Monday, April 29, 2024

Adabi Sangam ---Meeting -525-- Topic दिल दौलत और दुनिया

 Adabi Sangam ---Meeting -525--  Topic       

दिल दौलत और दुनिया 


AS meeting # 525
Host: Chopras
Date/Time: Sept 30, 5 PM to 10 PM
Venue: Dilbar 248-08 Union Turnpike Bellerose NY 11426
Story: Sangeeta ji
Part 1: Rajinder ji
Part 2: Rajni ji
Topic: Dil Daulat Duniya
दिल दौलत दुनिया


दिल दौलत और दुनिया ------

करनी थी दुनिया मुट्ठी में , दिल ने कहा फिर उठ
रेस लगा , सबको पीछे छोड़ सिर्फ दौलत कमा

रिश्तों का क्या ? दौलत होगी तो यह भी होंगे
दुनिया तब भी हंसती थी जब मैं कंगाल था

दुनिया फिर से हंसी जब मैं मालामाल था
क्योंकि अब पैसों से नहीं रिश्तों में कंगाल था

इस दिल अते दौलत दी जंग विच दुनिया तमाशा वेखे
इक कवेः मेरे बिन तु इक पल वी जिन्दा नहीं
दूजा कवेः न होवां जे मैं तेरे कोल , 
तू दुनिया विच केडे लेखे ?

दिल ने किहा मैं तां तेरी जान हाँ , मेरी कदर कीता कर
अपने दौलत दे नशे विच मेरी जिंदगी मुहाल न कीता कर 

 ,तेरे ( दौलत )करके इंसान वि शैतान बन जाउँदा है
खाण पीन दी बदपरहेजी कर के, मैनु दुःख देंदा हैं 
न टाइम खान दा  न टाइम नाल  सौंन दा 
बीमार हो के मंजी ते पै जाउँदा है,
मेरा कसूर की ? जो हर थां मेनू वि घसीट ले जाउँदा  हैं 

तां की होया , तनु घुमाऊँदा हाँ ,नवीं नवीं थावां विखांदा हां 
बीमार पैन मगरों ,इलाज वि ते मैं ही कराउँदा हाँ

इना गरूर कादा है वे तेनू , तेरी औकात ही की है ? 
मैं तां तेरी कंगाली विच बाहला खुश सीगा , न कोई रोग न कोई पछतावा 

मैं दिल हाँ ,सिर्फ बेवफाई च बर्बाद हो जांदा हाँ ऐब च नहीं 
पर दौलत ,तेरी तां फितरत ही बेवफाई है

आज ईदे कोल ते कल उदे कोल
तेरा की दीन ते, की तेरा ईमान

जिदे कोल नहीं तूं ,ओ वि परेशांन
हैं जिदे कोल तूँ , संदूक भर भर के ,
है रेह्न्दा ओ वी परेशान

गरूर था दौलत को भी अपनी ताकत पर  ,  ,अरे छोटे भाई रुको जरा ,बहुत हो गया ,तेरा भाषण , वह भी बीच में कूद पड़ा 
अब तुझे मैं हिंदी में समझाता हूँ, यह जो इंसान है न उसका 
  दिल  ,बिना दौलत , खुश कभी रहता नहीं
उसी ख़ुशी के लिए ,इन्सान कभी इंसान बन पाता नहीं ,
इसमें मैंने क्या किया ? 

हवस क्यों थी मुझे पाने की ?
मैं तो एक साधन हु सुख का , कोई इससे दुःख खरीदे तो ? 
मुझ पे दोष क्यों ?

 -दुनिया का दस्तूर है, यहाँ दौलत और शौहरत का जोर है ज्ञान का नहीं
अगर पास दौलत नहीं , कोई इज़्ज़त भी करे , जरूरी नहीं

, कन्नी काटने लगते है लोग ,मुफलिसी में ,
दुनिया दिल की नहीं दौलत की ग्राहक है

उस  ज्ञानी के ज्ञान का क्या मायने , मुफ्त के स्कूल मुफ्त की शिक्षा 
जिसे मुफ्त में भी कोई लेता नहीं ?

मेरा वजूद मेरी पहचान खुद लोग हैं ,
मेरी खातिर लोग खून कर देते है इक दूजे का
कभी शरीर का और कभी आत्मा का।
यह सब उनके संस्कार है , मेरा क्या दोष ?

हे दिल तेरा क्या तू तो किसी पे भी आ के टूट जाता है, बात बात पे रोने लगता है 
कभी प्यार में ,कभी व्यपार में ,और कभी रक्त चाप के वार में

बदले में क्या मिलता है तुझे ? हस्पताल में तमाम जिंदगी ,सिसकियाँ ही तो पाता है
और मैं दौलत हूँ ,तेरा साथ वहां भी देती हूँ ,

हाँ लेकिन मैं सिर्फ वहां होती हूँ जहाँ ,औकात होती है
बड़े बड़े लोगो को अपने आगे झुका लेती हूँ 

घमंड न कर अपनी औकात पे ऐ दौलत , तेरा तो एक ही काम है
लोगों को लड़वाना और एक दुसरे से दूर कर देना

हमारी "ज़िन्दगी में अगर
"बुरा"वक़्त आता नहीं""तो..? 🤞 किसी के दिल में क्या है
दौलत की अहमियत , दुनिया की असलियत
भला कैसे जान पाता कोई?

बस इक यही बात तेरी खासम खास है, जहाँ तू है वहीँ बवाल है 
तेरे लिए बाबा धर्म छोड़ दे , सन्यासी करम छोड़ दे , औलाद माँ बाप को 
और पत्नी पति को , मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों में संग्राम करा दे ? बस या कुछ और भी सचाई बताऊँ ?


इस दौलत और शोहरत की जंग की खासियत तो देखो
शराब से ज्यादा इसमें सरूर , दिमाग में इसका फितूर
किसी का नही बनता है दौलतमंद , खुद भी नहीं रहता है सेहतमंद 


"अपनों के दिलों "में छुपे हुए"गैर",
और...👌
"गैरों"में छुपे हुए"अपने",उसे
"कभी"भी"नज़र"नहीं"आते"
अगर दौलत का यह चश्मा न होता ,
उसका दिल यूँ पत्थर न होता

क्या दिन थे वह भी , जब जेबें खाली , दिल में तमाम हसरते
रिश्तेदार भी आ टपकते थे प्यार में , बिन बताये बारिश की तरह

बहुत जुड़ाव हुआ करता था दिलों में
कितनी बेसब्री हुआ करती थी मिलने की

दौलत क्या आई ,दुनिया के ,सारे कायदे कानून बदल गए ,
चाहत भी गई , वो घरों में रिश्तों की चहल पहल भी गई

मकान तो है आलिशान ,लेकिन  दिल बना है शमशान ,
अमीर है मालिक घर का , लेकिन एकांत से है परेशांन ,

हमारा दिल तो आज भी वहिः है , बेशक
मगर दुनिया की , रईसी के मायने बदल गए

कोई मिलना भी चाहे तो , अब मिलने का वो वक्त नहीं ?
घडी का एक एक पल लाखों में बिकता है रईसों की दुनिया में

मिलने का वक्त देते है बड़ी कंजूसी से , खुद के एक पल का पता नहीं
घर के बाशिंदे भी उन्हें अब तो मुसाफिर से लगने लगे है ,

जो दिन चढ़ते ही निकल जाएंगे
यहाँ उनका दिल नहीं , सिर्फ ख्याल  बसते हैं

न मालूम कब किसी का फ़ोन आये और बिन बताये उठ कर चल दे ,
फ़ोन दोस्त का हो या दुश्मन का या क्या पता यमराज की अर्जेंट कॉल हो ?

हाथ में है मोबाइल , उसी में है उनकी दुनिया और दौलत का लेखा झोका
पर उनकी दुनिया ही अलग है , रिश्तेदार भी अलग ,
माँ बाप का भी दुःख बाँट सके इतना भी वक्त नहीं

गए थे दोस्त से मिलने के दिल से दिल की बात होगी
मगर दोस्त वहां भी अपनी दौलत की चमक दिखाने लगे

यह देख मेरी नई कोठी नई कार ,
पर भाभी और बेटी नहीं दिखाई दे रही ?

अब नहीं मुझे पुराणी चीज़ें से प्यार
धक्का लगा सुन के दोस्त के मुहं से  दौलत की जुबान

बनी नहीं सो छोड़ दिया ? पर वह तो तेरी गरीबी की एकलौती साथी थी ? 
यार छोड़ ये सब पुरानी कहानी , आ तुझे  एक नई स्कॉच टेस्ट करवाता हूँ 

झूठ बोल  मेरा आज उपवास है , 
भारी मन से दौलत के नशे में चूर उस दोस्त से दूर भाग गया 


कभी ज्ञानी लोग नेक सलाह दिया करते थे
गर दौलतमंद रिस्तेदार और मित्र"सुखी"हो तो,🤞
बिना"निमंत्रण"के उनके"पास"कभी न"जाए"..!
आज महसूस हुआ वह ठीक कहते थे

🌞मैं सोचने लगा , कैसे गिरगिट है दुनिया में, उसी पत्नी को छोड़ दिया जिसने उसकी कंगाली में खुद नौकरी की और घर संभाला ?

समय पुराना था...उसकी जेब में न पैसे होते थे , ना भर पेट रोटी ?
तन ढँकने को काफ़ी कपड़े भी न थे,

मुहं फेर के निकल लेते थे सब , फ़ोन भी कभी उठाते न थे लेंन दारों के
आज इनका अहंकार तो देखो, दौलत शोहरत के आते ही परिवार ही तोड़ लिया ?


🩸 समय पुराना था, दौलत का अकाल था
आवागमन के साधन कम थे।
फिर भी लोग परिजनों से जैसे भी हो जाकर
मिला करते थे ...!दूरियां नहीं बनने देते थे

आज आवागमन के
साधनों की भरमार है।खड़ी घरों में कारें चार चार है
फिर भी लोग न मिलने के
बहाने बनाते हैं ।आज गाड़ी ख़राब है , गाड़ी पति ले गये है , ट्रैफिक में फँसा हूँ , बारिश का पानी भरा है , गोया मजबूर हूँ ---------- क्योंकि
हमारा समाज सभ्य और अहसान फरामोश जो हो गया हैं ।

🩸 समय थोड़ा और पुराना था
घर की बेटी,
पूरे गाँव की बेटी होती थी।
आज की बेटी पड़ोसी से ही
असुरक्षित हैं ...! क्योंकि
समाज सभ्य और दौलतमंद जो हो गया हैं !

🩸 समय इससे भी थोड़ा और पुराना था,
लोग नगर-मोहल्ले के बुजुर्गों के घर घर जाकर
उनका हालचाल पूछते थे ...!
आज घर में बुजुर्ग माँ-बाप तक को उनकी दौलत छीनकर घर से निकाल
वृद्धाश्रम में डाल देते हैं ।
क्योंकि समाज सभ्य और दौलतपसंद  जो हो गया हैं ।

🩸 समय और भी पुराना था,
खिलौनों की कमी थी ।
फिर भी मोहल्ले भर के बच्चों
के साथ खेला करते थे ...!खूब ख़ुशी मिलती थी
आज खिलौनों की भरमार है,
पर बच्चे मोबाइल की जकड़
में बंद हैं ...!! खिलोने भी लाचार और उदास कूड़े में पड़े हैं
क्योंकि समाज सभ्य और दौलतमंद जो हो गया हैं ।


🩸 समय थोड़ा और पुराना था,
गली-मोहल्ले के पशुओं , दर पे आये भिखारी
तक को रोटी दी जाती थी ...!अन्न जाया करना ईश्वर का अपमान था
आज पड़ोसी के बच्चे भी
भूखे सो जाते हैं ...!!और खाना गार्बेज में
क्योंकि समाज सभ्य और दौलतमंद जो हो गया हैं ।


🩸 मेरा समय भी पुराना था,
पड़ोसी के घर मे बिन बुलाय चले जाते थे
रिश्तेदार का भी पूरा ,परिचय पूछ लेते थे ...!
आज तो पड़ोसी का नाम
तक नहीं जानते ...!!
क्योंकि समाज सभ्य और दौलतमंद जो हो गया हैं ।


शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचने का ख़्वाब हर कोई देखता है लेकिन वो एक ऐसी जगह है जहां पहुंचने के बाद बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अपने आप को संतुलित रख पाते हैं। 

दौलत शोहरत आनी जानी फिर इस पर इतराना क्या
पानी पर ये नाम लिखा है ,किसी पल में डूब जाना है
!

बड़ा पेचीदा काम दे दिया,
किस्मत ने मुझे !
बोलती है...तुम अमीर हो 
तुम तो सबके बन चुके हाे,
अब ढूंढो उनको जो...तुम्हारे है..!!

मैंने कहा , तूने बिलकुल सही कहा
-बीतता वक़्त है, लेकिन !*
ख़र्च, हम हो जाते हैं..!!
कैसे "नादान"है हम
दुःख आता है तो,"अटक" जाते है, औऱ सुख आता है तो, "भटक" जाते हैं।


बहुत"फर्क"होता है,🤞
"मजे"और"आनंद"मे..!
"मजे"के लिए"पैंसो"की"जरुरत" होती है..!
और..👌
"आनंद"के लिए सिर्फ"दिल ,परिवार"और"मित्र".


नई नई आँखें ( दौलत )हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है
कुछ दिन दुनिया घूमे लेकिन अब घर अच्छा लगता है

दौलत आई तो पाँव जमीन से उखड गए ,
हवा में, अकड़ में गुजरी जिंदगी

हम ने भी सो कर देखा है हर नए पुराने शहरों में
जैसा भी है अपने घर का गरीब सा बिस्तर अब अच्छा लगता है


एक दिन ऐसे ही खली हाथ निकल लेंगे , सबसे ज्यादा रोयेगा मेरी नाक पे टिका 
सिर्फ मेरा चश्मा , बहुत साथ निभाया है इसने मेरा

खो जाएगा उसका चेहरा भी , जिसकी पहचान ही हमसे थी
अपनी कमानियों से ब्रह्माण्ड को जैसे-तैसे थामे, हमें दुनिया दिखाया करता था
वह भी चिपटा रहेगा हमसे , हमारी चिता के जलने  तक 
मगर बेचारा जो देखेगा वो बताएगा किसे ?

दिल दौलत और दुनिया से ऊपर हमारा मन है जिसे आत्मा भी कहते हैं
मन एक ऐसा शब्द है जिसके आगे ‘न’ लगने पर यह नमन हो जाता है

और पीछे ‘न’ लगने पर यह मनन हो जाता है!!
इसलिए जीवन में नमन और मनन करते रहिए!!

दिल टूट जाएगा , दौलत लुट जाएगी  , दुनिया का साथ छूट जाएगा
बचेगा तेरा "सिर्फ कर्म" जो तेरे और तेरे परिवार के काम आएगा
बाकी लिख के रख ले , सब व्यर्थ जाएगा



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.     मैं आपका चेहरा याद रखना चाहता हूं

जब एक इंटरव्यू में नाइजीरियन अरबपति फेमी ओटेडोला से पूछा गया कि:
"सर आपको क्या याद है कि आपको जीवन में सबसे अधिक खुशी कब मिली"?

 फेमी ने कहा:
 "मैं जीवन में खुशी के चार चरणों से गुजरा हूं, और

 आखिरकार मुझे सच्चे सुख का अर्थ समझ में आया।"

 ~ पहला चरण धन और साधन संचय करना था। 
 लेकिन इस स्तर पर मुझे वह सुख नहीं मिला जो मैं चाहता था।

~ फिर क़ीमती सामान और वस्तुओं को इकट्ठा करने का दूसरा चरण आया।

 लेकिन मैंने महसूस किया कि इस चीज का असर भी अस्थायी होता है और कीमती चीजों की चमक ज्यादा देर तक नहीं रहती।

~ फिर आया बड़ा प्रोजेक्ट मिलने का तीसरा चरण।  वह तब था जब नाइजीरिया और अफ्रीका में डीजल की आपूर्ति का 95% मेरे पास था।

  मैं अफ्रीका और एशिया में सबसे बड़ा पोत मालिक भी था।  लेकिन यहां भी मुझे वो खुशी नहीं मिली जिसकी मैंने कल्पना की थी.

~ चौथा चरण वह समय था जब मेरे एक मित्र ने मुझे कुछ विकलांग बच्चों के लिए व्हीलचेयर खरीदने के लिए कहा।

 लगभग 200 बच्चे।

 दोस्त के कहने पर मैंने तुरंत 200 व्हीलचेयर खरीद ली।
 लेकिन दोस्त ने जिद की कि मैं उसके साथ जाऊं और बच्चों को अपने हाथों ही व्हीलचेयर सौंप दूं।
मैं तैयार होकर उसके साथ चल दिया।

 वहाँ मैंने इन बच्चों को अपने हाथों से ये व्हील चेयर दी।  मैंने इन बच्चों के चेहरों पर खुशी की अजीब सी चमक देखी।

 मैंने उन सभी को व्हीलचेयर पर बैठे, घूमते और मस्ती करते देखा।

 यह ऐसा था जैसे वे किसी पिकनिक स्पॉट पर पहुंच गए हों, जहां वे जैकपॉट जीतकर आपस में शेयर कर रहे हों।

मुझे अपने अंदर तक असली खुशी महसूस हुई। जब मैं वापिस जाने लगा, तो उनमें से एक विकलांग बच्चे ने मेरी टांग पकड़ ली।

मैंने धीरे से अपने पैरों को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन बच्चे ने मेरे चेहरे को देखा और मेरे पैरों को और कस कर पकड़ लिया।

 मैं झुक गया और बच्चे से पूछा: क्या तुम्हें कुछ और चाहिए?

 इस बच्चे ने मुझे जो जवाब दिया, उसने मुझे न केवल अन्दर तक झकझोर दिया बल्कि जीवन के प्रति मेरे दृष्टिकोण को भी पूरी तरह से बदल दिया।
खुशी वस्तुओं में नहीं, बल्कि भावनाओ में है ।

उस बच्चे ने कहा:
"सर मैं आपका चेहरा हमेशा याद रखना चाहता हूं ताकि जब मैं आपसे स्वर्ग में मिलूं, तो मैं आपको पहचान सकूं और एक बार फिर से आपका धन्यवाद कर सकूं।"

उपरोक्त शानदार कहानी का मर्म यही है कि हम सभी को अपने अंतर्मन में झांकना चाहिए और यह मनन अवश्य करना चाहिए कि, इस जीवन और संसार और सारी सांसारिक गतिविधियों को छोड़ने के बाद आपको किस बात लिए याद किया जाएगा? 

क्या कोई आपका चेहरा भी फिर से देखना चाहेगा?



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कैसी ज़िन्दगी जिए
अपने ही में गुत्थी रहे
कभी बन्द हुए कभी खुले
कभी तमतमाए और दहाड़ने लगे
कभी म्याउँ बोले
कभी हँसे, दुत्कारी हुई ख़ुशामदी हँसी
अक्सर रहे ख़ामोश ही
अपने बैठने के लिए जगह तलाशते घबराए हुए

अकेले
एक ठसाठस भरे दृश्यागार में
देखने गए थे
पर सोचते ही रहे कि दिखे भी
कैसी निकम्मीं ज़िन्दगी जिए।

हवा तो खैर भरी ही है कुलीन केशों की गन्ध से
इस ऊष्म वसन्त में
मगर कहाँ जागता है एक भी शुभ विचार
खरखराते पत्तों में कोंपलों की ओट में
पूछते हैं पिछले दंगों में क़त्ल कर डाले गए लोग
अब तक जारी इस पशुता का अर्थ
कुछ भी नहीं किया गया
थोड़ा बहुत लज्जित होने के सिवा

प्यार एक खोई हुई ज़रूरी चिट्ठी
जिसे ढूँढ़ते हुए उधेड़ दिया पूरा घर
फुरसत के दुर्लभ दिन में
विस्मृति क्षुब्धता का जघन्यतम हथियार
मूठ तक हृदय में धँसा हुआ
पछतावा!




उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ

ढलती न थी किसी भी जतन से शब-ए-फ़िराक़
ऐ मर्ग-ए-ना-गहाँ तिरा आना बहुत हुआ

हम ख़ुल्द से निकल तो गए हैं पर ऐ ख़ुदा
इतने से वाक़िए का फ़साना बहुत हुआ

अब हम हैं और सारे ज़माने की दुश्मनी
उस से ज़रा सा रब्त बढ़ाना बहुत हुआ

अब क्यूँ न ज़िंदगी पे मोहब्बत को वार दें
इस आशिक़ी में जान से जाना बहुत हुआ

अब तक तो दिल का दिल से तआ'रुफ़ न हो सका
माना कि उस से मिलना मिलाना बहुत हुआ

क्या क्या न हम ख़राब हुए हैं मगर ये दिल
ऐ याद-ए-यार तेरा ठिकाना बहुत हुआ

कहता था नासेहों से मिरे मुँह न आइयो
फिर क्या था एक हू का बहाना बहुत हुआ

लो फिर तिरे लबों पे उसी बेवफ़ा का ज़िक्र
अहमद-'फ़राज़' तुझ से कहा ना बहुत हुआ


कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ
पहन लेता हूँ जब दस्तार तो सर भूल जाता हूँ

वगर्ना तो मुझे सब याद रहता है सिवा इस के
कहाँ हूँ कौन हूँ क्यूँ हूँ मैं अक्सर भूल जाता हूँ

मिरे इस हाल से गुमराह हो जाते हैं रहबर भी
मैं अक्सर रास्ते में अपना ही घर भूल जाता हूँ

दिखाता फिर रहा हूँ सब को अपने ज़ख़्म-ए-सर लेकिन
मिरे हाथों में भी है एक पत्थर भूल जाता हूँ

निकल जाता हूँ ख़ुद अपने हिसार-ए-ज़ात से बाहर
मैं अक्सर पाँव फैलाने में चादर भूल जाता हूँ

कभी जब सोचने लगता हूँ पस-ए-मंज़र के बारे में
तो मेरे सामने हो कोई मंज़र भूल जाता हूँ

कभी तो इतना बढ़ जाती है मेरी प्यास की शिद्दत
मिरे चारों तरफ़ है इक समुंदर भूल जाता हूँ