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Wednesday, July 21, 2021

27-3-2021 ADABI SANGAM -ASVM. # 15 -- (498) मुकदमा एक वकील पर ---इस जहाँ से दूर एक सर्वोच्च सर्वोपरि अदालत - एक सच्ची कहानी जो खुद पे गुजरी है --- STORY PART

 मुकदमा एक वकील पर ---इस जहाँ से दूर एक सर्वोच्च सर्वोपरि आखिरी अदालत -  एक सच्ची कहानी जो खुद पे गुजरी है 



                            "LIFE BEGINS HERE AGAIN "

मुकदमा एक वकील पर  इस जहाँ से दूर एक सर्वोच्च सर्वोपरि आखिरी अदालत का एक दृश्ये जिसे धर्म राज की अदालत कहते है । और उनके कार्यवाहक यमराज जी को जीवन मृत्यु विभाग दिया गया है .

यह बिलकुल सच्ची आपबीती है जो मैंने अपनी यादाश्त से  इसे  कागज पे उतारी है , डेस्टिनी और palmistry में पहले से ही काफी interest भी था और बड़े बड़े ज्योतिषिओं से एक बार अपना हाथ दिखाया तो उन्होंने बोला था खा पी लो तुम्हारे पास वक्त ज्यादा नहीं है , बात आई गई हो गई लेकिन जिस उम्र के पड़ाव पर मेरी जान को खतरा बताया गया था वह वाकई में  सच में हो गया , विश्वास करो तो यह सब सच है न करो तो एक सपना जो इन जीती जागती मन की आँखों ने मरने से पहले के क्षणों में  देखा था ? जी हाँ इस सपने में हम अधमरे  ही उस अदालत में पहुंचे थे , दौरा दिल का पड़ा था और हॉस्पिटल के बिस्तर पर यह सब कुछ हो रहा था  आइये  इस घटना के परिपेक्ष में थोड़ा झाँक लेते हैं ,

1975 -76 में लॉ फैकल्टी दिल्ली यूनिवर्सिटी से वकालत पास हुए , और एक नई चुनौती अदालत की जिंदगी , जिरह ,सबूत , गवाह , जज और उसपे सबसे दुखदाई वहां के रितो रिवाज "तारीख पे तारीख ",जहाँ न्याय प्रणाली को दम तोड़ते मैंने खुद इन आखों से देखा है और झेला है।   मेरी जिंदगी इससे पहले भी  बड़ी जद्दोजेहद से गुजर रही थी , मुझे पढाई के साथ साथ अपने हिस्से की फैक्ट्री भी देखनी पड़ती थी वरना भाईओं की सुननी  पड़ती थी के यह नवाब बने यूनिवर्सिटी घूम  घूम हीरो बन  रहे हैं और हम दिन रात अकेले मेहनत करें ? 

क्योंकि यह सब कारोबार पिताजी का ही चलाया हुआ  था तो सबको यही लगता था की सब अगर पार्टनर्स है और प्रॉफिट के हकदार है तो चाहे वह पढ़ रहे हो या यूनिवर्सिटी में रोज जा रहे हो सब काम करें , गोया सुबह लॉ फैकल्टी और तीन बजे शाम के  के बाद रात 11 बजे तक फैक्ट्री का काम , मेरे जवान कसरती  शरीर ने  बखूबी साथ  निभाया , टेक्निकल बुक्स पढ़ी और उसमे सुधार करते हुए अपनी फैक्ट्री की प्रोडक्शन सबसे ऊपर कर के दिखा दी और सब को हैरानी में डाल दिया की मैं वकालत की पढ़ाई  में फैक्ट्री चलाना कहाँ से सीख गया ? 

 इतनी हार्ड मेहनत और समय  की धारा  के उल्ट विपरीत स्थितिओं में काम करना  , तमाम दिक्कतें एक दम  से विकराल रूप में मेरे सामने आ गई जब अचानक इंदिरा गाँधी के समय में देश में आपातकाल 1975 में लग गया और हमारी सारी मेहनत को पूर्ण ग्रहण लग गया ,सारा बिज़नेस ठप और कैशफ्लो भी रुक गया , फैक्ट्री में दिक्क़ते आनी  शुरू हो गई , labor disputes unrest जो अमूमन ऐसे हालत में हो जाया  करते है ,  हमारे दिल को जरूरत से ज्यादा चिंताएं  इसी दौरान काफी कमजोर भी कर चुकी थी । 

ऊपर से घातक रूप शुरू हुई असली कश्मकश , बेशुमार कोर्ट कचेहरी के चक्कर , नई नई शुरू हुई गृहस्थी  की जिम्मेवारी , बच्चों को वक्त देना उन्हें स्कूल वक्त पर पहुँचाना , बच्चा बीमार है तो डॉक्टर के पास लेकर जाना ,सब कुछ जो अब तक आरामो सकूं से चल रहा था उसमे एक भीषण गति लानी पड़ी , उसी तकलीफ के वक्त परिवार में विभाजन भी हो चूका था, माँ बाप मेरे ही साथ रहते थे उन्हें भी चिंताओं से बचाना जरूरी था , कोर्ट्स के  चक्कर पे चक्कर और अब लड़ाई भी अकेले ही लड़नी थी सब भाई  अपने अपने रास्ते चले गए थे , क्या क्या मुसीबत नहीं टूट पड़ी हम पर , एक तरफ पूँजी टूटी , लेबर बगावत पे उत्तर गई , कोर्ट केसों की भरमार हो गई , बैंक के लोन भी थे उन्होंने भी मौके का फायदा उठाते हुए हमे अकेला देख बड़ा तगड़ा कोर्ट केस ठोक दिया , 

 और हम लग गए अपनी जान माल बचाने में और फैक्ट्री को सरकारी झमेलों से बच्चाने में। खुद वकील थे सो पूरी जी जान एक कर दी , सब मुकदमो में कई साल लग गए ,करोड़ो का नुक्सान हुआ सो अलग , जैसे तैसे उस फैक्ट्री के ढाँचे  को तो  बचा लिया पर वोह चल पाने में असमर्थ थी क्योंकि पावर कनेक्शन का ५० लाख का केस अभी बाकी था , उस केस को निचली अदालतों में कोई न्याय न मिला और हमारी लड़ाई पहुँच गई देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट में , वहां हमने अपनी पूरी काबलियत उस बिजली क़ानून को ही गलत साबित करने में झोंक दी , हमारी सच्चाई के आगे सरकार भी केस हार गई और हमसे १४ साल बाद समझौता हुआ और फैक्ट्री में पावर दुबारा चालू हो पाई , घर का गुजर बसर अपनी लीगल प्रैक्टिस से चलता रहा , सब कुछ जब सम्भल तो गया , अपने दिल को नहीं संभाल पाए। 

और आ गया वह कयामत का दिन -जून 16, 1991 ,  

यह बिलकुल सच्चा किस्सा है और मैंने इसे अपनी बची खुची यादाश्त के सहारे जीवित किया है  , इतने सब कष्ट झेलने के बाद घर में कुछ उदासी थी हमारे जीवन में भी , बच्चे भी मेरी मुरझाई सूरत से कुछ उदास से हो गए थे , बाप का फर्ज निभाते हुए , सोचा सबको एक हफ्ते शिमला हिल स्टेशन ले चलते है थोड़ा तरो ताज़ा हो जाएंगे , वहां जाकर कुछ हुए भी और जब लौट कर वापिस दिल्ली पहुंचे तो ,  सुबह कहीं जाने के लिए जल्दी से तैयार भी हुए तो लगा की शरीर में कुछ जकड़न सी थी हो सकता है सफर की थकान हो ,और यह सोचकर  थोड़ी एक्सरसाइज भी कर डाली ताकि शरीर की मायूसी थोड़ी ठीक हो जाए, पर छाती में कुछ खिचाव बढ़ता महसूस हुआ जल्दी से एस्पिरेने की दो गोली निगल ली , हल्का आराम तो मिला लेकिन एक घंटे के बाद जहाँ गए हुए थे वहां से फिर जल्दी लौटना पड़ा क्योंकि सन्देश मिला की हमारे पारिवारिक गुरु जी अचानक हमारे घर आ पधारे थे लेकिन घर पहुँचते ही फिर वही खिचाव दुबारा छाती में उठना शुरू हुआ, गुरु जी अपने एक रूम में अलग से ध्यान लगा कर बैठे थे और हम सब उनके द्वार खुलने का इंतज़ार कर रहे थे , 

लेकिन मेरी हालत जब दरुस्त नहीं हुई , तो मैंने अपने ज्ञानुसार भांप लिया की यह कोई दिल में गड़बड़ है , घर में पत्नी को साथ लेकर  डॉक्टर से चेक अप  करवाने पहुँच गए , उन्होंने बहुत जल्दी जल्दी चेक अप करके एक इंजेक्शन लगा दिया , एक दम से हमे उलटी हुई ,और पुछा यह कब से हो रहा था ? मेरे यह कहते ही की यह तो सुबह उठते शुरू हो गया था , बोले बहुत खतरा उठाया है आपने यह सीवियर एनजाइना है  गाडी में बिठाया और किसी बड़े हॉस्पिटल के icu में भर्ती करवा दिया 

और मालुम नहीं हम कहाँ थे और कहाँ पहुँच गए , कोई इंजेक्शन का असर ही रहा होगा हमे, और डूब गए हम एक खामोशी में।

यह क्या हो रहा था मेरे साथ ? अचानक मेरा नाम लेके मुझे पुकारा गया राजिंदर नागपाल हाज़िर हों , दुबारा फिर वही आवाज , और फिर एक सफ़ेद लिबास में सज्जन आये " तुम्हे आवाज सुनाई नहीं दे रही , उठो तुम्हारी सुनवाई होनी है " सुनवाई होनी है पर है कौन सी जगह ?क्या किया है मैंने ? मैं इधर उधर अपने आस पास कुछ ढूंढ़ने लगा तो उस सफ़ेद पॉश ने पूछा की क्या ढून्ढ रहे हो ? मैं देख रहा था अगर यह कोर्ट की सुनवाई है तो मेरी फाइल भी यहीं कहीं होगी पर मेरे पास तो कोई फाइल ही नहीं है ,न ही  यह कोई कोर्ट  लग रही है  , मैंने कितने ही सालों तक  दिल्ली की इन तीस हज़ारी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक की जिंदगी देखि है । कोर्ट्स का हाल तो बस इतना समझ लो 

जहाँ छत का पंखा भी डिस्को करता हुआ चलता था, कूलर थे तो लेकिन गरमा गर्म हवा के लिए , ऐरकण्डीशनर्स होते थे तो लाइट न होने की वजह से ज्यादा तर बंद ही रहते थे , सुनने में आता था बिल ही नहीं भरे जाते थे इस लिए बिजली बीच बीच में परेशां करने के लिए काट दी जाती थी , बदबूदार अदालत के कमरे और ऊपर से  लोगों की अनायास भीड़ , पर यहाँ तो कुछ भी ऐसा नहीं दिख रहा सब कुछ बड़ा साफ़ सुथरा और  आनन्द दायक  वातावरण है, कौन सी अदालत है भाई यह , हम तो यहाँ पहले कभी आये ही नहीं इसी देश की है न ? 


देखो यह धर्म राज का न्यायलय है यहाँ कोई पेपर फाइल नहीं होती हमारे पास सब रिकॉर्ड पहले से होता है तुम्हारी जिंदगी के कर्मों के लेखे झोके का , क्या बात कर रहे हो एक जिन्दा व्यक्ति धर्मराज यमराज की अदालत क्या बोले जा रहे हो , अभी पता चल जाएगा उठो तुम्हारी सुनवाई शुरू हो गई है  , मुझे एक ऊँचे सिंघासन पर विराज मान जिसे धर्मराज  कहा  जा रहा था उनके सामने पेश किया गया , धर्मराज  जी ने अपने नीचे बैठे रिकॉर्ड कीपर से कहा , चित्र गुप्त इनका लेखा झोका निकालो इन्हे यहाँ स्वर्गलोक  क्यों लाया गया है ? इनकी मौत कुदरती हुई है या किसी दुर्घटना में ? अब यमराज की बातें सुनके मेरा दिमाग घूमने लगा की वाकई मैं तो मर कर इधर पहुंचा हूँ। 


भगवान इन साहिब को दिल का दौरा पड़ा था और पृथिवी लोक में इन लोगों ने बड़े बड़े यांत्रक संस्थान बनाये हुए है जिसे यह हॉस्पिटल कहते है जिसमे इनका दावा होता है के यह हर बीमारी का इलाज कर सकते है और किसी भी मृत शरीर के अंग जीवित शरीर में लगा कर उसे जिन्दा रख पाते है ,और दिल फ़ैल हो   जाए तो भी उसे ऑपरेशन से ठीक कर लेते है या किसी मुर्दे के दिल को किसी और में प्रत्यारोपण भी कर लेते है और उसे जिन्दा कर लेते है ? इसे वहाँ के बड़े बड़े डॉक्टर्स इलाज देकर  इसे बच्चाने में लगे थे , अगर हम वक्त पे न पहुँचते तो उन्होंने इसे भी  काटने का पूरा इंतज़ाम कर रखा था जिसे यह ऑपरेशन थिएटर कहते हैं।  इसे हम वहीँ से उठा के लाये है  

धर्म राज जी ने गुस्से में टेबल पर हथोड़ा मारा हमारे न्यायालय  का इतना अपमान ,हमारी विधान में इंसान का दख़ल हमे कतई मंजूर नहीं ,यह सब यांत्रिक संसथान हमने इंसानो को सजा देने को बनाये है इन्हे दरुस्त करने के लिए या उम्र बढ़ाने के लिए  नहीं।  जिसका वक्त पूरा हो चूका हो उसे यह डॉक्टर कैसे बचा सकते है यह हमारी अदालत की तोहींन है , इसकी सजा मिलेगी इन्हे ,

भगवान हमने भी कहाँ इन मुर्ख इंसानो की परवाह की हम इसे अपने नियमानुसार उठा लाएं है , इनका पार्थिव शरीर वहीँ हॉस्पिटल के बिस्तर पर पड़ा है देखिये उनका लाइव टेलीकास्ट ,और यह जो सफ़ेद नकाबपोश इस स्क्रीन पर दिखाई दे रहे है न यह वहां के डॉक्टर कहलाते है और लोग इन्हे भगवान् की तरह पूजते है इनके लिए अपनी सारी धन दौलत लेकर इनके दरवाजे खड़े रहते है की हमारी सम्बन्धी को किसी भी तरह बचा लो। 

कोई बात नहीं इनका मुकदमा शुरू किया जाए हम देखते है इनके बड़े बड़े हस्पताल और डॉक्टर्स क्या कर पाते है इनके मृत शरीर के साथ। 

इनके गुनाहो का चिटठा बताईये , भगवन इनके वर्तमान जीवन के  खुदके ऐसे कोई खास गुनाह नहीं हैं , यह तो कर्म फल के अनुसार इनके बीते पिछले जीवन में जो भी कुछ हुआ है उसी के फलसवरूप उनकी सजा अभी बाकी थी , लेकिन आज के जीवन में  यह अपने मात पिता के भक्त है उन्ही के साथ ही रहते हैं ,कोल्हू के बैल की तरह दिन रात लगे रहते थे , पत्नी , बचो और  गृहस्थी में पूरा ध्यान देते है , कोई ऐब नहीं प्यार मोहब्बत से रहते है , 

तो फिर ? महाराज बस इनकी इतनी ही जिंदगी थी और दिल के दौरे से मौत लिखी थी सो इन्हे हम ले आये । धर्मराज जी कुछ सोच में पड़ गए और पुछा चित्रगुप्त यह करते क्या है ? इनकी पारिवारिक  फैक्ट्री के अलावा ,

यह मृत्यु लोक में एक वकील भी है जिनका काम है लोगो के मुक्कदमे हों या सरकार के खिलाफ कोई न कोई मुकदमा लड़ते रहते है उसी में इनकी जिंदगी गुजर रही है , झूठे केस लेने से दूर भागते है , गरीब लोगो के केस कम फीस या मुफ्त भी कर देते है , लोगों में इनकी  काफी इज़्ज़त है , अपने स्वस्थ जीवन के लिए बहुत प्रयत्न करते है , यह दिल का दौरा भी इन्हे एक्सरसाइज करते हुए ही हमने दिया  था ,

पर धन दौलत से कोई खास मोह नहीं रखते ,अब धर्म राज जी से सहन नहीं हुआ और कड़क कर बोले " यमराज यह कैसी विडंबना है एक तरफ आप इसके गुण ही गुण बताये जा रहे हो दुसरे इसके प्राण इतनी जल्दी निकाल लाये हो ? आखिर कहना क्या चाहते हो ?

इनकी उम्र सिर्फ 42 वर्ष , इतनी कम है और इनका परिवार अभी सम्भला नहीं है , अभी इनके बुजुर्ग माता पिता भी जीवित है , इनकी आकस्मिक मृत्यु तो इनके परिवार को सजा देना है इन्हे थोड़ा ही ? हमे इनके कर्मो की सजा इनको देनी है न की इनके परिवार को , हाँ भगवन यह तो ठीक है। तुम्हे इतनी जल्दबाज़ी नहीं करनी थी हमसे कुछ परामर्श तो कर लेते , इन्हे सजाये मौत देना तो इन्हे शीघ्र मुक्ति देना है ? फिर इनकी सजा कहाँ हुई ? मौत के बाद कौन अपनी बीती को याद कर पाता है ?

जैसा की चन्द्रगुप्त ने बताया है ,इन वकील की फाइल में सब बियोरा मौजूद है , इन  लोगो का जीवन तो खुद ही एक सजा होता है , इनका परिवार इनके सान्निध्य को तरसता  रहता है , सारी जिंदगी फाइलों और किताबों में खपा देते है , आँखों पे इनके चश्मे लगे है ,आँखों में कैटरेक्ट था सो दोनों आँखों में लेंस लगे है ,  खाने पीने का कोई वक्त नहीं होता तभी इनके स्वास्थ्य और दांतों की भी काफी बुरी दशा हो चुकी है , सर के बाल भी चिंताओं से काफी उड़ चुके है , अपने घर परिवार, जमीन जायदाद  के झगड़ो में भी काफी उलझे हुए है , इनके माता पिता सहित सब की  जिम्मेवारिआं भी इन्ही पर हैं ,

 यमराज आप शायद भूल गए हमने  आजकल इंसानो को उनके करमअनुसार सजा देने  के लिए  मृत्यु  लोक में ही इंतज़ाम कर दिए है , यहाँ स्वर्ग लोक में स्थान की बहुत कमी है इसलिए नर्कलोक पृथ्वी पर ही विस्थापित कर दिया है , जिसे तुम खूबसूरत यांत्रिक हस्पताल का नाम दे रहे हो न वह असल में हमारे नर्क लोक में फ्रैंचाइज़ी है जो इसे हमारे नियम अनुसार नर्क लोक जैसी सजा देते है , इनके शरीर को विभिन तरह के कष्ट और काट पाट सजा के ही रूप है , इनकी गलत ढंग से कमाई हुई दौलत को यहीं पर वापिस छीन लिया जाता है। 

दिल इसका  टूट फुट चूका है इस घातक दिल के दौरे की वजह से ,हम इनका यहाँ करेंगे क्या ?
  ऊपर से यह वकील भी है , यहाँ इनके आने से हमारे विधान के  लिए भी खतरा है , यह हमारे विधान में भी गलतियां निकालने लगेगा , शोर मचाएगा , यूनियन बना लेगा , P.I.L. डालेगा और लोगों को हमारे विरुद्ध करेगा , , क्या करेंगे इसे यहाँ रख के सजा देने को 

लेकिन सच्चाई यह भी तो है ,यह तो खुद ही मर मर कर जी रहा है , चारो तरफ इनके कष्ट ही कष्ट है ,चैन इसे है नहीं , पूरे परिवार की जिम्मेदारिओं का बोझ इसके कंधे पर है यह क्या कम सजा होती है ? हमारे यहाँ ऐसे लोगो के लिए कोई चिकित्सा सुविधा भी नहीं है वोह सब तो हमने नर्क लोक में स्थापित की है ?

दुसरे विशेष ,यह माता पिता के आलावा गुरु मुख भी है , अभी अभी हम देख पा रहे है इसके घर में इनके गुरु मौजूद है और उन्होंने अपनी पूरी ध्यान शक्ति अपने तप योग से एक कमरे में काफी देर से इसके प्राण रक्षा में लगा रखी है। ऐसे में हमे निर्णय करने में भी कष्ट हो रहा है।  



छोड़ दो इसे वापिस मृत्यु लोक धरती पर इसी के हाल पर , इसकी सजा मौत नहीं उम्र कैद है , जीने दो इसे अपने संघर्ष पूर्ण जीवन में , छोड़ दो इसे ------------
देकर एक लम्बी तारीख। 
 
यह फैसला सुन हम हैरान थे हमारी वकालत तो यहाँ भी चल गई ,एक तारीख यहाँ भी ले ली हमने ,शायद हमारी  फाइल में दम था या  मेरे सपोर्ट में मेरा परिवार मेरे गुरु जी का प्रेम और आशीर्वाद भी था , 

ऐसे हमारे केस की सुनवाई एक लम्बी तारिख पर खत्म हुई , हमे मिला एक और अवसर जीवित रहने का 


जैसे ही मेरी आँख खुली डॉक्टर्स ने मेरे माता पिता को icu में मुझे देखने को आने दिया और मेरे गुरु जी का मुझे यह संदेसा दिया। मुझे अपना बचपन याद आ गया जब यही गुरु जी हमे सुबह हमारे घर में आकर सुबह चार बजे उठा कर अपने साथ सैर को ले जाते थे ,उनकी गति हमे दौड़ कर पकड़नी पड़ती थी। 
आँख खुली icu के बिस्तर पर ,तो देखा लोग इधर से उधर आ जा रहे , बड़े विचित्रसफ़ेद  परिधान और चेहरे भी ढके हुए , क्या यह कोई इस्लामिक देश है , पर मैं तो हिंदुस्तानी हूँ फिर यहाँ कैसे ?मेरा पहली बार किसी हॉस्पिटल के इस तरह के वार्ड में आना हुआ था , जहां सब लोग ऊपर से नीचे तक ढके हुए थे , कभी बीमार जो नहीं पड़ते थे ,


मेरी आँखों को खुलता देख एक नकाबपोश मेरे पास आये शायद वह डॉक्टर थे , पूछने लगे अब कैसी है तबियत ? तबियत ? क्या हुआ है मुझे ? तुम्हे दिल का भयंकर दौरा पड़ा था ,बेहोशी की हालत में यहाँ लाये गए थे , पिछले 72    घंटो से तुम्हे वेंटीलेटर पर  ऑक्सीजन और इलेक्ट्रिक शॉक देकर तुम्हे जीवित करने का परियास चल रहा था ,  क्या बात कर रहे हो , तो क्या मैं मर चूका हूँ , हाँ पर अब ईश्वर की कृपा और आपके परिवार की प्रार्थना से अब फिर वापिस तुम्हारा शरीर सांस लेने लगा है और तुम खतरे से बहार आ गए हो ? लेकिन अभी 72 घंटो तक इंटेंसिव ऑब्जरवेशन चलेगी जब तक स्थिति  पूरी तरह सामान्य नहीं हो जाती। 

ऐसे कैसा मजाक कर रहे हो डॉक्टर साहिब , यह हकीकत है मजाक नहीं तुम्हारा उन किवदन्तिओं जैसा आत्मा का शरीर में पुनर प्रवेश हुआ है ,अब तुम आराम करो दिल पे ज्यादा बोझ मत डालो ,कह के डॉक्टर तो चले गए पर मेरे दिमाग पे वाकई बहुत जोर पड़ने लगा मेरे सोचने से और मैं फिर गहरी नींद कब सोगया मुझे कोई पता नहीं ,

उधर घर में हमारे गुरु जी ने अपना दरवाजा खोलते ही अपने शिष्यों से कहा के हॉस्पिटल फ़ोन मिलाइये राजिंदर का हाल पूछो , वह अब ठीक हो चुके है , हॉस्पिटल से मेरे कुशल मंगल का सन्देश मिलते ही सब के चेहरों पे ख़ुशी की लहर दौड़ गई , पर मैं आज तक अपने गुरु जी की  इस योग शक्ति को समझ नहीं पाया जिन्होंने मेरे ही घर में मेरे ही परिजनों के बीच में मेरे बारे में कैसे जान लिया । 

मेरे गुरु जी आज इस दुनिया में नहीं है लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है उन्होंने इच्छा मृत्यु प्राप्त की थी और सब को बता के की हम कल इस चोले को बदलने जा रहे है वह लगभग 102 की उम्र में स्वर्ग सिधार गए और मैं आज उन्ही के आशीर्वाद से उनके बताये पद्चिनः पर चलने की पूरी कोशिश करता हूँ 



कोरोना के भय को इतनी करीबी से झेला है ,  
सोचने लगे थे कहीं फिर  तारीख तो नहीं आ गई 
जमाने भर की खुशियों से यूँ तो अलग है हम, 
 लोगो को लगता है फिर भी गलत है हम,

वकील होना भी अपने आप में कहाँ आसान है दोस्तों..? 
अपना सब हार के दूसरों को जितवाना पड़ता है , 
बदले में ले लेते है आपकी चिंताएं और बेकार पड़ी नाजायज़ दौलत ,
बीमार भी पड  जाते है अक्सर,
 नाजायज़ दौलत से उपजी दिमागी परेशानियों से 
लेकिन जब हाथ हो सर पे महापुरषों का , साथ हो आप जैसे मित्रों का 
बीमार होकर भी ठीक हो जाती  है तबियत हमारी, 
लौट आते है वापिस आप की सेवा में 

लेकर आखिरी अदालत से भी *एक लम्बी तारीख *