और चांदनी थोड़ी सी अपने मेहबूब के ख़ूबसूरती के लिए
देख चाँद के गालों पे पड़े , गहरे पाताल नुमा गड्ढों को
खफा मत होना प्रिय आज से आपकी तुलना
चाँद की बजाय सिर्फ उसकी रौशनी से करेंगे
पर दिल तो बड़ा मायूस है तब से , सारा गुड़ गोबर हो गया
लेकिन सच बताएं वैसे हम भीतर से कुछ कुछ खुश भी हैं ,
बेवकूफ नहीं बना पायेगा
लेकिन ऐ ज़िंदगी....!अपनी जिद्द में
चंदा मामा की कहानियों से बच्चों का दिल भी गुलजार रहता था
दादू अब और गप मत लड़ाओ ,सब जान गए है हम ,
वैज्ञानको की जिद्द थी चंद्रयान वहां गया भी तो
कितने डर डर के ? उतरने का खौफ्फ़ इतना के
एक मामा भांजे का रिश्ता था वह भी हमसे छीन लिया
मुश्किलों के सदा ,हल तुमने दिया है आगे भी देना दाता
कहीं इस नई दौड़ में हम भटक कर , थक कर टूट न जाएँ ...!
पहुँच तो गए हैं हम वहां ,अब थोड़ी और जिद्द दिखानी होगी ,
जिस चाँद पे रख दिया है पाँव हमने , हिम्मत भी दिखानी होगी
अब जल्दी से वहां बच्चों की असली ननिहाल बसानी होगी
एक नए चाँद और उसकी चांदनी को खोज लाएं
दुआ देता है दिल से ,मेरा दिल सबको
इस नए आगाज़ में , मिले नया आज
और मिले बेहतर कल सबको !!!
के न मालूम कल क्या हो जाए ? कोई एलियन या कुछ और ?
अभी अभी देखा दुनिया में तबाही का मंजर ,
जहाँ कभी बरसात भी ,होती न थी
मक्का मदीना में भी आई प्रलह को ,
शिमला में पहाड़ो का यूँ फिसल कर दरकना
भव्य इमारतों का पल में जमींदोज़ होना
चाँद की चांदनी खोजने जो निकले थे,
अपनी जिद्द में न जाने क्या क्या ,
इस धरती पे हम खोने लगे हैं
"जीवन"शतरंज के"खेल"भी एक जिद्द की तरह है..!
और..🤞
यह"खेल"हम"ईश्वर"के साथ खेल रहे है..!!
"हमारी"हर"चाल"के बाद..!
"अगली"चाल"वह"चलता है.!!
"हमारी"चाल हमारी"पसंद"कहलाती है..,!
और..👌
"उसकी"चाल परिणाम"कहलाती है..!!
मानवता का कोई नुक्सान भी न हो , और पर्दा गिरने के बाद भी
तालियां खूब बजती रहे
एक बड़े ज्ञान की बात भी सुनलो ,
ज्ञानी मित्र ना राखिये, वो भाषण देते झाड़,
राई को परबत करें,तिल को करते ताड़ !
मित्र तो ऐसा चाहिये,जिसकी जिद्द से
चिन्ता भी जाए हार
लड़ना झगड़ना काहे को ,जब देखे दुख यार का,
कुछ लोग लड़ें धन के नाम पर
कुछ लड़ें जाति के नाम
सिर्फ पति पत्नी ही हमेशा लड़े ,निष्काम
जो न देखें कोई धर्म न देखे कोई काम
होके सिर्फ अपनी जिद्द के गुलाम
और...🤞
कुछ"खो"देना"हार"नही है..!!
केवल"समय"का"प्रभाव"है..!
और..👌
*"परिवर्तन"तो समय का" स्वाभाव है
कहीं मिलेगी जिंदगी में चांदनी सी प्रशंसा तो,
कहीं प्राकृतिक नाराजगियों का बहाव मिलेगा l
कहीं मिलेगी सच्चे मन से दुआ तो,
कहीं भावनाओं में दुर्भाव मिलेगा
तू चलाचल राही अपने कर्मपथ पे, अपनी ही धुन में
जैसा तेरा भाव ,वैसा प्रभाव मिलेगा।
चाँद पे पहुंचने की जिद्द ने किया कमाल है
सफलता भी मिली तो जिद्द से
जो "प्रेरित और उत्साहित" होकर...
उसे पाने के लिए दिन - रात
अपने कार्य में जुटे रहते हैं...!!!सफलता भी वहीँ है
मिलकर बैठ गये मजलिस में जुगनू सारे ;
मुद्दा था हमारी फीकीं पड़ी चमक कैसे वापिस पाई जाये ?
अब तो चांदनी भी फीकी हो गई है चंदरयाण के उतरने से
गोया ऐलान पास हुआ क्यों ना सूरज को ही बदल दिया जाये ?
"दुनिया"का"सबसे"अच्छा"तोहफा" वक्त है..!
क्योंकि..👍 इसमें किसी की जिद्द नहीं चलती
जब"आप"किसी को अपना"वक्त"देते है,
तब..👌
आप"उसे"अपनी"जिंदगी"का वह "पल"देते है,
जो"कभी"भी"लौटकर"नही आता..!!
झूठ"कहते"है लोग की..!
"संगत"का"असर"होता है..!!
*"आज"तक.
मैंने तो पाया है के
ना"काॅटों"को"महकने"का"सलीका"आया है..!
और...👌
ना"ही फुलो"को"चुभना"आया है..!!
मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी
सिर्फ तुम ही क्यों ,आते नहीं ?
कभी आ भी जाना ,बस वैसे ही जैसे
परिंदे आते हैं आंगन में , रात को आ जाती है चांदनी
या अचानक आ जाता है
कोई झोंका ठंडी हवा का ,जैसे कभी आती है सुगंध
पड़ोसंन की रसोई से......स्वादिष्ट व्यजनों की
मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी
सिर्फ तुम ही क्यों ,आते नहीं ?
आना जाना मासूमीयत से ,जैसे बच्चा आ जाता है
मेरे बगीचे में गेंद लेने ,या आती है गिलहरी पूरे
हक़ से मुंडेर पर, ताकती है मेरी रसोई में
के आज क्या क्या बना है ? ऐसे ही तुम भी कभी झांको हमारी खिड़की से
मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी
सिर्फ तुम ही क्यों ,आते नहीं ?
जब आओ तो दरवाजे ,पर घंटी मत बजाना
बेतकुलफ पुकारना ,मुझे वही पुराना नाम लेकर,
अब मैं वकील नहीं , न ही तुम कलेक्टर
वो एहम वो बहम अपनी जवानी की जिद्द का
वो सारा सामान वहीँ छोड़ के आना
मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी
सिर्फ तुम ही क्यों ,आते नहीं ?
हाँ , लेकिन अपना पूरा समय साथ ले आना
फिर अपुन दोनों के समय को जोड़,
छल कपट अहंकार जिद्द को छोड़
बनाएंगे एक प्यारा सा झूला
अतीत और भविष्य के बीच झूलता हुआ, चांदनी रात में
उस झूले पर जब हम खूब बतियाएंगे
तो देखना क्या क्या खोया हुआ वापिस पा जाएंगे
मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी
सिर्फ तुम ही क्यों ,आते नहीं ?
और जब लौटो तो थोड़ा ,मुझे भी ले जाना साथ
थोड़ा खुद को छोड़े जाना मेरे पास
एक बहाना तो होगा ,फिर वापस आने के लिए
मिल बैठेंगे सुखद चांदनी में एक बार फिर से ,
मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी
सिर्फ तुम ही क्यों ,आते नहीं ?
"मोतियों"की"तो आदत"है"बिखर"जाने की..!
ये तो बस"धागे"की"भी ज़िद"है कि,🤞
सबको"पिरोये"रखना है..!! जब तक टूट न जाए
"माला"की"तारीफ"तो सभी करते हैं,
क्योंकि..👌
माला में पिरोया हुआ " मोती"सबको"दिखाई"देता है..!
"काबिले"तारीफ़ तो"धागा"हैं जनाब,
"जिसने"सबको"जोड़"के रखा है .!!👍 लेकिन दिखाई नहीं देता
यही जिद्द बनी रहे इन धागो की , माला के मोती भी यूँ ही जुड़े रहे, खुद भी कभी न हारें , गले का हार जरूर बने रहे