Sunday, March 1, 2020

माँ तेरा कोई सानी नहीं इस दुनिया में


             माँ तेरा कोई सानी  नहीं इस दुनिया में 


माँ तुझे याद करके मैं रो पड़ता हूँ , तेरी जितनी तारीफ़ करूँ मेरे शब्द खत्म हो जाते है ,पर जज्बात उतने ही बढ़ जाते है। 

.आज तु मेरे साथ नहीं , अरसा हुआ तुझे मुझ से दूर स्वर्ग में बस्ते हुए , तुझे अब शायद मेरी न कोई याद होगी न ही कोई जरूरत , पर मैं तो दिन रात तुझे याद करता हूँ और हमेशा तुझ से मिलने को तरसता हूँ , 

पर विधि का विधान है मैं लाख चाह कर भी तुझ से मिल नहीं सकता , मैं हमेशा तुझे सपनो में तो देखता हूँ पर तुझ से बात नहीं होती। 

क्योंकि मौत के आगोश में जब थक के सो जाती है किसी की माँ ?मौत के आगोश में जब थक के सो जाती है प्यारी सी माँ ,

तब कहीं जाकर इस जहाँ से दूर ,थोड़ा सा सकूँ पाती है माँ।
माँ कहती नहीं , मांगती भी नहीं ,अपने लिए कुछ भी ,अपने भगवान् से ,
हरदम बस अपने बच्चो के लिए दामन को फैलाये रहती है माँ।
पहले बच्चों को खिलाती हैअपने हाथों से बना कर , बड़े ही चैन और सकून से। बाद में जो भी बच जाए ख़ुशी ख़ुशी से बड़े ही शोक से खा लेती है माँ।

जब खिलोने की जिद में मचलता है उसके सीने का लाल , देर रात तक गरीबी और लाचारी पे अपनी। आंसू बहाते बहाते चुप चाप ,गीले ही सिरहाने पे सो जाती है माँ ,

नींद में भी हमेशा अपने भगवान् से अपने बच्चे को खुश देखने के लिए सामर्थ्य मांगती है माँ ,न जाने कितनी ही अनगिनित सर्द रातों को ऐसा भी हुआ है , पिला कर अपनीऔलाद को नसों का बचा खुचा दूध ,खाने को घर पे कुछ था ही नहीं , न जाने कितनी राते किसी को बताये बिना ,खाली पेट ही सो जाती है माँ।

याद तो करो उस बर्फीली रातों को , जब बच्चे ने गीला कर दिया था उसकी छाती को। बच्चा जग न जाए छाती से , गीले में ही सो जाती है माँ , माँ हमारी माँ

बेटा कितना भी बुरा हो , पर दूसरों के बच्चों से मुकाबला करते हुए ,
खुद के बेटे के गुण ही गिनाती है माँ। हम भी तो कितने खुदगर्ज है अपनी ही खुशियों में मस्त ,अक्सर माँ को भूल जाते है

जब मुसीबत के पहाड़ टूट पड़ते है हमारी जिंदगी में , तब याद आ जाती है माँ। इतनी रुसवाई बेरुखी झेल कर भी न कोई गिला , न कोई बद्दुआ देती  है माँ।

पछतावे का बदले का कोई दंश नहीं मन में , दूर हो जाती है ढलती बेदम उम्र की थकान। प्यार से घर में ब्याहकर जब दुल्हन ले आती है    माँ , 

क्या नियति है उस माँ की ,छीन लेती है अक्सर वही उसकी सकूने जिंदगी, प्यार से घर में जिसको ले आती है माँ।
प्यार कहते हैं किसे और ममता होती  चीज़ है क्या , यह कोई उन बच्चों से पूछे जिनकी मर जाती है माँ।

माँ का हक़ जिंदगी भर अदा हो ही नहीं सकता , मिलते हैं हम साल भर में या कभी हफ्ते दो हफ्ते में ,
शुक्रिया हो ही नहीं सकता कभी माँ का अदा , मौत के आगोश में जब थक के सो जाती है माँ ,
मरते मरते भी ,मरते मरते भी
मरते मरते भी दुआ जीने की दे जाती है माँ


ख़ूबसूरती ऐसी भी नहीं हो ,जो किसी को समझ भी न आये , August 4, 2020



ख़ूबसूरती भी क्या नेमत है उस खुदा की , 
जिसे मिले वह भी परेशान जिसे न मिले वह भी ?




यूं अपने गम की हर  जगह नुमाइश ना कर , 

अपने नसीब कीभी रोज आजमाइश न कर 
जो तेरा है तेरे पास खुद चल के आएगा , 
हर रोज उसे पाने की खवाइश भी न कर ,
देखता जा , तकदीर खुद ही बदल जाएगी 
अपने आप इक दिन , 
मुस्कराना सीख ले वजह की तलाश ना कर 

जलने और जलाने का ....
बस इतना सा फलसफा है!!!!!!

         🌹  “साहिब”  🌹

फिक्र में होते है तो,खुद जलते हैं......

बेफ़िक्र होते हैं तो दुनिया जलती है!

ADABI SANGAM [ 483 ]... MANJIL..... मंज़िल ......destination ...., मुकाम .....,गंतव्य ......, लक्ष्य /...........................................................[ FEBRUARY, 29, 2020 ]

 ADABI SANGAM / TOPIC.NO 483 मंज़िल  
MANZIL,DESTINATION, मुकाम ,गंतव्य लक्ष्य     
February 29th 2020 


          
कौन किस रस्ते चला , कहाँ जा के पहुंचा , कैसे पहुंचा ?
वही हासिल हुई मंजिलें ,हर शख्स की पहचान होती है ,
नाम सिर्फ उस शख्स का होता है , मंजिले तो गुमनाम होती है
जिंदगी के हर सफर में मैंने मंजिल का होना लाजिम देखा है
वरना वह जिंदगी का सफर नहीं ,आवारागर्दी है

घर का पता बताया तो , लोगों ने पुछा कौन सी मंजिल ?
रास्ता पुछा लोगों से तो बोले जाना कहाँ है भाई ?
सब सवालों का सबब था , मंजिल कहाँ हैं तुम्हारी ?

पिताजी भी अक्सर डांटा करते थे ,
जिंदगी में कुछ करोगे भी या ऐसे ही आवारा गर्दी करते गुजरोगे ,
मंजिल पाने के लिए मेहनत करो। खूब सोचा के यह मंजिल आखिर है क्या ? और कहाँ मिलेगी ? खूब ढूंढा अपनी मंजिल को
आज मंजिल पर पहुँच कर मंजिल का मतलब मालूम हुआ
जिंदगी का हर वोह मकसद जो पूरा होगया
उसी को ही दुनिया मंजिल कहती है।

हर मकसद एक मुकाम है , उस रास्ते का ,
जिसपे हम चल रहे थे
वरना कोई फर्क न था हम में और उन आवारा बादलों में ,
जिसमे भाप की गर्मी तो थी ,पर बूंद बनने की ठंडक न थी

अब किसको दोष दे , जब हम बचपन में क्रिकेट खेला करते तो बड़ी तबियत से माँ बाप की डाँट पड़ा करती थी की , यही सब कुछ करोगे तो जिंदगी में क्या करोगे , आज हम टीवी पर उन लोगों को खेलते हुए सारा दिन बैठे रहते हैं जिन्होंने अपने माँ बाप की न मान कर भी खेलने कूदने में ही इतना नाम और धन कमा लिया।

आज बड़ी विडंबना है की प्रतिष्टा ,धन दौलत , आज पढ़ने लिखने वालों से ज्यादा उन काम पढ़े लिखे स्पोर्ट स्टार्स और फिल्म एक्टर्स के पास पहुँच गई है , गोया उनकी मंजिल आज सबकी पसंद बन गई है।

इससे साफ़ मालूम पड़ता है की मंजिल आज के वक्त आपके लिए कोई और तय नहीं कर सकता , आपको खुद ही खोज करनी है और उस रास्ते पे चलना है ,

लोगों ने समझाया प्यार की भी एक मंजिल होती है ,
जिसका अंजाम कभी शादी और कभी बर्बादी होती है
किसी की मंजिल तो फक्त एक मेहबूबा थी ,
मिल जाती तो घर आबाद ,वरना देवदास बन गए

मेरा अपना अहसास यह है की , मंजिल और कुछ नहीं बस हमारे भीतर छुपा हमारा जनून है जो हमे वह सब करने के लिए प्रेरित करता है जो हमे दिल से पसंद है

मंजिल इंसान के हौसले आजमाती है ,
आँखों के सपनो को हकीकत से मिलवाती है ,
किसी भी हाल में हिम्मत न हारना ,
ठोकर पे ठोकर के बाद भी चलना सिखाती है

आज इंसान के पास वक्त कम है ,
मंजिलें अनेक चुन ली हैं उसने ,
इन्हे पाने को थोड़ा और तेज चलना होगा ,
रास्ता न मिलने पर ,नया रास्ता बनाना होगा ,

साधन और सुविधाओं में तलीन मत हो जाना ,
मोह माया का जाल बिछा है पग पग पे ,
मंजिल को गर पाना है तो
इनमे खोकर कहीं फंस न जाना
वक्त की हैं अनमोल घड़िआं , युहीं न गँवा देना ,
मंजिल पाने की अंधी रेस में ,
थोड़ा विवेक इस्तेमाल जरूर कर लेना
न जाने किस मोड़ पर घडी की धड़कन रुक जाए ,
मंजिल पाने से पहले तुम्हारी सांस ही न रुक जाए ,,

निगाह टिकाएं रखना , पर साँसों को थामे रहना
वक्त है कम, दूर है मंजिल ,मनोसिस्ठी बनाये रखना ,
ऐसा न हो की आप मंजिल की तलाश करते रहे ,
और मंजिल आपके पास ही मौजूद हो।
कश्ती भी हमारी डूब जाती है अक्सर साहिल के आस पास ,

जबसे कुछ लोग हुए है बेपरवाह हमसे ,
सूनापन भी छा गया है दिल के आस पास /
मंजिलें ऐसे थोड़े ही मिल जाती हैं ,दुनिया में।
अपनों को दोस्तों को खुद से दूर करना पड़ता है ,
पर ऐसी मंजिल किस काम की जहाँ आप तनहा हो
कुछ खास दोस्त भी तो होने चाहिए आस पास

उड़ते परिंदों को मंजिल मिलेगी यकीनन ,
यह फैले हुए उनके पर उनका हौसला ब्यान करते है ,
ख़ामोशी में लोग जो अक्सर रहते हैं ,
जमाने में उनके करतब बोला करते हैं ,
लहरों की ख़ामोशी सबने देखी होगी
हमने उनकी मंजिल को सुनामी बनते देखा है

जिंदगी में मंजिल पाने के गरज़ से बिक मत जाना
बिकने को आगये तो घट जाती है कीमत अक्सर ,
इरादा ऊँचा रखो तो , कीमत भी ऊँची लगती है ,

संघर्ष में आदमी अकेला होता है ,
मंजिल पे उसे भीड़ घेर लेती है ,
कोई साथ दे न दे , तु बस चलना सीख ले
हर आग से हो जा वाकिफ ,तू जलना सीख ले
कोई रोक नहीं पायेगा बढ़ने से तुझे मंजिल की तरफ ,
हर मुश्किल का सामना गर तू करना सीख ले

मत सोच की तेरा सपना पूरा कैसे होगा , 
बस इतना ही सोच पूरा क्यों नहीं होगा ?
मंजिल पाने को तो भूल ही जा
अगर तेरा हौसला अधूरा होगा

जमीर जिन्दा रख , अपना कबीर जिन्दा रख
सुल्तान भी बन जाए तो दिल का फ़क़ीर जिन्दा रख
हौसले के तरकश में , कोशिश का हर वो तीर जिन्दा रख
हार जा चाहे जिंदगी में सब कुछ अपनी मंजिल के लिए
मगर हर बार फिर से जीतने की उम्मीद जिन्दा रख

सामने हो मंजिल तो रास्ता न मोड़ना
जो भी मन में हो वो सपने न तोडना
कदम कदम पे मुश्किलें बढ़ जाती है ,
जब मंजिल आ जाती हैं नजदीक

सितारों की आस में कभी जमीन न छोड़ना
जीतने का असली मजा ही तब आता है ,
जब सभी आपकी हार का इंतज़ार कर रहे हों ,
पर मंजिलों की कोई सीमा नहीं होती ,
एक पा लोगे तो दूसरी सामने होगी
अभी तो असली मंजिल पाना बाकी है ,
वहां पहुँच तुम्हें खुद को साबित करना होगा
तुम्हारे इरादों का इम्तिहान अभी बाकी है

नजर लक्ष्य पर थी , गिरे और सम्भलते रहे
हवाओं का पूरा जोर था , चिराग फिर भी जलते रहे
कह दो मुश्किलों से थोड़ी और कठिन हों जाएँ
कह दो उन चुनौतिओं से भी थोड़ी और मुश्किल हो जाएँ
नापना चाहते हो अगर हमारे हौसलों को ,
कह दो आसमान से भी थोड़ा और ऊपर उठ जाए।

मंजिल कैद नहीं है इन हाथ की लकीरों में ,
गौर से देखो
लकीरें खुद तलाश में है अपनी मंजिल की
तकदीरों के खेल में,युहीं नहीं मिट जाता कोई ,
इन हाथ की लकीरों के मिट जाने से ,
किसी की तदबीरे मंजिल नहीं रूकती ,
तकदीर तो उनकी भी होती है
जिनके हाथ नहीं होते
सब यही तो कह रहे है
मंजिल मिले या न मिले , नए दोस्त और नए तजुर्बे तो मिलेंगे
यह भी तो सच्चाई है जिस जिस पर दुनिया हंसी है
उसी ने तो इस दुनिया में एक नई दास्ताँ रची है

रातें तो वहीँ होती है पर ख्वाब बदल जाते हैं ,
मंजिले भी वहीँ रहती है , कारवाँ बदल जाते है ,
जज्बा जिन्दा रहना चाहिए , खुद को बदलने का ,
किस्मत बदले न बदले , वक्त के आगाज जरूर बदल जाते

सीढ़ियां मुबारक हो उनेह जिन्हे सिर्फ छत तक जाना है
मेरी मंजिल तो आसमान है , वहां का रास्ता मुझे बनाना है
दुनिया तो युहीं बदनाम करती है हर उस इन्सान को ,
जिसे अपनी मंजिल की तलाश रहती है
गम न कर जिंदगी इतनी छोटी भी नहीं की

तेरा सफर मंजिल से पहले ही रुक जाए
हौसला कम न करना तूफानों में घिर जाने पर
मंजिले मिले न मिले यह तो मुकदर की बात है ,
कुछ लोग अक्सर यह भी कहते रहते है
पर हम कोशिश भी न करें ? यह तो गलत बात है

अपने गमो को भुला कर तो देखो /
बिन बात थोड़ा मुस्करा कर भी तो देखो ,
रोने से मंजिले नज़दीक नहीं हो जाती
तुम थोड़ा उमीदों के पास जाकर तो देखो

और अंत में :-
अपने मकसद में नाकाम होने पर ,
या किसी प्रिय के बिछुड़ जाने से ,
जब आपका ह्रदय मायूसी से बुझने लगे !
और आपके कदम पीछे को हटने लगें ?

तो एक पल को रुक कर इतना जरुर सोच लेना , " की आप अब तक और इतने लम्बे समय तक ,उस पर इतनी मजबूती से कैसे चले जा रहे थे ? आप अपनी नैसर्गिक शक्ति को पहचानिये

तो शायद आपको अपने जीवन की मंजिल भी मिलजाए !


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