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Thursday, March 12, 2020

ADABI SANGAM ......,[[484]].............."MONEY," .........Riches ......, धन ,.....दौलत, .........पैसा, ..............................[ MARCH.. 28 ,..2020 ].....................

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "






जब जिक्र हुआ दोस्तों में उसकी अमीरी का 
सवाल उठा पैसा बड़ा या  दोस्त ? 
जिक्र हुआ जब मान सम्मान का प्यार का ? 
जवाब मिला पैसे ने ही तो बनाये हैं मेरे इतने यार , 
कंगाली में कहाँ कोई पूछता है ?मेरे बरखुरदार ?

मान लो किसी हसीं यार से गर  हो भी गया प्यार। , 
पैसे से गर कमजोर हो तुम और तुम्हारा परिवार 
कोई गारंटी नहीं भैया  तुम्हारी नैया लग जाए पार 

आखिर पैसा ही तो कुंजी है ,हर दुनियावी ताले की 
दौलत पैसा दिखेगा तुम्हारी जेब में ,जब दुनिया वालों को 
सच मानना मेरी बात को , तभी बसेगा तुम्हारा घर बार 

अब सवाल उठा पैसा कमाया कैसे जाए ?
पैसा को पैमाना माने या माने ईमान को ? 
कमाया पैसा सुख देगा या अपने संस्कार ?
अब उलझ गया मेरे जमीर का वजूद 
संस्कार बड़ा या धन दौलत का अम्बार ? , 

धन दौलत की भूक इतनी की छोटा लगे संसार ? 
जितना कमाएं उतनी ही तिजोरी खाली दिखे ,
एक भर गई तो बैंक लाकर भी ले लिया ,
पैसा मेरा बढ़ता जाए उतना ही दिल सुकड़ता जाए ,

दोस्तों ने टोका अबे इतना धन किसके लिए जोड़ रहा है ?
खाली जमा पैसा ही नहीं खर्चने का जिगरा भी दिखाओ 
यारों दोस्तों को घर में बुलाओ , खिला पीला उन्हें कुछ पुण भी कमाओ 
पैसे वाले से हर हाल में बड़ा होता है दिलदार ,
पैसे से लोग जलते हैं , पर दिलदार के कदमो में लौट जाते है 

पैसा बड़ा होता है या कारोबार की नियत ? 
सब कुछ समा जाता है , पैसा कहीं से भी कमाओ कोई फर्क नहीं पड़ता ,इसमें ,एक कार खरीदी और घर में बड़ा सा बार बनाया बस यही से शुरू हुआ  मेरा कारो+बार 

पैसे से बड़ा है सत्कार , सत्कार से बड़ा है 



काहे पैसे पे, इतना गरूर करे है ? 
काहे पैसे पे इतना गरूर करे है 
यही पैसा। हाँ यही पैसा  तो ,
अपनों से, दूर करे है।दूर करे है , एहि पैसा । 

माना के पैसा भगवान् नहीं है ,पर भगवान् से कम भी नहीं 
किसी के पास हो तो इज़्ज़त न हो तो सम्मान भी नहीं है 


मेरी पैसे की भी एक कहानी है , सब की होती है , आप की भी होगी ,मेरे दोस्तों की मेरे पड़ोसियों की भी कोई न कोई पैसे की कहानी होगी , कुछ दुःख भरी होंगी , किसी की दर्दनाक होंगी , किसी की द्वन्द से भरी और किसी की आपसी मेलजोल वाली , किसी की एक तरफा और किसी की बैलेंस्ड , यह भी तो सचाई है की हम अपने पैसे की कहानी खुद नहीं बनाते ,यह तो खुद ब खुद आपकी तदबीर और तकदीर के मिलाप से लिखी जाती है 



देश के विभाजन के बाद जो मुसीबत हमारे माँ बाप ने झेली है हम तो सोचकर ही कांप जाते है , सब कुछ लुटा के जब वह अपने सरहद के इस पार पहुंचे तो क्या था उनके पास सिवाय तन के कपडे और जान के , पैसा साथ ला पाना लगभग असंभव सा था। 


हमने अपने घर में माँ बाप को गरीबी से झुझते हुए देखा है , हमारी जरूरते पूरी करने के लिए उनके पास पैसा नहीं होता था , पैसे की कमी में अक्सर उन्हें लड़ते हुए भी देखा जा सकता था , हम गरीबी में पल कर भी अक्सर अपने पिता की दरियादिली देखा करते थे , वह हमारी परवरिश में पैसा कर्ज उठा कर भी खर्च कर देते थे ताकि हमारा बचपन एक बुरा सपना न बन जाए , 


पिताजी को अक्सर काम मिलने भी दिक्क्त आती थी परन्तु अपनी पैसे की कमी हम पे जाहिर नहीं होने देते थे और हर वह काम कर जाते थे जिससे हमारा परिवार सुखी महसूस करे , यह मैं बिना किसी शर्म के स्वीकार करता हूँ , मेरे माँ बाप अपने लिए कभी भी कुछ नहीं खरीदते थे , हर चीज़ में कंजूसी करके खर्चे पूरे किये जाते थे। माँ बाप के मुहं से हमने कभी पैसे की बात नहीं सुनी वह इसे किसी गहरे  राज की तरह दिल में छुपा कर रखते थे. 


आज की पीढ़ी पैसे के लिए इतनी झूझती नहीं है योजना बनाती  है ,आज थोड़ी ही पढाई और मेहनत से खूब पैसा आने लगता है , पहले ऐसा नहीं होता था ,  हमारे पैसे की कहानी ही हमारे चरित्र और संस्कार का निर्माण करती है , जितना जल्दी पैसा आता है उतना ही आज लोग अपने संस्कारों से विमुख हो गए है ,आज हमारे बच्चे हमारे दिलों से उन बुरे दिनों की पैसों की कमी की यादें हम पर अपनी कमाई खर्च करके मिटा देना चाहते है। लेकिन बदले में उन्हें हमारे संस्कार या तजुर्बे की कोई जरूरत ही नहीं हैं , उन्हें अपने तरीके खुद बनाने हैं किसी तजुर्बे की बुनियाद पे नहीं। 




पैसा हमेशा से इतना जरूरी भी नहीं था जितना आज हो गया है , इंसान अपनी शुरुआती सादगी भरी जिंदगी में  बिना इसके बहुत खुश हाल था , जिसके पास जो भी उत्पादन होता था वह आपस में अदला बदली कर लिया करते थे जिसे बार्टर सिस्टम कहते थे , पैसा जिसे हम आज जिस रूप में देखते है यह कुछ  सो साल पहले शुरू हुआ , वरना सोना चांदी व किसी भी अमूल्य धातु को अदला बदली का आधार बना कर, तब के राज्यों द्वारा  उसके सिक्के ढाल लिए जाते थे , खुदाई में मिटटी के सिक्के और समुद्री सीपों का प्रचलन भी देखने में आया है , फिर भी  ज्यादा तर वस्तुओं की अदला बदली यानी की बार्टर तिज़ारत हुआ करती थी। 


आज जब से करेंसी नोट् और सिक्कों का चलन हुआ है उतना ही लोगों का जीना दुश्वार हो गया है क्योंकि जिसके पास बेचने के लिए कुछ भी न हो तो उसकी जेब में भी कुछ नहीं होगा , नतीजा हमारे सामने है , दुनिया में लोगों के बीच धन की वजह से खाई भी बढ़ने लगी है। 



पैसे के मामले में हम सब ही भिखारी है सिर्फ तरीके अलग अलग इस्तेमाल करके पैसा कमाते है , एक गरीब भिकारी मंदिर के बाहर आने जाने वालों से भीख मांगता है , जब की एक करोड़पति मंदिर के अंदर जाकर भगवान् की मूर्त के  सामने दक्षिणा रख के फिर भगवान् से अपने लिए भीक मांगता है, लेकिन कभी आप ने सोचा है मूर्ति बनाने वाले ने अपने पेट की आग बुझाने के लिए चंद रुपयो में इसी मूर्ति को मंदिर वालों के हाथ बेच दिया था , अगर मूर्ति ही किसी को कुछ पैसा दे सकती तो इसे बनाने वाला इसे बेचता ही क्यों ?

पैसे के लिए भीक मांगना एक धंदा है साहिब , गरीब मांगे तो भीख , पुजारी मांगे तो दक्षिणा , अमीर मांगे तो भगवान् की कृपा , सारे मिलकर मांगने लगे तो समझ लो डोनेशन है। हम सब इन्ही लोगो द्वारा मुर्ख बना कर हमसे पैसा लिया जाता है इसी बात पे के भगवान् बहुत खुश होगा तुमेह और अधिक देगा। और हम ऐसा करते हैं यह श्रद्धा है इसमें कोई कुछ पूछ भी नहीं सकता।  


We all are BEGGARS: with various degrees of expertise in our chosen fields, Garib Aadmi Mandir ke bahar aaney waalon se  BHEEKH Mangta hai. Jab ki Crorepati Aadmi Mandir Ke Andar jaakar BHAGWAN se BHEEKH mangta hai.! That's why elders always advise, "Maango Usi se. Jo De Khushi se. AUR.Kate na Kisi Se", 
 But we are  Fed up with the People who have made it a whole-time business out of our religious sentiments, at Religious places who Coerce us for Donations: willingly or under various pretexts?



पैसा हो तो मुसीबत ,न हो तो मुसीबत,

पैसे को पैसा खींचे , कर कर लम्बे हाथ ,
जिसके खीसे में हो पैसा ,वही है जगन्नाथ  

खाली जेब जो मिलोगे , कहलाओगे कंगाल ,
दौलत की नजरों में , कंगाली है.....  अनाथ। 
अनाथों का दुनिया में होता नहीं कोई नाथ ,
जी भर भलाई  कर लेना ,देगा नहीं  कोई साथ 

दुनिया में कुछ भी बन जाना , पर  गरीब नहीं ,

मुफलिसी में कोई सगा भी ,आता करीब नहीं। 

नकद पैसे को जिसने भी देखा है , कई रंगों में देखा है ,

लाल पीले , हरे नीले , कागज़  के और प्लास्टिक के ,
जितना भी घिस जाएँ , जितने भी फट जाएँ ,
इनका मूल्य वही रहता है , इन्सान की उम्र घट जाये इसे कमाने में ,
लेकिन पैसे की कीमत बढ़ जाती है ,तिजोरी में सजाने में 

सिक्कों की झंकार पे ,

दुनिया नाचती है , इसे पाने को दुनिया जान देती है ,
और जान ले भी लेती है 
पैसे वाले मिट जाते हैं पर इसकी कीमत नहीं घटती। 

इससे इतर भी हैं पैसे के कई प्रकार , पैसे को आप कई तरह के कीमती सामानो में बदल सकते है जैसे की 

जमीन जायदाद , सोना चांदी , गहने कपडे ,
खाना पीना , ऐशों आराम , हवा में उड़ना ,
मोटर गाडी सब पे चलती है, इनकी सरकार। 

कभी गरीबी में जी रहे उस निर्धन से भी मिले हो?

उसके पास धन तो नहीं पर सकून है चेहरे पे भरपूर 
जिसके सिर पर छत नहीं , तन पे पूरे कपडे भी नहीं 
क्या करता है क्या खाता है , कैसे पालता है परिवार ? 

पैसे की कीमत, उससे अधिक कोई नहीं जानता ,लेकिन 

है कुछ कीमती चीज़ उसके पास  भी, जो कभी कभी 
कुछ पैसे में बिक जाता है ,उसके एक  वोट की कीमत ,
कुछ कपडे , कुछ नकद , और गम भुलाने को शराब ,
फिर सो जाता है ओढ़ के लिहाफ पूरे पांच साल। 

न कोई फ़िक्र ना कोई फाका , न कोई लगाव न कोई मोहमाया  

यह वही चीज़ हैं न ?जो आज भरपूर धन खर्च करके भी नहीं मिलती ?
इसी चीज़ को पाने के लिए हम बड़े बड़े हॉस्पिटल को पैसा देते है न ?
पैसा तो सब चला जाता है पर जिंदगी फिर भी नहीं मिलती ,


सुना था लक्ष्मी (धन ) और सरस्वती (ज्ञान ) दोनों सगी बहने हैं ,
लेकिन दोनों एक ही घर में बहुत कम एक साथ  रह पाती है क्योंकि 
अधिक धन आने पे अहंकार, लोभ , मोह , विद्वेष , घमंड ,
ज्ञान पे हावी हो जाता है। अब यह हमे सोचना है की पैसे और सदाचार का गठबंधन टूटने न पाए , अरस्तु  अपने समय के जाने माने ज्ञानी अर्थशास्त्री थे , उन्होंने 384 -322 BC में ही बता दिया था की पैसे का सही और सार्थक अभिप्राय हमे इस काबिल बनाना है की हम वस्तुओं , खाने पीने , कपड़ो की खरीद में कर सके.  

हमारी जरूरते ज्यादा नहीं होती जितने पैसे की हम कामना रखते है ,

हम बेशुमार खाना नहीं खा सकते , न ही अनगिनित कपडे पहन सकते है , अब  चुकी पैसा एक ऐसी चीज़ है जो जोड़ कर रखा जा सकता है और जब जरूरत हो कुछ भी खरीदा जा सकता है , अब जब पैसा दूसरों को देकर ब्याज़ कमाने का बिज़नेस लोगो ने चलाया तो अरस्तु के अनुसार यह पैसे का दुरूपयोग है /. 

जब अनपढ़ अज्ञानी लोग अपनी दुष्चालों से बड़ी जल्दी बहुत धनवान हो जाते है ,पैसा ही पैसा होता है उनके कदमो में , उसी पैसों से 
वह ज्ञानी लोगों पर  कुछ पैसा फेंक उसे खरीदना चाहते है।और वह पैसे के बल पर उसकी मजबूरी खरीद भी लेते है।  

पैसे की महिमा अपरम्पार है , बाकी सब बेकार है , पैसे का असंतुलन गरीब और अमीर इसके  बीच का फर्क हम ने ही बनाया है 

एक अज्ञानी का पैसा किसी गरीब को देने से पहले 
उसके द्वारा पूरा मोल तोल और छल कपट किया जाता है , ताकि एक गरीब रिक्शा ,सब्जीवाला , दरजी , मोची , ज्यादा न कमा सके। गरीब की मेहनत की कीमत यह पैसे वाले सबसे काम आंकते है। 

लेकिन जैसे ही सांझ ढलती है यही पैसे वाले महंगी महंगी शराब की बोतल लेते हुए कीमत भी नहीं पूछते , चाहे जितनी भी  कीमत हो वह तो उन्हें हर हाल में चाहिए , महंगे होटल्स ,क्लब में इसी पैसे को वह एक बार डांसर पे बेहिचक खुले दिल से लुटाते हैं , कितनी विडंबना है इस पैसे की जिसके पास है:-


" उसे इसकी कदर नहीं जिसे कदर है उसके पास है ही नहीं 


लेकिन जब कोई कष्ट आता दिखता है न यही पैसे वाले लोग पहुँच जाते है अपने पैसे का दिखावा करने , लंगर चलवाते है , दान करते है एक ढोंगी बाबा के आश्रम में जाकर '

धन यूं लुटाते हैं जैसे वही उनेह स्वर्ग का रास्ता देगा , लेकिन अपने असली रूप को वह इस पैसे से छुपा लेना चाहते है जो की स्वार्थी और लालची है। 


इसी मुफ्त के दान पैसे का हमने चमत्कार देखा है ,

फुटपाथ पे बैठा बाबे का आलिशान दरबार देखा है ,
गरीब का हक़ मार कर लोगों का तीरथ का व्यपार देखा है ,
खुदा , भगवान् को कहाँ किसी ने देखा है 
पर उसके नाम पे बाबाओं का बनते संसार  देखा है ,

पैसे का मोह धर्म के ठेकेदारों को भी बहुत होता है ,
जो प्रवचन करते है ईश्वर को पाना है तो मोह माया को त्याग दो
आपके धन दौलत का मोह सबसे अधिक उनेह ही होता है ,
आप त्यागोगे तभी तो उनको मिलेगा ?



गरीब तरस रहा अपने हक के मजदूरी के  पैसे को ,

अमीर लुटा रहा दिखावे  में इस मक्कारी से कमाए पैसे को 

इंसान मरने पर भले ही खाली हाथ जाए ,

जब जीवित हो इसके बिन जिया भी न जाए 
आज पैसा कितना हो जीवन में ? यह हमारी जरूरतों से नहीं 

हमारी तृष्णा से तय होता है , 
वरना गुजारा तो दाल रोटी से भी होता है , 

" हम बचपन में अपनी माँ के मुहं से अक्सर यह दोहा सुना करते थे 
रूखी सूखी खा के ठंडा पानी पी , देख पराई चोपड़ी 

न तरसावे जी "



पैसा जितना भी हो न काफी होता है ,
होने पे भी और न होने पे भी इन्सान तो रोता ही है
कितने ही घर टूट गए पैसे के बटवारे में ,
पहले पैसों से इंसान के परिवार की जरूरते पूरी होती थी आज कल बहुत अधिक पैसे का विकृत रूप हमारे सामने आ चुका है , लोग आज सियासत की कुर्सी  को इस पैसे से पाना चाहते हैं  पैसों से सरकारें बनाई जाती हैं , गिराई जाती है , पहले पैसा धर्मार्थ के काम लगा करता था आज पूरी दुनिया में अशांति फ़ैलाने में काम आता है।



हाकिम भी नहीं सुनता आजतो , कानून भी अपाहिज है पैसे की गुलामी में, बिन पैसे किसी गरीब को वकील नहीं मिलता न ही न्याय मिलता है , लेकिन हम अक्सर देखते है अपराधी कितना भी गरीब हो उसे बचाने वाले वकील बहुत आ जाते है क्योंकि यह उनका पब्लिसिटी स्टंट होता है और पैसा एक आपराधिक या मजहबी संस्था से आता है , लेकिन एक सीधे साधे गरीब को कुछ कोई नहीं देना चाहता ,यही पैसे का सब से घिनोना रूप हमने देखा है ,



न बीवी  न बच्चा, न बाप बड़ा न मईया। 


the whole thing is that ke bhaiya sabse bada ruppaiya 


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Your money story is foundational to how you think about money, how you react to money and how you communicate about money. For those who grew up where conflict was a central theme, any conversation dealing with money begins with a stomachache. I can tell you that from personal experience. For those who grew up in the dark around money, dealing with the mysteries of money in adulthood is likely to be a struggle.

In order to barter, you have to find someone who wants what you are offering, say a loaf of bread, and is at the same time offering something you want, say a joint of meat; and then you have to agree that the bread and the meat have roughly the same value. Adam Smith instances a butcher and a brewer and a baker. They are all glad to accept the other articles in exchange for the meat or beer or bread which they themselves produce, provided that they need them at the same time. But often things are not as convenient as that. At some point in the development of ancient societies, people began to recognise that simple bartering can be cumbersome and slow. If there were some special thing which would be accepted at any time in exchange for an article, that would make the process easier and quicker. That special thing would be money. 


N This book is about the history of money: how did it begin? how has it evolved to the present day? what has it enabled humans to achieve? and why do so many people in the world today have problems with it and suffer from the way it works? The book is also about the future: how may money develop further? how might we want it to develop? Humans are the only creatures that use money. Animals and birds and insects and fishes and plants exist together in the world without it. But in human societies, the earning and spending of money has become one of the most important ways we connect with one another. Most of us have to have money. We need to get enough coming in to match what we need to payout. We all need to understand at least that much about money. But there is more to it than that. Over the centuries, money has reflected changes in politics and government, in economic life and power, in science and technology, in religious and other cultural beliefs, in family and neighbourhood life, and in other aspects of how we live. And it has not just reflected those changes; it has also helped to bring them about. Knowing something about how that has happened can help us to see how the role of money in people's lives may continue to change, and how we think it should change, as an aspect of the future of our "global village". For young people growing up in the early 21st century, this could be more important than ever before.


Economists now use money numbers to measure the value of many things and to advise people and companies and governments what to do. Some even think of economics as an objective science like other sciences. But money numbers do not measure objective aspects of nature - like length, height, weight, or the data of physics and chemistry. Money numbers provide us with a scoring system for the game of life. Like any scoring system, the money system heavily influences how the game is played - and money numbers influence us, particularly because we can use them to buy things. The fact is that the money system has been shaped by human decisions designed to serve particular human purposes. Understanding why it now works as it does. and how it might be improved, does not depend on objective measurement. 



It depends on deciding what purposes of money should serve. That is an ethical decision. Ethics and Money Aristotle, one of the great philosophers of ancient Athens (384-322 BC), believed that the natural and proper purpose of money is to enable us to exchange necessities of life - like clothes and food.

 Our need for most things is limited; we can't wear unlimited clothes or eat unlimited food. But, because money can buy all sorts of different things, some people want unlimited amounts of money, as Midas wanted to turn everything into gold. So they may be tempted to practise usury - to make money out of money by lending it at interest. Aristotle condemned that.