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Tuesday, January 4, 2022

पतझड़------------------------ख़िज़ाँ -- FALLS --


 पतझड़- ख़िज़ाँ -- FALLS --




 हम इस ब्रह्मांड केअब तक के सबसे खूबसूरत गृह यानि की हमारी पृथ्वी के उपर रहते है। यहाँ हमे वह सब चीज़े मिलती है जो हमे अन्य ग्रहों पर सुनने में अभी तक नहीं मिली ,जो एक इन्सान के जीने के लिए पर्याप्त हों ।

 दोस्तों हमे पृथ्वी की  सरंचना इंसान के रहने के लिए बहुत अनुकूल मिला है,  
फिर भी हम इस को बिगाडने का कोई मौका नहीं छोड़ते ,
जिसका हमें बिलकुल मलाल  नहीं होता । 

लेकिन प्रकृति चिल्लाती है रोष दिखाती है अपने लाल पीले रंग दिखा कर , 
हम कहते है  प्रकृति भी अपना परिधान अपना श्रृंगार बदलती रहती है , 
लेकिन हम यह समझ ही नहीं पाए आज तक की पृकृति का गुस्सा हर बदलते मौसम का ही स्वरुप है।
 न ही इसमें हमेशा बहार का मोसम रहता है न ही कोई दूसरा मौसम , बसंत बहार के बाद खिजां और पतझड़ , बरसात , हिमपात , शीतऋतु का मोसम भी आता है, 

एक बुजुर्ग पति ने आवाज लगाई " हे भाग्यवान सुनती हो , मुझे न अदबी संगम के इस बार के टॉपिक पतझड़ पे लिखना है कोई खास विचार तुम्हारे दिमाग में आये तो बताओ ?' पत्नी ने घूर के देखा और बोली आपलोग भी न क्या क्या लिखते रहते हो , मुहं में तुम्हारे एक दांत नहीं बचा , सर पे एक बाल नहीं , यह क्या पतझड़ से  कम है ? फूल पत्तों के झड़ने की चिंता छोड़ो कुछ अपनी सेहत पे ध्यान दो ? कहते कहते रसोई में चली गई पर विचार तो दे ही गई 

होता तो हमारी जिंदगी में भी यही है , बालअवस्था , तरुणाई टीन , जवानी और फिर आखिर में आता है बुढ़ापा यानी के जिंदगी की आखिरी पायदान पतझड़ ? जिंदगी में भी बहारें और पतझड़ दोनों साथ साथ चलती है। जो चीज़ पनपती है उसे एक दिन जाना भी होता है यही दस्तूर है जीवन का।  

पतझड़ नाम है पेड़ो के पत्तों के झड़ने का। इंसान भी तो अपनी जिंदगी में इन्ही पतझड़ों से रूबरू होता है ?, कभी उसके बाल झड़ जाते हैं , तो कभी दांत , और कभी त्वचा ,धीरे धीरे उसका वजूद भी झड़ते झड़ते वापिस प्रकृति में सिमट जाता है। 

इस दुनिया में सब की यही दास्तान है , बन कर फल फूल खिलना  फिर झड़ जाना
और एक नए रूप में पुनर्जीवित हो जाना यही एक मात्र विधि का विधान है

मंज़िल तो सबकी एक ही है, रास्ते मगर जुदा,
कोई पतझड़ से गुजरा, कोई सहरा से गया।

खूबसूरत फूल चुन लिए उसने मेरे शाख़े-गुल से, और साथ ले गया
खिजां पसंद न आई उसे , वह बाग ही में मेरे साथ रह गई

सिर्फ बागबान ही तो  वाकिफ है इस हकीकत से के ,
न खिजां में थी कोई मायूसी , न बहार में कोई रोशनी
ये तो अपनी अपनी -नजर के चराग है,
कहीं जल गये, तो कहीं बुझ गये।

होता नहीं है कोई बुरे वक्त में शरीक,( शामिल )
किस बात का ,किस किस से गिला करें
जब अपने पत्ते भी भागते हैं, खिजां में, दरख्तों से दूर।

पतझड़ का मौसम जब आया, नज़ारा बदलाव का आया
ओस की बूंदे रो रो कर , मिली पत्तों से आखिरी बार ,
आभास जो हो चूका था उनके जाने का , आखिरी मिलनं था
हर रंग के पत्ते थे , कुछ शोख लाल , और कुछ हरे, भूरे  पीले ,
सब कतार में थे जमीन पे गिरने , और हवा में उड़ जाने को।


लोगों की कतारें लगने लगी , फोटो खींची जाने लगी ,
हमारे विदाई परिधानों को ,खूबसूरती का नाम देता है यह फरेबी इंसान

सब को मालुम है हमारे जनाजे सजे है , फिर फना हो जाना है ,
और यह इन्हे कलर ऑफ़ फाल्स कहता है , बड़े शोक से इसे निहारता है 

यही तो है वह इंसानी फितरत , जो किसी के विनाश पे झूमता है ,
हमारी वेदना को , झड़ते पत्तों को एक उत्सव की तरह मनाता है 


हर हवा का झोंका उनके वजूद पर था भारी ,
नहीं था दम किसी में जो उन्हें गिरने से बचा पाता ,

न ही दम था उस विशालकाय वृक्ष में न ही शाखाओं में
जिनपे अब तक इतना सुहाना मंजर नसीब हुआ था

एक अनजाना खौफ भी था , हमेशा को घर से बेघर होने का ,
किसी को पूरा यकीन था नालिओं के सैलाब में बह जाने का ,

शायद यही सोच के खुद को समझा लिया होगा ,
की जाना तो सबको पड़ता है एक दिन इस प्रकृति से

उसके नियमों से बंधे थे , पुराना शरीर , पुराना परिवार
सब बंधन छोड़ना पड़ता है नया जीवन पाने को

चिनार के पंचकोणी पत्ते ,हर आकार प्रकार के पत्ते ,
सब सूख चले ,पिछले सावन के पाले पोसे हरे भरे पत्ते ,

अब जीवन बीत चला , देख न पाएंगे अगली बहार ये पत्ते
सबका अंजाम एक ही था , लाल ,हरे ,या हो पीले पत्ते


यही तंग हाल जो सबका है यह करिश्मा कुदरते रब का है
जो बहार थी सो खिजां हुई जो खिजां थी अब वह बहार है।”

जिस पेड़ के नीचे कभी सुस्ताया करते थे , हम सब 
खुद को झुलसती गर्मी से बचाते थे , वह शीतलता इन्ही पत्तों की बदौलत ही तो थी?


बड़ा सुहाना समय था , सुबह सुबह पक्षियों का चह चाहाना दिल को लुभा रहा था 
मैं भी बिस्तर से निकल पड़ा , इनके संगीत को सुनने ,

जगह जगह सड़क पर पत्ते बिखरे थे , मेरी पदचाप से पत्तों की चीत्कार सुनी मैंने , 
इन्ही पत्तों के ढेर में एक पत्ता बहुत चमक रहा था , मैंने उसे उठाया और संभाल कर अपनी जेब में रख लिया , घर आकर इसे अपनी पुस्तक में दबा दिया ताकि इसकी ख़ूबसूरती सब को दिखाई जाए।  

खिजां में पेड़ से टूटे हुए इस पत्ते को अपने हाथो में ले मैंने पुछा ,
कैसा लगता है अपनों से यूं बिछड़ कर लावारिस हो जाना ,
जमीन पे गिर ,रोंदेय जाना और बरसाती नाले में बह जाना ,

पत्ते ने संजीदगी से जवाब दिया , हमारा तो जीवन ही इतना था ,मान्यवर
हमें तो हर हाल में शाख से टूट जाना था ,हमारा विसर्जन तो पहले से ही नियत था ,

मौसम के बदलते हर रंग में ही निहित हमारा अस्तित्व है , आपने मुझे मेरी ख़ूबसूरती और चमक की वजह से उठा कर अपने घर में स्थान दिया , मेरे उन बड़े भाई बहनो का क्या जो मेरे साथ ही गिरे पर उन्हें आज तक किसी ने नहीं सहेजा , क्योंकि उनमे कोई कशिश न थी , ? यही सच है जनाब लोग बहारों की कदर करते है खिज़ाओं की नहीं 


रोंदेय जाते है मसले जाते है हम पत्ते , उनके पैरो तले जो भी इधर से गुजरता है
हम जानते है तेज तूफानी हवाएं उडा ले जाएंगी हमें ,
दफना देंगी दूर ,एक अनजान देश की मिटटी में

हमारी विदाई ही हमारा नया जीवन है , नया मुकाम है , नया परिधान है ,
हर बार जा कर हम फिर लौट आते है नए रूप में अपने परिवार के पास

आप अपनी भी तो बताइये जनाब ,खुद के फायदे में परिवार ही छोड़ जाते हो ,
आप भी तो अपना घर छोड़ देते हो , और कभी उसे तोड़ कर दुबारा बना देते हो

आप इंसान है ,बहुत समझदार है , आप तो खुद दरबदर घुमते हो ,
चले जाते हो बिलखते रोते परिवार को छोड़ ,
लेकिन  लौट कर कभी नहीं आते 

हमारी समझ तो बस इतनी ही है
की बिछड़ कर अपनों से मिलती है बस पाऊँ की ठोकरें और दर-दर की दुत्कारी…

देखिए ना तेज़ कितनी उम्र की रफ़्तार है,ज़िंदगी में चैन कम और फ़र्ज़ की भर-मार है!

बस इतना ही मुझको तुमसे है कहना..

तुम्ही ने ही तो हमे अपने आँगन में जगह दी ,

पानी दिया खाद दी , पनपने को पुरा आस्मां दिया
बड़े अच्छे हो तुम, ख्याल रखा करो अपना..!!

कर्ज है मेरे ऊपर तेरे सजदो का..
मैंने भी एक अरसे से तुझे अपना माना है..!! ☘️🌻

यह आवाज मेरे ही अंतर्मन की थी जो एकपतझड़ के  टूटे हुए पत्ते ने मुझे याद करवा दी थी 

पर यह तूफानी बरसाते वह सब कर गई जिसका डर था

नाम पतझड़ का है , जुल्म तो इंसान कभी भी कर देता है ,

अपनी गरज को पेड़ लगाता है और खुद ही कलम कर देता है

आज बह कर जहाँ भी जाएंगे

इससे भी दर्दनाक मंजर क्या होगा वहां..
खंजरों की जगह जुबाने बिक रही हो जहां..!! ⛓️🔗

खामोशी भी अब रास आ गई है.हमें

., हवा की सरसराहट से हम भी जाग उठे है ,
ज़िन्दगी इसी बहाने पास आ गई है..!!

सजा बन जाती है गुज़रे वक़्त की निशानियां..
 इसी लिए बदल लेते हैं हम भी अपना आशियान

जहाँ कभी बसती थी  खुशियाँ, आज हैं मातम वहाँ
वक़्त लाया था बहारें वक़्त लाया है खिजां ।


END 
**********************************************************

क्या कहें हम रखते ही नहीं खबर कौन कैसा है…
कर लेते हैं भरोसा हर एक पर अपना तो दिल ही ऐसा है।

मैं तो बस एक मामूली सा सवाल हूँ साहिब..
और लोग कहते हैं.. तेरा… कोई जवाब नहीं… 😎😎

मेरे “शब्दों” को इतने ध्यान से ना पढ़ा करो दोस्तों,
कुछ याद रह गया तो.. मुझे भूल नहीं पाओगे।

खुदा से क्या मांगू तेरा वास्ते, सदा खुशियां हो तेरे रास्ते..
हँसी तेरे चेहरे पे रहे इस तरह, खुशबू फूलों का साथ, निभाती है जिस तरह।

वक्त भी ये कैसी पहेली दे गया उलझने को
जिंदगी और समझने को उम्र दे गया।

मिल जाता है दो पल का सुकूंन चंद यारों की बंदगी में
वरना परेशां कौन नहीं अपनी-अपनी ज़िंदगी में।

सांसे खर्च हो रही है बीती उम्र का हिसाब नहीं,
फिर भी जीए जा रहें हैं तुझे, जिंदगी तेरा जवाब नहीं।

सबके कर्जे चुका दू मरने से पहले ऐसी मेरी नीयत है..!
मौत से पहले तू भी बता दे .. ऐ ज़िन्दगी तेरी क्या कीमत है..!!

चेहरा तो साफ कर ले, आइने को गंदा बताने वाले..!
हर वक़्त सामने वाला ही गंदा नहीं होता..!! ✨💢✨

बिखेरे बैठा हूं कमरे में सब कुछ…
कहीं एक ख्वाब रखा था वो भी कहीं गुम है..! 🎁

दोस्तों की जुदाई का गम न करना,
दूर रहे तो भी मोहब्बत काम न करना,

अगर मिले ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर,
तो हमें देखकर आंखें बंद न करना.

शायरीयो का बादशाह हूँ और कलम मेरी रानी है,
अल्फाज़ मेरे गुलाम है, बाकी रब की महेरबानी है!!

अगर लोग यूँ ही कमियां निकालते रहे तो,
एक दिन सिर्फ खूबियाँ ही रह जायेगी मुझमें।

दिखावे की मोहब्बत तो जमाने को है हमसे पर,
ये दिल तो वहाँ बिकेगा जहाँ ज़ज्बातो की कदर होगी।

मेरे बारे में अपनी सोच को थोड़ा बदल के देख​,
​मुझसे भी बुरे हैं लोग तू घर से निकल के देख​।

हमको आज़माने की ज़ुर्रत नहीं किसी की,
हम खुद अपनी तक़दीर लिखते है,
खुदा की लिखावट को बदलना तो हमारी फ़ितरत है,
हार को जीत में बदल कर हाथो की लकीर बदलते है!!

अभी सूरज नहीं डूबा जरा सी शाम होने दो,
मैं खुद लौट जाऊंगा मुझे नाकाम तो होने दो,
मुझे बदनाम करने का बहाना ढूँढ़ते क्यों हो,
मैं खुद हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम तो होने दो।

कई लोग मुझको गिराने मे लगे है,
सरे शाम चिराग भुझाने मे लगे है,
उन से कह दो क़तरा नही मैँ 🌊 समन्द्र हूँ,
डूब गये वो ख़ुद जो डूबाने मे लगे है!


सुधीर भाई आज तुम्हारी  छोटी सी क्रियाशीलता ने ( activities ) 
हमारा सब का मजा दो गुना कर दिया , ऐसे ही भाग लेते रहिये , 
भागना बड़ा आसान पर भाग लेना कितना मुश्किल ? 

इसमें कोई शक नहीं , पांच उंगलिओं से ही मुट्ठी बंध  सकती है, 
हम तो उससे कहीं ज्यादा है , ऐसे ही जुड़े रहिये और अपने आने वाले 
एकाकी पन को हमेशा के लिए भूल जाईये  

खुदगर्ज इंसान इन्हे रौंदता हुआ चलता ही रहता है ,
हम तो वैसे ही ख़िज़ाँ के वो  फूल है , जो पत्तों से ही काम चला लेते है 

गिला उन पक्षियों से नहीं जो घर से बेघर हो गए ,
सिला तो उनका अखरता है जिनहे हम इतनी ,
चाव से बुलाते है अपनी पलकों पे बिछाते हैं ,
और वह हैं के बिना वजह , हमसे आँखे चुराते है ,
लाख कहने पे भी अपना सूंदर मुखड़ा हमसे छुपाते है 


काश वो आये या न आएं , पर न आने की वजह तो बता देते ,
इसे ही उनका कलाम समझ , हम पढ़ के खुश नसीब हो जाते 

इनके रुद्रण को समझने को एक कोमल हृदय चाहिए , 
क्या गुजरती है जब आशिआना बिखर जाता है पतझड़  आने के बाद  

देखिए ना तेज़ कितनी उम्र की रफ़्तार है,ज़िंदगी में चैन कम और फ़र्ज़ की भर-मार है!

सिर्फ ये सोचकर हमने अपनी आस्तीने नहीं झटकी..
ना जाने कितने सांप और सपोले बेघर हो जाएंगे..!

ये इनायते गजब की, ये बला की मेहरबानी…
मेरी खैरियत भी पूछी तो किसी और की ज़बानी ..!! 🌸🌸

बहुत सीमेंट है साहब आजकल की हवाओं में..
दिल कब पत्थर बन जाता है पता ही नहीं चलता..!!

ना जाने मतलब के लिए क्यों मेहरबान होते है लोग..!! 💛


samjhauta gamo se kar lo
samjhauta gamo se kar lo
zindagi me gam bhi milte hain
ho patjhad aate hi rahte hain
patjhad aate hi rahte hain
ki madhuban phir bhi khilte hai
samjhauta gamo se kar lo
samjhauta gamo se kar lo

ret ke niche jal ki dhara
ret ke niche jal ki dhara
har sagar ka yaha kinara
rato ke aachal me chupa hai suraj pyara
rato ke aachal me chupa hai suraj pyara
samjhauta gamo se kar lo
samjhauta gamo se kar lo
zindagi me gam bhi milte hain
samjhauta gamo se kar lo
samjhauta gamo se kar lo

de do mujhko zimmedari
de do mujhko zimmedari
main ban jau nazar tumhari
tum meri ankho se dekho duniya sari
tum meri ankho se dekho duniya sari
samjhauta gamo se kar lo
samjhauta gamo se kar lo
zindagi me gum bhi milte hain
ho patjhad aate hi rahte hain
patjhad aate hi rahte hain
ki madhuban phir bhi khilte hain
samjhauta gamo se kar lo
samjhauta gamo se kar lo


"Mehfil -"-महफ़िल -- 27 TH NOVEMBER -2021--- ADABI SANGAM --MEETING NO ---506TH --

"Mehfil -"-महफ़िल -- 
   27 TH NOVEMBER -2021-----   
ADABI SANGAM --MEETING NO ---506TH - TOPIC 
FLAVOR OF INDIA -


महफ़िल

506th meeting of Adabi Sangam Logistics:
Hosts: Mr. and Mrs. Gulati
D/T: 11/27/21. 5:30 PM
Venue: Flavor of India
259-17 Hillside Ave, Glen Oaks, NY 11004
Part 1: Rajni Ji
Part 2: Parvesh
Story: Dr. Mahtab Ji
Topic: MEHFIL

यूँ तो भीड़ काफी हुआ करती थी , कभी महफिल में मेरी ,--------- 
फिर मुझे एक बिमारी लग गई , --
जैसे जैसे मैं सच बोलता गया, लोग उठते गये, महफ़िल वीरान 
 और मैं बिलकुल तनहा -----------

खूब लानते मिली हमें "बोले
महफिलें ऐसे थोड़ा ही सजा करती हैं ?"तुम्हे तो सलीका ही नहीं आया , 
क्या जरूरत थी हरीश चन्दर बनने की ? 
मैंने भी कहा दोस्त देखो अभी अभी तुमने हमेशा सच बोलने वाले का नाम लिया ? 
लोग सचाई पसंद तोबहुत करते है पर बोलते  नहीं , 
कोई बात नहीं चलिए हम अपनी अदबी महफ़िल को रंगीन करते है :-

आज फिर से जमी शायरों कि महफ़िल है
बयां कईयों के कुछ नए , दिल-ए-राज़ होगें,
सबके अपने अपने ख्याल अपने अपने तजुर्बे
इसी महफ़िल में बयान होंगे

हमें तो हमेशा ऐसी महफ़िल कि गलियों से ही गुरेज था
जब जिंदगी की तन्हाईआं बर्दाश्त न हुई तो , आ बैठे यहाँ

एक महफ़िल से जो पीकर उठे…
तो किसी को खबर तक ना लगी

हमें यूँ मुड़ मुड़कर देखना उनका ,खामख्वाह …….
हम बदनाम तो हुए बहुत महफ़िल में ,
राज खुले सो अलग

बार-बार उन्ही पर नजर गयी
लाख कोशिशें की बचाने में हमने , मगर फिर भी उधर गयी

था निगाह में कोई जादू जरूर उनकी
ये जिस पर पड़ी उसी के जिगर में उतर गयी,

फिर भरी महफ़िल में दोस्ती का जिक्र हुआ ,
कुछ भी हम से कहा न गया
हमने तो....
सिर्फ उनकी ओर युहीं देखा था ,
और लोग वाह वाह कहने लगे

रद्दी क़िस्मत होती है जैसे
मेरे हाथों में उसे पाने की रेखा ही नहीं थी

क़यामत तो तब टूटी जब भरी महफ़िल में पुछा उसने
कौन हैं यह साहब पहले कभी देखा नहीं इन्हे?

फिर जाते जाते जले पर नमक भी छिड़का ,उसने
महफ़िल में गले मिल के ,कान में वो धीरे से कह गए

ये दुनिया की रस्म है, हकीकत बताई नहीं जाती
बेशक मोहब्बत थी हमें , फिर भी बताई नहीं जाती

हाल-ए-दिल बताने से कुछ होता नहीं हासिल
इसलिए सारी तकलीफों को छुपा रहा था मै

निकलता आंख से आंसू तो बन जाता मजाक
इसलिए भरी महफ़िल खड़ा मुस्कुरा रहा था मै

मैंने आंसू को बहुत समझाया भरी महफ़िल मे यूँ ना आया करो
आंसू बोला ,तुमको भरी महफ़िल में जब भी तन्हा पाते है,
हमसे रहा नहीं जाता ,साथ देने इसीलिए, चुपके से चले आते है.

बहुत लोग जमाने में हमारे जैसे भी होते है
महफ़िल में हंसते है ,तन्हाई में रोते है ,
आंसुओं की महफ़िल सजा के,
आंसुओं से ही गुफ्तुगू कर लेते है

कुछ करते ,न कहते बना हमसे
छुपाये दिल में ग़मों का जहान बैठे रहे
उनकी बज़्म में उन्हें जानते हुए भी ,
बेज़बान बनकर बैठे रहे

फिर महफ़िल में बनावटी हँसना मेरा मिजाज बन गया
तन्हाई में रोना, सबके लिए एक राज ही बन गया

दिल के दर्द को जाहिर होने ना दिया
यही मेरे जीने का अंदाज बन गया

अब दिल में एहसास तो हो चूका था के
हमारे लिए उनके दिल में ,चाहत बिलकुल न थी ,

वरना ऐसे मुहं फेर के कोई जाता है क्या ?
,अपना दिल उनके क़दमों में भले रख दिया हमने
मगर उन्हें "जमीन "देखने की आदत ही कहाँ थी

फिर से मुझे मिट्टी में खेलने दे खुदा ,……………
यह वीरान महफिले , मतलबी लोग

ये दिखावे की दमकती , चहल पहल
अबयह जिंदगी ,हमें ज़िन्दगी नहीं लगती।

बहुत रुसवा हुए हैं हम , सपनो के बिखर जाने पे
अरमान दफन हुए तो अरसा हुआ ,
वोह अभागा फिर भी जिन्दा है ,

टूट कर भी कम्बख्त धड़कता रहता है ,
मैने दुनिया मैं अपने दिल सा कोई वफादार नहीं देखा। ……

कब महफ़िल मिले और कब वीराना ,
यूँ शिकायते किस से और क्यों करें

जबकि हर महफ़िल में सजती हैं कई महफिले
जिसको भी पास से मिलोगे , तनहा ही होगा

कोई चुप है तो ,कोई है हैरान यहाँ
कोई बेबस तो ,कोई है पशेमान यहाँ

लफ्ज़ों की दहलीज पर घायल है जुबान, परेशां हैं सब
कोई तन्हाई से, तो कोई है परेशान महफ़िल से

दूर ही रहता हूँ इसलिए , उन महफिलों सेआजकल
मेरा खुश रहना जहाँ,दोस्तों को नागवार था

वक्त बदल गया है यह कह कर ,
कोसते रहना वक्त को इतना, कहाँ तक है वाजिब?
सारे नाम पते तो हमारे स्मार्ट फ़ोन में हैं ,

एक बटन दबाते ही जिससे चाहें रूबरू हो जाते हैं
मिलने की कसक ही न बची , तो महफ़िल जमे भी तो कैसे ?

थक चुके हैं भाग भाग के यहाँ सब , आँखें है नींद से बोझिल ,
दिल में है गमो का सागर , दौड़ किसी की अभी थमी नहीं

महफ़िल कहाँ और कैसे जमाएं , , फ़ोन उठाने का भी समय नहीं
फ़ोन पे तो आंसरिंग मशीन लगी है , नाम पूछ लेती है पर जवाब नहीं देती

सभी ऐसे हो यह हम नहीं कहते ,
हम तो सिर्फ अपनी गॅरंटी लेते है
फुर्सत निकाल कर आओ कभी मेरी महफ़िल में
लौटते वक्त दिल नहीं पाओगे अपने सीने में

महफिलों की जान ,न समझना भूल से भी मुझे ,
मेरे चेहरे की बेबाक हंसी ,लाखों गम है छुपाये हुए

बहुत सलाहें मिली हमे अपने दोस्तों से ,क्यों बहस करते हो ?
किसी को खरा खरा सुना देने से, महफिले थोड़ा ही जमती है

हमारी जैसी बगावती सोच का ,जीना क्या और मरना भी क्या ?
आज इस महफ़िल से उठने को हैं , कल इस दुनिया से ही उठ जाएंगे,
सोच फिर भी वही रहेगी

आज हर ख़ुशी है लोगों के दामन में , पर थोड़ा रुक कर हंसने का वक्त नहीं '
माँ की लौरी का अहसास तो है , पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं ,

लड़खड़ाते रिश्ते बहुत हैं हमारे भी , पर उन्हें संवारने का वक्त नहीं
दिन रात दौड़ती दुनिया के बाजार में , भीड़ तो बहुत है मगर -------
महफिले सजाने का वक्त नहीं------------

जाने कब-कब किस-किस ने कैसे-कैसे तरसाया मुझे
तन्हाईयों की बात न पूछो महफ़िलों ने भी बहुत रुलाया मुझे

लेकिन क्या कमाल करते हैं हमसे जलन रखने वाले
महफ़िलें खुद की सजाते हैं और चर्चे वहां भी हमारे करते हैं

उन दुश्मनो को कैसे खराब कह दूं
जो हर महफ़िल में मेरा नाम लेते है

लेकिन फिर भी याद आती हैं आज भी उस महफ़िल की वीरानियाँ
यारों के संग काटी जहाँ हमने अपनी जवानियाँ

अगर जिक्र आया भी होगा कभी मेरा उनकी महफ़िल में
यादाश पे जोर डालने की बजाये , दोस्तों ने बात घुमा दी होगी ,

तमाम वक्त गुजर चूका , शक्ल सूरत भी हमारी बदल चुकी
आज उसी राह से गुजरें भी तो , देख कर नजरें घुमा ली होगी

अब गम भी क्यों करें इस हकीकत का ?
शायरों की बस्ती में कदम रखा तो जाना
ग़मों की महफ़िल भी कमाल जमती है

सुनकर ये बात मेरे दिल को थोड़ी सी खली
दुश्मन के महफ़िल में भी मेरी ही बात चली

यही सोच के रुक जाता हूँ मैं आते-आते
फरेब बहुत है यहाँ चाहने वालों की महफ़िल में

लेकिन कुछ इस तरह से हो गई है ,मेरी जिंदगी में यह शामिल ,
यही है वोह अदबी महफ़िल , जिसमे हैं कुछ सकून के पल

हर शख्स यहाँ आजाद है अपना रंग जमाने को ,
वक्त मिलता है सबको यहाँ अपना दर्द सुनाने को

महफ़िल में आकर कुछ तो सुनाना पड़ता है ,यही यहाँ का दस्तूर है ,
आज भी हम हैं अजीज उनके , कुछ सुन कर, कुछ सुना कर ,
विश्वास दिलाना पड़ता है

**************************************************************************


पैसों की दौड़ में इतना दौड़े की थकने का भी वक्त नहीं ,
किसी के अहसास को क्या समझे ,
जब अपने खवाबों के लिए ही वक्त नहीं


तू ही बता ऐ जिंदगी अब तो , 
ऐसी जिंदगी में जब हासिल ही कुछ नहीं
तो हर पल मरने वालों को , 
जीने के लिए ही वक्त कहाँ मिलेगा

आज तू कल कोई और होगा सद्र-ए-बज़्म-ए-मै
साकिया तुझसे नहीं,हम से है मैखाने का नाम

जैसे चार चांद लग गए महफ़िल में
जब देखूं इस शाम का नज़ारा
हर गम भी लगता है बस प्यारा
यूं सूरज का चुपके से ढलते जाना

महफ़िल में कुछ तो सुनाना पड़ता है
ग़म छुपा कर मुस्कुराना पड़ता है
कभी हम भी उनके अज़ीज़ थे
आज कल ये भी उन्हें याद दिलाना पड़ता है

उतरे जो ज़िन्दगी तेरी गहराइयों में
महफ़िल में रह के भी रहे तनहाइयों में
इसे दीवानगी नहीं तो और क्या कहें
प्यार ढुढतेँ रहे परछाईयों मे

मेरे दिल का दर्द किसने देखा है
मुझे बस खुदा ने तड़पते देखा है
हम तन्हाई में बैठे रोते है
लोगों ने हमें महफ़िल में हँसते देखा है

दुनिया की बड़ी महफिल लगेगी
इस जहां का सारा मुकदमा चलेगा
हम हर तरह से बेगुनाह होंगे और
सजा का हक भी हमें मिलेगा

कभी अकेले में तो कभी महफ़िल में
जितना तलाशा सुकून को उतनी मिली तन्हाई
हर पल रही वो साथ मेरे
और मुझे कभी न मिली रिहाई

शाम सूरज को ढलना सिखाती है
मोहब्बत परवाने को जलना सिखाती है
गिरने वाले को दर्द तो होता है जरूर
यही ठोकरें ही तो सम्भलना सिखाती हैं

महफ़िल में आँख मिलाने से कतराते हैं
मगर अकेले में हमारी तस्वीर निहारते हैं

सजती रहे खुशियों की महफ़िल
हर महफ़िल ख़ुशी से सुहानी बनी रहे
आप ज़िंदगी में इतने खुश रहें कि
ख़ुशी भी आपकी दीवानी बनी रहे

उठ के महफ़िल से मत चले जाना
तुमसे रौशन ये कोना-कोना है

सम्भलकर जाना हसीनों की महफ़िल में
लौटते वक्त दिल नहीं पाओगे अपने सीने में

कई महफिलों में गया हूं
हजारों मयखाने देखे
तेरी आंखों सा शाकी कहीं नहीं
गुजरे कई जमाने देखे

महफ़िल और भी रंगीन हो जाती हैं
जब इसमें आप शामिल हो जाती है

ना हम होंगे ना तुम होंगे और ना ये दिल होगा फिर भी
हज़ारो मंज़िले होंगी हज़ारो कारँवा होंगे,
फिर इसी तरह कुछ महफिले आबाद होंगी

आपकी महफ़िल और मेरी आँखे दोनों भरे-भरे है
क्या करे दोस्त दिल पर लगे जख्म अभी हरे-हरे हैं

हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़साने बयां होंगे
बहारे हमको ढूँढेंगी ना जाने हम कहाँ होंगे

तमन्नाओ की महफ़िल तो हर कोई सजाता है
पूरी उसकी होती है जो तकदीर लेकर आता है

सहारे ढुंढ़ने की आदत छूटती नही हमारी
और तन्हाई मार देती है हिम्मत हमारी


















IST JANUARY 2022----- ADABI SANGAM --MEETING NO ---507TH - TOPIC "--KAZAL / ANKHEN at ( RAJANI'S HOUSE)

काज़ल ----आँखें 

507th meeting of Adabi Sangam Logistics:
Hosts: Rajni ji & Ashok ji
D/T: 1/1/22. 5:30 PM
Venue: Residence: 40  Ninth Street, Hicksville, NY 11801
Part 1: Ashok Singh ji
Part 2: Rajinder ji
Story: Rajinder ji
Topic: KAAJAL
Rajni ji has suggested if the topic Kaajal is too difficult, you may write on AANKHEN आंखें.  Please be on time. Thanks.🙏





आँख हर वह चीज़ देख लेती है जो संसार में है ,
मगर आँख के अंदर कुछ चला जाए तो उसे नहीं देख पाती ?


यही आज की सचाई है मनुष्य की भी ,दुसरे की बुराइयां जिन आँखों से देखता है उन्ही आँखों से खुद की बुराई नजर नहीं आती उसे । कितनी आसानी से या मक्कारी से अपने भीतर बैठी बुराईआं नजरअंदाज कर देता है " हमारा नैनसुख "


महिफल मे आज फिर ,क़यामत की रात हो गई,
उन्होंने तो लगाया था ,अपनी आखो मे काजल सजने संवरने को
पर नजरें जो मिली ---कुछ यादें जो टकराई,
बिन बादल बरस गई आँखें उनकी , काजल भी न ठहर पाया
उस सैलाब में . ,


आखिर यह भ्रम भी टूटा , दम भरा करते थे ,

हम आँखों से दिल पढ़ लिया करते हैं,
आज मगर चूक गए


मै जिसे देख कर हो गया था पागल कभी जवानी में ,
उस लड़की का तो नाम ही काजल था


आईना नज़र लगाए भी तो कैसे

उनको ?
एक तो नाम काजल , ऊपर से
काजल भी लगाती है तो
आईने में देखकर.


मगर दीवाल पे टंगा आइना ,वह सब देख लेता है जिसे हम नहीं देखते
परन्तु "नादान" आईने को भी क्या खबर...
कुछ "चेहरे"


"चेहरे" के अन्दर भी छुपे होते हैं..! जिसे वो भी नहीं देख पाता


आईने ने अपनी रजा दी , सूंदर सा चेहरा , मृग सी आँखें
उन आँखों में लगा काजल , देख के इतनी ख़ूबसूरती ,
चकरा गया आइना भी , पर झूट बोला न गया उससे, "पूछ बैठा "

क्या गम है तुम्हारी आँखों में ? जिसे काजल से छुपा रहे हो ?


आंखें ही, क्या कम कातिल थी,
उस पर, काजल भी लगाते हो,
इश्क में, कत्ल के तुम भी,
क्या क्या हुनर, आजमाते हो.


मुझे याद आ गया ,
अभी गोद में ही था ,न बोलना न चल पाना ,
पर फिर भी है कुछ यादे
माँ ने भी तो लगाया था ,टीका काजल का गाल पे ,
कहते हुए ,"नजर नहीं लगेगी , कभी मेरे लाल को" ,

होगा कुछ तो माँ के इस काजल में जो ,
उसकी ढाल से मैं आज भी मेह्फूस हूँ ,


थोड़े जवान हुए तो काजल का रूप बदल गया , लोग कहने लगे
काजल तो गहना है ख़ूबसूरती का ,
जो मर्दों को नसीब नहीं ,
नहीं था ऐसा पर्दा ? जो हम , गम अपने छुपा लेते ,
औरत ने तो छुपा लिया काजल में , मर्द कहाँ जाते ?


सोचा एक दिन अपने ग़मों को लिख डालूं एक कागज़ पर
उधार मांगा था उनसे हमने उनकी
आँखों का काजल ,अपनी कलम के लिए
उसने भी रख दी शर्त , शायरी किसी और पे नहीं
हमारी आँखों पर ही होनी चाहिए.


बोल के वह मुस्कुराई , थोड़ा शरमाई
हुस्न निखारने के नाम पर
काजल की दिवार जो थी उसने बनाई
आँखो की मायूसी फिर भी छुप न पाई ,


एक तो उनकी आंखे नशीली और ऊपर से लगा यह काजल,
कोई पढ़े भी तो कैसे उन्हें ,
सब कुछ तो काला है वहां ?

आँखों से जज्बात तो जाहिर कर दिए उन्होंने ,
कम्बख्त
,काजल ने पर्दा फिर भी बनाये रखा
बावरा हुआ जाता हूँ बेशक ,देख तेरी अखियों में ,तैरते अक्स
न जाने क्या क्या छुपा रखा है , तेरी इस आँखों के काजल ने

याद है अब तक
तुझसे बिछड़ने की वो अँधेरी शाम मुझे,
तू तो ख़ामोश खडी थी
लेकिन बातें कर रहा था बहता हुआ तेरा काजल.

हौंसला गर तुझ में नहीं था ,मुझसे जुदा होने का,
हुनर मुझ में भी कहाँ था बहते काजल को पढ़ पाने का

उसका लिक्खा हुआ
हर शख्स पढ़ भी नहीं सकता, क्योंकि
वो चालाकी से मिला लेती है ,हमेशा
अपने दो आँसू. काजल में


वो जो अफसाना-ए-ग़म सुन सुन के
हंसा करते थे,हम पर कभी
इतना रोए इक दिन , काली घटाएं देख कर बोले
क्या बादल भी रोया करते है काजल लगा कर ?

कैसे समझाऊँ , किसे समझाऊं, किस भाषा में ?
कौन समझे मेरी आँखों की नमी का मतलब
ज़िन्दगी एक गीत थी , बेइंतिहा सफे जिसके
पर पूरी की पूरी जिल्द बंधाने में कट गई

#हुस्न दिखाकर भला कब हुयी हैं मोहब्बत
वो तो काजल लगाकर हमारी जान ले गयी!!!
बात ज़रा सी है ,लेकिन हवा को कौन समझाए,
जलते दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाया करती थी

निकल आते हैं आँसू
गर जरा सी चूक हो जाये,
किसी की आँख में काजल लगाना
खेल थोड़े ही है.

बताया एक दिन ,मुझे उन्होंने
छोड़ दिया है काजल लगाना,आँखों में ,
बहुत रुलाते हैं लोग ,
ठहर नहीं पाता


कहने लगी अब जरुरत ही नहीं मुझे
काजल लागे किरकरो, सुरमा सहा ना जाए !
जिन नैनंन में साजन बसे,दूजा कौन समाये !!


हमारी जिंदगी भी कुछ आसान नहीं रही
मुहब्बत की बेनूर ख्वाहिशें ,और तेरा गम,
हम भी बिखर से गये हैं ,
आँखों से बहे तेरे काजल की तरह.


चख के देख ली दुनिया भर की शराब जो

नशा तेरी कजरारी आँखों में था वो किसी में नहीं!!!


हुस्न ढल गया तो क्या ,गरूर अभी बाकी है ,
आँखों का काजल तो बह गया ,लकीर तो बाकी है
नशा उत्तर गया तो क्या सरूर अभी बाकी है
जवानी ने दस्तक दी कुछ दिया ,
फिर बहुत कुछ लेकर चली भी गई ,
जेहन में कुछ फितूर फिर भी अभी बाकी है





👌 अर्थ बड़े गहरे हैं


....गौर फरमायें....एक आँखों के काजल ही को क्यों
याद रखती है ये दुनिया ?
काला था इस लिए नजर को चुभा ?
और भी तो रंग थे मेरी दुनिया के ,
उसे क्यों नजरअंदाज किया सबने ?

मैंने .. हर रोज .. जमाने को .भी . रंग बदलते देखा है ....!!!
उम्र के साथ .. जिंदगी को .. ढंग बदलते देखा है .. !!!

वो .. जब चला करते थे .. तो शेर के चलने का .. होता था गुमान..!!!
उनको भी ..आज पाँव उठाने के लिए .. सहारे को तरसते देखा है !!!

जिनकी .. नजरों की .. चमक देख .. सहम जाते थे लोग ..!!!
उन्ही .. नजरों को .. बरसात .. की तरह ~~ बरसते देखा है .. !!!

जिनके .. हाथों के .. जरा से .. इशारे से ..पत्थर भी कांप उठते थे..!!!
उन्ही .. हाथों को .. पत्तों की तरह .. थर थर काँपते देखा है .. !!!

जिन आवाज़ो से कभी .. बिजली के कड़कने का .. होता था भरम ..!!!
उन.. होठों पर भी .. मजबूर .. चुप्पियों का ताला .. लगा देखा है .. !!!

ये जवानी .. ये ताकत .. ये दौलत ~~ सब कुदरत की .. इनायत है ..!!!
इनके .. जाते ही .. इंसान को ~~बे औकात , बेजान होते हुआ देखा है ... !!!

अपने .. आज पर .. इतना ना .. इतराना ~~ मेरे .. यारों ..!!!
वक्त की धारा में .. अच्छे अच्छों को ~~ मजबूर होकर बहते देखा है .. !!!

काफी नहीं होता छुपा लेना अपनी आँखों की मक्कारी,
कभी इस काजल के जलवे से
कर सको..तो किसी को खुश करो...दुःख देते ...हुए....
तो हमने हजारों को देखा है ।।।