SHVETA'S 40 TH BIRTHDAY 27 TH sept. 2020
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बात ज्यादा पुरानी नहीं है शायद कुछ दशकों पहले तक के सामाजिक परिवर्तन की दास्ताँ को अगर फिर से खंगाला जाय तो यही बात सामने आएगी की " बेटियों को हमेशा से ही हिन्दू संस्कृति में देवियों का दर्जा तो प्राप्त था लेकिन उसकी दैवीय शक्तियों को सात पर्दों में छुपा दिया गया और उनेह समाज में अपना योगदान करने ही नहीं दिया गया "
वक्त बदला ,लगा तार चल रहे आपसी युद्धों और लड़ाईओं की वजह से जब पुरषों की गिनती पर असर पड़ना शुरू हुआ तो समाज को सहारा देने को महिलायें अपनी देवेयी शक्ति के साथ मैदान में कूद पड़ी और पुरुष केंद्रित समाज में अपना योगदान देने लगी ताकि समाज में पुरषों की कमी की वजह से असंतुलन पैदा न हो जाए। फिर भी हर परिवार की पहली मुराद यही रहती थी की उन के यहां बेटे ही पैदा हो ताकि परिवार और खानदान चलता रहे। इस मिथ को भी आज बेटियों ने तोड़ दिया है।
वक्त बदला ,लगा तार चल रहे आपसी युद्धों और लड़ाईओं की वजह से जब पुरषों की गिनती पर असर पड़ना शुरू हुआ तो समाज को सहारा देने को महिलायें अपनी देवेयी शक्ति के साथ मैदान में कूद पड़ी और पुरुष केंद्रित समाज में अपना योगदान देने लगी ताकि समाज में पुरषों की कमी की वजह से असंतुलन पैदा न हो जाए। फिर भी हर परिवार की पहली मुराद यही रहती थी की उन के यहां बेटे ही पैदा हो ताकि परिवार और खानदान चलता रहे। इस मिथ को भी आज बेटियों ने तोड़ दिया है।
लेकिन जैसे ही 18 वि और 19 सदी में महिलाओं ने अपनी घरेलू बेड़ियाँ तोड़ कर दुनिया में अपनी हाज़री लगानी शुरू की तो देखते ही देखते कितनी ही मल्टीनेशनल कम्पनि के ceo महिल्याएं बन गई और अपनी योग्यता का लोहा मनवाया ,
इसी सन्दर्भ में , उस नारी शक्ति को सलाम करने के लिए , हम आज अपनी बेटी के 40 वे जनम दिन को मनाने आप सब के साथ यहां इकट्ठे हुए है ,मेरी पत्नी ने मुझ से पुछा था की इस जन्म दिन के अवसर पर आप कुछ कहना चाहेंगे ? मैंने कहा कुछ ही क्यों मेरे पास तो " अपनी बेटी को गोद में खिलाने से लेकर आज उसकी बेटियों के साथ खेलने तक के सफर के इतने अद्भुत किस्से और यादे हैं की मेरी समस्या यह है की " शुरू कहाँ से करूँ?"
श्वेता को पालने में झुलाते हुए वक्त भी, मुझे याद है वोह मेरी आँखों में बड़े गौर से झांकते हुए एक सधी हुई मुस्कान दिया करती थी , फिर जोर जोर से किलकारियां मार कर हंसने लगती थी और अपनी पूरी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए दोनों हाथ पैर हिला कर खेलने लगती थी। शायद कुछ बताने की कोशिश करती थी , उसकी मुस्कराहट में एक कशिश थी और एक कहानी जिसे श्वेता ने अपनी अनथक मेहनत और लगन से लिखा है ,जिसे पढ़ते पढ़ते आज चालीस वर्ष गुजर गए।
मुझे याद आता है उसका टीवी पे गाने चला कर उसके शोर में अपनी पढ़ाई करते रहना , जब की हमारी मान्यता यही है की पढ़ने के लिए एकांत की जरूरत होती है , लेकिन श्वेता कम्प्यूटर्स में मास्टर्स अपने ही अंदाज में हँसते खेलते ,जिंदगी की सीढ़ियां बड़े अच्छे रैंकिंग में चढ़ते हुए आज अपने चालीसवे पड़ाव पर आ पहुंची है और अपनी जिंदगी की उड़ान को बखूबी सेलिब्रेट कर रही है।
आज हम उसके माँ बाप जो की इंडिया में पूरी तरह से एक खुशहाल जीवन जी रहे थे और अमेरिका में आने का कोई प्लान भी नहीं था , श्वेता ने यह साबित कर दिया है की समाज चाहे लाख कहे "लड़कियां पराया धन होती हैं" ऐसा नहीं है बल्कि लड़कियां आज ,अपने माँ बाप को अपना असली धन मानती है और उनके हर सुख दुःख में कंधे से कन्धा मिलाकर चलती हैं , इसी प्यार ने हमे मजबूर किया की हम भी यहां आ जाए.और उसके साथ अपना समय व्यतीत करें ,
आज के इस शुभ अवसर पर हम सब की और से यही दुआ है की ईश्वर सब को ऐसी बेटी दे और सब की जिंदगी खुशिओं से आबाद रहे।
मुझे याद आता है उसका टीवी पे गाने चला कर उसके शोर में अपनी पढ़ाई करते रहना , जब की हमारी मान्यता यही है की पढ़ने के लिए एकांत की जरूरत होती है , लेकिन श्वेता कम्प्यूटर्स में मास्टर्स अपने ही अंदाज में हँसते खेलते ,जिंदगी की सीढ़ियां बड़े अच्छे रैंकिंग में चढ़ते हुए आज अपने चालीसवे पड़ाव पर आ पहुंची है और अपनी जिंदगी की उड़ान को बखूबी सेलिब्रेट कर रही है।
आज हम उसके माँ बाप जो की इंडिया में पूरी तरह से एक खुशहाल जीवन जी रहे थे और अमेरिका में आने का कोई प्लान भी नहीं था , श्वेता ने यह साबित कर दिया है की समाज चाहे लाख कहे "लड़कियां पराया धन होती हैं" ऐसा नहीं है बल्कि लड़कियां आज ,अपने माँ बाप को अपना असली धन मानती है और उनके हर सुख दुःख में कंधे से कन्धा मिलाकर चलती हैं , इसी प्यार ने हमे मजबूर किया की हम भी यहां आ जाए.और उसके साथ अपना समय व्यतीत करें ,
आज के इस शुभ अवसर पर हम सब की और से यही दुआ है की ईश्वर सब को ऐसी बेटी दे और सब की जिंदगी खुशिओं से आबाद रहे।