What Others Are Doing is None Of My Business, I Am Focusing Only on What Can Be Done To Make My Life Useful And Purpose Full. I wonder if it is possible to always be in good happy mood even if every thing around you is NOT OF YOUR LIKING , except when you are deaf , dumb and blind all at the same time.
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Sunday, April 26, 2020
ADABI SANGAM --------------TAKRAR-- तकरार -- APRIL ---2020----------------------------------------------------------------------------------------------------------------
इकरार करते है कुछ खरीदने से पहले , बिना इकरार , करार मुमकिन नहीं ,हर करारों की अंतिम घडी है " तकरार " इसमें रिश्ते बिखरने लगते है ,मायने रखते हैं तो सिर्फ कुछ नुक्ते जिसमे लोभ ,मोह ,माया , अहंकार , फिर शुरू होता है न खत्म होने वाला तकरार।
यह तकरार का शुभ आरम्भ है अभी न मालूम कितनी किताबे खुलेंगी और तकरार रोका न गया तो घर भी टूट सकता है।
न जाने क्यों मायूसी , बेबसी दिल पे छाने लगी है , बहुत तकरार किया करते थे हम भी लोगों से एक जमाने में , यह अब सब बेस्वाद बे मजा हो गया है शायद मुझे मेरी औकात समझ आने लगी है
खुशबाग थी कभी जिंदगी हमारी भी , न किसी से प्यार , करार न ही कोई तकरार ,गमे हयात ने जो हाथ फैलाये , हम भी फंस गए ,तकरारों के जाल में , गिरेबान बचा न पाए।
आज उठते बैठते पत्नी जी से झिक झिक हो ही जाती है कभी किसी बात पे और कभी बेबात भी, ग्रहस्थी जो हुई समझौता कर लेते है तकरार को ताक पे रख किसी तरह अपनी साख बचा लेते है।
हँसते थे कभी आईने में अपनी खूबसूरती देख कर , आज आइना भी रोने लगा हमें परेशां देख कर करार था जिंदगी से , हर हाल में खुश रहेंगे , कॉन्ट्रैक्ट ) गम छोटे हो या बड़े , सब को ख़ुशी का समान वक्त की बहार ,दिल का करार ही समझेंगे।पर यह सब इतना आसान थोड़ा ही होता है ?
चारों तरफ नज़रें घुमाई तो देखा ,क्या आलम फैला है चारोँ तरफ।क्यों हमारा दिले इज़हार भी ,तकरार लगे है सबकी नज़र में
भीड़ में खड़ा होना ,भीड़ के पीछे चलना ,मकसद नहीं हैं मेरा,
या रब तूने मेरी फरियाद का मतलब ही बदल दिया , क्या होगया है तेरे जहाँ को , भीड़ की बात तो अलग ,मिलने जुलने की कवायद जो चला करती थी ,वोह भी छीन ली ,
अब तो लोग दुआ सलाम करने से भी डरने लगे है , कहते है सोशल डिस्टेंसिंग कर रहे है।अभी तो हम मैदान में उतरे भी नहीं थे और यह सोशल डिस्टन्सिंग?
और लोगों ने हमारे चर्चे शुरू कर दिये!!मेरी खिलाफत ही उनका पहला धर्म बन गई , कभी मिल भी जाते तो प्यार से कम तकरार ज्यादा होने लगा ,पर लोग मुझे कभी का छोड़ चुके थे , पता ही नहीं चला ,किसको किस बात से बदमजगी हुई , तकरार बन गई और तकरार एक दरार बन कर रह गई।
आपसी गुफ्तुगू में लोग तो कुछ भी बोल दिया करते है ,किसी से खफा होने को किसी को भड़काने को , लफ़्ज़ों के मतलब ही बदल देते है।वह भूल जाते है की लफ़्ज़ों के भी जायके होते है ,
मेरा मन तो जरूर साफ़ है , पर मूड फिर भी क्यों ऑफ है , हुआ था किसी बात पे दोस्तों से तकरार ,न वह समझे न मैं उन्हें समझा पाया , गरूर किसी का भी हो टकराव भी हुआ और और तकरार भी उतना ही बड़ा। पर दिल है के मानता नहीं , फिर खुराफात सुझा रहा है की ,चलो आज फिर थोडा मुस्कुराया जाये,किसी से प्यार किसी से तकरार किया जाए ,बिना माचिस के कुछ लोगो को जलाया जाये। यह भी शौक है कुछ हमारे शरीफ दोस्तों के ?
सिर्फ मन कुछ जरूरत से ज्यादा शांत है ,इतनी शान्ति हाज़मा खराब किये दे रही है ,बाकी आपकी दुआ से सब ठीक ठाक है,
सोशल distancing ने बाहर के लोगों से तो तकरार कम कर दिए है पर घर के अंदर तकरार नए नए रूपों में प्रगट हो रहा है , पति पत्नी की नोकझोंक काफी बढ़ चुकी है , इतना लम्बा वक्त एक दुसरे को लगातार देखते रहने से जी भरने लगा है , एक दूजे की गलतियां ज्यादा नजर आने लगी है।
वैसे इंसान अच्छी से अच्छी आबो हवा के बगैर भी ,
हम बेक़सूर लोग भी दिलचस्प लोग हैं , तकरार करें भी तो किस से ?खुद ही शर्मिंदा हो रहे है ख़ता के बगैर भी। चारागरी बताये अगर कुछ इलाज है ,तो ?
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