किसान
FARM ___FARMER----KISSAN--------KASHTKAAR---
मेरी व्यथा भी बड़ी अजीब है ,जमीन से जुड़ा हूँ हमेशा से ,
FARM ___FARMER----KISSAN--------KASHTKAAR---
मेरी व्यथा भी बड़ी अजीब है ,जमीन से जुड़ा हूँ हमेशा से ,
मिटटी में हूँ लोट पोट, वही मेरे करीब है ,,
किसके पास है वक्त , दो पल मेरी कहानी सुन ले
दुनिया जो ढूंढती रहती है वो मुझ में कहाँ ?
मेरे नसीब को दर्शाती ,मेरी काया ही गरीब है
मेरे खेत में मिली है उनकी भी मेहनत , हर मौसम धुप गर्मी में , साथ दिया है मेरा
इन्हे पशु मत बोलो , इंसानो से बढ़कर है, यह परिवार मेरा।
मेरे खेत में मिली है उनकी भी मेहनत , हर मौसम धुप गर्मी में , साथ दिया है मेरा
इन्हे पशु मत बोलो , इंसानो से बढ़कर है, यह परिवार मेरा।
जिन्हे शहर वाले कभी के भूल चुके , वह आज भी मेरे सुख दुःख के साथी है
जिनके दूध से शहरों की बेड -टी बने ,उन्ही पशुओं में बसा मेरा सारथि है
( उन्ही से मेरा घर सम्भलता है)
मेरा दुबला अस्थि पंजर सा शरीर , दौड़ता है बन खून इन्ही का दूध मुझ में
मेरा दुबला अस्थि पंजर सा शरीर , दौड़ता है बन खून इन्ही का दूध मुझ में
कहाँ से लेता कर्ज पे एक ट्रेक्टर मैं ?इन्ही के बछड़ो ने है मेरा स्वारा
अनाज उगाना है काम मेरा ,अपने पेट के साथ साथ, दूसरों का पेट भी भर पाऊँ
मेरे स्वार्थ में निहित है दुनिया का हित , नहीं करूँ यह काम तो परिवार कैसे चलाऊँ ?
बस इतना सा ही है मेरा परिचय , पूरी दुनिया में किसान / काश्तकार कहलाऊँ
बस इतना सा ही है मेरा परिचय , पूरी दुनिया में किसान / काश्तकार कहलाऊँ
{लोग मुझे मेरी गरीबी का फायदा उठाकर , चंद पैसे मुझे देकर अपने इशारों पे नचाकर ,
झूठे वादे देकर कहीं पर भी ,धरने पर जलूस में बिठा देते हैं}
अब तुम जो इतने बड़े बड़े समझदार नेता बने हो , दुनिया को कैसे बेवकूफ बना लेते हो ?
पढ़ा है कभी मेरी मायूस निगाहों को ? झाँका है क्या मेरी आँखों की असलियत में भी कभी ?
पढ़ा है कभी मेरी मायूस निगाहों को ? झाँका है क्या मेरी आँखों की असलियत में भी कभी ?
आपका साथ देकर मुझे क्या मिला ? मैं तो वहीँ हूँ जहाँ पहले था ,
धन तो आप कमा गए इस निर्धन के प्रचार से
क्या लिखा है मेरे अनसुलझे अरमानो में ?
क्या मुश्किल थी भाषा इसकी जो पढ़ नहीं पाए तुम ,?
अपना उल्लू तो साध गए
पर सपने मेरे ,आज तक ,समझ न पाए तुम ?
आंसुओं संग सपनो के रंग भी सूख चुके कबके , बादल नहीं बरसते आजकल वक्त पर
, लेकिन आँखों से बरसती है बेबसी मेरी
, लेकिन आँखों से बरसती है बेबसी मेरी
,हर वक्त बरसती हैं , मूसलाधार,बारिशों की तरह
कभी जोर से ,कभी रुक रुक कर, पानी बनकर
मत भ्रमित हो जाना कुछ लम्पट लोगो को देख के ,
कभी जोर से ,कभी रुक रुक कर, पानी बनकर
मत भ्रमित हो जाना कुछ लम्पट लोगो को देख के ,
उनकी बड़ी बड़ी गाड़ियां ,
शानो शौकत में बनी ऊँची ऊँची हविलियाँ उनकी ,
शानो शौकत में बनी ऊँची ऊँची हविलियाँ उनकी ,
थे कभी वह भी एक किसान पुत्र
आज व्यपारी बन अपनी माँ सामान जमीनों को बेच बेच
आज व्यपारी बन अपनी माँ सामान जमीनों को बेच बेच
,कुछ व्यसनी और कुछ दुष्ट नेता बने है
सब के सब किसानी छोड़ धनवान बने हैं
इन्ही झूठे किसान नेताओं से हमारी यह हालत बनी है
भूल चुके हैं यह अपने दायित्व को , भूल गए हैं उस दाता को, भी
जिसकी वजह से हम कहलाते ----आज भी ,अनदाता हैं।
चंद रुपियों में बिकी है जमीर जिनकी , धरणो और प्रदर्शनो में ,
कुछ सियासतों के जालों में , कुछ छलकते नशीले प्यालों में
भूल चुके हैं यह अपने दायित्व को , भूल गए हैं उस दाता को, भी
जिसकी वजह से हम कहलाते ----आज भी ,अनदाता हैं।
चंद रुपियों में बिकी है जमीर जिनकी , धरणो और प्रदर्शनो में ,
कुछ सियासतों के जालों में , कुछ छलकते नशीले प्यालों में
कहने को हम सब किसान ही थे , देश का सम्मान थे
फिर धरती माँ का सौदा ? किसने और क्यों होने दिया ,
नाचना बन के कठपुतली ?
उन्ही लुटेरे हाथों में ? जिसने हमें वीरान किया ?
फिर धरती माँ का सौदा ? किसने और क्यों होने दिया ,
नाचना बन के कठपुतली ?
उन्ही लुटेरे हाथों में ? जिसने हमें वीरान किया ?
धूसिल सड़को पे दौड़ती है गाड़ी इनकी
पहन काले चश्मे इंसानियत के,
पहन काले चश्मे इंसानियत के,
दलाल हैं यह धनवानों के
सूखे कुएँ तेरी गहराई का आखिरी इम्तहान बाकी है..
देखते है कितना दम बचा है तुममे ,
कब तक साथ दे पायेगा हमारा ,
तू भी तो साथ नहीं छोड़ देगा ?
मेरे मोटर पंप की सांस भी अब फूलने लगी है ,
उसे पानी न होने की शिकायत होने लगी है
देखो उधर ,वो जो अपने खेतों की मेढ़ों पर उदास से चेहरे बैठे हैं,
वही है असली किसान जिनकी दिलों में है फ़रियाद ,
आखों से है झांकता , उसका रोता हुआ ईमान बाकी
निहार रहे है आकाश में ,आवारा बादलों के टोलों को ,
हसरत भरी उम्मीद से
अरे काले काले बादलों बरस जाना समय पर अब की बार ,
अरे काले काले बादलों बरस जाना समय पर अब की बार ,
फिर से मुकर न जाना इस बार भी
कष्ट में हैं किसान , किसी का मकान गिरवी है ,
कष्ट में हैं किसान , किसी का मकान गिरवी है ,
तो किसी का है लगान बाकी
ये मौसम मगर कितना जालिम हैं, बहुत जिद्द में रहता है ,
ये मौसम मगर कितना जालिम हैं, बहुत जिद्द में रहता है ,
किसी की चीखों से इसे क्या लेना ?
बारिश न होने की वजह से ,कर्ज़ों से दबे बोझ में
आज फिर इक किसान ने जीवन की बलि दी है ,
आज फिर इक किसान ने जीवन की बलि दी है ,
कर भी क्या लेता आखिर , किस किस से लड़ता
खुदा की रुसवाई झेल कर ?
कितने अजब रंग समेटे हैं, ये बेमौसम बारिश भी खुद में,
अमीर पकौड़े खाने की सोच रहा हैं ,तो किसान जहर…
छत टपकती हैं उसके कच्चे मकान की, फिर भी “
बारिश” हो जाये, यही तमन्ना लिए मरा हैं वो
नही हुआ हैं अभी सवेरा, पूरब की लाली पहचान,
चिडियों के चहकने से पहले,
खाट छोड़ जो उठ जाया करता था ,
क्या लोभ था उसे ,जो कभी न लेता विश्राम था
घनघोर वर्षा में भी उसे खेतो में जाते देखा ,
उसका भीगना बीमार होकर फिर चल पड़ना भी देखा
सीधा सादा ,रूखा सूखा ,भोजन उसका ,
चिडियों के चहकने से पहले,
खाट छोड़ जो उठ जाया करता था ,
क्या लोभ था उसे ,जो कभी न लेता विश्राम था
घनघोर वर्षा में भी उसे खेतो में जाते देखा ,
उसका भीगना बीमार होकर फिर चल पड़ना भी देखा
सीधा सादा ,रूखा सूखा ,भोजन उसका ,
फिर भी ऊर्जावान एक योद्धा जैसा
कर्जो के बेइंतेहा झख्मो निशान थे सीने में , घर चलाने में खुद को मिटा दिया,
कर्जो के बेइंतेहा झख्मो निशान थे सीने में , घर चलाने में खुद को मिटा दिया,
कभी बीज और कभी खाद के चक्कर में सारा जीवन उजाड़ लिया
शादी बियाह हो या हो कोई मौत का मंजर , सब कुछ झेल गया वो
शादी बियाह हो या हो कोई मौत का मंजर , सब कुछ झेल गया वो
कोई और नही ,
यही दुबला पतला मेहनतकश , एक कमजोर सा किसान था
यही दुबला पतला मेहनतकश , एक कमजोर सा किसान था
ज़िन्दगी के नगमे कुछ यूँ गाता, मेहनत मजदूरी करके खाता,
सद्बुद्धि सबको दो दाता, हम है, अगर हैं यह अन्नदाता.
क्या दिखा नही वो खून तुम्हें, मेरे खुदा
जहाँ धरती पुत्र का अंत हुआ, , क्या बिगड़ जाता तेरा
अगर बादल वक्त पे बरस जाता
कहते है वह लोग
किसान की समस्या कुदरती है , किसी के बस में नहीं
जब नेताओ के पास देने को ,परलोभन की कमी नहीं ,
फिर किसानो की जिंदगी में ,
कहते है वह लोग
किसान की समस्या कुदरती है , किसी के बस में नहीं
जब नेताओ के पास देने को ,परलोभन की कमी नहीं ,
फिर किसानो की जिंदगी में ,
रस्सी के किस्से , ख़त्म क्यों ,होते नहीं ?
फूल खिला दे शाखों पर, पेड़ों को फल दे मालिक,
धरती जितनी प्यासी हैं उतना तो जल दे मालिक
फूल खिला दे शाखों पर, पेड़ों को फल दे मालिक,
धरती जितनी प्यासी हैं उतना तो जल दे मालिक
एक रोज शहर जाना हुआ , बेटे की शादी समारोह में शामिल हुए
किस बेरहमी से अनाज ,बचा हुआ खाना कूड़ा बने जा रहा था
किसे परवाह थी इस नुकसान की ? अपनी मेहनत को यूँ जाया जाते देख
दिल मेरा जैसे बैठे जा रहा था ? क्या ऐसे होते हैं यह शहरी धनाढ्य लोग ?
खाना किसी गरीब को ही दे देते , महीनो लगे हमें जिसे उगाने में
एक रात में ही लुटा दिया इसे , सारा कूड़े खाने में ?
मैं सोच रहा हूँ
मेरे हाथो में सौंप के
कर्ज का फंदा
इतना धन यह कहाँ उगाते है यह शहरी लोग ? जो इतना लुटाने में भी ख़त्म नहीं होता ?
शादी तो किसान के घर की ही थी , मेरे अपने सगे सम्बंधी की
थोड़ा खाओ बाकी फैंको ,थोड़ा फटे तो कपडा फैंको ?
हाथघड़ी बंद हुई , घडी का रिवाज ही गया, सब बेकार हुए
इसे भी फैंको ,
कमीज का एक बटन जो टूटा , कहाँ है उस माँ सी ममता किसी में जो इसे टांक दे
जोआज एक बटन न टांक पाएं रिश्ते कहाँ से जोड़ेंगे ,
बोलते है बेकार है यह भी ,इन्हे भी फेंको
लड़का अमेरिका से जो पढ़ के आया था, पर था तो किसान का बेटा
क्या होगा हम जैसे माँ बाप का ? न जाने उनका अगल कदम क्या हो ?
इसे भी फैंको ,उसे भी फेंको
जिसमे थोड़ी भी कमी आयी उसे ही दे फैंको
यह कैसी पढाई , दुनिया में चल आई है ?
किसान का बेटा भी ,खुदगर्ज और हरजाई है
बढ़ रही हैं कीमते अनाज की, पर हो न सकी विदा बेटी ,किसान की
दलालों ने पहुंचने न दी पूरी कीमते उसकी फसलों की ,
राह में लूट गई मेहनत इसकी, न पहुँच सकी मंडियों की देहलीज़ तक
दीवार क्या गिरी उसके कच्चे मकान की, नेताओ ने उसपे भी ,नोटिस चिपका दिया
कहके ,हाईवे गुजरेगा यहाँ से , हाथ में उसके मुआवजा थमा दिया ,
हम कमजोर थे हम इन नेताओं से लड़ते भी तो कैसे
उन्नति के नाम का झुनझुना जो हमारे कान में बजा दिया
ग़रीब के बच्चे भी खाना खा सके त्योहारों में, भगवान खुद बिक जाते हैं बाजारों में.
उन्नति के नाम का झुनझुना जो हमारे कान में बजा दिया
ग़रीब के बच्चे भी खाना खा सके त्योहारों में, भगवान खुद बिक जाते हैं बाजारों में.
कुछ ऐसा ही फैसला लिया हमारे पंचो ने , अरे त्याग तो भगवान का रूप होता है ,
सो मान के उनकी सलाह उस जमीन को उसने छोड़ दिया ,
किसान के बेटे भी क्या करते , बेकार हो गए
सो गावं से अपना नाता ही तोड़ लिया ,पलायन कर गए शहर को
किसान के लड़के थे , शहर में अपनी मेहनत और पढ़ाई से
अपने नाम के आगे “डाक्टर” इंजीनियर -वकील तो जोड़ लिया,
पर हम सब के गावं से हमेशा को मुहं फेर लिया ,
खानदानी हल था ,उनके लौटने की इंतजारी में
घर के कोने में पड़े पड़े मायूसी में ,
,अपना दम तोड़ दिया.
अब कोई उस हल को निहारता नहीं ,बेरुखी इतनी दिखाई सबने ,
शहरी जगमग के वशीभूत , जो शहर को गया वो लौट के वापिस आया नहीं
जो रह गए अपनी धरती माँ के आगोश में , पड़े पड़े आकाश को निहारते रहे
अब कोई उस हल को निहारता नहीं ,बेरुखी इतनी दिखाई सबने ,
शहरी जगमग के वशीभूत , जो शहर को गया वो लौट के वापिस आया नहीं
जो रह गए अपनी धरती माँ के आगोश में , पड़े पड़े आकाश को निहारते रहे
भरा पूरा परिवार था उसी में बसा उनका संसार था ,जो बिखर गया
कहाँ छुपा के रख दूँ मैं अपने हिस्से की शराफ़त,
जिधर भी देखता हूँ उधर बेईमान खड़े हैं,
क्या खूब तरक्की कर रहा हैं अब देश देखिये,
क्या खूब तरक्की कर रहा हैं अब देश देखिये,
खेतो में बिल्डर और सड़को पर किसान खड़े हैं.
/
बारिश की कमी हुई ,क्यों ना सजा दी पेड़ काटने वाले शैतान को
हे खुदा यह कैसा इन्साफ तेरा,
/
बारिश की कमी हुई ,क्यों ना सजा दी पेड़ काटने वाले शैतान को
हे खुदा यह कैसा इन्साफ तेरा,
पकड़ा कर उसे फांसी का फंदा
सजा दे दी तूने, सीधे-साधे किसान को.?
कितने भोलेपन में हमने भी ,कितने पेड़ तोड़ दिए,
संसद की कुर्सियों में जोड़ दिए,
यही सोच कर के देश की तरक्की में हमारी भी तरक्की होगी
कुआँ बुझा दिए, नदियाँ सुखा दिए, विकास की झूठी तसली देकर
हमारी जमीन ही बिकवा दिए
भुखा खुद रह करके तू हम सबके पेट भराए है।
दिन रात कि अपनी मेहनत से हम को रोटी तू खिलाए है
इस भूख मिटाने कि दौड़ में तेरी जीत तय हो ।
जय हो किसान तेरी सदा सदा ही जय हो ।
मत रो ऐ काश्तकार , तेरे तो नाम में ही कष्ट निवारण है
मिट्टी से जुड़कर के तू इन खेतों में लहराए है।
सुखी सी बंजर जमीं को उपजाऊ बनाए है ।
तेरो इन सर्घषो में तेरी भी विजय हो ।
जय हो किसान तेरी सदा सदा ही जय हो ।
किसान खुल के हँसता रहा हंसाता रहा जग को , फ़क़ीर होते हुए,
खोटी थी जिनकी नियत , वो नेता मुस्कुरा भी न पाए रईस होते हुए.
चीर के जमीन को, मैं उम्मीद बोता हूँ…,
रोता हूँ हँसता हूँ
पल पल अपनी फसल के लिए
मैं किसान हूँ, चैन से कहाँ सोता हूँ…
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A farmer is a person engaged in agriculture, raising living organisms for food or raw materials. The term usually applies to people who do some combination of raising field crops, orchards, vineyards, poultry, or other livestock. A farmer might own the farmland or might work as a laborer on land owned by others
The Kisan or analgesia is a tribal group found in Odisha, West Bengal, and Jharkhand. They are traditional farmers and food-gathering people. They speak Kisan, a dialect of Kurukh, as well as Odia and Sambalpuri. The tribe mainly lives in northwestern Odisha, in Sundergarh, Jharsuguda, and Sambalpur districts.
मैं किसान हूँ, चैन से कहाँ सोता हूँ…
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A farmer is a person engaged in agriculture, raising living organisms for food or raw materials. The term usually applies to people who do some combination of raising field crops, orchards, vineyards, poultry, or other livestock. A farmer might own the farmland or might work as a laborer on land owned by others
The Kisan or analgesia is a tribal group found in Odisha, West Bengal, and Jharkhand. They are traditional farmers and food-gathering people. They speak Kisan, a dialect of Kurukh, as well as Odia and Sambalpuri. The tribe mainly lives in northwestern Odisha, in Sundergarh, Jharsuguda, and Sambalpur districts.