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Tuesday, October 29, 2019

ADABI SANGAM ...... [480 ] .... " GHAR " OR " HOME" AT FLAMES --OCT..26--,2019 .................................................................................................................... 26

एक घर हो अपना *************
          ****** यही है हम सबका प्यारा सपना 




तन्हा बैठा था एक दिन मैं अपने मकान में,

चिड़िया बना रही थी घोंसला ऊपर रोशनदान में।
पल भर में आती पल भर में जाती थी वो,  
छोटे छोटे तिनके चोंच में भर लाती थी वो।

बना रही थी वो तिनको से अपना अश्याँ एक न्यारा,  

सिर्फ  तिनके ही  थे , ना कोई थी ईंट न  कोई गारा।
कोतुहल हुआ  मुझे भी और रश्क था उसकी लगन पे ,
वह अकेली जान और ख्वाब में था उसके भी  एक मकान ?
जिसे बिना रुके बनाये जा रही थी वोह किसीके इंतज़ार में ,
मैं उसके सपनो को समझने की कोशिश में रोज उसे देखने लगा 

कुछ दिन बाद....

मौसम बदला, हवा के झोंके भी आने लगे, 
नन्हे से दो बच्चे घोंसले में चहचहाने लगे।
पाल रही थी चिड़िया उन्हे ,पंख निकल रहे थे दोनों के,
पैरों पर करती थी खड़ा उन्हे।  देखता था मैं हर रोज उन्हें,
जज्बात मेरे उनसे कुछ जुडे  ऐसे ,की बिन देखे उनेह रह न पाता
एक दिन घोसला वीरान था , चिड़िया भी निष्प्राण सी मायूस सी 
शायद पंख निकलने पर दोनों बच्चे,मां को छोड़ अकेला दूर कहीं उड़ गए,। 
 चिड़िया से पूछा मैंने..अपनी ही मूक दृस्टि से 
तेरे बच्चे तुझे अकेला क्यों छोड़ गए,  तू तो थी मां उनकी,
फिर ये रिश्ता क्यों तोड़ गए?

चिड़िया भी  बोली...अपनी मायूस आँखों से 

परिन्दे और इंसान के बच्चे में यही तो फर्क है, श्रीमान 
इंसान का बच्चा..पैदा होते ही अपना हक जमाने लगता  है,  
जिस घर में पैदा होता है न , उसे ही छीनना चाहता है 
न मिलने पर वो मां बाप को,कोर्ट कचहरी तक भी ले जाता है।
मैंने बच्चों को जन्म तो दिया,पर करता कोई मुझे याद नहीं।    
मेरे बच्चे क्यों रहेंगे साथ? मेरे नाम तो कोई मकान घर भी नहीं , सिर्फ है यह तिनको से बना घोसला  ,इसके आलावा  मेरी तो कोई जायदाद  नहीं।

बात बड़ी गहरी थी , मन को मेरे छु गई , पक्षी कभी बोलते नहीं हैं पर अपने अपने तरीके से उनके भाव  बता देते है , समझने का वक्त और सीने में प्यार भरा दिल होना चाहये । मैं भारी मन से  सोचते सोचते भीतर आ गया जहाँ पिताजी बैठे टीवी देख रहे थे। 

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''पिताजी आप और चाचा उस दिन कुछ बातें कर रहे थे और बातें करते—करते आप लोग अचानक रोने क्यों लगे थे।'' नन्हें बालक ने प्रश्न पूछा।
''हम लोग अपने बचपन की बातें कर रहे थे, बेटा !'' पिताजी ने प्यार से समझाया।
''तो फिर रोने क्यों लगे थे ?''बचपन के किस्सों में रोने वाली कौन सी बात थी ? नन्हें बालक ने अपना प्रश्न दोहराया।

''बेटा ! बात 1935 की है। तुम्हारे दादाजी को गुजरे 15 दिन ही बीते थे कि तुम्हारी दादी ने मुझे अपने पास बुलाया और रुधे गले से कहा ''बेटा, हम लोग जिस घर में रह रहे हैं, इस घर को तेरे पिताजी ने तुम्हारी बहन की शादी और फिर उसके पति की बीमारी  और दुसरे  ईलाज के लिए अधिक पैसों की जरूरत पड़ने पर किसी आदमी के पास गिरवी रख दिया था। अब तुम बड़े हो गए हो ,दोनों भाई उस आदमी से जाकर मिल लो।'' पूरा हिसाब भी समझ लो


''मैं उस समय चौथी कक्षा में पढ़ता था। लिहाज़ा बहुत छोटा था इसलिए मैंने तुम्हारे चाचा को साथ लिया, हम दोनों भाई चल पड़े।'' पिताजी ने बात आगे बढ़ाई।

''उस आदमी ने हम दोनों भाईयों को वहां तखत में बैठने के लिए ईशारा किया और स्टाम्प पेपर पकड़ाते हुए पढ़ने के लिए कहा। कांपते हाथों से मैंने स्टाम्प पेपर पकड़ तो लिया लेकिन आखों में आंसू होने के कारण पूरा स्टाम्प पढ़ न पाया, लेकिन इतना जरूर समझ में आ गया कि हमारा घर 15 हज़ार  रुपये के कर्ज के कारण गिरवी है और समय पर कर्ज और ब्याज़ अदा न करने पर मकान उस आदमी का हो जायेगा। 

उस समय १५ हज़ार बड़ी रकम हुआ करती थी इतने रुपये चुकाना हमारे लिए लगभग असंभव था।'' पिता की आंखों में आंसू तैरने लगे थे और आवाज में कंपकंपी भी आ गई थी।

नन्हा बालक भी पूरी तल्लीनतापूर्वक सुन रहा था।

पिता ने आगे कहा '' हमने उस स्टाम्प पेपर पर जिसमे हमारे पिताजी के दस्तखत थे और उधारी का पैसा भी लिखा था ,मैंने तीन—चार बार उस आदमी से कुछ कहने की कोशिश की लेकिन रुंधे गले ने साथ नहीं दिया। आँखों से अनायास ही आंसू बह कर स्टाम्प पेपर पर गिरे और पिताजी के दस्तखत वाली जगह गीली हो गई और सहाई फैल गई ,वह आदमी उठा और हम दोनों भाईयों के पास बैठकर हमारे सिर में हाथ फेरने लगा।


 अनजान व्यक्ति का प्रेम पाकर भी हम दोनों भाई कुछ न कह सके लेकिन हम दोनों भाईयों की आंखों से बहते आंसुवों और हमारी हिचकियों ने सबकुछ कह दिया।''



''उस आदमी ने हमारे आंसू पोंछे और स्टाम्प हमें लौटाते हुए रुंधे गले से कहा : ''आज से तुम दोनों भाई कर्ज—मुक्त हुए, तुम लोगों के पिता असमय चल बसे, वे बहुत कर्मठ,और ईमानदार  इंसान थे, तुम लोग भी उनकी तरह ही कर्मठ इंसान बनना, समय हमेशा एक—सा नहीं रहता बेटा, तुम्हारा समय भी अवश्य बदलेगा''

नन्हें बालक के पिताजी कुछ समय के लिए मानों उस काल में खो गये।

पिता आगे कुछ न बोल सके। उन्होंने देखा उनका नन्हा बेटा भी सुबक रहा था।

थोड़ी देर बाद पिता ने बड़े स्नेहपूर्वक नन्हें बेटे से कहा, ''बेटा उस देवतास्वरूप इंसान की बातें हम हमेशा याद रखते हैं और इसीलिए आज भी दिन—रात कठोर परिश्रम करते रहते हैं, उस इंसान की बातें सच साबित हुई और आज हमारे पास वह सबकुछ है जिसकी उस समय हम लोग कल्पना भी नहीं कर सकते थे।''

पिता ने अपने आंसु पोंछे और हंसते हुए कहने लगे : ''बचपन की खट्टी—मीठी बातों को याद करके हम लोग कभी—कभी खूब हंस लेते हैं और कभी—कभी रो भी लेते हैं।''


अच्छे दिनों में कभी घमण्ड मत करना, बुरे दिनों में कभी धीरज मत खोना''आप की अच्छाई आप को डूबने नहीं देती कोई न कोई मसीहा खुद ही आ जाता है तुम्हे पार लगाने , जैसे की उस साहूकार ने हमारे साथ किया। 

उस वक्त आसान न था एक छोटा सा मकान भी बना लेना , क़र्ज़ सड़क पर ला देता है छत छीन  लेता है

आज भले ही "बहुत ही आसान है, ज़मीं पर...आलीशान मकान बना लेना..." क़र्ज़ उठाकर
पर उसे घर बनाने में जिंदगी निकल जाती है, और क़र्ज़ चुकाते  चुकाते लोग खुद ही निकल लेते है , और मकान को घर नहीं बना पाते और आशियाँ बिखर जाता है

पिताजी के दुःख  जो उन्होंने उस वक्त झेले ,एक एक कर उनकी जुबान से फिसले चले आ रहे थे , थोड़ा रुके फिर बोले :-


मकान को घर भी वही लोग नहीं बनने देते जो अपने होते हैं ,घर में "दर्द भी वही देते हैं , जिन्हे हक दिया गया  हो,
*वर्ना गैर तो धक्का लगने पर भी , माफी माँग लिया करते हैं

था एक वक्त और वह घर जिसमे  एक तौलिए  से पूरा परिवार  नहाता था।
दूध पीने का भी नम्बर भाई बहनो में बारी-बारी से आता था।

छोटा माँ के पास सो कर ही ख़ुशी से इठलाता था।
लेकिन पिताजी से मार का डर सबको सताता था।

बुआ के आने से माहौल थोड़ा  शान्त हो जाता था।
पूड़ी खीर से पूरा घर रविवार व् त्यौहार मनाता था।

बड़े भाई के कपड़े छोटे होने का इन्तजार रहता था।
स्कूल मे बड़े भाई की ताकत से छोटा रौब जमाता था।
हर घर में बहन-भाई के प्यार का ही  सबसे बड़ा नाता था।
धन का महत्व भी होता है ,कभी कोई सोच भी न पाता था।

बड़े का बस्ता किताबें साईकिल कपड़े खिलोने पेन्सिल स्लेट स्टाईल चप्पल सब से छोटे का ही तो नाता था।

मामा-मामी नाना-नानी पर हक जताता था।
एक छोटी सी सन्दुक को अपनी जान से ज्यादा प्यारी तिजोरी बताता था।
और अब ~घरों में ऐसा नहीं होता
तौलिया अलग हुआ, दूध भी अधिक हुआ, दूध का इंतज़ार और उसमे छुपा माँ का प्यार अब नहीं मिलता

माँ अब तरसने लगी उन्ही बच्चों से मिलने को , पिता जी भी डरने लगे अपने ही बच्चों से अपने मन की बात कहने को ?,

बुआ से भी कट गये, उसका आना अब हमारी गरज नहीं , खीर की जगह पिज्जा बर्गर मोमो जो आ गये,
कपड़े भी व्यक्तिगत हो गये, भाईयो से दूर हो गये,
बहन से प्रेम कम सिर्फ स्वार्थ का रिश्ता ही रह गया 

अब हमारा वोह "घर" खुद ही बेघर सा हो गया
क्योंकि अब धन प्रमुख हो गया,अब सब नया चाहिये,
नाना नानी आदि औपचारिक हो गये।सिर्फ एक रिश्ता ,ही तो बचा 

वक्त के साथ साथ सब के लिए रिश्ते बटुऐ में नोट से हो गये।
कई भाषायें तो सीख गए  मगर अपनी भाषा के  संस्कार भूल गये।

बहुत पाया इतनी तेज दौड़कर , मकान को घर बनाया फिर अपनी ही विरासत को महल तो बना लिया  मगर काफी कुछ पीछे छोड़  गये।

कृपया जरा रुकें और सोचे ,
हम क्या थे क्या हो गए , कहाँ से चले थे ?
कहां जाना था ? वह एक प्यारा सा बचपन वाला घर छोड़ एक बड़ा मकान ले तो लिया पर जिसे  आज तक  घर बना न सके । कमरे तो बहुत है जिसमे मगर अब कोई रहता नहीं ....... आज यह महसूस हुआ है की बड़े मकान में रहते हुए घर से कितना दूर हो गए है हम ?


मुझे  चिड़िया  की बात का गूढ़ महत्व अब समझ आया की क्यों बच्चों को लेकर वह इतनी व्यावहारिक थी की जब उसके पास कहने को कोई जायदाद ही नहीं , थी तो मात्र एक छोटी सी टहनी पर तिनको से बना घोसला , यानी की एक गरीब सा मकान , इसमें कौन रहना चाहेगा या क्या मिलता उन्हें इसमें से ? इस लिए बच्चे उसे छोड़ गए। 



इंसान एक  घर की तलाश में मकान पे मकान बदलता है , खूबसूरत दिखने को  लिबास बदलता है ,
रिश्ते  बदल लेता है , रिश्तेदार भी  बदल लेता है , मतलब निकल जाने पर  दोस्त भी बदल लेता है
फिर भी परेशान क्यों बना रहता है ? क्यों की सब कुछ  बदल कर भी ,
खुद की सोच  नहीं बदलता है


रिश्तो के अर्थ बदल गये, घर के मायने बदल गए , अब घर में बच्चे नहीं हमारे नौकर रहते हैं , यह सिर्फ अब एक जायदाद है , एक बहुत बड़ी दौलत जो वक्त के साथ बढ़कर बहुत कीमती हो गया है ,अब हम जीने का किरदार तो बखूबी निभा लेते है पर जिंदगी जी नहीं पाते , 

अपने ही फैलाये जाल में हम खुद ही फंस चुके हैं , जमीन जायदाद की लड़ाई में संवेदन हींन हो चुके हैं
कहने को तो मकान कई हैं हमारे नाम,
पर हमेशा " एक घर की तलाश में रहते हैं "


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जैसे की जितना भी जिसे चाहो ,

हंस के या रो के  दिल में जगह बनाने में ...
अक्सर पूरी ज़िन्दगी गुज़र जाया करती है..!!!

कोई वादा ना कर ,कोई इरादा ना कर ,

ख्वाहिशों में खुद को आधा ना कर ,
ये देगी उतना ही जितना लिख दिया परमात्मा ने ,
इस तकदीर से उम्मीद तू ज़्यादा ना कर ...

  मैंने भी देखा है , जिन्दगी की हर सुबह

  कुछ नई शर्ते ,नए पैगाम लेके आती है।
  और जिन्दगी की हर शाम आने पर
      कुछ नए तर्जुबे देके जाती है ....   

      🥃 🥃

मुझे शराब से महोब्बत नही है जनाब
महोब्बत तो उन पलो से है
जो शराब के बहाने मैं
दोस्तो के साथ  बिताता हूँ.

 🥃🥃

शराब तो ख्वामखाह ही बदनाम है..
नज़र घुमा कर देख लो.
इस दुनिया में.. शराब के सिवा
शक्कर से मरने वालों की तादाद बेशुमार हैं!
                                             🥃🥃
तौहीन ना कर शराब को कड़वा कह कर,
जिंदगी के तजुर्बे, शराब से भी कड़वे होते है...
मेरी तो गुजारिश है उस हाकिम से
कर दो तब्दील अदालतों को मयखानों में साहब;
सुना है नशे में कोई झूठ नहीं बोलता !
                                                                🥃🥃
सबसे कड़वी चीज़ इन्सान की ज़ुबान है,
दारू और करेला, तो खामखां बदनाम हैं !

"बर्फ का वो एक शरीफ सा  टुकड़ा       

 जाम में क्या गिरा... बदनाम हो गया..."
"देता जब तक अपनी सफाई.,.
घुलकर .बेचारा  खुद भी शराब हो गया....."

ताल्लुकात बढ़ाने हैं तो....

कुछ आदतें बुरी भी सीख ले गालिब,
ऐब न हों तो.....अक्सर
लोग महफ़िलों में नहीं बुलाते ....

इस लिए तो चचा ग़ालिब को भी कहना पड़ा

उम्र भर ग़ालिब यही भूल तो करता रहा ,
धुल चेहरे पे जमी थी , और आइना साफ़ करता रहा।

बेकार ही कहते हैं लोग दोष देते है पत्नियों को

कि पत्नियाँ कभी अपनी गलती नहीं मानती,
मेरी वाली तो सच में रोज मानती हैं. . .
गलती हो गई तुमसे शादी कर के!

मिया बीवी दी लड़ाई दे बाद, बीवी पेके चली गई।
पति ने फोन किता, ते गलती मन्नी।
बिवी : तुसां मेडा दिल तोड़ेया हे, मैं ना आसां।
पति : आ वन्ज, दिल जोड़ ढेसां।
 बीवी : तुहाडे नेड़े कोई गिलास हे ?
पति: हां हे!
बीवी : हुकु जोर दे फर्श ते मारो वल
पति: मार दित्ते
बीवी : होणं टूटे गिलास दे टुकडियां कु जोड़ सकदे वे !
 पति : गिलास टूट्या कैनी, स्टील दा हाई
बीवी: बऊ कमीने हो!

          शाम कु आ वैसां 😂

कुछ दोस्त ऐसे है जो घर से बीवी की लात खाकर आते है ।

और दोस्तो से कहते फिरते है।

आज तो लेग पीस खाकर आया हूं😡
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      शब्दो को कोई स्पर्श नही कर सकता... लेकिन शब्द सभी को स्पर्श कर जाते है..

लिखना था नया साल मुबारक
लिखने में आ गया नया साला मुबारक
कोहराम शुरू हो गया   है
,नए साल में🤣🤣🤣🤣🤣

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एक औरत का दर्द.....

काम करुं तो सांस फूल जाती है ,और

बैठ जाऊ तो सास 😡👵 फूल जाती है.......
और कुछ ना करु तो खुद फूल जाती है
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पति :- मुझे अपनी बीवी से तलाक चाहिये वो बर्तन फेंक के मारती है 😢

जज :- अभी से मार रही है या पहले से 😁
पति:- कई साल पहले से  🙁
जज :- तो इतने साल बाद तलाक क्यों 😳
पति :- क्यों कि अब उसका निशाना पक्का हो गया है 😬😬😁😁😁😁