दिल के टूटने पर भी कोई आवाज़ नहीं होती ,
अगर इसमे खुदा कि मर्जी न होती तो ? ,
क्या इंसान उस खुदा का वजूद समझ भी पाता?
खुदा ईश्वर नाम है उस घडी का उस वक्त के पल का जिसमे हर कुछ घटित होता है , इंसान इसे समझे , इससे पहले वक्त कहीं और चल देता है। लेकिन जाते जाते यह जरूर कह जाता है :-
यह मेरा आखिरी सलाम है , यह मेरा न खत्म होने वाला सफर है कल मुझे कहीं और जाना है ,लोग मुझे गुजरा वक्त कहते हैं , मैं जब गुजर जाता हूँ लौट के वापिस नहीं आता ,मेरे साथ जीना है तो इसी पल जीना होगा , मेरे साथ खेलना होगा ,मुझे मालूम है मेरे चले जाने पे कुछ लोग जिनकी मेरे साथ नहीं जमती ,
वह मेरे जाने पे बड़े खुश होते है और कुछ जो हमेशा मेरी कदर करते है वह मेरा साथ पाकर हमेशा हँसते हैं , बस यही एक पल है तुम्हारा चाहे तो मुझे पा लो चाहे खो दो , अगर यह पल गुजर गया तो मैं भी रुक न पाऊंगा , मैं भी काल चक्र से बंधा हूँ मुझे जाने से कोई रोक नहीं सकता न ही खुदा न ही खुद वक्त।
वक़्त जिसे हम आज की भाषा में टाइम के नाम से जानते हैं वह एक घडी की सुइंयों में बंधा एक काल है जो पल पल हमें याद दिलाता है की आप के जीवन की हर घडी इस मानव निर्मित घडी के हिसाब से चल रही है जैसे जैसे सूईआं आगे को बढ़ रही है वास्तव में हमारे जीवन की घड़िआ घट रहीं हैं हर सुबह दिवार पे टंगी घडी को देख कर ही हमारा दिन शुरू होता है और शाम उसे देख कर ही खत्म होता है।
जिसने भी इस वक्त के हिसाब से खुद को ढाल लिया वह जिंदगी की सीढियाँ चढ़ता हुआ एक मुकाम तक पहुँच गया और जो गफलत में वक़्त को अनदेखा करते हुए आज को कल और कल को परसों में बदलता चला गया वक़्त ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा।
अब सवाल यह है की वक़्त है क्या चीज़ जिसे हमारे पूर्वज भी और वैज्ञानिक भी खोज में लगे रहे। सिर्फ हमारी धरती ही नहीं पूरा बह्मांड एक ऐसे ही नियम से चल रहा है जिसमे निहित अदृश्य यानी की invisible cosmic forces ने एक ऐसा टाइम सिस्टम बनाया हुआ है
जिसमे सेकेंड minutes में minutes घँटों में और घंटे दिनों में दिन सप्ताह और सप्ताह महीनो से आगे चल कर वर्षों decades ,centuries और centuries ने कितने ही युग और काल बना दिए लेकिन वक़्त का कोई ठौर नहीं पा सके वक़्त की गति को कोई रोक नहीं सका
हमारे वैज्ञानिक वक़्त की खोज में time machine बनाने में लग गए। हम खोज रहे है उस वक़्त को जब चाँद और मंगल ग्रहो पर भी पृथ्वी की तरह एक बसा हुआ संसार था। वहां के जल समुन्दर हवा कहाँ खो गए , वहां के जीवों का क्या हुआ ?अब वो इंसान के रहने लायक क्यों नहीं रहे ? बहरहाल आज हम उस अनादिकाल के एक छोटे से लमहे को जी रहे है और बड़े घमंड से अपने पास वक़्त की कमी का रोना रोते रहते हैं। अब वक़्त की प्रकार और सवभाव दोनों ही बदल गए हैं
वक़्त जिसे हम आज की भाषा में टाइम के नाम से जानते हैं वह एक घडी की सुइंयों में बंधा एक काल है जो पल पल हमें याद दिलाता है की आप के जीवन की हर घडी इस मानव निर्मित घडी के हिसाब से चल रही है जैसे जैसे सूईआं आगे को बढ़ रही है वास्तव में हमारे जीवन की घड़िआ घट रहीं हैं हर सुबह दिवार पे टंगी घडी को देख कर ही हमारा दिन शुरू होता है और शाम उसे देख कर ही खत्म होता है।
जिसने भी इस वक्त के हिसाब से खुद को ढाल लिया वह जिंदगी की सीढियाँ चढ़ता हुआ एक मुकाम तक पहुँच गया और जो गफलत में वक़्त को अनदेखा करते हुए आज को कल और कल को परसों में बदलता चला गया वक़्त ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा।
अब सवाल यह है की वक़्त है क्या चीज़ जिसे हमारे पूर्वज भी और वैज्ञानिक भी खोज में लगे रहे। सिर्फ हमारी धरती ही नहीं पूरा बह्मांड एक ऐसे ही नियम से चल रहा है जिसमे निहित अदृश्य यानी की invisible cosmic forces ने एक ऐसा टाइम सिस्टम बनाया हुआ है
जिसमे सेकेंड minutes में minutes घँटों में और घंटे दिनों में दिन सप्ताह और सप्ताह महीनो से आगे चल कर वर्षों decades ,centuries और centuries ने कितने ही युग और काल बना दिए लेकिन वक़्त का कोई ठौर नहीं पा सके वक़्त की गति को कोई रोक नहीं सका
हमारे वैज्ञानिक वक़्त की खोज में time machine बनाने में लग गए। हम खोज रहे है उस वक़्त को जब चाँद और मंगल ग्रहो पर भी पृथ्वी की तरह एक बसा हुआ संसार था। वहां के जल समुन्दर हवा कहाँ खो गए , वहां के जीवों का क्या हुआ ?अब वो इंसान के रहने लायक क्यों नहीं रहे ? बहरहाल आज हम उस अनादिकाल के एक छोटे से लमहे को जी रहे है और बड़े घमंड से अपने पास वक़्त की कमी का रोना रोते रहते हैं। अब वक़्त की प्रकार और सवभाव दोनों ही बदल गए हैं
अब हमारे आस पास अक्सर लोग वक़्त की दुहाई देते मिल जायेंगे। न मिलने की एक खास वजह टाइम की कमी बता दी जाएगी। मेरे बचपन के कितने ही संगी साथी वक़्त की कमी के चलते मुझ से कई वर्षों दूर हो गये। वक़्त की रफ़्तार ने सबको अपनी गिरिफ्त में लिया हुआ है। हमारे कदम धीमे होते ही वक़्त हमें पीछे छोड़ जाता है।
this is actually the race against time, survival for the fittest, jo jeetaa wohi Sikander, There is no time still everybody is running around interestingly without any time available with them for their own life, health, family, kids. etc
हमारे बुजर्ग कहा करते थे समय बड़ा अनमोल होता है इसका सदुपयोग कर? और हमारे पास तो समय है ही नहीं तो उपयोग क्या करे वोह तब की बात थी जब लोगों के दिलो दिमाग में सकूंन था अगर सकूँ था तो टाइम भी था इसका मतलब एक बात तो साफ़ हो गई की वक़्त का होना न होना आज की दौड़ भाग वाली पैसे के लिए अंधी दौड़ का ही नतीजा है।
२ ,गुजरा वक़्त वापिस कभी नहीं आता
धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होये , माली सींचे सो घड़ा ऋतू आये फल होय यह भक्त कबीर बहुत पहले कह गए थे जो आज भी सामायिक है अर्थार्थ समय से पहले पेड़ पर फल नहीं लगते , तो आज का युवक और समाज सब कुछ इतने कम समय में ही क्यों सब कुछ पा लेना चाहता है ? मेरे हिसाब से इसका सीधा तालुक हमारी शिक्षा प्रणाली को ही जायेगा जो आज इंसान कम पैसा कमाने वाले रोबोट ज्यादा तैयार कर रही है , संस्कारों को खत्म कर के एक ऐसे समाज का निर्माण कर दिया गया है जो पैसे के लिए कुछ भी कर गुजरते है सिर्फ वक़्त ही नहीं है उनके पास की अपने बुजर्गो से कुछ संस्कार भी ले सके जिसकी वजह से ही आज भी बुजर्गो के पास अधिक टाइम मैनेजमेंट है और मन में सकूँन भी।
3 , मेहनत करते रहे वक़्त आने पर कामयाबी मिलेगी पर वक़्त कब मिलेगा इसका कोई जवाब नहीं हमारे पास। मैंने काफी सोचा यह एक बड़ा ही संजीदा विषय है की हमारी जिंदगी से वक़्त ही गायब होने लगा है कौन खाये जा रहा है हमारे सकूं और वक़्त को ? जैसे जैसे हमने अपनी सुविधाएँ जुटानी शुरू की जैसे की अपने जीवन स्तर को ऊपर ले जाना शुरू किया तो हमारा सबसे पहले ध्यान एक सूंदर पत्नी , बच्चे। एक बड़ा घर , कार , घर में मनोरंजन का फुल सामान , बच्चों की पढाई लिखाई और न जाने क्या क्या ?और घर को गर्म ठंडा रखने के तमाम यंत्र। इसके लिए हमें पैसा चाहिए था। हमारे पास क्या था यह सब जुटाने के लिए। भगवान् का दिया एक शरीर और साथ में काम करने का हुनर। बस इसी कशम काश में अपने शरीर की बलि देते हुए अपने वक़्त को बेच कर धन पैसा कमाने लगे और पूरे जीवन को रक्त और वक्त की कमी में धकेल दिया।
वक़्त के एक एक पल से युग बन कर बीत गए। इस वक़्त ने रामायण और महाभारत काल भी देखा। वक़्त गवाह है हमारी पूरी हिस्ट्री का हमारी उन्नति का।
वक़्त की परिभाषा आज के सन्दर्भ में यह भी है -
oh that was really not my day
इंसान के शरीर पर मार के निशान मिट सकते है पर जिसे कहते है न वक़्त की मार वोह इंसान को उठने नहीं देती।
वक़्त मेहरबान तो गधा पहलवान यानी की इंसान खुद कुछ नहीं उसकी काम याबी वक़्त की गति पर निर्भर करती है। अर्थात उचित अवसर उचित समय।
आज मेडिकल साइंस भी हमारी जीवन और मृत्यु के बीच की घडी को गोल्डन ऑवर के नाम से बुलाते है। हार्ट अटैक होने या स्ट्रोक पड़ने पर एक खास वक़्त की सीमा में ही बचाया जा सकता है वर्ना मौत का वक़्त आ जायेगा। वक़्त की रफ़्तार ने हमारी जीवन की गाड़ी को , पारिवारिक रिश्तों को बदल कर रख दिया है। बच्चों के पास अपने बुजर्गो के पास कुछ पल बैठने का भी वक़्त नहीं है ,माँ बाप ने दिन रात एक कर के बच्चों के लिए सुविधाएँ जुटाई लेकिन अपने जीवन के कीमती वक़्त को अपने लिए इस्तेमाल न कर पाए ,ज्यादा पैसा कमाने के चक्र में समय से पहले बूढ़े होने लगे बीमार पड़ कर दुनिया से जल्द विदा होने लगे। पहले जहाँ इंसान 100 वर्ष से ऊपर पहुँच जाते थे आज 40 साल की उम्र में ही स्वर्ग सिधार जा रहे हैं।
सोचते सोचते नींद आ गई सपने में दिवार पे टंगे घड्याळ को मुस्कराते देखा वह मुझ बात करना चाहता था " बोला वक़्त को वश में करने के लिए ही तूने मुझे बनाया था न ? मुझ पर विजय पाने के लिए ही मुझे अपाहिज बनाया एक बाजू मेरा छोटा और एक बड़ा लेकिन फिर भी तेरा दिल मेरी टिक टिक से रात में कितना घबराता है डरता है अपने एकांत जीवन में। क्योंकि मेरी टिक टिक में ही तेरे साँसों की डोर बंधी है न जाने कब टूट जाये ? याद कर तेरे पैदा होने और मरने पर भी वक़्त मुझ से ही पूछ कर लिखा जाता है , तेरी जनम कुंडली से लेकर बियाह लगन तक सब पे मेरा ही वर्चस्व चलता है। मैंने बहुत से युगो में इंसान को गिरते पड़ते मरते देखा है। लेकिन मैं अमर हूँ पर तुम्हऐ मरने से नहीं बचा सकता हाँ जो मेरी कदर करता है मैं उसे फर्श से अर्श तक पहुंचा देता हूँ वरना गुमनामी के अंधेरों में गर्क कर देता हूँ।दुनिया में सिकंदर नाम कोई भी रख सकता है पर असली सिकंदर वक़्त ही है जिसके आगे कोई नहीं जीत सका।
वक़्त से दिन और रात
वक़्त की हर शै गुलाम
वक़्त का हर शै पे राज
*एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली*..
*वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे*..!!
*सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से*..
*पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला* !
दुनिया का सबसे "अच्छा तोहफा वक्त "है।
क्योंकि जब आप किसी को अपना वक्त देते हैं तो आप उसे अपनी जिंदगी का वह हँसीन पल दे देते हैं जो कभी लौट कर नहीं आने वाला "
क्योंकि जब मेरा "वक्त" था मेरे पास "वक्त "नहीं था
आज मेरे पास "वक्त "ही "वक्त" है पर मेरा "वक्त"नहीं है
this is actually the race against time, survival for the fittest, jo jeetaa wohi Sikander, There is no time still everybody is running around interestingly without any time available with them for their own life, health, family, kids. etc
हमारे बुजर्ग कहा करते थे समय बड़ा अनमोल होता है इसका सदुपयोग कर? और हमारे पास तो समय है ही नहीं तो उपयोग क्या करे वोह तब की बात थी जब लोगों के दिलो दिमाग में सकूंन था अगर सकूँ था तो टाइम भी था इसका मतलब एक बात तो साफ़ हो गई की वक़्त का होना न होना आज की दौड़ भाग वाली पैसे के लिए अंधी दौड़ का ही नतीजा है।
२ ,गुजरा वक़्त वापिस कभी नहीं आता
धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होये , माली सींचे सो घड़ा ऋतू आये फल होय यह भक्त कबीर बहुत पहले कह गए थे जो आज भी सामायिक है अर्थार्थ समय से पहले पेड़ पर फल नहीं लगते , तो आज का युवक और समाज सब कुछ इतने कम समय में ही क्यों सब कुछ पा लेना चाहता है ? मेरे हिसाब से इसका सीधा तालुक हमारी शिक्षा प्रणाली को ही जायेगा जो आज इंसान कम पैसा कमाने वाले रोबोट ज्यादा तैयार कर रही है , संस्कारों को खत्म कर के एक ऐसे समाज का निर्माण कर दिया गया है जो पैसे के लिए कुछ भी कर गुजरते है सिर्फ वक़्त ही नहीं है उनके पास की अपने बुजर्गो से कुछ संस्कार भी ले सके जिसकी वजह से ही आज भी बुजर्गो के पास अधिक टाइम मैनेजमेंट है और मन में सकूँन भी।
3 , मेहनत करते रहे वक़्त आने पर कामयाबी मिलेगी पर वक़्त कब मिलेगा इसका कोई जवाब नहीं हमारे पास। मैंने काफी सोचा यह एक बड़ा ही संजीदा विषय है की हमारी जिंदगी से वक़्त ही गायब होने लगा है कौन खाये जा रहा है हमारे सकूं और वक़्त को ? जैसे जैसे हमने अपनी सुविधाएँ जुटानी शुरू की जैसे की अपने जीवन स्तर को ऊपर ले जाना शुरू किया तो हमारा सबसे पहले ध्यान एक सूंदर पत्नी , बच्चे। एक बड़ा घर , कार , घर में मनोरंजन का फुल सामान , बच्चों की पढाई लिखाई और न जाने क्या क्या ?और घर को गर्म ठंडा रखने के तमाम यंत्र। इसके लिए हमें पैसा चाहिए था। हमारे पास क्या था यह सब जुटाने के लिए। भगवान् का दिया एक शरीर और साथ में काम करने का हुनर। बस इसी कशम काश में अपने शरीर की बलि देते हुए अपने वक़्त को बेच कर धन पैसा कमाने लगे और पूरे जीवन को रक्त और वक्त की कमी में धकेल दिया।
वक़्त के एक एक पल से युग बन कर बीत गए। इस वक़्त ने रामायण और महाभारत काल भी देखा। वक़्त गवाह है हमारी पूरी हिस्ट्री का हमारी उन्नति का।
वक़्त की परिभाषा आज के सन्दर्भ में यह भी है -
oh that was really not my day
इंसान के शरीर पर मार के निशान मिट सकते है पर जिसे कहते है न वक़्त की मार वोह इंसान को उठने नहीं देती।
वक़्त मेहरबान तो गधा पहलवान यानी की इंसान खुद कुछ नहीं उसकी काम याबी वक़्त की गति पर निर्भर करती है। अर्थात उचित अवसर उचित समय।
आज मेडिकल साइंस भी हमारी जीवन और मृत्यु के बीच की घडी को गोल्डन ऑवर के नाम से बुलाते है। हार्ट अटैक होने या स्ट्रोक पड़ने पर एक खास वक़्त की सीमा में ही बचाया जा सकता है वर्ना मौत का वक़्त आ जायेगा। वक़्त की रफ़्तार ने हमारी जीवन की गाड़ी को , पारिवारिक रिश्तों को बदल कर रख दिया है। बच्चों के पास अपने बुजर्गो के पास कुछ पल बैठने का भी वक़्त नहीं है ,माँ बाप ने दिन रात एक कर के बच्चों के लिए सुविधाएँ जुटाई लेकिन अपने जीवन के कीमती वक़्त को अपने लिए इस्तेमाल न कर पाए ,ज्यादा पैसा कमाने के चक्र में समय से पहले बूढ़े होने लगे बीमार पड़ कर दुनिया से जल्द विदा होने लगे। पहले जहाँ इंसान 100 वर्ष से ऊपर पहुँच जाते थे आज 40 साल की उम्र में ही स्वर्ग सिधार जा रहे हैं।
सोचते सोचते नींद आ गई सपने में दिवार पे टंगे घड्याळ को मुस्कराते देखा वह मुझ बात करना चाहता था " बोला वक़्त को वश में करने के लिए ही तूने मुझे बनाया था न ? मुझ पर विजय पाने के लिए ही मुझे अपाहिज बनाया एक बाजू मेरा छोटा और एक बड़ा लेकिन फिर भी तेरा दिल मेरी टिक टिक से रात में कितना घबराता है डरता है अपने एकांत जीवन में। क्योंकि मेरी टिक टिक में ही तेरे साँसों की डोर बंधी है न जाने कब टूट जाये ? याद कर तेरे पैदा होने और मरने पर भी वक़्त मुझ से ही पूछ कर लिखा जाता है , तेरी जनम कुंडली से लेकर बियाह लगन तक सब पे मेरा ही वर्चस्व चलता है। मैंने बहुत से युगो में इंसान को गिरते पड़ते मरते देखा है। लेकिन मैं अमर हूँ पर तुम्हऐ मरने से नहीं बचा सकता हाँ जो मेरी कदर करता है मैं उसे फर्श से अर्श तक पहुंचा देता हूँ वरना गुमनामी के अंधेरों में गर्क कर देता हूँ।दुनिया में सिकंदर नाम कोई भी रख सकता है पर असली सिकंदर वक़्त ही है जिसके आगे कोई नहीं जीत सका।
वक़्त से दिन और रात
वक़्त की हर शै गुलाम
वक़्त का हर शै पे राज
*एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली*..
*वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे*..!!
*सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से*..
*पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला* !
दुनिया का सबसे "अच्छा तोहफा वक्त "है।
क्योंकि जब आप किसी को अपना वक्त देते हैं तो आप उसे अपनी जिंदगी का वह हँसीन पल दे देते हैं जो कभी लौट कर नहीं आने वाला "
क्योंकि जब मेरा "वक्त" था मेरे पास "वक्त "नहीं था
आज मेरे पास "वक्त "ही "वक्त" है पर मेरा "वक्त"नहीं है