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Wednesday, September 11, 2024

#533 --ADABI SANGAM ---July 27th --2024-- TOPIC-- DUNIYA--- दुनिया ----------WORLD-------

# 533
Presented by
MR & Mrs Naginder Puri
JULY 27,2024
4:30 PM -10 PM

Topic 
DUNIYA

Attendees 
Mr Mrs Arora 
Mrs Anu  Bhanot 
Ms Sukhmani Bhanot 
Mr Mrs Chopra 
Mrs datta Mrs Sanjay Datta
Mrs Mrs Dillion 
Mr Mrs Gulati 
Mr Mrs Gupta 
Mrs Rita Kohli
Mr Mrs Komal kumar 
Mr Mrs Rajni kumar 
Mr Mrs Nagpal 
Mr Mrs Sethi
Mr R d Sethi

VENUE 
BOMBAY GRILL HOUSE
71-51 Yellowstone Blvd
Forest hill, Ny 11375

"
"दुनिया

Host : Mr.& Mrs Naginder Puri
Date : 07/27/2024

Topic: DUNIYA

दुनिया में हम आएं हैं तो जीना ही पड़ेगा ,
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा , 

यह दो पंक्तियाँ इंसान की मजबूरी दर्शाती है , गरीबी , लाचारी , बीमारी से घिरा इंसान इसी प्रकार की रचना करेगा।  कुछ ऐसा ही हुआ होगा उस समय जब यह गीत लिखा गया होगा जिसमे आत्मसमपर्ण ही नजर आता है दुनिया की मुसीबतों से लड़ने का जज्बा नहीं। 

फिर एक नया दौर शुरू होता है , दुनिया वही है पर इंसान की सुधरती आर्थिक हालत ने उन्हें प्रसन्न रहने का , हर प्रकार की सुविधाओं को भोगने का एक अवसर मिला तो यह उदासी यह मायूसी भी काफूर हो गई और गीतों नृत्यों में इसकी झलक मिलने लगी 

"इस दुनिया में जीना हो तो सुन लो  मेरी बात , 
गम छोड़ के मनाओ रंग रैली , 
मान लो जो कहता है, तुम्हारा बेली "

दुनिया ने फिर रंग बदला , अब उसके पास पैसा है , अमीरी है लोगो के पास एशोआराम के सब साधन मौजूद हैं , जगह जगह रोमांस करने का वक्त मिलने लगता है कॉलेज स्कूल में लड़के लड़कियां एक ही छत के नीचे अपने अपने सपने बुनने लगते है , जिसके सपने टूटे उसने खुद की गलतियां नहीं देखी चल पड़ा मंदिर में भगवान् की मूर्ति के सामने और चिल्लाने लगा के भगवान् सब  तुम्हारा किया धरा है जैसे के भगवान् के पास पूरी दुनिया में एक लड़का लड़की प्रेम में रो रहे है तो उनका कोई उपाय भगवन ही बताये वरना भगवान् को कोर्ट में खड़ा कर दो और चौक पे खड़े होके , कोई प्रार्थना नहीं सिर्फ उसे कटघरे में खड़ा करो और पूछो " 

"दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई , काहे को दुनिया बनाई , तूने काहे को दुनिया बनाई" तभी से यह दुनिया ऐसे विचारों से घिरी अपनी ही सोच में चलती रहती है और इसमें रहने वाले इसमें कल्प कल्प के बदलते बदलते इस दुनिया से विदा हो जाते है फिर भी दुनिया अपनी गति से पहले की तरह मस्त चलती रहती है , न मालूम कितने करोडो वर्षों से ? 

खुद को समझना ज्यादा जरूरी है इस दुनिया को समझने से पहले ,
जिस दुनिया में बसे हो उसकी गिरती दशा को संभालना बहुत जरूरी है 
किसी नई दुनिया की तलाश में , चाँद तारों और ग्रहों को खंगालने से पहले 
इस पृथिवी पे बसी अपनी दुनिया की सुध  तो लेना शुरू करो , जिसका वजूद ही खतरे में आ चूका है , तुम्हारे कुकर्मों से ग्लोबल वार्मिंग , समुद्रो में भी प्रदूषण ,  हर जीव को खतरा , नभ जल वायु सब में तुम्हारी बेवक़ूफीआं इस दुनिया को ही ख़त्म करने में लगी है ? क्या करोगे नई दुनिया खोज के पहले इसे सम्भालो जिसे तुमने नष्ट किया है 




जब थोड़ा अध्यन किया तो राज खुला , दुनिया एक इस्लामिक पर्शियन शब्द है , हम इसे जो भी समझे , इस्लामिक मान्यता यह है के जो उनके कदमो के नीचे है उसकी मिटटी यह सिर्फ भोगने के लिए है  इसलिए इसको दुनिया का नाम दिया,  जन्नत तो वोह है जो इस निकृश्ट धरती से कहीं करोडो साल दूर है जिसको वोह अप्सराओं और हूरों का घर मानते है जिसे उनके नबी ने बनाया है उनकी किताब इसे  आसमानी रचना मानती हैं , तभी उनका मानना है के इस दुनिया पे इस्लाम के लिए  शहीद  होना उसकी जन्नत की टिकट की गारंटी है जहाँ ७२ हूरें उनका बेसब्री से इंतज़ार कर रही है 

किसी ने कहा दुनिया गोल है तो किसी ने कहा चपटी ? वाह क्या बात है ?
बड़ी खोज बीन करते हो कुदरत की अपनी औकात से भी बाहर जाकर ,कभी खुद को भी ढूंढा है इस दुनिया में ? एक सूक्ष्म कण जो कहीं दिखाई भी नहीं देता। 

क्या हैसियत है तुम्हारी इस रंग बदलती दुनिया में , जहाँ पल पल इंसान भी बदलता है और उसकी नियत भी , कुछ इंसान तो बस इसी बात पे खुश है के वोह यहाँ मौज मस्ती कर रहे है और कुछ सालों से जिन्दा है बाकी किसी से क्या वास्ता उनका ? हर बात में उनकी स्वार्थ ही तो है ,बातें करते है दुनिया को मुठी में बंद करने की चंद सिक्को की खनखनाहट  में दबी है उनकी खुद की  हैसियत , 

हे परभु की देंन न शुक्रे इंसान ,शक्ल  तुम्हारी कितनी मासूम और मन इतना कपटी है ?
सब कुछ तो दिया है दाता ने तुझे , तो फिर क्यों यह छीना झपटी है , 

फिर नाम दे देते हो, यह तो दुनियादारी है , भाई इतना तो बता दो 
सच को दबा कर झूठ की माला जपना कहाँ की ईमानदारी है

दुनिया में रह कर ही, दुनिया को समझना होगा
किसी को बदलने से पहले , खुद को बदलना होगा

कर चुके हो बर्बाद  इस खूबसूरत धरती पे बसी दुनिया को 
अपने अहंकार से अपने अज्ञान से , अब कहते हैं चाँद पे 
एक नई दुनिया बसायेंगे , मंगल पे भी दंगल इनका चालू है 
इस दुनिया की बाढ़ों के पानी को यह सहेज न सके 
चाँद और मंगल पे पानी होने की खबर से झूमना इनका चालू है 

आज भी बुरी क्या है दुनिया ?कल भी ये बुरी क्या थी
किसी की सिमटी थी एक दस बाई दस के कमरे में

किसी की भटकती रहती थी , वीरान हवेलिओं में
किसी की लुढ़कती रही सड़को फुटपाथो पे

मख़मली गद्दों पर कट रही है किसी की करवटों में
फुट पाथ  पे भी सो रहे है लोग बेसुध हो खरांटो में

हर तरह के लोग बसते है यहाँ जिसका नाम है दुनिया ,
तुम बदलो न बदलोपर ये हमेशा बदलती रहती है
हूँ तो मैं भी इसी दुनिया में , पर दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
इसके हर बाजार से गुजरता हूँ ,परखता हूँ पर खरीदार नहीं हूँ

ये जालिम दुनिया ग़म तो देती है पर शरीक-ए-ग़म नहीं होती
यह भी तो सच है न के ,किसी के दूर जाने से मोहब्बत कम नहीं होती

यह दुनिया है प्यारे यहाँ हर बड़ी चीज़ दिखती है 
 शराब भले कम कर दे,गोया मुझे गिलास तो बड़े दे 
 मेरा थोड़ा रूतबा तो बढ़ने दे, इसमें तेरा क्या जाता है ?

तुम्हे मालुम नही क्या? के दुनिया में लोग गिलास को बाहर से देखते है अंदर से नहीं ,कितनी बर्फ है कितना पानी ,उन्हें इसी भरम में ही  रहने दे

संसार, जिसे हम अपनी आँखों से देखते हैं,जिसे वह एक अद्वितीय संग्रहालय है। यहाँ पर अनगिनत जीवों का आवास है,
जो अपनी अलग-अलग जीवनशैलियों में विकसित हो रहे हैं। यहाँ पर विभिन्न भाषाएँ, संस्कृतियाँ, धर्म, और जीवन के अनगिनत रूप हैं।

दुनिया में आना अपने आप में ,संसार की अनंत गहराईयों में छुपे रहस्यों को खोजने का अद्वितीय अवसर है। यहाँ पर जन्म और मृत्यु,सुख और दुःख,सफलता और असफलता की बेशुमार कहानियाँ बसी है 
कुछ के लिए यह दुनिया मतलबी है किसी के लिए है यह जन्नत , 
असल में जैसा मन है वैसी दिखती है यह दुनिया 

संसार की यात्रा में हम अपनी  आत्मा को जानने की चाह में  ,अपने जीवन के उद्देश्य की ओर बढ़ते हैं।दुन्यादारी का तो नाम ही है एक दूजे का साथ देना 
हम अपने पारिवारिक ,पिछले जनम के कर्मों के फल  भोगते रहते हैं, और अपने अच्छे कर्मों से अन्यों की मदद करते हुए इस जीवन में और भी अच्छे कर्म कमाते रहते है ।

संसार की यात्रा एक अनंत अवेन्यु है, जो हमें हर पड़ाव पे जीवन के असली मूल्य को समझाती है।यहाँ पर हम अपने असली गुणों को पहचानते हैं, और अपने आत्मा को शुद्ध करते हैं।बचपन से जवानी और बुढ़ापे तक का इस दुनिया का सफर बहुत कुछ सिखा  देता है 

संसार की यात्रा में हम अपने अंतरात्मा के साथ जुड़ते हैं,
और अपने जीवन को एक अद्वितीय अनुभव बनाते हैं। यहाँ पर
हम अपने सपनों को पूरा करने के लिए लगे रहते हैं ,कुछ लोग अपने अंतरात्मा की आवाज सुनते है और कुछ सिर्फ अपनी मनमानी करते है ,

संसार की  अनंत विविधता में हम अपने जीवन की यात्रा करते रहते हैं।
हम अपने सपनों को पूरा करने के लिए कठिनाइयों का सामना करते हैं,
और अपने अनुभवों से सीखते हैं। कुछ खोते है कुछ पाते है पर इस दुनिया की सच्चाई नहीं समझ पाते है 

 बस जब कुछ कुछ समझने लगते है के अचानक दिल की घडी की टिक टिक बंद हो जाती है , हमारे विदा होते ही , उसकी जगह लेने एक और इंसान आ जुटता है और दुनिया का सफर युहीं अनवरत चालू रहता है 

यही है प्यारे दुनिया ,घूमती रहती है घुमाती रहती है , मिलती है मिलाती भी है फिर अचानक एक दिन सब छोड़ के खाली हाथ चले जाते है न जाने कहाँ और किसके पास ? इसी रहस्य की खोज में इंसान बार बार जनम लेते लेते मर जाता है पर दुनिया उसी गति से चलती रहती है जीना हमें नहीं आया और पूछने लगे परमात्मा  से ऊँची ऊँची आवाज में -


दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई।  काहे को दुनिया बनाई , तूने काहे को दुनिया बनाई 














Friday, July 12, 2024

Father / Pita -----------पिता -------बाप --- पापा ----PITR IS PLURAL FOR FOREFATHERS


Father / Pita पिता 



मेरी श्रद्धांजलि अपने जैसे करोडो पापा , ग्रैंड पापा , दादा नानी सबके लिए जो अपने अपने वक्त के अच्छे बेटे , अच्छे पापा ,दादा बने और समाज को पल पल बदलते मूल्यों में डूबते देखा होगा ,आज का एक बालक एक छोटा सा बेटा ही तो कल पापा बनेगा , और दादा  परदादा भी ? 
लेकिन अपने मन में झांकिए क्या आप अपने पापा के अच्छे संस्कारी आज्ञाकारी बेटे थे ? थे तो बहुत बढ़िया , नहीं थे तो अच्छे पापा कैसे बन पाओगे वो संस्कारी औलाद कहाँ से लाओगे ?
नहीं ला पाए तो घर में कुत्ते बिल्लियां ही तो लाओगे उन्हें हमबिस्तर करोगे और संतान से वंचित रह जाओगे , कहाँ मिला पापा बनने का सुख तुम्हे ?, जिम्मेवारी से मुहं छुपा कर कुत्ते बिल्लिओं के पापा बने घूम रहे हो ? पापा क्या होता है वोह अहसास कहाँ से पाओगे ?

पिता,या पापा  यह छोटा सा दो अक्षर का एक sanskrit का शास्त्रीय शब्द है , अपने आप में ब्रह्मांड से भी अधिक विशालता लिए हुए है। इस शब्द का पूर्ण रूप से वर्णन करना असंभव है। पूर्वजों को पित्र और बाप को पिता , और पापा शब्द जो हम दिन रात प्रयोग करते हैं।  हमें पाश्चात्य देशो ने दिया है -- जिसका कोई सांस्कृतिक उद्धभव नहीं है बस एक सुविधा है पिता को बुलाने की। 

हम अक्सर पहुँच जाते है किसी मंदिर में , पंडित जी के पास के हमारे घर धन दौलत सुख क्यों नहीं टिक पा रहा ? कष्ट जाने का नाम ही नहीं लेते कभी कुछ अड़चन तो कभी कुछ व्यपार में घाटा , दिमाग जैसे जड़ सा हो जाता है।  पंडित जी अपने ज्ञान से अपनी पुस्तकों में आपकी कुंडली ढून्ढ कर आपको जो बताते है आप को सहज विश्वास ही नहीं होता के ऐसे कैसे हो सकता है ?

पंडित जी का यह कहना सिर्फ के आप को पितरों का दोष लगा है , यानी के आपने अपने पूर्वजो द्वारा बनाये सिधान्तो को किसी भी कारण वश चाहे अपनी आधुनिकता के चलते या अपनी शिक्षा डिग्रीओं के दम्भ में दरकिनार किया है , अपने पूर्वजो को अपमानित किया है उनके जीते जी उनका और उनके दिए संस्कारों का आधुनकता के झूठे आवरण में तिरस्कार किया है और उनकी दी हुई दीक्षा को अपनी आधुनिक शिक्षा में जोड़ के देखने का ध्यान नहीं रखा। और अपनी जिंदगी को धार्मिक मूल्यों और संस्कारों से हट कर चलने का प्रयास किया है , पैसा तो आप कमा लोगे लेकिन आपकी जिंदगी का बुनियादी संस्कार और पारिवारिक सकून गायब हो जाएगा , इसे कहते है पितृ दोष 


हर घर में  ,वह एक मजबूत शख्सियत  होता है,

 हर परिवार की बुनियाद का सूत्रधार भी होता है 

सभी की खुशियों की परवाह करने  वाला , उनकी 

हर इच्छा को साकार करते करते खुद को मिटा देने वाला 

खुद को भूल बच्चों को समृद्ध बनाते बनाते मरने वाला 

उसके कर्म अनथक प्रयास करने वाली उस काया को 

जिसका जनम दाई माँ के बाद ,सारे जहाँ में उसी का मान है , 

 वो ही हैं जिसे हम पापा कहते हैं। इसी पिता के पूर्वज है हमारे पितृ (पित्र )


माँ का अपमान या तिरस्कार करने वालों को भी पित्र दोष से भी बड़ी  मातृ दोष की सजा से गुजरना  पड़ता है 


लेकिन हैं कुछ अभागे इंसान इस दुनिया में , धन दौलत तो बहुत कमाए 

कुछ घर बसाना ही भूल गए , और कुछ पत्नी पति तो बने पर पिता बनना भूल गए  

कहने लगे हमें अभी जिंदगी में कुछ बनना है , धन नहीं होगा तो घर कैसे बसेगा ?

धीरे धीरे सब कुछ बनने लगा , अच्छा मकान , अच्छा व्यपार , पैसा , फिर पिता बनने का ख्याल आया तो कोई हमउम्र साथी ही न मिला , अगर मिला भी तो प्रकृति के नियमों ने हमें माँ बाप बनने का मौका ही नहीं दिया क्योंकि जब वक्त हमारे साथ था तो , हम धन बटोरने में लगे थे  थोड़ा अमीरी के नशे में ,कुछ और नशे मिला कर लुढ़कते रहे , कुत्ते बिल्लिओं में अपना परिवार खोजते रहे ? आज क्यों रोते हो अपनी किस्मत पर जिसे अपनी धींगा मस्ती और एहम में तुमने खुद ही नेस्ता नाबूत किया है 


आज फिर मेरी ,पलकों पे आंसू हैं , 

आज फिर जज्बात बेकाबू हैं , 
जैसे ही नजर पड़ी है उस दिवार पे टंगी  एक पुराणी तस्वीर पे ,
 गुम सुम  सा फूल माला लिए हाथो में मैं खड़ा हूँ , आंसू तो हैं पर उसे पोछने वाले वो हाथ  नहीं 
बरसी जो थी आज मेरे पिता की ,



मेरे लिए हर रोज ही फादर्स डे (पृत दिवस) है 

यदि आपने अपने पिता की वेदना को समझा है, तो आप भी मुझ से सहमत होंगे ? क्या विचार है आप जैसे कदरदानों के ? पिता क्या कोई एक दिन का दिवस है ?



========================कल सुबह से ही सोशल मीडिया पर लोगों के पोस्ट देखकर लगा कि आज फादर्स डे है, पितृ दिवस है। लोगों के पिता के प्रति उद्गार देखकर ऐसा लगता है कि वाकई फादर्स डे है।


तो क्या इससे पहले अपने पिता को याद करना , उसकी बताई राहों पे चल के आज हम जहाँ तक आ पहुंचे है ?उसका जिक्र भी करना क्या इसी दिन के लिए रिज़र्व है  ? तो क्या इस एक दिन को इसके नाम करके बाकी सारे दिनों को अपने हिसाब धींगामस्ती से जी कर ? 
उस पिता के नाम में कौन से चार चाँद लगा रहे है ? यह मदर फादर डे या  दिन मनाने की प्रथा भी पाश्चात्य देशो की देंन है , हम भारतियों की नहीं 

पिता तो एक ऐसे इंसान को कहते है जिसकी हमें रोज जरूरत है , माँ जनम दाता है तो पिता पालन हार है ,उसके संस्कार , उसके किये हम पर उपकार  , उसे यूँ एक दिन में बांधना पिता के किरदार का अपमान है ---- यह दूसरी बात है के आज की पढ़ी लिखी माताएं पालन हार भी है अलबत्ता बिना पति  के वो भी अधूरी है -- दोनों के साथ होने से ही स्त्री माँ और पुरुष पिता बन  सकता है -- अतैव पुरुष भी बिन स्त्री के अधूरा है और कभी पिता नहीं बन सकता इसलिए हर जगह जहाँ जहाँ संसार रोशन है माता पिता का नाम ही सच्चा दर्शन है बाकी सब किस्से कहानिया ही हैं। 


पिता तो एक उम्मीद है, एक आस है परिवार की हिम्मत और उसका विश्वास है। 

उस पिता को भी हमसे कुछ उमीदें होती है जिसे अक्सर पूरा करने से हम चूंक जाते है 

जीवन भर उसी की प्रेरणा रहती है जिन्दा हमारे दिलों में आखिर तक 
बाहर से बहुत सख्त अंदर से नर्म है पिता ,दिल में दफन होते उसके कई गम हैं।

जिसे न हम पढ़ पाते है न ही समझ पाते है 

पिता हमारे संघर्ष की आंधियों में हौसलों की दीवार है।
तो परेशानियों से लड़ने को दो धारी तलवार भी है।

बचपन में खुश करने वाला खिलौना है ,

नींद लगे तो पेट पर सुलाने वाला बिछौना है।माँ अगर गाडी है तो 
पिता जिम्मेवारियों से लदी गाड़ी का सारथी है। 

सबको बराबर का हक़ दिलाता यही एक महारथी है।


प्रश्न यह है के क्या आप और हम उसके जीवन में हमेशा से उसके साथ न्याय करते रहे हैं ? या अपने पिता को सिर्फ  इस्तेमाल कर अपनी जिंदगी संवारते रहे और अंत में धीरे धीरे उसे दरकिनार कर दिया   ? जिसका जवाब आप खुद ही अपने भीतर  ढूंढिए 

मैं  तो जब जब आइना देखता हूँ खुद की सूरत और सीरत  में उसी का अक्स पाता हूँ 
गोया मैं तो पिता को रोज देखता हूँ और अपना दिन उसी से शुरू करता हूँ 

थोड़ा बचपन में पीछे जाकर देखा तो दिल रो पड़ा 
उसने हमारे लिए क्या क्या न सहा होगा , सुना पढ़ा है उस वक्त के हालात  जब देश का विभाजन हुआ था किस हाल में उसने हमें  पाला होगा , कैसे अपनी और हमारे परिवार की जान बचाई होगी ? कैसे घर से बेघर होकर अपनी दुनिया फिर से बसाई होगी ? जितना सकून वोह हमें दे गए क्या उतना भी हम आज, सकून से जी पा रहे हैं ? शायद नहीं 


आज खुद पिता बने है , हालात फिर से वही रंग लेने लगे है , अपने परिवार को बचाना फिर से एक चुनौती बन रहा है ,तो उसे याद करके सब समझ में आया  है 

कैसे गले लगा लेते थे मुझे जब मैं रोता था , 
मेरी तकलीफ में खुद रात रात जागकर मुझे सुलाते थे 
पलभर में कैसे मेरा दुःख हर लेते थे , अपने प्यार भरे आलिंगन से 

लेकिन कितना मुश्किल होता है अपने बच्चों को अपने जैसा बना पाना , 
सामाजिक  बुराइयों से बचाते हुए ,उनमे वो संस्कार भर पाना 
आज पापा बन के सब समझ में आया है 


जब तक था पापा का साया हमारे सर पे , हम निडर और मस्त थे 
 पापा ,आप की तस्वीर आज भी मुस्करा रही  है पहले की तरह ,
हम जीवित तो है फिर भी  रो रहे हैं अनाथों की तरह 
  

कैसे मिलके  रहना है भाई बहनो को , कितना व्यथित रहते  थे आप ,हम सब को लेकर , 
आज जब खुद पे आन पड़ी है पापा --तो जाना ----कितना मुश्किल होता है पारिवारिक सामजस्य बना पाना 
पापा बनके आज ,आपका दुःख ,अब समझ  में आया है 

यही किस्से हर घर के है , नही करते कदर कोई भी उस माँ बाप की उनके जीते जी , 
उनके जज्बातों की उनके तजुर्बों की 
बाद में  जाने के उनके ,तारीफों के कसीदे पढ़े जाते हैं , 
घड़ियाली आंसुओं से उनके  श्राद मनाये जाते  है 


मेरी कहानी शायद थोड़ी आज से भिन्न है , वो मेरे पापा ही नहीं सच्चे मित्र भी थे , मेरे सलाहकार ,मेरे गुरु , पग पग पे मेरे मार्ग दर्शक बनके  साथ चला करते थे 
पिता वोह जो मेरी ताकत थी , उसी से मेरी ,दुनिया में अभिवयक्ति थी , ऐसा इस बदलती दुनिया में ,आज कल के पापा अपनी औलाद के साथ कदम नहीं मिला पाते 

जब से छूटा उसकी ऊँगली का सहारा है , सारा जग लगे खारा खारा है 
जब तक थे पापा ,मेरे जीवन में ,अनुशासन था ,  प्रेम के साथ आदर का प्रशासन था 
पिता थे तो उनके घर लौटने का इंतज़ार भी  था , उन्ही से बसा हमारा सपनो का संसार भी था 

आज कल के पापा घर से कहाँ जा रहे है , क्या कर रहे है , किस दुःख से लड़ रहे है , जीने के लिए क्या क्या पापड बना रहे हैं , आज की पीढ़ी में किसी को इसमें कोई रूचि नहीं , सब अपनी स्मार्ट फ़ोन की दुनिया में  खोये है 
हाँ ,जिसपे हैप्पी फादर डे का मैसेज लिख कर लेकिन ,अपना फर्ज पूरा किये जा रहे है 


कैसे बिना पिता के अब हमारा नाम ही बदल गया , कल तक जो आबाद था उनके नाम से आज उनके नाम में स्वर्गीय और हमारे नाम में स्वर्गीय के पुत्र हो गया 
दिल की भावनाएं चीख उठी जैसे कोई जीते जीते  अनाथ हो गया 


जिनके माँ बाप अभी जीवित है ,अगर हमने जीते जी उनके हृदय को ठेस नहीं पहुंचाई है। क्या हम उन्हें वैसे ही समझ पा रहे हैं जैसे बचपन से ही वे हमें समझते आए हैं? क्या हम उनकी उंगली पकड़कर उनका सहारा बन पा रहे हैं जब भी उन्हें इसकी जरूरत पड़ी?
. अगर हां, तो सच में हर दिन फादर्स डे है, वरना यह सिर्फ दिखावा ही है। 


पिता एक घर के छत के समान है। एक पिता का सारा जीवन अपने बच्चो की ख़ुशी के लिए ही समर्पित होता है। तो मै कल का अदना सा उनका एक बेटा ,अपने पिता पर क्या लिख सकता हूं? 

जबकि मैं दुनिया में आया भी नहीं था और वह अपनी जिंदगी के  कई मुकाम पार कर चुके थे जिसका मुझे कोई इल्म  तक नही।

लिखने का शौक  है और मैं इसलिए ही लिखा करता हूं, शब्दो में जन्म देने वाले पिता को समाहित कर पाना मेरे बस की बात नही... एक तरह से यह कह सकता हूं कि जो खुद शब्द, अक्षर, स्याही हो --------उनके लिए क्या लिखा जा सकता है? माँ से नाता तो मेरे जनम के साथ गर्भ से ही जुड़ा था पर पापा को तो मैंने दुनिया में आने के बाद जाना 


जिसके  हाथ की लकीरें घिस  गयी अपने बच्चों की किस्मतें बनाते-बनाते
उसी पिता की आंखों में सजे सितारों जैसे  चमकने वाले आंसू , कितने ही लोगों ने देखे होंगे , बेशक यहाँ इस महफ़िल में हम सब माँ बाप , दादा दादी , नाना , नानी के किरदारों को जी रहे है परन्तु यह भी तो सच है के हम भी जब बच्चे थे और अपनी ममी पापा की ऊँगली पकड़ के चढ़ते हुए जिंदगी में अब इतना सफर कर चुके हैं और आने वाली पीढ़ी को अपने अनुभव और भावनाएं प्रेषित कर रहे हैं 

बस इतना ही लिख पा रहा हूं कि क्या लिखूं पिता के संघर्षों की कहानी नही लिख पाऊंगा, बिन पापा के सहारे माँ भी कहाँ मुझे इतना दुलार का समय दे पाती ? माँ भी तो सुरक्षित महसूस करती होगी  जब मेरे पापा का हाथ उसके सर पे था 

यह मार्मिक सफर लिखने की कोशिश भी किया ,तो वक्त कम पड़ जाएगा, लिख भी दिया यदि  पिता के संघर्षों की और माँ की कुर्बानी की कहानी  तो , सच कहता हूं वो एक खुद गीता रामायण सारिका ग्रन्थ बन जाएगा. कोई उसे बिना रोये पढ़ नहीं पायेगा 


जिस तरह फूल मुरझा कर कभी,  दोबारा नहीं खिलते, 
कितना भी कोई जतन करे , इस जनम में बिछड़े माँ बाप 
कभी भी  ,दोबारा नहीं मिलते,

उसी तरह हर बात पर, टोक कर, प्यारे से समझाने वाले,
हर छोटी बड़ी गलती पर, माफ़ करने वाले,
लाड प्यार से रखने वाले  माँ बाप फिर नहीं मिलते||

कदर करनी है तो बाप की तो  इसी जनम में अभी से कर लो ,वरना बहुत  पछतावा होगा , जब वो न होंगे और तुम्हारे पास होंगी सिर्फ उनकी रह रह कर आने वाली  यादें 
आंसुओं की तरह होते है माँ बाप , लुढ़क गए आँखों से इक बार तो ,
पल भर में बन के भाप , हवाओं में कहीं खो जाएंगे , कितना भी याद करो उन्हें तुम ,रो रो कर  , लौट कर  आपके जीवन में  फिर वो कभी नहीं आएंगे 









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  1. बरगद की गहरी छांव जैसे, मेरे पिता।
    जिंदगी की धूप में, घने साये जैसे मेरे पिता।
    धरा पर ईश्वर का रूप है, चुभती धूप में सहलाते,
    मेरे पिता।
    बच्चों संग मित्र बन खेलते, उनको उपहार दिला कर,
    खुशी देते।
    बच्चों यूं ही मुस्कुराओं की दुआ देते मेरे पिता।

    एक बेटी ने अपने पापा के बारे में यह कहा  

  2. बाबुल मोरे! मैं तेरे खेत में धान की पौध जैसी सींची गई,
  3. तुमने अपने पसीने से मुझे सजग रहकर बचाया,पढ़ाया ,
  4. नन्हीं कोंपलों की तरह , रोज रोज निहारा , बढ़ते पाया ।
  5. मेरी हर ख़ुशी के लिए खुद को हर बार झुकाया 
  6. फिर भी जैसे पानी में खड़े होकर किसान धन रोपता है , तुमने मुझे अपने खेत से निकाल  दूसरे खेत में रोपा,
  7. अपने सीने के टुकड़े को खुद से अलग कर , एक दुसरे अजनबी को सौंपा 
  8. फिर भी देखभाल की कि पानी का रेला मेरी नाजुक जड़ों को बहा न दे!
  9. मेरी खुशियां कोई मिटा न दे 
  10. आज मैं मजबूती से पैर जमाए अपने घर में लहलाती फसल-सी हूँ! वैसी ही शिद्दत से देखभाल करती हूँ अपने परिवार की जैसी पापा आप हमारी किया करते थे 
  11. लेकिन मैं आज तक नहीं भूली तुम्हारी पीठ पर पड़ती सर्दी, सुबह सुबह सबसे पहले उठ कर काम पे चले जाना 
  12. गर्मी, हो या तुम्हारे पैरों की गलन वाली बरसात! तुमने पापा कभी कोई दिन आराम  नहीं किया क्योंकि हम सब की परवरिश तुम्हारे कंधो पे थी 
  13. मेरे पापा मेरा गर्व है के तुम्हारी बिटिया हूँ जो तुम्हारा गौरव को सहेजने को ही अपना गौरव समझती है , है, बाबुल मोरे। तुम जहाँ भी हो अपनी दिव्य दृष्टि हम पे बनायें रखना 





सपनों को पूरा करने में लगने वाली जान है इसी से तो माँ और बच्चों की पहचान है।

पिता ज़मीर है पिता जागीर है जिसके पास ये है वह सबसे अमीर है।



उसकी रगों में हिम्मत का एक दरिया सा बहता है।

कितनी भी परेशानियां और मुसीबतें पड़ती हों उस पर
हंसा कर झेल जाता है ‘पिता’ किसी से कुछ न कहता है।

तोतली जुबान से निकला पहला शब्द उसे सारे जहाँ की खुशियाँ दे जाता है
बच्चों में ही उसे नजर आती है जिंदगी अपनी उनके लिए तो पिता अपनी जिंदगी दे जाता है।

**1**

पिता का हाथ थामे कुछ यूं बेफिक्र हो जाते हैं

दुनिया हमारी मुट्ठी में है,

यही हौसला पाते हैं !

कभी मीठा तो कभी कड़वा लगता है जिनका साया

लेकिन याद रहे कि जीवन धूप में बस

यही तो है एक ठंडी छाया !

जताता कभी नहीं जो प्यार और दुलार कभी कहकर

दूर से ही मुस्कुराता रहता वो बस

मन ही मन कुछ सोचकर!

मांवां ठंडियां छांवा कहता ये संसार सब से

मां रूपी वृक्ष को सींचता

वही तो है मौन रहकर न जाने कब से !

पिता वो आसमान है जो हर नन्हे परिंदे के हौसलों की उड़ान है !

वृक्ष भले कितने ही बड़े बन जाएं हम !

सूखने पर जीवन फिर इन्हीं जड़ों से ही पाएंगे हम !

इसलिए सींचते रहना सदा इन्हें अपने निश्छल प्यार से

वरना एक दिन खोकर इन्हे अकेले फंस जाओगे

जीवन की मझधार में !

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चट्टानों सी हिम्मत और जज्बातों का तुफान लिए चलता है,
पूरा करने की जिद से ‘पिता’ दिल में बच्चों के अरमान लिए चलता है।

बिना उसके न इक पल भी गंवारा है, पिता ही साथी है, पिता ही सहारा है।
न मजबूरियाँ रोक सकीं न मुसीबतें ही रोक सकीं, आ गया ‘पिता’ जो बच्चों ने याद किया, उसे तो मीलों की दूरी भी न रोक सकी।

न रात दिखाई देती है न दिन दिखाई देते हैं,
‘पिता’ को तो बस परिवार के हालात दिखाई देते हैं।

परिवार के चेहरे पे ये जो मुस्कान हंसती है,
‘पिता’ ही है जिसमें सबकी जान बस्ती है।

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हर दुःख हर दर्द को वो हंस कर झेल जाता है,
बच्चों पर मुसीबत आती है तो पितामौत से भी खेल जाता है।

कमर झुक जाती है बुढापे में उसकी सारी जवानी जिम्मेवारियों का बोझ ढोकर
खुशियों की ईमारत ड़ी कर देता है ‘पिता’ अपने लिए बुने हुए सपनों को खो कर।

बेमतलब सी इस दुनिया में वो ही हमारी शान है,
किसी शख्स के वजूद की ‘पिता’ही पहली पहचान है।

बिता देता है एक उम्र औलाद की हर आरजू पूरी करने में
उसी ‘पिता’ के कई सपने बुढापे में लावारिस हो जाते हैं।

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बच्चों के भविष्य की चिंता करें,

उन्हें पिता कहा जाता है ।

अपने शरीर की तकलीफों को ना बताएं,

उन्हें पिता कहा जाता है।

घर मां चलाती है ,लेकिन जो घर बनाए ,

उन्हें पिता कहा जाता है ।

समाज एवं रिश्ते में सामंजस्य स्थापित करें ,

उन्हें पिता कहा जाता है ।

कंधे पर मेला दिखाएं ,

उन्हें पिता कहा जाता है ।

जो जीवन के सिद्धांतों को बताएं ,

उन्हें पिता कहा जाता है।

जो दुनिया से जाने के बाद हमेशा याद आते हैं ,

उन्हें पिता कहा जाता है।