Tuesday, October 29, 2019

ADABI SANGAM [480] ..[ RELATIONS] रिश्ते JUNE 29, 2019 in English -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------25

"LIFE BEGINS HERE AGAIN 




                                " रिश्ते "


Relations are always a talking point in today's world, we are all social animals and can not survive without making and preserving our mutual relations in society,


first of all, what are relations ? is it something available on the shelf in a store to buy and use?  The answer is NO, relations are multifaceted and are developed, inculcated or nurtured at various stages of our life.


 Relation with our father and mother in her womb is the first such relation which is not only genetic but also biological, This relation between mother and children can never be undermined in whatever be the scenario in life,


when we are born we carve our life and consequential relationship in this world to survive, earn, learn and enjoy, out of their personal experiences various people have their relations defined as cordial, sour, selfish, timebound, some will say we have family relations when their families meet frequently, friends meeting regularly have friendly relations, but the fact of the matter is that everybody is connected with each other through an inherent need, greed or Deed whichever suits them they make their relations accordingly.


Childhood relations are the best, equally serene and transparent devoid of any ulterior or selfish motive behind it 


Another kind of relationship when we grow up is LIKE-MINDED people like each other very much and develop one of the best relationships amongst themselves, the very basis of this relationship is of similar tastes and level of thinking, two unequal mentalities will never like to be in a relationship.



wife husband relations are said to be made in heaven and are respected the world over as socially acceptable status, it has all shades of colourful life full of fights, love, romance, ragging and bragging, teasing and admiration  all combined in one single unit called Married life relations,


once my wife was grieving her marriage with me saying " Despite my Mother's resistance and refusal to accept our marriage I daringly married you against all odds and resistance?

what? your mother was against our marriage? you never told me before?
look at me I have been foolishly blaming that noble lady for this she is such a pious lady I never knew, she wanted to save me, THIS IS ONE OF THE BEST TAUNTING TEASING RELATION BETWEEN WIFE AND HUSBAND.


रिश्तों के बाजार में जरा घूमने निकले तो ,

हर रिश्ते को लड़खड़ाते करहाते हुए पाया

शहर की  बुराइयों को तो हर अख़बार कहता है,

कहीं खून कहीं बलात्कार रिश्तो को बेजार करते हैं ,
कोई गांव कोई क़स्बा भी अब तो अछूता नहीं ,
इन टूटते बिखरते रिश्तों के बीच पड़ती दरारों से

ऐ शहर मुझे तेरे रिश्तों की  औक़ात पता है

कोई किसी से न करता यहाँ सच्चा प्यार है
माँ बाप का रिश्ता भी यहाँ बोझिल लगता है जिन्ह े
छीन सब कुछ उनसे , घर से बेघर कर के
छोड़ देते हो सीनियर सिटीजन अनाथ घर में

शहर के  चुल्लू भर पानी को भी वाटर पार्क कहता है

मनोरंजन  के नाम पर  इसमें डुबकी   लगाता है ,,
फिर रात भार सो न पाता  है यह सोच कर कि ,
बहुत काम करना है सुबह को ,फिर पैसा जुटाना है।

थक गया है हर शख़्स यहां  काम करते करते ,

नए बने बनावटी रिश्ते निभते निभाते समाज में
लेकिन हम  इसे अमीरी का बाज़ार कहते  है।
 यहाँ रिश्ते दिल से ज्यादा जेब  की गहराई से बनते हैं 

गांव चलो !यहाँ वक्त कुछ ठहरा सा  लगता है

रिश्ते निभाने का वक्त भी है उनके पास
शहर में फ़ुर्सत को शनि -- इतवार कहते हैं ,
और यहाँ रिश्तेदारों के आने  को  त्यौहार कहते है

आज जमाना कुछ बदल रहा है  लीक  रहा है

मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं
व्हाटस अप , ट्विटर , मेस्सेंजर , फेसबुक ,
 अब यहीं  सब रिश्ते हैं और रिश्ते दार भी
तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है

जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा,
तू उन माँ बाप को अब भार कहता है
वो मिलने आते थे तो कलेजा साथ लाते थे,
तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है //

बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें //

तु अंधी भ्रष्ट दलीलों को  कचेहरी दरबार कहता है //
बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में //
पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है //

अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं

तू इस नये दौर को आधुनिक संस्कार कहता है .......














ADABI SANGAM ...... [480 ] .... " GHAR " OR " HOME" AT FLAMES --OCT..26--,2019 .................................................................................................................... 26

एक घर हो अपना *************
          ****** यही है हम सबका प्यारा सपना 




तन्हा बैठा था एक दिन मैं अपने मकान में,

चिड़िया बना रही थी घोंसला ऊपर रोशनदान में।
पल भर में आती पल भर में जाती थी वो,  
छोटे छोटे तिनके चोंच में भर लाती थी वो।

बना रही थी वो तिनको से अपना अश्याँ एक न्यारा,  

सिर्फ  तिनके ही  थे , ना कोई थी ईंट न  कोई गारा।
कोतुहल हुआ  मुझे भी और रश्क था उसकी लगन पे ,
वह अकेली जान और ख्वाब में था उसके भी  एक मकान ?
जिसे बिना रुके बनाये जा रही थी वोह किसीके इंतज़ार में ,
मैं उसके सपनो को समझने की कोशिश में रोज उसे देखने लगा 

कुछ दिन बाद....

मौसम बदला, हवा के झोंके भी आने लगे, 
नन्हे से दो बच्चे घोंसले में चहचहाने लगे।
पाल रही थी चिड़िया उन्हे ,पंख निकल रहे थे दोनों के,
पैरों पर करती थी खड़ा उन्हे।  देखता था मैं हर रोज उन्हें,
जज्बात मेरे उनसे कुछ जुडे  ऐसे ,की बिन देखे उनेह रह न पाता
एक दिन घोसला वीरान था , चिड़िया भी निष्प्राण सी मायूस सी 
शायद पंख निकलने पर दोनों बच्चे,मां को छोड़ अकेला दूर कहीं उड़ गए,। 
 चिड़िया से पूछा मैंने..अपनी ही मूक दृस्टि से 
तेरे बच्चे तुझे अकेला क्यों छोड़ गए,  तू तो थी मां उनकी,
फिर ये रिश्ता क्यों तोड़ गए?

चिड़िया भी  बोली...अपनी मायूस आँखों से 

परिन्दे और इंसान के बच्चे में यही तो फर्क है, श्रीमान 
इंसान का बच्चा..पैदा होते ही अपना हक जमाने लगता  है,  
जिस घर में पैदा होता है न , उसे ही छीनना चाहता है 
न मिलने पर वो मां बाप को,कोर्ट कचहरी तक भी ले जाता है।
मैंने बच्चों को जन्म तो दिया,पर करता कोई मुझे याद नहीं।    
मेरे बच्चे क्यों रहेंगे साथ? मेरे नाम तो कोई मकान घर भी नहीं , सिर्फ है यह तिनको से बना घोसला  ,इसके आलावा  मेरी तो कोई जायदाद  नहीं।

बात बड़ी गहरी थी , मन को मेरे छु गई , पक्षी कभी बोलते नहीं हैं पर अपने अपने तरीके से उनके भाव  बता देते है , समझने का वक्त और सीने में प्यार भरा दिल होना चाहये । मैं भारी मन से  सोचते सोचते भीतर आ गया जहाँ पिताजी बैठे टीवी देख रहे थे। 

====
''पिताजी आप और चाचा उस दिन कुछ बातें कर रहे थे और बातें करते—करते आप लोग अचानक रोने क्यों लगे थे।'' नन्हें बालक ने प्रश्न पूछा।
''हम लोग अपने बचपन की बातें कर रहे थे, बेटा !'' पिताजी ने प्यार से समझाया।
''तो फिर रोने क्यों लगे थे ?''बचपन के किस्सों में रोने वाली कौन सी बात थी ? नन्हें बालक ने अपना प्रश्न दोहराया।

''बेटा ! बात 1935 की है। तुम्हारे दादाजी को गुजरे 15 दिन ही बीते थे कि तुम्हारी दादी ने मुझे अपने पास बुलाया और रुधे गले से कहा ''बेटा, हम लोग जिस घर में रह रहे हैं, इस घर को तेरे पिताजी ने तुम्हारी बहन की शादी और फिर उसके पति की बीमारी  और दुसरे  ईलाज के लिए अधिक पैसों की जरूरत पड़ने पर किसी आदमी के पास गिरवी रख दिया था। अब तुम बड़े हो गए हो ,दोनों भाई उस आदमी से जाकर मिल लो।'' पूरा हिसाब भी समझ लो


''मैं उस समय चौथी कक्षा में पढ़ता था। लिहाज़ा बहुत छोटा था इसलिए मैंने तुम्हारे चाचा को साथ लिया, हम दोनों भाई चल पड़े।'' पिताजी ने बात आगे बढ़ाई।

''उस आदमी ने हम दोनों भाईयों को वहां तखत में बैठने के लिए ईशारा किया और स्टाम्प पेपर पकड़ाते हुए पढ़ने के लिए कहा। कांपते हाथों से मैंने स्टाम्प पेपर पकड़ तो लिया लेकिन आखों में आंसू होने के कारण पूरा स्टाम्प पढ़ न पाया, लेकिन इतना जरूर समझ में आ गया कि हमारा घर 15 हज़ार  रुपये के कर्ज के कारण गिरवी है और समय पर कर्ज और ब्याज़ अदा न करने पर मकान उस आदमी का हो जायेगा। 

उस समय १५ हज़ार बड़ी रकम हुआ करती थी इतने रुपये चुकाना हमारे लिए लगभग असंभव था।'' पिता की आंखों में आंसू तैरने लगे थे और आवाज में कंपकंपी भी आ गई थी।

नन्हा बालक भी पूरी तल्लीनतापूर्वक सुन रहा था।

पिता ने आगे कहा '' हमने उस स्टाम्प पेपर पर जिसमे हमारे पिताजी के दस्तखत थे और उधारी का पैसा भी लिखा था ,मैंने तीन—चार बार उस आदमी से कुछ कहने की कोशिश की लेकिन रुंधे गले ने साथ नहीं दिया। आँखों से अनायास ही आंसू बह कर स्टाम्प पेपर पर गिरे और पिताजी के दस्तखत वाली जगह गीली हो गई और सहाई फैल गई ,वह आदमी उठा और हम दोनों भाईयों के पास बैठकर हमारे सिर में हाथ फेरने लगा।


 अनजान व्यक्ति का प्रेम पाकर भी हम दोनों भाई कुछ न कह सके लेकिन हम दोनों भाईयों की आंखों से बहते आंसुवों और हमारी हिचकियों ने सबकुछ कह दिया।''



''उस आदमी ने हमारे आंसू पोंछे और स्टाम्प हमें लौटाते हुए रुंधे गले से कहा : ''आज से तुम दोनों भाई कर्ज—मुक्त हुए, तुम लोगों के पिता असमय चल बसे, वे बहुत कर्मठ,और ईमानदार  इंसान थे, तुम लोग भी उनकी तरह ही कर्मठ इंसान बनना, समय हमेशा एक—सा नहीं रहता बेटा, तुम्हारा समय भी अवश्य बदलेगा''

नन्हें बालक के पिताजी कुछ समय के लिए मानों उस काल में खो गये।

पिता आगे कुछ न बोल सके। उन्होंने देखा उनका नन्हा बेटा भी सुबक रहा था।

थोड़ी देर बाद पिता ने बड़े स्नेहपूर्वक नन्हें बेटे से कहा, ''बेटा उस देवतास्वरूप इंसान की बातें हम हमेशा याद रखते हैं और इसीलिए आज भी दिन—रात कठोर परिश्रम करते रहते हैं, उस इंसान की बातें सच साबित हुई और आज हमारे पास वह सबकुछ है जिसकी उस समय हम लोग कल्पना भी नहीं कर सकते थे।''

पिता ने अपने आंसु पोंछे और हंसते हुए कहने लगे : ''बचपन की खट्टी—मीठी बातों को याद करके हम लोग कभी—कभी खूब हंस लेते हैं और कभी—कभी रो भी लेते हैं।''


अच्छे दिनों में कभी घमण्ड मत करना, बुरे दिनों में कभी धीरज मत खोना''आप की अच्छाई आप को डूबने नहीं देती कोई न कोई मसीहा खुद ही आ जाता है तुम्हे पार लगाने , जैसे की उस साहूकार ने हमारे साथ किया। 

उस वक्त आसान न था एक छोटा सा मकान भी बना लेना , क़र्ज़ सड़क पर ला देता है छत छीन  लेता है

आज भले ही "बहुत ही आसान है, ज़मीं पर...आलीशान मकान बना लेना..." क़र्ज़ उठाकर
पर उसे घर बनाने में जिंदगी निकल जाती है, और क़र्ज़ चुकाते  चुकाते लोग खुद ही निकल लेते है , और मकान को घर नहीं बना पाते और आशियाँ बिखर जाता है

पिताजी के दुःख  जो उन्होंने उस वक्त झेले ,एक एक कर उनकी जुबान से फिसले चले आ रहे थे , थोड़ा रुके फिर बोले :-


मकान को घर भी वही लोग नहीं बनने देते जो अपने होते हैं ,घर में "दर्द भी वही देते हैं , जिन्हे हक दिया गया  हो,
*वर्ना गैर तो धक्का लगने पर भी , माफी माँग लिया करते हैं

था एक वक्त और वह घर जिसमे  एक तौलिए  से पूरा परिवार  नहाता था।
दूध पीने का भी नम्बर भाई बहनो में बारी-बारी से आता था।

छोटा माँ के पास सो कर ही ख़ुशी से इठलाता था।
लेकिन पिताजी से मार का डर सबको सताता था।

बुआ के आने से माहौल थोड़ा  शान्त हो जाता था।
पूड़ी खीर से पूरा घर रविवार व् त्यौहार मनाता था।

बड़े भाई के कपड़े छोटे होने का इन्तजार रहता था।
स्कूल मे बड़े भाई की ताकत से छोटा रौब जमाता था।
हर घर में बहन-भाई के प्यार का ही  सबसे बड़ा नाता था।
धन का महत्व भी होता है ,कभी कोई सोच भी न पाता था।

बड़े का बस्ता किताबें साईकिल कपड़े खिलोने पेन्सिल स्लेट स्टाईल चप्पल सब से छोटे का ही तो नाता था।

मामा-मामी नाना-नानी पर हक जताता था।
एक छोटी सी सन्दुक को अपनी जान से ज्यादा प्यारी तिजोरी बताता था।
और अब ~घरों में ऐसा नहीं होता
तौलिया अलग हुआ, दूध भी अधिक हुआ, दूध का इंतज़ार और उसमे छुपा माँ का प्यार अब नहीं मिलता

माँ अब तरसने लगी उन्ही बच्चों से मिलने को , पिता जी भी डरने लगे अपने ही बच्चों से अपने मन की बात कहने को ?,

बुआ से भी कट गये, उसका आना अब हमारी गरज नहीं , खीर की जगह पिज्जा बर्गर मोमो जो आ गये,
कपड़े भी व्यक्तिगत हो गये, भाईयो से दूर हो गये,
बहन से प्रेम कम सिर्फ स्वार्थ का रिश्ता ही रह गया 

अब हमारा वोह "घर" खुद ही बेघर सा हो गया
क्योंकि अब धन प्रमुख हो गया,अब सब नया चाहिये,
नाना नानी आदि औपचारिक हो गये।सिर्फ एक रिश्ता ,ही तो बचा 

वक्त के साथ साथ सब के लिए रिश्ते बटुऐ में नोट से हो गये।
कई भाषायें तो सीख गए  मगर अपनी भाषा के  संस्कार भूल गये।

बहुत पाया इतनी तेज दौड़कर , मकान को घर बनाया फिर अपनी ही विरासत को महल तो बना लिया  मगर काफी कुछ पीछे छोड़  गये।

कृपया जरा रुकें और सोचे ,
हम क्या थे क्या हो गए , कहाँ से चले थे ?
कहां जाना था ? वह एक प्यारा सा बचपन वाला घर छोड़ एक बड़ा मकान ले तो लिया पर जिसे  आज तक  घर बना न सके । कमरे तो बहुत है जिसमे मगर अब कोई रहता नहीं ....... आज यह महसूस हुआ है की बड़े मकान में रहते हुए घर से कितना दूर हो गए है हम ?


मुझे  चिड़िया  की बात का गूढ़ महत्व अब समझ आया की क्यों बच्चों को लेकर वह इतनी व्यावहारिक थी की जब उसके पास कहने को कोई जायदाद ही नहीं , थी तो मात्र एक छोटी सी टहनी पर तिनको से बना घोसला , यानी की एक गरीब सा मकान , इसमें कौन रहना चाहेगा या क्या मिलता उन्हें इसमें से ? इस लिए बच्चे उसे छोड़ गए। 



इंसान एक  घर की तलाश में मकान पे मकान बदलता है , खूबसूरत दिखने को  लिबास बदलता है ,
रिश्ते  बदल लेता है , रिश्तेदार भी  बदल लेता है , मतलब निकल जाने पर  दोस्त भी बदल लेता है
फिर भी परेशान क्यों बना रहता है ? क्यों की सब कुछ  बदल कर भी ,
खुद की सोच  नहीं बदलता है


रिश्तो के अर्थ बदल गये, घर के मायने बदल गए , अब घर में बच्चे नहीं हमारे नौकर रहते हैं , यह सिर्फ अब एक जायदाद है , एक बहुत बड़ी दौलत जो वक्त के साथ बढ़कर बहुत कीमती हो गया है ,अब हम जीने का किरदार तो बखूबी निभा लेते है पर जिंदगी जी नहीं पाते , 

अपने ही फैलाये जाल में हम खुद ही फंस चुके हैं , जमीन जायदाद की लड़ाई में संवेदन हींन हो चुके हैं
कहने को तो मकान कई हैं हमारे नाम,
पर हमेशा " एक घर की तलाश में रहते हैं "


___________________________________________________


जैसे की जितना भी जिसे चाहो ,

हंस के या रो के  दिल में जगह बनाने में ...
अक्सर पूरी ज़िन्दगी गुज़र जाया करती है..!!!

कोई वादा ना कर ,कोई इरादा ना कर ,

ख्वाहिशों में खुद को आधा ना कर ,
ये देगी उतना ही जितना लिख दिया परमात्मा ने ,
इस तकदीर से उम्मीद तू ज़्यादा ना कर ...

  मैंने भी देखा है , जिन्दगी की हर सुबह

  कुछ नई शर्ते ,नए पैगाम लेके आती है।
  और जिन्दगी की हर शाम आने पर
      कुछ नए तर्जुबे देके जाती है ....   

      🥃 🥃

मुझे शराब से महोब्बत नही है जनाब
महोब्बत तो उन पलो से है
जो शराब के बहाने मैं
दोस्तो के साथ  बिताता हूँ.

 🥃🥃

शराब तो ख्वामखाह ही बदनाम है..
नज़र घुमा कर देख लो.
इस दुनिया में.. शराब के सिवा
शक्कर से मरने वालों की तादाद बेशुमार हैं!
                                             🥃🥃
तौहीन ना कर शराब को कड़वा कह कर,
जिंदगी के तजुर्बे, शराब से भी कड़वे होते है...
मेरी तो गुजारिश है उस हाकिम से
कर दो तब्दील अदालतों को मयखानों में साहब;
सुना है नशे में कोई झूठ नहीं बोलता !
                                                                🥃🥃
सबसे कड़वी चीज़ इन्सान की ज़ुबान है,
दारू और करेला, तो खामखां बदनाम हैं !

"बर्फ का वो एक शरीफ सा  टुकड़ा       

 जाम में क्या गिरा... बदनाम हो गया..."
"देता जब तक अपनी सफाई.,.
घुलकर .बेचारा  खुद भी शराब हो गया....."

ताल्लुकात बढ़ाने हैं तो....

कुछ आदतें बुरी भी सीख ले गालिब,
ऐब न हों तो.....अक्सर
लोग महफ़िलों में नहीं बुलाते ....

इस लिए तो चचा ग़ालिब को भी कहना पड़ा

उम्र भर ग़ालिब यही भूल तो करता रहा ,
धुल चेहरे पे जमी थी , और आइना साफ़ करता रहा।

बेकार ही कहते हैं लोग दोष देते है पत्नियों को

कि पत्नियाँ कभी अपनी गलती नहीं मानती,
मेरी वाली तो सच में रोज मानती हैं. . .
गलती हो गई तुमसे शादी कर के!

मिया बीवी दी लड़ाई दे बाद, बीवी पेके चली गई।
पति ने फोन किता, ते गलती मन्नी।
बिवी : तुसां मेडा दिल तोड़ेया हे, मैं ना आसां।
पति : आ वन्ज, दिल जोड़ ढेसां।
 बीवी : तुहाडे नेड़े कोई गिलास हे ?
पति: हां हे!
बीवी : हुकु जोर दे फर्श ते मारो वल
पति: मार दित्ते
बीवी : होणं टूटे गिलास दे टुकडियां कु जोड़ सकदे वे !
 पति : गिलास टूट्या कैनी, स्टील दा हाई
बीवी: बऊ कमीने हो!

          शाम कु आ वैसां 😂

कुछ दोस्त ऐसे है जो घर से बीवी की लात खाकर आते है ।

और दोस्तो से कहते फिरते है।

आज तो लेग पीस खाकर आया हूं😡
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      शब्दो को कोई स्पर्श नही कर सकता... लेकिन शब्द सभी को स्पर्श कर जाते है..

लिखना था नया साल मुबारक
लिखने में आ गया नया साला मुबारक
कोहराम शुरू हो गया   है
,नए साल में🤣🤣🤣🤣🤣

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एक औरत का दर्द.....

काम करुं तो सांस फूल जाती है ,और

बैठ जाऊ तो सास 😡👵 फूल जाती है.......
और कुछ ना करु तो खुद फूल जाती है
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पति :- मुझे अपनी बीवी से तलाक चाहिये वो बर्तन फेंक के मारती है 😢

जज :- अभी से मार रही है या पहले से 😁
पति:- कई साल पहले से  🙁
जज :- तो इतने साल बाद तलाक क्यों 😳
पति :- क्यों कि अब उसका निशाना पक्का हो गया है 😬😬😁😁😁😁
















ADABI SANGAM ....... [480] ........STORY " BADALTI DIWALI" OCT-,26-,2019 BY Rajinder K. Nagpal -........................................................................................ 27

                               मेरे बचपन की यादों का सफर 
                                EK- CHOTI SI JHALKI ------ 



                                 "मेरी बदलती दिवाली" 


भारत देश की प्राचीन सभ्यता विश्व की एक सब से ज्यादा उन्नत और मर्यादित जीवन के लिए जानी जाती है. इसी युग में एक कहानी अयोध्या में जन्म लेती है जिसके सूत्रधार राजा दशरत और उसकी तीन पत्नियां और चार पुत्रो सहित अयोध्या में उनकी कर्मभूमि है. सदियों से हिंदुस्तान में इस कहानी को एक ईश्वरीय शक्ति के रूप में याद किया जाता है। समय समय पर विपरीत राजनीतिक द्वेष के कारण इस की महानता को कम आंlकने के कोशिश में इसे मिथ अर्थात काल्पनिक कहानी  तक कह दिया गया, जब की दुनिया के बहुत बड़े हिस्से में रामायण युग के प्रमाण मौजूद है , इंडोनेशिया , बाली , थाईलैंड , श्रीलंका ,कम्बोडिअ तक यह साम्राज्य फैला हुआ था , अगर अमेरिकन स्पेस एजेंसी रामसेतु और रामयुग पर रिसर्च न करती तो इस कहानी को नकार दिया जाता , नासा द्वारा इसे लगभग   10000 -13000 साल पुराणी सभ्यता माना गया है , इस सेतु को मानव निर्मित बताया है , हमारी विडंबना देखिये  अपने इतिहास के लिए भी हम नासा को विश्वसनीय मानते हैं और अपने ग्रंथों को नहीं ?

श्रीलंका और भारत के बीच रामसेतु का निर्माण इसी वक्त में हुआ था और इसके रेडियो एक्टिव एलिमेंट्स पूरी दुनिया को अचंभित किये हुए हैं , इस युग में भी  शायद परमाणु  युद्ध से ही सब नष्ट हुआ होगा 

यह लोग आज के युग से बहुत आगे थे , इसी इतिहास का एक चैप्टर है दिवाली ,जिसमे राम -रावण के बीच युद्ध से लेकर अयोध्या तक वापसी एक ऐसी सच्ची कहानी है जो सदिओं से हमारे मन मानस में बिलकुल ताज़ा है।

TOMORROW IS DIWALI AND I CHOSE TO WRITE MY VERSION OF THE DIWALI THE GREATEST FESTIVAL OF INDIA. LEST WE FORGET THE TRUE SENSE OF DIWALI AND THE RELEVANCE IN THE NOISES OF CRACKERS WHICH MANY BELIEVE WERE NON EXISTENT THOSE DAYS. 


दिवाली सिर्फ एक पटाखों और लाइट्स का ही उत्सव नहीं है यह एक वैदिक कहानी है जिसे समझना मतलब , गायत्री मंत्र , हनुमान चालीसा जिसे हम अपने जीवन में इतना प्रयोग करते हैं लेकिन इसके बारे में जानते बहुत कम है , हम अपने हर शुभ कार्य के लिए पंडितों का सहारा लेते है ,यह सभी मन्त्र इसी रामायण युग के है और हज़ारों सालों से हमारी जीवन गति को चला रहे है , जन्म -शादी --से लेकर हर अवस्था और अंतिम सीढ़ी मृत्यु तक के मंत्रो का हम प्रयोग करते है जो इसी सभ्यता में बने और लिखे गए। 

लेकिन अफ़सोस  दिवाली का वह गौरव और मान्यता नए युग की शिक्षा से दबा दी गई है , अब लोग दीवाली और उसक पीछे की शिक्षा से अब विमुख से होने लगे हैं। 

 
दिवाली का खुशिओं वाला माहौल ,  आज कल के बनावटी शोर ने दिवाली की महत्ता काम किया है।  बुजर्गो के सेहत के लिए ख़ुशी से ज्यादा तकलीफ ला रहा है , घर घर में पटाखे फोड़े जा रहे है प्रदूषण भी बढ़ने लगा है , दिवाली छोटी हो या बड़ी सब खुश दिखने लगते है , सब आपस में ख़ुशी की मिठाईया भी बाँट रहे हैं , पूरा जश्न पांच दिनों तक चलता है , आईये दिवाली की कुछ यादें ताज़ा कर ले।


Diwali, or Dipawali, is India's biggest and most important holiday of the year. The festival gets its name from the rows (avail) of clay lamps (deepa) that Indians light outside their homes to symbolize the inner light that protects from spiritual darkness. This festival is as important to Hindus as the Christmas holiday is to Christians.

Over the centuries, Diwali has become a national festival that's also enjoyed by non-Hindu communities in their own personal contexts.


For instance, in Jainism, Diwali marks the nirvana, or spiritual awakening, of Lord Mahavira on October 15, 527 B.C.;

in Sikhism, it honours the day that Guru Hargobind Ji, the Sixth Sikh Guru, was freed from imprisonment.

Buddhists in India celebrate Diwali as well in reverence to their PRINCE OF PALI "SIDHARTA" WHO LATER BECAME THEIR Guru God Gautam Budha.

Diwali is a five-day ceremonial celebration by all


DAY ONE: People clean their homes and shop for gold or kitchen utensils to help bring good fortune. They have named it Dhanteras

DAY TWO: People decorate their homes with clay lamps and create design patterns called rangoli on the floor using coloured powders or sand.

DAY THREE: On the main day of the festival, families gather together for Lakshmi puja, a prayer to Goddess Lakshmi, followed by mouth-watering feasts and firework festivities.

DAY FOUR: This is the first day of the new year when friends and relatives visit with gifts and best wishes for the season.

DAY FIVE: Brothers visit their married sisters, who welcome them with love and a lavish meal and celebrate Bhaya dooj akin to Raj tilak of Lord Rama who had returned after 14 years of exile & also killing Ravna the king of Srilanka during this period to retrieve abducted wife Sita.

All of the simple rituals of Diwali have a significance and a story behind them. Homes are illuminated with lights, and firecrackers fill the skies as an expression of respect to the heavens for the attainment of health, wealth, knowledge, peace, and prosperity.

According to one belief, the sound of firecrackers indicates the joy of the people living on earth, making the Gods aware of their plentiful state in Ramrajya. Still another possible reason has a more scientific basis: the fumes produced by the mustard oil lamps kill or repel many insects, including mosquitoes, which are plentiful after the rains and save the public from many illnesses.

लेकिन  कुछ लोग जुआ इसलिए खेलते हैं की  शायद इसी बहाने कुछ लक्ष्मी मिल जाए , जो की इस त्यौहार की एक बहुत ही गलत व्याख्या है ,बहुत बड़ी कुरीति है जिसका इस त्यौहार  से कोई नाता ही नहीं है , फिर भी लोग अपनी जेबों में कुछ धन आने की लालच में काफी कुछ  गँवा भी देते हैं , और अपने परिवार की दौलत ख़राब करते है। 


 Diwali is also a time to reflect on life and make changes for the upcoming year. With that, there are a number of customs that revellers hold dear each year.

Give and forgive. It is common practice that people forget and forgive the wrongs done by others during Diwali. Through the exchange of greetings, sweets and partying together. There is an air of freedom, festivity, and friendliness everywhere.

Rise and shine.
Waking up during the Brahmamuhurta (at 4 a.m., or 1 1/2 hours before sunrise) is a great blessing from the standpoint of health, ethical discipline, efficiency in work, and spiritual advancement. The sages who instituted this Deepawali custom may have hoped that their descendants would realize its benefits and make it a regular habit in their lives.


Unite and unify. 
Diwali is a unifying event, and it can soften even the hardest of hearts. It is a time when people mingle about in joy and embrace one another.

Those with keen inner spiritual ears will clearly hear the voice of the sages, "O children of God unite, and love all." The vibrations produced by the greetings of love, which fill the atmosphere, are powerful. When the heart has considerably hardened, only a continuous celebration of Deepavali can rekindle the urgent need of turning away from the ruinous path of hatred.

Prosper and progress.

On this day, Hindu merchants in North India open their new account books and pray for success and prosperity during the coming year. People buy new clothes for the family. Employers, too, share their annual fortunes with their employees through gifts and bonuses.

Homes are cleaned and decorated by day and illuminated by night with earthen oil lamps. The best and finest illuminations can be seen in Bombay and Amritsar. The famous Golden Temple at Amritsar is lit in the evening with thousands of lamps. virtually the whole of India is so illuminated and is visible through satellite pictures the world over
This festival instils charity in the hearts of people, who perform good deeds. This includes Govardhan Puja, a celebration by Vaishnavites on the fourth day of Diwali. On this day, they feed the poor on an incredible scale.

Illuminate your inner self. The lights of Diwali also signify a time of inner illumination. Hindus believe that the light of lights is the one that steadily shines in the chamber of the heart. Sitting quietly and fixing the mind on this supreme light illuminates the soul. It is an opportunity to cultivate and enjoy eternal bliss. From Darkness Unto Light...

In each legend, myth, and story of Deepawali lies
the significance of the victory of good over evil. It is with each Deepawali and the lights that illuminate our homes and hearts that this simple truth finds new reason and hope.

From darkness unto light—the light empowers us to commit ourselves to good deeds and brings us closer to divinity. During Diwali, lights illuminate every corner of India, and the scent of incense sticks hangs in the air, mingled with the sounds of fire-crackers, joy, togetherness, and hope.

Diwali is everywhere Outside of India too because of Indians spread, it is more than a Hindu festival; it's a celebration of South-Asian identities. If you are away from the sights and sounds of Diwali, light a diya, sit quietly, shut your eyes, withdraw the senses, concentrate on this supreme light, and illuminate the soul.

पर मेरे बचपन की दिवाली आज से काफी अलग थी 
दिवाली के चंद सप्ताह पहले से ही घरों में हलचल होने लगती थी
अब चूने में नील मिलाकर पुताई का जमाना तो नहीं रहा। चवन्नी, अठन्नी का जमाना भी नहीं रहा।अब तो दिवाली पर लाखों रूपए का लेंन देंन होने लगा है , 
कीमती तौफों के साथ हैं  सिकुड़ते हुए रिश्ते ,


हम सब हफ्तों पहले से साफ़-सफाई में जुट जाते थे

चूने के कनिस्तर में थोड़ी सी नील मिलाते थे
अलमारी खिसकाते सफाई के लिए ,

कोई नायाब खोयी चीज़ वापस पाते थे

स्टोर रूम या परछती की सफाई से निकला कबाड़

 बेच कुछ पैसे भी कमा जाते थे  दौड़-भाग के घर का हर सामान लाते थे।
हिसाब में हेर फेर कर के कुछ न कुछ
चवन्नी -अठन्नी पटाखों के लिए बचा लेते थे
फिर सजी बाज़ार की रौनक देखने जाते थे
सिर्फ दाम पूछने के लिए चीजों को उठाते थे
और मुफ्त में चीज़ों को छूने का लुत्फ़ उठाते थे .


बिजली की झालर छत से लटकाते थे,
लाइट्स को जग बुझ करने को
कुछ में मास्टर बल्ब भी लगाते थे
टेस्टर लिए पूरे इलेक्ट्रीशियन बन जाते थे
दो-चार बिजली के झटके भी खाते थे,
लेकिन शरारतों से बाज फिर भी न आते थे

दूर थोक की दुकान से पटाखे लाते थे
मुर्गा ब्रांड हर पैकेट में खोजते जाते थे,
पटाखे फुस न निकले इसके इलाज के लिए 
दो दिन तक उन्हें छत की धूप में सुखाते थे
बार-बार बस गिनने को  छत पर चढ़ जाते थे.

धनतेरस के दिन बर्तन और कटोरदान लाते थे
छत के जंगले से बल्बों की लड़ियाँ लटकाते थे
मिठाई के ऊपर लगे काजू-बादाम चुपके से
खिसका कर खा जाते थे

प्रसाद की थाली से मिठाई , जलेबी माँ के कहने पे
पड़ोस में देने जाते , कुछ न कुछ वहां भी पा जाते थे
अन्नकूट के लिए सब्जियों का ढेर लगाते थे
भैया-दूज के दिन दीदी से आशीर्वाद पाते थे

दिवाली बीत जाने पे नींद तो गहरी आती थी ,
पर खुशिओं की रात इतनी छोटी होती है
सोच कर दुखी हो जाते थे, सुबह जल्दी उठकर 
कुछ बिन फूटे पटाखों का बारूद निकाल फिर से जलाते थे

घर की छत पे दगे हुए राकेट भी पा जाते थे
बुझे दीयों को मुंडेर से हटाते और सहेज कर रखते


अब यह सब नहीं होता , कोई पडोसी की  मिठाई को महत्व नहीं देता, अब लोग शक करते है , प्यार जताने से भी डरते हैं  , 
आओ आज एक दिन के लिए ही सही वही दिवाली मनाते है ,
 सब में  सच्चा प्यार जगाते है 
आओ बूढ़े माँ-बाप का एकाकीपन मिटाते हैं 
उनके चेहरों पर वहीँ पुरानी रौनक फिर से लाते हैं
सामान से नहीं, तौफों से नहीं , समय देकर सम्मान जताते हैं
उनके पुराने सुने किस्से फिर से सुनते जाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली माँ बाप के साथ  घर पे मनाते हैं ....

और अपने चुटकलों से उन्हें भी हंसाते है 
थोड़े ठंडे दिमाग से शांति के साथ सुंनना 

राजा दशरथ ने कैकयी का कहना माना, राम को 14 साल का बनवास दे दिया  चाहे अपने  प्राण त्यागना पड़े !


राम ने सीता का कहना माना और हिरण के पीछे चल दिये (फिर चाहे, सीता को वापिस पाने के लिए  रावण से भिड़ना पड़ा ) !!


लेकिन रावण ने मन्दोदरी का कहना नही माना और मुफ्त में मारा गया !!!
इसलिए दशहरा का अर्थ समझें और  बगैर अपना दिमाग लगाये, सीधे सीधे पत्नी का कहना मानें, आगे आपकी मर्जी!



HAPPY DIWALI TO YOU ALL