, हजार्रों तरहi के ये होते है आंसू , कभी मिलने पे और,
कभी बिछडने ,के , गम पे रोते हैं आंसू
अगर दिल हो घायल , तो भी रोते हैं आंसू ,
ख़ुशी में भी आंखे , भिगोते है आंसू .
जिनेह जान सकता, नहीं यह जमाना
मैं खुश हूँ मेरे आंसूं औं पे न जाना ,
वोह तो कहते है , मुझको .
दीवाना ,दीवाना ,दीवाना
What Others Are Doing is None Of My Business, I Am Focusing Only on What Can Be Done To Make My Life Useful And Purpose Full. I wonder if it is possible to always be in good happy mood even if every thing around you is NOT OF YOUR LIKING , except when you are deaf , dumb and blind all at the same time.
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Sunday, September 12, 2010
Alone in the end
Friday, September 10, 2010
JEEVAN KI UDAAN !
सारी जिंदगी जो मुझ से दूर भागते रहे ,
फूटी आँख भी जिनेह हम भाते न थे
दुश्मनी वोह अपनी छुपा न सके ,
मरने पे मेरे , कन्धा देने , वोह सबसे आगे थे
1) Who is helping us Don't forget them
2) Who is loving us, Don't hate them
3) Who is Believing us, Don't betray them
4) Live life to express it AND not to impress
5) Don't strive to make our presence noticed, just try making our absence felt.
Swami Ji was A Great thinker & Remember his last advice:
Pay no attention to those who only Talk behind our Back, it simply means that We are Two Steps Ahead
5) Don't strive to make our presence noticed, just try making our absence felt.
Swami Ji was A Great thinker & Remember his last advice:
Pay no attention to those who only Talk behind our Back, it simply means that We are Two Steps Ahead
तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है,
और तू मेरे गांव को गँवार कहता है //
ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है //
तू चुल्लू भर पानी को भी वाटर पार्क कहता है //
थक गया है हर शख़्स काम करते करते //
तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है।
गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास !!
तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है //
मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं //
तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है //
जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा,
तू उन माँ बाप को अब भार कहता है //
वो मिलने आते थे तो कलेजा साथ लाते थे,
तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है //
बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें //
तु अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है //
बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में //
पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है //
अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं //
तू इस नये दौर को संस्कार कहता है ........//
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻 ✍🏻
एक तौलिया से पूरा घर नहाता था।
दूध का नम्बर बारी-बारी आता था।
छोटा माँ के पास सो कर इठलाता था।
पिताजी से मार का डर सबको सताता था।
बुआ के आने से माहौल शान्त हो जाता था।
पूड़ी खीर से पूरा घर रविवार व् त्यौहार मनाता था।
बड़े भाई के कपड़े छोटे होने का इन्तजार रहता था।
स्कूल मे बड़े भाई की ताकत से छोटा रौब जमाता था।
बहन-भाई के प्यार का सबसे बड़ा नाता था।
धन का महत्व कभी कोई सोच भी न पाता था।
बड़े का बस्ता किताबें साईकिल कपड़े खिलोने पेन्सिल स्लेट स्टाईल चप्पल सब से छोटे का नाता था।
मामा-मामी नाना-नानी पर हक जताता था।
एक छोटी सी सन्दुक को अपनी जान से ज्यादा प्यारी तिजोरी बताता था।
~ अब ~
तौलिया अलग हुआ, दूध अधिक हुआ,
माँ तरसने लगी, पिता जी डरने लगे,
बुआ से कट गये, खीर की जगह पिज्जा बर्गर मोमो आ गये,
कपड़े भी व्यक्तिगत हो गये, भाईयो से दूर हो गये,
बहन से प्रेम कम हो गया,
धन प्रमुख हो गया,अब सब नया चाहिये,
नाना आदि औपचारिक हो गये।
बटुऐ में नोट हो गये।
कई भाषायें तो सीखे मगर संस्कार भूल गये।
बहुत पाया मगर काफी कुछ खो गये।
रिश्तो के अर्थ बदल गये,
हम जीते तो लगते है
पर संवेदनहीन हो गये।
कृपया सोचें ,
कहां थे, कहां पहुँच गये।🤔❓
Photos,vacation
My dying relations with others
Thursday, September 9, 2010
JEEVAN KI UDAAN !
जिंदगी है 'छोटी सी, हर हाल में खुश रहो ...
चाहे हो खूसट बास का आफिस , या हो आपका घर ?
खुश रहो, घर हो या बाहर,सदा तुम खुश रहो ....
आज पनीर नही है', तो दाल खाके ही खुश रहो ...
. आज जिम को जाना महंगा है तो हाय दोस्त
पैदल सैर करके ही खुश रहो ....
आज दोस्तों का साथ भी गर नही,
तो अकेले बैठ कर भी खुश रहो .... आज कोई सागर भी गर दिल न बहलाए तो
बेखुदी में भी करार न आये अगर ........
तो मेरे भाई फेस बुक पर खुद की सूरत ,
खुद ही देख कर हमेशा खुश रहो .......
(किसी ने क्या खूब कहा है :-)-
जीनी है जिंदगी तो जरुरत के मुताबिक जियो ,
ख्वैशों के आधीन नहीं ?
जरुरतें तो एक फकीर की भी पूरी हो जाती है ,लेकिन ,
ख्वायेंशेय तो एक बादशाह की भी अधूरी रह जाती हैं ?
(किसी ने क्या खूब कहा है :-)-
जीनी है जिंदगी तो जरुरत के मुताबिक जियो ,
ख्वैशों के आधीन नहीं ?
जरुरतें तो एक फकीर की भी पूरी हो जाती है ,लेकिन ,
ख्वायेंशेय तो एक बादशाह की भी अधूरी रह जाती हैं ?
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