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Sunday, March 6, 2011

26th ,January, 2011

Working hard brings the desired result in our life ,every drop of sweat drenching our body, at our young age, will multiply our comforts & reduce tears in our old age. To err is human but: if it is done once,it is called mistake?second is stupidity, if still continuing with committing mistakes THEN IT IS A BAD HABIT worst than committing Suicide ????? 


ALways love and respect the person who brought you in this world?(YOUR MOTHER) and devote your maximum of time and energy in promoting persons who have been brought in this world BY YOU ONLY.(YOUR FAMILY )
 
 

Friday, March 4, 2011

हिसाब किताब , रखने का "आसान तरीका "KEEP YOUR ACCOUNTS FOOL PROOF ------ NO AUDITS REQUIRED.?

नई नई शादी हुई थी , पति ने पत्नी से कहा :-हमारे कमरे की जो अलमारी है न ? उसमे एक दराज मेरा होगा ! जिसे तुम भी खोल कर कभी नहीं देखोगी . मैं उस पर अपना लाक लगा कर रखूँगा .
पत्नी ने कोई इतराज नहीं किया और ख़ुशी से एक दराज अपने पति को ताला लगाने दिया , पति ने उसमे अपना सामान रखना शुरू कर दिया , सब कुछ ठीक ठाक चलता रहा .
 तीस साल बीत गए ,अचानक एक दिन पत्नी ने देखा की आज दराज का ताला , पति लगाना भूल गए हैं ,उसने उसमे झांक कर देखा तो पाया की उसमे " तीन गोल्फ की बाल्स और सिर्फ १०००/- रुपए नकद थे "


पति के लोटने पर उसने दराज खोल कर दिखाते हुए कहा " यह क्या रखा है इसमें , गोल्फ बाल्स ?" इसी के लिए तुम इसे लाक कर के रखते थे ? पति ने खुद को संभालते हुए बोला " दरअसल यह बाल्स मैंने अपनी महिला मित्रों की गिनती रखने के लिए रखी हैं ,"मैं जब भी अपनी किसी महिला मित्र के साथ घुमने जाता था तो लोट कर एक बाल दराज में डाल देता था " तीन गोल्फ बाल्स देख कर पत्नी बड़ी खुश हुई की चलो पिच्छले तीस सालों में उसके पति ने सिर्फ तीन बार बेवफाई की ?


पत्नी :-लेकिन यह १०००/रुपे सिर्फ ?
पति ने कुछ सोचते हुए बोला :- शायद जब बाल्स काफी हो जाती थी न , दराज भर जाती थी , तो मै बाल्स को १२/- रुपए दर्जन के हिसाब से बेच देता था , यह उसी के पैसे हैं , मैंने अभी तक हिसाब ही  नहीं जोड़ा था 1

राजेंद्र नागपाल

MARCH 4TH,2011

मुश्किलें ही  होंसलों को  आजमाती हैं...
आँखों पे पड़ी यह गफलत की खुमारी .
सच्चाई पे पड़ी ,झूट की चिलमन ,
दिमागी अक्स  से धुल भी यह हटाती हैं 

मुश्कलें न होती राहों में,तो मंजिलें भी क्या होती !
न होती नींद तो ,सपनो की बिसातभी  क्या होती ?
 ठोकरें खा  खा ,के हौसला न खो राह में ऐ मुसाफिर,
यही दिक्कतें ही तो मानुष को,, इंसान बनाती हैं...?.