Sunday, August 2, 2020

------ADABI SANGAM --MEET ON --JULY 25TH ,2020-- TOPIC:- -FREEDOM -- आजादी ----सवंत्रता --------------------------------

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "
आजादी --सवंत्रता ----------------------



अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ गवाँ  सकते नहीं , सर कटा सकते है लेकिन सर झुका सकते नहीं।

 खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी ,यह किसको याद नहीं होगा ?

 मेरा रंग दे बसंती चोला माय वाले ,भगतसिंह, राजगुरु ,चंदरशेखर जिनहे  आज़ादी मांगने पर इसी देश के गद्दारों द्वारा अंग्रेजो के साथ मिलकर मरवा दिया गया  

, गोवलकर , सावरकर , गुरुगोबिंद सिंह , रंजीत सिंह , हरी सिंह नलवा यह सब लोग अंग्रेजो और मुगलों से ही तो लड़ते रहे फिर भी देश आज़ाद नहीं हो पाया था क्योंकि भारत में गद्दारों की न पहले न अब  कमी है।  देश भगत होने से ज्यादा लोग धन भक्त हो गए है और पैसे के लिए कुछ भी खोने को तैयार है चाहे आज़ादी ही क्यों न हो ?

ऐसी तीव्र भावना होती थी सबके मन में कभी  भारत की आज़ादी के लिए , हमने  देश में उफान होते देखे सुने हैं , यह किस बात से आज़ादी की मांग थी ? यह आज़ादी थी गुलामी से , अगर कोई देश अपने सैंन्य बल से किसी दुसरे देश पे कब्ज़ा कर ले, जैसे की भारत पे मुगलों और अंग्रेजों ने किया , और आप के ऊपर अपना कानून लागू करके आपको कोई भी काम न करने दे जो आप आज तक करते चले आ रहे थे , आपको लगने लगा आप खुदमुख्तियार नहीं बल्कि किसी के गुलाम हो चुके है , आपके सारे अधिकार  किसी ने छीन लिए है ?यही थी गुलामी 

थोड़ी गफलत तो हुई होगी  हमारे पूर्वजों से, किसी ने जरूर गद्दारी की होगी इस मुल्क से , जरूर कोई भीतर घाती रहा होगा जिसने हमारी मासूमियत को किसी के हाथ बेच दिया होगा ,और हमारी आज़ादी का सौदा किया होगा ? तभी तो हमे कभी मुगलों के हाथों कभी , इंग्लैंड और यूरोप की सेना की गुलामी झेलनी पड़ी., कुछ लोगो ने मुकाबला तो जरूर किया पर अंतत भितरघात से सब पराजित हो गए , कुछ तो लड़ते लड़ते शहीद हो गए , कुछ गुलाम बना लिए गए ,एक हज़ार साल का  हमारा गुलामी का  इतिहास  तो हमे मालूम है जो हम आज तक पढ़ते आ रहे है। 

आजादी के संग्राम तो पूरी दुनिया में हुए है और होते रहेंगे ,आज़ादी तो किसी भी राजा की तख्त  के पलटने और वयवस्था बदल  जाने से ही खत्म मान ली  जाती है , भारत की रियासते आपस में इतनी जलन रखती थी की अपने दुश्मनो से भी हाथ मिला कर एक दुसरे को परास्त  करने में लगी रही। इसी आपसी रंजिश का नतीजा यह हुआ की ,धीरे धीरे पूरी भारत की रियासते राजाओं से छिन गई और देश बाहरी आक्रांताओ का गुलाम हो गया। 

आजादी की कीमत तब मालूम हुई जब बाह्य देशों की सेनाओं ने भारत में अपना राज स्थापित करके राज्योँ  से लगान वसूलना शुरू कर दिया और देश गरीब होता चला गया , पूरी धन सम्पदा पहले इस्लामिक आक्रमणों से और बाद में अंग्रेजों के आने पे देश लूट लिया गया।

 हज़ार साल तक भारत देश जाग न सका  और घुट घुट के गरीबी में मुगलों और अंग्रेजों की गुलामी सहता  रहा। दो आक्रांताओ के बीच भी , मुगल और अंग्रेज भी आपस में वर्चस्व की लड़ाई लड़ते लड़ते क्षीण हो गए और रही सही कसर विश्व युद्ध ने पूरी कर दी , 

अंग्रेज सेना भी कमजोर होकर देश की कमान यहाँ के नेताओं को सौंप के पतली गली से निकल लिए। अब इस पर भी बहुत बहस चलती है की यह आज़ादी किसने  दिलवाई ? गाँधी ने , नेहरू ने या नेताजी सुभाष बोस ने ?या अंग्रेज थक हार कर खुद ही भाग गए ? 

कुछ ऐसा ही पूरी दुनिया की कमजोर रियासतों के साथ हुआ , अफ्रीका में भी फ्रांस और ब्रिटैन ने लोगों को मार काट कर अपना कब्ज़ा किया , चीन को जापान ने , कोलंबस जब भारत की खोज करते करते गलती से साउथ अमेरिका में आ पहुंचा तो वह रेड इंडियंस को देख उसे इंडिया का गुमान हुआ लेकिन जब वास्कोडिगामा पुर्तगाल से भारत के गोवा आ पहुँच तो सब को मालूम हुआ की जहाँ कोलंबस  पहुंचा है वह अमेरिका था , इस तरह अमेरिका को भी ब्रिटिश साम्राज्य के आधीन कुछ समय तक बंधक बन रहना पड़ा। 

इंसान तो सब जगह एक ही तरह के है कोई काला है तो कोई गोरा , पर फितरत सबकी एक ही है सुपरपावर बनके सब पे चौधराहट जमाना।  यहीं से शुरू होता है  आजादी और गुलामी का द्वन्द , पहले यूरोप और ब्रिटिश एम्पायर ने पूरी दुनिया को गुलाम बनाया और आपस में लड़ते भी रहे। 

आज की गुलामी कुछ भिन्न हो गई है ,वह है आर्थिक गुलामी ,मानसिक गुलामी , जोरू की गुलामी , जब हम जागरूक नहीं रहते हमारी जिंदगी में कुछ ऐसे तत्व मौका देख अपने पैसे या गुंडई के बल पे हमे दबाने लगते है , ऐसा नेपोटिस्म हमे अपनी हर संस्थाओं में मिलता है , फिल्म इंडस्ट्री हो, आर्मी , पुलिस, या कोई और सब जगह यही कश्मकश दिखाई देती है। 

गुलाम होना आसान है ,पर वक्त लगता है गुलामी से लड़ने में और फिर से आज़ाद होने में , तमाम इतिहास भरे पड़े हैं ऐसी आज़ादी के संग्रामों की जिसे लड़ने में कितने ही लोगो ने अपने प्राण त्याग दिए , परिवार खो दिए ,

आज दुनिया पूरी तरह से आज़ाद है लोगो की अपनी सरकार चुनी जाती है कोई उन्हें दमन नहीं करता , कुछ देशों को छोड़ कर ,परन्तु जब हर चीज़ एक हद से गुजर जाती है तो वही आज़ादी फिर एक अभिशाप बन जाती है। काल का चक्र आज  एक बार फिर वापिस घूम गया है , लोग इस बेशुमार आज़ादी को भी गुलामी कहने लगे है। 

आज वह आज़ादी कहाँ है ? वही देश जो खुद आज़ादी की कोई अहमियत नहीं समझते पर अपने कमाए दौलत से शांति से चल रही सरकारों को अपने पैसों और व्यपार के बल पर अस्थिर करने में लगे है , चीन जो कभी भी आज़ादी को अपने यहाँ लागू नहीं होने देता पर भारत अमेरिका जैसी प्रजातंत्र को हमेशा तोड़ने में लगा रहता है। 

ग्लोबल विलेज की धारणा पाले हुए हमारे बुद्धि जीवी , सब अपनी अपनी ही बात तो करते है , अपनी नौकरी , अपनी परिवार की ,अपनी सवछंदता की बात करते है दूसरों की आज़ादी की कोई कीमत नहीं समझते , जो उनके जेब में पैसा डाल दे उसी की धुन पर नाचने लगते है उनके लिए देश की आज़ादी सिर्फ पैसा है। 

आजादी की अगर लिस्ट बनाने लगे तो लोगों की अक्ल ही जवब दे जाएगी 

1 . जीने की आज़ादी तो मान लिया  की हमारा मौलिक अधिकार है , बिन जीवन तो कुछ होता ही नहीं ।  लोग अपनी मर्जी से अपनी तरह से जीना चाहते है ,
 कुछ भी करना या न करना , बोलना या सुनना , खाना पीना पहनना या बिलकुल ही नंगा रहना , 

शारीरक आजादी :-यह भी आज कल काफी देखने को मिल रहा है के लड़के लड़किया निर्वस्तर हो कर नंगे रहने की आज़ादी मांग रही है , सड़कों पे लम्बे लम्बे जलूस निकल रहे है इस प्रकार की आज़ादी के लिए ,
अब करलो बात यह आज़ादी है या बुद्धि  का दिवालिया पन ?  

मर्जी से शादी विवाह ,मर्जी से तलाक , मर्जी से लिव इन में रहना संस्कारों और मर्य्यादाओं को धता बताना ही आज की पीढ़ी आज़ादी का नाम दे रही है , अपने धर्म का पालन और प्रचार करके समाज को तोड़ फोड़ देना यह कौन सी आज़ादी है ? पत्नी  अपने पति से और पति अपनी पत्नी से आज़ादी की बात करता है, नौकर अपने मालिक से और ऑफिस में बॉस से आज़ादी ?मतलब हम आज़ाद होकर भी एक प्रकार से मानसिक गुलाम ही है न ? 

आज़ादी बोलने की जरूर होती है लेकिन भाषा का एक दायरा भी होता है जिसे लांघने पर वह आपको मिली आज़ादी पर संकट ला सकता है। आप जितना भी हँसिये आपको आज़ादी है पर आप किसी पर इसी लिए हंस रहे है की आपकी सवतंत्रता कुछ भी बोलने की है तो कुछ नियम कानून बनाये जाते है  जिसमे आपको भी दुसरे की सवतंत्रता का भी उतना ही ध्यान रखना पड़ता हैजितना आप अपनी का रखते है , आज सब इसका उलंघन करने में अपनी सवतंत्रता की दुहाई देने में लगे है। उनके ख्याल में ,आज़ादी माने सिर्फ उस कुदरत के राज में अपनी जिंदगी जीना ,

 इंसान जब किसी और इंसान के बनाये नियमो में बाँध दिया जाता है तो उसे अपनी मर्जी से जीना और हंसना भी महंगा लगने लगता है , न जाने कौन सी बात पे उस पर कौन सा नियम लगा कर दण्डित कर दिया जाए। 

आज की जनरेशन को, जो आजादी हमे चाहिए थी उस  आज़ादी की बिलकुल समझ नहीं रही , वह सिर्फ भोगविलास की जिंदगी को ही अपनी आज़ादी समझते है , उनपर कोई भी राज करे उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता , उन्हें जो भी लालच देता है उसी को अपना राजा चुन लेते है ? यह प्रजातंत्र भी आज आजादी में एक बहुत बड़ा पाखण्ड का व्यपार बन चूका है , 

लोग बड़ी आसानी से अपने मताधिकार को कुछ लालच में बेच कर उसको वोट दे डालते है जो राज करने के काबिल ही नहीं होता और लोगों का किसी भी हाल में भला नहीं कर पाता । उसे ही अपना राजा चुन कर फिर उसके गुलाम हो जाते है , फिर भी संतुष्ट नहीं होते उल जलूल देश के खिलाफ आंदोलन चला कर फिर अज़्ज़ादी की मांग करने लगते है ?

उनकी देश के प्रति कुछ भी लगाव नहीं है इन्ही लोगो द्वारा आजादी का दुरूपयोग भी बहुत होता है , वह फ्रीडम का मतलब अपने ही तरीके से  समझते है। 

जो उस आज़ादी को सुरक्षित रखने की भी एक कीमत होती है वह हैं फ़र्ज़ , कर्तव्य , ड्यूटी  जिसे आज के लिबरल बिलकुल ही नहीं समझना चाहते ,किसी को गाली दे देना किसी के घर में घुस कर लूट मार करना क्या आज़ादी हो सकती है ? ऐसा आज कल दुनिया के बहुत सारे देशों में सिर्फ आज़ादी के नाम पर प्रोयोजित लूटपाट , आगजनी , खून खराबा , बलात्कार , सब किया जा रहा है जिससे अब तो  अमेरिका और भारत भी जूझ रहे है। 

किसी की आज़ादी की कीमत दूसरे की जान जोखिम से भरी ड्यूटी होती है , लोग अपने घरों में  बाजारों में माल्स में अपनी मर्जी से घुमते हैं शॉपिंग करते है जेब में अपनी दौलत लिए वह खरीदने निकलते है --- 

रस्ते में उन्हें चोर डकैत लूट लेते है यह उनकी भी आज़ादी है जो भी करें जब भी करें , तब लोग अपनी आज़ादी की दुहाई देते हुए इसी पुलिस को कोसने लगते है , पुलिस पर जानलेवा हमले पूरी दुनिया में हो रहे है और लोग इसे अपनी अभिवक्ति की आज़ादी कहते है , किसी भी सड़क को ब्लॉक करके पूरी वेवस्था को चौपट कर देना क्या आज़ादी है ?
जब उनपे शासन द्वारा पुलिस कारवाही की जाती है तो फिर वह अपनी आज़ादी का रोना रोने लगते है और पुलिस और प्राशसन के खिलाफ हो जाते है , कितने ही पुलिस वाले इस तरह के दंगो में मार दिए जाते है जो बलवाइयों को कण्ट्रोल करने के लिए जाते है , कितनी ही सम्पति जला कर ख़ाक कर दी जाती है , तो क्या उनकी जीवन की आज़ादी कुछ लोगों की गुंडई ने नहीं छीनी ? 

आज़ादी की बड़ी भ्रामक सिथति आज के परिवेश में नज़र आती है , हमने पूरे अमेरिका में पुलिस के खिलाफ जलूस प्रदर्शन देखे जो की पुलिस को जड़ से ही खत्म कर देना चाहते है , पुलिस दंगाइयों पे कंट्रोल करे तो इनकी आज़ादी का हनन और पुलिस दिन रात अपने परिवार , पत्नी बच्चों को छोड़ कानून वव्यस्था के लिए अपनी जान भी दे देते है फिर भी यह आज़ादी मांगने वाले सिक्के के दुसरे पहलू को नहीं देखना समझना चाहते।

किसी से यह बात छुपी नहीं है आज़ादी बलिदान मांगती है , वह सिर्फ फौज का नहीं पूरी जनता का कर्तव्य होता है इस आजादी को संँभाल  के रखना। जनता की बेवक़ूफ़िओं से कुछ शातिर राजनीतिज्ञ फायदा उठा कर अपनी पकड़ मजबूत किये जा रहे है और ताकत के बल पर लोगो को साम  दंड भेद से अपने आधीन करने में लगे है , पूरी दुनिया कुछ धूर्त लोगो के आधीन होकर जी रही है और भूल गई है के आज़ादी काअसली  मतलब क्या था ?

आज सब जगह जनता  द्वारा चुनी सरकारों के राज में भी गुलामी का आभास होता है , गरीबी अशिक्षा से आजादी आज तक नहीं मिल पायी।

 वादे पे वादे हर उस वादे पे मारे गए लोग सीधे सादे , 
न लोग समझ सके न उनकी दिन ब दिन जिन्दा रहने की कश्मकश , पारिवारिक मजबूरी ने सब को बाँध दिया , 

राजा बदल गए पर गुलामी फिर भी न गई , कहने को लोग आज़ाद है पर उनसे पूछो वह कितने आबाद है ? किस किस चीज़ से आज़ाद है ? लालच , क्रोध , मोह ,माया , से बाहर  वो आ न सके और इन्ही चीज़ों के जाल में फंस कर फिर से गुलामी और आज़ादी के मकड़जाल में उलझकर उन्ही लोगों के हाथो बिक  गए ,जो  ख्वाब दिखा कर  फिर से अपना गुलाम बना लेना  चाहते थे।  





































 

Saturday, June 13, 2020

ADABI SANGAM ----------------MAY30th, 2020--------------- TOPIC---NO---------------- " बहारें "फिर भी आती है ----------

अदबी संगम। 

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-खिज़ाएं कितनी भी घिर जाएँ -------
-------बदल जाए अगर माली -- चमन होता नहीं खाली
-----------" बहारें "फिर भी आती है ----------
--- बहारें फिर भी आएँगी ----
 
जब इंसान हार जाता है ,अपने मुकदर से
डूब कर टूट जाता है ,ग़मों के समुन्द्र में
गमो की लाश से ,जब वोह बाहर आता है ,
थोड़ा सकून से मुस्कराता है याद कर वो तूफानी जवारें ,
समझ लो लौट आई हैं , जिंदगी में उसकी बहारें
 
बड़े फक्कर से किस्से सुनाता है ,
खिज़ाएं छा गई हैं ,तो छाने दो ,
जिंदगी नासाज हो गई है तो होने दो ,
न कोई साथी रहा है न ही कोई
, हमकदम तुम्हारा ?।
 
फिर है किसका गम ? सोचो
जाने वाले लौट कर आते नहीं , न ही गुजरा वक्त।
वक्त लौटे या न लौटे , हिम्मत रखोगे तो
"बहारें"लौट कर जरूर आती है
 
कितने ही रुसवा हुए थे खुदा से,
और खुद से भी हम ?हासिल कुछ न हुआ
जब हमें हमारे अपने,हमारे सामने ही
हमारी दुनिया वीरान कर छोड़ गए
फिर भी हम जिन्दा रहे ,उमीदे भी जिन्दा रही?
 
सुलगती रही एक आग हमारे भीतर ,
क्या सोच कर?
दिल हर वक्त हर पल बोलता था , मायूस न हो
वह वक्त भी न रहा , वक्त तो यह भी बदलेगा ,
जिसको जाना है वह तो जाएगा ही ,
 
मगर आती जाती बहारों को कौन रोकेगा ?
बहारें हमेशा आती रहीं हैं ,बहारें फिर भी आएँगी,
जिंदगी के दुःख सुख ऐसे ही मौसम हैं
जो बदलते ही रहते हैं ,
गर दुःख पतझड़ हैं तो ,सुख ,बसंत बहारें हैं
 
बदलाव का दूसरा नाम ही हैं।बहारें
विश्वास न हो तो आँख खोल कर देख लो।
अब बहारें कल से कुछ अलग सी दिखने लगी है ,
पक्षियों को पिंजरों में कैद करने वाले
 
खुद सिमट गए है चारदीवारी में
रोज मिलकर मस्ती करने वाले ,
आज बेचैन हैं परिंदों की आजादी पर
तपती गर्मी में झुलसते हैं इंसान और परिंदे भी ,
इंसान बेबस होकर पड गया है बिस्तर पर ,
 
अपनी बहारों की तलाश और इंतज़ार में
पक्षिओं के झुण्ड स्वछंद उड़ रहे बेखौफ होकर
कुछ वक्त पहले बर्फों में दब जो बिखर कर सूख गए थे
गर्मी में दमकने लगी हैं ,उन्हीं हरे हरे पेड़ों की बहारें ,
जंगल में मंगल होने लगा है , पेड़ो के ठूठ हरयाली में सजने लगे हैं
 
पक्षी भी अपने घरोंदे सजाने लगे है
बिजली की चमक , बादलों की गरज ,
याद दिला रही है इंसान को ,कि जो
बहारें आने वाली थी वोह बहारें अब आ चुकी हैं
 
जमीन पे बिछ चूका है , सब्ज हरे घास का कालीन ,
जंगलों में भी कुदरत ने बिछा दिए है सब्ज हरे बिछोने ,
हर जानवर और परिंदे के जीवन में बहार लौट आई है
हवाओं में भी घुली है बरसातों की बहारें ,
 
आई हैं बूँदें जमीन पे उत्तर कर देखने
खेतो में लहलहाती फसलों की बहारें
कोयल की कूक बता रही सब को जगा जगा के
मोर भी नाच रहा देख देख के कुदरत की बहारें
 
पि पि करके पपीहा भी बिगुल बजा रहा।
सब खुश है क्या मनुष्य क्या पखेरू
देख कुदरत की नई नई बहारें ,
बड़ा शोर है उस इंसान के घर में ,
 
लोग नाचे जा रहे बेतहाशा हैं
जश्न ही होगा कोई, शाय्यद
शादी विवाह का कोई मौका होगा ,
किसी की खुश्क वीरान जिंदगी में
किसी नई बहार का तौफा होगा ,
सजे हैं गुलाबी फूलों से वह आँगन भी ,
जो कभी वीरान थे
 
न आती गर उनकी किस्मत में बहारे ,
वीरान पड़े आंगन बन चुके शमशान थे
जिंदगी में जिनके है बहारें , वह ख़ुशी में नाच नाच कर
काटें है राते सारी
 
गम में जो होते हैं , उनकी राते रोती है ,होती है नींद पे भारी
दुःख में उनके सीने फड़कते है
आहें निकलती है आंसू भी टपकते है
ऐसे में जब --------
 
किसी के घर संसार में तशरीफ़ लाती हैं बहारें ,
जिंदगी के रंग ढंग बदलने लगते है
हुस्न बहक जाता है ,नए नए जलवे दिखाती है बहारें
परिवारों में किस किस तरह के गुल भी खिलाती हैं यही बहारें
 
हुस्न पे जो छाईं है तुम्हारे, इतनी हसीं कयामत
यह सब के नसीब में कहाँ ,
" उन्होंने मायूस होकर कहा"
गर्दिशों में लगता है आज इतर सारा जहाँ।
 
बहारें जो तुम्हारे जीवन में है सबके नसीब में कहाँ ?
मेहरबान है शायद तुम पर,वक्त की बहारें
हमने भी बोल दिया ,
अम्मा बहारें तो चारों तरफ बिखरी पड़ी है
जो चाहिए ले लो , यह तो मन का भरम है
 
जिसका मन सदा बहार हो उसे बहारों से क्या लेना ?
हमने भी अपने ज्ञान चक्षु खोल कर ज्ञान देना शुरू कर दिया ,
दोस्त मेरे -----
तमाम बहारों की मंडी सजी है इस दुनिया में ,
तुम्हारे मन की असली बहार छीनने को
आओ चुन लो '''------------
 
सब्जों की लहलाहट, खेतो बाग़ात की बहारें ,
तूफ़ान , ओले बारिश
कुदरत के कहर लील देते है यही बहारें
हरे भरे बाग़ फल फूलों से लदे यह खेत
 
आँधिया उडा देती हैं किसान की यही बहारें
बूंदों की झमझमा झम फुहारों की बहारें ,
बहा ले जाती है खेत खलिआनो और गरीब के
आशिआनो से तमाम जिंदगी की बहारें
 
किस किस का जिक्र करें किस किस का फ़िक्र
यहाँ हर बात के तमाशे , हर घाट की बहारें ,
टेलीविज़न पर परोसे गए विज्ञापन की बहारें ,
बेसिर पैर , झूठे सच्चे समाचारों की बहारें ,
 
इन बहारों की बाढ़ में कहीं दूर डूब गई हैं
मेरे सच्चे दिल की बहारें
सच्ची बहारें तो कुदरत के तोफे है ,
इंसानी बहारों के वजूद का क्या ?
 
आज हैं कल नहीं , कुदरत का विधान है
इंसान को कर के बेदखल ,
इंसान को ही कुछ देने को
बहारें फिर भी आती है.
बहारें हमेशा आएँगी

SAMEER NAGPAL & NEETIKA KAUSHAL NAGPAL AWAITING DAUGHTER *SWEET PEECHOO *



***"LIFE BEGINS HERE AGAIN"**





        * SAMEER NAGPAL & NEETIKA NAGPAL
              CELEBRATING BABY SHOWER * 
                            * Peech darling *
                   IS COMING IN JULY 2020
                                      

                                                      
 MAY 30th,2020
                                            
आज गोद भराई के शुभ अवसर पर। ..

                             दादी दादा की तरफ से एक प्यारभरी चिट्ठी _
                
                                    __पीच के नाम --



प्रिये सनी और नीतिका तुम्हे आने वाले सूखद पलों की बहुत बहुत शुभ कामनाएं :-
हमारे जीवन की एक यादगारऔर खुशगवार घडी फिर से आ गई है ,
बरसों से था इंतज़ार जिसका वोह खत्म होने को है, यह खबर आई है

हमारी बगिया के तीन खिले , फूलों को साथ देने ,ईश्वर ने और एक
लहलहाती नई कली नीतिका-समीर की गोद में खिलाई है।

हमारी परी के आने का ,खत्म बस अब इंतज़ार है .....
पीच ,मैं हूँ तेरे पापा की मम्मी ,लगती हूँ दादी तेरी ,
मेरे साथ बैठे हैं  दादा भी तेरे,खुशियों से सराबोर हैं ,

सब दीवाने ,उड़ कर आना चाहते है ,पास तेरे ,
 दिल से सब मजबूर है ,आ नहीं सकते मगर , 

दुनिया में परी हमारी जब आएगी ,सबको हंसाएगी 
रोते रोते भी कैसे खुश रहें ,यह सबको समझाएगी।

तू है परिवार की आशा ,हमारी किस्मत की कड़ी ,
और हमारे ख्वाबों की है, लाड़ली हुस्न परी

जल्दी से बस अब खत्म हमारा भी ,यह इंतज़ार हो जाए ,
तेरी मासूम हंसी पे हम सब निस्सार हो जाएँ
रब करे तेरे क़दमों से, हर तरफ ,गुलजार हो '''जाए

बहुत चाहा पीच के आने से पहले , हम भी सब मौजूद होंते ,
हमारे सामने ही वह हसीं लम्हेँ हकीकत का रूप लेते


पर ऐसा हो न पाया , गहरा जो गया है कोरोना का साया
कैद होकर रह गए है हम अपने जज्बातों के समुन्द्र में

WITH OUR BEST OF BLESSINGS 

दादा और दादी का बहुत बहुत प्यार
*