इसी फीलिंग्स और जुड़ाव की वजह से हुआ करता था जो आज अचानक बिखर गया है।


आज एक शब्द आप अक्सर अपने बच्चों के मुहं से सुनते है " जनरेशन गैप ' जो हमारे वक्तो में तीन तीन पीढ़ियां एक ही छत के नीचे रहा करती थी उनमे जनरेशन गैप था ४० साल का यानी के सोच में इतना अंतर बहुत लम्बे अंतराल पे महसूस हुआ करता था। और आज ४० साल घट कर मुश्किल से दस साल रह गया है , अपने घर में किसी बच्चे से बात करके देख लो वह कुछ ही समय में "आपको कुछ नहीं पता " कह के साइड हो लेता है उसे अपनी विरासत पारिवारिक मान्यताओं से कोई लगाव नहीं बचा।


यही इस इनफार्मेशन युग ने हमारी पारिवारिक फीलिंग्स या ज्ञान की निरंतरता को तोड़ दिया है , न कोई आपसे सीखना चाहता है न कोई आपके ज्ञान का भागीदार बनना चाहता है तो फीलिंग्स, आपसी जुड़ाव ,प्यार अहसास की भावनाएं कहाँ से पैदा होंगी ? अहसास मुक्त ,फीलिंग्स मुक्त समाज का निर्माण हमारी शिक्षा पद्द्थि ने कर दिया है जिसे वापिस फिर से संवेदनशील बनाना असंभव न भी हो तो भी आज के इंटरनेट के घातक परिवेश में बहुत मुश्किल सा लगता है।


एक शायर की भावनाएं आज के सन्दर्भ में  कहती है "
कोई अच्छा लगे ,तो उसे प्यार मत करना
उसके लिए अपनी नींदे ख़राब मत करना
क्योंकि
दो दिन तो वो , आएंगे ख़ुशी से मिलने आपसे
तीसरे दिन कहेंगे ,सॉरी मेरा इंतेज़ार मत करना

उस रिश्ते के अहसास को वहीँ छोड़ दो ,
जहाँ प्यार और वक्त के लिए भीख मांगनी पड़े
उसे किसी रिश्ते का नाम न दो 

वयस्त तो हर इंसान है अपनी जिंदगी में ,
दिल में लगाव है सच्चा, जिसे आपके लिए ,
वह वक्त भी ढून्ढ ही लेगा , 
जो नहीं ढून्ढ पाता 
उसके दिल में आपके लिए  अहसास  कहाँ है ?,
तो ऐसी  गलत फेहमी में जीना छोड़ दो 


दिलों के जज्बात आँखों में बन के पानी ,
अक्सर उत्तर आते हैं ,बात बात पे जिनके
,वह दिल के कमजोर नहीं ,
बस दिल के सच्चे होते हैं


जो वक्त पर आपका अपना न हुआ ,उस पर कभी हक़ न जताना
 आप को समझ न सके 
जो, उसे अपना दुःख कभी न बताना ,
दुःख तो शायद ही बांटे तुम्हारा वो , अपना बन कर 
अक्सर खोज लेते है आप  की ,भावनाओं से खेलने का बहाना 


जो रिश्ता हमें रुला दे उससे गहरा कोई रिश्ता नहीं
और जो रिश्ता हमें रोता हुआ मझदार में छोड़ दे ,
दिखावा कितना भी करे ,उससे कमजोर कोई रिश्ता नहीं

दिल रो उठा जब कोने में पड़े मेरे बचपन वाले खिलोने
आवाज देके पूछ्ने लगे एक दिन ,"
"कैसे हो कुमार बाबू
क्या खूब खूब खेलते थे हमसे कभी तुम ?,

अब कैसा लगता है ?
जब लोग तुम्हारे साथ खेलते है ?


मैं कैसे बयां करता ,अपने भीतर के अहसास को , चुप रहा सोच के
लोग क्या कहेंगे ?
इस पशोपेश से बहार आ पाता तभी तो कुछ कहता
अनजान था मैं इस हकीकत से भी के, अंदर ही अंदर घुटना कोई काम नहीं आता
असर होता है बातों बातों में
अजनबी भी खुल जाते हैं दो चार मुलाकातों में


यह भावनाएं यह अहसास सीमित नहीं होता सिर्फ मेहबूब के लिए
इसका पहला सफा ही खुलता है माँ की कोख में
माँ से भावनातमक जुड़ाव ,ता उम्र इंसान हो या कोई भी जीव
इससे अछूता नहीं है जहाँ से जीवन की शुरुआत होती है

अपने अहसास को कुछ ऐसे महसूस किया करो ,
अपनी भावनाओं को ,प्यार में पिरो लिया करो
भरोसा भी करो तो उसपे ,जो तुम्हारी तीन बातों को समझ सके,

पहला मुस्कुराहट के पीछे का दर्द,
दूसरा गुस्से के पीछे का प्यार और
तीसरा तुम्हारे चुप रहने के पीछे का कारण।


बेचने निकले सौदा अपना ,जो कभी बाजार तक नहीं पहुंचा
इश्क़ भी किया तो इतना के कभी ,इज़हार तक नहीं पहुंचा
यूँ तो गुफ्तगू बहुत हुई उनसे मेरी फ़ोन पर अक्सर ,
लेकिन सिलसिला कभी यह ,प्यार तक नहीं पहुंचा

शर्तें एक दुसरे की मंजूर थी यूँ तो ,
लेकिन भावनाओं की कमी रही हम दोनों में
सो मसौदा हमारा ,करार तक नहीं पहुंचा
गहराई इसकी हम नापते भी कैसे ?
रिश्ता हमारा कभी तकरार तक ही नही पहुंचा

एहसास न था के ,कितने अकेले हैं हम
दो कदम साथ चल के यह जता गया कोई


अपनी ख़ूबसूरती से बिलकुल  वाकिफ न थे हम
आँखों में आँखें डाल , आइना दिखा गया कोई

अच्छा समय कटा जिसके साथ रह कर हमारा
वह रिश्ता भी, बहका फुसला  कर तोड़ गया कोई

जरा सोचो महसूस तो करो उन भावनाओं को भी
जिन पेड़ो को कागज होने का दंड मिला
उन्हें कैसे लगते होंगे
खुद की लाशों पर ,लिखे गए शायरी के वो मजबून ?

वे बीज कैसे रौशनी को अच्छा मान ले
जिन्हे निचोड़ उनके खून से दिए जलाये गये
जबकि उन्हें रौशनी से अधिक ,धरती माँ
के गर्भ का अन्धकार चाहिए था
अंकुर बन के ,नया जीवन पाने के लिए

पर उनकी भावनाओं को समझेगा  कौन ?

हर एक जज्बात को जुबान नहीं मिलती
हर एक आरजू को दुआ नहीं मिलती
मुस्कराहट बनाये रखो तो दुनिया है साथ
आंसुओं को तो आँखों में भी पनाह नहीं मिलती

पर्स को क्या मालूम के पैसे उधार के हैं
वो तो बस फूला ही रहता है अपने गुमान में
ठीक यही हाल हमारा भी है, उधार की हैं साँसे
न जाने फिर भी हमें ,अहंकार किस बात का है


भीड़ का एक ही सवाल था हमसे , 
क्या दुनिया सुधर जायेगी या बदल जायेगी ?
तुम्हारे इस तरह लिखने बोलने से ?

नहीं बदलेगी दुनिया पता है हमें भी
भीड़ ने हंस कर पुछा फिर क्यों करते हो यह सब ?
इसलिए के दुनिया 
मुझे बदलने की कोशिश न करे


अपनी फीलिंग्स। भावनाओं को
"नाराज़गी"को कुछ देर"चुप" रहकर"छुपा "लिया करो..! 👌
क्योंकी.... 🤞
"गलतियों"पर बात करने से "रिश्ते"अक्सर"उलझ"जाते हैं...
भावनाएं सबकी होती है ,
जिन्हे थोड़ा समझ लेने से ,उलझे रिश्ते भी सुलझ जाते है



अच्छा समय बीता साथ रह के जिसके,

उसी वक़्त का इंतज़ार सिखा गया कोई !

प्यार होता है क्या निभाते है कैसे ?

इज़हार करके निभाना सीखा गया कोई !



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Tuesday, January 4, 2022

Thanks Giving .... Being Grateful --------,शुकराना -- -शुक्रिया



              Thanks, Giving. Being Grateful - शुकराना -शुक्रिया 




वैसे तो कई अवसर आते है हमारी जिंदगी में जब हम किसी न किसी का शुक्रिया या थैंक्स कर रहे होते है , परन्तु जो पश्चिमी दुनिया अमेरिका कनाडा ब्राज़ील वगैरह में हर साल नवंबर में इस चौथे वीरवार को थैंक्स गिविंग दिन के रूप में याद किया जाता है। इस नाम का ,इसका अपना एक ऐतिहासिक सन्दर्भ भी है ,

बात तब की है जब यूरोप में धार्मिक उत्पीड़न अपने चरम पर पहुँच गया था , धार्मिक गुटबाज़ी में मार काट मच गई थी , यूरोप का यह वीभत्स दौर था जिसमे लोग अपनी जान बचाने के लिए अपने देश छोड़ के भागने लगे , फ्रांस , इटली ,इंग्लैंड ,पुर्तगाल ,स्पेन से पलायन करते बहुत से लोगों ने अमेरिका के समुंदरी तटों पर अपना ठिकाना ढूंढा , लेकिन अमेरिकी आदिवासी रेड इंडियन इस आमद से घबरा गए और उनसे , उनका खुनी संघर्ष भी हुआ ,

लेकिन इतनी मारकाट के बाद जब सचाई समझ में आई तो दोनों विजातियों में मिलजुलकर रहने का समझौता हुआ , अब इन्ही आदिवासी रेड इंडियन की वजह से इन यूरोप से विस्थापित शरणार्थियों को खाने का सहारा मिला , इस अवसर को एक बड़े जश्न के रूप में मनाया गया , टर्की और जो भी जीव इन रेड इंडियंस के पास थे उन्हें सर्व किये गए और तब से माइग्रेंट लोगों द्वारा इसे रेड इंडियंस को थैंक्स डे के रूप में मनाया जाने लगा , बेशक थैंक्स गिविंग का इतिहास धार्मिक और रीती रिवाजो के बीच खुनी संघर्ष से शुरू होकर एक ऐसा नेशनल दिन बन गया है जिसे आज भी सब पुरानी रंजिशों को भूल कर इसे मिल जुल कर पूरी दुनिया में मानते है। अब तो इसे एक राष्ट्रीय पर्व के रूप मान्यता और राष्ट्रीय दिवस घोषित किया गया है।

सभी सरकारी दफ्तर , व्यपारिक संसथान , स्कूल , कॉलेज इस दिन अवकाश में रहते है , यात्रा के हिसाब से भी थैंक्स गिविंग का लॉन्ग वीक एन्ड सबसे अधिक व्यस्त रहता है जब लोग इन छुट्टिओं का जी भर के लुत्फ़ उठाते है , लेकिन भीड़ , ट्रैफिक जाम , अत्यधिक व्यस्त सड़के शॉपिंग माल्स , थैंक्स गिविंग परेड की वजह से ट्रैफिक का सुचारु रूप से न चल पाना , कुछ मजा खराब भी हो जाता है , अगर थोड़ा ऐतिहासिक परिपेक्ष में देखें तो

वर्ष 1863 से ही थैंक्स गिविंग डे को एक वार्षिक अवकाश के रूप में मनाया जा रहा है , कुछ लोगो का मानना है के टेक्सास के अल्पासो शहर में 1598 से ही मनाया जा रहा है , कुछ लोगो ने आधुनिक रूप में मनाये जाने वाले थैंक्स गिविंग डे को हार्वेस्ट कटाई - बुआई के सीजन के उत्सव से भी जोड़ा है ,उनके हिसाब से पहला थैंक्स गिविंग डे 1621 - 1623 में मनाया गया जब सूखे से ग्रसित किसानो ने बारिश होने पर जश्न मनाया , जॉर्ज वाशिंगटन अमेरिका के पहले राष्ट्रपति थे उन्होंने 1789 में अलग अलग वक्त पे मनाया जाने वाला थैंक्स गिविंग दिनो को एक कर के इसे राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में घोषित किया था और तब से यह सिर्फ बृहस्पत वार हर वर्ष नवंबर के 4th thursday को ही जाता है ,

खुशियां होती है वहां गम भी होते है , हर व्यक्ति इस उत्सव से खुश नहीं होते , 1970 के शुरू से ही आदिवासी रेड इंडियन समुदाय इसका विरोध करता है और उनका मानना है की हमारी जमीनों पर कब्ज़ा कर के यह देश बसै है किस बात की ख़ुशी मनाएं ? हमारा हक़ छीना गया है हम इसका विरोध करते रहेंगे , उन्होंने इस दिन को 1970 से ही विरोध दिवस मनाना शुरू किया हुआ है ,

एक और संधर्ब सामने आता है की इसे वार्षिक राष्ट्रीय बनाने में कनाडा और अमेरिका में इसे हार्वेस्टिंग सीजन के रूप में मनाया गया , और पिछले वर्ष की उपलभ्दीओं और कुदरत के आशीर्वाद को मान्यता देने के लिए ही इस दिन को चुना गया , अमरीकी लोगो को विश्वास है की 1621 को जो दिन थैंक्स गिविंग के रूप में मनाया गया वही बाद में आधुनिक थैंक्स गिविंग डे इसका सूत्रधार बना , जिसमे ब्रिटिश यात्री जो की प्लायमाउथ में पहुंचे थे ,

इंग्लैंड से आने वाले कोलोनिस्ट अपना थैंक्स गिविंग हर साल प्रार्थनाये कर के मनाते थे क्योकि उन्होंने पूरी दुनिया को अपने कब्जे में लेने के लिए कई घोर युद्ध लड़े और जब जीत जाते थे या कभी सूखे की समाप्ति पर ईश्वर का धन्यवाद दिवस मनाते थे

थैंक्स गिविंग को तब तक कोई मान्यता नहीं मिली थी जब तक अमेरिकी सरकार में नार्थ अमेरिकन लोगो का दबदबा रहा , उन्नीसवीं सदी के मध्य तक जाती दंगे खूब होते रहे , पूरा देश सिविल वार की लपेट में आ गया था ,मैडम सारहा जोसफ हेल ने जो की एक godey lady book नामकी मैगज़ीने चलाती थी thanks Giving day की सपोर्ट में काफी बड़ा आंदोलन किया की इस दिन को राष्ट्रीय घोषित करते हुए ,इन दंगों को रोका जाए और आपसी सौहार्द स्थापिक किया जाए , उनकी यह मेहनत राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की सपोर्ट से 3 अक्टूबर ,1863 को राष्ट्रपति ने इसे राष्ट्रीय दिवस के नाम से आदेश जारी कियाकी हर साल 26 नवंबर वृहस्पति वार को थैंक्स गिविंग डे मनाया जाए


जैसे जैसे वक्त गुजरा , सभ्यता का विस्तार हुआ , हर सामाजिक समुदाय की आने वाली पीढ़ी ने इसे अपने ही रूप में परिभाषित करना शुरू किया , कुछ ने कहा जो हमारे पास है वह किसी की देंन ही तो है और उस देने वाले का हर वर्ष धन्यवाद करना बनता है , इसी में खान पान के आलावा शॉपिंग का मजा भी इसमें जोड़ दिया गया है , जिसमे तरह तरह की सेल्स और डिस्काउंट सेल जोर शोर से मनाई जाती है और इस की वजह से आर्थिक गतिविधिओं में भी जान आ जाती है , 

 इसी की कड़ी में क्रिसमस भी जुड़ जाता है और व्यपारिक संसंस्थानो के लिए पूरे वर्ष की कमाई और पिछले स्टॉक्स को क्लियर करने का एक सुनहरी अवसर मिल जाता है। थैंक्स गिविंग के अगले ही दिन ब्लैक फ्राइडे को जोड़ दिया गया है जिसमे लॉन्ग वीकेंड का पूरा मजा लोग उठा पाते है। और व्यपारिक संसथान भी अपनी तिजोरी खूब भर लेते है , सबका ही फायदा।

इन सब को देखते हुए मुझे अहसास हुआ की अमेरिकी कैनेडियन त्यौहार के पीछे एक देश के लोगों द्वारा दुसरे देश की जमीनों पे कब्जा करके अपने शहर बसाना और फिर जिन लोगों से यह सब छीना गया उनका शुक्रिया करके उन्हें पार्टी दावत देना , हमारे भारत देश में भी वैसाखी लोहड़ी मनाई जाती है जिसके पीछे ख़ुशी उल्हास फसलों के कटने का और लोहड़ी का दिन बरसात के लिए हवन करे या फिर एक इसमें और वृतांत जुड़ा है जिसमे सुंदरी मुंदरी नामक दो युवतिओं को मुगलों से बचा कर उनका विवाह कराना और लोहड़ी को अग्नि कुंड की तरह बनाया जाना , कहीं भी इसके पीछे मारकाट या लड़ाई का कोई जिक्र भी नहीं है ,यह सब भी तो थैंक्स गिविंग था उस शक्ति के लिए जिसकी वजह से उनकी फसलें अच्छी हुई और पूरे समाज में खुशहाली आ गई।



Plymouth’s Thanksgiving began

with a few colonists going out “fowling,” possibly for turkeys but more probably for the easier prey of geese and ducks since they “in one day killed as much as…served the company almost a week.” Next, 90 or so Wampanoag made a surprise appearance at the settlement’s gate, doubtlessly unnerving the 50 or so colonists. Nevertheless, over the next few days, the two groups socialized without incident. The Wampanoag contributed venison to the feast, which included the fowl and probably fish, eels, shellfish, stews, vegetables, and beer. Since Plymouth had few buildings and manufactured goods, most people ate outside while sitting on the ground or on barrels with plates on their laps. The men fired guns, ran races, and drank liquor, struggling to speak in broken English and Wampanoag. This was a rather disorderly affair, but it sealed a treaty between the two groups that lasted until King Philip’s War (1675–76), in which hundreds of colonists and thousands of Native Americans lost their lives.

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The holiday was annually proclaimed by every president thereafter, and the date is chosen, with few exceptions, was the last Thursday in November. President Franklin D. Roosevelt, however, attempted to extend the Christmas shopping season, which generally begins with the Thanksgiving holiday, and to boost the economy by moving the date back a week, to the third week in November. But not all states complied, and, after a joint resolution of Congress in 1941, Roosevelt issued a proclamation in 1942 designating the fourth Thursday in November (which is not always the last Thursday) as Thanksgiving Day

The New England colonists were accustomed to regularly celebrating “Thanksgivings,” days of prayer thanking God for blessings such as military victory or the end of a drought. The U.S. Continental Congress proclaimed a national Thanksgiving upon the enactment of the Constitution, for example. Yet, after 1798, the new U.S. Congress left Thanksgiving declarations to the states; some objected to the national government’s involvement in religious observance, Southerners were slow to adopt a New England custom, and others took offense over the day’s being used to hold partisan speeches and parades. A national Thanksgiving Day seemed more like a lightning rod for controversy than a unifying force.



कृपया आप सभी ध्यान से पढ़े।
आपका नजरिया बदल देगा ये पोस्ट
पुरा पढ़े और अपना अनुभव बताए🙏

"6 वर्षों में मुझे पता चला" कुछ इसी तरह आपको भी पता चला हो तो आप भी अपने अनुभव जरूर जोड़े।
मात्र 6 वर्ष पहले मैं भी एक सामान्य व्यक्ति था,
मुझे भी औरो की तरह नेहरू, गांधी, गांधी परिवार तथा हिन्दू मुस्लिम भाई भाई जैसे नारे अच्छे लगते थे।

मगर.....

इन 6 वर्षों में मुझे कुछ ऐसे सत्य पता चले जो हैरान करने वाले थे।

1. सोशल मीडिया से मुझे यह पता चला कि "पत्रकार" निष्पक्ष नही होते। वे भी किसी खास विचारधारा से जुड़े होते हैं।

2. लेखक, साहित्यकार भी निष्पक्ष नही होते। वे भी किसी खास विचारधारा से जुडे होते है।

3. साहित्य अकादमी, बुकर, मैग्ससे पुरस्कार प्राप्त बुद्धिजीवी भी निष्पक्ष नही होते।

4. फिल्मों के नाम पर एक खास विचारधारा को बढ़ावा दिया जाता है। बालीबुड का सच पता चला।

5. हिन्दू धर्म को सनातन धर्म कहते हैं और देश का नाम हिंदुस्तान है, क्योंकि यह हिंदुओं का इकलौता देश है।

6. हिन्दू शब्द सिंधु से नही (ईरानियों द्वारा स को ह बोलने से) नही आया बल्कि "हिन्दू" शब्द "ऋग्वेद" में लाखों वर्ष पूर्व से ही वर्णित था।

7. जातिवाद, बाल विवाह, पर्दा प्रथा हजारों वर्ष पूर्व सनातनी नही बल्कि मुगलों के आगमन से उपजी कु-व्यवस्था थी, जिसे अंग्रेजों ने सनातन से जोड़कर हिन्दुओ को बांटा। उसे लिखित इतिहास बनाया।

8. किसी समय भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म पूरे विश्व मे फैला था।

9. वास्कोडिगामा का सच ये था कि वह एक लुटेरा, धोखेबाज था और किसी भारतीय जहाज का पीछा करते हुए भारत पहुंचा।

10. बप्पा रावल का नाम, काम और और अद्भुत पराक्रम सुना। उनसे डरकर 300 वर्ष तक मुस्लिम आक्रांता इधर झांके भी नहीं।

11. बाबर, हुमायूँ, अकबर, औरंगजेब, टीपू सुलतान सहित सभी मुगल शासक क्रूर, हत्यारे, इस्लाम के प्रसारक और हिंदुओं का नरसंहारक थे, यह सच पता चला।

12. ताज़महल, लालकिला, कुतुब मीनार हिन्दू भवन थे, इनकी सच्चाई कुछ और थी।

13. जिसे लोग व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी कहकर मजाक उड़ाते हैं, उसी ने मुझे महात्मा गांधी के "ब्रह्मचर्य के प्रयोग" और हेडगेवार, सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल व हिन्दू समाज के साथ कि गई गद्दारी की सच्चाई बताई।

14. गाँधी जी की तुष्टिकरण और भारत विभाजन के बारे मे ज्ञान हुआ।

15. नेहरू की असलियत, उनके इरादे, उनकी हरकतें, पता चली।

16. POJKL के बारे मे भी इन 6 वर्षों में जाना कि कैसे पाकिस्तान ने कब्जा किया। और कौन लोग POJKL को भारत का हिस्सा नहीं मानते हैं।

17. अनुच्छेद 370 और उससे बने नासूर का पता चला।

18. कश्मीर में दलितों को आरक्षण नही मिलता, यह भी अब पता चला।

19. AMU मे दलितों को आरक्षण नही मिलता, वह संविधान से परे है।

20. जेएनयू की असलियत, वहाँ के खेल और हमारे टैक्स से पलने वाली टुकड़े टुकड़े गैंग का पता चला।

21. वामपंथी-देशद्रोही विचारधारा के बारे मे पता चला।

22. जय भीम समुदाय के बारे मे पता चला। भीमराव के नाम पर उनके मत से सर्वथा भिन्न खेल का पता चला। मीम भीम दलित औऱ हिन्दू दलित अलग होते है पता चला।

23. मदर टेरेसा की असलियत अब जाकर ज्ञात हुई।

24. ईसाई मिशनरी और धर्मांतरण के बारे में पता चला।

25. समुदाय विशेष में तीन तलाक, हलाला, तहरुष, मयस्सर, मुताह जैसी कुरीतियों के नाम भी अब जाकर सुना। इनका मतलब जाना।

26. अब मुझे पता चला कि धिम्मी, काफिर, मुशरिक, शिर्क, जिहाद, क्रुसेड जैसे शब्द हिन्दुओं के लिए क्या संदेश रखते हैं।

27. सच बताऊं, गजवा ऐ हिन्द के बारे मे पता भी नहीं था। कभी नाम भी नहीं सुना था। यह सब इन 6 वर्षों में पता चला। स्टॉकहोम सिंड्रोम और लवजिहाद का पता चला।

28. सेकुलरिज्म की असलियत अब पता चली। मानवाधिकार, बॉलीवुड, बड़ी बिंदी गैंग, लुटियंस जोन इन सबके लिए तो हिन्दू एक चारा था।

29. हिन्दू पर्सनल लॉ और मुस्लिम पर्सनल लॉ अलग हैं, यह भी सोशल मीडिया ने ही बताया। नेहरू ने हिन्दू पर्सनल लॉ को समाप्त कर दिया। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ को रहने दिया।

30. भारतीय इतिहास के नाम पर हमें झूठा इतिहास पढ़ाया गया, जिन मुगलों ने हमे लूटा, हम पर अत्याचार किया उन्हें महान बताया गया। यदि कोई बाहरी व्यक्ति आपके घर पर कब्जा करे लूटे अत्याचार करे वह महान और लुटने वाला लुटेरा कैसे हो सकता है।

३१ इतना सब पता चलने के बाद भी और मोदीजी के महान नेतृत्व के बाद भी केवल तीस प्रतिशत हिन्दू ही समझ पाए बाकी वैसे ही हैं।

३२ यहां तक कि न्यायमूर्ति कहे जाने वाले न्यायाधीश तक निष्पक्ष नहीं होते कुछ विचारधारा से कुछ डर के कारण न्याय नहीं कर सकते।

३३ अभिव्यक्ति की आजादी और सही इतिहास जिसे दफन कर दिया गया था वह अब धरती फाड़कर बाहर आ रहा हैै। इसमें कुछ झूठ का अंश हो सकता है पर पहले लिखा इतिहास सारा झूठ का पुलंदा था।

और भी कई विषय हैं जो इन 6 वर्षो मे हमें ज्ञात हुए है जो देश से छुपाए गये थे। जो आपके ध्यान में आए वो इसमें जोड़ते जाइए।

जय श्री राम 🙏🚩













---ADABI SANGAM -ASVM. # 15 -- (498) मुकदमा एक वकील पर -------- STORY PART

  STORY PART:--
 
 ADABI SANGAM -ASVM. # 15 --  (498)  मुकदमा एक वकील पर --इस जहाँ से दूर एक सर्वोच्च सर्वोपरि अदालत -  एक सच्ची कहानी जो खुद पे गुजरी है ---



मुकदमा एक वकील पर  इस जहाँ से दूर एक सर्वोच्च सर्वोपरि अदालत का एक दृश्ये जिसे धर्म राज की अदालत कहते है । और उनके कार्यवाहक यमराज जी को जीवन मृत्यु विभाग दिया गया है 

यह बिलकुल सच्ची आपबीती है जो मैंने अपनी कलम से इस कागज पे उतारी है , विश्वास करो तो यह सब सच है न करो तो एक सपना जो इन जीती जागती मन की आँखों ने मरने से पहले के क्षणों में  देखा ? जी हाँ इस सपने में हम अधमरे  ही उस अदालत में पहुंचे थे , दौरा दिल का पड़ा था और हॉस्पिटल के बिस्तर पर यह सब कुछ हो रहा था  आइये  इस घटना के परिपेक्ष में थोड़ा झाँक लेते हैं ,

1975 -76 में लॉ फैकल्टी दिल्ली यूनिवर्सिटी से वकालत पास हुए , और एक नई चुनौती अदालत की जिंदगी , जिरह ,सबूत , गवाह , जज और उसपे तारीख पे तारीख ,  मेरी जिंदगी इससे पहले भी  बड़ी जद्दोजेहद से गुजर रही थी , मुझे पढाई के साथ साथ अपने हिस्से की फैक्ट्री भी देखनी पड़ती थी वरना भाईओं की सुननी  पड़ती थी के यह नवाब बने यूनिवर्सिटी घूम  घूम हीरो बन  रहे हैं और हम दिन रात अकेले मेहनत करें ? 

क्योंकि यह सब कारोबार पिताजी का ही चलाया हुआ  था तो सबको यही लगता था की सब अगर पार्टनर्स है और प्रॉफिट के हकदार है तो चाहे वह पढ़ रहे हो या यूनिवर्सिटी में रोज जा रहे हो सब काम करें , गोया सुबह लॉ फैकल्टी और तीन बजे शाम के  के बाद रात 11 बजे तक फैक्ट्री का काम , मेरे जवान कसरती  शरीर ने  बखूबी साथ  निभाया , टेक्निकल बुक्स पढ़ी और उसमे सुधार करते हुए अपनी फैक्ट्री की प्रोडक्शन सबसे ऊपर कर के दिखा दी और सब को हैरानी में डाल दिया की मैं वकालत की पढ़ाई  में फैक्ट्री चलाना कहाँ से सीख गया ? 

 इतनी हार्ड मेहनत और वक्त की धार के उल्ट ,और तमाम दिक्कतें एक दम  से विकराल रूप में आ गई जब देश में आपातकाल 1975 में लग गया और सारी मेहनत को ग्रहण लग गया कैशफ्लो रुक गया , फैक्ट्री में दिक्क़ते शुरू हो गई जो आखिर हमारे दिल को काफी कमजोर कर चुकी थी । 

हमारे डूबते दिल और गिरती जीवन शैली घर वालों के लिए भी चिंता का बाइस थी ,1976 में वकील तो बन ही गए थे तो घर वालों ने 1977 में शादी भी कर दी , पेरेंट्स को बड़ी चिंता होती है उम्र ज्यादा हो गई तो दिक्क्त आती है रिश्तों में , 28   साल की थी हमारी उम्र उस वक्त , फिर भी लोग कहा  करते थे उम्र ज्यादा है और लड़की वालों का  सिलेक्शन का पैमाना भी वक्त बे वक्त अक्सर  बदल जाता है। 

अगस्त 17,1978  सबसे बड़ा पुत्र  पैदा हुआ 
सितम्बर 27,1979 में दूसरी पुत्री पैदा हुई 

मार्च-28  1985 , सात साल  अंतराल के बाद मेरे यहाँ सबसे छोटा पुत्र हुआ 

अब शुरू हुई असली कश्मकश , कोर्ट कचेहरी के चक्कर , गृहस्ती की जिम्मेवारी , बच्चों को वक्त देना उन्हें स्कूल वक्त पर पहुँचाना , बच्चा बीमार है तो डॉक्टर के पास लेकर जाना ,सब कुछ जो अब तक आरामो सकूं से चल रहा था उसमे एक भीषण गति लानी पड़ी , उसी तकलीफ के वक्त परिवार में विभाजन भी हो चूका था चक्कर पे चक्कर और अब लड़ाई अकेले ही लड़नी थी सब अपने अपने रास्ते चले गए थे , क्या क्या मुसीबत नहीं टूट पड़ी हम पर , पूँजी टूटी , लेबर बगावत पे उत्तर गई , कोर्ट केसों की भरमार हो गई , बैंक के लोन भी थे उन्होंने भी मौके का फायदा उठाते हुए हमे अकेला देख बड़ा तगड़ा केस ठोक दिया और हम लग गए अपनी जान बचाने में और फैक्ट्री को सरकारी झमेलों से बच्चाने में। पूरी जी जान एक कर उस फैक्ट्री को तो बचा लिया पर अपने दिल को नहीं संभाल पाए 

और आ गया वह कयामत का दिन -जून 16, 1991 , 

यह बिलकुल सच्चा किस्सा है और अपनी यादाश्त के सहारे जीवित किया जा रहा है ,घर में कुछ उदासी थी हमारे जीवन में भी , बच्चे भी मेरी मुरझाई सूरत से कुछ उदास से हो गए थे , सोचा सबको एक हफ्ते शिमला हिल स्टेशन ले चलते है थोड़ा तरो ताज़ा हो जाएंगे , कुछ हुए भी और जब लौट कर वापिस दिल्ली पहुंचे तो सुबह कहीं जाने के लिए जल्दी से तैयार भी हुए तो लगा की शरीर में कुछ जकड़न सी थी ,और थोड़ी एक्सरसाइज भी कर डाली ताकि शरीर की मायूसी थोड़ी ठीक हो जाए, एस्पिरेने की दो गोली निगल ली ,लेकिन जब दरुस्त नहीं हुए तो डॉक्टर से चेक अप  करवाने पहुँच गए , उन्होंने बहुत जल्दी जल्दी चेक अप करके एक इंजेक्शन लगा दिया  गाडी में बिठाया और किसी बड़े हॉस्पिटल के icu में भर्ती करवा दिया और मालुम नहीं हम कहाँ थे और कहाँ पहुँच गए , कोई इंजेक्शन का असर ही रहा होगा हमे, और डूब गए हम एक खामोशी में।  

आँख खुली icu के बिस्तर पर ,तो देखा लोग इधर से उधर आ जा रहे , बड़े विचित्रसफ़ेद  परिधान और चेहरे भी ढके हुए , क्या यह कोई इस्लामिक देश है , पर मैं तो हिंदुस्तानी हूँ फिर यहाँ कैसे ?मेरा पहली बार किसी हॉस्पिटल के इस तरह के वार्ड में आना हुआ था , कभी बीमार जो नहीं पड़ते थे ,

मेरी आँखों को खुलता देख एक नकाबपोश मेरे पास आये , पूछने लगे अब कैसी है तबियत ? तबियत ? क्या हुआ है मुझे ? तुम्हे दिल का भयंकर दौरा पड़ा था ,बेहोशी की हालत में यहाँ लाये गए थे , पिछले २४   घंटो से तुम्हे ऑक्सीजन और इलेक्ट्रिक शॉक देकर तुम्हे जीवित करने का परियास चल रहा था ,  क्या बात कर रहे हो , तो क्या मैं मर चूका हूँ , हाँ पर अब वापिस तुम्हारा शरीर सांस लेने लगा है और तुम खतरे से बहार आ गए हो ? 

ऐसे कैसा मजाक कर रहे हो डॉक्टर साहिब , यह हकीकत है मजाक नहीं तुम्हारा उन किवदन्तिओं जैसा आत्मा का शरीर में पुनर प्रवेश हुआ है ,कह के डॉक्टर तो चले गए पर मेरे दिमाग पे जोर पड़ने लगा मेरे सोचने से और मैं फिर गहरी नींद कब सोगया मुझे कोई पता नहीं , 


यह क्या हो रहा था मेरे साथ ? अचानक मेरा नाम लेके मुझे पुकारा गया राजिंदर नागपाल हाज़िर हों , दुबारा फिर वही आवाज , और फिर एक सफ़ेद लिबास में सज्जन आये " तुम्हे आवाज सुनाई नहीं दे रही , उठो तुम्हारी सुनवाई होनी है " सुनवाई होनी है पर है कौन सी जगह ?क्या किया है मैंने ? मैं इधर उधर अपने आस पास कुछ ढूंढ़ने लगा तो उस सफ़ेद पॉश ने पूछा की क्या ढून्ढ रहे हो ? मैं देख रहा था अगर यह कोर्ट की सुनवाई है तो मेरी फाइल भी यहीं कहीं होगी पर मेरे पास तो कोई फाइल ही नहीं है ,न ही  यह कोई कोर्ट तो लग रही है  , मैंने कितने ही सालों इन तीस हज़ारी और सभी बड़ी बड़ी कोर्ट्स में गुजारें है। कोर्ट्स का हाल तो बस इतना समझ लो 

जहाँ छत का पंखा भी डिस्को करता हुआ चलता था, कूलर थे तो लेकिन गरमा गर्म हवा के लिए , ऐरकण्डीशनर्स होते थे तो लाइट न होने की वजह से ज्यादा तर बंद ही रहते थे , सुनने में आता था बिल ही नहीं भरे जाते थे इस लिए बिजली बीच बीच में परेशां करने के लिए काट दी जाती थी , बदबूदार अदालत के कमरे और ऊपर से  लोगों की अनायास भीड़ , पर यहाँ तो कुछ भी ऐसा नहीं दिख रहा सब कुछ बड़ा साफ़ सुथरा और  आनन्द दायक  वातावरण है, कौन सी अदालत है भाई यह ? 


देखो यह धर्म राज का न्यायलय है यहाँ कोई पेपर फाइल नहीं होती हमारे पास सब रिकॉर्ड पहले से होता है तुम्हारी जिंदगी के कर्मों के लेखे झोके का , क्या बात कर रहे हो एक जिन्दा व्यक्ति धर्मराज यमराज की अदालत क्या बोले जा रहे हो , अभी पता चल जाएगा उठो तुम्हारी सुनवाई शुरू हो गई है  , मुझे एक ऊँचे सिंघासन पर विराज मान जिसे यमराज कहा  जा रहा था उनके सामने पेश किया गया , धर्मराज  जी ने अपने नीचे बैठे रिकॉर्ड कीपर से कहा , चित्र गुप्त इनका लेखा झोका निकालो इन्हे यहाँ क्यों लाया गया है ? इनकी मौत कुदरती हुई है या किसी दुर्घटना में ? अब यमराज की बातें सुनके मेरा दिमाग घूमने लगा की वाकई मैं तो मर कर इधर पहुंचा हूँ। 


भगवान इन साहिब को दिल का दौरा पड़ा था और पृथिवी लोक में इन लोगों ने बड़े बड़े यांत्रक संस्थान बनाये हुए है जिसे यह हॉस्पिटल कहते है जिसमे इनका दावा होता है के यह हर बीमारी का इलाज कर सकते है और किसी भी मृत शरीर के अंग जीवित शरीर में लगा कर उसे जिन्दा रख पाते है ,और दिल फ़ैल हो   जाए तो भी उसे ऑपरेशन से ठीक कर लेते है या किसी मुर्दे के दिल को किसी और में प्रत्यारोपण भी कर लेते है और उसे जिन्दा कर लेते है ? इसे वहाँ के बड़े बड़े डॉक्टर्स इलाज दे इसे बच्चाने में लगे थे , अगर हम वक्त पे न पहुँचते तो उन्होंने इसे भी  काटने का पूरा इंतज़ाम कर रखा था जिसे यह ऑपरेशन थिएटर कहते हैं।  इसे हम वहीँ से उठा के लाये है  

धर्म राज जी ने गुस्से में टेबल पर हथोड़ा मारा हमारे न्यायालय  का इतना अपमान ,हमारी विधान में इंसान का दख़ल हमे कतई मंजूर नहीं , भगवान हमने भी कहाँ इन मुर्ख इंसानो की परवाह की हम इसे अपने नियमानुसार उठा लाएं है , इनका पार्थिव शरीर वहीँ हॉस्पिटल के बिस्तर पर पड़ा है देखिये उनका लाइव टेलीकास्ट ,और यह जो सफ़ेद नकाबपोश इस स्क्रीन पर दिखाई दे रहे है न यह वहां के डॉक्टर कहलाते है और लोग इन्हे भगवान् की तरह पूजते है इनके लिए अपनी सारी धन दौलत लेकर इनके दरवाजे खड़े रहते है की हमारी सम्बन्धी को किसी भी तरह बचा लो। कोई बात नहीं इनका मुकदमा शुरू किया जाए हम देखते है इनके बड़े बड़े हस्पताल और डॉक्टर्स क्या कर पाते है इनके मृत शरीर के साथ। 

इनके गुनाहो का चिटठा बताईये , भगवन इनके खुदके ऐसे कोई खास गुनाह नहीं हैं , यह तो कर्म फल के अनुसार इनके बीते जीवन में जो भी कुछ हुआ है उसी के फलसवरूप उनकी सजा अभी बाकी थी , लेकिन आज के जीवन में  यह अपने मात पिता के भक्त है , पत्नी , बचो और  गृहस्थी में पूरा ध्यान देते है , कोई ऐब नहीं प्यार मोहब्बत से रहते है , तो फिर ? महाराज बस इनकी इतनी ही जिंदगी थी और दिल के दौरे से मौत लिखी थी। 

यह मृत्यु लोक में एक वकील है जिनका काम है लोगो के मुक्कदमे हों या सरकार के खिलाफ कोई न कोई मुकदमा लड़ते रहते है उसी में इनकी जिंदगी गुजर रही है , झूठे केस लेने से दूर भागते है , गरीब लोगो के केस कम फीस या मुफ्त भी कर देते है , लोगों में इनकी  काफी इज़्ज़त है , अपने स्वस्थ जीवन के लिए बहुत प्रयत्न करते है , पर धन दौलत से मोह नहीं रखते ,अब धर्म राज जी से सहन नहीं हुआ और कड़क कर बोले " यमराज यह कैसी विडंबना है एक तरफ आप इसके गुण ही गुण बताये जा रहे हो दुसरे इसके प्राण इतनी जल्दी निकाल लाये हो ? इन वकील लोगो का जीवन तो खुद ही एक सजा होता है , इनका परिवार इनके सान्निध्य को ट्र्स्ट रहता है , सारी जिंदगी फाइलों और किताबों में खपा देते है , आँखों पे इनके चश्मे लगे है , सर के बाल भी चिंताओं से उड़ चुके है 


तारीफ़ और ख़ुशामद में एक बड़ा फ़र्क़ है....साहेब 

तारीफ़ 
आदमी के "काम"की होती है, और 
ख़ुशामद 
"काम" के आदमी की !


वकील होना भी कहाँ आसान है दोस्तों..?

ना किसी के ख्वाबो मे मिलेंगे,
ना किसी के अरमान मे मिलेंगे,
 वह तो सिर्फ ,ऑफिस या कोर्ट मे मिलेंगे,

गर्मी, सर्दी, बरसात यूँ ही गुजर जाती है,
नींद भी पूरी होती नही की रात गुजर जाती है,
होली, दिवाली, नवरात्री, 31st पर भी वोह काम मे मिलेंगे,
तुम आ जाना बेफिक्र मेरे दोस्त
हम हमेशा ऑफिस या कोर्ट मे ही मिलेंगे,

जमाने भर की खुशियों से अलग है हम,
लोगो को लगता है गलत है हम,

बीमार होकर भी ठीक रहती है तबियत हमारी,
कोरोना को इतनी करीबी से झेला है ,
बेरोजगारी और क्लाइंट्स की कमी भी है इस कोरोना में 
इस लिए तो कोई आजकल पूछता भी नही खैरियत हमारी,

कभी क्लाइंट को मुश्किलों से छुड़ाने में तो ,
कभी  क्लाइंटसे डिस्कशन में तो कभी कोर्ट के काम में  बिज़ी मिलेंगे,
तुम्हारे लिए बहुत वक्त है हमारे पास , यादें संजोई है तुम्हारी 
तुम हमेशा आ जाना बेतकल्लुफ मेरे दोस्त,
 हम हमेशा ऑफिस या कोर्ट मे मिलेंगे।।।

 *सभी सम्मानित अधिवक्ताओं को समर्पित
25 November 2020, 

स्वयंपढ़ेऔर_बच्चों को भी  अनिवार्यतः पढ़ाएं ।।
एक ओर जहाँ ईसामसीह को सिर्फ चारकीलों से ठोकी गई है 
वहीँ भीष्मपितामह को धनुर्धर अर्जुन ने सैकड़ों बाणों से ।
कीलों से ठोकें जाने के तीसरे दिन ईसा कीलें निकलने से होश में आ गए थे वहीं पितामह 49 दिनों तक लगातार बाणों के बिस्तर में पूरे होश में रहे और जीवन,अध्यात्म का अमूल्य प्रवचन,ज्ञान भी दिया और अपनी इच्छा से अपने शरीर त्याग दिया ।

सोचें कि पितामह भीष्म की तरह अनगिनत त्यागी महापुरुष हमारे भारत वर्ष में हुये ।

किन्तु धनुर्धर अर्जुन के सैकड़ों बाणों से छलनी किए पितामह भीष्म को जब हमने भगवान् नहीं माना तो चार कीलों से ठोकें जाने पर ईसा को God क्यों माने.....???

ईसा का भारत से क्या संबंध है...???
25December क्यों मनायें...???
क्यों बने सेन्टा क्लाज...???
क्यों लगायें क्रिसमस ट्री...???

कदापि नहीं इस पाखण्ड में नहीं फसाना है न फ़साने देना है 
हमारे पास हमारे पूर्वजों की विरासत में मिली विज्ञानपूर्ण सनातन संस्कृति है 
जो हमारे जीवन को महिमामय गौरवपूर्ण बना सकती है 
अपने बच्चों को इस कुचक्र से बचाओ!!