मुश्किलें ही होंसलों को आजमाती हैं...
आँखों पे पड़ी यह गफलत की खुमारी .
सच्चाई पे पड़ी ,झूट की चिलमन ,
दिमागी अक्स से धुल भी यह हटाती हैं
मुश्कलें न होती राहों में,तो मंजिलें भी क्या होती !
ठोकरें खा खा ,के हौसला न खो राह में ऐ मुसाफिर,
यही दिक्कतें ही तो मानुष को,, इंसान बनाती हैं...?.
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