Thursday, November 1, 2018

Rajinder K. Nagpal TOPIC " ममता " 01102014.........................................................................................................................46


COMPILATIONS: 2010
" ममता "


हाथ थाम कर चलो लाडले वरना तुम गिर जाओगे,
आँख के तारे हो दुलारे मेरे,हमको दुखी कर जाओगे,
राजा बेटा पढ़ लिख कर तुम्हे बड़ा आदमी बनना है,
नाम कमाना है दुनियां में कुल को रोशन करना है,

सब कुछ गिरवी रखकर माँ बाप ने उसे पढाया था ,
जी सके वो शान से जग में इस काबिल उसे बनाया था ,
बड़ा ऑफिसर बन गया बेटा माँ बाप की खुशियाँ चहकी,
सब दुःख दूर हमारे होंगे ऐसी उम्मीदे उनकी महकी,
बड़ी चाहत  से सुन्दर कन्या से उसका ब्याह रचाया,
ढोल नगाड़े शहनाई संग नाचते गाते दुल्हन घर लाया,

कुछ बरस में नन्हा पोता भी  घर आँगन में आया,
लेकिन बेटा रहा न अपना जिस पर सब लुटाया,
एक दिन बेटा बोला माँ से माँ ये सब कुछ मेरा है,
मैने कमाया मैने बनाया अब ये नहीं तुम्हारा डेरा है,
माँ बोली बेटा तुम मेरे, घर भी  मेरा, फिर हममे कौन पराया,

तुमसे ही है हमारी खुशियाँ मुश्किल से है तुम्हे पाया,
माँ-बाप के आंसुओं ने भी,न उसके दिल को पिघलाया  ,
उनकी कोमल ममता पर , जहरीला ज़ुबानी बाण चलाया 

 बोला सामान बांधलो माँ तुम्हे वृधाश्रम छोड़ आता हूँ,
हम भी सुखी , तुम भी सुखी बस यही मै अब चाहता हूँ,

सुन्न हो गया अंतर्मन सुनके, माँ-बाबा अब क्या बोले,
भूल हुई है क्या हमसे अपने अन्दर रह रहये टटोले,
दोनों सोचे बचा  जग में अब कोई नहीं सहारा है,
पुत्र संतान पाकर भी हमने,अपना सब कुछ हारा है ,

फिर भी नहीं शिकायत कोई आखिर खून तो अपना है ,
वो न समझे दिल की व्यथा पर अपने आँगन का सपना है ,
पोते को दुलराया और कातर नजरों से देखा,
कुछ क्षण रुक कर बोले, हमें कुछ तुमसे कहना है,
अपने मम्मी -पापा की बेटा हरदम सेवा करना,
दुःख में सुख में हर हालत में तुम हाथ थाम कर रखना,
खुश रहो मुस्काओ हरपल दुआ यही हमारी है,
शायद तुम ना समझोगे कि तुमसे दुनियां सारी है,

कैसी विडंबना है रिश्तों की ममता भी चित्कारी है,
बुजूर्गो का सम्मान नहीं सोचो क्या यही संस्कृति हमारी है??????????? 
आज इंसान इंसान को डस रहा है , ममता मर चुकी है 
और इंसान को अपनी फितरत बदलते देख सांप दूर से देख हंस रहा है 

जब हम जवान होते हैं और फिर बूढ़े भी हो जाते हैं , दोनों अवस्थाओं में हमे दूसरों के प्रेम और ममता की जरूरत होती है , लेकिन इन दोनों अवस्थाओं के बीच के अंतराल में हम इतने दम्भी होते हैं की हमे कभी किसी की जरूरत ही नहीं पड़ेगी , इसलिए दूसरों के प्रेम ममता की उन्हें कोई जरूरत ही नहीं है

दलाई लामा ने एक बार कहा था की " ममता में कभी रोते रोते मुस्कराये , और कभी मुस्कराते हुए भी रोये , हे माँ तेरी ममता जब भी याद आई , तुझे भुला भुला के रोये , एक तेरा ही नाम था जिसे लिखा था हजार बार अपने सीने में , जिसे लिख लिख कर खुश हुए थे हम , आज उसे मिटा मिटा के रोये

जिंदगी और ममता तो हमेशा ही एक अनबुझ पहेली थी ,
बहुतों ने इसे खुदगर्जी से निभाया और कभी इसे समझा ही नहीं , जो समझ भी गए वह निभा न सके 

दिल कि धड़कन भी कुछ कहती है ,सुनने ही नहीं देता कोई 
अपनी मर्यादा में जीना चाहता हूँ ,पर जीने नहीं देता कोई .
दिल मेरा लाख कहना चाहे , पर कहने ही नहीं देता कोई ?

ममता जब रोती है।,आंसुओ के गिरने की आवाज नहीं होती , 

और दिल इतना भी  शीशे का नहीं जो टूटने पर कोई उसकी आवाज  सुने 

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एक आदमी हस्पताल में बेंच पर बैठा अपनी बारी की इंतजार कर रहा था , उसकी एक टांग टूटी हुई थी ,तभी एक और आदमी व्हील चेयर पर लाया गया उसकी दोनों टांगे टूटी हुई थी , दोनों वहीँ इंतजार करने लगे ! पहले वाले आदमी से रहा न गया , और पूछ बैठा , भाई साहिब लगता है आपकी बीवी मेरी बीवी से दोगुनी ताकत व् गुस्से वाली है ? तभी तो आपकी दोनों। ......
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संता अपने घर से खाना लेकर काम पर निकला , काम न बनने पर उदास हो कर जंगल में पेड़ के नीचे जाकर लेट गया ,अचानक कुछ शोर से उसकी आँख खुल गई ,उसने देखा एक चुड़ैल जैसी औरत उसके सर के पास बैठी हुई है . वोह घबरा कर उठ गया ! उसे उठा हुआ देख चुड़ैल बोली अच्छा हुआ तुम जग गए मुझे बहुत भूख भी लग गई थी १ अब मैं तुम्हारा खून पी सकती हूँ , ही .ही ,ही ,ही ....संता बोला बहुत खुश होने की जरुरत नहीं , तुम्हारी एक बहिन पहले ही मेरे घर में रहती है जो बीस साल से मेरा खून पी रही है ? खून बचा होगा तो पियोगी न ?
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तकदीर के लिखे पर कभी शिकवा ना किया कर ....!
ऐ दोस्त ....
तू इतना अकलमंद नहीं जो खुदा के इरादे समझ सके ..









Monday, October 29, 2018

ADABI SANGAM topic.....................................................समय .... WAQT. "........... TIME "...........................................[ OCTOBER ,26,2018]............................................47


   ..........समय.




 आंसुओ के गिरने से, कोई आहट नहीं होती ,
दिल के टूटने पर भी कोई आवाज़ नहीं होती ,
अगर इसमे खुदा कि मर्जी न होती तो ? ,
क्या इंसान उस खुदा का वजूद समझ भी पाता?

खुदा ईश्वर नाम है उस घडी का उस वक्त के पल का जिसमे हर कुछ घटित होता है , इंसान इसे समझे , इससे पहले वक्त कहीं और चल देता है। लेकिन जाते जाते यह जरूर कह जाता है :-
यह मेरा आखिरी सलाम है , यह मेरा न खत्म होने वाला सफर है कल मुझे कहीं और जाना है ,लोग मुझे गुजरा वक्त कहते हैं , मैं जब गुजर जाता हूँ लौट के वापिस नहीं आता ,मेरे साथ जीना है तो इसी पल जीना होगा , मेरे साथ खेलना होगा ,मुझे मालूम है मेरे चले जाने पे कुछ लोग जिनकी मेरे साथ नहीं जमती ,

 वह मेरे जाने पे बड़े खुश होते है और कुछ जो हमेशा मेरी कदर करते है वह मेरा साथ पाकर हमेशा हँसते हैं , बस यही एक पल है तुम्हारा चाहे तो मुझे पा लो चाहे खो दो , अगर यह पल गुजर गया तो मैं भी रुक न पाऊंगा , मैं भी काल चक्र से बंधा हूँ मुझे जाने से कोई रोक नहीं सकता न ही खुदा न ही खुद वक्त।

वक़्त जिसे हम आज की भाषा में टाइम के नाम से जानते हैं वह एक घडी की सुइंयों में बंधा एक काल है जो पल पल हमें याद दिलाता है की आप के जीवन की हर घडी इस मानव निर्मित घडी के हिसाब से चल रही है जैसे जैसे सूईआं आगे को बढ़ रही है वास्तव में हमारे जीवन की घड़िआ घट रहीं हैं हर सुबह दिवार पे टंगी घडी को देख कर ही हमारा दिन शुरू होता है और शाम उसे देख कर ही खत्म होता है।

जिसने भी इस वक्त के हिसाब से खुद को ढाल लिया वह जिंदगी की सीढियाँ चढ़ता हुआ एक मुकाम तक पहुँच गया और जो गफलत में वक़्त को अनदेखा करते हुए आज को कल और कल को परसों में बदलता चला गया वक़्त ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा।

अब सवाल यह है की वक़्त है क्या चीज़ जिसे हमारे पूर्वज भी और वैज्ञानिक भी खोज में लगे रहे। सिर्फ हमारी धरती ही नहीं पूरा बह्मांड एक ऐसे ही नियम से चल रहा है जिसमे निहित अदृश्य यानी की invisible cosmic forces ने एक ऐसा टाइम सिस्टम बनाया हुआ है
जिसमे सेकेंड minutes में minutes घँटों में और घंटे दिनों में दिन सप्ताह और सप्ताह महीनो से आगे चल कर वर्षों decades ,centuries और centuries ने कितने ही युग और काल बना दिए लेकिन वक़्त का कोई ठौर नहीं पा सके वक़्त की गति को कोई रोक नहीं सका

हमारे वैज्ञानिक वक़्त की खोज में time machine बनाने में लग गए। हम खोज रहे है उस वक़्त को जब चाँद और मंगल ग्रहो पर भी पृथ्वी की तरह एक बसा हुआ संसार था। वहां के जल समुन्दर हवा कहाँ खो गए , वहां के जीवों का क्या हुआ ?अब वो इंसान के रहने लायक क्यों नहीं रहे ? बहरहाल आज हम उस अनादिकाल के एक छोटे से लमहे को जी रहे है और बड़े घमंड से अपने पास वक़्त की कमी का रोना रोते रहते हैं। अब वक़्त की प्रकार और सवभाव दोनों ही बदल गए हैं

अब हमारे आस पास अक्सर लोग वक़्त की दुहाई देते मिल जायेंगे। न मिलने की एक खास वजह टाइम की कमी बता दी जाएगी। मेरे बचपन के कितने ही संगी साथी वक़्त की कमी के चलते मुझ से कई वर्षों दूर हो गये। वक़्त की रफ़्तार ने सबको अपनी गिरिफ्त में लिया हुआ है। हमारे कदम धीमे होते ही वक़्त हमें पीछे छोड़ जाता है।

this is actually the race against time, survival for the fittest, jo jeetaa wohi Sikander, There is no time still everybody is running around interestingly without any time available with them for their own life, health, family, kids. etc



हमारे बुजर्ग कहा करते थे समय बड़ा अनमोल होता है इसका सदुपयोग कर? और हमारे पास तो समय है ही नहीं तो उपयोग क्या करे वोह तब की बात थी जब लोगों के दिलो दिमाग में सकूंन था अगर सकूँ था तो टाइम भी था इसका मतलब एक बात तो साफ़ हो गई की वक़्त का होना न होना आज की दौड़ भाग वाली पैसे के लिए अंधी दौड़ का ही नतीजा है।

२ ,गुजरा वक़्त वापिस कभी नहीं आता
धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होये , माली सींचे सो घड़ा ऋतू आये फल होय यह भक्त कबीर बहुत पहले कह गए थे जो आज भी सामायिक है अर्थार्थ समय से पहले पेड़ पर फल नहीं लगते , तो आज का युवक और समाज सब कुछ इतने कम समय में ही क्यों सब कुछ पा लेना चाहता है ? मेरे हिसाब से इसका सीधा तालुक हमारी शिक्षा प्रणाली को ही जायेगा जो आज इंसान कम पैसा कमाने वाले रोबोट ज्यादा तैयार कर रही है , संस्कारों को खत्म कर के एक ऐसे समाज का निर्माण कर दिया गया है जो पैसे के लिए कुछ भी कर गुजरते है सिर्फ वक़्त ही नहीं है उनके पास की अपने बुजर्गो से कुछ संस्कार भी ले सके जिसकी वजह से ही आज भी बुजर्गो के पास अधिक टाइम मैनेजमेंट है और मन में सकूँन भी।

3 , मेहनत करते रहे वक़्त आने पर कामयाबी मिलेगी पर वक़्त कब मिलेगा इसका कोई जवाब नहीं हमारे पास। मैंने काफी सोचा यह एक बड़ा ही संजीदा विषय है की हमारी जिंदगी से वक़्त ही गायब होने लगा है कौन खाये जा रहा है हमारे सकूं और वक़्त को ? जैसे जैसे हमने अपनी सुविधाएँ जुटानी शुरू की जैसे की अपने जीवन स्तर को ऊपर ले जाना शुरू किया तो हमारा सबसे पहले ध्यान एक सूंदर पत्नी , बच्चे। एक बड़ा घर , कार , घर में मनोरंजन का फुल सामान , बच्चों की पढाई लिखाई और न जाने क्या क्या ?और घर को गर्म ठंडा रखने के तमाम यंत्र। इसके लिए हमें पैसा चाहिए था। हमारे पास क्या था यह सब जुटाने के लिए। भगवान् का दिया एक शरीर और साथ में काम करने का हुनर। बस इसी कशम काश में अपने शरीर की बलि देते हुए अपने वक़्त को बेच कर धन पैसा कमाने लगे और पूरे जीवन को रक्त और वक्त की कमी में धकेल दिया।

वक़्त के एक एक पल से युग बन कर बीत गए। इस वक़्त ने रामायण और महाभारत काल भी देखा। वक़्त गवाह है हमारी पूरी हिस्ट्री का हमारी उन्नति का।
वक़्त की परिभाषा आज के सन्दर्भ में यह भी है -
oh that was really not my day
इंसान के शरीर पर मार के निशान मिट सकते है पर जिसे कहते है न वक़्त की मार वोह इंसान को उठने नहीं देती।

वक़्त मेहरबान तो गधा पहलवान यानी की इंसान खुद कुछ नहीं उसकी काम याबी वक़्त की गति पर निर्भर करती है। अर्थात उचित अवसर उचित समय।

आज मेडिकल साइंस भी हमारी जीवन और मृत्यु के बीच की घडी को गोल्डन ऑवर के नाम से बुलाते है। हार्ट अटैक होने या स्ट्रोक पड़ने पर एक खास वक़्त की सीमा में ही बचाया जा सकता है वर्ना मौत का वक़्त आ जायेगा। वक़्त की रफ़्तार ने हमारी जीवन की गाड़ी को , पारिवारिक रिश्तों को बदल कर रख दिया है। बच्चों के पास अपने बुजर्गो के पास कुछ पल बैठने का भी वक़्त नहीं है ,माँ बाप ने दिन रात एक कर के बच्चों के लिए सुविधाएँ जुटाई लेकिन अपने जीवन के कीमती वक़्त को अपने लिए इस्तेमाल न कर पाए ,ज्यादा पैसा कमाने के चक्र में समय से पहले बूढ़े होने लगे बीमार पड़ कर दुनिया से जल्द विदा होने लगे। पहले जहाँ इंसान 100 वर्ष से ऊपर पहुँच जाते थे आज 40 साल की उम्र में ही स्वर्ग सिधार जा रहे हैं।






सोचते सोचते नींद आ गई सपने में दिवार पे टंगे घड्याळ को मुस्कराते देखा वह मुझ बात करना चाहता था " बोला वक़्त को वश में करने के लिए ही तूने मुझे बनाया था न ? मुझ पर विजय पाने के लिए ही मुझे अपाहिज बनाया एक बाजू मेरा छोटा और एक बड़ा लेकिन फिर भी तेरा दिल मेरी टिक टिक से रात में कितना घबराता है डरता है अपने एकांत जीवन में। क्योंकि मेरी टिक टिक में ही तेरे साँसों की डोर बंधी है न जाने कब टूट जाये ? याद कर तेरे पैदा होने और मरने पर भी वक़्त मुझ से ही पूछ कर लिखा जाता है , तेरी जनम कुंडली से लेकर बियाह लगन तक सब पे मेरा ही वर्चस्व चलता है। मैंने बहुत से युगो में इंसान को गिरते पड़ते मरते देखा है। लेकिन मैं अमर हूँ पर तुम्हऐ मरने से नहीं बचा सकता हाँ जो मेरी कदर करता है मैं उसे फर्श से अर्श तक पहुंचा देता हूँ वरना गुमनामी के अंधेरों में गर्क कर देता हूँ।दुनिया में सिकंदर नाम कोई भी रख सकता है पर असली सिकंदर वक़्त ही है जिसके आगे कोई नहीं जीत सका।


वक़्त से दिन और रात
वक़्त की हर शै गुलाम
वक़्त का हर शै पे राज

*एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली*..
*वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे*..!!
*सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से*..
*पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला* !

दुनिया का सबसे "अच्छा तोहफा वक्त "है।
क्योंकि जब आप किसी को अपना वक्त देते हैं तो आप उसे अपनी जिंदगी का वह हँसीन पल दे देते हैं जो कभी लौट कर नहीं आने वाला "

क्योंकि जब मेरा "वक्त" था मेरे पास "वक्त "नहीं था
आज मेरे पास "वक्त "ही "वक्त" है पर मेरा "वक्त"नहीं है














Friday, January 20, 2017

POETRY COLLECTIONS :08112018- 16102020 .........................................................................................................................48


" POETRY "



💮 _*हरिवंशराय बच्चन की एक सुंदर कविता*_ ...
*खवाहिश नही मुझे मशहूर होने की*।

*आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है*।
अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे*।

*क्यों कि जिसकी जितनी जरुरत थी
उसने उतना ही पहचाना मुझे*।

*ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा भी कितना अजीब है*,
शामें कटती नहीं, और साल गुज़रते चले जा रहे हैं*....!!

*एक अजीब सी दौड़ है ये ज़िन्दगी*,
*जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते हैं*,
और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं*।

*बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर*...
*क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है*..
*मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा*,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना*।।

*ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है*
पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है*
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने*
*न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले* .!!.

एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली*..
*वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे*..!!

*सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से*..
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला* !!!

*सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब*....
बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता*

जीवन की भाग-दौड़ में*
*क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है* ?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है*..

एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम और*

*आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है*..

*कितने दूर निकल गए*, *रिश्तो को निभाते निभाते*..
खुद को खो दिया हमने, अपनों को पाते पाते*..

लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है*,
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते*..

खुश* *हूँ और* *सबको खुश* *रखता हूँ*,
लापरवाह* *हूँ फिर भी सबकी परवाह*
करता हूँ*..

*मालूम है कोई मोल नहीं मेरा, फिर भी*,
कुछ अनमोल लोगो से रिश्ता रखता हूँ*...!

यह जो शख्स यूँ बेफिक्र मुस्करा रहा है ,जरूर किसी दर्द ने इसे पाला होगा ,अपनी मंजिल पे खुद के बल पर पहुंचा है तो , जरूर पाऊँ में उसके छाला होगा।
संघर्ष बिना, इंसान कभी चमक नहीं सकता ,जलते दिए से ही तो उजाला होगा
शौक़ है तो जी लेना मायूसी में फिर कभी , पूरी उम्र रोने को अभी बाकी है ,
अपनी हंसी को होटों से यूँ बुझने न देना ,यही तो इक नियामत है जिसे , छीनने को दुनिया तुम्हारे पीछे पड़ी है

हर रोज की तरह "दिन की रौशनी " आज भी उमीदों में गुजर गई
बेशुमार रातें भी बोझिल " आँखों की खुमारी "में खो गई
जिस घर को अपना समझा ,मेरे नाम की रियासत नहीं थी
फिर क्यों सारी उम्र मेरी उस घर को सजाने में निकल गई ?
यह मेरा शरीर ही एक नाशवान घर था जिसकी मल्कियत भी मेरी नहीं थी

एक कुतिया रात को बाहर जा रही थी...
रास्ते में 5/6 कुत्ते मिले
कुतिया घबरा गई....
कुत्ते बोले... आप आराम से जाइये और डरिये नहीं...
हम कुत्ते हैं... इंसान नहीं...एक इन्सान की हकीकत क्या है ,

जरा सोच के बताइए उसकी ताकत ,
इज्ज़त व् गरूर क्या है ?

तूफानी हवाएँ उसे इक पल में उड़ा दें ,
नदियाँ बिफ़रे तो बहा लें जाएँ ,

बनायें हैं उसने आलिशान मकान तो क्या ?
एक जलजला हो तो सब ,
पल में ढह जाये जरा सोच के बताइए ....
आखिरएक इन्सान की हकीकत क्यां हैं ?


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💐A very nice tribute to the passing year 2018. A poem by Gulzar:


आहिस्ता आहिस्ता चल जिंदगी अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी
कुछ दर्द मिटाना बाकी है , कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है
.
रफ्तार में तेरे चलने से कुछ रूठ गए , कुछ छूट गये
रूठों को मनाना बाकी है , रोतों को हँसाना बाकी है

कुछ हसरते अभी अधूरी हैं , कुछ काम भी और जरूरी हैं
ख्वाइशें तो घुट के रह गई इस दिल में , उनको दफनाना बाकी है

कुछ रिश्ते बन कर टूट गए कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए
उन टूटे -छूटे रिश्तों के जख्मो को मिटाना बाकी है

तू आगे चल मैं आता हूँ , क्या छोड़ तुझे जी पाउँगा ?
इन साँसों पर हक़ है जिनका , उनको समझाना बाकी है

आईस्था चल जिंदगी , अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है

गुनाहों की सजा से डरता हूँ ,

जहर से ज्यादा दवा से डरता हूँ 
दुश्मनों का भी कोई खौफ नहीं ,
हम तो दोस्तों  की बेवफाई से डरते हैं

बेवफाई जिनका मिज़ाज़ था उनसे वफ़ा की उम्मीद रखी थी मैंने ,

कितना मासूम था मैं , कांटो से खुशबू की उम्मीद रखी थी मैंने ,

मोहब्बत में अक्सर दिल टूटते हमने सुने थे ,
यहाँ तो पूरी की पूरी उम्मीद ही टूटती देखी  मैंने
ज़माने के डर से टॉयलेट में छुपा रखी थी तेरी तस्वीर मैंने ,
दीदार कर सकूँ बार बार तेरा , जुलाब की गोली भी खा ली थी मैंने

कुदरत के कानून में अगर रात न होती,

तो ख्वाबों में उनसे मुलाकात कैसे होती,

उनका वायदा था की आएंगे रोज मेरे ख्वाबों में
मारे ख़ुशी के नींद ही न आई  हमको  ,

 गिला शिकवा कहाँ करते , सुनवाई कहाँ होती



आपस में एक जुट रहें, ताकत है-   तो इसी में है
देखो न ऐब उनके ,मुहब्बत है - -तो इसी में है ,
सेहत भी हो ,रोटी कपडा और मकान भी हो ?
और हमारे दिल को भी हो तस्कीन मुक्कमल ।

दुनिया में बशर के लिये नेमतें हैं- तो इसी में हैं बशर =(मन

शिकायत कौन करे

जो दर्द मिला है अपनों से , गैरों से शिकायत कौन करे,
जो जख्म दिया फूलों ने , काँटों से शिकायत कौन करे ?
इन आँखों ने जो देखा है , पग पग पर दुनिया का मंजर !
,ऐ दिल बता किस मुहँ से कहें कुछ अपनों का नाम भी आता है ,

बेहतर है खामोश रहें यह जुबान , जब कर न सके अपनों से गिला..........
.. गैरों से शिकायत कौन करे ???

"FOR MAKING TRUE FRIENDS WE DON'T NEED TO SHARE CUPS OF TEA BUT OUR HONEST VIEWS"