...A lovely poem from Gulzar...
कुछ हँस के
बोल दिया करो,
कुछ हँस के
टाल दिया करो,
यूँ तो बहुत
परेशानियां है
तुमको भी
मुझको भी,
मगर कुछ फैंसले
वक्त पे डाल दिया करो,
न जाने कल कोई
हंसाने वाला मिले न मिले..
इसलिये आज ही
हसरत निकाल लिया करो !!
समझौता
करना सीखिए..
क्योंकि थोड़ा सा
झुक जाना
किसी रिश्ते को
हमेशा के लिए
तोड़ देने से
बहुत बेहतर है ।।।
किसी के साथ
हँसते-हँसते
उतने ही हक से
रूठना भी आना चाहिए !
अपनो की आँख का
पानी धीरे से
पोंछना आना चाहिए !
रिश्तेदारी और
दोस्ती में
कैसा मान अपमान ?
बस अपनों के
दिल मे रहना
आना चाहिए...!
- गुलज़ार😊
हमारी तो फितरत ही कुछ ऐसी है कि
हम तो रोते हैं उस हवा के झोंके को भी ,
जिसका कसूर सिर्फ इतना ही था
की वोह छूकर हमे निकल गया।इक जब्र है अब एहसास ए वफ़ा ,
यह दिल में बसाना ठीक नहीं ,
अब साज़े दिल ,दिल अफ़सुर्दा पर
इस गीत को गाना ठीक नहीं .
तुम भूल चुके यह सब बेहतर है ,
तुम छोड़ चले यह और भी अच्छा .
ख्वाबों में मगर मजबूरों के ,
यह आना जाना भी ठीक नहीं .
कह दो के नहीं हम मिल सकते।
कह दो के कोई मजबूरी है .
लेकिन यह लबों तक ला ला कर
बातों को छुपाना ठीक नहीं .
ऐय शोक इ जुनुओ अब बाज भी आ,
कुछ मान भी ले तु मेरा कहा .
जो जान के भी अनजान बने ,
जो जान के भी अनजान बने ,
गम उसको सुनाना ठीक नहीं
...........
जिसका कसूर सिर्फ इतना ही था
की वोह छूकर हमे निकल गया।इक जब्र है अब एहसास ए वफ़ा ,
यह दिल में बसाना ठीक नहीं ,
अब साज़े दिल ,दिल अफ़सुर्दा पर
इस गीत को गाना ठीक नहीं .
तुम भूल चुके यह सब बेहतर है ,
तुम छोड़ चले यह और भी अच्छा .
ख्वाबों में मगर मजबूरों के ,
यह आना जाना भी ठीक नहीं .
कह दो के नहीं हम मिल सकते।
कह दो के कोई मजबूरी है .
लेकिन यह लबों तक ला ला कर
बातों को छुपाना ठीक नहीं .
ऐय शोक इ जुनुओ अब बाज भी आ,
कुछ मान भी ले तु मेरा कहा .
जो जान के भी अनजान बने ,
जो जान के भी अनजान बने ,
गम उसको सुनाना ठीक नहीं
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