Saturday, February 23, 2019

ADABI SANGAM ....[shiddat ]....... - शिद्द्त।.... . intensity .......तेहै दिल। ... wholeheartedly .....सच्ची लगन ......Final part 2 35-B....................(FEBRUARY ,23 ,-2019) .......


पार्ट _ 2
शिद्द्त। .. intensity ..... तेहै दिल। ... wholeheartedly .....सच्ची लगन





हमारी जिंदगी में हर कदम पर शिद्दत की दरकार होती है बिना इसके कामयाबी मिलना मुश्किल ही नहीं न मुमकिन होता है , चाहे प्यार मोहब्बत हो , नफरत हो , तालीम हो , किसी बीमार की तीमारदारी करनी हो , अपने रोजगार को बढ़ाना हो , दोस्त यारों , या अपने कामगारों से काम लेना हो,वफ़ा हो बेवफाई हो ,मिलना ,बिछुड़ना ,गिरना सम्भलना बिना शिद्दत के मनमाफिक परिणाम कहाँ मिलता है ?
बड़ी ही शिद्द्त से गुजारे है हमने वह गुजरे हुए लम्हे ,
जब जिंदगी की जद्दोजहद सिर्फ एक बहाना थी कुछ पाने के लिए ,
जैसे कुदरत भी लगी है शिददत से इस कायनात को सजाने में ,
वैसे ही हम भी मौजूद है यहां फक्त अपना किरदार निभाने में।

कुछ यादें है मेरी जब लड़ा था शिद्द्त से इस ज़माने से ,
जबकि वोह अभी आये भी न थे मेरे गरीब खाने में ,
कहने लगे इतनी उतावली में क्यों है फितरत तुम्हारी ,
कुछ काबलियत भी तो बढ़ाओ , फिर आना घर हमारे

शिद्दते मोहब्बत का इज़हार कुछ ऐसा हुआ हमसे ,
दोस्तों ने पुछा आज वैलेंटाइन डे पर किसके साथ बाहर जा रहे हो
हमने भी तपाक से कहा बड़ी उम्मीद के साथ ,
सभी के नाम पर नहीं रूकती धड़कने अब
दिलों के भी कुछ असूल हुआ करते हैं।

रिश्ते यूहीं हवा में थोड़ा ही बनते है मजनू मियाँ ,
तुमेह बरसों लगेंगे अभी हमें अपना बनाने में ,
शिद्दते मोहब्बत का इज़हार भी किसी काम न आया ,
उन्हें समझाने में ,
अब तो ढहने लगा है हमारा ख्वाब भी दौलत कमाने में,
और उनका इंतज़ार करने में

शिददते गम कुछ इस तरह हावी हुआ की हम पीने लगे ,
और यह रिश्ता बखूभी निभाया हम ने उस अहसास के लिए ,
झूट कहते हैं लोग के शराब ग़मों को कम कर देती है
मैंने तो मयखाने में अक्सर लोगों को रोते पाया है,

इतनी शिद्दत से मोहब्बत मयखाने से भी की हमने ,
पीते रहते थे तब तक जब तक बोतल खुद न कहे हमसे
अब तो जा अपने घर ,तुझे देख मैं भी लड़खड़ाने लगी हूँ

क्या सोच रही होगी उनकी ,इसी सोच में हम भी जीने लगे ,
क्यों लोग सिर्फ उज्जालों से लगाव , और अंधेरों से डरते हैं ?
सब को मालुम है सब को पता है रहता नहीं है एक सा मौसम इस खुदाई में ,
उतार चढ़ाव सभी की जिंदगी में आते हैं ,
किसी को कुछ देकर और किसी से लेकर जाते हैं

शिद्दते वफाई कुछ ऐसी गुजरी हम पर भी
किसी ने पुछा कभी इश्क हुआ था ?
हम मुस्करा कर बोले , आज भी है
शिद्दते मोहब्बत तो दोनों में थी।
पर मुझे शादी करनी थी और उसे निक्काह।
आज भी मैं इंतज़ार में हूँ , क्यों की अब तो

मेरी शिद्दत भी --------- जद्दोजहद बन गई है

कुछ नफ़रतें भी बड़ी शिद्दत से निभाई है हमने ,
ठुकराया भी है मैंने बहुतो को --- सिर्फ तेरी खातिर ,
तुझ से फासला भी शायद , उनकी बद्दुआओं का असर हो ?
कुछ तो सिला दे दो हमारी शिद्दते मोहब्बत का ,

अब तो तुम ही आगे बढ़ कर थाम लो न मुझेसबने छोड़ जो दिया है मुझे ----तेरा समझ कर


डॉ मनमोहन सिंह हमारे पूर्व प्रधान मंन्त्री ने एक बार पार्लियामेंट में बोलते हुए कहा था
शिद्दते जिंदगी में सबसे मुश्किल था अपनों में अपनों को ढूंढ़ना ,
लोग कहते हैं दूरियां हमेशा --किलोमीटर्स में नापी जाती हैं
हमें तो खुद से मिले भी अरसा गुजर गया है ,

शिद्दते तन्हाई में लम्हों ने गुनाह किये ,
और सजा उम्रों ने पाई है।
बीते हुए लम्हों सा हूँ मैं भी , याद तो सबको हूँ मैं
पर जिक्र कोई नहीं करता ,

सो जा ऐ दिल के अब धुंध , बहुत हो गई है तेरे शहर में ,
अपने दीखते नहीं और जो दीखते हैं वो अपने नहीं
यूँ पलके झुका देने से नींद कहाँ आती है ग़ालिब ,

सोते अक्सर वह है जो मेहनत कश हैं
या जिनकी यादें उनसे रूठ चुकी हैं।

बड़ी शिद्दत से कोशिश करते है कोई रूठे न हमसे ,फिर भी
नजर अंदाज़ करने वाले से नजरें हम भी नहीं मिलाते जनाब
मेरे दोस्तों ने कहा यार हमारी बीवी कभी गलती मानती नहीं

नतीज़न , शिद्दते तकरार बहुत रहता है , तुम्हारे यहाँ कैसा है ?

हमने मुस्कराते हुए बड़े फक्र से कहा ,
भाई हमारी तो कई बार कबूल भी कर चुकी है
मुझ से शादी करना ही उसकी जिंदगी की
सबसे बड़ी गलती थी। यह अपने मुहं से कहती हैं

एक शिद्दत से हमने नजरें ,अपने सलूक पर भी रखी
कभी उसका दिल रखा , कभी इसका दिल रखा ,
इसी कश्मकश में ही भूल गए ,
खुद का दिल कहाँ रखा

किसी ज्ञानी ने महिलाओं को ज्ञान दिया ,
जितने भी अपने राज होते हैं , वो सिर्फ अपने पति के अलावा किसी को न बताएं " क्योंकि जो तुम्हारी बात ही ध्यान से नहीं सुनता वो फैलाएगा क्या ?

शिकवे तो सभी को होंगे अपनी जिंदगी से साहब ,
पर जो अपनी मौज़ में रहते हैं वह शिकायत नहीं करते
भरपूर शिद्दत हमने अपनी नींद में भी देखी ,
हमारी अंतरात्मा की आवाज , हमें छोड़ सबको सुनाई देती,
लोगों ने इसे खरांटो का नाम दे दिया

मैं सरकारी अस्पताल में अपने टेस्ट करवाने गया-
फुरसत मिलने पर उधर मौजूद कैंन्टीन से बर्गर और जूस खरीदा और मज़े से वहीं खड़े खड़े खाना पीना शुरू कर दिया-

ऐन उसी वक़्त मेरी नज़र कुर्सी पर बैठे एक छोटे बच्चे पर पड़ी जो बड़ी हसरत से देख रहा था- मैंने इंसानी हमदर्दी में जल्दी से उस बच्चे के लिए भी बर्गर और जूस खरीदे जो बच्चे ने बिला तकल्लुफ ले लिए और जल्दी जल्दी खाने लगा- बेचारा पता नहीं कब से भूखा होगा- ये सोचकर मैंने खुदा का शुक्र अदा किया जिसने मुझे एक भूखे को खाना खिलाने की तौफीक़ बख्शी-इतनी देर में बच्चे की मां,जो उसकी पर्ची बनवाने के लिए खिड़की पर खड़ी थी ,वापस आई और बच्चे को बर्गर का आखिरी टुकड़ा खाते देखा-

फिर अचानक पता नहीं उसे क्या हुआ कि वो दोनों हाथ उठा कर,बा क़ायदा क़िब्ला रुख होकर,उस शख्स को बद्दुआएं देने लगी जिसने उसके बच्चे को ये चीज़ें लेकर दी थीं- कह तो वो बहुत कुछ रही थी,मगर मैंने वहां से फरार होते हुए जो चंद बातें सुनीं वो ये थीं:

"इंतिहाई बेग़ैरत और खबीस था वो शख्स जिसने मेरे बच्चे को बर्गर लेकर दिया-
मैं 25 किलोमीटर दूर से किराया लगा कर उसके खाली पेट टेस्ट करवाने लाई थी-"
*************************************************सेठ

सेठानी में बहस हो गई.. कि उनके 1 मात्र लड़के के लिये गाँव की बहू लाऐं या शहर की..??!!
सेठानी कहती कि गाँव की लाऐंगे.. क्योंकि वह घर का काम संभाल लेगी.. !
सेठजी कहते कि वे गँवार होती हैं.. उन्हे शहर के तौर-तरीके नही आते हैं.. !


आखिर सेठानी कि जिद पर 1 गाँव पहुंचे.. सेठजी ने कहा :-- *" बेटी जरा मैंगो शेक ले आओ.. ! "*
लड़की हाँ में सिर हिलाकर .. रसोईघर मे आ गई..
4 आम लिये.. तवे पर सेका.. मसाला डाला और प्लेट मे मैंगो सेक कर ले आई.. !
सेठ सेठानी इस मैंगो शेक को देखते ही रह गए.. ! 🤔🙄
अब सेठजी के कहने पर शहर मे लड़की देखने गये.. !
सेठानी ने नई बहू की परीक्षा लेने के लिए बोला :--
*" बेटी जरा पापड़ सेक लाओ.. ! "*
लड़की किचन मे गई.. 4 पापड़ लिए.. मिक्सर मे डाले.. पानी मिलाया और गिलास मे भर कर ले आई.. और बोली :--

*" लीजिये पापड़ शेक.. ! "*
छोरा अभी भी कुंवारा ही है.. !!!
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बोर्ड परीक्षा में ही मिलता है भारत का छिपा हुआ टैलेंट.
रानी लक्ष्मी बाईं के बारे मे चार लाइन लिखो
आज के स्टूडेंट का जवाब
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..जब कन्या अपने, पिता के घर होती है,"रानी" बन के रहती है.
पहली बार ससुराल जाती है,"लक्ष्मी",बनकर जाती है.
और ससुराल में काम कऱते-करते "बाई" बन जाती है,
इस तरह लडकियां "रानी-लक्ष्मी-बाई" बन जाती है...!!!
और फिर वो पति को अंग्रेज समझ कर बिना तलवार के ही इतना परेशान कर देती है कि
बेचारा वो पति, अंग्रेज न हो कर भी "अंग्रेजी" 🥃🥃 लेना शुरू कर देता है

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Friday, January 25, 2019

ADABI SANGAM - 26.01.2019 AT AMIT PLACE ' MUSIC PART MODERATION "

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "



जिंदगी के रथ में लगाम बहुत है ,                                   

इस हँसी गीतों की  महफ़िल की शुरुआत
हर इंसान के मन में दबे पैगाम बहुत हैं                        
आपसी गुफ्तुगू भी अब तो इतनी होती नहीं ,                     
ख़ामोशी के परदे जो पड़े हैं  हर उस जुबान पर
शायद बेफिक्र बेपरवाह हैं वोह  चुपी के अंजाम से


     आज प्रवेश चोपड़ा जी के गीत से होगी

एक चर्च के सामने एक बार और रेस्टोरेंट खुला , चर्च को बहुत इतराज था इससे , अब वोह चर्च में रोज प्रेयर करने लगे की " GOD FAVOUR US AND HELP US CLOSING THIS BAR , THEY SHOULD ALWAYS FACE HURDLES AND HUGE LOSSES SO THAT THEY CLOSE AND RUN AWAY FROM THIS VICINITY ,

अब गॉड ने सुन ली और एक रात झमाझम बारिश पड़ने लगी और कड़कती हुई बिजली सीधी उस बार होटल की बिल्डिंग पे आ गिरी और उसमे आग लग गई और वोह होटल तबाह हो गया ,
अब बार मालिक ने चर्च के खिलाफ केस दायर कर दिया और कोर्ट से उसे मुवाजा देने को कहा , क्योंकि चर्च में हर रोज मेरे बार होटल की बर्बादी के लिए प्रेयर की जाती थी सो मेरी बर्बादी की वजह इनकी प्रेयर्स हैं इस लिए नुक्सान की भरपाई चर्च को करनी चाहिए ,

अब चर्च वाले जिरह कर रहे हैं ऐसा कहाँ होता है की प्रेयर से नुकसान हो जाए , जज बड़े असंजस में पड़  कर सोचने लगे ,
कितनी अजीब बात है की एक बार होटल चर्च में की गई प्रेयर की ताकत को मान  रहा है और उस चर्च ें जहाँ लोग आते ही इस लिए हैं की हमारी प्रेयर मंजूर होती है , अब चर्च इस बात से ही मुकर रहा है की चर्च में की गई प्रेयर से कुछ होता ही नहीं , केस चल रहा है देखते हैं क्या होता है।

पता नहीं क्यों , जीना मजबूरी सा हो गया है , 
खुश दिखना , खुश रहने से ज्यादा जरूरी हो गया है
अनीता जी अपने मधुर स्वरों से इस पर कुछ रौशनी डालेंगी

जिंदगी एक अभिलाषा है , बड़ी गजब इस्सकी परिभाषा है 
 अशोक आवल जी को सुने बहुत समां बीत चूका

असल में जिंदगी है क्या , मत पूछो यारो आज उनसे कुछ सुनने का बहुत मन कर रहा है
जिस्सकी संवर गई उसकी तक़दीर , बिखर गई तो तमाशा है
हमे ताकत की जरूरत तभी पड़ती है जब किसी का नुक्सान करना  होता है ,
वरना तो प्यार की भाषा ही काफी होती है किसी के दिल  को जीतने के लिए

सुना है लोग भगवान् को प्रेयर इसी लिए करते है की भगवान् का मन उनकी तरफ बदल जाये ,
लेकिन वास्तव में होता इसका उल्ट है , प्रेयर करते करते हमारा खुद का मन ही बदल जाता है

समझ में नहीं आता किस पर भरोसा करें  और किस पे नहीं , यहाँ तो लोग नफरत  भी करते है मोहब्बत की तरह 

मिर्जा ग़ालिब कहा करते थे , फक्त बाल रंगने से क्या हासिल ग़ालिब , कुछ नादानियाँ , कुछ मस्खरियाँ भी तो कर  किया करो जवान दिखने के लिए।

हमने उनसे कहा , आँखें पढ़ो और जानो हमारी रज्जा क्या है ,
मायूस हो के वो बोली , मोतिया बिन्द ने इस काबिल ही  कहाँ छोड़ा है हमें

फितरत किसी की न आजमाया कर ऐ जिंदगी।  हर शख्स अपनी हद में बेहद लाजवाब होता है

तंग बिलकुल नहीं करते हैं हम , उन्हे आजकल ,
अब यह बात भी उन्हे बहुत  तंग करती है


वकील :- माय लार्ड कानून की किताब IPC के पेज नंबर १५ के मुताबिक मेरे मुवक्किल को गुनाह से बा इज़्ज़त बरी क्या जाए
जज :- किताब पेश की जाए , किताब पेश की गई , पेज नंबर 15 खोला गया तो उसमे 1000 /- के पांच नोट थे
जज मुस्कराते हुए :- बहुत खूब इस तरह के दो सबूत और पेश किये जाएँ तो रिहाई पक्की है। 


शाम खामोश है , पेड़ो पे उजाला भी कम है , लौट आये हैं सभी पर एक परिंदा कम है

यही वह परिंदा है जिसे दारु की बोतल लेने भेजा था , उसके बिना शाम भी ग़मगीन है









Thursday, January 24, 2019

ADABI SANGAM :-..............................................[-DESIRE ]......---- WISH.....-इच्छा .....-- तृष्णा----- --ख्वाइशे -------अरमान- ----TAMANNA ----[JANUARY ,28 ,-2019].......

"LIFE BEGINS HERE AGAIN " HOST  AMIT &ANITA,
66, BUTTERNUT  LN  LEVITTOWN
NY. 11756,  TIME 6 PM


"इच्छायें-मनुष्य"
            को जीने नहीं देती
                     और
            "मनुष्य-इच्छाओं"
          को मरने नहीं देता.....✍🏻
EARTH🌍

जिंदगी के उस दौर से गुजर रहा हूँ मैं ग़ालिब ,
पुराने गाने गुनगुनाऊँ तो ,बीवी बोलती है ,
किसकी याद में मरे जा रहे हो ?

और नए जमाने के गीत गाओ तो ,
कहती हैं बड़ी जवानी छा रही है , आज कल ?
बड़े अच्छे वक्त पर निकल लिए ,
सहगल और रफ़ी साहब , वरना ,
जीना हराम हो जाता उनका भी AUR उनकी तमन्नाओं का। 

पिछले महीने हम लोग डेस्टिनी को समझने की कोशिश कर रहे थे आज उसका अगला कदम है हमारी इच्छाएं यानी की इच्छा शक्ति जिसकी वजह से हम कर्म करने को बाध्य हो जाते हैं उसी से हमारी destiny decode हो पाती है। 
where there is a will there is a way , 
जो इंसान इच्छानुसार कर्म युक्त है वही अंतत भाग्ययुक्त है 

हमारी डेस्टिनी एक ब्लू प्रिंट है एक नक्शा है जिसपे हमारी जिंदगी  की इमारत खड़ी  की जाती है , इस इमारत के इंजीनियर और आर्किटेक्ट है हमारी इच्छाएं और उसे पूरा करने की ताकत हमारी "इच्छा शक्ति" , 

आज इसी सन्दर्भ में कुछ तथ्य मैं लाया हूँ , इन्हें  बताने में कभी कभी समय सीमा नाकाफी हो जाती है , जब तक यह सन्देश साफ़ और शुद्ध तरीके से सुनने वालों के जेहन में न उत्तर जाये तो उस का फायदा भी क्या होगा , हम खुद को जितना मर्जी समय सीमा में बांधना चाहे " उसकी अदालत में हमारी घडिओं का दिया वक्त नहीं चलता , जो आध्यत्मिक सन्देश हमारे जीवन से तालुक  रखते हैं , उन्हे हम जितना वक्त दे नाकाफी है , मेरी आपसे श्री  प्रवेश चोपड़ा जी और हमारे आदरणियें डॉ सेठी , MS  रजनी जी से बड़ा ही नम्र निवेदन है की हमारा हौसला बढ़ाएं ताकि अदबी संगम के  मंच से जिसके पास भी सार्थक विचार हो सब तक पहुंचाए जाएँ , 


मैं कोई संत महात्मा नहीं हूँ , हाँ अपनी वकालत की जिंदगी में रहते इतने लोगों से मिलना पड़ा , इतनी रिफरेन्स लॉ बुक्स पढ़ने को मिली की जिंदगी के कुछ फंदे खुद बी खुद समझ आने लगे जिसे आपसे शेयर करना मेरी कोई मजबूरी या बिज़नेस नहीं बल्कि इंसानी धर्म है जो मुझे लगता है हमारी इस उम्र में एक शांति के सन्देश के बारे में होगा जिसमे हमारा शेष जीवन की आने वाली जटिलताएं झेलने में मदद मिलेगी। 


एक छोटी सी काया बनाई उस परवरदिगार ने , फिर रख छोड़ा एक गट्ठड़ भारी सा उसके सर के  भीतर दिमाग पे ,
ख्वाइशें , हसरतें , वासनाएं ,इच्छाएं और desires भरी थी लबा लब जिसमे ,ऊपर तक फिर करके उसे सील खोपड़ी में रख दिया , निबटा के अपना काम उस परवरदिगार ने ,
देते हुए धक्का इस दुनियावी महासागर में , कान में मेरे वह धीरे से बोला। ....... सब कुछ तुझे दे दिया है 
जा करले पूर्ती इनकी अपनी हिम्मत से , है इच्छा शक्ति तो हो जा भवसागर के पार ?


जैसे तैसे अपने समय पर माँ की कोख से बाहर आये तो पता चला ,इतनी दुर्बल काया ऊपर से बोझ अनंत इच्छाओं की पूर्ती का , सिर्फ बोल  ही तो नहीं पाते थे वरना याद तो सब था की हम इस दुनिया में करने क्या आएं हैं ?  खुद के पाओं  पर चलना भी भारी पड़ने लगा , शैशवस्था से बचपन और फिर जवानी और बुढ़ापा 
गिरते- पड़ते ठोकरें- खाते हर इच्छा पूर्ति में जैसे प्राण निकले जाएँ ,
मन ने हार न मानी - रुका नहीं किसी ठोकर से - गूँज रहे थे कान में उसके यह शब्द --
जब तक जिन्दा है तेरी इच्छा शक्ति ----  इच्छाएं तुझे मरने भी न देंगी।जिस दिन तेरी इच्छाएं मरी समझना तू भी मर गया , यही शब्द अभी तक मेरे कान में गूँज रहे थे , जिसने मुझे इस दुनिया में भेजा था । 

(१)बचपन में पैदल चलते हुए साइकिल सवार को देख कर साइकिल की इच्छा जाग उठी और मेहनत करके  साइकिल खरीद ली
2 .- फिर तो हमारी नजर कभी स्कूटर , कभी कार , कभी बस , कभी ट्रैन और फिर हवाई जहाज पर आ कर रुकी , और फिर समुन्दर मंथन को बड़े से क्रूज पर भी चढ़ गए  ,देश विदेश भ्रमण कर आये खूब आनंद किया , कुदरत के विस्तार का नज़ारा देख हिल गए भीतर तक हम।

पहले छोटी सी झोपडी में पूरा परिवार समा जाता था , प्यार ही प्यार था , फिर एक मकान बना उसके कमरे भी छोटे पड़ने लगे , गाडी है  तो गेराज भी होना चाहिए , बड़ा बांग्ला लिया गया , खर्चे बढ़ने लगे तो ज्यादा वक्त पैसा कमाने में लगने लगा , बच्चों को अच्छे कॉलेज स्कूल में पढ़ने के लिए जी जान से पैसा कमाने की जुग्गत करनी  पड़ी , इच्छाओं का तो आलम यह था की एक पूरी होती दूसरी सामने आ खड़ी  होती , हमारा पूरा जीवन सबकी इच्छाएं करने में निकलने लगा 

 ईश्वर से प्रार्थना करने लगे हमारी जिंदगी की लीज थोड़ी और बढ़ा दो , अभी बहुत कुछ देखना है , बेटे की शादी हुई है पोता भी बड़ा हो गया है , उसकी शादी भी हो जाए तो उसके पोतों को भी अपने हाथों में खिला सकूं। 

इच्छाओं और वासनाओं में बड़ा नज़दीक का रिश्ता है , काम क्रोध लोभ मोह पग पग पे खड़े हैं हमें अपने रस्ते से भटकाने के लिए , पर हमारी कोशिश थी दिमाग में भरी इच्छाओं की गठड़ी में से  एक एक करके हर इच्छा की पूर्ती करते जाएँ क्यों की वक्त बहुत कम है जवानी का जिसमे यह पूरी की जा सकती हैं , जितना तेज काम करते उतनी ही गलतियां भी होने लगी , कुछ आस मंजिल के नजदीक आकर टूट गई और कुछ को पाना हमारे बूते से बाहर  लगा , कुछ निराशा ने निगल ली , कुछ हमारी गफलत और नादानी ऐसे की सुनहरी अवसर हाथ से फिसलते चले गए।भावावेश में पथ से भटक से गए। 

वक्त और ढलती उम्र ने हमारी जरूरतें भी बदल डाली , 

फिर भी रुके नहीं , एक एक इच्छा गठड़ी से निकलती गई , दम साधे  भागते रहे कुछ पाया कुछ खोया , थोड़ा दम लेने को रुके तो अहसास हुआ की गठड़ी काफी हलकी हो चुकी थी और कुछ इच्छाएं न जाने कब थक हार कर पीछे छूट गई और  , कुछ अधूरी और कुछ अधमरी हो , कर हमे कब छोड़ने लगी थी यह पता ही नहीं चला ,

इच्छाओं की अनंतता ही जीव को दुखी करती है। सदैव स्मरण रहना चाहिए कि आवश्यकता सबकी पूरी होती है लेकिन सभी इच्छा पूरी कभी नहीं होती। जितना भी जोर लगा लो , पूरी वहीँ होंगी जिसमे उसकी रजा होगी ? यह अब धीरे धीरे हमे समझ भी  आने लगा 

      काम को शत्रु मानो। काम का अर्थ केवल वासना ही नही है बल्कि किसी भी वस्तु की कामना से है। अतः शनैः शनैः जीव की कामना कम होनी चाहिये।

      एक साधना पथ पर चलने वाले इंसान साधक के लिए अनिवार्य है कि आज अगर आपको आठ वस्तुओं की आवश्यकता है तो धीरे धीरे वो घट कर सात और फिर छः हो रही है या नहीं। यदि आपकी कामनायें /इच्छाएं  धीरे धीरे कम हो रही है तो आप सही मार्ग पर चल रहे हैं।वरना आप मोह जाल में फस  कर अपना सब कुछ गवाने जा रहे हैं यही सार है जीवन के सफर का। 

हसरतें कुछ और हैं....
वक्त की इल्तिजा कुछ और है ..!!!
कौन जी सका जिंदगी अपने मुताबिक....
दिल चाहता कुछ और है....
होता कुछ और है ..!!!

 बेदम हो कर हॉस्पिटल के बिस्तर पर लेटे लेटे महसूस हुआ की जैसे मेरी गठड़ी खुल कर एक चादर बन गई है जिसे मेरे ऊपर डाल दिया गया है. अब डॉक्टर्स कहते हैं यह सब छोड़ दो ,अपनी वासनाओं से बाहर आ जाओ  सादा खाना खाओ , बस कार हवाई जहाज की यात्रा आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं , जिम जाओ वहां फिर से साइकिल चलाओ , जो खाना गरीबी में खाते  थे अब वही तुम्हारे लिए अमृत है , तो क्या यह सब मृगतृष्णा थी जो भाग भाग कर हमने एकत्र किया अब हमारे काम  आने वाला नहीं था ? 

तो फिर उस परवरदिगार ने मेरे सर पर इतना बोझ ही क्यों रखा की मैं उसे पाने के लिए ही ता उम्र भागता रहा और जीवन ख़त्म भी हो गया और मैं न ही कोई संतुष्टि प् सका न ही मन का  सकूं ? मैंने अभी जीवन को महसूस भी नहीं किया और।जाने का वक्त भी आ गया ? 

आज सोने के लिए भी मुझे नींद की गोली या मदिरा का साथ चाहिय  ........क्या  वाकई मेरा सफर खत्म होने जा रहा है ?

इन तमाम विचारों ने मेरी नींद ही उडा  दी , मैं सोचने लगा  इच्छाएं कभी हमारी शक्ति होती है और कभी मजबूरी,  जिस पैंट के घुटने फट जाते थे और हमारी माँ उसे सी कर रफू कर जब हमें फिर से पहना देती थी तो खुद की गरीबी पे बड़ी शर्म महसूस होती थी , आज जब मैंने अमीर से अमीर लोगो को रफू के बगैर फटी जींस को महंगे महंगे स्टोर्स में ऊँची कीमत पर खरीद कर पहने देखा तो सर चकरा  गया के अगर यह लोग  अमीर हैं तो मैं जब फटी पैंट पहनता था तो मैं क्या था ?

जिंदगी के रथ में लदी  हैं बेशुमार  ख्वाइशों की बोरियां 
कुछ इतनी भारी की हम उठा ही न पायें। 
और खोकली भी कुछ इतनी जो किसी काम न आएं ,

जीवन के सफर में रुकावटें कुछ अपनों की वजह से थी ,
अपनों के अपनों पर ही इलज़ाम भी बहुत थे ,
लेकिन वक्त भी ज्यादा न था मेरे पास 
हर किसी से निबटता तो खुद ही निबट जाता ,

यह शिकवे  शिकायतों का दौर देख कर ,
जरा थम कर सोचने लगा हूँ , सफर तो लम्बा है ,
पर लगता है उम्र कम , और इम्तिहान अभी बाकी है। 

शायद इंसान अपनी इच्छाओं की गठड़ी खाली  हो जाने पर इसे साथ ही ले जाता है जिसे लोग कफ़न का नाम दे देते हैं। मेरी गठड़ी पूरी तरह खाली हो कर एक चादर  हो चुकी थी 

अब इसमें कुछ भी ऐसा न बचा  था , पूरी जिंदगी की बैलेंस शीट मेरे सामने थी , न शरीर में वो जोश न वो दम बचा था ,लाठी के सहारे चलना , कोई मुझ से बात ही नहीं करता था क्योंकि मेरी बातें पुराणी और दकियानूसी लगी उन्हें , कोई करे भी तो सुनाई कहाँ पड़ती थी , सुन भी लें तो याद कहाँ रहती थी ,? 

न ही इच्छा  शक्ति तो फिर इच्छाएं भी कहाँ रहती मेरे पास। चादर को तान कर मुहं ढापने की कोशिस की तो पावं किसी चीज़ से टकराया , उठ कर देखा यह चादर के कोने में पड़ी एक गांठ थी जो शायद मेरे उस कर्म गठड़ी के बांधने वक्त डाली गई होगी , पर इसमें भी कुछ महसूस हो रहा है शायद मेरी कोई इच्छा अभी इसमें कैद हो ? 

चलो आज इसे भी  पूरी किये लेते हैं , जैसे ही खोलने की कोशिश की , हाथ किसी अनिष्ट विचार से कांपने लगे , दिमाग में बिजली का सा झटका लगा , हाथ वहीँ रुक गए , गौर से देखा तो उसपे कुछ लिखा भी था , लाइट में देखा तो लिखा था। ...... your last wish यानी की मेरी आखरी ख्वाइश या इच्छा ? और मेरे जीवन का अंत ? तो मेरे बाद मेरी दौलत मकान  जायदाद कहाँ जाएगी , इतनी जल्दी मेरा अंत ?

एक दिन मंदिर में कथा सुनी थी वह याद आ गई ,;
इच्छाओं की पूर्ति तभी तक है जब तक इंसान जीवित है , सभी साथी सम्बन्धी भी तुम्हारी इच्छाओं का हिंस्सा मात्र हैं : - मृत्यु के बाद का सच यही है। 
1 पत्नी मकान तक 
2 समाज  रिश्तेदार  श्मशान  तक 
३ पुत्र अग्निदान तक 
4  केवल हमारे कर्म ही भगवान् तक 

फिर अपने शरीर की तरफ देखा जो बिलकुल कमजोर और क्षीण हो चूका था। ..अब क्या मांगू उस परवरदिगार से मेरी पहली दरखास्त भी खारिज हो चुकी है जो मैंने अपनी  जिंदगी की लीज बढ़ाने को डाली थी ,

 तभी कानों में एक कर्कश आवाज गूंजी , अब सो जाईये  बहुत देर हो गई है , यह शायद हमारी तिमार दारी में लगी नर्स की आवाज थी , आकर वही चद्दर हम पर डाल  दी जिसे हम बड़े प्यार से खुद की मालकियत समझते थे , और सोचते थे जरा ठीक हो जाये इसे फिर से भर लेंगे अपनी इच्छाओं की झोली से। 

बड़ी ही मस्त नींद आयी जितनी जीवन में आज तक नहीं आई थी ,सिर्फ थोड़ी गर्मी महसूस हुई जब हमें चिता पर लिटाया गया , उस गठड़ी की चादर में लपेट कर हमारा कफ़न बना दिया गया , आये तो थे बड़े अरमानो के साथ गए सिर्फ एक के साथ वह थी। हमारी आखिरी "इच्छा मृत्यु। .. मेरी इच्छाओं का अंत भी  हुआ मेरी लास्ट इच्छा के साथ। 




पत्नी: "अगर आप लॉटरी से 1 करोड़ जीत गए लेकिन मुझे 1 करोड़ की फिरौती के लिए अपहरण कर लिया गया, तो आप क्या करेंगे?"


पति: "अच्छा सवाल है, लेकिन मुझे शक है कि एक ही दिन में मेरी दो बार लॉटरी  कैसे लग सकती है ".....😃😂